शिमला।। एक तो हिमाचल प्रदेश पहले से ही 45000 करोड़ के कर्ज में है और ऊपर से फिजूलखर्ची पर लगाम लगती नजर नहीं आ रही। नई सरकार भले ही दावा कर रही है कि वह फालतू चीजों पर पैसे खर्च नहीं करेगी, मगर अब जो खबरें आ रही हैं वे हैरान करती हैं। मंत्री ही नहीं, मुख्यमंत्री के ओएसडी तक नई गाड़ियां मांग रहे हैं। उनका कहना है कि कोरोला में झटके लगते हैं, इसलिए इनोवा दी जाए।
एक मंत्री, चार ओएसडी और सीएम ऑफिस में बड़े पद पर नियुकित एक शख्स ने इस तरह की मांग की है। खबर है कि सचिवालय का जीएडी अब इन मांगों को पूरा करने में जुट गया है। बता दें कि नई सरकार के कई मंत्री पहले ही पसंदीदा बंगला लेने के लिए रस्साकशी कर रहे हैं। सचिवालय में कमरों को लेकर होड़ में मंत्री पहले ही फजीहत करवा चुके हैं।
सचिवालय का जीएडी अब अधिकारियों को दी गई इनोवा वापस लेने की तैयारी में है। अमर उजाला की खबर है कि ऐसा सीएम की टीम की मांग पूरा करने के लिए किया जा रहा है। वहीं अगर नई गाड़ियां खरीदनी पड़ी तो खर्च एक से डेढ़ करोड़ तक जा सकता है।
मगर आराम चाहने वाले इन लोगों से सवाल किया जाना चाहिए कि आप जनता के टैक्स से सैलरी पाएंगे और आपको नियुक्त ही इसलिए किया गया है ताकि जनता की भलाई के लिए सरकार और मुख्यमंत्री की मदद कर सकें। फिर आपकी प्राथमिकता उपलब्ध संसाधनों का सदुपयोग करके सेवा की होनी चाहिए या ऐशो आराम की? झटके लगते हैं तो सड़कें सुधारिए। बेहतर होगा कि आपसे कोरोला भी ले ली जाए और पब्लिक ट्रांसपोर्ट इस्तेमाल करने को कहा जाए या अपने वाहन इस्तेमाल करने को कहा जाए। प्रदेश में लाखों सरकारी कर्मचारी ऐसा ही करते हैं। आप तो फिर भी राजनीतिक नियुक्तियों पर हैं।
आशीष नड्डा।। कश्मीर में आतंकवाद के बढ़ने के कारण हिमाचल प्रदेश देश-विदेश के पर्यटकों के लिए पसंदीदा जगह बनकर उभरा है। फिर भी कई सालों से सैलानियों के बीच मनाली, डलहौजी, शिमला और धर्मशाला को छोड़कर औऱ कई जगह पर्यटन स्थल के रूप मे नहीं उभर पाई है।
हिमाचल प्रदेश के चप्पे-चप्पे में पर्यटन की संभावनाएं मौजूद हैं। इसी कड़ी में बाद करें तो हिमाचल प्रदेश में जल क्रीड़ा पर्यटन यानी वॉटर स्पोर्ट्स टूरिज़म की भरपूर संभावनाए हैं। हिमाचल में कई डैम हैं। पौंग डैम, भाखड़ा (गोविंदसागर) डैम और कोल डैम समेत कई झीलें है जो खुद में पर्यटन की अपार संभावनाओं को समेटे हुई है। देखा जाए तो अभी तक इनका सही से दोहन नहीं हुआ है।
गोविन्द सागर में बरसात के बाद जलभराव हो जाने के कारण बिलासपुर सिटी एक नैसर्गिक सुंदरता को प्राप्त हो जाती है। मत्स्य पालन के अलावा गोविन्द सागर के जल और सुंदरता का प्रयोग हम आज तक किसी विशेष कार्य के लिए नहीं कर पाये हैं।
साहसिक खेलों (अडवेंचर स्पोर्ट्स) के रूप में स्टीमर, मोटर बोट और जल सफारी आदि की सुविधाएं दी जाएं तो मनाली या धर्मशाला की तरफ आने-जाने वाले पर्यटकों के बीच एक ठहराव के रूप में गोविन्द सागर और कोल डैम भी पर्यटन केंद्र बन सकते हैं। अपनी थाइलैंड और ऑस्ट्रेलिया यात्रा दौरान मैंने वहां की झीलों में क्रूज शिप तैरते हुए देखे, जिनमें रात के समय भी डिनर और पार्टियों का आयोजन हो रहा था। क्या श्रीनगर की डल लेक जैसे शिकारे हिमाचल के जलाशयों में नहीं चल सकते?
बिलासपुर कीरतपुर फोर लेन हाईवे कम्प्लीट होने के कगार पर है इसके बनने से से मैदानी इलाकों से गोविन्द सागर जलाशय की दूरी और कम हो गई है । साथ ही साथ यह फोरलेन सतलुज के किनारे से होकर जाएगा। इसके आसपास के तटीय क्षेत्र और वन परिक्षेत्र को ट्रैकिंग, साहसिक खेलों तथा जल क्रीड़ा क्षेत्र के रूप में विकसित किया जा सकता है.
ऐसा होगा तो हिमाचल के अंदरूनी इलाकों में घूमने वाले पर्यटक बिलासपुर में उपलब्ध सुविधयों को देख कर यहाँ जरूर रुकने पर बाध्य होंगे। मैदानी इलाकों से वीकेंड पर आने वालों के लिए ऋषिकेश या हरिद्वार की तरह जिला बिलासपुर और ऊना में फैला यह जलाशय भी एक विकल्प बनेगा। इसी तर्ज पर कोल डैम बनी झील को भी विकसित किया जा सकता है।
रोज़गार की अपार संभावनाएं
कितने होटल मैनेजमेंट किए हुए हमारे प्रदेश के छात्र जॉब के लिए चंडीगढ़ दिल्ली का रुख किये हुए हैं। इन जलाशयों में जल प्रयटन परवान चढ़ेगा तो हमारे लोगों को यहीं घर बैठे रोजगार के अवसर मुहैया हो सकते है।
पर्यटन क्षेत्र की सबसे बड़ी खूबसूरती यह होती है की इसमें सरकारों का कार्य सिर्फ प्रोत्साहन रेगुलेशन और योजना निर्माण तक सीमित रहता है। निवेश प्राइवेट सेक्टर से अपने आप आता है। इस दिशा में सही से सरकार अगर सोचे और दुनिया भर के स्थापित मॉडल्स को स्टडी करके ठोस निति और रिपोर्ट तैयार करे तो मुझे पूरी उम्मीद है प्राइवेट फर्म इस क्षेत्र में इन्वेस्टमेंट करने केलिए खुद आकर्षित होंगी।
प्रथम स्टेज में गोविन्द सागर झील में इन संभावनाओं को अमलीजामा पहनाया जा सकता है। हिमाचल के पास अपनी आमदनी के जो स्रोत हैं, उनमें पर्यटन अहम है। सोचिए, अगर लेक टूरिज़म से हिमाचल को कमाई होने लगे तो उस पैसे से सरकार न सिर्फ रोजगार पैदा करेगी बल्कि इस आय से उस कर्ज को भी चुका सकेगी, जो हिमाचल से सिर पर 45 हज़ार करोड़ रुपये हो चुका है।
(लेखक हिमाचल प्रदेश के बिलासपुर से हैं और वर्ल्ड बैंक में कंसल्टेंट हैं। हिमाचल प्रदेश से जुड़े मसलों पर विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में लिखते रहते हैं।)
इन हिमाचल डेस्क।। हमेशा की तरह इस साल भी हम आपको बताने जा रहे हैं कि साल 2017 में क्या-क्या और कौन-कौन चर्चा में रहा। हम बात करेंगे उन हस्तियों की, जो अच्छी या बुरी वजहों से चर्चा में रहे। साथ ही उन घटनाओं की भी, जिन्होंने मीडिया में सुर्खियां बटोरीं। पिछले साल की लिस्ट में हमने कलाकारों, राजनेताओं और अन्य हस्तियों को ही जगह दी थी, मगर हम इस बार घटनाओं को भी इस लिस्ट में शामिल करने जा रहे हैं।
1. लेडी कॉन्स्टेबल राजवंती
लेडी कॉन्स्टेबल राजवंती साल के आखिर में चर्चा में रही, जब चंबा से कांग्रेस की विधायक ने हाथापाई के बाद उन्हें थप्पड़ मारा तो उन्होंने भी चांटे से जवाब दिया। हालांकि उनका व्यवहार भी बहुत अच्छा नहीं कहा जा सकता मगर लोगों का पूरा समर्थन राजवंती को मिला।
2. वनरक्षक होशियार सिंह
मौत से कुछ महीने पहले ही लगी थी होशियार की जॉब
हिमाचल प्रदेश का यह बेटा आज हमारे बीच नहीं है। मंडी का वनरक्षक होशियार सिंह करसोग के जंगलों में पहले लापता हो गया और फिर उसका शव पेड़ पर उल्टा लटका मिला। पहले पुलिस ने कहा कि मामला हत्या का है और फिर इसे आत्महत्या के केस में बदल दिया। कई जांच टीमें बदलीं और आखिरकार पुलिस की नाकामी के बाद मामला सीबीआई को सौंपा गया। मगर आज तक हम होशियार सिंह की मौत के कारणों या उसके हत्यारों के बारे में नहीं जानते।
3. शिमला के कोटखाई की गुड़िया पहाड़ों की यह बेटी भी होशियार सिंह की ही तरह इंसाफ के इंतज़ार में है। आज वह हमारे बीच नहीं है। शिमला के कोटखाई के जंगलों में इसका अर्धनग्न शव बहुत बुरी हालत में मिला। बलात्कार के बाद हत्या कर दी गई थी। पुलिस पहले पता नहीं लगा पाई कि किसने घटना को अंजाम दिया, फिर आनन-फानन में कुछ लोग पकड़ लिए।
पुलिस अधिकारियों की गिरफ्तारी से हुई है फजीहत
जब लोग पुलिस की जांच से असंतुष्ट रहे तो मामला सीबीआई को सौंपा गया और इसके साथ ही पुलिस हिरासत में एक आरोपी की मौत हो गई। सीबीआई ने पाया कि हिरासत में हुई मौत पुलिस की पिटाई से हुई है। आईजी जहूर जैदी समेत कई अधिकारी अब तक इस मामले में जेल में हैं, मगर पता नहीं चल पा रहा कि गुड़िया का गुनहगार कौन है।
4. कोटरोपी हादसा मंडी जिले के जोगिंदर नगर के पास कोटरोपी में आया भयंकर भूस्खलन कई जिंदगियां लील गया। कई दिन तक ऑपरेशन चला मगर शव ही मिले। कुदरत कितनी बड़ी तबाही मचा सकती है, इसका नमूना देखने को मिला।
5. रिवालसर झील में जहरीला पानी गर्मियों के मौसम में मंडी की रिवालसर झील में हजारों मछलियां मरने लगी। झील के पानी का रंग बदल गया। पता चला कि झील में मछलियों की आबादी बढ़ गई थी और आसपास से गंदा पानी भी आ गया था।
ऑक्सिजन की कमी के कारण मछलियां मरने लगी। बड़ी मुश्किल से मछलियों को बचाया गया।
6. वीरभद्र सिंह हिमाचल प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री साल भर चर्चा में रहे। कभी आय से अधिक मामले की खबरों के कारण तो कभी अंट-शंट बयानों के कारण। कभी गुड़िया मामले को लेकर उन्होंने संवेदनहीन बयान दिया तो कभी गद्दियों को लेकर दिए गए बयान को लेकर विवाद खड़ा हो गया।
नतीजा यह रहा कि कथित तौर पर अच्छा काम करने के बावजूद लोगों में उनकी सरकार के प्रति नाराजगी ऐसी बढ़ी कि वह खुद तो अपनी सीट बदलकर जीतने में कामयाब रहे, मगर उनके मंत्रियों समेत कई उम्मीदवारों को विधानसभा चुनाव में हार का सामना करना पड़ा।
7. प्रेम कुमार धूमल और राजिंदर राणा हिमाचल प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल के साथ दुखद संयोग यह रहा कि पहले तो पार्टी उन्हें विधानसभा चुनाव के लिए सीएम कैंडिडेट घोषित करने से बचते रही मगर आखिर में उन्हें घोषित किया तो भी वह सुजानपुर सीट से चुनाव हार गए। उन्हें हमीरपुर से बजाय सुजानपुर से लड़ने को कहा गया था।
प्रेम कुमार धूमल और राजिंदर राणा
इसके बाद भी केंद्रीय पर्यवेक्षकों के सामने धूमल समर्थकों ने उन्हें सीएम बनाने की मांग की मगर ऐसा हो नहीं पाया।
8. जय राम ठाकुर प्रेम कुमार धूमल के हारने के बाद लॉटरी लगी मंडी के सिराज से विधायक जय राम ठाकुर की। पांचवीं बार विधायक चुने गए हैं और राज्य में बीजेपी के अध्यक्ष भी रहे हैं। कई चीजें उनके फेवर मे रहीं और वह हिमाचल प्रदेश के तेरहवें मुख्यमंत्री बन गए।
वह प्रेम कुमार धूमल, वीरभद्र सिंह, शांता कुमार, राम लाल ठाकुर और डॉक्टर यशवंत सिंह परमार के बाद मुख्यमंत्री बनने वाले छठे हिमाचली हैं।
9. क्रिकेटर सुषमा वर्मा शिमला की रहने वालीं सुषमा वर्मा भारतीय महिला क्रिकेट टीम बतौर विकेट कीपर वर्ल्ड कप खेलीं।
उनके प्रदर्शन को सराहना मिली और उन्हें हिमाचल सरकार ने एसपी भी बनाया।
10. बाबा अमरदेव सोलन के कंडाघाट का यह बाबा पूरे साल विवादों में रहा मगर इसके ऊपर पिछले सरकार का आशीर्वाद रहा। पहले इसके यहां से तेंदुए की खालें और तलवारें मिलीं, इसके ऊपर जमीन अवैध रूप से कब्जाने के आरोप थे, एक महिला पर इसने हमला किया और उसे जख्मी किया, मगर लोगों के विरोध के बावजूद चुपके से मुख्यमंत्री इससे आईजीएमसी में मिले और कुछ ही घंटों मे पूरे पुलिस स्टेशन का तबादला हो गया।
बाबा और मुख्यमंत्री की मुलाकात के कुछ ही घंटों में कंडाघाट पुलिस स्टेशन का पूरा स्टाफ हुआ था ट्रांसफर
खैर, ये रहीं इस साल की प्रमुख घटनाएं और लोग, जो चर्चा में रहे। अगर आपको लगता है कि और घटनाएं या नाम इसमें शामिल होने चाहिए थे तो कॉमेंट करके बताएं। नया साल आपके और पूरे हिमाचल के लिए शुभ हो, ऐसी कामना है।
शिमला।। कांग्रेस की विधायक आशा कुमारी और हिमाचल पुलिस की महिला कॉन्स्टेबल के बीच हाथापाई और थप्पड़ चलने की घटना शुक्रवार को पूरे देश में छाई रही। वैसे तो ज्यादातर लोग महिला कॉन्स्टेबल के पक्ष में ही खड़े दिखाई दिए, मगर कुछ लोगों ने यह भी कहा कि पुलिसकर्मी को आपा नहीं खोना चाहिए था।
बाद में मीडिया से बातचीत के दौरान कांग्रेस नेता आशा कुमारी ने घटना के लिए खेद तो प्रकट किया मगर कहा कि माफी मैं खुद से मांगती हूं. दरअसल कांग्रेस की समीक्षा बैठक के लिए राहुल गांधी शिमला आए हुए थे। बैठक स्थल के बाहर ही यह घटनाक्रम हुआ।
आशा कुमारी जिस वक्त अंदर जाने की कोशिश कर रही थी, पुलिसकर्मियों ने सुरक्षा घेरा बनाया हुआ था। आशा कुमारी औऱ पुलिस के बीच बहस होती दिखी। इसी बीच एक वीडियो सामने आया जिसमें आशा कुमारी ने लेडी कॉन्स्टेबल पर हाथ चला दिया। एक सेकंड भी नहीं हुआ था कि प्रतिक्रिया में लेडी कॉन्स्टेबल ने भी हाथ छोड़ दिया। बदले में फिर आशा कुमारी ने हाथ चलाया।
यह वीडियो तो आपने देखा ही होगा, मगर अब खुद उस लेडी कॉन्स्टेबल से सुनिए की घटना का कारण क्या था। क्यों ऐसी नौबत आई। न्यूज 18 हिमाचल ने इसका एक इंटरव्यू करके फेसबुक पेज पर डाला है जिसे आप नीचे देख सकते हैं:
इससे पहले की घटना का वीडियो आप नीचे देख सकते हैं।
कॉमेंट करके बताएं कि इस घटनाक्रम पर आपकी राय क्या है।
शिमला।। शपथ लेते ही पहले दिन ही हिमाचल के नए मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ऐक्शन मोड में आ गए। उनके नेतृत्व के राज्य मंत्रीमंडल ने शपथ लेने के बाद बुधवार दोपहर को राज्य सचिवालय में पहली बैठक की। बुधवार शाम को इसमें पूर्व कांग्रेस सरकार की ओर से नियुक्त किए गए अध्यक्षों और उपाध्यक्षों की छुट्टी कर दी गई।
हिमाचल मंत्रीमंडल ने फैसला लिया कि राज्य लोक सेवा आयोग और कर्मचारी चयन आयोग के दायरे से बाहर की जा रही भर्ती प्रक्रिया पर रोक लगाई जाए। हालांकि, मेडिकल कॉलेज की साक्षात्कार प्रक्रिया को जारी रखने का निर्णय हुआ। इसमें विभिन्न बोर्डों और निगमों में समस्त अध्यक्षों तथा उपाध्यक्षों के साथ-साथ सदस्यों की नियुक्तियां तत्काल प्रभाव से समाप्त करने का भी फैसला लिया गया।
प्रदेश मंत्रीमंडल ने पूर्व सरकार की ओर से दिए गए सेवा विस्तार और पुनर्नियुक्तियों को तत्काल प्रभाव से समाप्त करने का भी फैसला लिया। पूर्व सरकार के अंतिम छह महीने के कार्यकाल के दौरान लिए गए निर्णयों की भी समीक्षा करने का निर्णय लिया गया।
मंत्रीमंडल ने ऐसे स्थानांतरण आदेश जो अभी कार्यान्वित नहीं हुए हैं, उन पर यथास्थिति बनाए रखने का भी फैसला किया है। इस बैठक में ये भी तय हुआ कि भाजपा के स्वर्णिम हिमाचल दृष्टि पत्र 2017 को सरकार के नीति दस्तावेज के तौर पर अपनाया जाएगा।
आवारा पशुओं से निजात दिलाने को बनी मंत्रिमंडल उपसमिति
हिमाचल मंत्रीमंडल ने वृद्धजनों को लाभान्वित करने के लिए बिना आय की सीमा से प्रदान की जाने वाली वृद्धावस्था पेंशन की आयु सीमा को 80 वर्ष से घटा कर 70 वर्ष करने का महत्वपूर्ण निर्णय लिया है। यह फैसला राज्य के वृद्धजनों के लिए नववर्ष का बड़ा तोहफा है।
राज्य मंत्रीमंडल ने आवारा पशुओं के कारण उपजी समस्याओं के समाधान के लिए मंत्रिमंडल उप समिति गठित करने का भी फैसला लिया।
अनिल शर्मा, डॉ. राम लाल मारकंडा और गोबिंद सिंह ठाकुर इसके सदस्य होंगे। मंत्रीमंडल ने राज्य के लोगों विशेषकर प्रधानमंत्री का उन पर विश्वास जताने तथा नवगठित सरकार में एक मजबूत नेतृत्व उपलब्ध करवाने के लिए आभार जताया।
मंत्रीमंडल ने सर्वसमिति से हिमाचल के लोगों का भारतीय जनता पार्टी, इसकी नीतियों तथा कार्यक्रमों में विश्वास जताने के लिए आभार व्यक्त किया।
इस बैठक में प्रस्ताव रखा गया कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष शाह का उनके गतिशील नेतृत्व की बदौलत हाल ही के विधानसभा चुनाव में पार्टी को मिली विजय के लिए आभार जताया जाता है।
मंत्रीमंडल ने प्रस्ताव दिया कि यह सरकार प्रदेश के लोगों की अपेक्षाओं के अनुरूप कार्य करेगी।
शिमला।। सिराज के विधायक जयराम ठाकुर ने आज शिमला के ऐतिहासिक रिज मैदान में मुख्यमंत्री पद की शपथ ली। वह हिमाचल के तेरहवें सीएम बन गए हैं। उनके साथ कुछ मंत्रियों ने भी पद एवं गोपनीयता की शपथ ली। इनमें एक नाम मंडी से विधायक अनिल शर्मा का भी है, जो चुनाव से ठीक पहले कांग्रेस को नमस्कार कहके भारतीय जनता पार्टी में शामिल हुए थे। अनिल शर्मा पिछली वीरभद्र सिंह सरकार में भी मंत्री थे, जहां उन्हें पंचायती राज का जिम्मा सौंपा गया था।
गौरतलब है कि पिछले साल जब भाजपा विपक्ष में थी, तब उसने वीरभद्र सरकार पर करप्शन का आरोप लगाया था और एक लिस्ट में उन मंत्रियों और सीपीएस के नाम थे, जिनपर घोटालों के आरोप लगाए थे और यह भी बताया गया था कि उन्होंने ऐसा क्या किया है।
राज्यपाल को सौंपी गई इस चार्जशीट में अनिल शर्मा पर मंडी के करोड़ों के राजमहल भूमि बेनामी सौदे में शामिल होने का आरोप लगाया था। उस समय अनिल शर्मा ने भी बीजेपी पर मानहानि का केस करने की धमकी दी थी।
उस समय भाजपा नेताओं ने कहा था कि जब हमारी सरकार आएगी तो इन सभी मंत्रियों के मामलों की जांच होगी और दोषियों को जेल भेजा जाएगा। अब चूंकि बीजेपी की सरकार बन गई है, ऐसे में देखना होगा कि इस बात को वह पूरी करती है या नहीं। अगर जांच नहीं होगी तो साफ हो जाएगा कि बीजेपी सिर्फ माहौल बनाने के लिए चार्जशीट लाई थी। और अगर अब वह अपनी चार्जशीट के आधार पर कार्रवाई करती है तो देखना होगा कि अनिल शर्मा पर लगाए गए आरोपों की जांच करवाई जाती है या कहीं ऐसा तो नहीं कि बीजेपी उन्हें अपनी पार्टी में आते ही पवित्र मानने लग गई है।
वैसे अगर अब जांच शुरू भी होती है, तब भी अनिल शर्मा मंत्री बन चुके हैं और सत्ताधारी मंत्री के खिलाफ जांच का प्रभावित होना लाजिमी है और उसकी निष्पक्षता भी संदेह के घेरे में होगी।
इन हिमाचल डेस्क।। प्रदेश के भावी मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर में पूर्व मुख्यमंत्री शांता कुमार की छवि देखी जा रही है। कहा जा रहा है कि जयराम भी उसी तरह के ईमानदार और सिद्धांतवादी हैं, जैसे शांता कुमार थे। यह एक नेता के लिए कॉम्प्लिेंट तो है लेकिन एक जिम्मेदारी भी। क्योंकि शांता कुमार ऐसे नेता हैं जिन्होंने कभी भी आदर्शों से समझौता नहीं किया। और यही कारण है कि आज भी वह गर्व से कह सकते हैं कि वह बाकी राजनेताओं से अलग हैं और उन्होंने कभी भी वह राजनीति नहीं की, जिस तरह की राजनीति आजकल अन्य दल और स्वयं उनकी पार्टी कर रही है।
दी लल्लनटॉप ने शांता कुमार के इंटरव्यू के कुछ हिस्से पब्लिश किए हैं। इन वीडियोज़ में शांता कुमार ने खुलकर बात की है। उन्होंने यह भी बताया है कि कैसे वह विधायकों को खरीदकर सरकार बनाने के पक्ष में कभी नहीं रहे। और उस घटना की भी बात की, जिसकी टीस को वह भूले नहीं हैं।
दरअसल पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने शांता कुमार ने इस्तीफा मांग लिया था। तब शांता केंद्र में मंत्री थे। इस्तीफा इसलिए मांगा गया था क्योंकि शांता कुमार ने 100 करोड़ रुपये के घपले को रोकने की कोशिश की थी। यानी वाजपेयी ने उन्हें ईमानदारी की सजा दी थी। भले वाजपेयी मजबूर रहे हों लेकिन शांता ने सिद्धांतों पर कायम रहते हुए त्यागपत्र दे दिया था। देखें वीडियो:
शांता कुमार के सिद्धांतों और आदर्शों के साथ उनकी ईमानदारी और विज़न के कई किस्से हैं, जिन्हें हम आगे भी आपके साथ शेयर करते रहेंगे। इसलिए, क्योंकि आप पाठकों के बीच कई लोग ऐसे होंगे जो राजनीति में जाना चाहते होंगे। तो राजनीति में जाकर आपको कैसा नेता बनना है, यह सीख आज के नेताओं से तो आपको मिलेगी नहीं। मिलेगी तो शांता कुमार जैसे नेताओं से, जो खुद एक मिसाल हैं।
शिमला।। जयराम ठाकुर के सीएम बनने की कहानी शुरू होती है उस समय से, जब हिमाचल प्रदेश में चुनाव प्रचार चल रहा था। बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने जयराम ठाकुर के पक्ष में प्रचार करते समय जनता से कहा था- जयराम ठाकुर को सरकार में सबसे बड़ा पद दिया जाएगा। अमित शाह के शब्दों पर गौर फरमाते हुए ‘इन हिमाचल’ ने उस वक्त इस खबर को उठाया भी था। उस समय भले ही अमित शाह की बात का अर्थ स्पष्ट नहीं था, मगर अब स्थिति स्पष्ट हो गई है।
दरअसल बीजेपी कहीं न कहीं समझ गई थी कि प्रेम कुमार धूमल को कड़ी टक्कर मिल रही है। ऐसे में पार्टी अध्यक्ष अमित शाह ने पहले ही प्लान बी तैयार रखा था कि अगर कहीं धूमल सीएम कैडिडेट घोषित किए जाने के बावजूद फायदा न उठा पाएं और हार जाएं तो नेतृत्व किसे सौंपा जाए। चूंकि पार्टी पहले ही स्पष्ट कर चुकी थी कि मुख्यमंत्री वही होगा जो चुनकर आएगा, ऐसे में प्लान बी के तहत अमित शाह ने तय कर लिया था कि जयराम ठाकुर ही धूमल के हारने की स्थिति में सीएम बनाए जाएंगे। दरअसल ठाकुर का अनुभव और वरिष्ठता इसके पीछे अहम वजह रही। इसी कारण अमित शाह के मुंह से वो बोल निकले थे, जिन्हें लोगों ने ये समझ लिया कि सरकार बनी तो धूमल के बाद दूसरे नंबर के मंत्री जयराम होंगे।
फिर संशय क्यों पैदा हुआ?
धूमल के हारने के बाद केंद्र से जब निर्मला सीतारमण और नरेंद्र तोमर पर्यवेक्षक बनकर पहुंचे तो दरअसल वे सारी औपचारिकताएं पूरी करने के बाद जयराम ठाकुर के नाम का ऐलान करने आए थे। जयराम का सीएम बनना तो पहले से ही तय था। इसका पता उस तस्वीर से भी चलता है जिसमें निर्मला ने जयराम ठाकुर को अपने साथ वाली सीट पर बिठाया था, जबकि अन्य विधायक सभागार में मौजूद थे।
मगर संगठन का अनुभव न रखने वालीं सीतारमण उस समय हैरत में पड़ गईं जब पीटरहॉफ में नारेबाजी का माहौल देखा। धूमल समर्थकों ने जब केंद्रीय पर्यवेक्षकों के सामने नारेबाजी की तो उन्हें समझ नहीं आया कि ये लोग कौन हैं। मीडिया के एक हिस्से में कथित तौर पर खबरें प्लांट करवाई जा रही थीं कि 22-25 विधायक धूमल के पक्ष में हैं। पीटरहॉफ का माहौल ही ऐसा था कि विधायकों को न पहचानने वाले पर्यवेक्षकों को लगा कि विधायक ही हुल्लड़बाजी कर रहे हैं। ऐसे में उन्हें लगा कि ऐसे माहौल में जयराम का ऐलान कैसे किया जाए। इसी कारण पर्यवेक्षक बिना कोई ऐलान किए वापस लौट गए।
अमित शाह का प्लान
जब पर्यवेक्षकों ने दिल्ली रिपोर्ट दी तो अमित शाह ने योजना बनाई। इसके तहत जानबूझकर मीडिया को खबर लीक की गई कि जेपी नड्डा का नाम लगभग फाइनल हो रहा है। जैसे ही मीडिया में ये खबर आई, पीटरहॉफ में असमंजस का माहौल पैदा हो गया। पाला बदलते हुए कई कार्यकर्ताओं ने दिल्ली के लिए दौड़ लगा दी। जो विधायक धूमल के पक्ष में इस्तीफा देने की बात कर रहे थे, उनमें से कुछ भी दिल्ली स्थित नड्डा के आवास में देखे गए। इसी बीच पार्टी आलाकमान ने धूमल को सूचित किया कि जयराम ठाकुर सीएम होंगे और आप समर्थकों से कहिए कि शांत रहें। इसीलिए जिन धूमल ने कई दिनों की नारेबाजी और मीडिया में नाम आने के बावजूद कभी खंडन नहीं किया था कि मैं रेस में नहीं हूं, उन्हें बाकायदा प्रेस रिलीज जारी करनी पड़ी।
जैसे ही प्रेशर हटा, दिल्ली से टीम फिर पीटरहॉफ पहुंची और रविवार को जयराम ठाकुर के नाम का ऐलान कर दिया।
अगर पर्यवेक्षकों में भ्रम की स्थिति पैदा न होती तो जयराम ठाकुर की घोषणा पहले ही हो जाती। बहरहाल, खबर ये भी है कि जिस वक्त मंत्रियों के नाम पर चर्चा के लिए सीएम इलेक्ट और वरिष्ठ नेताओं को दिल्ली बुलाया गया है, वहीं धूमल को पीटरहॉफ में चले घटनाक्रम पर सफाई देने के लिए बुलाया गया है।
अब जाकर साफ हुआ है कि सीएम की रेस में तो कोई था ही नहीं। सभी लोग मीडिया के कयासों और उनके तथाकथित सूत्रों के कारण भ्रम की स्थिति में रहे।
इन हिमाचल डेस्क।। हिमाचल प्रदेश के छठे सीएम (13वें) बनने जा रहे हैं सिराज के विधायक जयराम ठाकुर। हिमाचल प्रदेश में अब तक पांच मुख्यमंत्री रहे हैं और पांचों ही क्लीन शेव्ड रहे हैं यानी उन्होंने मूछें नहीं रखी थीं। उनके अलावा कई सारे कद्दावर नेता रहे जो मुख्यमंत्री पद के दावेदार रहे और इसके करीब भी आए, मगर हिमाचल के मुख्यमंत्री पद का सुख उन्होंने नसीब नहीं हुआ।
तो क्या संयोग से ही हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री पद के साथ मूंछों का योग जुड़ गया है? सबसे पहले डॉक्टर वाई.एस. परमार मुख्यमंत्री बने, जो कि बिना मूंछों के थे। उनके बाद ठाकुर राम लाल आए, उनकी भी मूंछें नहीं थी। बाद में सीएम बने वीरभद्र सिंह, शांता कुमार और प्रेम कुमार धूमल के भी मूंछें नहीं हैं।
ऐसे में इस मजेदार संयोग के आधार पर देखें तो कांग्रेस की सरकार बनती तो वीरभद्र होते जिनकी मूंछें नहीं हैं। मगर बीजेपी की सरकार बनी है। अगर धूमल जीत जाते तो वह आराम से सीएम बनते। मगर बाद में चर्चा छिड़ी तो जय राम ठाकुर का नाम उभरकर सामने आया।
जयराम ठाकुर कभी मूंछें रखते हैं कभी क्लीन शेव्ड हो जाते हैं तो कभी हल्की मूंछें रखते हैं। मगर इन दिनों वह क्लीन शेव्ड थे। यानी मजेदार संयोग रहा कि वह सबके पीछे छोड़ते हुए सीएम-इलेक्ट बने।
इन हिमाचल डेस्क।। मंडी जिले का सिराज विधानसभा क्षेत्र। इस विधानसभा क्षेत्र को प्रकृति ने सुंदरता का अपार भंडार बख्शा है। इसी विधानसभा क्षेत्र की ग्राम पंचायत मुराहग के तांदी गांव में है हिमाचल के मुख्जयमंत्री जय राम ठाकुर का घर। 6 जनवरी 1965 को जेठू राम और बृकु देवी के घर जन्मे जय राम ठाकुर का बचपन गरीबी में कटा। परिवार में 3 भाई और 2 बहनें थीं। पिता खेतीबाड़ी और मजदूरी करके अपने परिवार का पालन पोषण करते थे। जय राम ठाकुर तीन भाईयों में सबसे छोटे हैं इसलिए उनकी पढ़ाई-लिखाई में परिवार वालों ने कोई कसर नहीं छोड़ी। जय राम ठाकुर ने कुराणी स्कूल से प्राइमरी करने के बाद बगस्याड़ स्कूल से उच्च शिक्षा प्राप्त की। इसके बाद वह मंडी आए और यहां से बीए करने के बाद पंजाब यूनिवर्सिटी से एमए की पढ़ाई पूरी की।
परिवार ने खेतीबाड़ी संभालने की सलाह दी
जय राम ठाकुर को पढ़ा चुके अध्यापक लालू राम बताते हैं कि जय राम ठाकुर बचपन से ही पढ़ाई में काफी तेज थे। अध्यापक भी यही सोचते थे कि जय राम ठाकुर किसी अच्छी पोस्ट पर जरूर जाएंगे। लेकिन अध्यापकों को यह मालूम नहीं था कि उनका स्टूडेंट प्रदेश की राजनीति का इतना चमकता सितारा बन जाएगा। जब जय राम ठाकुर वल्लभ कालेज मंडी से बीए की पढ़ाई कर रहे थे तो उन्होंने एबीवीपी के माध्यम से छात्र राजनीति में प्रवेश किया। यहीं से शुरूआत हुई जय राम ठाकुर के राजनीतिक जीवन की। जय राम ठाकुर ने इसके बाद पीछे मुड़कर नहीं देखा। एबीवीपी के साथ-साथ संघ के साथ भी जुड़े और कार्य करते रहे।
घर परिवार से दूर जम्मू-कश्मीर जाकर एबीवीपी का प्रचार किया और 1992 को वापिस घर लौटे। घर लौटने के बाद वर्ष 1993 में जय राम ठाकुर को भाजपा ने सराज विधानसभा क्षेत्र से टिकट देकर चुनावी मैदान में उतार दिया। जब घरवालों को इस बात का पता चला तो उन्होंने इसका विरोध किया। जय राम ठाकुर के बड़े भाई बीरी सिंह बताते हैं कि परिवार के सदस्यों ने जय राम ठाकुर को राजनीति में न जाकर घर की खेतीबाड़ी संभालने की सलाह दी थी। क्योंकि चुनाव लड़ने के लिए परिवार की आर्थिक स्थिति इजाजत नहीं दे रही थी।
विधानसभा चुनावों में हार का मुंह नहीं देखा
जय राम ठाकुर ने अपने दम पर राजनीति में डटे रहने का निर्णय लिया और विधानसभा का चुनाव लड़ा। उस वक्त जय राम ठाकुर मात्र 26 वर्ष के थे। यह चुनाव जय राम ठाकुर हार गए। वर्ष 1998 में भाजपा ने फिर से जय राम ठाकुर को चुनावी रण में उतारा। इस बार जय राम ठाकुर ने जीत हासिल की और उसके बाद कभी विधानसभा चुनावों में हार का मुहं नहीं देखा। जय राम ठाकुर विधायक बनने के बाद भी अपनी सादगी से दूर नहीं हुए। जय राम ठाकुर ने विधायकी मिलने के बाद भी अपना वो पुश्तैनी कमरा नहीं छोड़ा जहां उन्होंने अपने कठिन दिन बीताए थे। जय राम ठाकुर अपने पुश्तैनी घर में ही रहे। हालांकि अब जय राम ठाकुर ने एक आलीशान घर बना लिया है और वह परिवार सहित वहां पर रहने भी लग गए हैं लेकिन शादी के बाद भी जय राम ठाकुर ने अपने नए जीवन की शुरूआत पुश्तैनी घर से ही की।
वर्ष 1995 में उन्होंने जयपुर की डा. साधना सिंह के साथ शादी की। जय राम ठाकुर की दो बेटियां हैं। आज अपने बेटे को इस मुकाम पर देखकर माता का दिल फुले नहीं समाता। जय राम ठाकुर के पिता जेठू राम का गत वर्ष देहांत हो गया है। जय राम ठाकुर की माता बृकु देवी ने बताया कि उन्होंने विपरित परिस्थितियों में अपने बच्चों की परवरिश की है।
पहले भी रहे हैं महत्वपूर्ण पदों पर
जय राम ठाकुर एक बार सराज मंडल भाजपा के अध्यक्ष, एक बार प्रदेशाध्यक्ष, राज्य खाद्य आपूति बोर्ड के उपाध्यक्ष और कैबिनेट मंत्री रह चुके हैं। जब जय राम ठाकुर भाजपा के प्रदेशाध्यक्ष थे तो भाजपा प्रचंड बहुमत के साथ सत्ता में आई थी। जय राम ठाकुर ने उस दौरान सभी नेताओं पर अपनी जबरदस्त पकड़ बनाकर रखी थी और पार्टी को एकजुट करने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी।