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Wednesday, July 16, 2025
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इंटरनेट यूज़र्स से पूछ रही हिमाचल सरकार- लॉकडाउन लगाएं या नहीं?

शिमला।। हिमाचल प्रदेश सरकार ने राज्य में लॉकडाउन लगाने को लेकर अब जनता की राय मांगी है। इसके लिए हिमाचल सरकार के पोर्टल पर एक पोल शुरू किया है जिसमें लोगों से कंप्लीट लॉकडाउन और वीकेंड में लॉकडाउन लगाने को लेकर सवाल पूछा गया है। एक अगस्त तक दोनों सवालों पर लोग अपना वोट देकर राय रख सकते हैं।

बताया जा रहा है कि हिमाचल सरकार इस पोल के नतीजों के आधार पर फैसला लेगी कि लॉकलाउन लगाया जाएगा या नहीं। और अगर लगाया जाता है तो कंप्लीट लॉकडाउन होता या फिर आंशिक। सरकार इसे ‘प्रदेश हित में किसी फैसले को लेने के लिए जनता की सहभागिता के लिए अनूठी पहल’ करार दे रही है मगर इसे लेकर कुछ सवाल भी खड़े हो गए हैं।

राय देने वाले कौन हैं?
सवाल ये कि सरकार ख़ुद स्थिति का आकलन क्यों नहीं कर रही और अगर एक्सपर्ट्स की जगह जनता की राय क्यों ले रही है। क्या ऐसे संवेदनशील विषयों पर जनता की राय के आधार पर फ़ैसला लिया जाएगा, ख़ासकर तब जब वह ख़ुद नियमों का पालन नहीं कर रही। आधे से ज़्यादा लोग मास्क से नाक बाहर लटकाए घूम रहे हैं और गाँवों में टूर्नामेंटों का आयोजन हो रहा है।

यही लोग लॉकडाउन की वकालत भी कर रहे हैं जबकि आर्थिक गतिविधियाँ शुरू करने के लिए प्रदेश के बाग़वानों, किसानों, कॉन्ट्रैक्टरों और कारोबारियों ने कमर कस ली है और बाहर से प्रवासी मज़दूरों का लौटना भी शुरू हो गया है। इसके साथ ही बहुत से लोगों ने सीमित मेहमानों के साथ विवाह आदि अन्य कार्यक्रमों की भी तैयारियाँ शुरू की हैं क्योंकि कोरोना संकट का अंत होता नहीं दिख रहा।

अचानक लॉकडाउन लगाया तो होगा नुकसान
अब अगर सरकार बिना प्लैनिंग के अचानक फिर जन भावनाओं के आधार पर लॉकडाउन लगा देगी तो नुक़सान जनता का ही होगा। उस जनता का नुक़सान होगा, जिसके पास करने के लिए काम है। लॉकडाउन का सुझाव देने वाले उन लोगों का कोई नुक़सान नहीं होगा जो पहले भी ख़ाली बैठ इंटरनेट पर समय गंवाते थे और लॉकडाउन के दौरान भी यही कर रहे हैं।

सरकार ने एक अगस्त तक पोल रखा है। अगर वह उसके बाद लॉकडाउन लगाने पर विचार कर रही है तो अभी से सूचित करे ताकि लोग उस हिसाब से अपने तय कार्यक्रमों की योजना बनाएं। वरना पहले की तरह अचानक कंप्लीट लॉकडाउन लगा तो उसके झटके से सूबा कभी उबर नहीं पाएगा। ‘विकास के शिखर पर हिमाचल’ का जो लक्ष्य सरकार ने रखा है, वह भी पूरा नहीं होगा क्योंकि सड़कें बनाने, पक्की करने, इमारतें बनाने आदि का काम पहले से ही लटका हुआ है।

कंप्लीट लॉकडाउन से बेहतर होगा कि नियमों को सख़्त किया जाए और जो नियम तोड़े, उसपर जुर्माना हो। और इससे भी पहले नेता, ख़ासकर मंत्री और सांसद ख़ुद उदाहरण पेश करें जो लॉकडाउन के दौरान इधर-उधर घूमते रहे हैं, मजमा लगाते रहे हैं और वो भी सोशल डिस्टैंसिंग व मास्क के बिना।

मास्क न पहनने के लिए पहले खुद पर जुर्माना लगाएं हिमाचल के नेता

स्मार्टफोन तीन महीने पहले लिया था, गाय इसी महीने बेची थी इस परिवार ने

कांगड़ा।। हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा जिले के ज्वालामुखी के उस परिवार की कहानी आपने भी सुनी होगी जिसने बच्चों की पढ़ाई के लिए गाय बेचकर स्मार्टफ़ोन खरीद लिए। इस मामले में स्थानीय विधायक, समाजसेवियों से लेकर कोरोना काल में प्रवासी श्रमिकों के लिए मददगार बने अभिनेता सोनू सूद तक मदद के लिए आगे आए। मगर अब ऐसी खबर आई है कि मामला पूरी तरह वह नहीं है, जैसा एक खबर के आधार पर सोशल मीडिया पर फैल गया।

एक खबर आई थी कि ज्वालामुखी के गुम्मर गांव के कुलदीप ने प्राइमरी में पढ़ने वाले अपने बच्चों की पढ़ाई के लिए स्मार्टफोन खरीदा ताकि वे ऑनलाइन क्लासेज़ अटेंड कर सकें। कहा जा रहा था कि इस स्मार्टफोन को खरीदने के लिए कुलदीप ने गाय बेच दी। इसके बाद कई हाथ मदद के लिए आगे आए।

हालांकि, ऐसी खबरें सामने लगीं कि परिवार में किसी तरह के विवाद के कारण कुलदीप के परिवार को पशुशाला में रहना पड़ रहा है। तमाम अटकलों के बाद अब यह पता चला है कि प्रशासन ने जब कुलदीप के घर जाकर पड़ताल की तो कथित तौर पर कुलदीप ने यह कहते हुए गाय लेने से इनकार कर दिया कि उसे गाय की जरूरत नहीं है और गाय बांधने के लिए उसकी जगह भी नहीं है।

कुलदीप अभी भी पशुशाला में रह रहा है। प्रशासन का कहना है कि चार से पांच हज़ार रुपये कीमत का स्मार्टफोन कुलदीप ने तीन पहले ही ले लिया था, जबकि गाय उसने पिछले सप्ताह ही बेची है। प्रशासन के ऐसे दावों के बाद अब पूरे मामले में कई तरह के सवाल खड़े हो गए हैं।

इस तस्वीर से कुलदीप की ख़राब आर्थिक स्थिति की झलक नज़र आती है।

हालाँकि, कुलदीप की जो तस्वीरें आपने देखी होंगी, उनसे पता चलता है कि जहां वह रहता है, उस जगह की हालत कैसी है। इस बात में कोई शक नहीं कि उसकी आर्थिक हालत कमजोर है और उसे मदद की दरकार थी।

नहीं थम रहे मामले, बीबीएन में मंगलवार सुबह 6 बजे तक पूरी तरह लॉकडाउन

सोलन।। हिमाचल प्रदेश के औद्योगिक केंद्र बीबीएन में कोरोना के नए मामले सामने आने का सिलसिला नहीं रुक रहा है। इन हालात में सोलन प्रशासन ने बद्दी-बरोटीवाला-नालागढ़ में पूरी तरह लॉकडाउन घोषित कर दिया है। यह लॉकडाउन शनिवार आधी रात से मंगलवार सुबह छह बजे तक रहेगा।

जिला प्रशासन का कहना है कि इस दौरान कोई नागरिक बाहर नहीं घूम पाएगा। एसडीएम नालागढ़ को कानून व्यवस्था बनाए रखने के लिए कहा गया है।

अब तक बीबीएन में 380 से अधिक मामले सामने आ चुके हैं। वहीं पूरी हिमाचल में एक्टिव केस 781 हैं और 1149 मरीज़ ठीक होकर घर लौट चुके हैं। अब तक कोरोना संक्रमित 11 लोगों की जान गई है।

वनमहोत्सव के तामझाम पर फिजूलखर्ची क्यों नहीं रोक रही सरकार

इन हिमाचल डेस्क।। वन विभाग हर साल लाखों पौधे तैयार करता है और रोपता भी है। उसमें उतना खर्च नहीं आता जितना हमारे नेता वन महोत्सव करवाने के नाम पर कर देते हैं।

सारा प्रशासनिक अमला पहुंचता है, टेंट-माइक-एलसीडी-कुर्सियां लगतीं हैं, लोहे के बोर्डों पर पेंटर से पौधा लगाने वाले नेता का नाम लिखा होता है। अगले साल बोर्ड वहीं होता है और पौधा सूखा मिलता है। ये सब होता है जनता के पैसे से।

सरकारी पैसे पर अपनी छवि चमकाने की कोशिशों के अलावा ये और क्या है? कर्ज पर चल रही सरकार जनता पर तो आर्थिक बोझ थोप देती है लेकिन खुद एक पैसे की बचत करने को तैयार नहीं।

नेता ये दिखावा करते किसलिए हैं? क्या जनता को समझ नहीं आता कि वो क्या कर रहे हैं? आप 15 लाख पेड़ लगाने का दावा करो या 15 करोड़ का, वह आपकी उपलब्धि नहीं है। आपका मूल्यांकन आपके विजन और नीतियों के आधार पर किया जाएगा।

बाकी, द ग्रेट खली की मनोरंजक रेसलिंग को खेलों को बढ़ावा देने की पहल बताकर प्रचारित करने से ही पता चल गया था कि सरकार में बैठे कुछ लोगों का एक्सपोजर कितना है और कैसे वो स्टंट करके जनता को लुभाने की रणनीति बना रहे थे।

उस समय भी जनता ने संदेश दिया था कि उसे काम चाहिए, शिगूफे नहीं। अफसोस, उससे भी कुछ सबक नहीं लिया गया।

वन विभाग हर साल लाखों पौधे तैयार करता है और रोपता भी है। उसमें उतना खर्च नहीं आता जितना हमारे नेता वन महोत्सव करवाने के…

Posted by In Himachal on Tuesday, July 21, 2020

जो गोविंद सिंह ठाकुर परिवहन मंत्री हैं, वही हिमाचल के वन मंत्री भी हैं। एक तरफ तो आर्थिक नुकसान की बात करके वह बसों का किराया बढ़ा देते हैं, दूसरी तरफ अनावश्यक खर्च करके वन महोत्सव के नाम पर प्रदेश भर में लाखों खर्च करते हैं और इसे बड़ी पहल दिखाते हैं।

कल प्रदेश के हर डिवीजन में यह ऐक्टिविटी की गई। वीडियो कांफ्रेंसिंग के लिए कहीं एलसीडी लगाया गया कहीं टेंट लगाए गए तो कहीं माननीयों के नाम वाली पट्टी। इसका पैसा सरकारी खाते से ही तो जाएगा। पिछले 2 बार सालों में लगे पौधों का हिसाब कौन देगा? 2018 में 15 लाख पौधे लगाए गए थे, उनका क्या हुआ?

नीचे दी गई तस्वीरें उदाहरण हैं। हमीरपुर के विधायक ने एक पौधा लगाया और उसके लिए कितना तामझाम किया गया। ये दिखाता है कि सरकार खुद तो फिजूलखर्ची रोकना नहीं चाहती और उसका पैसा जनता से निकलवाना चाहती है। ऊपर से इस फिजूलखर्ची को भी उपलब्धि दिखाया जाता है।

आप 15 लाख पौधे लगाएं या डेढ़ करोड़, इस स्टंट से जनता प्रभावित नहीं होने वाली। बात तो तब है जब आप नेता और खासकर वन मंत्री अपने इलाके में पहले से लगे वनों को कटने से बचाएं।

किराया बढ़ने से आम लोगों में गुस्सा नहीं, कांग्रेस ही कर रही है विरोध: सीएम

शिमला।। हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने कहा है कि बसों के किराए में बढ़ोतरी लो लेकर आम लोगों में किसी भी तरह का गुस्सा नहीं है। सीएम ने इस मामले पर विरोध कर रही कांग्रेस और अन्य विपक्षी दलों को निशाने पर लेते हुए कहा कि कुछ लोग राजनीतिक कारणों से विरोध कर रहे हैं और इसका आने वाले वक़्त में जवाब दिया जाएगा।

किराये में 25% की वृद्धि को लेकर मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने कहा कि वह सरकार इस तरह का निर्णय नहीं करना चाहती थी लेकिन भारी मन से बस किराया बढ़ाना पड़ा है। उन्होंने कहा कि इसके अलावा सरकार के पास दूसरा कोई रास्ता नहीं था।

सीएम ने कहा, “देश और प्रदेश कोरोना के कारण आर्थिक नुकसान के दौर से गुजर रहा है। लोग कोरोना के दौर से बाहर निकलने के लिए सहयोग कर रहे हैं। बस किराये को लेकर भी आम लोगों में किसी भी तरह का गुस्सा नहीं है। केवल कुछ लोग राजनीतिक मकसद से इसका विरोध कर रहे हैं जिसका जवाब आने वाले समय में दिया जाएगा।”

सीएम ने क्या कहा, देखें-

किराया बढ़ोतरी को लेकर सीएम ने भी दिया बाकी राज्यों में किराया बढ़ने का हवाला, कहा- संकट के दौर में जनता ने मदद का मन बनाया है।

Posted by In Himachal on Tuesday, July 21, 2020

 

बसों में यात्रियों को चिपकाकर बिठा परिवहन मंत्री दे रहे 2 गज दूरी का संदेश

शिमला।। सोशल मीडिया पर सक्रिय रहने वाले परिवहन मंत्री गोविंद ठाकुर की उनके फेसबुक पेज पर किराया बढ़ोतरी के सम्बंध में कोई टिप्पणी अब तक नहीं आई है। गौरतलब है कि हिमाचल कैबिनेट ने आज बसों का किराया 25 प्रतिशत बढ़ा दिया है। इसके बाद लोग सोशल मीडिया पर परिवहन मंत्री के पेज पर जा रहे हैं ताकि इसकी कोई एक्सपलनेशन मिल सके।

इस सम्बन्ध में तो गोविंद ठाकुर ने कुछ नहीं लिखा है मगर एक तस्वीर शेयर की है जिसमें दो गज की दूरी का महत्व बताया जा रहा है। यह संदेश हास्यास्पद है क्योंकि उनके विभाग ने बसों को पूरी क्षमता से चलाने का फैसला किया है।

कोरोना काल में हिमाचल में लोग बसों में चिपककर बैठ रहे हैं जिससे दो गज क्या, एक फुट की दूरी भी नहीं बन पा रही। फिर वे बाहर निकलकर सोशल डिस्टेंसिंग का क्या पालन करें, जब बसों में चिपककर बैठना पड़ रहा है।

हिमाचल में किराया बढ़ाते हुए सरकार ने पंजाब और उत्तराखंड का उदाहरण दिया। जबकि उत्तराखण्ड में दोगुना किराया तब हुआ है जब बसें आधी क्षमता पर चल रही हैं। हिमाचल में बसें पूरी क्षमता से चलाई जा रही हैं, फिर भी किराया बढ़ाया गया। वहीं पंजाब ने प्रति किलोमीटर चंद पैसे बढ़ाए हैं।

किराया बढ़ोतरी: जनता को भरोसे में लिए बिना क्यों किए जाते हैं फैसले

किराया बढ़ोतरी: जनता को भरोसे में लिए बिना क्यों किए जाते हैं फैसले

इन हिमाचल डेस्क।। सोमवार को बसों का किराया 25 फीसदी बढ़ाने की घोषणा कर दी गई और इसके साथ ही जनता की नाराजगी फूट पड़ी। समस्या किराया बढ़ाने से नहीं है, समस्या तरीके से है। पहले इस विषय पर परिवहन मंत्री तक गोलमोल बातें करते हैं और फिर अचानक किराया बढ़ोतरी का बम फोड़ देते हैं। ऐसे में जनता अपने मंत्रियों और नेताओं पर यकीन कैसे करेगी?

पिछली बार भी किराया ऐसे ही बढ़ाया गया था। निजी बस ऑपरेटर भी हमारे बीच से ही हैं और उनके हितों का खयाल रखना भी सरकार की जिम्मेदारी है। लेकिन ये भी सरकार को सोचना चाहिए कि उसके कदमों से बार-बार ऐसा संदेश क्यों जा रहा है कि वो जनता की बजाय ऑपरेटरों को तरजीह दे रही है।

इतिहास में जाएं तो मौजूदा परिवहन मंत्री जब विपक्ष में थे, तब भी निजी ऑपरेटरों की आवाज उठाया करते थे। इसमें कुछ गलत भी नहीं था। लेकिन जब तत्कालीन परिवहन मंत्री ने बिना परमिट चलने वाली वॉल्वो बसों पर नकेल कसी थी तो गोविंद ठाकुर ने इसका विरोध किया था और कहा था कि सरकार इन्हें परमिट न देकर अवैध बता रही है जिसमे टूरिज़म भी प्रभावित हो रहा है। वह ऑपरेटरों के प्रतिनिधिमंडल के साथ उस समय के नेता प्रतिपक्ष प्रेमकुमार धूमल से भी मिले थे।

आज गोविंद ठाकुर खुद परिवहन मंत्री बन चुके हैं, मगर बिना परमिट दौड़ने वालीं वॉल्वो बसों के लिए कोई नीति नहीं बना रहे। ये अवैध वॉल्वो लगातार एचआरटीसी की वॉल्वो को नुकसान पहुंचा रही हैं और कई रूट बन्द होने की कगार पर हैं, तब भी मंत्री चुप हैं। आरटीओ ऑफिस के अधिकारियों और अवैध वॉल्वो ऑपरेटरों पर मिलीभगत के आरोप लगते हैं कि कथित सेटिंग के बिना इतनी बड़ी-बड़ी बसें फिक्स्ड रुट पर नहीं चल सकतीं।

ये अधिकतर बसें पर्यटन नगरी मनाली से हैं जहां से गोविंद ठाकुर विधायक भी हैं। जन प्रतिनिधि होने के नाते उनकी जिम्मेदारी है कि अपने लोगों की आवाज उठाएं। मगर उनके मंत्री बन जाने के बाद उनके विभाग के फैसलों का संयोग से ही उनके करीबियों या क्षेत्र को लाभ मिलने लगे तो यह न चाहते हुए भी हितों के टकराव का मामला बन जाता है।

इससे पहले कि ऐसे सवाल भविष्य में पूरी सरकार को मुश्किल में डालें, सीएम जयराम ठाकुर को इस विषय पर सोचना चाहिए। कोई भी कदम उठाने से पहले सरकार को जनता को भरोसे में लेना चाहिए। अगर मंत्री या अधिकारी गोलमोल बातें करके जवाबदेही से बचने लगेंगे तो सीधा नुकसान प्रदेश के मुखिया को उठाना होगा। बेहतर होता सरकार क्रमिक बढ़ोतरी करती। क्योंकि जो लोग सक्षम हैं, उनके पास अपने वाहन हैं। बसों से यात्रा करने वालों में आज भी तबका ऐसा है जिसके लिए एक-एक रुपये की अहमियत है।

बसों का किराया 25% बढ़ाकर बोली सरकार- बाक़ी राज्यों से कम बढ़ाया

शिमला।। हिमाचल प्रदेश कैबिनेट ने आज कई फ़ैसले लिए जिनमें बसों का किराया बढ़ाना भी शामिल है। कैबिनेट ने बसों का किराया 25 प्रतिशत तक बढ़ाने की इजाज़त दी है। यानी अगर कहीं जाने के लिए आपको 100 रुपये का टिकट कटवाना होता था तो अब 125 रुपये देने पड़ सकते हैं। हालाँकि, किराया कब से बढ़ना है और कितना बढ़ना है, एचआरटीसी को यह फ़ैसला लेना है।

लंबे समय से सरकार की ओर से इस तरह के बयान आ रहे थे कि किराया बढ़ाया जा सकता है। मगर जनता के बीच विरोध होने के बाद परिवहन मंत्री इस बात से पलट गए थे। पिछली कैबिनेट बैठक के बाद गोविंद ठाकुर का कहना था कि बैठकों में कई विषयों पर चर्चा होती है मगर ज़रूरी नहीं कि हर बात पर फ़ैसला ले ही लिया जाए। मगर इसके कुछ ही दिन बाद अब किराया वाक़ई बढ़ाने की इजाज़त दे दी गई है।

कैबिनेट के फ़ैसलों की जानकारी देने के लिए बैठक के बाद शिक्षा मंत्री सुरेश भारद्वाज मीडिया से मुख़ातिब हुए। उन्होंने कहा, “देश के विभिन्न राज्यों, जैसे कि पंजाब ने भी बसों के किराये बढ़ा दिए हैं। उत्तराखंड ने तो बहुत ही ज़्यादा बढ़ाए हैं। हिमाचल में भी आज बसों का किराया बढ़ाने का फ़ैसला किया गया है। कोविड-19 के कारण 33 प्रतिशत बसें नहीं चल पा रही हैं। डीज़ल के रेट भी बढ़े हैं इसलिए 25 प्रतिशत तक किराया बढ़ाने की मंज़ूरी दे दी गई है।”

इसके आगे उन्होंने फिर कहा, “कैबिनेट बढ़ोतरी नहीं करना चाहता था मगर आस पड़ोस के राज्यों ने हिमाचल से ज़्यादा बढ़ोतरियाँ की हैं।” उनकी इस बात का क्या लॉजिक है, यह समझ से परे है। ज़्यादा बढ़ोतरियाँ पड़ोसी राज्यों द्वारा कर दिए जाने से हिमाचल सरकार कैसे किराया बढ़ाने को मजबूर हुई, यह उन्होंने नहीं समझाया और न ही बाद में पत्रकारों की ओर से सवाल पूछा गया।

आगे उन्होंने कहा, “यहाँ पर प्राइवेट ट्रांसपोर्टर्स और एचआरटीसी की बसें आज की कैपेसिटी में चल रही हैं, उसका एक हफ़्ते में पाँच करोड़ के घाटे में पड़ रही हैं। तो सब इस बर्डन को उठाए, इसलिए इसमें ज़्यादा बढ़ोतरी नहीं की गई है। इसलिए सबके ऊपर थोड़ा थोड़ा बर्डन डाला गया है कि सब इस इसे उठाएं। इसका निर्णय लिया गया है।”

ऐसा हाल तब है, जब बसें फ़ुल कैपेसिटी में चल रही हैं यानी यात्री चिपककर बैठ रहे हैं। उसमें दूरी भी उचित नहीं बन पा रही। सवाल ये है कि बसें 33 प्रतिशत ही चल रही हैं तो बाक़ी बसों को क्यों नहीं उतारा जा रहा? जब प्रदेश में लोगों के आय के साधन कम हो गए हैं, उसी दौर में किराये को 25 प्रतिशत तक बढ़ाने का एलान परेशान करने वाला है। हालाँकि, माना जा रहा है कि बाद में किराया 25 प्रतिशत की बजाय कम बढ़ाया जाए और लोगों को ऐसा संदेश देने की कोशिश की जाए कि सरकार ने उन्हें और राहत देकर कम किराया बढ़ाया है।

भारद्वाज ने कहा कि अब वर्तमान विधायक एचआरटीसी की बसों में मुफ़्त यात्रा नहीं कर पाएँगे। हालाँकि यह भी शोध का विषय है कि हिमाचल का कौन सा सिटिंग एमएलए एचआरटीसी की बसों में यात्रा करता है।

बस किराया बढ़ाने के प्रस्ताव पर हिमाचल के परिवहन मंत्री का यू-टर्न

मास्क न पहनने के लिए पहले खुद पर जुर्माना लगाएं हिमाचल के नेता

इन हिमाचल डेस्क।। खबर है कि हिमाचल प्रदेश सरकार आज मास्क न पहनने पर जुर्माने के प्रावधान का फैसला कर सकती है। आज कैबिनेट की बैठक होने वाली है जिसमें कोरोना संकट के अलावा अन्य कई विषयों पर चर्चा होगी। मगर जो खबर सभी का ध्यान खींच रही है, वो है कोरोना से बचने के लिए बनाए गए नियमों का पालन न करने पर सज़ा का प्रावधान।

सरकार का कहना है कि लोग सार्वजनिक स्थानों पर मास्क नहीं पहन रहे और सोशल डिस्टैंसिंग का ख़याल नहीं रख रहे जिससे कोरोना के फैलने की आशंका है। हिमाचल में इस वक्त ऐक्टिव केस 400 के पार हैं। यह स्थिति देश के बाकी प्रदेशों की तुलना में बेहतर लगती है। जितनी बड़ी संख्या में हिमाचल के लोग बाहर से अपने घर लौटे हैं, उसकी तुलना में वाकई ये आंकड़े काफ़ी अच्छे हैं। मगर इसका मतलब यह नहीं कि हिमाचल में कोरोना है ही नहीं।

हिमाचल में आप कहीं पर भी घूमें, ऐसा लगता है कि जन-जीवन सामान्य सा हो गया है। होना भी चाहिए था, क्योंकि जब कोरोना का कोई टीका और इलाज ही नहीं है तो आप घर पर नहीं बैठ सकते। मगर इस दौरान लोगों को देखकर लगता है कि उनके मन से डर ही ख़त्म हो गया है। न तो व सोशल डिस्टैंसिंग का पालन कर रहे है और न ही मास्क पहन रहे हैं। जिन्होंने मास्क पहना भी होता है, वो नाक को बाहर निकालकर सर्फ मुंह को ढकते हैं। कुछ तो जालीदार मास्क पहनने लगे हैं जिसका कोई मतलब ही नहीं है।

बहुत से लोग नाक बाहर निकालकर ऐसे पहन रहे हैं मास्क तो कुछ का मास्क गले में पड़ा रहता है।

बाज़ारों में हालत खराब है। न तो दुकानदारों ने मास्क पहने होते है और नही ग्राहकों ने। अगर आप उनके बीच मास्क पहनकर चले जाएं तो वे आपकी खिल्ली उड़ाते हैं कि आप डरपोक हैं। कुछ लोगों ने मास्क छोड़कर गले में पटका डालना शुरू कर दिया है, जिसे वे तभी लगाते हैं जब किसी दफ्तर जाना हो। बाकी समय वो उसी से पसीना और हाथ पोंछते हैं। जबकि अगर उन्होंने वायरस वाली सतह को छूने के बाद उस पटके से हाथ पोंछा हो और फिर उसी से नाक-मुंह ढक लिया हो तो तुरंत संक्रमित हो जाएंगे। इन्हें कुछ कहें तो बोलते हैं- प्रधानमंत्री भी तो पटका पहनते हैं।

ये लोगों की कैज़ुअल अप्रोच को दिखाता है। ये नेताओं को भी सबक है कि जिस देश में नासमझों की संख्या अच्छी खासी हो, उन्हें संदेश देने के लिए जबरन प्रयोग नहीं करने चाहिए। इससे भी बड़ी बात ये है कि आज जब हर कोई सोशल मीडिया पर है तो वो देख सकता है कि उसके नेता क्या कर रहे हैं। और इस मामले में हिमाचल प्रदेश सरकार से लेकर विपक्ष तक में बैठे नेता गलत उदाहरण पेश करते रहे हैं।

पिछले दिनों हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री पर सोशल डिस्टैंसिंग का उल्लंघन कर एक हवन कार्यक्रम में सम्मिलित होने के आरोप लगे। ये एक ग़ैर जरूरी आयोजन था और मुख्यमंत्री का इसमें सम्मिलित होना तो और भी अनावश्यक था। वह भी उस अवस्था में जब बाकी लोगों को मंदिर-मस्जिदों में भीड़ लगाने की इजाजत नहीं, शादी समारोहों में 50 से ज़्यादा मेहमानों को बुलाया नहीं जा सकता।

विपक्ष ने सीएम पर नियमों के उल्लंघन को लेकर ज़ोरदार हमला बोला था

सरकार के कई मंत्री तो अक्सर सार्वजनिक स्थानों पर बिना मास्क दिखते हैं और लोगों से घुलते-मिलते हैं। शायद उन्होंने प्रण ले लिया है कि वे बिना मास्क ही रहेंगे। ये लोग ही जनता को मास्क आदि न पहनने को प्रेरित कर रहे हैं। यहां तक कि कुछ सांसदों ने तो कोरोना काल में नाटक करने के लिए जबरन आयोजन करवाए ताकि अपनी प्रासंगिकता दिखा सकें। और हंसी की बात ये है कि सत्ताधारी नेताओं पर नियमों का उल्लंघन करने का आरोप लगाने वाले विपक्षी नेता भी खुद वही करते नजर आते हैं।

कांग्रेस प्रदेशाध्यक्ष कुलदीप राठौर के नेतृत्व में हुए प्रदर्शन में भी उड़ी थीं नियमों की धज्जियाँ

पिछले दिनों शिमला में कांग्रेस ने सरकार के रवैये के विरोध में प्रदर्शन का तो सोशल डिस्टैंसिंग उसमें कोई नाम न था। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष बिना मास्क पहने लोगों के बीच थे। नेता प्रतिपक्ष मुकेश अग्निहोत्री वैसे तो मीडिया के सामने सरकार पर आक्रामक रहते हैं मगर अपने यहां लोगों से मिलते हैं तो सोशल डिस्टैंसिंग और मास्क का उन्हें ख्याल नहीं रहता।

नेता प्रतिपक्ष मुकेश अग्निहोत्री की ऐसी तस्वीरें मौजूद हैं जिनमें वह कोरोना काल में बिना मास्क भीड़ में खड़े हैं।

खुद को अलग स्थापित करने की कोशिश में जुटे रहने वाले शिमला ग्रामीण के विधायक विक्रमादित्य सिंह इन दिनों सोशल मीडिया पर सरकार को घेरते हैं और सीएम पर नियमों के उल्लंघन का आरोप लगाते हैं, मगर उनकी अपनी ही टाइमलाइन में पीछे जाएं तो वह भी कोरोना काल में हुए कई प्रदर्शनों में बिना मास्क नज़र आते हैं।

एक प्रदर्शन के दौरान विक्रमादित्य

कुछ ऐसी तस्वीरें भी हैं, जिनमें वह बिना मास्क के लोगों के साथ खड़े हैं और हाथ भी मिला रहे हैं। जबकि ख़ुद वह सीएम को निशाने पर ले रहे थे कि हवन करके नियम तोड़ा।

यही विक्रमादित्य रविवार को उग्र थे कि सरकार कोरोना के नियमों का पालन नहीं कर रही।

कुल मिलाकर बात ये है कि जिन नेताओं को आदर्श पेश करना चाहिए था, वे ख़ुद गलत उदाहरण पेश कर रहे हैं। जितनी शिद्दत से उन्हें लोगों को जागरूक करना चाहिए था, उसकी जगह वे पूरी ताकत एक-दूसरे पर आरोप लगाने में कर रहे हैं। सरकारी मीटिंगों, बैठकों और मंत्रियों द्वारा विभागों के कामों की समीक्षा की जो तस्वीरें आती हैं, वे दिखाती हैं कि हमारे नेता कितने लावपरवाह हैं। सत्ता और विपक्ष, दोनों के विधायकों की प्रेस कॉन्फ्रेंसों में भी यही आलम दिखता है।

सरकार को मास्क न पहनने पर कार्रवाई के नियम बनाने हैं तो बनाएं। मगर उनमें एक लाइन और जोड़े कि अगर सरकारी अधिकारी, कर्मचारी या सरकारी पैसा लेने वाले लोग (जिनमें मंत्री, विधायक, निगमों-आयोगों के पदाधिकारी या सदस्य) शामिल हैं, वे इन नियमों को तोड़ेंगे तो उनपर दोगुना जुर्माना होगा। इसके साथ ही सरकार पहले अपने मंत्रियों से कहे कि मास्क लगाएं, हूजूम के साथ न चलें, झुंड बनाकर न बैठें। और विपक्ष भी पहले अपने आप को दुरुस्त करे, फिर खबरों में छपने के लिए सवाल उठाए।

पर्यटकों को आने देने के विरोध में कांग्रेस का प्रदर्शन, लगभग एक दर्जन पर केस

शिमला।। कोरोना काल में ही पर्यटकों के लिए हिमाचल की सीमाएं खोलने और बस किराये में बढ़ोतरी के प्रस्ताव के विरोध में कांग्रेस ने प्रदेश सचिवालय के बाहर प्रदर्शन किया और जमकर नारेबाजी की। इस दौरान प्रदर्शन करने वाले करीब लगभग एक दर्जन लोगों के खिलाफ मामला दर्ज किया गया है। इस प्रदर्शन के दौरान सोशल डिस्टेंसिंग की भी धज्जियां उड़ती दिखीं।

कांग्रेस नेताओं का कहना है कि जब तक कोविड-19 की जांच के लिए प्रदेश की सीमाओं पर व्यवस्था नहीं होती, तब तक इस फैसले पर रोक लगाई जाए। उन्होंने कहा कि अगर सरकार ने फैसला नहीं बदला तो कांग्रेस प्रदेश भर में विरोध प्रदर्शन करेगी। इस संबंध में उन्होंने डीसी शिमला अमित कश्यप के माध्यम से मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर को ज्ञापन भी भेजा।

पर्यटकों के आने पर रोक के अलावा कांग्रेस ने बसों में 25 प्रतिशत में किराया वृद्धि का प्रस्ताव रद्द करने, बिजली बिलों में 125 यूनिट के ऊपर की बढ़ोतरी वापस लेने, राशन की सब्सिडी से बाहर किए एपीएल परिवारों को पुन: शामिल करने, कर्मचारी व पेंशन विरोधी निर्णय रद्द करने, कर्मचारियों का भविष्य निधि ब्याज बढ़ाने, सभी कर्मचारियों का डीए बहाल करने, डीजल-पेट्रोल की कीमतें घटाने और बेरोजगारी की मार झेल रहे युवाओं आर्थिक सहायता देने की मांग भी की।