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Friday, September 12, 2025
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जानें, कब होगा हिमाचल के नए सीएम के नाम का ऐलान

इन हिमाचल डेस्क।। कब मिलेगा हिमाचल को सीएम? जानें, भाजपा के संविधान और बाकी राज्यों के अनुभव के आधार पर कब तक इस सवाल का जवाब मिलेगा।

दरअसल भाजपा सविंधान के अनुसार सीएम की घोषणा होने में अभी भी दो स्टेप बचे हुए हैं। चुनाव जीतने के बाद इस तरह से चुनती है बी जे पी मुख्यमंत्री चेहरा:

स्टेप 1: चुने हुए विधायकों से मिलने और उनकी राय जानने के लिए आलाकमान की तरफ से दो पर्यवेक्षक नियुक्त किए जाते हैं, जो राज्य में आते हैं।

स्टेप 2: राज्य कोर कमेटी की मीटिंग होती है जिसमें कोर कमेटी के सदस्य, सांसद और प्रदेश प्रभारी रहते हैं।

स्टेप 3: कोर कमेटी की मीटिंग के बाद दिल्ली में केंद्रीय पार्लियामेंट्री बोर्ड की बैठक होती है, जिसमें प्रधानमंत्री भी मौजूद रहते हैं। इस बैठक के बाद प्रेस कांफ्रेंस करके सीएम का नाम घोषित किया जाता है।

हालाँकि सीएम किसे बनाना है, आमतौर पर यह सब पहले से ही तय रहता है परन्तु सविंधान के तौर पर भाजपा फार्मलिटी के लिए ही सही, इन तीन चरणों को जरूर पूरा करती है।

हिमाचल में भी अभी एक चरण हुआ है। पर्यवेक्षक विधायकों से मिल चुके हैं और कल कोर कमेटी की संभावित मीटिंग है।

तो तीसरे स्टेप के लिए 2 दिन का समय भी लग सकता है। उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, हरियणा में यही प्रक्रिया हाल में ही दोहराई गयी थी।

कौल और गुलाब सिंह को महंगी पड़ी अपनी ऐसी राजनीति

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यह लेख मई 2016 में प्रकाशित हुआ था। इससे पता चलता है कि कौल सिंह और गुलाब सिंह की हार के कारण क्या हो सकते हैं। इसलिए दोबारा पोस्ट कर रहे हैं।

भूप सिंह ठाकुर।। ठाकुर कौल सिंह और ठाकुर गुलाब सिंह, ये दोनों हिमाचल प्रदेश की राजनीति के बड़े नाम हैं। एक कांग्रेस के बड़े नेता हैं तो दूसरे बीजेपी के। यह दिलचस्प है कि दोनों के विधानसभा क्षेत्र अगल-बगल हैं और दोनों ने राजनीति की शुरुआत एकसाथ की है। दोनों वकालत से राजनीति में आए। दोनों ने कई पार्टियों का दामन बदलते हुए कांग्रेस जॉइन की थी। फिर गुलाब सिंह ने आखिरकार बीजेपी का दामन थाम लिया। आज ये दोनों नेता बेशक अलग-अलग पार्टियों में हैं, मगर दोनों की जुगलबंदी यानी आपसी तार-तम्य बहुत जबरदस्त है। भले ही लोग उन्हें एक-दूसरे का कट्टर समझें, मगर दोनों के बीच गजब की मूक सहमती है। एक दौर था, जब दोनो एक-दूसरे की जड़ें काटने पर उतारू थे, मगर आज दोनों एक-दूसरे को सहारा दे रहे हैं।

कौल सिंह ठाकुर

सबसे पहले बात करते हैं कौल सिंह की। कौल सिंह द्रंग से विधायक हैं और 8 बार विधायक चुने जा चुकेहैं। वह सिर्फ एक बार चुनाव हारे हैं, जब 1990 में दीनानाथ यहां से चुने गए थे। इसके बाद 1993 के चुनावों में उन्होंने फिर से वापसी की थी। उनका विधानसभा क्षेत्र बड़ी विविधताओं से भरा है। पुनरसीमांकन के पहले भी स्थितियां पेचीदा थीं और अब भी। ऊपर की तरफ जाएं तो पूरा ट्राइबल इलाका इनकी तरफ है, तो नीचे मंडी से लेकर जोगिंदर नगर तक फैलाव है। ऊपर के जंगल संरक्षित हैं और वहां पर कोई ज्यादा कंस्ट्रक्शन नहीं करवाया जा सकता। इसीलिए आप जब झटिंगरी से ऊपर बरोट की तरफ चलना शुरू करेंगे तो वहां का अंदाजा लगा सकते हैं। न कोई विकास हुआ है न कुछ। वहां के भोले-भाले लोग ज्यादा कुछ चाहते भी नहीं, मगर वे बुनियादी सुविधाओं से वंचित हैं।

नीचे द्रंग के सभी अहम ऑफिस पद्धर में हैं। पद्धर का हाल में विकास हुआ है, मगर उस स्तर पर नहीं, जितना होना चाहिए। प्रदेश का इतना कद्दावर नेता, जो मुख्यमंत्री बनने का सपना संजो रहा हो, प्रदेश कांग्रेस का प्रदेशाध्यक्ष की जिम्मेदारी निभा चुका हो, कई बार मंत्री रह चुका हो, उसके इलाके का इतना पिछड़ा होना हैरान करता है। हर बार चिकनी-चुपड़ी बातों के अलावा लोगों को कुछ नहीं मिलता और बावजूद इसके लोग वोट देते हैं। शायद यही उनकी रणनीति हो कि लोगों को मोहताज रखो, ताकि वे हर चीज़ के लिए आपके पास आएं, आप उन्हें कृतार्थ (Oblige) करें और फिर वे बदले में आपको वोट दें। न तो कोई अच्छा संस्थान द्रंग में बन पाया है न ही कुछ और ऐसा, जिसपर गर्व किया जा सके।

द्रंग में बिना प्लैनिंग के नाले में बनाया गया OBC हॉस्टल। संस्थान आसपास कोई नहीं और कई सालों से यूं ही सड़ रहा है।
द्रंग में बिना प्लैनिंग के नाले में बनाया गया OBC हॉस्टल। संस्थान आसपास कोई नहीं और कई सालों से यूं ही सड़ रहा है।

अब सवाल उठता है कि जब इतने खराब हालात हैं तो जनता किसी और नेता को क्यों नहीं चुन लेती? हिमाचल प्रदेश में दो ही पार्टियां प्रमुख हैं- कांग्रेस और बीजेपी। तो इस सीट पर कांग्रेस के कौल सिंह ठाकुर को कई सालों टक्कर दे रहे हैं- जवाहर ठाकुर। जवाहर ठाकुर बहुत डाउन टु अर्थ आदमी माने जाते हैं और चुनाव-दर-चुनाव उनका वोटर बेस बढ़ता जा रहा है। कई बार गिनती में पीछे चलने के बावजूद आखिर में कौल सिंह जीतते रहे। जवाहर शायद जीत जाते, अगर उन्हें अपनी पार्टी का साथ मिलता। जोगिंदर नगर के गुलाब सिंह के साथ शायद कोई गुप्त समझौता है कौल सिंह का। ऐसा ही बीजेपी के पहले के उम्मीदवारों रमेश चंद और दीना नाथ के साथ होता रहा।

सुरेंदर पाल ठाकुर।

अगर बीजेपी की सरकार आने पर सीनियर मंत्री गुलाब सिंह ठाकुर चाहें तो वह पड़ोसी कॉन्सिचुअंसी के जवाहर ठाकुर को आग ेबढ़ने में मदद कर सकते थे। वह चाहते तो घोषणाएं कर सकते थे, जवाहर के कहने पर कुछ काम करवा सकते थे और जमीनी स्तर पर काम कर सकते थे। यही होता भी है। इससे जनता में विश्वास बनता है कि यह नेता अभी ही इतने काम करवा रहा है तो चुने जाने पर कितने ज्यादा काम करवाएगा। अगर गुलाब सिंह ऐसा करते तो सीधा नुकसान कौल सिंह ठाकुर हो जाता। इसलिए आज तक उन्होंने जवाहर को हमेशा नजरअंदाज किया। इस तरह का फेवर मिलने पर अहसान तो चुकाना ही है। इसलिए कौल सिंह ठाकुर भी यही करते हैं। अभी कांग्रेस की सरकार है, मगर जोगिंदर नगर में कोई काम नहीं करवा रहे। वह चाहते तो यहां से कांग्रेस के हारे हुए प्रत्याशियों का समर्थन करके उनके काम करवाके जीतने में मदद कर सकते थे। मगर ऐसा नहीं करते।

गुलाब सिंह ठाकुर।

भले ही जोगिंदर नगर से हारे हुए कांग्रेस प्रत्याशी सुरेंदर पाल आज वीरभद्र सिंह के करीबी हैं, मगर कौल सिंह से शुरू में उनके रिश्ते खराब नहीं थे। मगर कौल सिंह दरअसल असुरक्षा से भरे हुए हैं। वह कभी नहीं चाहते कि कोई और नेता मंडी से उनके बराबर उठे। उन्होंने कभी भी जोगिंदर नगर से कांग्रेस के उम्मीदवारों की की मदद नहीं। उल्टा उन्होंने कांग्रेस कैंडिडेट को हराने की ही कोशिशें कीं। सुरेंदर पाल से पहले जोगिंदनर नगर में वह गुलाब सिंह ठाकुर को टक्कर देते रहे ठाकुर रतन लाल के साथ भी ऐसा करते रहे। फिर जिस वक्त गुलाब सिंह ठाकुर कांग्रेस में थे, उन्हें हरवाने के लिए भी पूरे जतन किया करते थे। ये तो आज जाकर दोनों नेताओं ने आपसी हित में सीज़ फायर किया है।

दरअसल असुरक्षा की भावना मंडी के हर नेता में रही है। इसीलिए यहां से कई बड़े नेता हुए और उनकी असुरक्षा की भावना और बड़ा पद पाने के लालच ने उन्हें कभी उठने नहीं दिया। पहले कर्म सिंह ठाकुर इस तरह की राजनीति के शिकार हुए थे। बाद में जब सुखराम बड़े नेता बनकर उभरे और शायद मुख्यमंत्री भी बनते, मगर कौल सिंह ठाकुर ने पाला बदलकर वीरभद्र सिंह का दामन थाम लिया। बाद में वीरभद्र सिंह के खिलाफ बगवात की और खुद को सीएम कैंडिडेट बनाने का दावा पेश कर दिया। मगर वह भूल गए कि उनके पास कोई भी एक विधायक ऐसा नहीं, जो उनके साथ चल सके। कोई विधायक तो तब साथ होता, जब किसी की मदद की होती। मगर असुरक्षा की भावना से जनाब ने यह सोचकर किसी को उठने ही नहीं दिया कि कल को कहीं मेरे लिए मुश्किल खड़ी न कर दे।

व्यक्तिगत महत्वाकांक्षाओं में ये नेता भूल गए कि जनता की जरूरतें क्या हैं, उनके लिए भी कुछ करना है। यही हाल रहा तो मुख्यमंत्री बनने का सपना किसी भी जन्म में पूरा होने से रहा। नीयत साफ रखकर अगर चलते तो शायद कामयाबी मिलती।

 

ठाकुर गुलाब सिंह को अगर करिश्माई नेता कहा जाए तो गलत नहीं होगा। जोगिंदर नगर में उनके प्रशंसकों की तादाद बड़ी संख्या में है। कई बार जोगिंदर नगर सीट से चुने गए गुलाब सिंह कई बार प्रदेश कैबिनेट में मंत्री रह चुके हैं। इससे पहले की बीजेपी सरकार में वह पीडब्ल्यूडी मंत्री थे और अपने इलाके में सड़क क्रांति का पूरा श्रेय उन्हें दिया जाता है। शायद ही कोई पंचायत ऐसी है, जहां तक सड़क न पहुंची हो। गांव-गांव तक लिंक रोड पहुंचे हुए हैं। इस मामले में तो उन्हें पूरे नंबर मिलने चाहिए, मगर बाकी मामलों में उन्होंने कुछ भी आउटस्टैंडिंग नहीं किया है।

गुलाब सिंह ठाकुर (बीच में)
गुलाब सिंह ठाकुर (बीच में)

पहले तो गुलाब सिंह दल-बदल की राजनीति के लिए पहचाने जाते रहे। पहली बार 1977 में वह कांग्रेस के रतन लाल ठाकुर को हराकर जनता पार्टी के टिकट पर जीतकर विधानसभा पहुंचे थे। 1982 में उन्होंने निर्दलीय चुनाव लड़ा और एक बार फिर कांग्रेस के उम्मीदवार को हराया। अब उन्होंने कांग्रेस जॉइन कर ली और 1985 में उन्हें निर्दलीय चुनाव लड़ रहे रतन लाल ठाकुर से हार का सामना करना पड़ा। इसके बाद लगातार तीन चुनाव (1990, 1993, 1998) उन्होंने कांग्रेस के टिकट पर जीते। मगर अब वह हुआ, जिसकी किसी ने उम्मीद नहीं की थी। 1998 में बीजेपी को भी 31 सीटें मिलीं और कांग्रेस को भी 31 सीटें। 5 सीटें पंडित सुखराम की हिमाचल विकास कांग्रेस को मिली और 1 सीट पर निर्दलीय जीता। सरकार बनाने के लिए किसी को भी 35 विधायकों का समर्थन जरूरी था।

निर्दलीय जीते धवाला को लेकर बीजेपी और कांग्रेस खींचतान चल रही थी, साथ ही सुखराम को साधने की भी कोशिश चल रही थी। सुखराम का झुकाव बीजेपी की तरफ ज्यादा था, क्योंकि वह किसी भी शर्त पर वीरभद्र को सीएम बनाने के लिए समर्थन नहीं कर सकते थे। उन्हें अपने विधायकों के टूटने का भी डर था। इस बीच कमाल की पॉलिसी यह हुई कि कांग्रेस के विधायक गुलाब सिंह ठाकुर को विधानसभा अध्यक्ष बनाने का ऑफर मिला। उन्होंने यह ऑफर स्वीकार कर लिया। यह जानते हुए भी कि अगर वह स्पीकर चुने गए तो अपनी पार्टी के पक्ष में चुनाव नहीं कर पाएंगे। इससे कांग्रेस के पास अपने 30 वोट रह गए। निर्दलीय धवाला को पहले ही बीजेपी साध चुकी थी और अगर सुखराम के चारों विधायक भी अगर कांग्रेस के पक्ष में वोट कर देते, तब भी बहुमत साबित नहीं हो पाता। इस तरह से बीजेपी ने सुखराम के समर्थन से आराम से सरकार बनाई। तकनीकी रूप से देखा जाए तो गुलाब सिंह ठाकुर की वजह से ही उस वक्त धूमल मुख्यमंत्री बन सके थे।

यह राजनीतिक रिश्ता असल रिश्तेदारी में भी तब्दील हुआ और ठाकुर गुलाब सिंह की पुत्री का विवाह प्रेम कुमार धूमल के बेटे अनुराग ठाकुर से हुआ। इसके बाद गुलाब सिंह बीजेपी में शामिल हुए और 2003 का चुनाव बीजेपी के टिकट से लड़ा, मगर उनके भतीजे सुरेंदर पाल ने उन्हें हरा दिया। इस बार कांग्रेस की सरकार बनी। इसके बाद 2007 में हुए चुनावों में उन्होंने वापसी की। बड़े ही अच्छे तरीके से उन्होंने पुराने कार्यकर्ताओं को जोड़ा, यहां तक कि पुराने प्रतिद्वंद्वी रतन लाल ठाकुर को भी अपने पक्ष में कर लिया। मेहनत रंग लाई और सीएम धूमल के बाद सीनियर मोस्ट मिनिस्टर बने और PWD विभाग संभाला। धूमल ने भी नड्डा जैसे सीनियर मंत्रियों को दरकिनार करते हुए अपने समधी को तरजीह दी। 2012 के चुनावों में गुलाब सिंह ठाकुर ने आखिरी बार का नारा देते हुए इमोशनल तरीके से प्रचार किया और जीत हासिल की। मगर चूंकि अब सरकार उनकी नहीं है, इसलिए शांत बैठ गए हैं।

यह तो बात हुई उनके राजनीतिक इतिहास की। अब बात करते हैं कि क्यों वह एक लोकप्रिय और सक्षम नेता होने के बावजूद कई मोर्चों पर नाकामयाब रहे। उनका व्यक्तित्व अच्छा है, समझदार हैं और शानदार वक्ता हैं। मगर उनकी अपनी कमजोरियां हैं। उनपर तानाशाही रवैये के आरोप लगते रहे हैं। अधिकारियों से दुर्व्यवहार करने के किस्से चर्चित रहे। कार्यकर्ताओं से ठीक से बात न करने की भी बातें आईं। बताया जाता है कि इसीलिए 2003 में उन्हें हार का सामना करना पड़ा था। शराब की लत के चलते भी वह बदनाम रहे हैं। ऐसा ही एक वाकया है 27 अप्रैल 2009 का। बाकायदा मंडी में उनके शराब पीकर हंगामा करने की खबरें छपीं। वक्त-वक्त पर और बातों की भी चर्चा होती रही है। यह सब बेशक निजी बातें हैं, मगर एक राजनेता होने की वजह से इस पर भी चर्चा करना जरूरी है।

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नेता के रूप में जब उनसे उपलब्धियां गिनाने को कहा जाए, तो वह रटी-रटाई सी बातें बताते हैं। पहली उपलब्धि उनकी होती है- राजस्व प्रशिषण संस्थान। मगर यह संस्थान साल में कुछ ही महीने खुला रहता है और पटवारियों की ट्रेनिंग कुछ के ही बैच में होती है। मगर इस संस्थान को बनाने में बहुत बड़ी जगह बर्बाद की गई। बर्बाद इसलिए, क्योंकि जिस जगह यह संस्थान बना है और इस संस्थान की जो उपयोगिता है, उस हिसाब से जगह को बर्बाद किया गया है। इस संस्थान के खुलने से स्थानीय जनता को कोई फायदा नहीं हुआ। न तो ऐसा संस्तान है जहां बच्चे पढ़ सकें न ही ऐसा संस्थान है कि आसपास दुकानें खुलें या हॉस्टल या किराए के मकान से लोगों को भी रोजगार मिले। उल्टा जोगिंदर नगर में अब कोई ऐसी जगह नहीं बची, जहां पर कोई और संस्तान खोला जा सके।

जोगिंदर नगर कभी बहुत पिछड़ा इलाका नहीं था। यहां आजादी से पहले से रेलवे ट्रैक है, जिसे अंग्रेजों ने शानन वापस हाउस बनाने के लिए तैयार किया था। यहां 2 पावर हाउस हैं और बहुस पहले से बिजली है। अंग्रेजों के वक्त से स्कूल और अस्पताल हैं। इसके अलावा एक डिग्री कॉलेज और आईटीआई के अलावा और कोई भी सरकारी संस्थान नहीं है। यहां एचआरटीसी का डिपो नहीं खुल पाया, जबकि आसपास सभी जगह डिपो और सब-डिपो हैं। आज भी बैजनाथ डिपो की खटारा बसें सड़कों पर दौड़ती हैं। पीडब्ल्यूडी मंत्री रहने के बाद उन्होंने जो सड़कें बनवाईं, वही उनकी एकमात्र उपलब्धि है। हालांकि ये सड़कें भी पहले बन जानी चाहिए थी। औऱ कुछ जगहों पर तुष्टीकऱण के लिए ऐसी सड़कें बनाई हैं, जो प्राणघातक सिद्ध हो सकती हैं।

इतना बड़ा कद होने के बावजूद कोई बड़ा संस्थान या प्रॉजेक्ट नहीं लगवा पाए गुलाब सिंह। वह इतने उदासीन हैं कि चुल्ला प्रॉजेक्ट (ऊहल तृतीय) का काम जो कई सालों से चल रहा है, उसे पूरा करवाने के लिए ऐक्टिव नहीं हो पाए। वह सेंट्रल स्कूल तक नहीं खुलवा सके, जो कि बगल के विधानसभा क्षेत्र में चला गया। दरअसल वह अपने लोगों को ठेके दिलवाने में ज्यादा व्यस्त रहे और कोई नया विजन पेश करने में कामयाब नहीं रहे। मंच से बहुत लच्छेदार भाषण देते हैं, मगर खाली वक्त मिलने पर यह नहीं सोचते कि क्या नया किया जा सकता है इलाके के लिए। अब जैसे वह विधायक हैं तो शीतनिद्रा में चले गए हैं। सरकार कांग्रेस की है तो क्या विधायक का कोई काम ही नहीं रह जाता?

यही समस्या कौल सिंह ठाकुर के साथ भी है। दोनों बड़े नेता विज़नहीन हैं। आज जोगिंदर नगर फिर भी द्रंग इलाके से विकसित है। इसके लिए भी ज्यादा श्रेय गुलाब सिंह को नहीं, बल्कि अंग्रेजों को जाता है जो यहां इतना काम करवा गए। उस विरासत को आगे बढ़ाने में गुलाब सिंह नाकामयाब रहे हैं। आज वह शानन प्रॉजेक्ट को पंजाब से लेने की बात करतें हैं, मगर खुद जब उनके समधी मुख्यमंत्री होते हैं और पंजाब में सहयोगी पार्टी अकाली दल की सरकार होती है, तब वह जरा भी कोशिश नहीं करते।

यही समस्या है हमारे नेताओं में। इस आर्टिकल को मैंने इसलिए नहीं लिखा कि मेरी इन नेताओं से कोई व्यक्तिगत दुश्मनी है या रंजिश है। इनके विधानसभा क्षेत्रों में मेरा घर भी नहीं। मगर मैं यह लेख लिखने को इसलिए मजबूर हुआ, क्योंकि ये बड़े नेता जनता की वजह से बड़े नेता बने हैं। जनता इन्हें प्यार करती है, इनपर भरोसा करती है तो इन्हें उसका दोगुना लौटाना चाहिए। ऐसा नहीं कि जनता को इमोशनली ब्लैकमेल करके  चुनाव जीतते रहें और भूल जाएं कि चुनाव जीतकर क्या करना होता है।

(लेखक मंडी के रहने वाले हैं और आयकर विभाग से सेनानिवृति के बाद विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं के लिए लिख रहे हैं।)

Disclaimer: यह लेखक के अपने विचार हैं, इनसे ‘इन हिमाचल’ सहमति या असहमति नहीं जताता।

बाली की हार पर विवादित HRTC कर्मचारी नेता ने बांटे लड्डू

शिमला।। परिवहन मंत्री जीएस बाली के हारने पर एचआरटीसी कर्मचारी नेता शंकर सिंह ठाकुर और उनके सहयोगियों ने एक क्विंटल लड्डू बांटकर जश्न मनाया। प्रबंधन के खिलाफ नारेबाजी भी की गई। खास बात है कि कार्यालय के कर्मचारी इस आयोजन में शामिल नहीं हुए।

गौरतलब है कि शंकर सिंह ठाकुर और जीएस बाली के बीच छत्तीस का आंकड़ा रहा है। कार्यकाल के दौरान सख्त फैसले लेने के लिए पहचाने जाने बाली का शंकर सिंह कई बार विरोध करते रहे हैं। विवादित कर्मचारी नेता शंकर के खिलाफ कई बार अनुशासनात्मक कार्रवाई हो चुकी है और वह सस्पेंड भी हो चुके हैं। उनपर काम करने के बजाय सरकारी वेतन लेकर राजनीति में मशगूल रहने का आरोप हर सरकार में लगता रहा है।

पिछले साल जब कर्मचारी अपनी मांगों को लेकर प्रबंधन से बात कर रहे थे, शंकर सिंह पर ब्लैकमेलिंग का आरोप लगा था। उस दौरान मीडिया से बात करते हुए परिवहन मंत्री ने कहा था, “महिला से छेड़छाड़, पत्रकारों से बदसलूकी और अधिकारियों का अपमान करने का आरोपी पिछले 42 सालों से अनुशासित कार्य कर रहे निगम को खराब करने की साज़िश कर रहा है। अनुशासनहीनता के लिए सस्पेंड किया गया यह कर्मचारी नेता ब्लैकमेल करने की नाकाम कोशिश कर रहा है।”

इसके बाद पिछले साल जून में निगम कर्मचारी शंकर सिंह के नेतृत्व में हाई कोर्ट की रोक के बावजूद जब हड़ताल पर गए थे तो उनके खिलाफ कार्रवाई की गई थी। जो कर्मचारी हड़ताल से वापस नहीं आए थे, उन्हें संस्पेंड भी किया गया था।  बाद में अधिकतर कर्मचारियों को बहाल कर दिया गया था लेकिन शंकर सिंह का निलंबन वापस नहीं हुआ था। इसके बाद से वह बाली के खिलाफ आक्रामक रहे हैं।

मगर अब बाली नगरोटा से हारे हैं तो शंकर सिंह के नेतृत्व में शिमला में एचआरटीसी के दफ्तर के बाहर मिठाइयां बांटीं और पटाखे भी फोड़े गए।

गुड़िया केस: CBI ने नहीं करवाया रसूखदार संदिग्ध का डीएनए टेस्ट

शिमला।। कोटखाई रेप ऐंड मर्डर केस की जांच कर रही सीबीआई पिछले पांच महीनों से भी ज्यादा वक्त में हाई कोर्ट से मोहलत पर मोहलत मांग रही मगर अभी तक वह गुनहगारों तक पहुंचने में कामयाब होती नहीं दिखती। मगर इस बीच एक ऐसी जानकारी सामने आई है जो चौंकाने वाली है। खबर है कि सीबीआई ने एक रसूखदार संदिग्ध को सरकारी गवाह बनाया है और उसका डीएनए टेस्ट नहीं करवाया है। और अब यह खबर भी सामने आई है कि सीबीआई ने कातिलों का सुराग देने वाले को इनाम देने की घोषणा करके दिल्ली लौटने का फैसला किया है और ज्यादातर सदस्य लौट भी गए हैं।

दैनिक भास्कर की रिपोर्ट के मुताबिक अब तक गुड़िया के गुनहगारों को पकड़ने के लिए सीबीआई ने 1 हजार लोगों के ब्लड सैंपल लिए हैं, मगर रसूखदार संदिग्ध का डीएनए टेस्ट नहीं करवाया गया है। अखबार लिखता है, “दिलचस्प पहलू यह है कि इस केस में जो रसूखदार संदिग्ध है, उसका सीबीआई ने डीएनए करना तक उचित नहीं समझा है। बल्कि उशे ही गवाह बना दिया है।”

दैनिस भास्कर ने शनिवार 16 दिसंबर को पहले पन्ने पर विस्तृत रिपोर्ट प्रकाशित की है। यह तस्वीर भी वहीं से ली गई है।

आगे लिखा गया है, “ऐसे में सीबीआई की जांच सवालों के घेरे में है औऱ लोग भी सवाल उठा रहे हैं। लोगों का कहना है कि आखिर किस दबाव में सीबीआई ने इस संदिग्ध के ब्लड सैंपल डीएनए जांच के लिए नहीं लिए हैं। जिस तरह से अन्य संदिग्धों के सैंपल लिए गए, इस तरह इसके भी लिए जाएं।”

इस रिपोर्ट में सीबीआई पर कुछ अन्य बातों पर भी सवाल उठाया गया है। मसलन कोटखाई के बजाय सीबीआई की टीम का शिमला में बेस बनाना। गाड़ियों का खर्च ही 20 लाख हो जाना और एक सीबीआई अधिकारी का मोबाइल गुम होने पर उसका खर्च भी राज्य सरकार से मांगना।

बहरहाल, सभी को उम्मीद है कि जल्द ही इस मामले के गुनहगार सलाखों के पीछे हों। गौरतलब है कि हाई कोर्ट भी सीबीआई को इस मामले में कई बार फटकार लगा चुका है। मगर अब सीबीआई टीम के चुपके से लौटने की खबर परेशान करने वाली है।

Horror Encounter: गुम्मा नमक लेकर सरकाघाट आते हुए ब्यास पर दिखी ‘चुड़ैल’

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प्रस्तावना: ‘इन हिमाचल’ पिछले दो सालों से ‘हॉरर एनकाउंटर’ सीरीज़ के माध्यम से भूत-प्रेत के रोमांचक किस्सों को जीवंत रखने की कोशिश कर रहा है। ऐसे ही किस्से हमारे बड़े-बुजुर्ग सुनाया करते थे। हम आमंत्रित करते हैं अपने पाठकों को कि वे अपने अनुभव भेजें। हम आपकी भेजी कहानियों को जज नहीं करेंगे कि वे सच्ची हैं या झूठी। हमारा मकसद अंधविश्वास को बढ़ावा देना नहीं है। हम बस मनोरंजन की दृष्टि से उन्हें पढ़ना-पढ़ाना चाहेंगे और जहां तक संभव होगा, चर्चा भी करेंगे कि अगर ऐसी घटना हुई होगी तो उसके पीछे की वैज्ञानिक वजह क्या हो सकती है। मगर कहानी में मज़ा होना चाहिए। यह स्पष्ट कर दें कि ‘In Himachal’ न भूत-प्रेत आदि पर यकीन रखता है और न ही इन्हें बढ़ावा देता है। हॉरर एनकाउंटर के सीज़न-3 की पांचवीं कहानी कुलदीप परमार की तरफ से, जिन्होंने अपना अनुभव हमें भेजा है-

ये घटना मेरे साथ नहीं हुई। एक बार किसी बारात में गया था तो वहां पर अलाव के चारों तरफ बैठे लोगों के बीच भूतप्रेतों की चर्चा छिड़ गई। मैं तो 14-15 साल का था उस वक्त। वैसे तो बहुत से लोगों ने अपने किस्से सुनाए मगर एक बुजुर्ग ने जो कहानी सुनाई थी, वो मुझे आज भी याद है। उस बुजुर्ग का कहना था कि उसके दादा बताते थे कि उनका सामना एक बार चुड़ैल से हुआ था। मुझे जगहों का नाम याद नहीं है कि कहां पर क्या हुआ था। जैसे की सांडा पत्तन है या कांडा पत्तन। इसलिए कृपया ऐसी गलतियों के लिए माफ़ करें।

वैसे को चुड़ैल पूरे भारत की कथा-कहानियों और अफवाहों का हिस्सा रही है। कहा जाता है कि चुड़ैल दरअसल एक भटकती हुई आत्मा होती है, जो कोई इच्छा पूरी न होने की वजह से इस संसार के बंधन से मुक्त नहीं हो पाती। कहते यह भी हैं कि चुड़ैल कभी किसी को नुकसान नहीं पहुंचाती, मगर उसे लोगों को परेशान करने में मजा आता है। साथ ही उसका दिल किसी पर आ जाए तो वह उसके साथ ‘रिश्ता’ बनाना चाहती है। कहते हैं कि चुड़ैल को यदि वश में कर लिया जाए तो वह आदमी की कोई भी इच्छा पूरी कर दे और अगर कोई आदमी उसके वश में आ जाए तो वह आदमी समझ लो कि बर्बाद हो गया।

हिमाचल में सर्दियों में फंक्शन वगैरह में अलाव जलाया जाता है। मंडी में इसे ‘घैना’ कहते हैं।

खैर, मैं तो चुड़ैल-वुड़ैल नहीं मानता और न ही मानना चाहिए। क्योंकि चुड़ैलों या डायनों के नाम पर देश में बहुत सा अंधविश्वास फैला हुआ है और इस अंधविश्वास के चलते ही न जाने देश में कितनी महिलाओं को डायन बताकर भयंकर यातनाएं देकर मार डाला जाता है। इसीलिए मैं चाहता हूं कि आप लोग भी इस कहानी और ‘इन हिमाचल’ पर आने वाली सारी कहानियों को साहित्य की एक विधा के तौर पर लें, मनोरंजन लें, रोमांच लें, मगर इन्हें सच समझने की भूल न करें।

तो बुजुर्ग को उनके दादा ने कहानी सुनाई थी, जो इस तरह से थी। आगे ‘मैं’ का मतलब है कहानी सुनाने वाला बुजुर्ग के दादा जी।

ये अंग्रेजों के जमाने की बात है। सरकाघाट में उन दिनों इक्का-दुक्का मकान हुआ करते थे। आज की तरह घनी आबादी वाला कस्बा नहीं था। कुछ घर आसपास के गांवों में हुआ करते और वह भी दूर-दूर। उन दिनों सभी लोगों का जन-जीवन सादा था। सरकाघाट में एक दो मालदार लोग थे, जमींदार। जो लोगों को पैसे उधार देते थे जमीनें और चीजें गिरवी रखकर। उन दिनों चांदी के सिक्कों का व्यापार हुआ करता था। एक ही बड़ा लाला हुआ करता था, जिसके यहां से लोग चीजें खरीदा करते।

उन दिनों नमक लाने के लिए गुम्मा जाना पड़ता था। बहुत सारे लोग इकट्ठे होकर गुम्मा जाते, वहां मेहनत-मजदूरी करते और फिर पेमेंट के तौर पर नमक की चट्टानें मिला करती थी। (गुम्मा जोगिंदर नगर और मंडी के बीच एक जगह है जहां पर नमक की खानें है) यही गुम्मा नमक पशुओं के भी काम आता था और इंसानों के भी।

एक बार हमारे गांव के पांच-छह लोग गुम्मा गए। सरकाघाट से गुम्मा जाने के लिए उन दिनों पैदल जाना होता। शॉर्ट कट करते हुए ब्यास पार करते और फिर गुम्मा। रास्ता लंबा था। तो हमें पेमेंट के तौर पर नमक के पत्थर मिले, जिन्हें हमने बोरियों में डाला और कंधों पर लादकर आने लगे। हम दोपहर होने से ठीक पहले चल दे थे। गर्मियों के दिन थे और अंदाजा था कि रात भी चांदनी वाली होगी तो रात को चलने में भी कठिनाई नहीं होगी।

गुम्मा का रॉक सॉल्ट

हमने तेज कदमों से चलना शुरू किया। रास्ते में हमारा लक्ष्य था कि रात होने से पहले ही पत्तन (वह जगह जहां पर नदी का फैलाव ज्यादा हो जाता है और उसका बहाव कमजोर हो जाता है) तक पहुंच जाएंगे और वहां पर नाव चलाने वाले को बोलकर नदी पार करवा लेंगे फिर आगे तो अपना ही रास्ता है। चिंता की बात ये थी कि कहीं रात होने पर नाव चलाकर लोगों को नदी पार कराने वाला शख्स अपने घर  चला जाए।

हमारा अंदाजा गलत साबित हुआ क्योंकि हमने बोझा उठाया हुआ था नमक का। उसे उठाते हुए तेज रफ्तार से चलना बड़ा मुश्किल था। आलम ये था कि रात के 10-11 बज गए हमें ब्यास नदी तक पहुंचने में क्योंकि रास्ते में कई बार विश्राम करना पड़ा था। मगर इतना लंबा सफर हमने 12 घंटों में तय कर लिया था, ये भी बड़ी बात थी।

खैर, गर्मियों का मौसम था, तारों वाली रात थी। मस्त हवा चल रही थी नदी के किनारे। तो प्रोग्राम बना कि रात यहीं काटी जाए। सुबह जैसे ही बेड़ी वाला आएगा, उससे नदी पार करके चले जाएंगे। मगर हमारे बीच हमारा एक चाचा था जो बहुत डेयरडेविल था। वो कहने लगा कि मैंने अकेले ही तैरकर ब्यास नदी कई बार पार की है और तुम सब भी तो तैरना जानते हो। ऐसा करते हैं कि तैरकर ही चलते हैं।

एक दौर था जब हिमाचल में जानवरों की खालों को फुलाकर उनके सहारे नदियां पार की जाती थीं।

मैंने कहा कि बोरी में भारी नमक की पत्थर हैं, उन्हें साथ लेकर तैरना ठीक नहीं है और ऊपर से हमें इस जगह की गहराई और पानी के बहाव का बिल्कुल भी अंदाजा नहीं हैं।

चाचा ने कहा कि पानी का बहाव बिल्कुल भी नहीं हैं और गहराई की चिंता मत करो क्योंकि हम तैरकर पार कर रहे हैं, चलकर नहीं। रही बात नमक की चट्टानों की, बोरी को पानी में डुबोए रखना तो ये हल्की महसूस होंगी क्योंकि पानी में चीज़ें हल्की हो जाएंगी। और जल्दी से हम नदी पार कर लेंगे तो पत्थर का नमक है, जल्दी से पिघलेगा भी नहीं।

मैंने कहा कि यह गलत आइडिया है और ऐसा करना ठीक नहीं है। मगर अपनी टोली में मैं ही सबसे छोटा था। बाकी सारे लोग चाचा की उम्र के थे या उनसे थोड़ी बहुत कम उम्र के। वे इस अडवेंचर के लिए तैयार हो गए। मेरी अकेले की ना भी कोई फर्क नहीं डाल पाई।

तो हमने वही किया। कपड़े उतारे, उन्हें नमक वाली बोरियों के ऊपर बांधा ताकि नमक वाली बोरियां पानी में डूबें तब भी कपड़े की गठरी थोड़ी ऊपर रहे और नदी को पार करना शुरू कर दिया। नदी का पानी ठंडा। शुरू में तैरने में दिक्कत नहीं हुई मगर जह बीचोबीच पहुंच गए, तब पानी का तेज बहाव महसूस होने लगा। चूंकि गर्मियो के दिन थे और बरसात अभी दूर थी, इसलिए बाढ़ आने का भी खतरा नहीं था। बहाव कम जरूर था मगर फिर भी तेज था। अकेले तैरना होता तो आराम से तैर जाते, मगर एक हाथ से भारी बोरी पकड़ी हुई थी। उसे भी डूबने से बचाना था और तैरकर नदी भी पार करने थी।

हालत ऐसी हुई कि हम चारों-पांचों बीच धार में तेज बहाव से संघर्ष करते हुए फंस से गए। यानी पानी को काटने के लिए हम जितना जोर लगाते, पानी हमें वहीं पहुंचा देता। यानी कुल मिलाकर हम कहीं नहीं बढ़ रहे थे। इतने में हमारी टोली में से किसी की आवाज आई- ओ मेरेया परमात्मेआ, ए क्या पार बखा… (हे भगवान, उस तरफ ये क्या है) इतने में हम सब उस किनारे की तरफ देखने लगे, जहां हम जा रहे थे।

वहां पर एक महिला खड़ी थी जिसकी ऊंचाई सामान्य से कुछ ज्यादा ही थी। चांदनी रात में उसका सफेद चा चेहरा चमक रहा था और आंखों की जगह काले कोटर नजर आ रहे थे। और शायद निर्वस्त्र थी। ये देखते ही मेरे मुंह से चीख निकली और नमक की बोरी को छोड़कर मैं वापस उसी तरफ तेजी से तैरने लगा, जहां से हम आए थे।

तस्वीर प्रतीकात्मक है

मैं ही नहीं, बाकी लोग भी चिल्लाए और तेजी से वापस लौटने लगे। सभी वापस उसी किनारे पहुंच गए, जहां से चले थे। इस ओर आकर हमने देखा तो दूसरे किनारे पर कोई नहीं था। मगर हम इतने डरे हुए थे कि हमने शोर मचाना शुरू कर दिया। हालत ये थी कि हमने कपड़ों को नमक के बोरों के साथ बांधा हुआ था और डर के मारे वो बोरे बीच नदी में ही छूट गए थे। अब हम सभी नंग-धड़ंग ब्यास नदी के किनारे खड़े थे सिर्फ कच्छों में।

चाचा पजामे के साथ ही तैर रहे थे तो उनके पास पायजामा था। वो बहुत बहादुर बनते थे मगर उनकी भी हालत खराब थी। उन्होंने कहा कि यहां रहना ठीक नहीं है, चलो पास वाले घरों सी तरफ चलते हैं जो शायद नाव चलाने वालों के ही थे और मछली पकड़ने वालों के। वहां गए तो सही मगर नंगे किसी के घर जाते कैसे। चाचा को बोला कि आपके पास पजामा है, आप जाओ।

चाचा आगे गए और आवाज लगाने लगे मगर काफी देर तक किसी ने दरवाजा नहीं खोला। चाचा ने दरवाजा खटखटाया तो अंदर से ही लोगों ने पहले पूछताछ की कि कौन आया है और क्यों दरवाजा रात को खटखटाया जा रहा है। जब खिड़की खोलकर उन्होंने पूछताछ की और यकीन हो गया कि कोई जरूरमंद ही है तो उन्होंने दरवाजा खोला। फिर चाचा ने हमें बुलाया, वहां रहने वाले आदमी ने चादर और अपने कुछ कपड़े दिए तो हमने शरीर ढका।

प्रतीकात्मक तस्वीर

पूरी बात बताई तो उस घर के आदमी ने कहा कि ये अच्छा हुआ जो आप बच गए। बोलते हैं कि यहां चड़ेल (चुड़ैल) रहती है जो किसी-किसी को ही दिखती है। ये तो अच्छा किया आपने जो कपड़े नहीं पहने थे आपने। वह इसीलिए भागी। उस व्यक्ति का कहना था कि चुड़ैल आए तो उसे भगाने का तरीका यही है कि आप निर्वस्त्र हो जाएं, इससे वह भयभीत हो जाती है।

रात जैसे-तैसे उन लोगों के घर काटी, सुबह नाव से नदी पार की और अर्धनग्न हालत में खाली हाथ अपने गांव पहुंचे। वहां मजाक बना अलग और उम्र भर के लिए डर बैठ गया दिल में, सो अलग।

यह थी बुजुर्ग द्वारा सुनाई अपने दादा की आपबीती। बुजुर्ग ने ये कहानी सुनाई तो लोग चर्चा करने लगे थे। कुछ कहने लगे कि कोई पागल महिला रही होगी तो कुछ कहने लगे कि कहानी मनगढ़ंत है। तो कुछ यह भी कहने लगे कि ऐसा वाकई होता है और चुड़ैल के सामने कपड़े उतार दें तो वह आतंकित होकर भाग जाती है। इसका लॉजिक क्या था, ये तो वो लोग ही जानें। वहीं एक का कहना था कि चुड़ैल के बालों पर कंघा लगा होता है, अगर उसे निकाल लिया जाए तो वह बेबस हो जाती है। चुड़ैल की सारी शक्तियां कंघे में होती है और वह उसे वापस लेने के बदले कुछ भी डील करने को तैयार हो जाती है। आप उससे अथाह संपत्ति तक मांग सकते हैं।

खैर, इसके बाद और लोगों ने भी चुड़ैल और भूतों से जुड़े किस्से सुनाए, जिन्हें मैं इन हिमाचल को तभी भेजूंगा जब यह कहानी प्रकाशित हो जाएगी और पाठकों को पसंद आएगी।

सीजन 3 की चौथी कहानी- कौन थी बर्फीली रात में चौड़ा मैदान के पास मिली महिला?
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सीजन 3 की पहली कहानी- कौन था बरोट-जोगिंदर नगर के बीच की पहाड़ी पर फंसे दोस्तों को बचाने वाला बुजुर्ग?

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DISCLAIMER: इन हिमाचल का मकसद अंधविश्वास को बढ़ावा देना नहीं है। हम लोगों की आपबीती को प्रकाशित कर रहे हैं, ताकि अन्य लोग उसे कम से कम मनोरंजन के तौर पर ही ले सकें और उनके पीछे की वैज्ञानिक वजहों पर चर्चा कर सकें। आप इस कहानी पर कॉमेंट करके राय दे सकते हैं। अपनी कहानियां आप inhimachal.in@gmail.com पर भेज सकते हैं।

दो ‘राणों’ ने उड़ाई इन दिग्गज समधियों के समर्थकों की नींद

शिमला।। बीजेपी के दो दिग्गज नेता जो आपस में समधी भी हैं-  पूर्व मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल और पूर्व लोक निर्माण मंत्री ठाकुर गुलाब सिंह। बीजेपी के ये दोनों बड़े नेता आपस में रिश्तेदार हैं। प्रेम कुमार धूमल के बड़े बेटे अनुराग ठाकुर की पत्नी ठाकुर गुलाब सिंह की बेटी हैं। दोनों ही नेता प्रभावशाली हैं और दोनों के ही समर्थक जीत के दावे कर रहे हैं, मगर यह भी मान रहे हैं कि इस बार मुकाबला कड़ा जरूर है। दूसरी तरफ इन नेताओं का मुकाबला जिन प्रत्याशियों से है, वे भी अपनी जीत को लेकर इतने आश्वस्त हैं कि जश्न के लिए दावत आदि का इंतज़ाम करने में जुटे हुए हैं।

प्रेम कुमार धूमल बनाम राजिंदर राणा
दरअसल इस बार प्रेम कुमार धूमल हमीरपुर के बजाय सुजानपुर से चुनाव लड़ रहे हैं और उनका मुकाबला राजिंदर राणा से है। राजिंदर राणा की सुजानपुर में पकड़ मानी जाती है। भले ही बीजेपी इस सीट को आराम से जीतने का दावा कर रही है मगर जानकारों का कहना है कि राजिंदर राणा को हराना इतना मुश्किल नहीं है और वह भी प्रेम कुमार धूमल के लिए, क्योंकि वह पहली बार यहां से चुनाव लड़ रहे हैं।

प्रेम कुमार धूमल (बाएं) और राजिंदर राणा में टक्कर

गुलाब सिंह ठाकुर बनाम प्रकाश राणा
दूसरी तरफ उनके समधी ठाकुर गुलाब सिंह के लिए निर्दलीय प्रत्याशी प्रकाश राणा ने कड़ी चुनौती पेश की है। प्रकाश राणा वही निर्दलीय प्रत्याशी हैं, अखबारों में जिनकी करोड़ों की संपत्ति होने की खबरें छपी थीं और मीडिया का एक हिस्सा जिन्हें समाजसेवी बताता है। चुनाव से करीब 6 महीने पहले कई आयोजन करके, गरीब और जरूरतमंदों की ‘आर्थिक मदद’ करके राणा का माहौल ऐसा बना कि चुनाव आते-आते कांग्रेस के उम्मीदवार रेस से ही बाहर हो गए और मुकाबला बीजेपी के उम्मीदवार गुलाब सिंह ठाकुर और निर्दलीय उम्मीदवार राणा के बीच हो गया। चर्चा है कि राणा इस बार गुलाब सिंह ठाकुर पर भारी पड़ सकते हैं।

गुलाब सिंह ठाकुर (बाएं) और प्रकाश राणा में बताया जा रहा है सीधा मुकाबला

सुजानपुर को लेकर चर्चा तो यहां तक है और कांग्रेसी ऐसा दावा कर रहे हैं कि बीजेपी ने प्रेम कुमार धूमल को सीएम कैंडिडेट आखिर में इसलिए घोषित किया, क्योंकि उनकी स्थिति राणा के सामने खराब थी। कहा जा रहा है कि इसलिए हो सकता है कि अब वह सीएम कैंडिडेट बनने पर जीत जाएं, मगर मार्जन उतना न हो। वहीं जोगिंदर नगर में प्रकाश राणा ने ऐसा माहौल बनाया है कि बीजेपी के कुछ समर्थक जीतने का भी दावा कर रहे हैं तो ऐसे कि हम चाहे 100 वोटों से जीतेंगे मगर जीतेंगे जरूर। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि मुकाबला कितना कड़ा है, क्योंकि दिग्गज नेताओं के समर्थक 100-200 क्या, 1000, 2000 का भी अंदाजा लगाएं तो मतलब है कि हालत पतली है।

खास बात यह है कि दोनों ही राणे अपने जीत को लेकर आश्वस्त हैं और हजारों लोगों के लिए धाम का बंदोबस्त करने के लिए उन्होंने तैयारी कर दी है। बहरहाल, ये सब चुनावी चर्चाएं हैं। सोमवार को ही पता चलेगा कि इन अटकलों और राणों में कितना दम है।

क्लिक करें, सभी टीवी चैनलों के एग्जिट पोल एक ही जगह पर

इन हिमाचल डेस्क।। गुजरात में आखिरी दौर का मतदान खत्म होते ही एग्जिट पोल पर लगी रोक हट गई है और सभी न्यूज चैनलों ने अपने एग्जिट पोल जारी कर दिए हैं। इसमें गुजरात के संभावित नतीजे भी बताए गए हैं और हिमाचल प्रदेश के भी। दोनों राज्यों में विधानसभा के चुनाव हुए थे। चूंकि हम हिमाचल प्रदेश के पोर्टल हैं, इसलिए हम हिमाचल की बात करेंगे।

नीचे चार्ट देखें और उसके बाद नीचे हमने सभी चैनलों का औसत निकाला है, जिससे पता चल सकेगा कि क्या अनुमान निकलता है। अन्य सभी चैनलों ने बीजेपी को स्पष्ट बहुमत दिया। औसत पर नजर डालें तो बीजेपी लगभग 48 सीटें जीतेगी और कांग्रेस 19 तक सिमट सकती है। अन्य भी ज्यादा नहीं आएंगे।

चैनल बीजेपी कांग्रेस अन्य
एबीपी न्यूज 38 29 1
टाइम्स नाउ 51 16 1
आज तक (इंडिया टुडे-एक्सिस माइ इंडिया) 47-55 13-20 0-2
ज़ी न्यूज़ 51 17 0
न्यूज़ 24- चाणक्य 55 (+_7) 13 (+_7) 0 (+_3)
न्यूज नेशन 43-47 19-23 1-3
इंडिया न्यूज 44-50 18-24 0-2
औसत 48 19 1
इन हिमाचल 30-40 28-36 0-2

 

ध्यान देने वाली बात यह है कि इन हिमाचल का अनुमान सभी चैनलों से अलग है। इन हिमाचल के सर्वे में बीजेपी को बढ़त तो दिखती है, मगर अन्य चैनलों की तरह वह लैंडस्लाइडिंग विक्टरी हासिल करती नहीं दिखती। इन हिमाचल का डीटेल्ड सर्वे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

हिमाचल प्रदेश विधानसभा चुनाव 2017 एग्जिट पोल

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इन हिमाचल डेस्क।। गुजरात विधानसभा के लिए आखिरी दौर का मतदान संपन्न होते ही एग्जिट पोल पर लगी रोक भी हट गई है। इससे पहले कि सोमवार को नतीजे आएं, एग्जिट पोल अनुमान लगाएंगे कि कहां पर कौन सी पार्टी कितनी सीटें जीत सकती है और किसकी सरकार बनने जा रही है। ‘In Himachal’ ने हिमाचल प्रदेश में मतदान होते ही एग्जिट पोल तैयार कर लिया था, मगर इसे अब प्रकाशित किया जा रहा है।

क्या होता है एग्ज़िट पोल?
दरअसल मतदान से पहले जो सर्वे होते हैं, उनमें लोगों से बात करके यह पता किया जाता है कि वे किसके पक्ष में हैं। मगर यह संभव है कि जिन लोगों से आपने यह ऑपिनियन पोल किया हो, उन्होंने वोट डाला ही नहीं हो। एग्जिट पोल के नतीजे सटीक होने की संभावना इसलिए होती है क्योंकि पोलिंग बूथ से ‘एग्जिट’ करने वाले यानी वोट डालकर निकलने वाले लोगों से पूछा जाता है कि उन्होंने किसे वोट दिया। यानी एग्ज़िट पोल वोट दे चुके लोगों द्वारा कही गई बात पर आधारित होता है।

जानें, क्या कहते हैं बाकी चैनलों के एक्ज़िट पोल

कितना सटीक होता है एग्जिट पोल?
प्री-पोल सर्वे या ऑपिनियन पोल्स की तुलना में एग्ज़िट पोल ज्यादा सटीक होता है, मगर ध्यान देने की बात यह है कि लोग स्मार्ट हैं और जरूरी नहीं कि उन्होंने जो बताया हो, उन्होंने उसी को वोट दिया हो। मगर सैंपलिंग में बहुत सी बातों का ध्यान रखा जाता है, इसलिए ऑपिनियन पोल्स की तुलना में एग्जिट पोल के नतीजे असल नतीजों के करीब होते हैं।

हिमाचल में मतदान को लेकर कैसा माहौल था?
इससे पहले कि हम संभावित नतीजों पर आएं, बता दें कि हिमाचल प्रदेश में इस बार लोगों में सरकार के प्रति नाराज़गी देखने को नहीं मिली और न ही बीजेपी के पक्ष में ज्यादा उत्साह देखने को मिला। दरअसल इस बार चुनाव किसी लहर के कारण नहीं, बल्कि हमेशा की तरह लोकल लेवल के मुद्दों पर हुआ है। लोगों ने देखा कि उनके विधायक का रवैया कैसा था, उसने काम करवाए या नहीं। यही कारण है कि इस बार कुछ ऐसे दिग्गजों को झटका लगने वाला है, जिनके हारने की कोई उम्मीद भी नहीं कर सकता। और इन दिग्गजों की जगह पर नए चेहरे पहली बार विधानसभा पहुंचने वाले हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि लोगों ने इन दिग्गजों को हराने के लिए वोट दिया है। और इन दिग्गजों की लिस्ट में कांग्रेस और बीजेपी दोनों के नेताओं के नाम शामिल हैं।

कांग्रेस से मजबूत स्थिति में बीजेपी
In Himachal का एग्जिट पोल कहता है कि सत्ताधारी कांग्रेस को वापस सत्ता में लौटने में मुश्किल होने जा रही है। वैसे भी हिमाचल प्रदेश में पिछले काफी समय से कोई भी सरकार रिपीट नहीं हुई। इस बार कांग्रेस को 28 से 36 सीटें मिल सकती हैं और बीजेपी को 30 से 40 सीटें मिल सकती हैं। वहीं दो सीटों पर निर्दलीय/अन्य उम्मीदवार मजबूत स्थिति में हैं। अनुमानित सीटों के आधार पर भी देखें तो न्यूननतम से लेकर अधिकतम सीटों की तुलना में बीजेपी काफी आगे है कांग्रेस से। मगर दोनों ही पार्टियों की संभावित अधिकतम सीटें बहुमत के आंकड़े (35 सीटों) को पार करती दिखाई दे रही है और न्यनतम सीटें इस आंकड़े से कम रह रही हैं। इसका मतलब है कि बीजेपी भले ही मजबूत है, मगर कांग्रेस के सत्ता में आने की संभावनाएं खत्म नहीं हैं।

पार्टी सीटें
बीजेपी 30-40
कांग्रेस 28-36
अन्य 0-2

 

ऐसा क्यों है?
जैसा कि कयास लगाए जा रहे हैं कि कांग्रेस बुरी तरह से हारेगी, इन हिमाचल का एग्जिट पोल कहता है कि ऐसा शायद न हो। क्योंकि 10 से 12 सीटें ऐसी हैं, जिनमें मुकाबला कड़ा है। इन सीटों पर प्रत्याशी क्या, जनता भी अनुमान नहीं लगा पा रही कि कौन जीतेगा। चूंकि किसी तरह की लहर काम नहीं कर रही, इसलिए इन सीटों पर हार-जीत का फैसला बहुत कम अंतराल से होने वाला है। यही सीटें तय करेंगी कि इस बार हिमाचल प्रदेश में किसकी सरकार बनने जा रही है। अगर ये सीटें बीजेपी के पक्ष में गई तो बीजेपी आराम से सरकार बना लेगी और शायद 40 भी पार कर जाए। अगर इनमें से आधी सीटें भी कांग्रेस के पास चली गईं तो भी बीजेपी को घबराने की जरूरत नहीं है क्योंकि ऊपर दी गई सीटों का औसत निकालें तो बीजेपी 35, कांग्रेस 32 और अन्य 1 सीटों पर विजयी होंगे। इस हिसाब से भी बीजेपी स्पष्ट तौर पर बहुमत हासिल करती नजर आ रही है और सरकार बनाने की स्थिति में दिखती है। रही एक निर्दलीय की बात, वह कांग्रेस के पास जाए, तब भी कांग्रेस को फायदा नहीं होगा। ऐसे में बीजेपी बहुमत में आने के बावजूद जरूर निर्दलीय को अपने पास सेफ्टी के लिए रखना चाहेगी।

पार्टी सीटें
बीजेपी 35
कांग्रेस 32
अन्य 1

 

किस स्थिति में बनेगी कांग्रेस की सरकार?
इस बार कांग्रेस के कई बड़े दिग्गज अप्रत्याशित ढंग से हार सकते हैं जिनमें मंत्री भी शामिल हैं। मगर जैसा कि देखने को मिल रहा है, इस बार सरकार के प्रति नाराजगी नहीं थी। मुख्यमंत्री के बयानों का नुकसान उन्हें और उनके बेटे के साथ-साथ उनके करीबी नेताओं को वोटों के नुकसान के तौर पर जरूर हो सकता है, मगर पूरे प्रदेश में ऐंटी-कांग्रेस वेव नहीं बनी है। ऐसे में जिन 12 सीटों पर कड़ा मुकाबला चल रहा है, वहां पर ज्यादातर सीटें कांग्रेस को मिली तो वह गिरते-पड़ते ही सही, सरकार बनाने की स्थिति में आ सकती है। कांग्रेस की सीटें बढ़ने का मतलब है बीजेपी की सीटों में गिरावट। ऐसी स्थिति में कांग्रेस निर्दलीय की मदद भी ले सकती है।

पार्टी सीटें
बीजेपी 30
कांग्रेस 36
अन्य 2

बहरहाल, इन अनुमानों और कयासों पर चर्चा के लिए ज्यादा समय नहीं बचा है। सोमवार को नतीजे आ जाएंगे और पता चल जाएगा कि प्रदेश की जनता ने किसे अगले पांच साल तक अपना नेतृत्व करने के लिए चुना है।

Horror Encounter: कौन थी बर्फीली रात में चौड़ा मैदान के पास मिली महिला?

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प्रस्तावना: ‘इन हिमाचल’ पिछले दो सालों से ‘हॉरर एनकाउंटर’ सीरीज़ के माध्यम से भूत-प्रेत के रोमांचक किस्सों को जीवंत रखने की कोशिश कर रहा है। ऐसे ही किस्से हमारे बड़े-बुजुर्ग सुनाया करते थे। हम आमंत्रित करते हैं अपने पाठकों को कि वे अपने अनुभव भेजें। हम आपकी भेजी कहानियों को जज नहीं करेंगे कि वे सच्ची हैं या झूठी। हमारा मकसद अंधविश्वास को बढ़ावा देना नहीं है। हम बस मनोरंजन की दृष्टि से उन्हें पढ़ना-पढ़ाना चाहेंगे और जहां तक संभव होगा, चर्चा भी करेंगे कि अगर ऐसी घटना हुई होगी तो उसके पीछे की वैज्ञानिक वजह क्या हो सकती है। मगर कहानी में मज़ा होना चाहिए। हॉरर एनकाउंटर के सीज़न-3 की चौथी कहानी रविंदर शर्मा की तरफ से, जिन्होॆने अपना अनुभव हमें भेजा है-

ये उन दिनों की बात है जब हम एचपीयू में पढ़ते थे। 80 का दशक था। मैं ऐवलॉज हॉस्टल में रहा करता था और कुछ दोस्त हिमकिरीट में रहा करते थे। तो हम कभी रिवोली जाया करते तो कभी रिट्ज। उन दिनों रीगल सिनेमा में आग लग गई थी। तो हमारी प्राथमिकता रहती कि नई फिल्म आए तो रात का शो ही देखें। उसमें अलग आनंद होता है।
सर्दियों के दिन थे। बर्फबारी हुई नहीं थी मगर आसमान बादलों से घिरा था। हल्की बूंदाबांदी हो चुकी थी मगर फिर थम गई थी। ठीक से याद नहीं कि कौन सी फिल्म देखने का प्लान बना था, मगर हम तीन दोस्त शायद सवा 12 बजे फ्री हुए। वे दोनों हीमक्रीट रहा करते। बाहर निकले तो पता चला कि बर्फबारी हो रही है मस्त। तीन घंटों से जारी थी। आधा फुट जम भी गई थी।

कमाल की बात ये कि चांदनी रात थी। कभी मौका मिले तो चांदनी रात में होने वाली बर्फबारी का आनंद लेना। ऐसा लगता है कि ऊपर आसमान में उजला सा ढक्कन लगा है और कुछ नीचे गिर रहा है। खैर, मस्त सन्नाटा। इक्का-दुक्का लोग ही थे जो रिवोली से निकले। एक आध ही परिवार रहा होगा बाकी सब लड़के थे या मंडलियों में आए पुरुष।

बर्फ में चलने का आनंद आने लगा। कदम रखते तो चरक की आवाज के साथ पैर धंसता। धीरे-धीरे हम लक्कड़ बाजार की तरफ चढ़ने लगे। तो हम जैसे-तैसे चढ़े और रिज क्रॉस करने लगे, वहां कुछ लोग टहलते नजर आए। शायद पर्यटक थे जो करीब के ही होटलों से मस्ती करने चले आए होंगे। खैर, मैंने दोस्तों को कहा कि ऐवलॉज ही रुक जाना, सुबह जाना अब अपने हॉस्टल। मगर दोस्त कह रहे थे कि उन्हें नींद अपने ही बिस्तर पर आएगी।

प्रतीकात्मक तस्वीर

खैर, स्कैंडल पॉइंट के पास जैसे ही हम पहुंचे, हमारा ध्यान गया पीछे से आती आवाज़ की तरफ, जो शायद किसी की चूड़ियों या कंगन की थी। पीछे देखा तोकोई महिला चली आ रही थी। तेज कदमों से। बर्फ पर गिरती संभलती। हम कदम जमाकर चल रहे थे मगर वह कुछ हड़बड़ी में थी। करीब जैसे ही आई, बोली- यहां आसपास कोई होटल है। हमने कहा कि यहां तो बहुत होटल हैं, कुछ ही आगे सिसिल होटल है। वह बोलने लगी कि अच्छा, मुझे बताइए कहां है।

हमने कहा कि वहीं से होते हुए जा रहे हैं, आगे बता देंगे। तो हम चलने लगे मगर सभी के जहन में सवाल कौंध रहा था कि यह महिला जा कहां रही है, न इसके पास कोई पर्स है, न बैग। और होटल तलाश कर रही है। ऐसा भी नहीं है कि किसी होटल से बाहर निकली हो और वहां लौट रही हो। मगर अब पूछना भी ठीक नहीं लगता। अपने काम से काम रखना ठीक था। मगर तभी उसने फिर कहा-

“आप लोग सोच रहे होंगे कि मैं इतनी रात को कहां जा रही हूं, पागलों की तरह, वह भी होटल की तलाश में।” हममें से जाने किसने कहा कि नहीं-नहीं, ऐसी कोई बात नहीं है। जवाब आया, “बात तो है, दरअसल अब अपना कोई घर तो रहा नहीं। कोई ठिकाना है नहीं। मेरा अपना कोई रहा नहीं है। घर था, वह भी सरकारी दफ्तर बन गया है। अब कोई कुर्सी टेबल पर तो कोई सो नहीं सकता न।”

प्रतीकात्मक तस्वीर

उसकी बातों से हमें लग रहा था कि कोई सिरफिरी है। एक बार ख्याल आया कि कोई टूरिस्ट है जो शराब पीकर अंट-शंट बोल रही है और होटल से बाहर निकल आई है। मगर मैं उसकी बात पर हंस दिया। यह जताने के लिए आप जो मजाक कर रही हैं कि कुर्सी पर कोई सो नहीं सकता, वह सही बात है।

मगर वह महिला चलते-चलते रुक गई। बोली- “आपको मजाक लग रहा है? हां, लगेगा ही। आपको अहसास नहीं है कि घर से दूर हो जाने का मतलब क्या है। एक-एक चीज़ करीने से लगाई थी। न जाने कहां बेच दी गई। घर सिर्फ इमारत नहीं होती। न जाने कब से सोई भी नहीं। बस अब ठान ली है कि किसी होटल में जाकर ही आराम से सोऊंगी।”

मैं गंभीर हो गया। मैंने कहा, “मेरा इरादा मजाक बनाने का नहीं था। मगर चलिए, कुछ ही दूर है होटल। आपको दिक्कत नहीं होगी।” जब मैंने यह कहा तो हम कालीबाड़ी के ठीक नीचे थे। वह महिला बोली, “ओह, अपना बैग तो मैं भूल ही गई। पैसे कैसे चुकाऊंगी होटल के। मुझे वापस जाना होगा।”

शायद मेरे दोस्त ने कहा था, “आप आई कहां से हैं। पैसे लाने कहां जाएंगी आप?”

“मैं तो यहीं की हूं। मगर आप लोग शिमला के नहीं लगते। न तो पहनावे से और न बोलचाल से।”

मैंने कहा, “ठीक पहचाना आपने। मैं कुल्लू से हूं और ये दोनों बिलासपुर के हैं। मगर आप जब शिमला की ही हैं तो होटल में क्यों रुक रही हैं।”

“बताया न अब मेरा घर नहीं है।” इस आवाज में अजीब गुस्सा और खीझ थी। सुनकर हम सभी चलते-चलते रुक गए। अगले ही पल वो बोली, “सॉरी, बस मुझे होटल तक छोड़ दीजिए।”

फिर खामोशी और होटल सिसिल के पास पहुंचकर हमने इशारा किया कि ये रहा होटल। उसने कहा थैंक्स। हम आगे बढ़ गए और वह होटल की तरफ उतर गई। मगर हमने देखा कि वह होटल नहीं गई बल्कि और भी नीचे रास्ते से चली गई। खैर, हम होस्टल चले गए। मैं ऐवलॉज और दोनों दोस्त हिमक्रीट। ये बात आई-गई हो गई। ये बात शायद 1983 की थी या 84 की।

1994 की बात है। सर्दियों के दिन थे। मेरे पड़ोसी की बेटी की तबीयत खराब थी और डॉक्टरों ने उसे स्नोडन रेफर किया हुआ था। मैं भी पड़ोसी के साथ आया हु आथा। वहां पर ऐडमिट थी और सुधार हो नहीं रहा था। हम लोग मेरे फूफा की के यहां ठहरे हुए थे, जिन्होंने चौड़ा मैदान के पास ही क्वार्टर लिया हुआ था। रात 11 बजे के करीब डॉक्टरों ने कहा कि तबीयत ज्यादा खराब है, इसे चंडीगढ़ ले जाइए। यहां पर कोई इंप्रवमेंट नहीं हो रहा।

जब बेटी की तबीयत बहुत खराब होने लगी तो हमने ठान ली कि रात को ही चंडीगढ़ निकल लेंगे। फूफा जी ने कहा कि कि घर आ जाओ, डिनर करो और सामान यहीं से उठाकर चंडीगढ़ निकल जाना। गाड़ी का बंदोबस्त भी उन्होंने कर दिया था। हम चार लोग थे। मैं, मेरा पड़ोसी, उनकी बीवी और बच्ची। रात से सवा 11 बजे हम पैदल ही स्नोडन से चौड़ा मैदान चल दिए। हल्की बर्फ गिरी हुई थी दिन मगर लोगों के चलने से वह जम गई थी तो चलना बड़ा मुश्किल था।

मुझे यूनिवर्सिटी के दिनों से ही बर्फ पर चलने का अनुभव था। मैंने पड़ोसी को कहा कि वह अपनी पत्नी को संभाले और मैं बच्ची को गोद में उठाकर आहे संभलते हुए चलने लगा। लक्कड़ बाजार और फिर रिज और हम स्कैंडल पॉइटं के पास पहुंच गया था मैं। मेरे से करीब 100 मीटर पीछे पड़ोसी और उनकी पत्नी चल रहे थे। सड़क सुनसान थी। कुछ-कुछ दूरी पर लगी स्ट्रीट लाइट्स सहारा दे रही थीं। तभी मुझे किसी महिला की आवाज़ सुनाई दी- “क्या हुआ बच्ची को?”

बर्फबारी के बाद अनाडेल का नज़ारा

मैंने दाएं देखा तो एक महिला चल रही थी बगल में। मैंने कहा, “जरा तबीयत खराब है।” महिला बोली, “क्या हो गया?” मैंने कहा, “कुछ नहीं, बुखार है लगातार। सुस्त है और डॉक्टरों को वजह पता नहीं चल रही।” महिला बोली, “शी विल बी ऑलराइट. कल तक ये ठीक हो जाएगी, परेशान मत हो।” मैं चलते-चलते उस महिला की बातों को सुन रहा था। मैंने कहा, “ऐसी ही हो। थैंक्स।” मगर सोच रहा था कि यह महिला स्वाभाविक रूप से शुभकामनाएं दे रही होती तो ‘कल तक’ क्यों बोल रही है।

मैं सोच रहा था कि है कौन। इससे पहले वो बोली, “शायद तुमने मुझे पहचाना नहीं।” मैं चलते हुए चेहरे को गौर से देखने लगा। वह बोली, “देखो, चौंकना मत। तुमने बच्ची उठाई हुई है उसे चोट लग जाएगी अगर तुम गिर या फिसले। तुमने कुछ साल पहले मुझे होटल का रास्ता दिखाया था।” मैं सोच में पड़ गया कि कौन सा होटल, कौन सा रास्ता।

“देखा, भूल गए न। चलो, मैं नहीं भूली। तुम तीन दोस्त थे और तुमने मुझे होटल का रास्ता बताया था और मेरी मदद की थी। मुझे याद है। एनीवे, यू टेक केयर। आई हैव फाउंड अ न्यू होम। अब मैं इन सड़कों पर घूमने निकलती हूं आराम से, शेल्टर की तलाश में नहीं। बाय”

उसने यह कहा और कालीबाड़ी के आगे से दाहिनी तरफ मुड़ने वाले रास्ते की तरफ चली गई। मैं कुछ कदम और चला और पीछे से आ रहे पड़ोसी-पड़ोसन का इंतजार करने लगा। उन्होंने पूछा कि रुक क्यों गए, चलो। मैंने बताया कि एक महिला मिली और वो बोल रही थी बच्ची को क्या हुआ है। वे बोले कौन महिला। मैंने कहा कि अभी यहां से गई, कालीबाड़ी के पीछे से मेरे साथ चल रही थी। वो बोले- तुम तो अकेले चल रहे थे। बीच में अचानक स्लो चलने लगे थे। कहां कोई महिला थी।

मैंने कुछ नहीं कहा और उन्हें कहा कि अरे वो यहीं पर थी खड़ी हुई, मंदिर में रहती होगी कोई, तो चली गई। मैंने उन्हें अपना डर और भ्रम हावी नहीं होने दिया। तो फूफा जी के घर पहुंचे। डिनर किया और नीचे ओमनी में बैठकर चंडीगढ़ चले दिए। यकीन नहीं होगा कि चंडीगढ़ जाते-जाते बच्ची गाड़ी में ही ऐक्टिव हो गई। बोलने लग गई कि मुझे कहां ले जा रहे हैं। जाते ही हम एक दोस्त के यहां रुके, जहां से सुबह अस्पताल जाना था। मगर सुबह 10 बजे तक बच्ची एकदम चुस्त, मानो कुछ हुआ ही न हो।

मगर फिर भी हमने समस्या बताई और डॉक्टरों ने टेस्ट करवाए, मगर कुछ नहीं निकला और बच्ची को थोडी कमजोरी बताई और कुछ सप्लिमेंट्स और टॉनिक दिए और एक दिन में घर भेज दिया।

मैंने ये बात अपने दोस्तों और करीबियों को ही बताई है। कभी मजाक उड़ने के डर से किसी को नहीं बताई तो कभी मैं खुद को ही कन्वींस नहीं कर पाया। न जाने वह महिला कौन थी। उसका घर कहां था और क्यों वह बेघर होकर घूमती थी होटल की तलाश में मगर होटल जाती भी नहीं थी। इतने साल बाद की घटना किसी महिला को कैसे याद रही और वह मेरे पीछे आते पड़ोसियों को क्यों नहीं दिखी। साथ ही उसने बच्ची की बीमारी कैसे ठीक दी या उसके ठीक होने की बात कैसे कह दी। जो भी है, यह घटनाक्रम आखिरी दम तक मुझे सोचने पर मजबूर करता रहेगा।

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लड़की की शिकायत पर कार्रवाई करके पुलिस ने रुकवाई शादी

ऊना।। अंब में पुलिस द्वारा एक शादी को रुकवाने का मामला सामने आया है। खबर है कि लड़की ने शिकायत की थी कि लड़के का लंबे समय से उसके साथ अफेयर चल रहा था और शादी का वादा भी किया था, मगर अब वह उसे छोड़कर कहीं और शादी कर रहा है।

लड़की की शिकायत पर पुलिस ने हरकत में आते हुए शादी रुकवा दी। दोनों पक्षों की तरफ से तैयारियां पूरी थीं और कई रस्में भी निभा दी गई थीं। मगर इस कदम से शादी संपन्न नहीं हो पाई है।

अंब पुलिस स्टेशन के प्रभारी मोहन रावत के मुताबिक उन्सें घटना की सूचना मिली थी। दूसरे थाने के तहत शिकायत आई थी और उस थाने की पुलिस ने शादी रुकवाई है।

यह घटना पूरे इलाके में चर्चा का विषय बनी हुई है। कुछ लोगों का कहना है कि इससे धोखेबाज़ लोगों को सबक मिलेगा वहीं कुछ आशंका जता रहे हैं कि इस तरह से तो कोई भी किसी की शादी रुकवा सकता है।