किराया बढ़ोतरी: जनता को भरोसे में लिए बिना क्यों किए जाते हैं फैसले

इन हिमाचल डेस्क।। सोमवार को बसों का किराया 25 फीसदी बढ़ाने की घोषणा कर दी गई और इसके साथ ही जनता की नाराजगी फूट पड़ी। समस्या किराया बढ़ाने से नहीं है, समस्या तरीके से है। पहले इस विषय पर परिवहन मंत्री तक गोलमोल बातें करते हैं और फिर अचानक किराया बढ़ोतरी का बम फोड़ देते हैं। ऐसे में जनता अपने मंत्रियों और नेताओं पर यकीन कैसे करेगी?

पिछली बार भी किराया ऐसे ही बढ़ाया गया था। निजी बस ऑपरेटर भी हमारे बीच से ही हैं और उनके हितों का खयाल रखना भी सरकार की जिम्मेदारी है। लेकिन ये भी सरकार को सोचना चाहिए कि उसके कदमों से बार-बार ऐसा संदेश क्यों जा रहा है कि वो जनता की बजाय ऑपरेटरों को तरजीह दे रही है।

इतिहास में जाएं तो मौजूदा परिवहन मंत्री जब विपक्ष में थे, तब भी निजी ऑपरेटरों की आवाज उठाया करते थे। इसमें कुछ गलत भी नहीं था। लेकिन जब तत्कालीन परिवहन मंत्री ने बिना परमिट चलने वाली वॉल्वो बसों पर नकेल कसी थी तो गोविंद ठाकुर ने इसका विरोध किया था और कहा था कि सरकार इन्हें परमिट न देकर अवैध बता रही है जिसमे टूरिज़म भी प्रभावित हो रहा है। वह ऑपरेटरों के प्रतिनिधिमंडल के साथ उस समय के नेता प्रतिपक्ष प्रेमकुमार धूमल से भी मिले थे।

आज गोविंद ठाकुर खुद परिवहन मंत्री बन चुके हैं, मगर बिना परमिट दौड़ने वालीं वॉल्वो बसों के लिए कोई नीति नहीं बना रहे। ये अवैध वॉल्वो लगातार एचआरटीसी की वॉल्वो को नुकसान पहुंचा रही हैं और कई रूट बन्द होने की कगार पर हैं, तब भी मंत्री चुप हैं। आरटीओ ऑफिस के अधिकारियों और अवैध वॉल्वो ऑपरेटरों पर मिलीभगत के आरोप लगते हैं कि कथित सेटिंग के बिना इतनी बड़ी-बड़ी बसें फिक्स्ड रुट पर नहीं चल सकतीं।

ये अधिकतर बसें पर्यटन नगरी मनाली से हैं जहां से गोविंद ठाकुर विधायक भी हैं। जन प्रतिनिधि होने के नाते उनकी जिम्मेदारी है कि अपने लोगों की आवाज उठाएं। मगर उनके मंत्री बन जाने के बाद उनके विभाग के फैसलों का संयोग से ही उनके करीबियों या क्षेत्र को लाभ मिलने लगे तो यह न चाहते हुए भी हितों के टकराव का मामला बन जाता है।

इससे पहले कि ऐसे सवाल भविष्य में पूरी सरकार को मुश्किल में डालें, सीएम जयराम ठाकुर को इस विषय पर सोचना चाहिए। कोई भी कदम उठाने से पहले सरकार को जनता को भरोसे में लेना चाहिए। अगर मंत्री या अधिकारी गोलमोल बातें करके जवाबदेही से बचने लगेंगे तो सीधा नुकसान प्रदेश के मुखिया को उठाना होगा। बेहतर होता सरकार क्रमिक बढ़ोतरी करती। क्योंकि जो लोग सक्षम हैं, उनके पास अपने वाहन हैं। बसों से यात्रा करने वालों में आज भी तबका ऐसा है जिसके लिए एक-एक रुपये की अहमियत है।

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