धर्मशाला: अनुभवहीन ही नहीं बल्कि विवादित भी रही है बेलारूस की कंपनी SkyWay

धर्मशाला।। हिमाचल प्रदेश ने बेलारूस की एक कंपनी के साथ धर्मशाला में स्काइवे ट्रांसपोर्ट फैसिलिटी शुरू करने के लिए एक अग्रीमेंट साइन किया है। SkyWay टेक्नॉलजी कॉर्पोरेशन के साथ इसके लिए MoU साइन हुआ है। SkyWay बेलारूस की ट्रांसपोर्ट और इन्फ्रास्ट्रचरल डिवेलपमेंट कंपनी है। हिमाचल प्रदेश के शहरी विकास मंत्री सुधीर शर्मा ने कहा कि धर्मशाला पहला ऐसा शहर होगा जिसमें यह ट्रांसपोर्ट फैसिलिटी उचित रेट पर उपलब्ध होगा। उन्होंने कहा कि 1 किलोमीटर स्काइवे ट्रैक डिवेलप करने में 38 करोड़ रुपये का खर्च आएगा। उन्होंने बताया कि इससे न सिर्फ पर्यटकों को लाभ होगा बल्कि स्थानीय लोग इसके जरिए सामान भी ढो सकेंगे। SkyWay नाम की जिस कंपनी के साथ MoU साइन हुआ है, उसके बारे में In Himachal ने रिसर्च किया तो कई चौंकाने वाली बातें सामने आईं। यूरोप में इस कंपनी के फंड जुटाने के तरीके पर सवाल उठ चुके हैं। सबसे बड़ी बात यह है कि इस कंपनी ने अभी तक पूरी दुनिया में कहीं पर भी वैसा स्ट्रिंग ट्रांसपोर्ट सिस्टम स्थापित नहीं किया है, जैसा वह धर्मशाला में स्थापित करने जा रही है। अभी तक उसका कॉन्सेप्ट सिर्फ कॉन्सेप्ट है और धरातल पर टेस्टिंग फील्ड से बाहर नहीं निकला है। यानी धर्मशाला में वह पहली बार ऐसा सिस्टम कमर्शल स्केल पर लगा रही होगी।

90 के दशक में रूस से अलग हुए बेलारूस की कंपनी SkyWay विभिन्न देशों में कंपनियां बनाकर अपने इस कॉन्सेप्ट को बेचने की कोशिश कर रही है, मगर वहां सफलता मिलती नहीं दिख रही। इस कंपनी ने बेलारूस की राजधानी मिंस्क में अपना एक “टेक्नोपार्क” बनाया है जहां पर वह अपने कॉन्सेप्ट की टेस्टिंग करती है और जो लोग उसके प्रॉजेक्ट में रुचि लेते हैं, उन्हें यहां पर डेमो दिया जाता है। अभी भारत में दो जगह इस कंपनी को अपना आइडिया बेचने में कामयाबी मिली है- झारखंड और हिमाचल प्रदेश। झारखंड में तो इस कंपनी और एक अन्य कंपनी के साथ वहां की सरकार ने सिर्फ ‘लेटर ऑफ इंटेंट’ साइन किया है मगर हिमाचल में ‘MoU’ साइन कर लिया गया है। लेटर ऑफ इंटेंट में किसी तरह की बाध्यता नहीं होती जबकि MoU आपको बाध्य बनाता है। चिंता की बात यह है कि कल को इस कंपनी का प्रॉजेक्ट फेल भी हो सकता है, उसके लिए जिम्मेदार क्या वे लोग नहीं होंगे जिन्होंने बिना रिसर्च के यह MoU साइन किया। इंटरनेट पर विभिन्न पोर्टल्स पर सबसे बड़ा सवाल इस कंपनी के फंड जुटाने के तरीकों पर उठाया गया है। यूरोपीय देशों में इसे लेकर कई विवाद रहे। हमने विभिन्न स्रोतों से जानकारियां जुटाईं जिनमें से कुछ इंटरनैशनल न्यूज पोर्टल हैं तो कुछ जानकारियां हमें इस कंपनी की वेबसाइट से ही मिलीं। इस आर्टिकल में In Himachal ने अपनी तरफ से कुछ भी दावा नहीं किया है। इस जानकारी के आधार पर वे सवाल जरूर खड़े किए गए हैं जो आम नागरिकों के जहन में आते हैं। सभी बातों के लिए उनका सोर्स साथ में दिया गया है जहां जाकर आप  (स्रोत )  पर क्लिक करके जानकारी वेरिफाई कर सकते हैं।

पैसा कहां से लाती है SkyWay?
प्रश्न उठता है कि पूरी दुनिया में जब किसी ने भी कमर्शल लेवल पर SkyWay की सेवाएं नहीं लीं तो उसके पास Techno Park में प्रोटोटाइप (शुरुआती मॉडल) तैयार करने का पैसा कहां से आया? इस सवाल का जवाब यह है कि कंपनी अफिलिएट मार्केटिंग से क्राउडफंडिंग से पैसे जुटाती है। 2014 की शुरुआत से उसने पैसे जुटाना शुरू किया है। 2014 में यूरोप के देश लिथुएनिया के बैंक ऑफ लिथुएनिया ने इन्वेस्टर्स को चेताया था- ‘अज्ञात लोग लिथुएनिया के निवासियों को ‘नेक्स्ट जेनरेशन स्ट्रिंग ट्रांसपोर्ट’ में इन्वेस्ट करने के लिए अपनी प्राइेवेट लिमिटेड कंपनी यूरोएज़ियन रेल स्काइवे सिस्टम्स लिमिटेड के ऑनलाइन शेयर खरीदने के लिए आमंत्रित किया है। इसके लिए इस कंपनी ने संबंधित अथॉरिटी से अप्रूवल नहीं लिया है (स्रोत) ।’  उसी साल SkyWay के मालिक यूनित्स्की ने लिथुएनिया में Rail Skyway System Ltd. के नाम से कंपनी रजिस्टर कर ली।

लिथुएनिया में लगे थे फर्जीवाड़े के आरोप
लिथुएनिया के कई प्रतिष्ठित एनालिस्ट्स जिनमें स्वेडबैंक के इकॉनमिस्ट Nerijus Mačiulis भी शामिल थे, ने आशंका जताई थी कि यूनित्स्की (स्काइवे के मालिक) की कमर्शल स्कीमें स्कैम भरी हो सकती हैं क्योंकि इन्वेस्टर्स को लंदन स्थित कुछ तगड़ी कंपनियों का हवाला दिया जा रहा था (स्रोत)। ये कंपनियां थीं- यूरोएज़ियन रेल स्काइवे सिस्टम्स, अमेरिकन रेल स्काइवे सिस्टम्स लिमिटेड, अफ्रीकन रेल स्काइवे सिस्टम लिमिटेड, ऑस्ट्रेलियन ऐंड ओशनिक रेल स्काइवे सिस्टम्स लिमिटेड और लिथुएनिया में नई खोली गई रेल स्काइवे सिस्टम्स लिमिटेड (इन हिमाचल ने पाया कि इनमें कुछ कंपनियां अब डिसॉल्व की जा चुकी हैं)। इन सभी कंपनियों ने अपना कैपिटल 235.1 बिलियन ब्रिटिश पाउंड बताया था। कंपनियों के मालिक यूनित्स्की की इन कंपनियों में 10 पर्सेंट हिस्सेदारी थी। इस हिसाब से तो कंपनी के मालिक यूनित्स्की को फोर्ब्स के 10 सबसे अमीर लोगों की सूची में आ जाना चाहिए था यानी बिल गेट्स जैसे अरबपतियों की श्रेणी में। मगर फोर्ब्स की सूची में उनका कहीं पर भी नाम नहीं (स्रोत)

लिथुएनियन बैंक के सुपरविजन डिपार्टमेंट ने ऐलान किया था कि यूनित्स्की की कंपनी जो बिजनस बता रही है, उसमें फाइनैंशल पिरामिड के कोई संकेत नहीं है। यही नहीं, सुपरविजन डिपार्टमेंट ने लिथुएनिया के प्रॉसिक्यूटर जनरल के ऑफिस में गैरकानूनी व्यावसायिक गतिविधि और फ्रॉड के शक में शिकायत दी थी। लिथुएनिया में तो इस कंपनी पर यह आरोप भी लगे थे कि रूस के नागरिक की यह कंपनी, जिसकी फंडिंग साफ नहीं है, हमारे यहां NATO के बेस के पास टेस्टिंग फसिलिटी बनाना चाहती है तो यह नैशनल सिक्यॉरिटी के लिए खतरा है (स्रोत)। भारी विरोध के बाद कंपनी को लिथुएनिया से हटकर बेलारूस की राजधानी मिंस्क में यह टेस्टिंग फसिलिटी बनानी पड़ी जिसे उसने टेक्नो पार्क का नाम दिया है।

पूरी दुनिया में कहीं नहीं है फंक्शनिंग कमर्शल SkyWay
सबसे पहली बात तो यह है कि SkyWay दरअसल बेलारूस के एक इंजिनियर और इन्वेंटर एनातोली यूनित्सकी (Anatoly Yunitskiy) की कंपनी है। एनातोली 1980 के दशक से अपने इस स्ट्रिंग ट्रांसपोर्ट सिस्टम की बात कर रहे हैं मगर पूरी दुनिया में कहीं भी इसके लिए अब तक रुचि पैदा नहीं हुई। इसके बाद एनातोली की कंपनी SkyWay ने कई नामों से कंपनियां खड़ी कीं। SkyWay जिस ट्रांसपोर्ट सिस्टम की बात कर रहा है, वह दुनिया में कहीं पर भी ट्रांसपोर्ट के लिए इस्तेमाल नहीं किया जा रहा। सिर्फ बेलारूस की राजधानी मिंस्क में स्काइवे ने खुद अपना एक टेक्नो पार्क बनाया है, जहां पर उसने अपने प्रॉजेक्ट के प्रोटोटाइप (शुरुआती मॉडल) लगाना शुरू किया है ताकि ग्राहकों को डेमो दिया जा सके(स्रोत) ध्यान रहे कि यह पार्क बनकर पूरा नहीं हुआ है और इसपर काम चल रहा है। कंपनी का खुद कहना है कि 2018 तक यह पूरा होगा। इसके अलावा दुनिया भर में कहीं पर भी आपको फंक्शिनिंग स्काइवे नहीं मिलेगा। 2016 में रूस की ट्रांसपोर्ट मिनिस्ट्री की एक्सपर्ट काउंसिल ने माना की SkyWay स्ट्रिंग टेक्नॉलजी इनोवेटिव है और अधिक जानकारी जुटाई जानी चाहिए। मगर इस बारे में कोई जानकारी उपलब्ध नहीं है कि सरकार ने स्काईवे से कुछ खरीदा है या कॉन्ट्रैक्ट किया है या नहीं।

दरअसल अभी तक टेस्टिंग के फेज में ही है स्ट्रिंग रेल
पहला स्ट्रिंग रेल टेस्ट ट्रैक 2001 में रूस के कस्बे ऑजियरी (Ozyory) में बनाया गया था। इस टेस्ट ट्रैक की लंबाई सिर्फ 150 मीटर थी। फंडिंग न मिलने की वजह से इन्वेंटर इस टेस्ट ट्रैक के लिए रेलकार नहीं बना बना पाए थे। इसलिए उन्होंने ट्रैक पर दौड़ाने के लिए मॉडिफाइड ट्रक इस्तेमाल किया था जिसमें सड़क वाले पहियों को हटाकर लोहे वाले पहिए लगाए गए थे। बाद में इस प्रॉजेक्ट को यूएन हैबिटैट से फंडिंग मिली। प्रक्रिया से ही साफ हो चुका होगा कि यह जुगाड़ से किया गया एक्सपेरिमेंट था।

रूस वाली टेस्टिंग फसिलिटी

साल 2008 में खाबरोव्स्क (Khabarovsk) में पायलट रूट बनाने की योजना बनाई गई। मगर मॉस्को स्टेट यूनिवर्सिटी ऑफ रेलवे इंजिनियरिंग के स्पेशलिस्ट्स ने प्रॉजेक्ट का नेगेटिव असेसमेंट दिया और कहा कि इसे जमीन पर नहीं उतारा जा सकता (स्रोत)। 2013 में न्यू साउथ वेल्स में रिसर्च करके पैसेंजर रेल के तौर पर स्ट्रिंग ट्रांसपोर्ट सिस्टम की व्यावहारिकता पर और शोध किया गया।

6 महीने पहले ही तैयार हुए हैं रेलकार
पूर्वी यूरोप के बेलारूस में मिंस्क के मारियाना होर्का (Maryina Horka) में प्रोटोटाइप ईकोटेक्नोपार्क सेटअप किया जा रहा है जिसमें टेस्ट ट्रैक हैं जहां कंपनी अपनी टेक्नॉलजी को शोकेस करती है। इस प्रॉजेक्ट को 2018 तक पूरा करने का टारगेट रखा गया है। कंपनी ने रेलवे एग्जिबिशन इनोट्रांस 2016 में अर्बन रेलकार (जिसमें लोग बैठेंगे) U4-210 और पर्सनल लाइट रेलकार U4-621 के सैंपल शोकेस किए थे। 2016 के आखिर तक कंपनी ने U4-621 के ट्रायल शुरू कर दिए थे। यानी कंपनी ने कुछ ही महीने पहले रेलकार बनाकर दिखाए और वह भी पहली बार टेस्टिंग के लिए (स्रोत)। इसमें भी रोज बड़ी संख्या में लोग ट्रैवल नहीं करते, इसलिए यह सिर्फ कॉन्सेप्चुअल बात है कि यह सिस्टम ऐक्सिडेंट प्रूफ है।

यह प्रश्न उठना लाजिमी है कि जब 1 किलोमीटर के ट्रैक के लिए 38 करोड़ रुपये खर्च होने वाले हों, उसके लिए ऐसी कंपनी को क्यों पकड़ा जा रहा है कि जिसे प्रैक्टिकल अनुभव नहीं है। ठीक है कि नई कंपनियों को मौका दिया जाना चाहिए क्योंकि कहीं न कहीं से तो शुरुआत होनी चाहिए। मगर दुनिया जब यूरोप में ही इसे ट्रांसपोर्ट के लिए इस्तेमाल नहीं किया जा रहा तो हिमाचल प्रदेश ने आधे-अधूरे प्रॉजेक्ट को क्यों लागू करने का फैसला किया? इस प्रॉजेक्ट की फाइनैंशल फिजिबिलिटी क्या है? इस प्रॉजेक्ट के लिए MoU साइन करने से पहले कौन-कौन विभागों के इंजिनियर्स ने सहमति दी थी? किस आधार पर दावा किया जा रहा है कि 100 साल तक यह टिकेगी? ‘इन हिमाचल’ का मानना है कि जनता के टैक्स के पैसे को यूं ही किसी कंपनी के एक्सपेरिमेंट के लिए तो नहीं बहाया जा सकता, इसलिए कोई भी कदम उठाने से पहले रिसर्च करना जरूरी है। एक नागरिक के तौर पर चिंता करना जरूरी है कि सरकार ने MoU साइन करने से पहले कंपनी के बारे में उचित रिसर्च किया था या नहीं। जब इंटरनेट पर ही इतनी सारी जानकारी जुटाने में हम कामयाब हुए तो प्रदेश सरकार की जिम्मेदारी बनती है कि आधिकारिक सूत्रों से कंपनी और उसकी योग्यता के बारे में रिसर्च करवाया जाए।

पढ़ें: सपने दिखाने वाली कंपनी से MoU में जल्दबाजी क्यों?

वायरल हुआ हिमाचली युवकों का मनोरंजक वीडियो ‘पहाड़ी लोगों के प्रकार’

इन हिमाचल डेस्क।। फेसबुक शुरुआत में दोस्तों और रिश्तेदारों वगैरह से जुड़ने का भर का एक जरिया था मगर आज यह बहुत बड़ा प्लैफॉर्म बन चुका है। समाचार से लेकर मनोरंजन तक आप यहां पा सकते हैं। इंटरनेट की पहुंच जैसे-जैसे भारत में बढ़ रही है, वैसे-वैसे लोग स्मार्टफोन खरीद रहे हैं और फेसबुक व यूट्यूब आदि भी इस्तेमाल कर रहे हैं। इससे भारतीयों की क्रिएटिविटी को भी एक मंच मिला है। पूरी दुनिया में फेसबुक पर बहुत से आर्टिस्ट मनोरंजक वीडियो बनाते हैं और वे खूब पसंद किए जाते है। भारत में भी ऐसे कई यूट्यूबर्स हैं जिनके फनी वीडियो छाए हुए हैं। हिमाचल प्रदेश भी इस मामले में पीछे नहीं हैं। हम अभी तक आपको कई कलाकारों से मिलवा चुके हैं और उनके वीडियो भी दिखा चुके हैं। आज हम आपको Pahaadi Highlanders से मिलवाने जा रहे हैं जो हिमाचल प्रदेश के कलाकार हैं।

पहाड़ी हाइलैंडर्स का एक वीडियो फेसबुक पर खूब पसंद किया जा रहा है। इसका टाइटल है- TYPE OF PAHADI GUYS यानी पहाड़ी आदमियों के प्रकार। जैसा कि नाम से साफ है, इसमें मजे लेते हुए हल्का-फुल्का व्यंग्य किया गया है। देखें:

इस तरह के वीडियोज और कॉन्टेंट के लिए Like करें इन हिमाचल का फेसबुक पेज: In Himachal on facebook

अब बंबर ठाकुर ने रामलाल ठाकुर पर लगाया करोड़ों के करप्शन का आरोप

बिलासपुर।। हिमाचल प्रदेश के बिलासपुर में घमासान मचा हुआ है। पहले प्रदेश कांग्रेस महासचिव रामलाल ठाकुर ने बिलासपुर सदक के एमएलए बंबर ठाकुर पर 200 करोड़ रुपये के घोटाले का आरोप लगाया था। अब बंबर ने पलटवार करते हुए रामलाल ठाकुर और उनके बेटे पर करोड़ों के भ्रष्टाचार का आरोप जड़ा है। उन्होंने कई गंभीर आरोप लगाते हुए रामलाल ठाकुर को चुनौती दी कि सीबीआई और कोर्ट को लिखित शिकायत दें और उसपर मैं भी दस्तखत करूंगा। बंबर ने रामलाल के बेटे पर आरोप लगाया कि कीरतपुर से धराड़सानी तक का फोरलेन निर्माण का जो ठेका लिया है, उसके लिए रेत-बजरी और पत्थर कहां से आ रहे हैं।

बंबर ठाकुर ने कहा, ‘खाला खड्ड से रेत-बजरी रामलाल के लोग निकाल रहे थे और नाम मेरा लिया जा रहा था। मामला तब सामने आया जब एसएचओ बरमाणा ने कार्रवाई की और ट्रकों को पकड़ा पकड़े गए सभी लोग रामलाल ठाकुर और रणधीर शर्मा के थे। रही बात खैर कटान मामले की तो हाईकोर्ट के जज से जांच करने की मांग मैंने खुद की थी। राम लाल ठाकुर ने तो सीमेंट कंपनी में अपने बेटे की 200 बोगियां लगा गरीब लोगों के रोजगार का हक मारा है। उनमें नियमों को ताक पर रखकर ओवरलोडिंग की जा रही है। नौ टन की जगह 40 टन लाया जा रहा है, उसका टैक्स कौन भरेगा?’

बंबर ने कहा, ‘श्री नयना देवी के पांच ब्लॉकों में खैर के हजारों पेड़ काटे गए। रामलाल ठाकुर ने इसकी जांच की मांग क्यों नहीं की?” बंबर ने कहा कि रामलाल ठाकुर, सुरेश चंदेल और रणधीर शर्मा की मिलीभगत है। राम लाल और सुरेश चंदेल ने बस अड्डे के पास जमीन पर बहुमंजिला भवन तैयार किया है जिससे 10 लाख किराया आता है। उन्होंने कहा, ‘भाजपा के सुरेश चंदेल के साथ मिलकर रामलाल मुझे बदनाम करने का षड्यंत्र रचते रहे हैं। अब उन्होंने आरोप लगाकर साफ कर दिया है कि षडयंत्रकारी कौन है।

रामलाल ने कहा, ‘मैंने एमएलए बनने से पहले एक बस खरीदी, कारोबार बढ़ता गया और पांच बसें हो गईं। इसके बाद हैंडपंप लगाने वाली मशीनें खरीदी और जेसीबी भी खरीदी। विधायक बनने से पहले मैंने करोड़ों कमाए और लोगों में बांट भी दिए। मगर रामलाल ठाकुर बताएं कि वह एमएलए बनने से पहले क्या थे और उनके पास करोड़ों-अरबों की जायदाद कहां से आई?’ इसके जवाब में रामलाल ठाकुर ने कहा, ‘मेरे बेटे के कारोबार की बीजेपी सात बार जांच करवा चुकी है। मेरा बेटा कारोबारी है और किसी संवैधानिक पद पर नहीं है। बेटे की कंपनी पंजीकृत है। सभी बोगियां फाइनांस कंपनी से लोन लेकर खरीदी गई हैं। बस अड्डे के पास जो दुकान है, सोसायटी की है। विधायक अपनी खाल बचाने के लिए ऐसी बयानबाजी कर रहे हैं।’

गौरतलब है कि कांग्रेस के इन नेताओं का एक-दूसरे की पोल खोलना पूरे प्रदेश में चर्चा का विषय बना हुआ है। पहले ही मुख्यमंत्री के करप्शन के मामले में बैकफुट पर आई कांग्रेस अब और नुकसान झेलती दिख रही है। रामलाल ठाकुर ने बंबर पर 200 करोड़ रुपये के घोटाले का आरोप लगाया है। यही नहीं, रामलाल ने आरोप लगाया है कि बंबर ठाकुर के पंजाब के तस्करों से रिश्ते है। उन्होंने बंबर पर फोरलेन हाइवे के एक ऑफिसर से 1 लाख रुपये बतौर कमिशन लेने का भी आरोप जड़ा। उन्होंने कहा कि बंबर खैर के पेड़ो के कटान से लेकर अवैध खनन में जुटे हैं और मेरे पास पूरे सबूत हैं। उन्होंने मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह से मांग की है कि इन आरोपों की जांच सीबीआई से करवाई जाए।

पढ़ें: बंबर ठाकुर पर रामलाल ठाकुर ने लगाए गंभीर आरोप

कंडाघाट थाने के 18 पुलिकर्मियों का तबादला: बाबा अमरदेव की पहुंच का असर?

सोलन।। सोलन के कंडाघाट के रामलोक के विवादित बाबा अमरदेव ने आखिरकार अपनी राजनीतिक पहुंच का असर दिखा दिया है। एक महिला को तलवार से हमला करके घायल करने वाले इस बाबा की स्थानीय लोगों ने पिटाई कर दी थी। इस बाबा के दरबार कई केंद्रीय मंत्री घुटने टेका करते थे मगर खुद मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह की तस्वीरें सामने आई थीं जिसमें वह बाबा का हालचाल जानने अस्पताल आए थे। सीएम से मुलाकात के 48 घंटों के अंदर ही कंडाघाट पुलिस स्टेशन पर तैनात 18 पुलिसकर्मियों का तबादला कर दिया गया है। पूरे इलाके में लोग पुलिसकर्मियों के इस तबादले को बाबा अमरदेव के हिमाचल सरकार के एक मंत्री से रिश्ते और मुख्यमंत्री से मुलाकात के साथ जोड़ रहे हैं। एसपी सोलन ने कंडाघाट के एसएचओ दलीप सिंह समेत 18 पुलिस कर्मियों का तबादला किया है। एसआई संदीप कुमार को एसएचओ कंडाघाट लगाया गया है। चूंकि, रविवार को मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह ने अस्पताल जाकर बाबा अमरदेव से मुलाकात की थी। ऐसे में इस कार्रवाई को उस मुलाकात के असर के रूप में देखा जा रहा है।

गौरतलब है कि यह वही बाबा है जिसके ऊपर सरकारी जमीन पर कब्जा करने, जंगली जानवरों के अंगों और अवशेषों की तस्करी का आरोप है। पुलिस और सीआईडी की टीम ने यहां छापा मारकर तेंदुए की चार खालें और बहुत सी तलवारें बरामद की थीं। इसके बाद ग्रामीणों का आरोप है कि इस बाबा ने महिला पर तलवार से हमला कर दिया जिसमें वह बुरी तरह जख्मी हो गई। इसके बाद गुस्साए लोगों ने बाबा पर हमला कर दिया। स्थानीय लोगों का कहना है कि बाबा संदिग्ध गतिविधियों में शामिल है और मौजूदा सरकार के कई मंत्रियों की शह मिली हुई है। लोगों का कहना है कि अब ये आरोप सही साबित होते नजर आ रहे है।

ठाकुर कौल सिंह (बाएं) और शांडिल के साथ बाबा अमरदेव

चर्चा है कि बाबा अमरदेव ने कंडाघाट पुलिस की शिकायत सीएम से की और एक मंत्री ने भी मुख्यमंत्री पर दबाव डाला। इसके बाद आनन-नन में कंडाघाट पुलिस के हरेक कर्मचारी का तबादला कर दिया गया है। इस कदम से पुलिसकर्मियों मे भी नाराजगी देखे को मिल रही है। ‘एमबीएम न्यूज नेटवर्क’ के पास आई ट्रांसफर लिस्ट को देखें तो सोलन में 63 पुलिसकर्मियों के तबादले हुए है। यह भी कहा जा रहा है कि महिला पुलिसकर्मियों तक को नहीं बख्शा गया है।

कौन है बाबा अमरदेव
स्थानीय लोगों के मुताबिक मंदिर स्थित बाबा के दरबार में कई बड़े मंत्री और अधिकारी हाजिरी लगाने आते रहते हैं, जिनमें सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्री व सोलन के विधायक डॉ. कर्नल धनीराम शांडिल भी हैं। बाबा अमरदेव की संदिग्ध गतिविधियों पर ग्रामीणों की नजर काफी दिनों से है। कई बार पुलिस में इसके खिलाफ सूचना भी दी जाती रही थी। इस साल अप्रैल में पुलिस और सीआईडी की टीम ने सटीक जानकारी मिलने के बाद मंदिर में संयुक्त रूप से छापेमारी की।

पुलिस जब मंदिर के भीतर घुसी तब बाबा तेंदुए की खाल पर बैठा हुआ था। जब उनको आसन से उठाया गया तब उस पर और तीन खालें बिछी हुई थीं। इसके बाद मंदिर में से एक और खाल बरामद की गई। गिरफ्तार किए जाने पर बाबा अपने बचाव में इसे भक्तों का दिया हुआ उपहार बता रहा था।

बाबा अमरदेव तेंदुओं की खालों के साथ

सरकारी जमीन कब्जाने का आरोप, मंत्री की शह
गौरतलब है कि रामलोक मंदिर कुछ ही वक्त पहले बनना शुरू हुआ है, अब तक इसमें लाखों रुपये लगाए जा चुके हैं। मंदिल के लिए सरकारी जमीन कब्जाने का भी आरोप है। यहां पर राम परिवार की विशाल मूर्तियों के अलावा हनुमान जी की साढ़े 10 फुट ऊंची 11 मुखी मूर्ति की स्थापना की गई है। स्थानीय लोगों के मुताबिक कुछ ही समय पहले प्रदेश के सामाजिक न्याय एवं सहकारिता मंत्री ने यहां के मंदिर की 108 सीढ़ियों के लिए अपने बजट से मुहैया कराया था। बाबा इस घटना के बाद फिर अपने आश्रम लौट आया और कुछ ही दिनों बाद महिला पर तलवार से हमला करने की घटना सामने आ गई।

बाबा अमरदेव ने सुरक्षा को लेकर हाई कोर्ट में गुहार लगाई थी और कोर्ट के आदेश पर सरकार ने सुरक्षा पर भी दी है। स्थानीय लोगों का कहना है बाबा बनावटी बातें करता है और मासूम लोगों को धर्म और आस्था के नाम पर ठग रहा है। ऐसे भी बहुत से लोग हैं जो बाबा को गलत मानने को तैयार नहीं है।

प्रश्न यह है कि क्या मंदिर, धर्म के नाम पर किसी को भी सरकारी जमीन पर कब्जा करने, मासूम जानवरों को मारकर उनकी खाल पर विराजने और महिलाओं पर तलवार से हमला करने का लाइसेंस मिल जाता है? क्या ऐसा करने वाले लोग ही धर्म और आस्था के लिए खतरा नहीं हैं? इस मामले में जांच की जरूरत है मगर जब सरकार के मंत्री ही ऐसे तत्वों से करीबी रिश्ते रखेंगे और पुलिसकर्मियों के तबादले होंगे तो किससे उम्मीद रखी जाए।

पढ़ें: नए विवाद में फंसा सोलन का हाई प्रोफाइल बाबा

(एमबीएम न्यूज नेटवर्क से ली गई जानकारी के साथ)

लजीज ही नहीं, सेहत के लिए भी फायदेमंद हैं ‘आक्खे’ या ‘येलो हिमालयन रास्पबेरी’

प्रतीक बचलस।। हिमाचल प्रदेश प्राचीन काल से ही जड़ी बूटियों से समृद्ध रहा है।  यहां कई जड़ी-बूटियां तथा बड़े ही दुर्लभ प्रकार के फल भी पाए जाते हैं। आज हम सब एक ऐसे ही फल के बारे में जानेंगे। आक्खे (Yellow Himalayan Raspberry) हिमाचल में पाई जाने वाली एक बेरी है। यह मुख्यत: उत्तराखंड, हिमाचल, पंजाब, नेपाल,असम तथा कश्मीर में पाए जाते हैं। इसका बोटैनिकल नाम Rubus ellipticus है। इसके पौधे 700 – 2000 मी. तक कि ऊँचाई वाले क्षेत्रों में पाए जाते हैं। इसके पौधों में फूल मुख्यत: फरबरी के अंत और मार्च की शुरुआत तक आते हैं। मार्च और अप्रैल से लेकर मई तक इसमें फल लगते रहते हैं जो देखने में लजीज होती हैं। ध्यान रहे, इसकी टहनियां कंटीली होती हैं।

आक्खे सेहत के लिए भी अच्छे हैं। शोध में इसमें कई गुणकारी चीजे जैसे कि विटामिन सी , फ़ास्फ़रोस, कैल्शियम, मैग्नीशियम व आयरन पाए गए हैं। इन सब से हम ये पता लगा सकते है कि ये एक बहुत अच्छा ऐंटीऑक्सिडेंट हो सकता है क्योंकि ऐंटीऑक्सिडेंट मुख्यता विटामिन ए(A),सी (C), ई(E) व क (K) में पाए जाते हैं व इसमे विटामिन सी(C) पाया गया है। ऐंटीऑक्सिडेंट हमारे शरीर मे मौजूद फ्री रेडिकल्स को खत्म करता है। ये फ्री रेडिकल्स हमारे शरीर के लिए बहुत हानिकारक होते है। इनसे कई तरह की बीमारियां होने का खतरा होता है। इनमे से कैंसर मुख्य बीमारी है।य दि हम ऐंटीऑक्सिडेंट्स का पर्याप्त मात्रा में सेवन करते हैं तो हम स्वस्थ रहेंगे। इसके अलावा विटामिन सी ऐंन्टी एजिंग यानी कि बुढ़ापा आने से रोकने में सहायक है। विटामिन सी शरीर की त्वचा को बूढ़ा करने वाले फैक्टर को कम करता है और त्वचा जवान रहती है। इस सब से हमे ये पता चलता है कि ये कितना गुणकारी है।

आक्खे

यदि सरकार का ध्यान इसकी खेती की तरफ जाए तो शायद किसानों को कुछ लाभ हो सकता है।सरकार ने फलों की खेती पर ठीक ध्यान दिया है, उन्होंने 1985 में डॉक्टर वाई .एस .परमार विश्वविद्यालय बागवानी व वानिकी शिक्षा संस्थान की स्थापना की है व वहाँ कई शोध हो रहे हैं जो प्रदेश की अर्थव्यवस्था में अपना योगदान दे रहे है। परंतु इस फल को अनदेखा किया जा रहा है। इसे महज एक घास-फूस और कंटीली झाड़ी समझकर नजरअंदाज किया जा रहा है। प्रदेश सरकार हमेशा से ही फलों उगाने के लिए बागवानों को प्रेरित करती रही है। अभी सरकार सेब की बागवानी या अन्य फलों की बागवानी को प्रोत्साहित कर रही है। ऐसा नहीं है कि सरकार गलत कर रही है। ऐसे प्रयासों की सराहना होनी चाहिए मगर सरकार को आक्खों की तरफ भी ध्यान देना चाहिए। इसपर रिसर्च भी करना चाहिए ताकि पुष्टि हो जाए कि यह फायदेमंद है या नहीं।

आक्खों की खेती का एक फायदा यह भी है कि इसपर ज्यादा खर्च नहीं उठाना पड़ेगा। इसे कहीं भी लगाया जा सकता है। खाद की भई जरूरत नहीं होती क्योकि कहीं भी उग सकता है। इससे किसानों को फायदा होगा। इनका जूस, शेक और आइसक्रीम बनाकर आर्थिक लाभ लिया जा सकता है।

(लेखक हिमाचल प्रदेश के ऊना से हैं और नैशनल ऐग्री फूड बायोटेक्नॉलजी रिसर्च इंस्टिट्यूट में सेवाएं दे चुके हैं। उनसे prateekdcoolest120@gmail com पर संपर्क किया जा सकता है।)

बंबर ठाकुर पर रामलाल ठाकुर ने लगाया 200 करोड़ रुपये के घोटाले का आरोप

बिलासपुर।। अक्सर विवादों में रहने वाले बिलासपुर सदर से कांग्रेस के विधायक बंबर ठाकुर पर उन्हीं की पार्टी के प्रदेश महासचिव रामलाल ठाकुर ने 200 करोड़ रुपये के घोटाले का आरोप लगाया है। यही नहीं, रामलाल ने आरोप लगाया है कि बंबर ठाकुर के पंजाब के तस्करों से रिश्ते है। उन्होंने बंबर पर फोरलेन हाइवे के एक ऑफिसर से 1 लाख रुपये बतौर कमिशन लेने का भी आरोप जड़ा। उन्होंने कहा कि बंबर खैर के पेड़ो के कटान से लेकर अवैध खनन में जुटे हैं और मेरे पास पूरे सबूत हैं। उन्होंने मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह से मांग की है कि इन आरोपों की जांच सीबीआई से करवाई जाए। बंबर ठाकुर ने इन आरोपों को निराधार बताया है और कहा है कि जांच से मुझे कोई परहेज नहीं है।

रामलाल ठाकुर ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में बंबर को घेरते हुए पूछा कि बिलासपुर में तय माइनिंग क्षेत्र न होने के बावजूद फोरलेन के लिए रेत-बजरी और पत्थर कहां से आ रहा है और इसके अनुमति पत्र किसके नाम पर हैं। उन्होंने कहा कि इसकी जांच होनी चाहिए। उन्होंने कहा कि बंबर ने सरकार को पिछले 4 साल में 200 करोड़ रुपये का चूना लगाया है। उन्होंने कहा कि फोरलेन के कामों में किसके टिप्पर लगे हैं, यह भी चेक होना चाहिए। राम लाल ठाकुर ने कहा, ‘इससे पहले कि एक व्यक्ति की वजह से पार्टी को नुकसान हो, मुख्यमंत्री को कड़े कदम उठाने चाहिए।’ नीचे देखें एक पेज द्वारा शेयर किया गया वीडियो:

रामलाल ठाकुर ने विधायक पर दादागिरी के भी आरोप लगाए। उन्होंने कहा कि अगर कोई आवाज उठाए तो उसे धमकाया जाता है या फिर उसका तबादला कर दिया जाता है। उन्होंने कहा, ‘महिला RTO को धमकाने और DFO से मारपीट का मामला सबको पता है। पंजाब के तीन-चार लोग खैर की तस्करी में लगे हैं। इस बारे में पंजाब के एक विधायक ने शिकायत भी की थी कि ये लोग बीजेपी से जुड़े हैं मगर उनका बिलासपुर सदर के विधायक के साथ है।’ रामलाल ठाकुर ने कहा कि सभी विभागों के अधिकारी डर के मारे कुछ नहीं बोल रहे हैं और सबसे खराब हालत पुलिस की है।

गौरतलब है कि कुछ दिन पहले बंबर ठाकुर के बेटे पर मारपीट के आरोप लगे थे। इसके बाद लोगों ने आंदोलन भी किया था मगर अब वह मामला गोल हो गया है। इस बार उन्हीं की पार्टी के वरिष्ठ नेता ने बंबर पर आरोप लगाए हैं जो काफी संगीन हैं। जानें, अमर उजाला की रिपोर्ट के मुताबिक रामलाल ठाकुर ने बंबर पर कौन से 10 मुख्य आरोप लगाए हैं:

  1. बंबर ठाकुर ने 200 करोड़ रुपये का घोटाला किया है।
  2. बंबर के रिश्ते पंजाब के तस्करों से हैं।
  3.  फोरलेन हाइवे के एक अफसर से 1 लाख रुपये कमिशन लिया।
  4. खैर के पेड़ों की तस्करी करने वालों से हैं विधायक के रिश्ते।
  5. अवैध खनन में जुटे हैं विधायक, मेरे पास इसके सबूत भी हैं।
  6. 4 साल में सरकार को लगाया 200 करोड़ का चूना।
  7. फोरलेन के कामों में किसके टिप्पर लगे हैं, जांच हो।
  8. दादागिरी करते हैं विधायक, धमकाया जाता है और तबादले किए जाते हैं।
  9. महिला RTO को धमकाया गया, DFO से मारपीट की गई।
  10. सभी विभाग दहशत में, पुलिस की हालत भी पतली है।

पढ़ें: बंबर ठाकुर के बेटे पर मारपीट के आरोप के बाद तनाव

आय से अधिक संपत्ति केस में वीरभद्र सिंह और प्रतिभा सिंह बतौर आरोपी समन

नई दिल्ली।। आय से अधिक संपत्ति के मामले में स्पेशल कोर्ट ने हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह को आरोपी के तौर पर समन भेजा है। सीबीआई द्वारा दायर की गई चार्जशीट का संज्ञान लेते हुए अदालत ने वीरभद्र सिंह और उनकी पत्नी प्रतिभा सिंह समेत 9 आरोपियों को 22 मई को हाजिर होने के लिए कहा है।

इस केस में अन्य आरोपियों के नाम चुन्नी लाल चौहान, जोगिंदर सिंह घाल्टा, प्रेम राज, वकामुल्ला चंद्रशेखर, लवण कुमार रोच और राम प्रकाश भाटिया हैं। सीबीआई की 500 पन्नों की चार्जशीट में दावा किया गया है कि 82 साल के वीरभद्र सिंह ने केंद्रीय मंत्री रहते हुए आय के ज्ञात स्रोतों  से इतर अवैध ढंग से 10 करोड़ रुपये जुटाए।

इस मामले में मुख्यमंत्री वीरभद्र और 8 अन्य के खिलाफ 225 गवाहों और 442 के आधार पर दंडनीय अपराधों की धाराएं लगी हैं। रिपोर्ट में एलआईसी अजेंट आनंद चौहान का भी नाम है जो अभी न्यायिक हिरासत में है। चौहान को ईडी ने पिछले साल 9 जुलाई को इस मामले से संबंधित मनी लॉन्डरिंग के अन्य मामले में गिरफ्तार किया था।

कोर्ट से मिले इस झटके के बाद अब वीरभद्र सिंह और हिमाचल कांग्रेस की मुश्किलें बढ़ती हुई नजर आ रही हैं क्योंकि अब तक मुख्यमंत्री और उनका परिवार इस केस को जेटली और अनुराग की राजनीतिक साजिश बता रहा था। मगर अब कोर्ट द्वारा आरोपी के रूप में बुलाए जाने के बाद बीजेपी को हमलावर होने का मौका मिल गया है।

150 साल पहले ऐसी नजर आती थी हिमाचल प्रदेश की कुल्लू घाटी

इन हिमाचल डेस्क।। हिमाचल प्रदेश आज से 150 साल पहले कैसा था, कभी सोचा है? इंटरनेट की अच्छी बात यह है कि उस दौर में कुछ लोगों ने जो तस्वीरें खींची थीं, अब इंटरनेट पर उपलब्ध हैं। वरना बाहर के फटॉग्रफर्स की खींची ये तस्वीरें उनकी अलबमों में कैद रह जातीं। ऐसी ही कुछ तस्वीरें आए दिन विभिन्न पेज शेयर करते हैं। एक फेसबुक पेज ने 1860 के दशक की कुल्लू घाटी की तस्वीरें शेयर की हैं। इनसे पता चलता है कि घाटी तो वैसी ही है, बस निर्माण बेतहाशा हो गया है। इनमें से कुछ तस्वीरों से हमें अपने पूर्वजों के रहन-सहन की भी झलक मिलती है। तस्वीरें तब की हैं जब ‘हिमाचल’ नाम के प्रांत का अस्तित्व तक नहीं था। ये तस्वीरें Tharah Kardu- ठारा करडू नाम के पेज से इंबेड की गई हैं। देखें:

नीचे दी गई तस्वीर में आपको मसक (mussock) दिखेंगे। दरअसल ये बड़े जानवरों की खाल होती थी जिसे फूंक मारकर फुलाया जाता था। इसके जरिए नदी पार की जाती थी क्योंकि यह डूबता नहीं था। ऐसी ही खालों में पानी भी भरकर ढोया जाता था। तस्वीर 1860 के आसपास की है। सैम्युअल बोर्न ने कुल्लू घाटी में ब्यास नदी के तट पर ली थी। (अगर आपको तस्वीरें नजर न आएं तो यहां क्लिक करके हमारी मोबाइल साइट पर जाकर देंखें)

ऐसी ही एक और तस्वीर। बैकग्राउँड में देखिए पुल बनाया जा रहा है। लंबे दरख्तों को एक के ऊपर एक लॉक करके पुल बनाए जाते थे। बरोट से आगे लुहारडी में ऐसा पुल अभी भी देखने को मिल जाएगा।

कुल्लू घाटी

बजौरा (1866)

मन मोह लेंगी हिमाचल प्रदेश की ये खूबसूरत तस्वीरें

इन हिमाचल डेस्क।। हिमाचल प्रदेश के प्राकृतिक सौंदर्य की कई तस्वीरें सोशल मीडिया पर देखने को मिल जाती हैं जो मन मोह लेती हैं। फेसबुक के फोटो शेयरिंग ऐप इंस्टाग्राम पर भी हिमाचल के कई लोग फोटो डालते है। इनमें से कुछ प्रफेशनल फटॉग्रफर हैं तो कुछ पर्यटक। कुछ ऐसे इंस्टाग्राम अकाउंट भी हैं जो विभिन्न फोटो डालते हैं। आज हम हिमाचल की कुछ ऐसी ही तस्वीरें शेयर करने जा रहे हैं। विभिन्न जगहों पर ली गईं ये तस्वीरें हिमाचल को बहुत खूबसूरती से दिखाती हैं।

नीचे हम जो तस्वीरें दिखा रहे हैं, उन्हें इंस्टाग्राम अकाउंट instagram.com/unravelhimachal/ से एंबेड किया गया है। देखें:

 

बिहार बीजेपी के पूर्व प्रदेशाध्यक्ष मंगल पांडे बने हिमाचल प्रभारी

शिमला।। बिहार में बीजेपी के पूर्व प्रदेशाध्यक्ष मंगल पांडे को भारतीय जनता पार्टी ने हिमाचल प्रदेश का प्रभारी नियुक्ति किया है। उनसे पहले श्रीकांत शर्मा यह जिम्मेदारी संभाल रहे थे मगर अब वह उत्तर प्रदेश सरकार में मंत्री बन गए हैं। इसके बाद हिमाचल के लिए नए प्रभारी की तलाश की जा रही थी जो मंगल पांडे पर आकर खत्म हुई है।

बिहार के सीवान जिले के भृगु बलिया गांव में जन्मे मंगल पांडे का राजनीति सफर साल 1989 में शुरू हुआ था। 2005 में वह बिहार भाजपा के महासचिव बने थे। 2012 में वहां विधान परिषद के सदस्य भी बने। साल 2013 में पार्टी ने अचानक उन्हें प्रदेशाध्यक्ष बनाया था। वह महज 44 साल की उम्र में प्रदेशाध्यक्ष बने थे। बाद में 2016 में उनका कार्यकाल खत्म होने पर नित्यानंद राय को यह जिम्मेदारी सौंपी गई थी जो ओबीसी समुदाय से हैं।

ध्यान देने वाली बात यह है कि बिहार में साल 2015 में हुए विधानसभा चुनाव के वक्त मंगल पांडे की प्रदेशाध्यक्ष थे। प्रदेश अध्यक्ष के रूप में मंगल पांडे पर भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह द्वारा तय किए गए मिशन 185 के लक्ष्य को हासिल करने की जिम्मेदारी थी। उस वक्त पार्टी की सीटें पिछले चुनावों के मुकाबले कम हो गई थीं।  2010 विधानसभा चुनाव में बीजेपी को 91 सीटें मिली थीं मगर 2015 में ये घटकर 53 रह गई थीं।

बिहार विधानसभा चुनावों की तुलना

इनमें से 27 सीटें शहरी इलाकों की थीं। इससे संकेत मिला था कि बिहार में बीजेपी अपने पारंपरिक सपॉर्ट बेस में सिमट गई थी जो शहरों मे रहता है। बीजेपी बिहार के ग्रामीण इलाकों में पहुंच बनाने में नाकाम रही थी। ध्यान देने वाली बात यह है कि बिहार में सिर्फ 11.3 पर्सेंट आबादी ही शहरी इलाकों में रहती है, जो कि भारत में हिमाचल के बाद दूसरे नंबर पर है।