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Friday, September 12, 2025
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…तो क्या प्रेम कुमार धूमल के बाद जयराम ठाकुर?

मंडी।। हिमाचल प्रदेश में चुनाव प्रचार अभियान में जुटे बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने बुधवार को मंडी के सिराज में जनसभा को संबोधित किया। थुनाग में चुनावी जनसभा को संबोधित करते हुए बीजेपी अध्यक्ष ने कहा कि धूमल मुख्यमंत्री होंगे और सिराज के विधायक जयराम ठाकुर को सरकार में सबसे बड़ा पद दिया जाएगा। मगर उनके इस बयान को लेकर यह चर्चा शुरू हो गई है कि आखिर वह पद कौन सा होगा।

थुनाग में बोलते हुए अमित शाह ने कहा, “हिमाचल में मोदी और धूमल की जोड़ी सरकार बनाएगी। धूमल मुख्यमंत्री होंगे और सिराज के विधायक जयराम ठाकुर को सरकार में सबसे बड़ा पद दिया जाएगा(पढ़ें)।”

अमित शाह के इस बयान के सियासी मायने तलाशना शुरू कर दिया गया है। चर्चा का विषय यह बन रहा है कि सरकार में सबसे बड़ा पद तो मुख्यमंत्री का होता है, ऐसे में अमित शाह कौन से बड़े पद की बात कर रहे हैं। यह सुगबुगाहट भी शुरू हो गई है कि शाह का इशारा कहीं धूमल की उम्र 75 साल हो जाने के बाद सीएम पद की जिम्मेदारी जयराम ठाकुर को दिए जाने की तरफ तो नहीं था।

जयराम ठाकुर

यह है बीजेपी का 75+ फॉर्म्युला
हिमाचल प्रदेश के तमाम मीडिया संस्थान अनुमान लगा रहे हैं कि धूमल, जिनकी उम्र 73 साल है, उन्हें सीएम कैंडिडेट घोषित किया गया है और बीजेपी के जीतने की स्थिति में उन्हें सीएम भी बनाया जाएगा। मगर जैसी ही उनकी उम्र 75 साल होगी, उनकी जगह सीएम पद पर किसी नए चेहरे को बिठाया जाएगा।

इसके लिए तमाम लोग गुजरात का उदाहरण दे रहे हैं जहां से आणंदीबेन के 75 साल के होते ही सीएम बदल दिया गया और साथ ही 75 प्लस उम्र के लोगों को राज्य सरकारों में और केंद्र में बड़े पदों से मुक्त किया जाता रहा है, जिनमें कलराज मिश्र और नजमा हेपतुल्ला का नाम उदाहरण के तौर पर लिया जा सकता है।

ऐसे में क्या थुनाग में अमित शाह यह कहना चाहते थे कि धूमल के बाद जयराम ठाकुर सीएम होंगे? चर्चा है कि जिस तरह से धूमल को राजपूर बिरादरी के वोटों (करीब 37 फीसदी) को साधने के लिए सीएम प्रॉजेक्ट किया गया है, क्या इसी तर्ज पर जयराम ठाकुर को सत्ता सौंपी जाएगी।

जेपी नड्डा ने भी किया था इशारा
21 अक्तूबर को कुथाह में जनसभा को संबोधित करते हुए केंद्रीय मंत्री जेपी नड्डा ने भी कुछ ऐसा ही इशारा किया था।उन्होंने कहा था कि सिराज विधानसभा क्षेत्र को जल्द बड़ी जिम्मेदारी दी जा सकती है(पढ़ें)। himachal assembly election 2017 jp nadda and jairam thakur

बीजेपी के मन में क्या है, यह कहा नहीं जा सकता। हिमाचल में भी उसने चुनाव से ठीक पहले तक सीएम कैंडिडेट घोषित नहीं किया और आखिर में धूमल को प्रॉजेक्ट करके चौंका दिया। इससे कहीं न कहीं प्रचार के मामले में आगे चल रही कांग्रेस को झटका तो लगा है। ऐसे में भविष्य के लिए बीजेपी ने क्या रणनीति बनाई है, यह तो बाद में ही पता चल जाएगा। मगर अब लोगों ने बीजेपी के संकेतों के मायने तलाशना शुरू कर दिया है और हर छोटी बात को बड़ी गंभीरता के साथ देखा जा रहा है।

ऑनलाइन लोकप्रियता के मामले में धूमल पर भारी पड़े वीरभद्र

इन हिमाचल डेस्क।। बुधवार शाम को ‘In Himachal’ द्वारा अपने फेसबुक पेज पर करवाए गए लाइव रिऐक्शन पोल में बीजेपी के सीएम उम्मीदवार प्रेम कुमार धूमल पर कांग्रेस के सीएम कैंडिडेट वीरभद्र सिंह भारी पड़े। दोनों नेताओं के बीच करीब साढ़े तीन घंटों के फेसबुक लाइव में कांटे की टक्कर रही।

 

शुरू में दोनों बराबर-बराबर चलते रहे मगर 15 मिनट बाद धूमल ने वीरभद्र पर करीब 50 रिऐक्शंस की लीड ले ली। यह लीड डेढ़ घंटे तक बनी रही और एक मौके पर 80 तक पहुंच गई। मगर इसके बाद वीरभद्र सिंह ने वापसी करना शुरू किया। ढाई घंटे बाद वह धूमल से आगे हो गए और साढ़े तीन घंटे बाद जब ऐप द्वारा क्रिएट किया गया पोल अपने आप खत्म हुआ, वीरभद्र 365 रिऐक्शंस आगे थे।

लाइव पोल का नतीजा

वीरभद्र को कुल 3713 लोगों ने अपनी पसंद बताया वहीं धूमल को 3349 लोगों ने पसंद बताया। ध्यान देने वाली बात है कि यह अंतर ज्यादा नहीं है। हमने इस पोल में इस बार Love और Wow के ही रिऐक्शन के विकल्प रखे थे क्योंकि कई बार लोग Like बटन सामान्य तौर पर प्रेस कर देते हैं और इससे रिजल्ट प्रभावित हो जाते हैं।

कॉमेंट्स में ऐसे लोग भी थे जो बीजेपी या कांग्रेस के पक्ष में बातें कर रहे थे, वहीं ऐसे लोगों की संख्या भी अच्छी खासी थी जो कह रहे थे कि दोनों ही नेता उन्हें पसंद नहीं, वे किसी और को सीएम देखना चाहते हैं। इन दोनों नेताओं की असली परीक्षा चुनाव में होगी, मगर फिलहाल ऑनलाइन यूजर्स की पसंद के मामले में थोड़े से ही सही, मगर वीरभद्र धूमल पर भारी पड़े।

नीचे वीडियो प्ले करके देखें लाइव पोल:

लाइव पोल खत्म होने के बाद दिए गए रिऐक्शंस इसमें शामिल नहीं हैं।

Opinion: BJP is not holier than thou

Rohan Shridhar
The pristine hills of Himachal Pradesh are reeling under the noise of the election bugle. As every other election witnessed in the state, this is a direct fight between the BJP and the incumbent congress. If one is to go by the historical voting patterns in the state a BJP victory is likely as no government has ever repeated itself. In the ongoing campaigns that are unravelling it seems that the BJP has a complete monopoly over the issues of corruption, development, economic growth, law and order and social harmony.

The continuance chastising of Congress and its leaders by BJP though somewhat reasonable, smacks of arrogant hypocrisy. It is interesting to see that in establishing a moral high ground, the saffron brigade is fighting night and day to scuttle any narrative about their transgressions. Any criticism levelled at saffron leaders, workers or organizations is met with dreadful disdain, violent abuse and if deemed too dangerous for the party’s liking, action in courts or investigations by central government agencies is inevitable.

Of all the subjects over which the Bhartiya Janta Party has complete domination, the one the party rallies around the most is corruption. While it is true that graft seen during the UPA regime was unprecedented in nature, for BJP to be rebuking Congress and its allies seems like the kettle is calling the pot black. Ever since the party has come to power in the Centre it appears that all investigating agencies under its command have been diagnosed with selective amnesia that has completely wiped out Vyapam from their memory. The admission and recruitment scam that took place in BJP ruled Madhya Pradesh is alleged to be perpetrated by a group of senior politicians, government officials and businessman.

The entire scheme hatched by this unscrupulous nexus may be the greatest rip off executed against the hard working, aspiring and ambitious youth of the country. More than 40 people associated with the scam died in mysterious circumstances and some of the accused include senior ministers, IAS officers and even a former state Governor. The unparalleled nature of associated deaths, sheltering of high profile suspects and a lack of initiative shown by investigative agencies as well as the state government to lay bare the facts is perplexing even by Indian standards. The wrongdoers, all of whom are linked with the BJP or many of its affiliate organizations, have with Vyapam shown that the saffron brigade is more than capable of running a well-oiled mafia, greasing the palms of all in power with impunity.

Flawed development narrative
To masquerade all around Himachal as a messiah of BJP oriented development the party ironically chose Yogi Adityanath the current CM of Uttar Pradesh as one of its star campaigners. The man doesn’t seem lacking in confidence and was more than eager to virtuously lecture the innocent people of HP about the wonders of his vision of development, just sixty days after 290 children died in a single month at a medical hospital based in his home constituency of Gorakhpur. It is an insult to the collective pride of Himachalis to be lectured by a communal conman on the wonders of progress, when he himself heads a state which is considered the most backward in the country.

Marketing a dismal female literacy rate of 57.18%, a per capita income of only 36,250 rupees, an infant mortality rate as high as 64 and a GDP growth rate of mere 5.6 percent, UP should be competing with the likes of Sub Saharan nations. Himachal boasts of a nationwide high female literacy rate of 75.9 percent, a per capita income of more than 1,04,000, an infant mortality rate of 35 and constant growth rates of 7 percent over continuous periods. An average Himachali is three times wealthier than his counterpart in UP. The misguided maverick that is Yogi and his saffron army should humble down and learn from the soft spoken hill folk some tricks to revive the fortunes of his dismal state.

On all the subjects of common concern being championed by the BJP, it is quite evident that there are significant chinks in the saffron armory. The execution of demonetization, a blatant attack on the financial and economic liberty of Indians and haphazard execution of GST have shattered their narrative as the lone bearer of progress and economic growth in the myriad of Indian politics. Non-government component of GDP constituting more than 90 percent of the economy has slipped to a mere 4.3 percent the lowest since 2013. Capacity building in industry is at an all-time low with manufacturing growth restricted to a dismal 1.17 percent and construction at a poor 2 percent. The two sectors constitute around 85 percent of the industry.

The BJP is neither anti-corruption, nor pro development. It has faltered miserably on economic growth and yet it is miraculously controlling the narrative on all the important matters largely due to the sheer unimaginable scale of incompetency shown by the Congress party. Had the congress leaders been a tad bit sincere in their commitment to voters, party and country they might have given the BJP a run for its money.

(An associate at a Mumbai based think thank, Rohan Shridhar writes articles on political, financial and social subjects)

 

Disclaimer: The views expressed here are solely those of the author in his private capacity

लेख: वीरभद्र के आगे नतमस्तक हुए बीजेपी के चाणक्य अमित शाह

भाग सिंह ठाकुर।। वीरभद्र कांग्रेस की तरफ से अकेले ही प्रचार का जिम्मा संभाले हुए थे जबकि बीजेपी ने अपने कई नेताओं को झोंक दिया था। संबित पात्रा, सुधांशु त्रिवेदी, गडकरी, योगी और अमित शाह तक हिमाचल में आकर प्रचार में जुटे। एक तरफ बड़े नामों की फौज, दूसरी तरफ 83 साल का बुजुर्ग नेता अकेले ही सबसे लोहा ले रहा था और भारी भी पड़ रहा था। बीजेपी को जो उम्मीद थी कि आराम से हिमाचल में सरकार बना लेगी, वह कुंद पड़ती दिखाई दी। उसे समझ आ गया कि जुमलों और गप्पों और संवादों वाले भाषण से यहां काम नहीं चलने वाला। अगर माहौल बनाना है तो कुछ अलग करना पड़ेगा। क्योंकि उसने देखा कि जनता तो शांत बैठी हुई है। न तो रैलियों में ज्यादा भीड़ उमड़ रही है न ही खुलकर जनता अपना रुख दिखा रही है। वहीं दूसरे राज्यों में तो बीजेपी के छोटे-मोटे नेता के लिए लिए गजब भीड़ उमड़ आती थी।

 

वीरभद्र पर बीजेपी ने करप्शन के आरोप लगाए और उन्हें घेरने की कोशिश की। बार-बार उनके खिलाफ चल रहे मामलों का जिक्र किया। मगर दूसरी तरफ वीरभद्र ने इन्हीं मामलों को जिक्र करके सहानुभूति बटोरना शुरू कर दिया। इमोशनल कार्ड खेलकर वह लोगों की सहानुभूति बटोरते भी देखे। ऐसे में बीजेपी को लगा कि कहीं हम अपना सीएम कैंडिडेट घोषित न करके गलती तो नही ंकर रहे? वैसे गलती तो वे नहीं कर रहे थे क्योंकि आकलन किया जाए तो साफ था कि भले ही बीजेपी 50 या 40 प्लस सीटें न ला पाए, मगर सरकार तो उसी की बनेगी। मगर शाह और मोदी इस बात भला कैसे समझ पाते? उन्हें लगा कि हिमाचल में माहौल ठंडा है और कांग्रेस यह माहौल बना रही है कि बीजेपी तो बिना दूल्हे की बारात है। इसी चक्कर में उसने मतदान से ठीक पहले प्रेम कुमार धूमल को सीएम कैंडिडेट घोषित कर दिया।

 

वैसे कुछ दिन पहले तक बीजेपी तमाम नेता, जिनमें अरुण जेटली और शाह शामिल थे, कहते थे कि हिमाचल में सामूहिक नेतृत्व में और मोदी जी के नाम पर चुनाव लड़ा जाएगा। फिर अचानक ऐसा क्या हो गया कि उन्हें अपने ही बयान और पार्टी के रुख से पटलना पड़ा और जहां उन्होंने पिछले कई राज्यों में बिना चेहरा बताए चुनाव लड़े थे, हिमाचल में अलग रणनीति बनाकर नाम का ऐलान करना पड़ा? दरअसल बीजेपी सशंकित हो उठी थी कि कहीं वीरभद्र हावी न पड़ जाएं और कहीं कांग्रेस की सरकार फिर न बन जाए।

 

बीजेपी का यह डर ही उसे आखिरी वक्त में ऐसा कदम उठाने पर विवश कर गया, जिससे उसका फायदा हो न हो, नुकसान होने की आशंका ज्यादा है। अब जिन लोगों के मन में यह उम्मीद जगी थी कि चलो, बीजेपी कोई नया चेहरा देगी, अब वे शांत होकर बैठ जाएंगे। उनका उत्साह नए चेहरे के लिए था क्योंकि वे पुराने चेहरों को पसंद नही ंकरते थे। अब पुराना चेहरा आ जाने पर वे पार्टी के आधार पर नहीं, अपनी पसंद के आधार पर वोट करेंगे। बुद्धिजीवी वर्ग धूमल और वीरभद्र को एक जैसा मानता है। इसलिए वह नए चेहरे की उम्मीद में उत्साहित था, इसिलए वह अब दोनों की तुलना करेगा औऱ दोनों में उसे जो ज्यादा ठीक लगेगा, उसके पक्ष में मतदान करेगा।

साथ ही अब देरी हो गई है। वोटिंग के लिए बहुत कम समय बचा है। हो सकता है कि जिन सीटों पर नए चेहरे के नाम पर उत्साह बना था, वहां के कार्यकर्ता हताश हो जाएं और उसका सीधा फायदा कांग्रेस को हो।

बीजेपी के चाणक्य हिमाचल में आकर फेल
बीजेपी के चाणक्य का सलाहदाता न जाने कौन है। उन्हें मालूम ही नहीं है कि प्रदेश में कभी भी धूमल के नाम पर या सीएम कैंडिडेट के नाम पर वोट नहीं पड़े। धूमल सत्ता में आए तो कभी भी अपने नाम के दम पर नहीं आए। बल्कि प्रदेश की जनता ने विकल्पहीनता की स्थिति में जब सत्ताधारी दल को बाहर का रास्ता दिखाया है, ऑटोमैटिकली बीजेपी की सरकार बनी है और धूमल सीएम बने हैं। वरना धूमल के नाम पर वोट पड़ते होते वह सरकार रिपीट करवा चुके होते। पिछली बार जब उन्होंने इंडक्शन देने का वादा किया था, तब भी उन्हें प्रदेश की जनता ने खारिज कर दिया था।

खैर, चुनाव दिलचस्प हो गए हैं। कांग्रेस में पहले मनोबल कम था कि पता नहीं हम वापसी करेंगे या नहीं, मगर बीजेपी के ताज़ा कदम ने उसमें आत्मविश्वास भर दिया है। उसने यह यकीन हो गया है कि अब बीजेपी बैकफुट पर आकर सीएम कैंडिडेट घोषित कर रही है तो थोड़ा और ज़ोर लगाया जाना चाहिए। साथ ही बीजेपी  साथ बदलाव की उम्मीद में जुड़े लोग फिर पास पलट सकते हैं। बाकी तो वक़्त ही बताएगा कि ऊंट किस करवट बैठता है।

(लेखक कुल्लू से हैं और केंद्रीय लोक निर्माण विभाग से सेवानिवृत होने के बाद पैतृक गांव में बागवानी कर रहे हैं)

ये लेखक के निजी विचार है।

लेख: सरकार बनाकर हिमाचल के लिए क्या नया कर देगी बीजेपी?

आई.एस. ठाकुर।। हिमाचल प्रदेश में विधानसभा चुनाव प्रचार के लिए कांग्रेस की तरफ से जहां अकेले मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह ने ही मोर्चा संभाला हुआ है, बीजेपी अपनी पूरी ताकत झोंकती हुई नजर आ रही है। प्रेम कुमार धूमल के अलावा केंद्रीय मंत्री जेपी नड्डा तो हिमाचल में डटे ही हुए हैं, बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह भी यहां आकर रैली पर रैली किए जा रहे हैं। योगी आदित्यनाथ से लेकर नितिन गडकरी समेत कई नेता हिमाचल आ-जा रहे हैं। जहां वीरभद्र सिंह जनता के बीच जाकर अपनी सरकार की उपलब्धियां गिना रहे हैं और अपने ऊपर चल रहे मामलों के लिए बीजेपी नेताओं को जिम्मेदार बता रहे हैं, वहीं बीजेपी के नेता केंद्र सरकार की उपलब्धियों को गिनाते हुए हिमाचल सरकार और खासकर यहां के मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह को करप्ट बताने में लगे हुए हैं।

वही घिसे-पिटे डॉयलॉग वाले भाषण
अमित शाह अपने भाषणों में कांग्रेस के कार्यकाल में हुए घोटालों को गिना रहे हैं और वादा कर रहे हैं कि बीजेपी की सरकार आएगी तो जिस तरह के नरेंद्र मोदी सरकार पर घोटाले का एक भी दाग नहीं लगा, वैसे ही हिमाचल में बीजेपी की सरकार ईमानदारी से काम करेगी। कई तरह की बातें उनके भाषणों में हैं और कई तरह के वादे हैं। मगर अमित शाह और बीजेपी नेताओं के भाषणों को नजर डालें तो ये कोई नए भाषण नहीं हैं। पिछले कुछ सालों में पूरे देश में जहां कहीं भी विधानसभा चुनाव हुए हैं, अमित शाह के भाषण का विषय यही रहा है, उसकी सामग्री यही रही है और वादे भी यही रहे हैं। झारखंड, हरियाणा, उत्तराखंड, यूपी… सब जगह यही रणनीति बीजेपी अध्यक्ष और अन्य नेताओं ने अपनाई। बस हर जगह राज्य बदल गया।

अपनी राज्य सरकारों की उपलब्धि ही गिना देते
चंबा में अमित शाह ने कहा कि जैसे महाराष्ट्र, यूपी, उत्तराखंड, झारखंड आदि राज्यों मे ंबीजेपी की सरकार आई है, वैसे ही हिमाचल में बीजेपी की सरकार बनेगी। मगर जनाब, जिन राज्यों में आपकी सरकार बनी है, वहां पर क्या न या हो गया? आपने कौन सी क्रांति ला दी? सरकारी दफ्तरों में करप्शन की स्थिति वही है, सामाजिक मुद्दे जस के तस हैं और रोजगार, शिक्षा स्वास्थ्य के मामले में कोई अभूतपूर्व काम नहीं हुआ। आप अपने भाषणों में उदाहरण ही दे देते कि फ्लां राज्य में पहले ऐसी हालत थी, हमारी सरकार आने के बाद यह हुआ है। मगर आप ऐसा न करके हवा-हवाई जुमलेबाजी वाला भाषण दे रहे हैं। आप ऐसा इसलिए कर रहे हैं क्योंकि आपके पास उपलब्धियां ही नहीं हैं गिनाने को।

विज़नहीन है आपका विज़न डॉक्युमेंट
इन तमाम राज्यों में सरकारी शिक्षण संस्थानों की हालत, अस्पतालों की हालत, जनसुविधाओं की हालत, सड़कों की हालत… वैसी ही है जैसी पहले की सरकारों में थी। इन प्रदेशों में सिर्फ सत्ता परिवर्तन हुआ है। पहले अन्य पार्टियों की सरकार थी, अब आपकी पार्टी की है। मगर व्यवस्था जस की तस बनी हुई है। आप वादे तो कर रहे हैं कि हिमाचल में हम सुशासन देंगे। मगर आपके विज़न डॉक्युमेंट में कुछ विज़न ही नहीं है। विज़न डॉक्युमेंट के नाम पर आपने सिर्फ जनभावनाएं भुनाने की कोशिश की है। एक होशियार हेल्पलाइन बनाने की बाद कह दी एक गुड़िया हेल्पलाइन बनाने की बात कह दी। अजी हेल्पलाइन बनने से क्या होगा? काम तो जमीन में पुलिस और महकमों को ही करना होगा? कॉल सेंटर खोल देने से समस्याएं हल नहीं होतीं। आप बताते कि आप पुलिस और प्रशासन में क्या रिफॉर्म लाना चाहते हैं जिससे माफिया पर नकेल कसेगी और महिलाएं सुरक्षित होंगी। मगर नहीं, विजन ही नहीं है।

प्लान ऑफ ऐक्शन क्या रहेगा आपका?
तुष्टीकरण यानी लोगों को खुश करने वाली आदत गई नहीं। चार धाम भी अब सरकार करवाएगी? बेहतर होता कि बुजुर्गों के लिए अच्छी स्वास्थ्य सुविधाओं को निशुल्क देने की बात की जाती। आप बताते कि डॉक्टरों के खाली पड़े पद भरे जाएंगे और कहीं कमी नहीं रहेगी। आपके विज़न डॉक्युमेंट में शिक्षा के स्तर को ऊपर उठाने के लिए कोई प्लानिंग नहीं है। नौकरियों में पारदर्शिता लाने के लिए प्लान ऑफ ऐक्शन का जिक्र नहीं। हिमाचल में टूरिज़म का विकास कैसे किया जाएगा, वह आपने बताया नहीं। होम स्टे तो पहले से ही चल रहा है, इसे कैसे और कहां बढ़ावा देंगे आपने बताया नहीं।

करप्शन बातों से ठीक नहीं होगा

आपने यह नहीं बताया कि जो जिले उपेक्षित हैं, वहां के लिए आपकी क्या योजना है। आपने बताया नहीं कि रोजगार के सृजन के लिए आप क्या करेंगे। आपने यह भी नहीं कहा कि हिमाचल के सिर पर बढ़ रहे कर्ज के बोझ को कैसे कम करोगे और कैसे राजस्व बढ़ाओगे। मौजूदा व्यवस्था ठेकेदारों और अधिकारियों को करप्शन के मौके देती है। आपने बताया नहीं कि उसपर कैसे लगाम लगाएंगे। बस आपने हल्के में चार मांगें उठाईं, हवा-हवाई बातें कीं और हो गया विजन डॉक्युमेंट जारी।

विज़न का मतलब है दूरदृष्टि। सत्ता में आते ही घोषणनाएं और योजनाएं चला देना विज़न नहीं है। बल्कि दूर की सोचना विज़न कहलाता है कि लॉन्ग टर्म में किससे क्या फायदा होगा। मगर अफसोस, आपने तो भाषण देने हैं। योगी को बुलाना, गडकरी को बुलाना है, हिमाचलियों के इमोशंस से खेलना है। कभी फौजी भाइयों को अपने पक्ष में करने के लिए डायलॉग मारने हैं तो कभी यह कहना है कि मोदी जी का हिमाचल से नाता रहा है।

हिमाचल प्रदेश डॉयलॉग सुनकर वोट नहीं देता

हिमाचल को आप समझ नहीं पाए
बीजेपी के नेताओं, आजकल टीवी हर घर में है। आप जो हिमाचल में आकर भाषण दे रहे हैं, आपके वे सारे भाषण पुराने हैं और कभी बिहार से सुन लिए गए हैं तो कभी यूपी से। हिमाचल में भी वही घिसी पिटी बातें सुनाने से काम नहीं चलेगा। यहां के लोग अगर सत्ता परिवर्तन चाहते हैं तो वे दरअसल व्यवस्था परिवर्तन चाहते हैं। और इसमें बात कांग्रेस की ही नहीं, बीजेपी की भी है। हिमाचल की जनता को आज तक न तो कांग्रेस का रूल करने का तरीका पसंद आया है और न ही बीजेपी का। इसीलिए इनमें से किसी की सरकार रिपीट नहीं हुई। आपको अगर लगता है कि मोदी जी के इमोशनल भाषण सुनकर जनता बीजेपी के उम्मीदवारों को वोट दे देगी तो आप मुगालते में हैं। यह हिमाचल है जनाब, लगता है मोदी जी लंबे समय तक यहां रहकर भी इसे नहीं समझ पाए।

लेखक मूलत: हिमाचल प्रदेश के हैं और पिछले कुछ वर्षों से आयरलैंड में रह रहे हैं। उनसे kalamkasipahi @ gmail.com पर संपर्क किया जा सकता है।

(ये लेखक के निजी विचार हैं)

फर्जी हैं मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह के 92 पर्सेंट ट्विटर फॉलोअर?

इन हिमाचल डेस्क।। पिछले दिनों कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी पर आरोप लगे कि ट्विटर पर उनके ट्वीट्स के फर्जी रीट्वीट्स होते हैं। वैसे यह फर्जी वाला सिलसिला हिमाचल में भी चल रहा है। 2014 में इन हिमाचल ने बताया था कि किस तरह से मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह के ट्विटर अकाउंट के ज्यादा फॉलोअर रूस और अरब देशों से थे। 7 जुलाई, 2014 को इन हिमाचल ने बताया था कि 11.7K यूजर्स में से कुछ ही यूजर्स असली थे। 10 से ज्यादा यूजर्स फर्जी थे। इनमें कुछ के हैंडल रूस के लोगों के थे तो कुछ अरब के देशों के। भला रूस या अरब के लोग इतनी बड़ी संख्या में हिमाचल के सीएम को क्यों फॉलो करेंगे?

तीन साल बीत गए हैं और अब मुख्यमंत्री के ट्विटर फॉलोअर्स की संख्या 66.6K यानी 66 हज़ार 600 हो गई है। मगर यह इजाफा फर्जी फॉलोअर्स के दम पर ही हुआ है। फर्जी ट्विटर फॉलोअर का पता लगाने वाले टूल ‘ट्विटर ऑडिट’ पर मुख्यमंत्री के हैंडल को डालें तो यह दिखाता है कि सिर्फ 8 पर्सेंट यूजर्स ही असली हैं और बाकी संदिग्ध। नीचे देखें या यहां क्लिक करें:

ट्विटर ऑडिट का एल्गॉरिदम दरअसल 5000 फॉलोअर्स के सैंपल को स्टडी करता है, उनकी ऐक्टिविटी वगैरह को देखता है और फिर इस तरह के नतीजे देता है। इसी आधार पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का ऑडिट स्कोर 37 फ़ीसदी है यानी उनके इतने पर्सेंट फॉलोअर ही असली हैं और बाकी संदिग्ध।

कहां से आए ये फॉलोअर
तीन साल पहले जब हमने वीरभद्र सिंह के ट्विटर फॉलोअर्स का मुआयना किया था, उसमें रूस और अरब के लोग मिले थे। इन लोगों ने एक भी ट्वीट नहीं किया था और बस लोगों को फॉलो किया हुआ था। साफ था कि ये फर्जी प्रोफाइलें थीं।

मुख्यमंत्री के फॉलोअर्स पर जाकर स्क्रॉल करें तो आखिर में रूसी फॉलोअर दिखने शुरू हो जाते हैं।

और इस बार जब हमने बढ़े हुए फॉलोअर्स की वजह जानने के लिए उनके फॉलोअर्स देखे तो पता चला कि असंख्य फर्जी प्रोफाइलों ने उन्हें फॉलो किया हुआ है। इन प्रोफाइलों के नाम अजीब हैं, प्रोफाइल पिक्चर नहीं लगी है, एक भी ट्वीट नहीं किया गया और सिर्फ बड़ी हस्तियों को फॉलो किया गया है। आप खुद उनके फॉलोअर्स वाले टैब पर क्लिक करके स्क्रॉल करके देख सकते हैं या फिर यहां क्लिक करें. ट्विटर ऑडिट जैसे टूल गलती कर सकते हैं मगर आप खुद अपनी आंखों से देख सकते हैं कि फॉलोअर असली हैं नकली।

इन सभी ने कोई भी ट्वीट नहीं किया है, सिर्फ वीरभद्र समेत कुछ अन्य राजनेताओं को फॉलो किया है।

एक्सपर्ट बताते हैं कि दरअसल ये फेक प्रोफाइल्स हैं और इन्होंने जिन लोगों को फॉलो किया हुआ है, उन लोगों ने दरअसल फॉलोअर्स खरीदे हैं। यानी बहुत सी एजेंसियां ऐसी हैं जो ऐसी बॉट्स और फर्जी प्रोफाइल्स बनाती हैं और फिर आपको फॉलोअर्स बेचती हैं। इसीलिए वीरभद्र सिंह के इन फर्जी फॉलोअरों की फॉलो लिस्ट चेक करें तो इन्होंने कई नेताओं और पॉलिटिकल पार्टियों को फॉलो किया है। यानी इन सभी लोगों और पार्टियों ने फॉलोअर खरीदे हैं।

ऐसे हैं ये संदिग्ध ट्विटर हैंडल

पिछली बार तो हमने ट्वीट करके मुख्यमंत्री से पूछा था कि रूस के फॉलोअर्स पर उनका क्या जवाब है मगर उत्तर नहीं आया था। कहने को कहा जा सकता है कि मुझे क्या पता कहां से फॉलोअर आए और फर्जी फॉलोअर खरीदने की बातों को झूठा भी बताया जा सकता है। मगर फेसबुक लाइक्स खरीदना और ट्विटर फॉलोअर खरीदना कोई छिपी हुई बात नहीं है और खासकर हर पार्टी के नेता इस काम करते रहे हैं। हाल ही हिमाचल सरकार के एक मंत्री के पेज के लाइक रातो-रात 5 हजार से 5 लाख हो गए थे। पेड प्रमोशन करके जेनुइन लाइक्स भी इतनी जल्दी नहीं आ सकते।

इसमें मुद्दा कोई और नहीं, बस नैतिकता का है। बाकी चाहे कोई लाइक्स खरीदे या पेड प्रमोशन करे यह उसका मामला है। मगर फर्जी लाइक्स खरीदने का मतलब क्या है? इसका एक ही मतलब है कि आप माहौल बनाना चाहते हैं कि मेरे इतने फॉलोअर हैं। आपका इरादा असली लोगों तक पहुंच बनाने का, उनसे जुड़ने का नहीं है। अगर किसी को इसमें ही सुख मिलता हो तो यही सही।

जब अर्की में वीरभद्र ने कहा था- अब कोई घोषणा नहीं करूंगा

सोलन।। चुनाव का मौसम है तो तरह-तरह की बातें सामने आ रही हैं। मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह शिमला रूरल सीट अपने बेटे के लिए छोड़ने के बाद पहले ठियोग गए और अब अर्की से चुनाव लड़ रहे हैं। मगर उनके विरोधी पक्ष के बहुत से लोग 3 साल पहले की उस घटना को जनता को फिर से याद दिला रहे हैं, जब मुख्यमंत्री ने नाराज होकर कहा था कि मैं बहुत सी घोषणाएं करने वाला था अर्की के लिए मगर अब नहीं करूंगा।

 

दरअसल मामला है सितंबर 2014 का। यहां पर जिला स्तरीय सायर मेला होता है। उसेके उद्घाटन के लिए मुख्यमंत्री पहुंचे थे। भाषणों का दौर लंबा चला तो लोगों में बेचैनी हो गई और उन्हें शोर-शराबा और हूटिंग शुरू कर दी। इससे नाराज मुख्यमंत्री ने भाषण बीच मे ही छोड़ दिया। उस दौरान मुख्यमंत्री ने कहा था, “अर्की के विकास के लिए मैंने बहुत-सी घोषणाएं करनी थीं लेकिन अब मैं कोई घोषणा नहीं करूंगा।(स्रोत)”

 

ये शब्द कहने के बाद उन्होंने अपने भाषण को विराम दे दिया था और चुप बैठ गए थे। इसके बाद मंच में और जनता में खामोशी छा गई थी। स्थानीय लोगों और प्रशासन ने लोगों ने उन्हें मनाने की कोशिश की थी, मगर वह नहीं माने। वैसे उनका यह व्यवहार उस वक्त भी सवालों के घेर में नहीं आया था क्योंकि अर्की के विकास के लिए वह कुछ अपनी जेब से तो देने नहीं वाले थे। इसलिए अगर वह सिर्फ अपनी नाराजगी के लिए किसी जगह के लिए विकास योजनाओं की घोषणा करके उन्हें रोकते हैं तो यह और गलत है।

बहरहाल, अब लोग फिर उन खबरों को शेयर कर रहे हैं और इसे चुनावी मुद्दा बनाने की कोशिश कर रहे हैं:

अब यह देखना दिलचस्प होगा कि मुख्यमंत्री लोगों की नाराजगी दूर करने में कामयाब हो पाते हैं या बीजेपी इस मुद्दे को लेकर जनता को वीरभद्र के खिलाफ करने में सफल हो पाती है।

डॉक्टर यशवंत सिंह परमार के पैतृक गांव की सड़क अब भी कच्ची

शिमला।। हिमाचल प्रदेश निर्माता डॉक्टर यशवंत परमार का सियासी इस्तेमाल तब तक किया गया, जब तक राजनेताओं ने उनके नाम पर खुद को स्थापित नहीं कर लिया। मगर किसी ने उनके इलाके के विकास की तरफ ध्यान नहीं दिया। सिरमौर के कई इलाके आज प्रदेश में सबसे पिछड़े और उपेक्षित हैं।

 

अब चुनाव के बहाने ही सही, ऐसी-ऐसी बातें सामने आ रही हैं जो दिखाती हैं कि हमारे राजनेता, हमारी सरकारें डॉक्टर परमार के प्रति कितनी उदासीन हैं। डॉक्टर परमार के गांव तक जाने वाले सड़क आज भी कच्ची है। इस मामले को उठाया है अमर उजाला ने और बताया है कि खस्ताहाल सड़क पर जगह-जगह गड्ढे पढ़े हुए हैं।

डॉक्टर यशवंत सिंह परमार

डॉक्टर परमार की जन्मभूमि चन्हालग की हालत सिरमौर की अन्य कई सड़कों की तरह खस्ताहाल है। बनेठी, बागथन, राजगढ़, चंदोल सड़क 50 साल बाद भी खस्ताहाल है। इसका कुछ हिस्सा पक्का नहीं हो पाया है और जो पक्का हो चुका था, उसकी टारिंग भी अब निकलने लगी है।

होशियार मामले की सीबीआई जांच क्यों नहीं चाहती थी सरकार?

मंडी।। वन रक्षक होशियार सिंह की संदिग्ध हालात में मौत पर सीबीआई के एफआईआर दर्ज करने के बाद एक बार फिर यह मामला सुर्खियों में आ रहा है। जिस दौरान वनरक्षक होशियार सिंह का शव संदिग्ध हालात में पाया गया था, पुलिस बार-बार जांच टीम या जांच अधिकारी बदल रही थी। मामले को हत्या से आत्महत्या में तब्दील करने को लेकर भी जनता अंसतुष्ट थी और सीबीआई जांच की मांग कर रही थी। मगर सरकार ने ऐसा नहीं किया और स्टेट सीआईडी पर ही भरोसा जताया। बाद में हाई कोर्ट ने संज्ञान लिया और राज्य पुलिस की जांच से असंतुष्ट होने के बाद सीबीआई को मामला सौंप दिया। अब इस बात को लेकर सवाल उठ रहे हैं कि सरकार क्यों सीबीआई जांच नहीं चाहती थी।

 

दरअसल कोर्ट में गृह सचिव की ओर से दिए गए 170 पन्नों के ऐफिडेविट से पता चला है कि कैबिनेट नहीं चाहती थी केस सीबीआई के हवाले किया जाए। इसे लेकर जागरण की रिपोर्ट कहती है- ‘होशियार हत्या मामले में सरकार की मुश्किलें बढ़ गई हैं। शपथपत्र में खुलासा हुआ है कि कैबिनेट नहीं चाहती थी कि मामले की सीबीआई जांच हो। प्रदेश सरकार को सर्वोच्च जांच एजेंसी के बजाय स्टेट सीआईडी पर ज्यादा भरोसा रहा, लेकिन सरकार की नीयत और जांच एजेंसी भी सवालों के घेरे में आ गई है।’

 

पुलिस की जांच पर पहले से उठे थे सवाल
डीजीपी ने कोर्ट में सौंपे 168 पन्नों के शपथपत्र में कहा था कि होशियार मामले की जांच पूरी हो चुकी है और जल्द ही ट्रायल कोर्ट में अंतिम जांच रिपोर्ट पेश की जाएगी। उन्होंने ही सीआइडी की एसआइटी गठित की थी, जबकि सरकार ने इससे पहले पुलिस की एसआइटी गठित की थी।

 

23 जून को मंडी के तत्कालीन एसपी प्रेम ठाकुर ने कोर्ट में शपथपत्र दायर किया था। इसमें कहा है कि होशियार पांच जून से लापता था। पुलिस ने सर्च पार्टी गठित की। इसमें कुथेड़ पंचायत के प्रधान, उपप्रधान जीतराम शामिल थे। सात जून को सुबह 10 बजकर 36 मिनट पर रेंज अधिकारी तेज राम शर्मा, वनरक्षक अंकित कुमार ने करसोग थाने में रिपोर्ट की। पुलिस ने कोई कार्रवाई नहीं की।

 

वन विभाग ने ‘ह्यू एंड क्राई’ नोटिस जारी किया। नौ जून को गडरिये ने वन अधिकारी को सूचना दी कि गरजब के जंगल में एक व्यक्ति देवदार के पेड़ से उलटा लटका है। इसके आधार पर होशियार सिंह के चाचा परस राम भी पुलिस के साथ मौके पर गए। पुलिस ने मौके पर कपड़े और बैग बरामद किया, लेकिन वहां बैग की तलाशी नहीं की।

 

घटनास्थल पर हालातों को देखकर पुलिस ने हत्या का मामला दर्ज किया। फॉरेंसिक टीम भी मंडी से मौके पर बुलाई। अगले दिन बैग की तलाशी की। इसमें हैमर इन्सेक्टीसाइड (जहर) और सुसाइड डायरी बरामद हुई। इसमें घनश्याम दास, हेतराम, अनिल कुमार , लोभ सिंह, तेज सिंह के नाम लिखे थे। पुलिस ने एक दिन बाद ही धारा बदल दी। दफा 302 का मामला 306 यानी आत्महत्या के लिए विवश करने में तबदील कर दिया।

 

इससे पुलिस की कार्यप्रणाली पर सवाल उठे। पहले दिन ही बैग की तलाशी ली होती तो फिर इसकी नौबत न आती। अब यही लापरवाही सीबीआई जांच में भारी पड़ सकती है।

 

इस बीच सीबीआई ने जांच शुरू कर दी है। जल्द ही जांच टीम घटनास्थल का दौरा करेगी। गिरफ्तार आरोपियों, पुलिस, सीआइडी के अधिकारियों से भी पूछताछ होगी। पुलिस ने आत्महत्या को लेकर घनश्याम, हेतराम, अनिल कुमार, लोभ सिंह, तेज सिंह, गिरधारी लाल को गिरफ्तार किया था।

होशियार सिंह मामले में सीबीआई ने दर्ज की एफआईआर

शिमला।। वनरक्षक होशियार सिंह केस में आखिरकार सीबीआई ने एफआईआर दर्ज कर ली है। शिमला स्थित भ्रष्टाचार रोधी ब्रांच में अज्ञात लोगों के खिलाफ तीन एफआईआर दर्ज की हैं। खबर है कि एक एफआईआर होशियार की हत्या, दूसरी अवैध कटान और तीसरी लकड़ी चोरी के संबंध में है।

 

बता दें कि इसी साल नौ जून को मंडी जिले के करसोग में वनरक्षक होशियार का शव संदिग्ध हालात में पेड़ पर उल्टा लटका मिला था। इससे पहले वह लापता था। पुलिस ने पहले हत्या का माम दर्ज किया था फिर तुरंत इसे आत्महत्या में बदल दिया। जनता में नाराजगी हुई और विरोध प्रदर्शन हुए।

 

मामले का हाई कोर्ट ने संज्ञान लिया था जिसके बाद पुलिस की जांच से असंतुष्ट होने के बाद 13 सितंबर को हाई कोर्ट ने सीबीआई को मामला सौंपा था। अब देर से ही सही, सीबीआई ने इस मामले की जांच के लिए एक टीम बनाई है, जिसमें 15 अधिकारी और कर्मचारी बताए जा रहे हैं।