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Friday, September 12, 2025
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वंश आगे बढ़ाना चाहते हैं तो भांग से दूर ही रहें

शिमला।।
आपको अपनी फेसबुक फ्रेंडलिस्ट में भी कई लोग ऐसे मिल जाएंगे, जो भांग के पत्ते या धूम्रपान करते शिव की तस्वीरें शेयर करते हैं। इस बात से आपको अंदाजा हो जाएगा कि हिमाचल प्रदेश के युवाओं और खासकर स्कूल के बच्चों तक में भांग को लेकर दीवानगी किस कदर बढ़ चुकी है। मगर भांग के दीवानों को सावधान हो जाना चाहिए।

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एक स्टडी में यह साफ हुआ है कि भांग पीना आपके लिए ही नहीं, बल्कि आपकी आने वाली पीढ़ियों तक के लिए खतरनाक है। यह साफ हुआ है कि भांग का सेवन करने वाले पुरुसों की प्रजनन क्षमता पर असर पड़ सकता है। शोधकर्ताओं ने पाया है कि भांग के सेवन से शुक्राणुओं यानी sperms का साइज प्रभावित होता है।

शैफील्ड और मैनचेस्टर यूनिवर्सिटीज़ के रिसर्चर्स की टीम ने यह पता लगाने की कोशिश की कि लाइफस्टाइल से जुड़े कुछ फैक्टर किस तरह से स्पर्म्स के साइज को प्रभावित करते हैं। दरअसल स्पर्म्स का साइज अगर सामान्य से अलग हो जाए, तो वे कम असरदार हो जाते हैं।  देखा गया कि स्मोकिंग, ड्रिंकिंग और दूसरी नशीली चीज़ों के सेवन का शुक्राणुओं पर क्या असर पड़ता है।

शैफील्ड यूनिवर्सिटी में ऐंड्रॉलजी डिपार्टमेंट के सीनियर लेक्चरर डॉक्टर एलन पेसी ने कहा, ‘हमारे आंकड़े सुझाव देते हैं कि भांग का सेवन करने वाले अगर बाल-बच्चे पैदा करना चाहते हैं तो उन्हें इसे यूज करना बंद कर देना चाहिए।’ लैब में की गई स्टडी से पता चलता है कि असामान्य आकार की वजह से शुक्राणु कम असरदार हो जाते हैं।  इस स्टडी के रिजल्ट ह्यूमन रिप्रॉडक्शन जर्नल में पब्लिश हुए हैं।

रिजल्ट के बाद सोशल मीडिया पर कितना संवाद कर रहे हैं नेता?

नई दि्ल्ली।।
आज
के दौर में सोशल मीडिया को नजरअंदाज करना बेहद मुश्किल है। और तो और, अक्सर तकनीकी तामझामों से दूर रहने वाले नेताओं को भी मजबूरन फेसबुक और ट्विटर का रुख करना पड़ा है। इन्हें भविष्य का मीडिया देखा जा रहा है, जहां पर नेताओं या सेलिब्रिटीज़ वगैरह को अपनी बात जनता तक पहुंचाने के लिए अखबार या टीवी जैसे ट्रेडिशनल मीडिया पर निर्भर नहीं रहना पड़ेगा। इसी बात को समझते हुए इस बार के लोकसभा चुनावों में लगभग हर छोटे-बड़े नेता को फेसबुक पर ऐक्टिव देखा गया। कुछ नेता खुद जनता से जुड़े रहे, तो कुछ लोगों ने अपनी टीम की मदद से अपनी प्रोफाइल्स या पेज वगैरह संभाले।
हिमाचल प्रदेश की बात करें, तो यहां पर भी नेता अब सोशल मीडिया का रुख करने लगे हैं। युवा वर्ग से जुड़ने के लिए सोशल मीडिया बेहतरीन जरिया  रहा। हर पार्टी और नेता ने इसका भरपूर उपयोग किया। चुनाव के समय धड़ाधड़  नए नए पेजों की बाढ़ सी आ गई। इन सैकड़ों पेजों में से कुछ ऑफिशली नेताओं ने बनाए थे, तो कुछ उनके समर्थकों ने। इन हिमाचल की सोशल मीडिया एक्सपर्ट टीम ने चुनाव प्रचार से लेकर चुनाव का रिजल्ट आने के बाद भी इन सभी पेजों और नेताओं की पर्सनल प्रोफाइलों पर नजर रखी।

क्या था इस स्टडी का मकसद
हम जानना चाहते थे कि नेता लोग सोशल मीडिया को सिर्फ चुनाव प्रचार का जरिया मानते हैं या वे इसे आगे भी जनता से जुड़े रहकर उनकी समस्याएं और सुझाव वगैरह लेने का प्लैटफॉर्म मानते हैं। यह जानने के लिए हमने इलेक्शन से पहले भी नेताओं को कुछ प्रासंगिक मेसेज भेजे थे और रिजल्ट आने के बाद भी उन्हें मेसेज भेजे(अलग-अलग प्रोफाइल्स से)।

चुनाव से पहले क्या थे हालात
हमने यह पाया कि इलेक्शन से पहले नेता या उनके पेज

/प्रोफाइल संभालने वाली टीमें बेहद ऐक्टिव थीं। रोजाना नए अपडेट किए जाते थे और सुबह से लेकर शाम तक जनता को लुभाने वाले वादे किए जाते थे। हर तरह के मेसेज का रिप्लाई नेता के अकाउंट से हर आम आदमी को  किया जा रहा था। लेकिन रिजल्ट आने के बाद हालात बदल गए। कुछ नेता जीत के खुमार में तो कुछ हार के गम में सोशल मीडिया को भूल गए। ये वही नेता थे, जो सोशल मीडिया को जनता से जुड़े रहकर उसकी समस्याओं को सुनने का बेहतरीन मीडिया बता रहे थे। इन हिमाचल की टीम ने नतीजों के बाद 10 दिन तक नेताओं को अलग-अलग प्रोफाइल से जन-समस्याओं से जुड़े मेसेज किए, लेकिन अधिकांश नेताओं की तरफ से कोई जवाब नहीं आया।रिजल्ट के बाद की स्थिति


आलम यह है कि चुनाव जीतने के बाद नेता अपने पेजों यो प्रोफाइल्स पर जिताने के लिए धन्यवाद कहकर गायब हो चुके हैं। कुछ की प्रोफाइल्स में किसी महापुरुष की जयंत पर शुभकामनाएं या पुण्य तिथि पर श्रद्धांजलि के मेसेज आ रहे हैं तो कुछ की प्रोफाइल्स पर जीतने के बाद हो रहे भव्य स्वागत की तस्वीरें। मगर जनता के भेजे संदेशों का जवाब नहीं दिया जा रहा। जो नेता चुनाव हार चुके हैं, उनके पेज वीराने पड़े हैं।
आइए जानते हैं, इन हिमाचल की टीम ने अपनी स्पेशल इन्वेस्टिगेशन में क्या पाया

:

मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह
सीएम अपने हर दौरे के फोटो के साथ फेसबुक पर ऐक्टिव हैं। मेसेज का रिप्लाई न तो वह चुनाव से पहले करते थे और न आज करते हैं। अखबारों की कटिंग्स शेयर करते रहते हैं कि उन्होंने क्या किया। दरअसल यह उनका पब्लिक रिलेशन या यूं समझिए कि प्रमोशन के लिए बनाया गया पेज है। हां, रोजाना कई-कई पोस्ट्स डालने वाले इस पेज में लोकसभा चुनाव का रिजल्ट आने के 3 दिन बात तक सूनापन देखा गया था।


अनुराग ठाकुर, हमीरपुर के सांसद

सोशल मीडिया एक्सपर्ट्स  की भारी भरकम टीम अपने साथ रखने वाले  बीजेपी  के युवा लीडर अनुराग ठाकुर के पेज की टाइमलाइन हमेशा की तरह उनकी उनकी  प्रसंसा करती  हुए पोस्ट्स और न्यूज़  कटिंग्स से भरी रहती है।  ट्विटर पर डाली जानकारी भी उस पेज पर शेयर की जाती है। लेकिन अभी तक उनका एक भी ऐसा फोटो नहीं दिखा है, जिसमें वह चुनाव जीतने के बाद दोबारा हमीरपुर की जनता के बीच दिखे हों। मेसेज का रिप्लाई न पहले करते थे और न ही अब करते हैं।

राजिंदर राणा, हमीरपुर सीट से कांग्रेस कैंडिडेट
हॉट सीट हमीरपुर से कांग्रेस के उमीदवार रहे राजिंदर राणा की फेसबुक  फ्रेंड लिस्ट में  5000 के करीब  फ्रेंड्स, मगर इनकी टाइमलाइन पर 15 मई के बाद कोई अपडेट नहीं है । आपदा प्रबंधन के वाइस प्रेजिडेंट बनने के बावजूद उन्होंने इस बात का जिक्र तक करना उचित नहीं समझा है। हार के बावजूद जो लाखों वोट उन्हें पड़े, उसके लिए उन्होंने अपने सोशल मीडिया पर बैठे समर्थकों को औपचारिक शुक्रिया तक नहीं कहा है।

शांताकुमार, कांगड़ा के सांसद
कांगड़ा लोकसभा सीट से सांसद और पूर्व मुख्यमंत्री शांता कुमार के फेसबुक पेज पर 16 मई को दिए गए धन्यवाद मेसेज के बाद आज तक 5 ही पोस्ट्स आई हैं। उनमें भी उनकी भविष्य की योजनाओं का कोई जिक्र नहीं है। चुनाव के बाद से उनके पेज से किसी भी तरह के मेसेज का जवाब आना बंद हो चुका है। सुनने में आ रहा है कि उनके पास एक स्पेशल टीम थी, जो चुनाव से पहले लोगों को जोड़ने के लिए सक्रिय थी। शायद वही चुनाव से पहले संदेशों का जवाब दिया करती थी।


राजन सुशांत, कांगड़ा के पूर्व सांसद

कांगड़ा के पूर्व सांसद राजन सुशांत यूं तो इलेक्शन से पहले शांता कुमार पर रोज नए-नए आरोप लगाकर उनकी शिकायत करते हुए अपनी फेसबुक प्रोफाइल पर अपडेट डालते थे, लेकिन 3 मई के लास्ट अपडेट के साथ उनकी सोशल मीडिया जनता इंटरेक्शन अब बंद है।  अभी तक उन्होंने सोशल मीडिया पर 25 हजार वोटों के लिए अपने समर्थकों को धन्यवाद नहीं कहा है। उनकी एक टीम थी, जो कई तरह के पेज बनाकर प्रचार कर रही थी। वह ऑफिशली उनकी तरफ से प्रचार कर रही थी या नहीं, यह तो नहीं पता, मगर वह टीम भी सोशल मीडिया से गायब है। क्योंकि उनके बनाए पेज सूने पड़े हैं।

राम स्वरूप शर्मा, मंडी के सासंद
मंडी से बीजेपी सांसद राम स्वरुप शर्मा मेसेज का रिप्लाई न तो चुनाव से पहले करते थे और न ही अब। लेकिन वह हिमाचल के इकलौते ऐसे नेता हैं, जो चुनाव जीतने के बाद सबसे पहले जनता के बीच धन्यवाद करने पहुंचे । यह बात उनकी प्रोफाइल पर आए अपडेट्स से मालूम पड़ती है।

प्रतिभा सिंह, मंडी से पूर्व सांसद

मंडी की पूर्व सांसद और सीएम वीरभद्र सिंह की पत्नी प्रतिभा सिंह का पेज और उनके समर्थक नए अपडेट के लिए तरस गए हैं। 

एक नेता, जो इस मामले आदर्श है
इन सब नेताओं के बाद एक नंबर आता है एक ऐसे नेता का, जिसकी जीत की चर्चा लोकसभा चुनाव के बीच दब गई। लेकिन वह हिमाचल के तमाम नेताओं के लिए आदर्श हैं। वह चुनाव से पहले सोशल मीडिया पर अगर कम ऐक्टिव थे तो अब ज्यादा हैं।
नरिंदर ठाकुर, सुजानपुर के विधायक
सुजानपुर के नव निर्वाचित विधायक नरिंदर ठाकुर की लोकप्रियता फेसबुक पर सबसे तेजी से बढ़ी है। इनका पेज तो नहीं है, अपनी एक पर्सनल प्रोफाइल है। चुनाव से पहले 7 मई तक इनके मात्र 1300 फ्रेंड थे, लेकिन अब यह संख्या दोगुनी होकर करीब 2500 हो गई है। इन हिमाचल की टीम ने यह देखा है कि नरिंदर ठाकुर चुनाव से पहले और बाद में भी सोशल मीडिया ऐक्टिव हैं। वह देर सवेर हर मेसेज का रिप्लाई करने की पूरी कोशिश करते हैं।  सुजानपुर के इस नेता ने सोशल मीडिया को जनता से संवाद का जरिया बताया था और इसपर अमल भी किया। उन्होंने जनता को अपना फ़ोन नंबर भी दे दिया है और स्पष्ट रूप से अपने चाहने वालों को हिदायत भी दे दी है कि सोशल मीडिया पर हाइ, हेलो

, गुड मॉर्निंग , गुड ईवनिंग या जय-जय कार वाले मेसेज न भेजें। उन्होंने कहा कि वे सिर्फ अपनी समस्या या मुद्दे की बात मेसेज में कहें।इस सब के अलग

शिमला के सांसद वीरेंदर कश्यप और उनके प्रतिद्वंदी रहे मोहन लाल का कोई ऑफिशल पेज नहीं है। इन हिमाचल को उम्मीद है कि सभी नेता सोशल मीडिया को अपने प्रचार प्रसार के अलावा जनता की समस्याओं को सुनने और सुझावों को समझने के लिए एक प्लैटफॉर्म की तरह इस्तेमाल करेंगे।In Himachal को फेसबुक पर Like करने के लिए क्लिक करें

…तो इसलिए नहीं मिला अनुराग को मंत्री पद

हिमाचल प्रदेश और खासकर बीजेपी समर्थकों को उम्मीद थी कि हमीरपुर के सांसद और बीजेवाईएम प्रमुख अनुराग ठाकुर को नरेंद्र मोदी के मंत्रिमंडल में जगह मिलेगी। मगर ऐसा हो नहीं पाया। सूत्रों के मुताबिक हिमाचल प्रदेश क्रिकेट एसोसिएशन के चीफ के रूप में अनुराग ठाकुर पर लगे करप्शन  के आरोप ही उनके दुश्मन बन गए। जिस तरह से उन्हें विजिलेंस जांच का सामना करना पड़ रहा है, वह उनके खिलाफ चला गया। भले ही उनके ऊपर आरोप सिद्ध नहीं हुए हैं, लेकिन बीजेपी किसी तरह का रिस्क नहीं लेना चाहती थी।

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पिछली यूपीए सरकार के मंत्रियों पर आरोप लगने भर पर ही बीजेपी इस्तीफा मांगा करती थी। यहां तक कि हिमाचल के सीएम वीरभद्र जब केंद्रीय मंत्री थे, तब उनपर लगे करप्शन के आरोपों पर बीजेपी ने खूब हंगामा किया था। नतीजा यह रहा था कि वीरभद्र को मंत्री पद छोड़ना पड़ा था। ऐसे में टीम मोदी यह नहीं चाहती कि सुशासन का नारा लेकर बनी सरकार किसी भी तरह से बैकफुट पर आए।

अगर भविष्य में अनुराग पर आरोप लगते हैं या करप्शन का मामला सिद्ध हो जाता है, उस स्थिति में बीजेपी सरकार के लिए फजीहत की स्थिति बन सकती है। मीडिया या विपक्ष को कोई गलत मसाला न मिले, इसीलिए कर्नाटक के सीएम येदियुरप्पा को भी मंत्री पद से दूर रखा गया, जबकि उनके बाद सीएम बने सदानंद गौड़ा मंत्री बना दिए गए।

वीरभद्र सिंह लाख कोशिश करने  पर भी अनुराग ठाकुर को लोकसभा में जाने से तो नहीं रोक पाए, लेकिन उनकी सरकार द्वारा एचपीसीए के खिलाफ खोला गया मोर्चा कारगर रहा। विजिलेंस जांच की आंच ने अनुराग ठाकुर के सपनों और पहाड़ की उम्मीदों पर पानी फेर दिया है। उम्मीद जताई जा रही है कि मंत्रिमंडल के विस्तार में उन्हें जगह मिलेगी। वह भी तब, जब वह एचपीचीए केस से बेदाग होकर निकलेंगे।

जगत प्रकाश नड्डा: जीवन परिचय

हिमाचल प्रदेश के लोकप्रिय नेताओं में से एक और बीजेपी के सीनियर लीडर जगत प्रकाश नड्डा पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने की दौड़ में सबसे आगे चल रहे हैं। भले ही प्रदेश में नेतृत्व विवाद को टालने के लिए उन्हें पार्टी ने केंद्र की तरफ भेजा था, लेकिन इस बात का अंदाजा किसी को नहीं था कि अपनी काबिलियत के दम पर वह संगठन में सबसे ऊंचे पद की जिम्मेदारी संभालने तक के दावेदार हो जाएंगे। आइए, एक नजर डालते हैं जेपी नड्डा के अब तक के राजनीतिक सफर पर:

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जिस वक्त बिहार में स्टूडेंट मूवमेंट चरम पर था, उस दौर में जेपी नड्डा की उम्र 15-16 साल थी। मगर इसी उम्र में नड्डा ने इस आंदोलन में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया। इसके बाद वह छात्र राजनीति में सक्रिय हुए और एबीवीपी के साथ जुड़े। 1977 में छात्र संघ चुनाव में वह पटना यूनिवर्सिटी के सेक्रेटरी चुने गए। 13 सालों तक वह विद्यार्थी परिषद में ऐक्टिव रहे।

संगठन में उनकी काबिलियत को देखते हुए जेपी नड्डा को साल 1982 में उनके पैतृक राज्य हिमाचल प्रदेश में विद्यार्थी परिषद का प्रचारक बना कर भेजा गया। इसके साथ ही उन्होंने हिमाचल प्रदेश यूनिवर्सिटी से वकालत की पढ़ाई भी शुरू की। तेज़ तर्रार जेपी नड्डा हिमाचल के उस दौर के छात्रों में काफी लोकप्रिय हुए। नड्डा के नेतृत्व में हिमाचल प्रदेश यूनिवर्सिटी के इतिहास में पहली बार छात्र संघ चुनाव हुआ और उसमें विद्यार्थी परिषद को संपूर्ण जीत हासिल हुई। उस दौर में वह 1983-1984 में हिमाचल प्रदेश यूनिवर्सिटी में विद्यार्थी परिषद के पहले प्रेजिडेंट बने। 1986 से 1989 तक जगत प्रकाश नड्डा विद्यार्थी परिषद के राष्ट्रीय महासचिव रहे।

1989 में केंद्र सरकार के भ्रटाचार के खिलाफ नड्डा ने राष्ट्रीय संघर्ष मोर्चा का गठन किया इस आंदोलन को चलाने के लिए उन्हें 45 दिन तक जेल में भी रहना पड़ा। 1989 के लोकसभा चुनाव में जगत प्रकाश नड्डा को भारतीय जनता पार्टी ने युवा मोर्चा का चुनाव प्रभारी नियुक्त किया गया जो देश में युवा कार्यकर्तायों को चुन कर चुनाव लड़ने के लिए आगे लाने का काम करती थी। 1991 में 31 साल की आयु में नड्डा भारतीय जनता युवा मोर्चा के अध्य्क्ष बने। अपने कार्य काल में नड्डा ने जमीनी स्तर पर लोगों को जोड़ने और ट्रेनिंग देने पर बल दिया। जेपी नड्डा के कार्यकाल में बहुत से युवा पार्टी से जुड़े। उन्होंने कार्यशाला आदि लगाकर युवा वर्ग के भीतर पार्टी की विचारधारा का प्रचार किया । यह उस समय अपने आप में एक नई तरह का प्रयोग था।

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1993 में नड्डा ने चुनावी राजनीति की तरफ रुख किया और अपने पहले ही चुनाव में हिमाचल प्रदेश विधानसभा में बिलासपुर के विधायक के रूप में कदम रखा। इस चुनाव में पार्टी के प्रमुख नेताओं की हार के कारण नड्डा को विधानसभा में विपक्ष का नेता चुना गया। तेज तर्रार और ओजस्वी वक्ता के रूप में नड्डा ने कम विधायकों का साथ होने के बावजूद सरकार को 5 साल तक विभिन्न मुद्दों पर ऐसे घेरा की विपक्ष में होने के बावजूद उन्हें सर्वश्रेष्ठ विधायक चुना गया। 1998 में हिमाचल प्रदेश में बीजेपी की सरकार बनने पर नड्डा ने स्वास्थय मंत्रालय का कार्यभार संभाला। बाद में 2007 की बीजेपी सरकार में नड्डा वन पर्यावरण और संसदीय मामलों के मंत्री रहे। मंत्रायलय और सत्ता से ऊपर संगठन को तवज्जो देने वाले शख्स की छवि रखने वाले नड्डा ने मंत्रालय से इस्तीफा दिया और राष्ट्रीय टीम का रुख किया। वह नितिन गडकरी  की टीम में राष्ट्रीय महासचिव और प्रवक्ता रहे।

राजनाथ सिंह की टीम में उन्हें दोबारा राष्ट्रीय महासचिव चुना गया। अभी तक वह इसी पद पर अपनी सेवाएं दे रहे हैं। लोकसभा चुनाव प्रचार के दौरान संगठन की जिम्मेदारी संभालने से लेकर और भी कई काम उन्होंने बखूबी निभाए। टिकट आवंटन के समय भी उनकी योग्यता पार्टी के काम आई। खास बात यह रही कि वह किसी भी खेमे से नहीं जुड़े और बीजेपी का हर धड़ा उनकी संगठन शक्ति का लोहा मानता है।

नड्डा छत्तीसगढ़ के भी प्रभारी रहे थे, जहां पर बीजेपी ने तीसरी बार सरकार बनाई। लो-प्रोफाइल रहने वाले नड्डा को बीजेपी के लगभग सभी बड़े नेताओं का समर्थन हासिल है। नड्डा के रिश्ते प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से भी काफी अच्छे रहे हैं। एक अखबार में छपी रिपोर्ट के मुताबिक मोदी जब हिमाचल प्रदेश के प्रभारी थे, तब से दोनों के बीच समीकरण काफी अच्छा है। दोनों अशोक रोड स्थित बीजेपी मुख्यालय में बने आउट हाउस में रहते थे। वह बीजेपी के स्टार जनरल सेक्रेटरी अमित शाह के साथ पार्टी की यूथ विंग भारतीय जनता युवा मोर्चा में काम कर चुके हैं।

(विभिन्न स्रोतों से एकत्रित जानकारी के आधार पर)

हार से ‘बौखलाए’ वीरभद्र ने शुरू की बदले की राजनीति?

शिमला।।
प्रदेश की चारों सीटों पर मुंह की खाने से बौखलाई कांग्रेस सरकार ने आनन-फानन में कुछ ऐसे फैसले लिए हैं, जिनसे चारों तरफ उसकी आलोचना हो रही है। सरकार ने कांगड़ा से बीजेपी सांसद शांता कुमार के चैरिटेबल ट्रस्ट के मेडिकल कॉलेज समेत 4 मेडिल कॉलेजों की मंजूरी रद्द कर दी है। इसके साथ ही सचिवालय में शिमला रूरल सेल को बंद करने की तैयारी भी की जा रही है।हिमाचल प्रदेश के अखबारों में छपी खबरों के मुताबिक हिमाचल प्रदेश सरकार ने प्राइवेट मेडिकल कॉलेज स्थापित करने के लिए जारी किए 4 लेटर ऑफ इन्टेंट (एलओआई) कैंसल कर दिए हैं। ये एलओआई इससे पहले ही बीजेपी सरकार ने जारी किए थे। इन चार कॉलेजों में से एक शांता कुमार के विवेकानंद ट्रस्ट का है, जो पालमपुर में है। इसके अलावा हमीरपुर, बडू साहिब पावंटा और मंडी के लिए दी गई मंजूरी भी रद्द कर दी गई है। यह फैसला मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह की अध्क्षता में हुई बैठक में लिया गया है।

कॉलेजों को दिए गए एलओआई रद्द करने को सरकार का सामान्य फैसला समझा जा सकता था, लेकिन एक अन्य फैसले को देखकर ऐसा लग नहीं रहा। सरकार ने सचिवालय में शिमला रूरल सेल को बंद करने की तैयारी शुरू कर  दी है। इसे सेल को कांग्रेस सरकार के गठन के बाद खोला गया था। जाहिर है, ऐसे में यह फैसला भी वीरभद्र सिंह की इजाजत के बिना नहीं लिया गया होगा। इन फैसलों की टाइमिंग भी साफ इशारा कर रही है कि कहीं न कहीं ये राजनीति से प्रेरित फैसले हैं।

खबर है कि वीरभद्र सिंह इस बात से बेहद नाराज हैं कि उनके अपने चुनाव क्षेत्र शिमला रूरल से बीजेपी के कैंडिडेट वीरेंद्र कश्यप को 1734 वोटों की ली़ड कैसे मिल गई। इसी बात से नाराज होकर रूरल सेल को बंद किया जा रहा है। अधिकारी तो इस बारे में कुछ नहीं बोल रहे, लेकिन खबर है कि सोमवार या मंगलवार तक इस सेल को बंद करने का आदेश जारी किया जा सकता है। अखबारों में छपी खबर के मुताबिक शनिवार को सामान्य प्रशासन विभाग ने जानकारी मांगी है कि इस सेल के माध्यम से अब तक विकास के कितने काम हुए हैं।

इन खबरों से वीरभद्र सिंह के करीबी भी हैरान हैं। कांग्रेस के एक जिला स्तर के नेता ने बताया कि वीरभद्र सिंह जैसे परिपक्व नेता से ऐसी राजनीति की उम्मीद नहीं की जा सकती। शिमला रूरल के एक बाशिंदे को शनिवार को सचिवालय में मुसीबतों का सामना करना पड़ा। इस परेशान सीनियर सिटिजन ने कहा कि राजनीति में जीत-हार लगी रहती है। इस तरह से बदले की भावना से काम करना लोकतंत्र की भावना के खिलाफ है।

वहीं वीरभद्र के विरोधियों का कहना है कि परिवारवाद के चक्कर में वीरभद्र विवेक खो चुके हैं। कुछ लोग उनकी बढ़ती हुई उम्र को भी इस तरह के फैसलों के लिए जिम्मेदार मान रहे हैं। वीरभद्र के करीबियों का भी मानना है कि पहले से ही हाईकमान की नजरों में चढ़े वीरभद्र इस तरह के कदम उठाकर अपनी ही मुश्किलें बढ़ा रहे हैं। मगर ये करीबी वीरभद्र को सलाह देने की हिम्मत भी नहीं जुटा पा रहे, क्योंकि इन दिनों कब उनका मूड उखड़ जाए, कहा नहीं जा सकता।

राजनीतिक पंडितों के मुताबिक आमतौर पर राजनीति की शतरंज के माहिर वीरभद्र सोच-समझकर चालें चलते थे। लेकिन अब चारों तरफ से घिर जाने पर अब वह एक अनाड़ी की तरह फैसले लेकर चालें-चल रहे हैं। वह प्यादों को मारने के चक्कर में अपने हाथी, घोड़े, ऊंट और वजीर तक को गंवा चुके हैं। अब उनके पास सिर्फ राजा और कुछ प्यादे ही बचे हैं। देखना यह है कि इस तरह से यह बाजी कब तक चलती रहती है।

मंडी जिले में सिर्फ सराज विधानसभा क्षेत्र से लीड ले पाईं प्रतिभा सिंह

मंडी।। मंडी लोकसभा सीट पर कांग्रेस प्रत्याशी प्रतिभा सिंह को हराने वाले बीजेपी उम्मीदवार रामस्वरूप शर्मा को मंडी जिले के सभी विधानसभा क्षेत्रों से लीड मिली है मगर सराज में वह प्रतिभा सिंह से पीछे रह गए। हैरानी की बात यह है कि ऐसी हालत तब है जब सराज के विधायक जयराम ठाकुर खुद मंडी लोकसभा सीट से उपचुनाव लड़ चुके थे। हालांकि उसमें उन्हें बड़े अंतर से हार का सामना करना पड़ा था।

चुनाव के नतीजे बताते हैं कि भाजपा प्रत्याशी रामस्वरूप शर्मा ने 39856 मतों की लीड लेकर अपने प्रतिद्वंद्वी कांग्रेस प्रत्याशी प्रतिभा सिंह को पराजित किया। 17 विधानसभा क्षेत्रों में राम स्वरूप शर्मा को 362824 मत मिले। कांग्रेस की प्रतिभा सिंह को 322968 मत पड़े। सीपीआईएम के कुशाल भारद्वाज 13965 मत लेकर तीसरे स्थान पर रहे। 6191 मत नोटा के रिकॉर्ड किए गए। मंडी संसदीय सीट पर कुल 726482 मत पड़े। इसमें 1412 वोट पोस्टल बैलेट पेपर के शामिल हैं।

जिला मंडी में सिर्फ एक जगह से प्रतिभा का लीड
इस संसदीय क्षेत्र के तहत मंडी जिले की जो सीटें आती हैं, उनमें सिर्फ सराज में ही प्रतिभा सिंह को लीड मिली है। सराज से रामस्वरूप को 21182, प्रतिभा को 22673, कुशाल को 970 मत मिले। इसके अलावा मंडी विस क्षेत्र से रामस्वरूप शर्मा को 23574 मत, प्रतिभा को 17180 तथा सीपीआईएम के कुशाल भारद्वाज को 661 मत पड़े। बल्ह विस क्षेत्र से भाजपा को 25873, कांग्रेस को 20621, सीपीआईएम को 595 मत मिले।

सुंदरनगर से भाजपा को 23542, कांग्रेस को 18860, सीपीआईएम को 546 मत मिले। द्रंग से रामस्वरूप को 22668, प्रतिभा को 21020, कुशाल को 730 मत, नाचन से रामस्वरूप को 26454, प्रतिभा को 22377, कुशाल को 639, करसोग से रामस्वरूप को 17286, प्रतिभा को 14610, कुशाल को 509 वोट मिले। जोगिंदर नगर से भाजपा प्रत्याशी राम स्वरूप को 35500, प्रतिभा को 15589, कुशाल को 2135 मत, सरकाघाट से रामस्वरूप को 26330, प्रतिभा को 17896, कुशाल को 792 मत मिले।

कुल्लू में भी भाजपा को लीड
कुल्लू से भाजपा को 23473, कांग्रेस को 22105 और सीपीआईएम को 684, मनाली से भाजपा को 20112, कांग्रेस को 17995, कुशाल को 621, बंजार से भाजपा को 18295, कांग्रेस को 17892, सीपीआईएम 1001, आनी से भाजपा को 23199, कांग्रेस को 20668 व कुशाल 1966 मत मिले।

बाकी सीटों पर प्रतिभा रहीं आगे
इनके अलावा बाकी जिलों के जो विधानसभा क्षेत्र मंडी संसदीय क्षेत्र में आते हैं, उनमें कांग्रेस का प्रदर्शन अच्छा रहा। जैसे कि रामपुर से रामस्वरूप को 14866 मत, प्रतिभा को 25002, कुशाल को 1213, किन्नौर से रामस्वरूप को 16209 मत, प्रतिभा को 18844 और कुशाल को 314 मत, भरमौर से रामस्वरूप को 19442, प्रतिभा को 21006, कुशाल को 411, लाहौल स्पीति से भाजपा को 5333, कांग्रेस को 8127, कुशाल 168 मत मिले।

हिमाचल में कांग्रेस का सूपड़ा साफ, जानें क्या रही वजह

शिमला।।
हिमाचल प्रदेश के नतीजे एकदम चौंकाने वाले रहे हैं। सारे के सारे कयास धरे के धरे रह गए और मोदी लहर ने अपना रंग दिखा दिया। पहले यह माना जा रहा था कि बीजेपी का स्कोर 3-1 रह सकता है। कुछ लोग तो यह भी कह रहे थे कि 3-1 का स्कोर कांग्रेस का भी रह सकता है। मगर काउंटिंग शुरू होने के डेढ़ घंटे के भीतर ही तस्वीर साफ हो गई। बीजेपी ने प्रदेश की चारों सीटों पर कब्जा कर लिया। सबसे ज्यादा चौंकाने वाला रिजल्ट रहा मंडी लोकसभा सीट का, जहां पर सबकी उम्मीदों के उलट बीजेपी के राम स्वरूप शर्मा ने कांग्रेस कैडिडेट प्रतिभा सिंह को बुरी तरह से हराया। आम आदमी पार्टी हिमाचल में बुरी तरह फ्लॉप रही। जानिए, क्या रही इन नतीजों की वजह:In Himachal को फेसबुक पर फॉलो करें

मंडी: वीरभद्र का ओवर कॉन्फिडेंस ले डूबा प्रतिभा को
हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह को लगता था कि उनकी पत्नी प्रतिभा सिंह आराम से इस सीट को जीत लेंगी। उन्हें लगता था कि जिस तरह से पिछले उप-चुनावों में प्रतिभा ने जय राम ठाकुर को रेकॉर्ड वोटों से हराया है, वैसा ही इस बार भी होगा। लेकिन वह भूल गए थे कि इस बार हालात अलग हैं। मोदी लहर के फैक्टर ने जहां कम जाना-पहचाना चेहरा होने के बावजूद राम स्वरूप शर्मा को वोट दिलाए, वहीं वीरभद्र के ओवर कॉन्फिडेंस की वजह से प्रतिभा सिंह के वोट शिफ्ट हो गए। चुनाव प्रचार के दौरान वीरभद्र सिंह का मंडी न आना गलत फैसला रहा। गौरतलब है कि इस सीट को ब्राह्मण बहुल माना जाता है। ऐसे में पंडित सुखराम के बाद राम स्वरूप शर्मा को ब्राह्मण वोट मिले होंगे, इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता। वोटों के इस शिफ्ट को रोका जा सकता था, लेकिन वीरभद्र ने लोगों से संपर्क करने की जहमत तक नहीं उठाई। धूमल परिवार से व्यक्तिगत लड़ाई पर फोकस करते हुए उन्होंने पूरा फोकस हमीरपुर सीट से अनुराग ठाकुर को हराने पर लगा दिया था। थोड़ा सा ध्यान वह मंडी पर भी दे देते, तो शायदा प्रतिभा सिंह को हार का सामना नहीं करना पड़ता।

अनुराग जीते, प्रतिभा हारीं और शांता जीते। शिमला से कश्यप भी  जीते

हमीरपुर: मोदी लहर में उड़े राजेंद्र राणा
अनुराग ठाकुर से जनता कई वजहों से नाराज थी। कुछ लोग कहते थे कि उनमें ऐटिट्यूड आ गया है, कुछ कहते थे कि उन्हें इलाके में रुचि नहीं, कुछ कहते थे कि वह बाहर ही रहते हैं, कुछ का मानना था कि वह क्रिकेट पर ही ध्यान दे लें तो बेहतर है। कई सारे फैक्टर्स के अलावा कई अफवाहों ने अनुराग के खिलाफ माहौल बनाया था। ऐसा लग रहा था मानो राजेंद्र राणा उन्हें धूल चटा देंगे। लेकिन नरेंद्र मोदी फैक्टर इन बातों पर हावी हो गया। माना जा रहा है कि लोग भले ही अनुराग से नाराज रहे हों, लेकिन उन्होंने यह सोचकर वोट दे दिया कि बीजेपी की सरकार बनी तो अनुराग को मंत्रिपद मिलेगा। आखिरी लम्हे में वोटरों के मूड शिफ्ट ने अनुराग को बड़े अंतराल से जिताया। अगर किसी वजह से उनकी हार हो जाती या जीत का अंतर कम रहता, तो यह बात उनके राजनीतिक करियर के लिए नेगेटिव हो सकती थी।

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कांगड़ा: शांता की बेदाग छवि का जादू चला
पत्नी को पार्टी से विधानसभा का टिकट नहीं मिला था, तो उस वक्त बीजेपी के सांसद राजन सुशांत बागी हो गए थे। उन्होंने बीजेपी और शांता कुमार के खिलाफ मोर्चा खोल दिया था। आखिरकार तय हुआ कि उनकी जगह शांता कुमार खुद चुनाव लड़ेंगे। टिकट कटना तय था, ऐसे में राजन सुशांत ने आप की टोपी पहनकर चुनाव लड़ा। आलम यह रहा कि सिटिंग एमपी होने के बावजूद उनका प्रदर्शन बेहद खराब रहा। वह तीसरे नंबर पर रहे औऱ वह भी बेहद कम वोटों के साथ। लड़ाई चंद्र कुमार और शांता कुमार के बीच रही, लेकिन वह भी एकतरफा। जातिगत समीकरण फेल हो गए और जनता ने शांता कुमार की बेदाग और विजनरी छवि के आधार पर वोट किया। मोदी वेव ने आग में भी का काम किया और शांता कुमार तगड़े मार्जन से जीते।

शिमला: मोदी लहर और कांग्रेस में भितरघात
राजनीति के पंडित मान रहे थे कि राजा को पसंद करने वाले कथित ‘ऊपरी हिमाचल’ के लोग कांग्रेस को वोट करेंगे। मगर ऐसा हुआ नहीं। बरागटा के बजाय लोगों ने वीरेंद्र कश्यप को चुना। अगर वीरभद्र सिंह हमीरपुर के बजाय यहां पर ध्यान लगाते तो इतनी दुर्गति नहीं होती। साथ ही वीरभद्र के विरोधी खेमे द्वारा किया गया भितरघात भी बरागटा के लिए नुकसानदेह रहा। वीरेंद्र कश्यप के खिलाफ शिमला से वीरेंद्र कुमार कश्यप नाम से एक इंडिपेंडेंट कैंडिडेट भी खड़े थे। मगर वह भी कश्यप के वोट नहीं काट पाए। नतीजा यह रहा कि हिमाचल प्रदेश का स्कोर 4-0 रहा।

नतीजों का प्रभाव क्या रहेगा?
कांग्रेस की हार की पूरी जिम्मेदारी वीरभद्र सिंह को उठानी होगी, क्योंकि उन्होंने अपनी मर्जी से टिकट डलवाए थे। भले ही पूरे देश में कांग्रेस का प्रदर्शऩ खराब रहा है, लेकिन वीरभद्र इससे बच नहीं सकते। आलाकमान वैसे भी प्रदेश में नेतृत्व परिवर्तन के लिए बहाना खोज रहा है। वीरभद्र की कई शिकायतें नजरअंदाज करने के बाद शायद ही इस बार उनपर कोई कार्रवाई न हो।

खतरे में है हिमाचल प्रदेश में सेब का कारोबार

शिमला।।
हिमाचल प्रदेश में सेब का कारोबार खतरे में है। सरकारों की अनदेखी की वजह से प्रदेश की ऐपल इंडस्ट्री बदहाली के दौर से गुजर रही है। दरअसल सेबों के व्यापारी हिमाचल प्रदेश के बागान मालिकों से सेब खरीदने के बजाय विदेशों से सस्ता सेब इंपोर्ट कर रहे हैं।
 
 
हिमाचल की 2500 करोड़ रुपये की सेब इंडस्ट्री प्रदेश की जीडीपी में 6% से ज्यादा का योगदान देती है। मगर अब फलों के कारोबारी विदेशों से सस्ते सेबों का आयात करवा रहे हैं। इस वजह से हिमाचल के ऐपल बर्बाद हो रहे हैं। बागवानों को सेबों के जो दाम पहले मिलते थे, अब उन्हें उतनी कीमत नहीं मिल रही। उनके पास दो ही ऑप्शन हैं- सेबों को या तो सस्ते में बेच दो या फिर उन्हें यूं ही सड़ने दो। ऐसे में उन्हें कम दाम में सौदा करना पड़ रहा है।



एक इंग्लिश न्यूज पेपर में छपी रिपोर्ट के मुताबिक कई सारे युवाओं ने मल्टिनैशनल कंपनियों की जॉब छोड़ दी थी, ताकि वे घर आकर सेब का कारोबार संभाल सकें। मगर अब उन्हें पछतावा हो रहा है। अगर जल्द ही सेब को लेकर कोई साफ पॉलिसी नहीं बनाई गई, तो हिमाचल का सेब कारोबार दम तोड़ सकता है। यह बात प्रदेश की इकॉनमी के लिए भी अच्छी नहीं होगी। 


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रिपोर्ट के मुताबिक कांग्रेस और बीजेपी दोनों ही सरकारें इस हाल के लिए दोषी हैं। अगर वक्त रहते नीतियों में बदलाव किए होते तो आज ऐपल इंडस्ट्री की ऐसी हालत न होती। जरूरी है कि बागवानों को ऐपल की नई और प्रचलित किस्मों की पैदावार करने के लिए प्रोत्साहित किया जाए। इसके लिए सरकार को बागवानों की मदद भी करनी चाहिए, लेकिन फिलहाल ऐसा होता दिख नहीं रहा।

दिल्ली में वीरभद्र की जड़ें काटने में जुटा विरोधी खेमा?

नई दिल्ली।।
लोकसभा चुनाव का रिजल्ट आने से पहले ही वीरभद्र विरोधी खेमा दिल्ली में सक्रिय हो गया है। स्वास्थ्य एवं राजस्व मंत्री कौल सिंह ठाकुर, सिंचाई एवं जन स्वास्थ्य मंत्री विद्या स्टोक्स,  परिवहन मंत्री जीएस बाली, पंचायती राज एवं ग्रामीण विकास मंत्री अनिल शर्मा और प्रदेश पार्टी अध्यक्ष सुखविंदर सिंह सुक्खू दिल्ली में डटे हुए हैं।

पढ़ें: एग्जिट पोल दे रहे हैं वीरभद्र की विदाई के संकेत

‘इन हिमाचल’ ने अपनी विस्तृत रिपोर्ट में बताया था कि अगर लोकसभा चुनाव के नतीजे कांग्रेस के लिए अनुकूल नहीं रहते हैं, तो वीरभद्र सिंह को सीएम की कुर्सी गंवानी पड़ सकती है। इन आशंकाओं को और बल मिलता दिख रहा है। मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह और उनकी कैबिनेट के सीनियर मंत्री दिल्ली गए थे। हिंदी अखबार ‘पंजाब केसरी’ की खबर के मुताबिक मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह तो मंगलवार देर शाम शिमला लौट आए, लेकिन बाकी लोग दिल्ली में ही रुके हुए हैं।

बाली, कौल सिंह और स्टोक्स की एक पुरानी तस्वीर(Courtesy: Indian Express)

अखबार के मुताबिक एक दिन के दिल्ली दौरे के बाद मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह मंगलवार देर शाम शिमला पहुंचे। पहले वह हेलिकॉप्टर से आने वाले थे, लेकिन खराब मौसम के चलते उन्हें बाइ रोड शिमला आना पड़ा। अपने दिल्ली दौरे के दौरान उन्होंने प्रदेश कांग्रेस के प्रभारी राजीव शुक्ला समेत कई पार्टी नेताओं के साथ मुलाकात की। बाकी नेता दिल्ली में ही डटे हुए हैं।

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माना जा रहा है कि वीरभद्र का विरोधी खेमा एकजुट होकर अभी से उनका पत्ता साफ करने की कोशिशों में जुट गया है। सूत्रों के मुताबिक यह धड़ा आलाकमान को यह विश्वास दिलाने की कोशिश कर रहा है कि अगर वीरभद्र सिंह को मुख्यमंत्री पद से हटाया जाता है तो इससे पार्टी में बिखराव नहीं होगा।

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एग्जिट पोल दे रहे हैं वीरभद्र सिंह की विदाई के संकेत

नई दिल्ली।।
हाल ही में आए कई एजेंसियों के एग्जिट पोल संकेत दे रहे हैं कि हिमाचल प्रदेश में बीजेपी का स्कोर 4-0 या 3-1 रह सकता है। यह हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह के लिए अच्छा संकेत नहीं है। वीरभद्र सिंह ने हिमाचल प्रदेश की चारों सीटों पर संगठन की इच्छा को नजरअंदाज करते हुए अपनी मर्जी से टिकट दिलवाए थे। ऐसे में खराब प्रदर्शन की सीधी जिम्मेदारी उन्हीं की होगी। इसके साथ ही पूरे मंत्रिमंडल का मंगलवार को दिल्ली पहुंचना भी कई सवाल खड़े करता है। इसके अलावा भी कई और फैक्टर हैं, जो वीरभद्र के लिए मुश्किलें खड़ी कर सकते हैं। ‘In Himachal’ की स्पेशल रिपोर्ट:

पढ़ें: दिल्ली में वीरभद्र की जड़ें काटने में जुटा विरोधी खेमा

पुरानी बगावत भूली नहीं हाईकमान
गौरतलब है कि वीरभद्र सिंह कांग्रेस आलाकमान की नजरों में पिछले 2 साल से खटके हुए हैं। केंद्र में मंत्री
रहते हुए वीरभद्र पर लगे आरोप कांग्रेस के लिए फजीहत का विषय बन गए थे। इसके बावजूद साल 2012 में हुए विधानसभा चुनाव से ठीक पहले वीरभद्र सिंह ने कौल सिंह ठाकुर को बाहर का रास्ता दिखाकर प्रदेश की राजनीति में एंट्री मारी थी। दरअसल उन दिनों चर्चा यह भी उठी थी कि अगर कांग्रेस उन्हें प्रदेश में विधानसभा चुनाव प्रचार अभियान का प्रभारी नहीं बनाती है, तो वह बगावत कर देंगे। खबरें यह उठी थीं कि वह अलग पार्टी बना सकते हैं या एनसीपी के साथ जा सकते हैं। उस वक्त आलाकमान को मजबूरी में उन्हें प्रदेश में पार्टी की कमान सौंपनी पड़ी थी।

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महंगा पड़ेगा अड़ियल रवैया
इसके बाद भले ही कांग्रेस की सरकार बनी और वीरभद्र सीएम बने, लेकिन कांग्रेस हाईकमान के पास लगातार उनकी शिकायतें पहुंचती रहीं। आरोप लगे कि उन्होंने मंत्रिमंडल का गठन करते वक्त भी मनमानी की। कई मौकों पर आशा कुमारी, जी.एस.बाली, राकेश कालिया और राजेश धर्माणी जैसे नेता अपनी नाराजगी जाहिर करते रहे हैं। हाल ही में राजेश धर्माणी का सीपीएस पद को छोड़ना इसी बात का एक उदाहरण है। आलाकमान में इससे यह संकेत गया है कि वीरभद्र सिंह का अड़ियल रवैया पार्टी को बांट रहा है।

साभार: TheHindu.com

परिवारवाद के आरोप
वीरभद्र सिंह पर परिवारवाद के भी आरोप लगते रहे हैं। उनकी पत्नी सांसद रही हैं और इस बार भी चुनाव लड़ रही हैं। पिछले दिनों प्रतिभा सिंह के समर्थन में कुल्लू में हुई एक सभा में वीरभद्र सिंह ने कहा कि मैं किसी महिला को सीएम देखना चाहता हूं। इससे कयास यही लगाए जा रहे हैं कि वह अपनी पत्नी प्रतिभा सिंह की तरफ इशारा कर रहे हैं। यही नहीं, चर्चा है कि उनके बेटे और युवा कांग्रेस के अध्यक्ष विक्रमादित्य सिंह का विभिन्नय मंत्रालयों में दखल बढ़ा है। कांग्रेस में संगठन स्तर पर इस बात से भी नाराजगी है।

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करप्शन के आरोप
यूं तो वीरभद्र सिंह एचपीसीए और धूमल परिवार की अन्य कथित गड़बड़ियों को लेकर आए दिन बयान देते रहते हैं, लेकिन जब उन पर लगे कई आरोपों पर सवाल पूछे जाते हैं, तब वह खामोश रहते हैं या भड़क जाते हैं। आलम यह है कि पार्टी के राष्ट्रीय स्तर के प्रवक्ता जब विपक्षी पार्टियों के करप्शन के आरोपों से घिरे नेताओं पर निशाना साधते हैं, तब उन्हें वीरभद्र के सवाल पर खामोश होना पड़ता है। साथ ही यह भी हो सकता है कि बीजेपी की सरकार आने पर वीरभद्र के खिलाफ सीबीआई जांच में भी तेजी आए। ऐसे में भविष्य की रणनीति में जुटी कांग्रेस नहीं चाहेगी कि वह वीरभद्र की वजह से किसी मुश्किल में फंसे।

मीडिया से बदसलूकी
आमतौर पर शांत और हंसमुख रहने वाले वीरभद्र सिंह साल 2012 में करप्शन पर सवाल पूछने पर मीडिया पर भड़क उठे थे। मगर यह सिलसिला थमा नहीं। हाल ही में एक बार फिर उन्होंने एक रिपोर्टर को कैमरा तोड़ने की धमकी दे डाली। चुनावी माहौल में नैशनल टीवी चैनलों में उनका यह रूप दिखना कांग्रेस के लिए एक बार फिर शर्मिंदगी का कारण बन गया।

पढ़ें: नड्डा बन सकते हैं बीजेपी के अगले प्रेजिडेंट

वीरभद्र की उम्र भी फैक्टर
कांग्रेस आलाकमान वीरभद्र की सम्मानजक विदाई का रास्ता ढूंढ रही है। राहुल गांधी के फॉर्म्यूले पर चलते हुए कांग्रेस युवा लोगों को जिम्मेदारी देना चाह रही है। वीरभद्र सिंह 85 वर्ष के हो चले हैं, ऐसे में यह उनका आखिरी कार्यकाल माना जा रहा है। इसलिए कांग्रेस चाहेगी कि अगले विधानसभा चुनाव से पहले कोई नया चेहरा मुख्यमंत्री पद संभाले, जिसके नेतृत्व में वह अगले चुनावी समर में उतर सके। ऐसे में वीरभद्र सिंह को राष्ट्रीय स्तर पर संगठन में कोई जिम्मेदारी दी जा सकती है।

कौन होगा कांग्रेस का अगला चेहरा?
यूं तो कांग्रेस पिछला विधानसभा चुनाव कौल सिंह ठाकुर के नेतृत्व में लड़ने की तैयारी कर रही थी, लेकिन आखिरी वक्त में वीरभद्र ने नेतृत्व किया। विद्या स्टोक्स की दावेदारी अब इसलिए खत्म मानी जा रही है, क्योंकि वह भी उम्रदराज हो चुकी हैं। मगर सबसे अहम बात यह है कि कौल सिंह के करीबी और केंद्रीय मंत्री आनंद शर्मा खुद भी इस दौड़ में शामिल हो सकते हैं। हिमाचल प्रदेश की राजनीति में उनकी रुचि पहले से ही रही है। अगर केंद्र से कांग्रेस की सरकार गई, तो कांग्रेस आलाकमान के नजदीकी आनंद शर्मा हिमाचल प्रदेश की राजनीति में आने के लिए एकदम फ्री रहेंगे। कांग्रेस का एक धड़ा जी.एस. बाली के लिए भी माहौल बनाने में जुटा हुआ है।