रोहन श्रीधर।। हिमाचल प्रदेश की प्राचीन पहाड़ियों में चुनावी बिगुल बज चुका है। जैसा कि हिमाचल में हर चुनाव में होता रहा है, राज्य में बीजेपी और सत्ताधारी कांग्रेस के बीच सीधी टक्कर है। अगर हिमाचल में वोटिंग के ऐतिहासिक पैटर्न के हिसाब से देखें तो बीजेपी जीत सकती है, क्योंकि हिमाचल में लंबे समय से कोई सरकार लगातार सत्ता में नहीं आई। चुनाव प्रचार पर नजर डालें तो लगता है कि भ्रष्टाचार, विकास, आर्थिक विकास, कानून व्यवस्था और सामाजिक सौहार्द जैसे मुद्दों पर बीजेपी का एकाधिकार है।
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बीजेपी का कांग्रेस और इसके नेताओं पर हमले करना काफी हद तक सही भी लगता है। मगर यह देखना मजेदार है कि भगवा ब्रिगेड अपने आप को आदर्श बता रही है। अगर भगवा नेताओं की कोई आलोचना कर दे तो उसके संगठनों के कार्यकर्ता गाली-गलौच, धमकियों और हिंसा पर उतर आते हैं। और अगर कोई बात उनकी पार्टी को पसंद न आए तो कानूनी कार्रवाई और केंद्रीय एजेंसियों की जांच का हमला होना अपरिहार्य है।
वैसे तो बीजेपी बहुत से मामलों को लेकर विपक्ष पर निशाना साधती है, मगर जिसका जिक्र वह सबसे ज्यादा करती है, वह है- भ्रष्टाचार। हालांकि यह सही है कि यूपीए कार्यकाल में यह अभूतपूर्व स्वरूप में दिखा, मगर कांग्रेस और इसकी सहयोगी पार्टियों पर निशाना साधने वाली बीजेपी खुद इससे अछूती नहीं है। जब से यह पार्टी केंद्र में सत्ता में आई है, लगता है इसके अंडर आने वाली जांच एजेसियां कुछ बातों को लेकर स्मृतिलोप की शिकार हो जाती हैं और इस तरह से व्यापम तो उनकी स्मृति से गायब ही हो गया है। बीजेपी शासित मध्य प्रदेश में ऐडमिशन और भर्ती घोटाले में कथित तौर पर कई वरिष्ठ नेता, सरकारी अधिकारी और कारोबारी शामिल हैं।
यह देश के महत्वाकांक्षी, मेहनती युवा वर्ग के खिलाफ शायद सबसे बड़ा स्कैम है। इस स्कैम से जुड़े 40 से ज्यादा लोग संदिग्ध हालात में मारे गए और आरोपियों में राज्य के मंत्री, आईएएस अधिकारी और पूर्व राज्यपाल तक शामिल हैं। इस मामले में इतनी मौतें और जांच एजेंसियों द्वारा संदिग्धों के खिलाफ कार्रवाई न करना सवालों के घेरे में हैं। इसमें शामिल संदिग्ध, जो बीजेपी या इसके संबंधित संगठनों से संबधित हैं, दिखाते हैं कि भगवा ब्रिगेड किस तरह से संगठित माफिया चला सकती है।
विकास का गड़बड़ियों भरा अफ़साना
हिमाचल में बीजेपी की सरकारों की विकासगाथा का प्रचार करने के लिए पार्टी ने योगी आदित्यनाथ को चुना है। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बीजेपी के स्टार कैंपनर हैं। वह जनाब हिमाचल के भोले-भाले लोगों को अपना विकास का विज़न पूरे आत्मविश्वास से सुना रहे हैं। हालांकि 60 दिनों के अंदर ही उनके गृहक्षेत्र गोरखपुर में एक मेडिकल हॉस्पिटल में 290 बच्चों की मौत हो गई। हिमाचलियों को ऐसे शख्स द्वारा विकास का भाषण देना हास्यास्पद है, जो ऐसे राज्य का मुखिया है जो पूरे देश में सबसे पिछड़ा माना जाता है।
क्या वह अपने राज्य की 57.18 प्रतिशत महिला साक्षरता दर का बखान कर रहे हैं जो हिमाचल में 75.9 फीसदी है? या क्या वह अपने राज्य की 36,250 रुपये प्रति व्यक्ति आय की बात कर रहे हैं जो हिमाचल में 1,04,000 से ज्यादा है? उत्तर प्रदेश को तुलना करनी ही है तो सहारा के पिछड़े राज्यों से करे। उल्टा योगी और उनकी पार्टी के शासित राज्यों को मृदुभाषी लोगों के राज्य हिमाचल से कुछ सीखकर जाना चाहिए।
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विमुद्रीकरण देश की आर्थिक और वित्तीय स्वतंत्रता पर हमला था। जीएसटी को जल्दबाजी में लागू करने से देश की आर्थिक तरक्की बाधित हुई है। उत्पादन दर भी प्रभावित हुई है। कुलमिलाकर बात यह है कि बीजेपी न तो भ्रष्टाचार विरोधी है न विकास समर्थक। फिर भी यह कांग्रेस द्वारा दिखाई गई अयोग्यता का ढिंढोरा पीट रही है। अगर कांग्रेस के नेता मतदाताओं, पार्टी और देश के प्रति जरा से भी संवेदनशील होते, तो बीजेपी को इतनी आसानी से हावी होने का मौका नहीं मिलता।
(लेखक मुंबई के एक थिंक टैंक से जुड़े हुए हैं। वह राजनीतिक, आर्थिक और सामाजिक विषयों पर लिखते हैं।)
ये लेखक के निजी विचार हैं