देखें: एक दौर में ऐसा था अपना हिमाचल और आज हमने….

0

इन हिमाचल डेस्क।। देश नया-नया आजाद हुआ था और साल 1948 में सरकार ने फिल्म डिविजन की स्थापना की। बाद में जब फिल्मों का चलन बढ़ने लगा, टीवी का चलन शुरू हुआ और भारत में दूरदर्शन की शुरुआत हुई, फिल्म डिविजन ने डीडी के लिए कार्यक्रम वगैरह बनाना शुरू किया। उसी दौर में फिल्म डिविजन ने भारत के विभिन्न इलाकों और वहां की लोक संस्कृति पर डॉक्यूमेंट्रीज बनाईं। पंजाब के उत्तर में कांगड़ा और कुल्लू घाटियों (आज दोनों हिमाचल प्रदेश के जिले हैं) पर एक फिल्म बनाई गई, जो दिखाती है कि हमारा हिमाचल आज से 40 साल पहले तक कैसा था।

इस फिल्म को यूट्यूब पर वैसे तो आजादी से पहले के हिमाचल के टाइटल से किसी ने अपलोड किया है, मगर उस दौर मे कलर विडियोग्रफी के बारे में किसी ने सुना तक नहीं था। बहरहाल, आप देखें कि पहले हिमाचल कैसा सादगी भरा था:

हिमाचल के नेताओं की बेशर्मी की पोल खोलती हैं टांडा मेडिकल कॉलेज की ये 10 तस्वीरें

डेस्क।। डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद मेडिकल कॉलेज, टांडा, हिमाचल प्रदेश। कागजी रूप में हिमाचल का सबसे बड़ा अस्पताल, मगर हकीकत में हिमाचल का सबसे बिगड़ा अस्पताल। पिछले दिनों जब एक दुर्घटना के पीड़ितों को टांडा रेफर किया जाने लगा तो जख्मी लोग बोले- कहीं और भेज दो, टांडा मत भेजो। आखिर क्या वजह है कि टांडा जाने से कतराते हैं लोग? प्रदेश की सरकारें और केंद्र में बैठे प्रदेश के नुमाइंदे लाख दावे करें, मगर हिमाचल प्रदेश में स्वास्थ्य सुविधाओं की हालत क्या है, इसकी पोल टांडा मेडिकल कॉलेज की हालत खोल देती है। जिस प्रदेश का स्वास्थ्य मंत्री सीने में दर्द होने पर पीजीआई चंडीगढ़ जाए, मुख्यमंत्री दांतों का इलाज करने के चंडीगढ़ जाए, उस प्रदेश के अस्पताल कैसे होंगे, अंदाजा लगाया जा सकता है। मगर इन तस्वीरों को देखकर आपको शर्म आ जाएगी अपने नुमाइंदों पर, जो चुनाव आने पर विकास के दावे कर रहे हैं और हर काम का क्रेडिट लेने पर उतारू हैं।

बीते वर्ष नवंबर में एक हिमाचल वासी युवक विनोद कुमार के पिता जी की टांग में फ्रेक्चर आ गया। डांटा मेडिकल कॉलेज के ऑर्थो वॉर्ड में उन्हें ऐडमिट किया गया। अब जाहिर है प्रदेश का सबसे बड़ा अस्पताल होगा तो उम्मीद रहती है सब कुछ बेहतर होगा। मगर वहां की हालत देखकर विनोद कुमार सन्न रह गए। अखबारों में जो वह पढ़ते आए थे, हालात उससे कहीं खराब थे। पीने के पानी का सही इंतजाम नहीं, टॉइलट में सही इंतजाम नहीं, दीवारें ऐसीं कि कभी भी कुछ गिर जाए, पानी लीक हो रहा है, कूड़ेदान लबालब हैं, न कोई ढंग की सफाई है न और व्यवस्था। यहां कोई स्वस्थ आदमी किसी बीमार को लेकर आए तो खुद बीमार होकर लौटे। नीचे देखें वे 10 तस्वीरें, जो सरकारों और राजनेताओं के दावों की पोल खोलती हैं। मुख्यमंत्री और खासकर स्वास्थ्य मंत्री इन तस्वीरों को गौर से देखें और शर्म करें। उम्मीद है कि सभी पार्टियों के अंध समर्थकों की भी नींद खुलेगी, क्योंकि परमात्मा न करे कोई हादसा उनके साथ पेश आए और इसी हॉस्पिटल में ऐडमिट होना पड़े।

सीलिंग उखड़ी हुई है। कभी भी किसी पर गिर सकती है।
सीलिंग उखड़ी हुई है। कभी भी किसी पर गिर सकती है।
जुगाड़तंत्र पर चला है काम
जुगाड़तंत्र पर चला है काम
दीवारों से प्लास्टर तक उखड़ रहा है। निर्माण का स्तर भी घटिया।
दीवारों से प्लास्टर तक उखड़ रहा है। निर्माण का स्तर भी घटिया।
पीने के पानी की व्यवस्था ऐसी हो तो व्यक्ति बीमार हो जाए
पीने के पानी की व्यवस्था ऐसी हो तो व्यक्ति बीमार हो जाए
लोगों को मजबूरी में यहीं से पानी लेना पड़ता है
लोगों को मजबूरी में यहीं से पानी लेना पड़ता है
कीचड़ से सने फर्श को शायद सदियों से साफ नहीं किया गया
कीचड़ से सने फर्श को शायद सदियों से साफ नहीं किया गया
छत पर पाइप साफ नजर आते हैं, जिनमें जंग लग चुका है।
छत पर पाइप साफ नजर आते हैं, जिनमें जंग लग चुका है।
स्ट्रेचर पर लगे खून तक को साफ नहीं किया गया है।
स्ट्रेचर पर लगे खून तक को साफ नहीं किया गया है।
यह वॉशरूम की हालत है
यह वॉशरूम की हालत है
कूड़ेदान को वक्त-वक्त पर खाली नहीं किया जाता
कूड़ेदान को वक्त-वक्त पर खाली नहीं किया जाता

अगर अब भी अपनी उपलब्धियां गिनाते घूम रहे नेताओं को और उनका अंध समर्थन करने वालों को शर्म नहीं आएगी तो प्रदेश का परमात्मा ही मालिक है।

सभी तस्वीरें हमें पाठक विनोद कुमार ने भेजी हैं। आप भी इस तरह की तस्वीरें वगैरह inhimachal.in@gmail.com पर भेज सकते हैं।

हिमाचल प्रदेश की ये पांच बेटियां सेना में बनीं लेफ्टिनेंट

शिमला।। आज अच्छी खबर हिमाचल की बेटियों को लेकर। हिमाचल प्रदेश की बेटियों ने सेना में नर्सिंग का एग्जाम निकालकर लेफ्टिनेंट के तौर पर नियुक्ति पाई है। अभी हमारे पास जिन पांच बेटियों की जानकारी मिली है, उसे आपसे साथ शेयर कर रहे हैं:

1. रोहिणी गुशपा

रोहिणी
रोहिणी

सबसे पहले बोत रोहिणी गुशपा की, जो लाहौल-स्पीति से पहली महिला लेफ्टिनेंट बनी हैं। उन्होंने सेना नर्सिंग सेवा पास करके यह कामयाबी हासिल की है। वह 8 फरवरी को जोधपुर के मेडिकल हॉस्पिटल में जॉइनिंग देंगी।

2. मोनिका

मोनिका
मोनिका

अब बात डेढल गांव की मोनिका की। धर्मपुर उपमंडल के सिधपुर पंचायत के डेढल गांव की मोनिका सेना में लेफ्टिनेंट बन गईं हैं। मोनिका इससे पहले स्टाफ नर्स के पद पर भी चुनी गई थीं और उनकी पोस्टिंग नेरचौक मंडी में हुई थीं। उन्होंने बताया कि उनका टेस्ट सितंबर 2016 में लखनऊ में हुआ था, जिसमें उनका चयन हुआ है। वह आठ फरवरी को झारखंड के रांची में सेना में ज्वाइनिंग देंगी।

3. कंचन बाला

Kanchanकंचन बाला भी लेफ्टिनेंट बनी हैं। तहसील बल्ह के मुंदड़ू गांव की कंचन बाला ने मिलिट्री नर्सिंग सर्विस के लिए शॉर्ट सर्विस कमीशन की परीक्षा पास कर क्षेत्र का नाम रोशन किया है। कंचन बाला 8 फरवरी 2017 से अपनी सेवाएं देंगी।

4. निशा कुमारी

Nishaबल्ह क्षेत्र की नगर पंचायत रिवालसर के वार्ड नंबर 2 की निशा कुमारी ने सेना में लेफ्टिनेंट बनकर इलाके का नाम रोशन किया है। उन्होंने सेना की राष्ट्रीय परीक्षा सितंबर में लखनऊ में दी थी। उन्होंने इस परीक्षा में देशभर में पांचवां स्थान हासिल किया। वह आठ फरवरी से हिसार में अपनी सेवाएं देंगी।

5. अंजना कटोच

अंजना
अंजना

पालमपुर के अरला गांव की बेटी अंजना कटोच भी सेना में लेफ्टिनेंट बन गईं हैं। अंजना आठ फरवरी को वेस्ट बंगाल के कैल्कुलम में एयरफोर्स के हास्पिटल में बतौर लेफ्टिनेंट ज्वाइनिंग देंगी। अंजना के पिता रंजीत सिंह का 2009 में देहांत हो गया था। वह बीएसएफ में हेड कांस्टेबल थे।

तस्वीरें और जानकारी ‘अमर उजाला’ वेबसाइट के हवाले से आभार सहित 

बेटे विक्रमादित्य को शिमला रूरल सीट से लड़वाना चाहते हैं वीरभद्र

शिमला।। मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह ने अपने बेटे विक्रमादित्य सिंह का नाम शिमला रूरल सीट के लिए प्रपोज किया है। गौरतलब है कि अब तक मुख्यमंत्री अपने बेटे के चुनाव में उतरने के सिर्फ संकेत देते रहे हैं।

खबर है कि वीरभद्र सिंह ने अपने सरकारी आवास ओकओवर में शिमला ग्रामीण क्षेत्र से आए कार्यकर्ताओं और अन्य लोगों बातचीत के दौरान यह बात कही। उन्होंने कहा कि मेरी शुभकामनाएं विक्रमादित्य के साथ हैं।

गौरतलब है कि मुख्यमंत्री वीरभद्र इस वक्त खुद शिमला रूरल सीट से विधायक हैं। वह खुद कहां से चुनाव लड़ेंगे, इस बारे में उन्होंने कोई जानकारी नहीं दी है।

हिमाचल में खाया जाता है डंक मारने वाली बिच्छू बूटी का साग

0
विवेक अविनाशी।। गर्मियों के मौसम में हिमाचल की नैसर्गिक आभा को निहारने देश-विदेश से पर्यटक आते हैं। पहाड़ की सर्पीली सडकों से गुजरते हुए किनारों पर लगी खरपतवार को देख कर आकर्षित होना तो स्वभाविक है लेकिन किसी कांटेदार पती को छूने के बाद हाथों में जलन हो तो चौंकियेगा नही..यह वही ऐण है जिस के साग़ का पहाड़ों के व्यंजनों में अहम स्थान है।
हिंदी में इस ऐण को बिच्छूबूटी कहते हैं और इसका वैज्ञानिक नाम Urtica dioica है। इसके तीखे नुकीले काँटों में फार्मिक एसिड होता है जो त्वचा में जलन पैदा करता है।
बिच्छू बूटी


वैसे तो यह हिमालय के सभी क्षेत्रों में पाई जाती है और बहुपयोगी मानी जाती है लेकिन हिमाचल में इस की नर्म और ताज़ी पतियों को चिमटे से इकट्ठा कर थोड़ी देर धूप में सुखाने के बाद मिटटी की हांडी में सरसों के साग़ की तरह घोट कर मक्की के आटे की रोटी साथ इस का सेवन अत्यंत ही लज़ीज़ और पोष्टिक माना जाता है।चिमटे से बिच्छूबूटी के नर्म सिरे को तोड़ कर उसे धूप में सूखा  लिया जाता है और फिर पानी में उबालने के बाद पीस कर साग़ तैयार कर लिया जाता है।

ऐण के कोमल पत्तों का साग उबले हुए देसी अडों और आलू के साथ।
चंबा जनपद के घुमन्तु गद्दी परिवारों में ऐण का साग़ इस मौसम में खूब बनाया जाता है क्योंकि सर्दियों में बिच्छूबूटी मुरझा जाती है। यह खरपतवार तीन से सात फीट लम्बी होती है। इस पर प्रजाति के अनुरूप सफेद अथवा पीले फूल लगते हैं। इसकी सुखी पतियाँ मवेशी भी खा लेते हैं। तितलियों और पतंगों के लार्वों को भी बिच्छूबूटी खूब पसंद है। कहते हैं शरीर के जो अंग सुन्न पड जाते हैं उन पर बिच्छूबूटी लगाने से रक्त-संचार फिर शुरू हो जाता है।
ऐण के महीन कांटों से होने वाले फफोले
विश्व के जिस भाग में भी बिच्छूबूटी उपलब्ध है वहां इसकी पतियों के रस और तने का इस्तेमाल विभिन्न तरीकों से किया जाता है। यह भी सूचना है कि प्रथम विश्व युद्ध के दौरान कपास की कमी के कारण जर्मन सेनाओं की वर्दियां बिच्छूबूटी के तनों के रेशे से तैयार की गयीं थीं।  कहते हैं तिब्बत के महान संत मिलरेपा ने 12 वर्ष  तपस्या के दौरान  केवल बिच्छूबूटी का ही सेवन किया था।उनके बाल और चमड़ी भी हरे रंग की हो गई थी। उत्तराखंड में बिच्छूबूटी को कंदाली व सिसुन्णा कहते है। कश्मीर में इसे सोय के नाम से जाना जाता है।
(लेखक हिमाचल प्रदेश के हितों के पैरोकार हैं और राज्य को लेकर लंबे समय से लिख रहे हैं। इन दिनों इन हिमाचल के नियमित स्तंभकार हैं। उनसे vivekavinashi15@gmail.com पर संपर्क किया जा सकता है)

मृत पाई गईं हिमाचल प्रदेश की ऐक्ट्रेस और मॉडल ऋचा धीमान

धर्मशाला। एक दुख भरी खबर है। हिमाचल प्रदेश की जानी-मानी मॉडल औक ऐक्ट्रेस ऋचा धीमान अब इस दुनिया में नहीं रहीं। हिंदी अखबार पंजाब केसरी की खबर के मुताबिक शुक्रवार को किराए के मकान में उन्होंने खुदकुशी कर ली। हालांकि पुलिस ने मामला दर्ज करके मौत की वजहों की छानबीन शुरू कर दी है।

r

अखबार की रिपोर्ट के मुताबिक ऋचि गमरु में एक किराए में रहती थीं। शुक्रवार सुबह 11.15 बजे धर्मशाला पुलिस को सूचना मिली कि गमरु में किराए के मकान में रह रही एक युवती दरवाजा नहीं खोल रही है। जब जांच की गई तो वह युवती कमरे के अंदर पंखे से फंदे पर लटकती हुई पाई गई।

इस युवती की पहनान ऋचा धीमान (24) पुत्री चमन लाल धीमान निवासी मलां,  तहसील नगरोटा बगवां जिला कांगड़ा के रूप में हुई है। ऋचा धीमान लंबे समय से मॉडलिंग कर रही थीं और हिमाचल में जाना माना चेहरा बन चुकी थीं। हिमाचली परिधान में उनकी तस्वीरें सोशल मीडिया पर हिमाचल के लोगों की पहचान बनी हुई थी।

ऋचा की यह तस्वीर सोशल मीडिया पर हिमाचल प्रदेश की पहचान बन गई है।
ऋचा की यह तस्वीर सोशल मीडिया पर हिमाचल प्रदेश की पहचान बन गई है।

इस बीच ऋचा की माता की शिकायत के आधार पर मामला आई.पी.सी. की विभिन्न धाराओं के तहत दर्ज कर लिया गया है। पुलिस ने मौके पर एक सुसाइड नोट भी बरामद किया है।

यकीन नहीं होता कि कुछ वक्त पहले चहकते हुए हिमाचली म्यूजिक विडियोज में रंग भरने वाली प्रदेश की यह बेटी अब इस दुनिया में नहीं है। इन हिमाचल की टीम श्रद्धांजलि अर्पित करती है। उनके कुछ विडियो नीचे हैं, जो हमें यूट्यूब पर मिले:


नीचे कॉमेंट करके श्रद्धांजलि दें:

लेख: हिमाचल दूसरी राजधानी चाहता था या इन सवालों के जवाब?

0

आशीष नड्डा।। चुनावी वर्ष की बेला में सरकारों की सौगातों की बारिश कोई नई बात नहीं है। समय के साथ-साथ परिपक्व होती जा रही जनता राजनीतिक दलों के इन लोक लुभावन वादों और घोषणाओं को समय के साथ तौल कर देखती है और प्रायः इन शब्दों से रिऐक्शन देती है- “अरे चुनाव का समय है, बहुत कुछ होगा और बहुत कुछ किया जाएगा।” हालांकि दशकों  पहले  ऐसा भी जमाना होता था जब सतचरित्र भोली-भाली जनता ऐसे वायदों पर झूम जाया करती थी। चुनावों में विभिन्न पार्टियों को तुलना की नजरों से देखने का पैमाना यही घोषणाएं और वादे हुआ करते थे।

धीरे-धीरे वक़्त बदला जनता भी समझदार हुई है और पार्टियों के भविष्य की रूपरेखा  के वायदों की जगह वर्तमान और भूत के क्रियाक्लापों कार्यों को तोलने लगी है।  मैथमेटिक्स मॉडलिंग की भाषा में कहा जाए तो चुनाव बहुत ही टेढ़ी इकुएशन है इसमें इतने इनपुट वैरिएबल  हर पार्टी अपनी तरफ से डालती  है की क्या ऑउटपुट  आई और किस कारण से आई  सफलता मिलने पर यह  एक्सएक्टली पता कर पाना भी बहुत मुश्किल है।  इन  इनपुट वेरिएबलस में  एक दूसरे पर लांछन, जबाबदेही माँगना, जातिवाद के समीकरण सेट करना क्षेत्रवाद का तड़का घुसाना, बड़ी बड़ी लोकलुभावन घोषणा करना आदि शामिल हैं।

हिमाचल प्रदेश में धर्मशाला को इसी चुनावी वर्ष में दूसरी राजधानी की सौगात दी जा रही है। इसके लिए कांगड़ा की ऐतिहासिकता धर्मशाला के ब्रांड नाम लोगों की सुविधा आदि इत्यादि कई प्रपंचों के साथ सदृढ़ रूप  से रखने की कोशिश की जा रही है।  इसी शोरगुल जैजैकार विरोध में यह शोध भी बनता है किसी प्रदेश को  दो राजधानिया जनहित में चाहिए होती हैं  है या राजनीतिक हित के लिए चाहिए होती हैं।  इसके लिए  डबल राजधानी कांसेप्ट के इतिहास में जाना होगा।

अंग्रेजों के समय दिल्ली के बाद शिमला को ब्रिटिश हकूमत की  ग्रीषम कालीन राजधानी का दर्जा प्राप्त था उसका कारण था की दिल्ली की गर्मी  लन्दन के गोरे बर्दाश्त नहीं कर पाते थे इसलिए शिमला जैसे ठन्डे स्थान पर समय काटने आते थे। लिहाजा जब सरकारी अधिकारी  यहाँ आ जाते थे तो कामकाज के आफिस भी यहीँ शिफ्ट हो जाते थे उसका जनहित से कोई लेना-देना नहीं था।

ऐसी ही डबल राजधानी का कॉन्सेप्ट जम्मू कश्मीर में आजादी के बाद रहा।  हिन्दू बहुल जम्मू अपने को उपेक्षित महसूस न करे इसलिए जम्मू को शीतकालीन राजधानी का दर्जा दिया गया।  इसका कितना फायदा जम्मू को हुआ यह जम्मू वालों से पूछा जाना चाहिए। डबल राजधानी की डिमांड हमारे पर्वतीय पडोसी उत्तराखंड में भी सुलगती है। उनका कहना है की वहां के एक पर्वतीय नगर गैरसैण को प्रदेश की मुख्य राजधानी बनाया जाए और देहरादून को सिर्फ शीतकालीन। इसके पीछे तर्क है कि  पहाड़ी प्रदेश की राजधानी मैदान में होने के कारण पहाड़ तरक्की की आहट से अछूता है।
यह तो डबल राजधानियों के  इतिहास  की बात थी, अब हम हिमाचल प्रदेश की तरफ रुख करते हैं। धर्मशाला के राजधानी बनने से आम जनजीवन हिमाचल  में क्या फर्क पड़ेगा यह हम सबको निष्पक्षता के साथ सोचना चाहिए। और इस परिपेक्ष में नहीं सोचना चाहिए की इसे कांग्रेस कर रही है या भाजपा कर रही है, बल्कि इस परिपेक्ष में समझना और जानना चाहिए कि यह हिमाचल प्रदेश के लिए हो रहा है तो इसका फायदा है या नुकसान। सही से, ईमानदारी से राजधानी स्थापित करनी हो तो अरबों रुपए के बजट की व्यव्यस्था करनी होगी इसलिए हर हिमाचली के मन में चाहे हो कांगड़ा घाटी से सबंध रखता हो चाहे मंडी से सबंध रखता हो उसके मन में यह विचार और जस्तिफिकेशन रहनी चाहिए की राजधानी बनने से क्या होगा। क्या अरबों का वह बजट आम जनता या प्रदेश के लिए डेल्टा एक्स इंप्रूवमेंट दे पाएगा या नहीं।
राजधानी आखिर है क्या बला? इसपर पहले बात करते हैं  मेरे अनुसार  राजधानी  “शासन और प्राशासन ” का मुख्यालय है। जहाँ से सरकार चलती है जहाँ हर विभाग के मंत्रीं संतरी बैठते हैं फैसले लेते हैं।  एक आम व्यक्ति के जीवन में राजधानी का कितना सरोकार है।  एक आम आदमी को राजधानी में क्यों जाना पड़  सकता है।  किसी मंत्रीं से मिलने के लिए।  किसी बड़े अधिकारी से मिलने के लिए।  इससे आगे तो मुझे कुछ नजर नहीँ आता की आम आदमी के कार्यों की उड़ान ऐसी हो की उसे महीने में तीन बार राजधानी जाना पड़ता हो।  मैं अपने  अनुसार  सोच रहा हूँ अपने गाँव के  लोगों के आधार पर अपने मित्रों के आधार पर गणना कर रहा हूँ  की मेरे जानने वाले लोग कितनी बार जीवन में शिमला इसलिए गए हैं की उन्हें एक राजधानी में काम था और वो राजधानी में ही होना था इसलिए आप भी सोचिये और विचार कीजिये।  की जनता को राजधानी में ऐसा क्या काम रहता है की राजधानी घर के पिछवाड़े में होनी चाहिए?
अब अगर मंत्रियों से मिलने में आसानी रहे मंत्रीं घर द्वार मिल जाएँ इसके लिए अरबों खर्च करके एक राजधानी बनाई जा रही हो तो इस खर्च को कोई भी विज़नरी शासक चुटकी में ऐसे बचा सकता है की यह सुनिश्चित करदे की हर मंत्री हर जिले के हेड  क्वार्टर में  दो महीने में  एक बार 2   दिन के लिए अपनी टीम के साथ बैठंगे और उस जिले की जनसमस्या  सुनेंगे।  प्रदेश का सौभाग्य है की यहाँ जनसंख्या कम और  जिले बारह है।  रोटेशन वाइज क्या ऐसा नहीं हो सकता की।  वनमंत्री 1-2   फरवरी को बिलासपुर में  बैठे हों  स्वास्थय मंत्रीं चम्बा में कहीं हों।  लोकनिर्माण विभाग मंत्रीं कांगड़ा में डटे हों आदि इत्यादि। और यह भी देखा जाए की शिमला सचिवालय में मंत्रीं मिल जाते हैं क्या आम  जनता को सुलभ रूप से? मॉडर्न टेक्नोलॉजी के दौर में मंत्रियों के बैठने के लिए राजधानी बनांने से अच्छा यह नही  है की किसी सरकारी वेबसाइट पर यह इनफार्मेशन हर दिन अपडेट हो अभी अगले तीन दिन बाद कौन मंत्रीं शिमला सचिवालय में कब से कब उपलब्ध होगा।  ताकि हम घर से देख ले चले की उपलब्ध है की नहीँ है।
अभी तो यह है की मंत्री जी शिमला में हैं की नहीँ है कब होंगे यह पता करना भी आम आदमी के बस में नहीं हैं।  आपको अपने इलाके से मंत्रीं जी की पार्टी का कोई जुगाड़ू कार्यकर्ता सेट करना पड़ेगा तब जाकर वो आपको बताएगा की मंत्रीं जी फलानि जगह उस टाइम होंगे।  सोचिये इक्कसवों सदी में सुचना इन्टरनेट स्मार्टफोन के युग में डेमोक्रेसी के दौर में हम यह   बिना सार्थक जुगाड़ के पता भी नहीँ कर सकते की मंत्रीं जी कहाँ हैं कब मिलेंगे।  मिलना कन्फर्म है की नहीं है। हाल ये है की किस्मत सही हो तो शिमला में मिल जाएंगे नहीं सही तो  वापिस आयो और अगली बार घर से निकलने से पहले  दरवाजे पर रखे पानी के कुम्भ में 1 रूपया का सिक्का डाल के दुबारा शिमला  चलो।
दूसरी बात सामने निकल कर आती है की  राजधानी में  विभिन्न विभागों के बड़े बड़े कार्यालय होते हैं  टॉप अधिकारी बैठते हैं। चलो एक विभाग की बात करते हैं मसलन IPH अब आप सोच के देखिये।    IPH विभाग में कभी जे ई , SDO और XEN से ऊपर   आम आदमी को काम पड़ा है ? सिर्फ इस स्तर तक के अधिकारी फील्ड में योजनायों के क्रियान्वन के लिए जनता से जुड़े  होते हैं।  इससे ऊपर भी चीफ इंजिनीयर तक जिला मुख्यालयों में बैठे हैं।  उससे ऊपर के जो अधिकारी हैं वो अपने अपने विभाग की पालिसी मेकिंग , बजट आदि इत्यादि देखते हैं।  अब पालिसी  शिमला से बन रही हो या धर्मशाला से या कहीं सिरमौर में कहीं बैठ के आम जनता को क्या फर्क पड़ता है ?  शिमला की जगह पॉलिसी बनांने वाले किसी ईमारत में आकर धर्मशाला में बैठ जाएंगे तो इसमें क्या जनहित हो जाएगा कांगड़ा चम्बा हमीरपुर बिलासपुर की जनता का क्या भला हो जाएगा ?
कहा जा रहा है की धर्मशाला ऐतिहासिक शहर है इसलिए राजधानी बनाया जा रहा है।  अब क्या  किसी शहर की ऐतिहासिकता राजधानी के तमगे की मोहताज रहती है ? इस हिसाब से तो दिल्ली की तरह हिन्दोस्तान की 50  राजधानियां होनी चाहियें ताकि बाकी शहरों की ऐतिहासिकता बरकरार रहे।
हिमाचल क्या चाहता है इस पर चिंतन जरुरी है।  क्या यह अरबों खर्च करके एक राजनीतिक राजधानी चाहता है  या बेरोजगारों की कतारों,  बद्दी में उद्योगपतियों के हाथों पिसते मिनिमम वेजिस सैलरी के लिए संघर्ष करती जवानियों के उद्धार के लिए रोडमैप चाहता है?  ऑक्सिजन सिलेंडर के अभाव में जिस प्रदेश में लोग काल का ग्रास बन जाते हैं,  जहाँ IGMC जैसे अस्पताल बिजली  जाने पर जेनरेटर से  सप्लाई चलाने में सक्षम सेल्फ सस्टेन नहीं हैं,  जहाँ  एक माँ बर्फ को चीर कर पांच घंटे पैदल चलकर  अपने बच्चे को  हॉस्पिटल में पहुंचाती है और जोनल जिले के सबसे बड़े अस्पताल (मंडी )  में तीन वेंटिलेटर होने पर भी उसे चलाने वाला कोई नहीं मिलता।
मां के अदम्‍य साहस के आगे पिघला बर्फ का पहाड़

जिस प्रदेश में कागजी यस नो में फंसे हेलिकॉप्टर के इन्तजार में लाहौल-स्पीति में हैलीपैड पर बच्चे का जन्म हो जाता है,  जिस प्रदेश में हर साल तारकोल पड़ने पर सड़कें फिर उखड जाती हैं,  असंख्य जलधाराओं वाले जिस प्रदेश में गर्मी में पेयजल के लिए सैंकड़ों गाँवो में  हाहाकार मच जाता है, शिक्षा व्ययस्था जहाँ धूल फांक रही हो; क्या वो प्रदेश यह सब छोड़ कर अरबों रूपए की एक नई राजधानी चाहता है? क्या वो प्रदेश यह सब छोड़ कर  एक नई राजधानी चाहता है, जिसको बसाने के लिए अरबों रुपये बहाये जाएँ?  क्या यह धन और जगह अन्य कार्यों में खर्च नहीं किया जा सकता?  पूरा कांगड़ा छोड़िये, धर्मशाला का ही एक आम आदमी राजधानी के तमगे से क्या पा लेगा, यह चिंतन हम सबको  जिला क्षेत्र  की मानसिकता से बाहर आकर  हिमाचल प्रदेश के वासियों  के रूप में  और हिमाचलीयत के भाव से  करना होगा।

(हिमाचल प्रदेश से संबंधित विषयों पर विचार रखने वाले लेखक IIT दिल्ली में रिसर्च स्कॉलर हैं साथ ही रिन्यूएबल एनर्जी के क्षेत्र में काम करने वाली कंपनी सन्कृत एनर्जी के कंसल्टेंट भी हैं। उनसे aashishnadda@gmail.com पर संपर्क किया जा सकता है।)

इस लेख के संबंध में अपनी राय पाठक नीचे कॉमेंट करके दे सकते है।

चंबा में बकरे का मीट बताकर बेच दिया भैंस के बच्चे का मांस

चंबा।। हिमाचल प्रदेश के चंबा जिले की साहो घाटी में भैंस के चार माह के बच्चे का मांस बेचने का मामला सामने आया है। पुलिस ने मांस को जांच के लिए कब्जे में लेकर छानबीन शुरू कर दिया है। घटना को अंजाम देने वाले आरोपियों को हिरासत में लेने के बाद जमानत पर रिहा कर दिया गया है।

हिंदी अखबार पंजाब केसरी की रिपोर्ट के मुताबिक एएसपी.चम्बा वीरेंद्र सिंह ठाकुर ने बताया कि हनीफ पुत्र नूरमाही निवासी गांव चंदडेड के करीब चार माह के भैंस के बच्चे की पिछले दिनों मौत हो गई। उसने भैंसे के इस बच्चे के मांस को बेचने के लिए तिलक पुत्र धर्म चंद निवासी गांव कुठार के साथ मिलकर साजिश रची।

तिलक ने योजना के अनुसार मंगलवार को 50 से 150 रुपए प्रति किलो के हिसाब से हिंदू समुदाय के लोगों को भैंसे के मांस को बकरे का मीट बता कर बेच दिया। कुछ लोगों ने मंगलवार शाम को अपने परिवार के साथ मिलकर इसका सेवन भी कर लिया। शेष बचे हुए मांस को साहो मुख्य बाजार में लाकर तिलक ने बुधवार को बेचने का प्रयास किया। बकरे के मीट को इतने कम मूल्य पर बेचने के साथ मीट के साथ लगे बालों को देखकर स्थानीय दुकानदार सुरिंद्र को कुछ आशंका हुई। उसने जब अन्य लोगों के साथ इस बारे में आशंका जताते हुए तिलक से सख्ती के साथ पूछताछ की तो सारी पोल खुल कर सामने आ गई।

(Source: Punjab Kesari)
(Source: Punjab Kesari)

साहो पंचायत प्रधान सत्या देवी सहित पंचायत के अन्य प्रतिनिधियों को इस बारे में सूचित किया गया। सूचना मिलने पर पंचायत प्रधान व अन्य पंचायत प्रतिनिधि मौके पर पहुंचे और उन्होंने मामले के बारे में पूरी जानकारी हासिल करने के बाद पुलिस को सूचित किया। सूचना मिलते ही सदर थाना प्रभारी दिनेश धीमान ने पुलिस टीम के साथ मौके पर पहुंच कर जांच प्रक्रिया को अमल में लाते हुए दोनों आरोपियों को पकड़ कर लोगों समक्ष पूछताछ की तो उन्होंने भैंस के 4 माह के बच्चे का मांस होने की बात कबूली।

आरोपियों की निशानदेही पर ही हनीफ के घर में भैंस के बच्चे की कटी हुई गर्दन व शरीर के कुछ अन्य अंग बरामद किए। इस भैंस के बच्चे को काटने के लिए इस्तेमाल में लाए गए उपकरणों को भी पुलिस ने कब्जे में ले लिया है। इस मौके पर कुछ लोगों ने अपने पास मौजूद उस मांस को भी पुलिस के पास जमा करवा दिया है जो उन्होंने मंगलवार को तिलक से खरीदा था। सी.एफ.एल. में जांच के लिए भेजा मांस पुलिस ने मामला दर्ज कर जांच शुरू की तथा दोनों आरोपियों को गिरफ्तार करने के बाद जमानती मुचलके पर रिहा कर दिया। पुलिस ने भैंस के बच्चे के करीब चार किलो मांस को अपने कब्जे में लेकर उसकी पशु चिकित्सक से जांच करवाई तो प्रथम दृष्टि में भैंस के बच्चे का मांस होने की पुष्टि हुई। उक्त चिकित्सक की उपस्थिति में मांस को सी.एफ.एल. में जांच के लिए भेजने हेतु उसे पैक किया गया।

सोनी टीवी के संकटमोचक महाबली हनुमान में हिमाचल की बेटी अनिता

इन हिमाचल डेस्क।। हिमाचल प्रदेश का टैलंट आज विभिन्न क्षेत्रों में अच्छा प्रदर्शन करके न सिर्फ अपना, बल्कि अपने राज्य का भी नाम रोशन कर रहा है। इस कड़ी में एक और नाम जुड़ा है अनिता ठाकुर चोना का।

मंडी जिले के जोगिंदर नगर में जन्मीं अनिता ठाकुर चोना सोनी टीवी पर संकटमोचक महाबली हनुमान सीरियल में नजर आ रही हैं। महिरावण की बहन दुर्दुभी की भूमिका में अनिता काफी प्रभावी नजर आ रही हैं।

durdubhi
दुर्दुभी की भूमिका में अनिता (Courtesy: Sony TV)

बल्ह जोली के डलाणा गांव में जन्मीं अनिता ने अपनी स्कूलिंग चंबा से की। इसके बाद उन्होंने केएमवी जालंधर से मास कम्यूनिकेशन की पढ़ाई की। कॉलेज के बाद उन्हें टीवी 24 न्यूज चैनल में काम किया। कुल्लू और जालंधर में कुछ रीजनल चैनल्स में भी काम किया। दरअसल उनके पिता कुल्लू में NHPC में काम करते थे, ऐसे में 2 साल वहीं पर स्थानीय चैनल में न्यूज ऐंकरिंग की।

अनिता ठाकुर चोना
अनिता ठाकुर चोना

हमेशा से बड़े ख्वाब देखने और उन्हें पाने के लिए कड़ी मेहनत करने वाली अनीता की शादी चंबा के मृदुल चोना से हुई। शादी के बाद वह पति के साथ मुंबई शिफ्ट हो गईं। यहां पर अनीत ने अपने टैलंट के हिसाब से संभावनाएं तलाशना शुरू कर दिया। इसी दौरान उन्हें संकटमोचन हनुमान सीरियल में ब्रेक मिला। वह सोनी टीवी पर आने वाले इस सीरियल में नजर आ रही हैं।

बचपन से टैलंटेड रही हैं अनिता
बचपन से टैलंटेड रही हैं अनिता

हमेशा से खेल, ऐक्टिंग और ड्रॉइंग में अव्वल रहने वालीं अनिता को हमेशा से परिवार का पूरा सहयोग मिला। अनिता के भाई अनिल ने इन हिमाचल से बातचीत करते हुए बताया कि छोटे से गांव से होने के बावजूद पैरंट्स ने हम भाई-बहनों को अच्छी शिक्षा दी और प्रोत्साहित किया।

ani

पिता संसार चंद ठाकुर और मीरा ठाकुर के साथ भाई अनिल ठाकुर को अनिता पर गर्व है। साथ ही इलाके के लोगों में भी खुशी है कि बेटी नाम रोशन कर रही है। महिरावण की बहन की भूमिका में अनिता के विडियो देखने के लिए यहां पर क्लिक करें

दुर्दुभी की भूमिका में अनिता
दुर्दुभी की भूमिका में अनिता

ये हैं 2016 के असली हीरो, जिन्हें हिमाचल कभी नहीं भुला सकता

साल के आखिर में हमने सबको याद कर लिया। कौन सी घटनाएं, कौन से गाने और कौन से लोग चर्चा में रहे। कहीं कुछ छूट तो नहीं गया?

साल के आखिर में जब हम सोचते हैं कि हमने इस साल क्या खोया, क्या पाया; तब दरअसल हम सिर्फ अपने बारे में सोच रहे होते हैं। मगर इससे बढ़कर भी कुछ है, जिसे याद किया जाना चाहिए। याद करना छोड़िए, हमें उसे कभी भूलना ही नहीं चाहिए। वह याद, वह स्मृति तो हमेशा दिल में रहनी चाहिए।

हम बात कर रहे हैं प्रदेश के उन वीर जवानों की, जिन्होंने देश के लिए अपने प्राणों की आहुति दे दी। कुछ सीमा रेखा पर पाकिस्तानी सेना को मुंहतोड़ जवाब देते हुए शहीद हुए, कुछ आतंकी हमलों के शिकार हुए, कुछ ने उत्तर-पूर्व के जंगलों में उग्रवादियों से जूझते हुए जान गंवाई तो कुछ ने नक्सलियों से लोहा लेते हुए शहादत पाई।

हमारा हृदय उन परिवारों के लिए द्रवित है, जो इस साल का जश्न नहीं मना पाएंगे, क्योंकि उन्होंने अपनों को खोया है। बात सिर्फ सेना के जवानों या अर्धसैनिक बलों या पुलिसवालों की नहीं है, उन लोगों की भी है जिन्होंने परहित में जान गंवा दी। ऐसे भी मामले आज प्रदेश में देखने को मिले, जहां जंगल की आग बुझाने के चक्कर में लोग जल मरे। कुछ ने अन्य वाहनों को बचाने के चक्कर में बस ऐसे मोड़ी कि खुद हादसे के शिकार हो गए। कुछ तेज जलधारा में बह रहे लोगों को बचाने में बह गए।

ऐसी महान आत्माओं की लिस्ट नहीं बनाई जा सकती। क्योंकि हर किसी की खबर अखबार की सुर्खियों में नहीं आई। ऐसे में कुछ का नाम लिस्ट में लिखना और कुछ को छोड़ देना ठीक नहीं है। इसीलिए हमने शहीदों की लिस्ट बनाना उचित नहीं समझा। मगर देश के लिए सीमा पर जान गंवाने वालों के साथ-साथ हम उन सभी को भी सलाम करते हैं, जिन्होंने कुछ अच्छा करते हुए, अपनी ड्यूटी निभाते हुए कहीं भी जान गंवाई है। फिर वह किसी पुल के निर्माण कार्य में लगा मजदूर हो या लोगों को उनकी मंजिल पर पहुंचाने निकला ड्राइवर। हम उनके परिवारों से भी सहानुभूति रखते हैं।

हम कामना करते हैं कि नया वर्ष सभी के लिए सुरक्षित रहे। किसी परिवार को अपना कोई भी अकाल न खोना पड़े। और हम सब की भी कोशिश होनी चाहिए कि हम अपनी जिम्मेदारियों को समझते हुए चलें। प्रदेश और देश को आगे ले जाएं। नए साल की शुभकामनाएं।

जय हिंद।

पढ़े: हिमाचल प्रदेश के 10 लोग, जो साल 2016 में चर्चा में रहे