मुख्यमंत्री वीरभद्र के बेटे विक्रमादित्य के प्रमोशन पर सरकारी पैसा खर्च हो रहा है?

शिमला।। हिमाचल प्रदेश में मौजूदा कांग्रेस सरकार ने प्रदेश के युवाओं को तो बेरोजगारी भत्ते के लिए लाइनों में खड़ा करवा दिया मगर मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह के बेटे का राजनीतिक करियर सेट करने के लिए पैसा पानी की तरह बहाया जा रहा है। वह सरकारी पैसा जो करदाताओं यानी आम जनता की जेब से जाता है। जी हां, यह कोई अतिशयोक्ति या खोखला आरोप नहीं बल्कि प्रत्यक्ष दिख रही बात है। फेसबुक पर एक प्रोफाइल है- Shimla Grameen. इस प्रोफाइल पर हिमाचल प्रदेश यूथ कांग्रेस के अध्यक्ष और मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह के बेटे विक्रमादित्य सिंह की तस्वीर प्रोफाइल पिक्चर लगी है और कवर पेज पर उनके साथ वीरभद्र सिंह भी हैं। डिस्क्रिप्शन में लिखा है- Official profile of Shimla Rural constituency. यह अनोखी बात है कि कब से विधानसभा क्षेत्रों की ऑफिशल प्रोफाइल्स बनने लग गई। खैर, जो भी हो। चौंकाने वाली बात यह है कि इसमें एक वीडियो शेयर किया गया है- शिमला ग्रामीण के विकास की दास्ताँ !!! समय निकाल कर देखे और आपने विचार COMMENT BOX मैं लिखे !!! इस वीडियो को विक्रमादित्य सिंह बुशहर पेज पर भी शेयर किया गया है और साथ में लिखा गया है- कन्धों से मिलते है कंधे क़दमों से क़दम मिलते हैं, हम चलते है जब ऐसे तो दिल दुश्मन के हिलते हैं।।।

हिलना-विलना तो ठीक है मगर इस वीडियो में विक्रमादित्य का प्रमोशन किया गया है और बताया गया है कि कैसे वह तीन दिन पूरे इलाके में घूमे। इसमें उनकी साउंड बाइट भी है जिसमें वह कह रहे कि मुझे लोगों से मिलने का मौका मिला। वीडियो के आखिर में वॉइस ओवर में बताया गया है कि कैसे शिमला ग्रामीण के लोगों को अब एक चेहरे (विक्रमादित्य) में उम्मीद और विश्वास दिख रहा है। बात यहां तक होती तो कोई दिक्कत नहीं होती क्योंकि प्रचार के लिए वीडियो बनाना गलत नहीं है। कोई भी इस तरह का प्रमोशनल वीडियो बना सकता है। मगर ध्यान देने वाली बात यह है कि इस वीडियो में हिमाचल प्रदेश सरकार की सील यानी मुहर लगी हुई है।

वीडियो में हिमाचल सरकार की मोहर लगी हुई है (लेफ्ट टॉप कॉर्नर)

सरकारी सील को निजी तौर पर यूज नहीं किया जा सकता
गौरतलब है कि यह सील सरकार की आधिकारिक मुहर है और इसे कोई भी थर्ड पार्टी और खासकर राजनीतिक व्यक्ति अपने फायदे के लिए किसी कॉरस्पॉन्डेंस में इस्तेमाल नहीं कर सकता और निजी वीडियो में यह दिखाने के लिए लोगों की तरह नहीं लगा सकता कि यह सरकार द्वारा प्रमाणित वीडियो है। इस वीडियो में सरकारी मुहर लगाने का मतलब या तो यह है कि हिमाचल सरकार के किसी विभाग ने ऑफिशली इस वीडियो को बनाया है और इसीलिए अपनी मुहर को लोगो के तौर पर इस्तेमाल किया है। यदि ऐसा है तो यह सरासर गलत है क्योंकि इसमें सरकार के कार्यों का नहीं, बल्कि एक व्यक्ति, सत्ताधारी पार्टी के पदाधिकारी और मुख्यमंत्री के परिजन का प्रमोशन किया गया है और वह भी उस जगह के संबंध में, जहां का वह विधायक तक नहीं है। और अगर अपनी मर्जी से लगा दिया गया है तब तो और गलत है और मामला कानूनी चौखट तक जा सकता है।

इस वीडियो को बनाने में सरकारी पैसा खर्च हुआ है तो गलत है
इतना तय हो जाता है कि इस वीडियो को उसी ने बनाया है, जिसने उस वीडियो को बनाया था जिसमें मुख्यमंत्री का प्रचार किया गया था। यानी पिता और पुत्र दोनों के प्रचार करने वाले वीडियो एकसाथ बनाया गया है क्योंकि दोनों के पब्लिश होने में कुछ ही घंटों का अंदर है, दोनों का स्टाइल एक जैसा है और वॉइस ओवर भी एक ही शख्स ने किया है। आदर्श स्थिति तो यह है कि निजी प्रमोशन के लिए कोई भी सरकारी पैसा खर्च नहीं कर सकता। मगर चूंकि वीरभद्र मुख्यमंत्री हैं और सुप्रीम कोर्ट के आदेश के मुताबिक सरकारी विज्ञापनों में उनका चेहरा इस्तेमाल हो सकता है, इसलिए कोई यह तर्क दे सकता है कि उनके वीडियो में सरकार की उपलब्धियां गिनाई गई हैं। मगर जो वीडियो विक्रमादित्य पर बना है, उसमें किसी भी आधार पर सरकारी पैसा खर्च नहीं हो सकता और न ही सरकारी मुहर इस्तेमाल की जा सकती है। आप नीचे खुद देखें वीडियो और बताएं कि यह सरकारी पैसे का दुरुपयोग करना है या नहीं। (UPDATE: नीचे आपको वीडियो नहीं दिखेगा क्योंकि उसे विक्रमादित्य ने डिलीट कर दिया है। यहां क्लिक करके पढ़ें अपडेटेड न्यूज)

बहरहाल, साफ नजर आ रहा है कि सरकार निजी फायदे के लिए सरकारी मशीनरी और पैसे का भी दुरुपयोग कर रही है। जहां प्रदेश में बेरोजगारों की संख्या बढ़ रही है, प्रदेश के बच्चों का भविष्य बर्बाद है, वहां पर सराकरी पैसे से ही मुख्यमंत्री के बेटे और कांग्रेस के नेता के प्रचार वाले वीडियो बन रहे हैं। यह गैर-कानूनी तो है ही, शर्मनाक भी है।

वीरभद्र ही नहीं, धूमल राज में भी हुआ था तिलकराज का ‘राजतिलक’; नियमों को ताक पर रखकर दिया था प्रमोशन: रिपोर्ट

शिमला।। पांच लाख रुपये घूस लेते रंगे हाथों पकड़ा गया उद्योग विभाग का संयुक्त निदेशक तिलकराज बहुत प्रभावशाली व्यक्ति रहा है। भले ही इस वक्त बीजेपी इस मामले में कांग्रेस और मुख्यमंत्री वीरभद्र को घेरने में लगी हुई है मगर जब प्रदेश में बीजेपी की सरकार थी और प्रेम कुमार धूमल मुख्यमंत्री थे, तब तिलकराज को तीन मैनेजरों को सुपरसीड करके प्रमोशन दिया गया था। हिमाचल के एक हिंदी अखबार की रिपोर्ट में यह दावा किया गया है।

तिलकराज के बारे में अब जो जानकारी सामने आ रही है उससे पता चलता है कि उसकी राजनीतिक पहुंच इतनी तगड़ी थी कि पिछले 13 साल से वह बद्दी में ही तैनात था और उसे कोई हटा नहीं पा रहा था। 13 साल यानी कांग्रेस के राज के दौरान भी और बीजेपी के राज के दौरान भी। ‘अमर उजाला’ की रिपोर्ट कहती है कि फरवरी 2017 में सीएम ऑफिस से तिलकराज के तबादले का आदेश हुआ था और उसे बद्दी से शिमला आना था। मगर वह शिमला नहीं आया और 2 महीने बाद उसका ट्रांसफर ऑर्डर कैंसल हो गया। उस दौरान चर्चा रही कि आखिर किसके प्रेशर में यह ट्रांसफर रद हुआ।

इससे पहले भी तिलकराज की सियासी पहुंच का पता चलता रहा है। तिलकराज की नौकरी का ज्यादातर वक्त बद्दी इंडस्ट्रियल एरिया में ही बीता और उसकी तैनाती से लेकर प्रमोशन तक सरकारी स्तर पर कई नियमों को तोड़-मरोड़ दिया गया था। साल 2011-12 में बीजेपी सरकार के कार्यकाल में तिलकराज को प्रमोशन दी गई और वह भी 3 मैनेजर्स को सुपरसीड करते हुए। विरोध भी हुआ तो विभाग ने इस प्रमोशन को सही ठहराने के लिए पूरा जोर लगा दिया।

तिलकराज को प्रमोशन के लिए बीजेपी सरकार में जिन मैनेजर्स को सुपरसीड किया गया था, आज उनमें से दो जीएम के पद पर तैनात हैं और एक संयुक्त निदेशक हैं। आलम यह है कि बद्दी में उपनिदेशक की पोस्ट है। संयुक्त निदेशक को मुख्य कार्यालय में ही तैनात होना होता है मगर तिलकराज पोस्ट न होने के बावजूद बद्दी में ही बतौर संयुक्त निदेशक सेवाएं देता रहा।

उद्योग विभाग में जॉब जॉइन करने से पहले रिश्वत लेने का आरोपी तिलकराज चंबा में इकॉनमिक्स का प्रवक्ता था। नौकरी लगने पर उसने 2004 में सोलन में मैनेजर के पद पर जॉइनिंग की। इस बीच दो ट्रांसफर हुए- अंब और ऊना। डेढ़ दो साल के अंदर ही वह बद्दी वापस आ गया और तब से लगभग 11 साल तक बद्दी में ही नियुक्त रहा है। अब आरोप लगने पर विभाग ने उसे सस्पेंड कर दिया है।

लेख: कूटनीति में वीरभद्र पर एक ही नेता पड़ा है भारी- प्रेम कुमार धूमल

कृपाल शर्मा।। यह इमर्जेंसी से समय का दौर था जब हिमाचल निर्माता डॉक्टर वाई.एस. परमार हिमाचल के मुख्यमंत्री थे। इंदिरा गांधी की अलोकतांत्रिक नीतियों के सांचे में डॉक्टर परमार उसी समय से फिट नहीं बैठ रहे थे। इस बीच ढाई साल के उस काले दौर के बाद जे.पी. आंदोलन के साथ इंदिरा गांधी का सफाया हो गया। प्रदेशों से भी कांग्रेस उस आंधी में उखड़ गई थी। सामूहिक रूप से लड़े विपक्ष की तरफ से शांता कुमार हिमाचल के पहले गैर-कांग्रेसी मुख्यमंत्री बने। मगर लंबे समय तक शांता कुमार अपने कुनबे को नहीं संभाल सके। शह मात की इस राजनीति में राम लाल ठाकुर उनपर भारी पड़े और शांता सरकार के कई दिग्गजों को उन्होंने अपने पक्ष में बिठाकर वह मुख्यमंत्री बन गए। यह हिमाचल कांग्रेस से परमार युग का अंत था।

राम लाल ठाकुर के परिजनों के ऊपर टिंबर घोटाले के आरोप लगे, जिसके छींटे उनपर भी आ गिरे। हाइकमान की सख्ती और नैतिकता की दुहाई पर रामलाल ठाकुर को इस्तीफा देना पड़ा। यह वह पहला मौका था जब बुशहर के राजपरिवार के वशंज और सांसद वीरभद्र सिंह के हाथों में इंदिरा गांधी ने सत्ता सौंप दी। उसके बाद जनमत के पैमाने पर तो वीरभद्र सिंह हर पांच साल बाद विफल होते रहे, मगर कूटनीतिक तौर पर पार्टी के अंदर अपने वर्चस्व को बनाने में कामयाब रहे हैं। वीरभद्र सिंह के बाद 1990 में प्रचंड बहुमत के साथ फिर सत्ता में आए थे। लेकिन कर्मचारी वर्ग पर टिकी हिमाचल की राजनीति और सचिवालय के कर्मचारियों में ऊपर वर्ग की प्राथमिकता से वीरभद्र ऐसी गोटियां सेट कर चुके थे कि बहुमत मिलने के बावजूद शांता कुमार के लिए सत्ता चलाना आसान नहीं था।

शांता कुमार की उदारवादी (प्राइवेटाइजेशन) वाली नीतियों पर वीरभद्र सिंह के निष्ठावन कर्मचारी नेताओं ने प्रदेश के कर्मचारियों को गुमराह करके जो चक्रव्यूह रचा, काफी समय तक शांता कुमार उससे उबर नहीं पाए। वीरभद्र की रजवाड़ाशाही नीति आज की तरह हिंत बांटने औऱ कर्मचारी चयन में हमेशा हावी रही। चहेतों को लाभ देने के लिए वह शुरू से ही आउट ऑफ द वे भी चले गए। न प्रदेश में कोई कर्मचारी चयन आयोग था और न भर्तियों का कोई फॉर्मूला था। प्रदेश में विभागीय स्तरों पर भर्तियां होती थीं और उसमें सत्ता की तूती बोलती थी। दिहाड़ीदार भर लिए जाते थे और रेग्युलर होने की उनकी लालसा को सत्ता की कुंजी की तरह प्रयोग करने का फॉरम्यूला अपनाया जाता, जो आज भी बिना रुके जारी है।

शांता कुमार ढाई साल तक कर्मचारी आंदोलनों से ही जूझते रहे। सैद्धांतिक नीति वाले शांता कुमार यह भी नहीं समझ पाए कि उनकी विचारधारा समर्थक कर्मचारी वर्ग तो चुन-चुनकर उनकी पिछली सरकार ने ट्राइबल इलाकों में हिमदर्शऩ वाली पोस्टिंग दी थी। यही लोग, सत्ता परिवर्तन के बाद मुख्यमंत्री शांता कुमार की शरण में आए तो सिद्धांतवादी शांता कुमार ने आंखें फेर ली थीं। शांता कुमार के खिलाफ अपनों का ही आक्रोश चर्म पर था। इसी बीच बाबरी विध्वंस हुआ और कई सरकारों समेत शांता कुमार सरकार भी बर्खास्त कर दी गई। वीरभद्र सिंह अपने प्रतिद्वंदी सुखराम को पीछे धकेलते हुए वीरभद्र सिंह ने दोबारा सत्ता संभाल ली। वीरभद्र सिंह ने इस दौरान कांगड़ा दुर्ग को छिन्न-भिन्न करने की पूरी कोशिश की। उन्होंने शांता कुमार के कई फैसलों को कूटनीतिक नजरिए से पलटा, जिसमें अपोलो स्तर के पामलपुर में प्रस्तावित हॉस्पिटल को टांडा मेडिकल कॉलेज (कांगड़ा) बनाने का निर्णय किया। उस दौर में शांता कुमार हार के बाद पर्दे के पीछे चले गए थे। भाजपा का कोई हाईकमान भी उनके नाराज था क्योंकि उन्होंने बाबरी मस्जिद को गिराए जाने का विरोध किया था।

यह वह दौर था जब भारत के मौजूद प्रधानमंत्री नरेंद्र दामोदार दास मोदी हिमाचल भाजपा के प्रभारी थे और प्रेम कुमार धूमल भाजपा का नेतृत्व कर रहे थे। वीरभद्र सिंह ने सपने में भी नहीं सोचा था कि छोटे से जिले के पिछड़े क्षेत्र बमसन से आने वाला यह नेता उनके रास्ते में सबसे बड़ा रोड़ा साबित होगा। उस वक्त संपन्न और आर्थिक रूप से सुदृढ़ लोग कांग्रेस को समर्थन दिया करते थे। प्रेम कुमार धूमल जानते थे कि उदारीकरण वाले दशक में राजनीति का दौर बदल रहा है। धूमल जानते थे कि वर्तमान राजनीति में भीड़ जुटाना और आर्थिक रूप से सशक्त हुए बिना कांग्रेस का मुकाबला करना संभव नहीं है। धूमल ने ऐसे ही आर्थिक रूप से मजबूत लोगों को बीजेपी के साथ जोड़ना शुरू किया। शांता कुमार जहां रूखे स्वभाव के नता माने गए, वहीं प्रेम कुमार धूमल अपने मिलवनसार व्यक्तित्व की वजह से पूरे प्रदेश में अपनी अच्छी छवि बना चुके थे। हाइकमान से बढ़ती दूरियां और पार्टी प्रभारी मोदी से अनबन समेत पिछले चुनाव में करारी हार ने रास्ते खोले और 1998 में शांता कुमार की जगह प्रेम कुमार धूमल को पार्टी का चेहरा बनने का मौका मिला।

धूमल ने पंडित सुखराम को अपने पक्ष में करते हुए गुलाब सिंह ठाकुर जैसे नेताओं को भी भाजपा में शामिल कर दिया और पहली बार प्रदेश की कमाल संभाली। वीरभद्र सिंह की नीति पर कुठाराघात करते हुए हिमाचल में चटन के लिएो कर्मचारी चयन आयोग की स्थापना की। साथ ही कहीं न कहीं जो विरोध निचले क्षेत्र के तबके में था कि प्रशासनिक पद उनकी पहुंच से बहुत दूर हैं, वहां निचले क्षेत्रों से भी पारदर्शी तरीके से प्रशासनिक अधिकारी निकलने लगे। कई मामलों में वीरभद्र सिंह के ऊपर भी केस चले, जिनमें कुछ टेपों को कुछ लैब्स ने सही पाया तो कुछ ने गलत। कुछ मामलों में समझौते हुए और आखिरकार वह अदालतों से बरी होते रहे। मगर वीरभद्र सिंह के लिए अब राह आसान नहीं थी क्योंकि अब एक सशक्त प्रतिद्वंद्वीो उनके सामने था जो उन्हें उन्हीं की भाषा में जवाब देना जानता था और जवाब भी दे भी रहा था।

सही मायनों में वीरभद्र को किसी ने टक्कर दी है तो वह धूमल हैं- लेखक

धूमल के नेतृत्व में अब भाजपा भी एक संपन्न पार्टी हो चुकी थी, जिसकी पकड़ न सिर्फ मैदानी इलाकों बल्कि हिमाचल के ऊपर इलाकों जैसे कि शिमला, किन्नौर और लाहौल तक हो चुकी थी। उन्होंने अपने समर्थकों की खास फौज तैयार कर दी थी। यह फौज उनके लिए कुछ भी करने को तैयार थी और वह धूमल भी उनका पूरा ख्याल रखते। धूमल ने अपने कार्यकर्ताओं का भी ख्याल रखा और प्राथमिकता देकर उनकी मांगों पर गौर किया, जिस काम में शांता कुमार नाकाम साबित हुए थे। यहीं से वीरभद्र सिंह ने अपनी कूटनीति में बदलाव लाया और कभी जिस मुख्यमंत्री (शांता कु्मार) को वह निकम्मा बताते थे, वही उनके लिए शालीन और सम्माननीय हो गए। यह सिलसिला जारी रहा, धूमल-वीरभद्र की रार चलती रही और आज भी जारी है। आज भी अखबार इनके परस्पर विरोधी बयानों, आरोपों और छींटाकशी से भरे रहते हैं। वीरभद्र को खीझ यह भी थी कि प्रेम कुमार धूमल अपने बेटे अनुराग ठाकुर को स्थापित करने में कामयाब तो रहे ही रहे, नैशनल लेवल का नेता बनाने में भी सफल रहे। इसी बीच धूमल के छोटे बेटे अरुण धूमल ने भी वीरभद्र के खिलाफ ऐसा मोर्चा खोला जो आज तक वीरभद्र सिंह को अदालतों में उलझाए हुए हैं और उन्हें बैकफुट पर डाले हुए है।

अपनी पार्टी के अंदर सुखराम, राजा विजयेंद्र सिंह, विद्या स्टोक्स और मेजर मनकोटिया जैसे प्रतिद्वंद्वियों को वीरभद्र सिंह ने कूटनीति से किनारे लगा दिया और उसके बाद किसी को उभरने नहीं दिया। उसी कड़ी में आजकल सुखविंदर सिंह सुक्खू वर्तमान शिकार हैं। परंतु जो काम शांता कुमार नहीं कर पाए, वही काम धूमल नीति कर गई और वीरभद्र सिंह को 1998 से लेकर आज तक चैन से नहीं जीने दिया गया। प्रतिद्वंद्विता की यह राजनीति आगे कहां तक जाती है यह कुछ ही महीनों में तय हो जाएगा मगर इस तथ्य को नहीं झुठलाया जा सकता कि कूटनीति के इस राजा पर रणनीतिकार धूमल साम-दाम-दंड-भेद से भारी पड़े। जहां शांता कुमार, वीरभद्र के लिए आसान प्रतिद्वंद्वी रहे, वहीं प्रेम कुमार धूमल समानांतर वीरभद्र को टक्कर देते रहे। जहां मुख्यमंत्री रहते हुए भी वीरभद्र के अपने रोहड़ू जैसे इलाके बेसिक इन्फ्रास्ट्रक्टर के लिए तरसते रहे, धूमल ने अपने जिले के सबसे पिछड़े बमसन इलाके को सर्व सुविधा संपन्न बनाने पर जोर दिया। वीरभद्र आज भी उसी नीति पर चल रहे हैं। वीरभद्र उन्हीं तौर-तरीकों पर चलते हुए सत्ता रिपीट करवाने की कोशिश में  हैं जिसके आधार पर वह कभी सत्ता रिपीट नहीं करवा वाए। आज भी भर्तियां चयन बोर्ड के बजाय विभागीय स्तर पर हो रही है और हर चयन का मामला कोर्ट में जा रहा है। एचआरटीसी से लेकर हाल ही में शास्त्री परीक्षा तक सवालों के घेरे में है।

(लेखक कृपाल शर्मा 70 के दशक से 2000 तक बीजेपी के सक्रिय कार्यकर्ता और संगठन में विभिन्न जिम्मेदारियों पर रहे। इन दिनों सक्रिय राजनीति से हटकर पारिवारिक जिम्मेदारियां संभाल रहे हैं। पहाड़ी भाषा में बताई गई उनकी बातों को हिंदी में संकलित किया गया है)

Disclaimer: ये लेखक के अपने विचार हैं, इन हिमाचल इनके सहमत या असहमत होने का दावा नहीं करता। लेखक इनके लिए स्वयं उत्तरदायी है।

रिश्वत मांगते वक्त जॉइंट डायरेक्टर ने कहा था- मुख्यमंत्री वीरभद्र के वकील को देनी है फीस: रिपोर्ट्स

शिमला।। आय से अधिक संपत्ति मामले में कोर्ट से मिली सशर्त जमानत को जीत की तरह पेश करने वाले हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री की मुश्किलें बढ़ती हुई दिख रही हैं। अमर उजाला अखबार की रिपोर्ट के मुताबिक रिश्वत लेते फंसे जॉइंट डायरेक्टर की बातचीत की ऑडियो रिकॉर्डिंग से बड़ा खुलासा हुआ है। रिश्वत की डील के दौरान शिकायतकर्ता और आरोपी की बातचीत रिकॉर्ड हुई थी, उससे पता चलता है कि संयुक्त निदेशक को दिल्ली के एक वकील तक बतौर फीस के 35 लाख रुपये पहुंचाने थे, जो हिमाचल के मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह का केस लड़ रहा है।

अखबार ने अपनी रिपोर्ट में सीबीआई के सूत्रों के हवाले से लिखा है कि संयुक्त निदेशक ने इसके लिए वीरभद्र के निजी सचिव का फोन आने की बात भी कही थी और कहा कि वह चाहे तो उनकी बात भी उससे करा सकते हैं। गौरतलब है कि हिमाचल के जिला सोलन के औद्योगिक क्षेत्र बद्दी में तैनात उद्योग विभाग के जॉइंट डायरेक्टर तिलकराज शर्मा और उसके एक सहयोगी को सीबीआई ने चंडीगढ़ में पांच लाख रुपये रिश्वत लेते रंगे हाथ गिरफ्तार किया है।

सीबीआई ने तिलकराज को रंगे हाथों पकड़ा है।

अब इस मामले के तार मुख्यमंत्री कार्यालस से जुड़ते भी नजर आ रहे हैं। अखबार का कहना है कि सीबीआई की प्रारंभिक जांच में मामले के तार नई दिल्ली स्थित हिमाचल के मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह के कार्यालय से जुड़ते दिख रहे हैं और रिकॉर्डिंग में भी ये तथ्य सामने आए हैं। तिलकराज ने शिकायतकर्ता से कहा था कि पहली किश्त के पांच लाख रुपये मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह के दिल्ली कार्यालय में तैनात निजी सचिव पीएस रघुवंशी को जाएंगे।

गौरतलब है कि इसी तरह के आरोप पूर्व मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल के छोटे बेटे अरुण धूमल ने भी लगाए थे और इनकी पुष्टि के लिए अपनी फेसबुक टाइमलाइन पर कुछ डॉक्युमेंट्स अपलोड किए थे जिन्हें सीबीआई की एफआईआर की कॉपी बताया जा रहा है। इस मामले के सामने आने के बाद बीजेपी आक्रामक मूड में आ गई है और वीरभद्र से इस्तीफा मांग रही है। अगर यह पुष्टि हो जाती है कि रिश्वत के पैसे को वाकई मुख्यमंत्री के वकील तर पहुंचाया जाना था तो उन दावों की भी पोल खुल जाएगी जिसमें सीएम अपने ऊपर लगे आरोपों को राजनीतिक साजिश करार देते हैं।

अरुण धूमल ने मुख्यमंत्री वीरभद्र का नाम रिश्वत लेते गिरफ्तार जॉइंट डायरेक्टर से जोड़ा

इन हिमाचल डेस्क।। आय से अधिक संपत्ति के बाद वीरभद्र सिंह का नाम मंगलवार को गिरफ्तार हुए जॉइंट डायरेक्टर तिलकराज से जुड़ने लगा है। तिलकराज को सीबीआई ने  फार्मा कंपनी के कंसल्टेंट की शिकायत पर रिश्वत लेते हुए रंगे हाथों गिरफ्तार किया था। पूर्व मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल के छोटे बेटे अरुण धूमल ने तिलकराज के तार प्रदेश सरकार के बड़े-बड़े नेताओं जुड़े होने का दावा किया है। बीजेपी नेता अरुण धूमल ने अपने फेसबुक पेज पर एक पोस्ट डाली है जिसमें उन्होंने वीरभद्र सिंह और तिलकराज के बीच लेन-देन वाले संबंध का आरोप लगाए हैं। अरुण धूमल ने फेसबुक टाइमलाइन पर क्या लिखा है- नीचे पढ़ें:

“जिस दोपहर मुख्यमंत्री की बेल हुई उसी शाम को हिमाचल का एक अधिकारी सी॰बी॰आई॰ द्वारा गिरफ़्तार किया गया और सीबीआई की एफ़आईआर में यह लिखा है कि पैसा मुख्यमंत्री के दिल्ली आवास पर तैनात उस रघुवंशी को देने थे जिनके हस्ताक्षर हॉली लॉज के फ़र्ज़ी किरायेनामे पर भी थे।”

अरुण ने इस पोस्ट में मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह के परिवार को जेल की सलाखों के पीछे जाने की भविष्यवाणी भी की है। उन्होंने लिखा है- ‘राजा साहब आप अपनी उम्र और स्वास्थ्य का हवाला देकर और रानी साहिबा महिला होने का हवाला देकर शायद बच जाएँ, पर आपके राजकुमार यानी बुशहर राजघराने के अगले चिराग़ का हवाला के चक्कर में भविष्य तिहाड़ में अन्धकारमय होता नज़र आ रहा है। आनंद भी जेल में, तिलक भी जेल में – अब अगला कौन ? केवल चंद दिनों का इंतज़ार कीजिए, जल्द ही आप सब को पता चलेगा !!!”

अरुण धूमल की पोस्ट नीचे है-

अरुण धूमल ने एफआईआर की कॉपी भी अपनी पोस्ट में टैग की है और इसे प्रामाणिक बताया है।

रिटन में टॉपर रहे अभ्यर्थी इंटरव्यू में बाहर, HPPSC पर लगाया धांधली का आरोप

धर्मशाला।। हिमाचल प्रदेश लोक सेवा आयोग (HPPSC) के भर्ती सिस्टम पर अभ्यर्थियों ने सवाल उठाए हैं। पीजीटी भर्ती में अभ्यर्थियों ने भाई-भतीजावाद करने के आरोप लगाते हुए कहा कि लिखित परीक्षा की मेरिट में आए अभ्यर्थियों को साक्षात्कार में पीछे कर दिया गया। इस संबंध में अभ्यर्थियों ने हिमाचल प्रदेश के राज्यपाल आचार्य देवव्रत और हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश को पत्र भेजकर इसमें उचित कार्रवाई करने की मांग की है।

हिंदी अखबार की अमर उजाला की रिपोर्ट  के मुताबिक लोक सेवा आयोग की पीजीटी भर्ती में बाहर हुए अभ्यर्थियों विपन कुमार सहित अन्यों का आरोप है कि पीजीटी गणित की लिखित परीक्षा में टॉप 15 पर रहे छह अभ्यर्थियों का नाम चयनित किए हुए अभ्यर्थियों की सूची में नहीं है। उनका कहना है कि  46वें, 40वें, 33वें स्थान पर रहे अभ्यर्थियों को नौकरी मिल गई।

इस मामले में अभ्यर्थियों का यह भी कहना है कि लोक सेवा आयोग ने पीजीटी के पदों के लिए 100 नंबरों का साक्षात्कार रखा है। इसमें अपने चहेतों को मनमर्जी के नंबर देकर नौकरियां दी जा रही हैं, जबकि मेरिट में आने वाले अभ्यर्थियों को साक्षात्कार से बाहर किया जा रहा है।

आय से अधिक संपत्ति मामले में वीरभद्र और अन्य आरोपियों को मिली जमानत

नई दिल्ली।। आय से ज्यादा संपत्ति के मामले में हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह को जमानत मिल गई है। इसके साथ सीएम की पत्नी और पूर्व सांसद प्रतिभा सिंह समेत अन्य 7 आरोपियों को भी जमानत मिल गई है। कोर्ट ने वीरभद्र को इजाजत के बिना देश न छोड़ने की शर्त पर यह जमानत दी है और पासपोर्ट जमा करवाने के लिए कहा है। मामले में अगली सुनवाई 27 जुलाई को होगी। गौरतलब है कि इससे पहले सीबीआई ने कोर्ट में मुख्यमंत्री को जमानत देने का विरोध किया था।

सीबीआई ने कोर्ट से मेडिकल ग्राउंड भी वीरभद्र को कोई रियायत न देने की मांग की थी। जबकि वीरभद्र के वकील ने सीबीआई की दलीलों का विरोध करते हुए कहा कि वह अपने असली रंग दिखा रही है और उसकी जांच निष्पक्ष नहीं है। आरोप लगाया गया कि सीबीआई राजनीतिक इशारों पर काम कर रही है। इसके बाद कोर्ट ने फैसला दोपहर दो बजे तक सुरक्षित रख लिया था।

सीबीआई ने वीरभद्र सिंह पर बतौर केंद्रीय मंत्री रहते हुए 10 करोड़ की आय से अधिक संपत्ति अर्जित करने के मामले में चार्जशीट दाखिल की थी। इस मामले में मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह उनकी पत्नी प्रतिभा सिंह, एलआईसी एजेंट आनंद चौहान, सहयोगी चुन्नी लाल, जोगिंद्र सिंह, प्रेमराज, लवन कुमार रोच, वाकामुल्ला चंद्रशेखर और राम प्रकाश भाटिया को चार्जशीट किया गया है। दरअसल कोर्ट ने 22 मई को सीएम की जमानत याचिका पर सीबीआई से एक हफ्ते में जवाब मांगा था। अदालत ने सीबीआई को नोटिस जारी कर यह पूछा था कि क्यों न वीरभद्र सिंह समेत अन्य आरोपियों को जमानत दे दीजाए।

अनुराग ठाकुर ने शिमला में वीरभद्र और कांग्रेस पर साधा निशाना

शिमला।। बीजेपी सांसद अनुराग ठाकुर ने शिमला में आयोजित प्रेस कॉन्फ्रेंस में प्रदेश सरकार की कार्यप्रणाली पर सवाल उठाए। उन्होंने कहा कि कांग्रेस सरकार की और वीरभद्र सिंह स्टेडियम बनाने वाले नहीं बल्कि इन्हें तुड़वाने और ताले लगवाने वाले हैं। इसके बाद जब वह चुनावों को लेकर बात करने लगे तो उन्होंने कुछ ऐसा कहा कि ठहाके गूंजने लगे।

पत्रकारों ने अनुराग से सवाल पूछा कि  आगामी विधानसभा चुनावों में बीजेपी कितनी सीटें जीतने का दावा करती है। इस पर उनके मुंह से निकला- बीजेपी 8 और बाकी 60. यह सुनते ही वहां मौजूद सब लोग मुस्कुराने लगे। अनुराग ने तुरंत भूल का सुधार किया और कहा- बीजेपी 60 सीटें जीतेगी और बाकी 8 सीटों पर सिमट जाएंगे।

अनुराग ठाकुर ने कहा कि कांग्रेस के कई नेता बीजेपी के संपर्क में हैं। पार्टी ने सूची भी तैयार कर ली है, जल्द ही उनको भाजपा की सदस्यता दिलाई जाएगी। लिस्ट में कई बड़े नाम हैं। ये कौन लोग हैं? इनका खुलासा जल्द होगा। उन्होंने कांग्रेस प्रदेश संगठन और सरकार में चल रही खींचतान पर चुटकी ली कि जिस पार्टी के सीएम और प्रदेश अध्यक्ष आपसी लड़ाई के चलते दिल्ली तलब हो रहे हैं। उनका विधानसभा चुनाव में क्या हाल होगा, यह स्पष्ट है।

अनुराग ने शिमला नगर निगम चुनाव को लेकर हाईकोर्ट के फैसले का स्वागत किया। कहा कि, कांग्रेस की नगर निगम चुनाव को टालने की सारी कोशिशें फेल हो गई हैं और नगर निगम चुनाव में भाजपा की जीत होगी। कहा कि सीएम भ्रष्टाचार के मामलों में न्यायालय के चक्कर काट रहे हैं जबकि उनके मंत्री-विधायक उनके साथ दिल्ली और शिमला की दौड़ लगा रहे हैं। पूरी सरकार वीरभद्र सिंह को बचाने में लगी है। ऐसा पहली बार हुआ है कि किसी मामले में सह आरोपी नौ माह से जेल में है और मुख्य आरोपी जेल से बाहर है।

जब मुख्यमंत्री वीरभद्र ने विधानसभा में कहा- मेरा कत्लेआम हो रहा था

शिमला।। हिमाचल प्रदेश विधानसभा ने स्टेट जीएसटी बिल को ध्वनिमत से पारित कर दिया है। इसी के साथ ही सदन को अनिश्चितकाल के लिए स्थगित कर दिया गया है। इस बीच में विधानसभा के स्पेशल सेशन में ऐसी घटना हुई कि मुख्यमंत्री ने अपने हाजिर जवाबी से सभी को ठहाके लगाने पर मजबूर कर दिया। दरअसल विधानसभा में डेस्क पर जो टेबल है, वह ऑटोमैटिक हैं यानी बटन के माध्यम के ऊपर-नीचे किया जा सकता है (नीचे प्रणाली समझाने वाला वीडियो देखें)। यानी जब सदस्य बैठा हो तब भी उसके लिए सुविधाजनक हो और बोलने लगे तो वह पॉडियम की तरह ऊंचा हो जाए। मगर इस टेक्नॉलजी में शनिवार को चूक हो गई।

मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह स्टेट जीएसटी विधेयक सदन में रखने के बाद जैसे ही बैठने लगे उनकी टोपी गिर गई। टोपी उठाने के लिए सीएम नीचे टेबल के नीचे झुके। तभी विधानसभा के एक कर्मचारी ने उनकी आटोमैटिक टेबल लिफ्ट को नीचे करने वाला बटन दबा दिया। स्वचलित प्रणाली चालू होते ही टेबल नीचे हुआ और झुके हुए मुख्यमंत्री की गर्दन से टकरा गया। यब भूल वैसे बड़े हादसे का सबब बन सकती थी। बटन दबाने वाला कर्मचारी घबरा गया कि मुख्यमंत्री की गर्दन से टकरा गया टेबल। मगर सीएम ने टोपी संभाली माहौल को नॉर्मल किया। उन्होंने खुद को संभाला और हंसते हुए कहा- मेरा कत्लेआम हो रहा था। उनका ऐसा बोलना था कि नर्वस दिख रहे कर्मचारी समेत पूरा सदन ठहाके लगाने लगा।

दरअसल मुख्यमंत्री अपने टेबल को लेकर कुछ असहज महसूस कर रहे थे। जब वह विधेयक को पटल पर रखने के लिए खड़े हुए तो अपनी सहूलियत के लिए उन्होंने टेबल को लिफ्ट करवाया। बोलना शुरू करते ही टेबल की ऊंचाई उनको ठीक नहीं लगी। उन्होंने कर्मचारी से बोला कि इसे थोड़ा नीचे करो। सिस्टम से अनजान कर्मचारी ने बटन दबाया तो टेबल नीचे बैठ गया। मुख्यमंत्री ने कहा कि क्या यह आधा नीचे नहीं हो सकता, इसपर कर्मचारी ने कहा कि नहीं सर, यह पूरा ही नीचे बैठेगा। इसपर मुख्यमंत्री ने विपक्ष की ओर देखते हुए कहा- यहां बीच वाला सिस्टम नहीं है। यह सुनकर सभी हंसे और कर्मचारी ने फिर से टेबल को ऊंचा कर दिया। इसके बाद संबोधन खत्म करने के बाद सीएम बैठने लगे थे, तभी उनकी टोपी गिर गई थी।

ढोल की थाप के साथ मधुर गायन से मन मोह लेगा 7 साल का सार्थक

इन हिमाचल डेस्क।। पिछले दिनों हमें यूट्यूब पर एक वीडियो मिला था जिसमें एक नन्हा सा बच्चा ढोल बजाते हुए गा रहा है। हम उस वीडियो को उसी वक्त आपके साथ शेयर करना चाहते थे मगर सोचा कि क्यों न पहले इस बालक के बारे में जानकारी जुटाई जाए। हम हमें पता चला है कि इस बालक का नाम है सार्थक और उम्र सिर्फ 7 साल है। कमाल का हुनर रखने वाला यह बच्चा रिऐलिटी शो ‘किसमें कितना है दम’ का चैंपियन बना है। इस बारे में हमें सहयोगी पोर्टल ‘एमबीएम न्यूज‘ से जानकारी मिली। इस बच्चे का टैलंट देखकर आप खुद भी इसकी तारीफ किए बिना नहीं रह पाएंगे। खबर तो यह है कि अब सार्थक फिल्मों में भी नजर आएगा।

इससे पहले कि हम आगे बढ़ें और कुछ और बात करें, पहले देख लेते हैं सार्थक का वह वीडियो जो किसी रिकॉर्डिंग के दौरान बनाया गया है और यूट्यूब पर शेयर किया गया है।

अब बात करते हैं सार्थक की उपलब्धियों की। एमबीएम न्यूज के मुताबिक जालंधर में हुए दस शो के फाइनल राउंड में पूरे उत्तर भारत के प्रतिभागियों को पछाडते विजेता बनने गौरव हासिल किया है सार्थक ने। विजेता के रूप में सार्थक को 11 हजार रुपये की नकद राशि और ट्रोफी से नवाजा गया है। सार्थक ने ढोलक की थाप पर गायकी के ऐसे सुर छेड़े कि अच्छे-अच्छे प्रतिभागियों को धूल चटाते हुए शो का खिताब अपने नाम कर लिया। इस दौरान सार्थक की बडी बहन 9 वर्षीय तेजस्वी ने भी नगाडे पर अपने भाई का भरपूर साथ निभाया। इस शो का अंतिम व फाइनल राउंड 20 मई को पंजाब के जालंधर में आयोजित किया गया था। यही नहीं सार्थक के हुनर को देखते हुए शो के बाद उसे बालीवुड फिल्म हुनर में भी एक शो के लिए चयनित भी किया गया।

सार्थक (Image: MBM News Network)

राजगढ़ के गुरुपीच वैली इंटरनैशनल स्कूल में तीसरी कक्षा में पढने वाले सार्थक की कामयाबी से पूरे राजगढ़ क्षेत्र में खुशी की लहर दौड पडी है। साथ ही उसके घर में बधाई देने वालों का तांता लगा हुआ है। इस रियल्टी शो के डायरेक्टर वरुण बंसल थे। फाइनल राउंड से पहले 6 राउंड आयोजित किए गए थे, जिनका आयोजन शिमला, सोलन, पंचकुला-चंडीगढ में किया गया था। इन सभी राउंड में हजारों प्रतिभागियों को पछाडते हुए सिरमौरी बेटे ने खिताब पर कब्जा जमाया है। राजगढ़ के अमर सिंह व आशा देवी के घर में जन्मा यह होनहार लाडला अब तक करीब 65 छोटे-बडे स्टेज शो पर अपनी प्रतिभा का हुनर दिखा जा चुका है।