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Friday, September 12, 2025
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अगले चुनावों में धूमल नहीं, नड्डा करेंगे बीजेपी का नेतृत्व!

नई दिल्ली।।
राज्यों के लिए तय किए गए नए फॉर्म्युले के तहत हिमाचल प्रदेश बीजेपी में बड़ा फेरबदल हो सकता है। ‘बुजुर्ग’ प्रेम कुमार धूमल की जगह जगत प्रकाश नड्डा 2017 में होने वाले विधानसभा के अगले चुनावों में प्रदेश बीजेपी का नेतृत्व कर सकते हैं।

लोकसभा चुनाव में मोदी, शाह और राजनाथ सिंह की जुगलबंदी के फॉर्म्युले पर लड़ी बीजेपी ने इतिहास बना दिया। अब पार्टी चाहती है कि संगठन में जो नया उत्साह और नई जान आई है, उसे बरकरार रखा जाए। ‘इन हिमाचल’ को बीजेपी सूत्रों से जानकारी मिली है कि पार्टी के थिंक टैंक एक ऐसा फॉर्म्युला लेकर आए हैं, जिसकी मदद से पूरे देश में संगठन को मजबूत करने की मुहिम चलाई जाएगी।

नड्डा के बढ़ते कद से धूमल चिंतित थे। पार्टी में कोई विवाद न हो, इसलिए नड्डा को पार्टी ने केंद्र की राजनीति में बुला लिया था

दरअसल टीम मोदी ने एनालिसिस करके निचोड़ निकाला है कि बीजेपी की अभूतपूर्व जीत में युवा वर्ग की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। नई पीढ़ी की राजनीति में बनी इस दिलचस्पी को बीजेपी भुनाना चाहती है। वह इस कोशिश में है कि जिस फॉर्म्यूले की मदद से नरेंद्र मोदी ने लगातार तीन बार गुजरात में सरकार बनाई थी, उसी फॉर्म्यूले को दूसरे राज्यों में भी लागू किया जाए।

जानिए, क्या है यह गुजरात फॉर्म्यूला:

1. राज्य के चुनावों में बीजेपी का नेता या सीएम कैंडिडेट उसी को घोषित किया जाएगा, जिसकी उम्र 70 साल से कम होगी।

2. 70 साल से ऊपर के नेताओं के बजाय युवा नेताओं को टिकट देते वक्त प्राथमिकता दी जाएगी।

3. 70 साल की उम्र पार कर चुके नेताओं को राज्य में सलाहकार की भूमिका दी जाएगी। इस कैटिगरी में आने वाले पूर्व मुख्यमंत्रियों या तो राज्यपाल बनाया जाएगा या राज्यसभा भेजा जाएगा।

4. प्रदेश में पार्टी अध्यक्ष की जिम्मेदारी 60 साल के करीब के अनुभवी नेता को दी जाएगी।

5. आरोपों से घिरे नेता के नेतृत्व में चुनाव नहीं लड़ा जाएगा। इससे चुनाव के समय संगठन का मनोबल टूटता है और जनता में मेसेज भी गलत जाता है।

6. करप्शन करने वाले, खराब छवि वाले या अन्य किसी मामले में घिरे विधायक का टिकट काट दिया जाएगा।

7. किसी भी विवादास्पद शख्स को टिकट नहीं दिया जाएगा।

इन 7 सूत्रों में उन विधायकों और मुख्यमंत्रियों को छूट मिलेगी, जिनकी छवि अच्छी है और जो लगातार जीतते आ रहे हैं।

अब इस फॉर्म्युले के हिसाब से हिमाचल प्रदेश की राजनीति की बात करें तो पूर्व मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल 2017 तक 74 साल के हो जाएंगे। दूसरी बात यह है कि वह प्रदेश में बीजेपी को रिपीट करवाने में कभी कामयाब नहीं रहे।  पिछला विधानसभा चुनाव हो या लोकसभा चुनाव, बीजेपी संगठन की पूरी ताकत धूमल परिवार पर लगे आरोपों का बचाव करने में ही चली गई।

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ऊपर के फॉर्म्युले को लागू किया गया तो धूमल का हटना तय है। उनके बाद हिमाचल में बीजेपी के बड़े और स्थापित नेता की बात की जाए तो वह जे.पी. नड्डा हैं। ऐसे में 2017 में प्रदेश में पार्टी की कमान का नड्डा को सौंपा जाना लगभग तय लग रहा है।  पार्टी ऐसा करना इसलिए भी जरूरी समझती है, ताकि प्रदेश बीजेपी को एक यंग नेता मिले और पार्टी को कांग्रेस की तरह नेतृत्व संकट का सामना न करना पड़े। गौरतलब है कि प्रदेश में कांग्रेस में वीरभद्र के बाद दूसरी कतार के नेता आपस में उलझे पड़े हैं। कांग्रेस को डर है कि वीरभद्र के बाद कहीं पार्टी बिखर न जाए।

लोकसभा चुनाव के दौरान नड्डा की नेतृत्व और संगठन क्षमता से प्रभावित नरेंद्र मोदी उन्हें महत्वपूर्ण भूमिका देना चाहते थे। उन्हें मंत्री पद की पेशकश भी की गईx थी, लेकिन नड्डा ने कहा कि वह संगठन में रहना पसंद करेंगे। गौरतलब है कि बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष के पद के लिए भी नड्डा के नाम की चर्चा थी, मगर आखिरी पलों में मोदी के करीबी अमित शाह को यह पद मिला। ऐसे में मोदी इस बात की क्षतिपूर्ति के लिए धूमल के बाद नड्डा को आगे बढ़ाना पसंद करेंगे।

बीजेपी के फॉर्म्युले के हिसाब से अगर धूमल की जगह नड्डा लेते हैं, तो हिमाचल विधानसभा चुनाव से पहले प्रफेसर धूमल को राज्यपाल बनाया जा सकता है। वहीं अनुराग ठाकुर को केंद्र में मंत्री पद दिए जाने की बात तय लग रही है। मोदी नहीं चाहते कि अनुराग हिमाचल की राजनीति में जाएं और पार्टी पर परिवारवाद का आरोप लगे। इसके बजाय वह अनुराग को राष्ट्रीय राजनीति के भविष्य के रूप में तैयार करना चाहेंगे। इसके लिए अनुराग को केंद्र में मंत्री बनाया जाना तय लग रहा है।

वीरभद्र के करीबी मंत्री सुधीर शर्मा और जी.एस. बाली में बहस

शिमला।।
हिमाचल के मुख्यमंत्री पर ऊपर और नीचे के हिमाचल (अपर ऐंड लोअर) से भेदभाव के आरोप हमेशा से लगते रहे हैं। देखा जाए तो इस बार लोकसभा चुनाव के नतीजे आने के बाद से इन आरोपों में दम भी नजर आने लगा है। संकेत मिल रहे हैं कि प्रदेश में अपर और लोअर हिमाचल की राजनीति एक बार  फिर शुरू हो गई है।‘इन हिमाचल’ को फेसबुक पर लाइक करेंआम चुनाव के नतीजे आने के बाद से मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह अपने कुछ खास सिपहसलारों की मंडली तक सीमित रग गए हैं। वह अपनी ही सरकार के मंत्रियों और कुछ विधयकों को तवज्जो नहीं दे रहे हैं। खास तौर पर निचले  हिमाचल के नेताओं पर मुख्यमंत्री की टेढ़ी नजर है। अपनी ही सरकार में अनदेखी से नाराज  सीपीएस  राजेश धर्माणी  2 बार इस्तीफा दे चुके हैं। इसके साथ ही कांग्रेस के तेज़-तर्रार नेता  जी.एस.बाली ने एक बार फिर मुख्यमंत्री  के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है।

सीएम के सामने बाली और शर्मा में तीखी बहस हुई- सूत्र।

2-3 दिन पहले मुख्यमंत्री के सामने ही शहरी विकास मंत्री सुधीर शर्मा और बाली के बीच तीखी बहस हुई। इसके तुरंत बाद बाली सीएम के कैबिन से कुछ बड़बड़ाते हुए बाहर निकले। इसके तुरंत बाद उन्होंने  गाड़ियां भी वापिस कर दी हैं और सीएम से 3 महीने की छुट्टी मांगी है।  खबर है कि बाली किसी प्रॉजेक्ट पर काम करना चाहते हैं, लेकिन उसके लिए सुधीर शर्मा के मंत्रालय से अनुमति जरूरी है। उस प्रॉजेक्ट की फाइल सुधीर शर्मा के मंत्रालय में ही लटकी हुई है। गौरतलब है कि सुधीर शर्मा को इस वक्त मुख्यमंत्री का सबसे करीबी समझा जाता है। माना जा रहा है कि सीएम की शह पर ही शर्मा ने वह फाइल लटकाई थी।

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निचले हिमाचल के सारे विकास कार्य ठप पड़े हैं। कई योजनाओं के शिलान्यास और उद्घाटन मुख्यमंत्री का रास्ता देख  हैं, लेकिन वब 16 मई के बाद से आज तक लोअर हिमाचल में किसी कार्यक्रम में नहीं दिखे हैं। इससे ज़ाहिर होता है कि अपने परिवार को मजबूत करने के लिए ही वीरभद्र सिंह अपने परम्परागत गढ़ ‘ऊपरी हिमाचल’ में ज्यादा सक्रिय हो गए हैं।  इस कारण से ‘लोअर हिमाचल’ को नुकसान झेलना पड़ रहा है, जो कहीं से भी प्रदेश के हित में नहीं है।

जनता के बीच राजेश धर्माणी और जी.एस. बाली तेज़-तर्रार नेता की छवि रखते हैं  और समय-समय विधानसभा  में  जनहित की आवाज मुखर करते रहे हैं। बाली तो भविष्य के मुख्यमंत्री भी बताए जा रहे हैं। हिमाचल की राजनीति की समझ रखने वाले कुछ जानकार बताते हैं कि अभी कांग्रेस के मंत्रिमंडल में सिर्फ बाली इकलौते ऐसे मंत्री हैं जो कुछ न कुछ हटकर कदम उठाते रहे हैं। बाकी मंत्री सिर्फ सीएम की रबर स्टांप हैं या पुराने ढर्रे पर चल रहे हैं।

अब मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह ने ट्विटर पर किया फर्जीवाड़ा?

स्पेशल डेस्क।।
हिमाचल प्रदेश के निवासी इस बात पर गर्व करते हैं कि उनका प्रदेश बेहद सादगी पसंद है और यहां के लोग दिखावे यानी कि शो ऑफ में यकीन नहीं रखते। मगर हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री ने कुछ ऐसा कर दिया है, जिससे हिमाचल प्रदेश के युवा शर्म महसूस कर रहे हैं। मुख्यमंत्री ने अपने ऑफिशल ट्विटर अकाउंट पर फर्जीवाड़ा किया है।ट्विटर अकाउंट पर देखें तो आपको 11.7K यानी 11 हजार 700 यूजर मिलेंगे। मगर आपको यह जानकर हैरानी होगी कि इन यूजर्स में से सिर्फ कुछ यूजर ही असली हैं और हिमाचल के यूजर्स की संख्या शायद दहाई में हो। जी हां, हिमाचल के मुख्यमंत्री को फॉलो कर रहे लोगों में 10 हजार से ज्यादा यूजर फर्जी हैं। इनमें से कुछ हैंडल रूस के लोगों के हैं तो कुछ अरब देशों के लोगों के। अब भला रूस के या अरब के लोग हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री को क्यों फॉलो करेंगे?इन हिमाचल’ को फेसबुक पर लाइक करें

दरअसल ये सभी अकाउंट फर्जी हैं। आप इनकी प्रोफाइल पर जाएंगे तो देखेंगे कि हर एक ने कई सारे लोगों को फॉलो किया है और इन्हें फॉलो करने वाले एक-दो ही लोग हैं। यही नहीं, इन लोगों ने कभी ट्वीट तक नहीं किया या फिर कई महीने पहले किया है। इससे साबित हो जाता है कि मुख्यमंत्री ने अपने फॉलोअर्स की संख्या बढ़ा-चढ़ाकर दिखाने के लिए इन सभी नकली यूजर्स को खरीदा है।

वीरभद्र हिमाचल के सीएम हैं या रूस के किसी प्रांत के?

गौरतलब है कि आजकल ऐसी कई एजेंसियां हैं, जिनसे फेसबुक पर लाइक्स और ट्विटर पर फॉलोअर्स खरीदे जा सकते हैं। इन एजेंसियों कई सारी फेक प्रोफाइल्स और हैंडल बनाए होते  हैं। ऐसे में जो कस्टमर इनकी सर्विस लेता है, वे उनके फेसबुक पेज या ट्विटर हैंडल को लाइक या फॉलो करवा देते हैं। आपको जानकर हैरानी होगी कि कुछ एजेंसियां 4 रुपये प्रति लाइक/फॉलोअर से लेकर 10 रुपये प्रति लाइक/फॉलोअर की दर से चार्ज करती है। मान लिया जाए कि वीरभद्र सिंह ने 5 रुपये प्रति फॉलोअर की दर से फर्जी फॉलोअर खरीदे हैं, तो इस किसाब से उन्होंने 50 हजार रुपये से ज्यादा की रकम चुकाई है।

इन हिमाचल’ को ट्विटर पर फॉलो करें

इससे पहले राजस्थान के पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत पर भी फेसबुक लाइक्स खरीदने के आरोप लग चुके हैं। उनके फेसबुक पेज पर 80 फीसदी से ज्यादा लोग तुर्की के थे। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार उन्होंने और कई नेताओं ने अपने प्रशंसकों की संख्या बढ़ा-चढ़ाकर दिखाने के लिए ऐसी ही फर्जी एजेंसियों का सहारा लिया था।

अहम सवाल उठता है कि मुख्यमंत्री को ऐसा करने की जरूरत  क्यों पढ़ी? उन्हें दिखावा करने में फायदा है या ट्विटर के जरिए लोगों तक अपनी बात पहुंचाने में? शायद वीरभद्र सिंह जब किसी अन्य प्रदेश के मुख्यमंत्री से तुलना करते होंगे, तो देखते होंगे कि उनके फॉलोअर तो कम हैं। इसी मौके को भुनाने के लिए किसी एजेंसी ने उनके सामने प्रस्ताव रखा होगा और उन्होंने झट से हां कह दी होगी।

जो भी हो, उनके इस कदम से युवा यूजर शर्मिंदा महसूस कर रहे हैं। दिल्ली में आईटी कंपनी में जॉब करने वाले सोमेश पटियाल ने ‘इन हिमाचल’ को बताया कि मुख्यमंत्री को ऐसा नहीं करना चाहिए था। वहीं बैंकिंग सेक्टर में काम कर रहे अरविंद शर्मा ने  कहा कि वीरभद्र सिंह का यह कदम हैरान नहीं करता। उन्होंने कहा कि पहले से मुख्यमंत्री पर धांधलियों के कई आरोप लगते रहे हैं, ऐसे में वह ऑनलाइन धांधली कर दें तो यह बात नई नहीं है। इस बीच मार्केटिंग एक्सपर्ट मुकेश बरागटा ने मुख्यमंत्री का बचाव किया है। उन्होंने कहा कि राजा साहब पर ऐसा आरोप लगाना सही नहीं है। हो सकता है कि ट्विटर से कोई गलती हुई हो।

अभी तक सीएम ने हमारे सवाल का जवाब नहीं दिया है

इस बारे में मुख्यमंत्री से फोन बात करने की कोशिश की गई, मगर जवाब मिला कि वह किसी महत्वपूर्ण कार्य में बिजी हैं। हमने ट्विटर पर भी उनसे सवाल पूछा है, मगर उनकी प्रतिक्रिया नहीं मिल पाई है। अगर सीएम की तरफ से कोई जवाब और स्पष्टीकरण आता है, तो पत्रकारिता के सिद्धांतों का सम्मान करते हुए ‘इन हिमाचल’ उसे जरूर पब्लिश करेगा।

अगर आप  यह फर्जीवाड़ा खुद देखना चाहते हैं तो https://twitter.com/virbhadrasingh/followers पर क्लिक करें और 4-5 बार स्क्रॉल डाउन करने के बाद आपको रूस के यूजर दिखने शुरू हो जाएंगे।

5% रिजल्ट: पहले कहां सोई हुई थी यह सरकार?

स्पेशल डेस्क, शिमला।।
इंजिनियरिंग के ग्रैजुएट कोर्स में हिमाचल प्रदेश यूनिवर्सिटी के हालिया रिजल्ट को अगर देश भर में सबसे घटिया रिजल्ट कहा जाए तो गलत नहीं होगा। यह हाल उस प्रदेश का है, जो शिक्षा और साक्षरता के मामले में देश के टॉप राज्यों में से एक है। फिर अचानक इस प्रदेश के छात्रों को अचानक क्या हो गया कि सिर्फ 5% ही पास हो पाए?बी.टेक (सिविल) के सातवें सेमेस्टर के इस अजीब रिजल्ट पर आत्ममंथन करने की जरूरत किसे है, यूनिवर्सिटी की कार्यप्रणाली के लिए जवाबदेह सरकार के लिए या फिर पास न हो पाने वाले छात्रों के लिए? अहम सवाल यह है कि अचानक इस बार ही क्यों ऐसा हुआ? पहले भी यही यूनिवर्सिटी थी और छात्र भी यही थी। मगर इतना खराब रिजल्ट तो कभी नहीं आया।

‘इन हिमाचल’ ने इस बार कुछ छात्रों से बात की जो अपने-अपने कालेज के टॉपर रहे हैं।  इस बार उनका परिणाम भी उम्मीद से विपरीत है। इनका कहना था कि इसमें जरूर यूनिवर्सिटी प्रबंधन का  कोई रोल है। इनका यहां तक दावा है कि अगर पेपर किसी बाहर की फैकल्टी से चेक करवाए जाएं तो दूध का दूध, पानी का पानी हो  जाएगा। छात्रों की इस बात से प्रदेश यूनिवर्सिटी की कार्यप्रणली और सरकार की भूमिका भी संदेह के घेरे में आती है। खराब रिजल्ट का दोष सिर्फ छात्रों या कॉलेज प्रबंधन से सिर नहीं मढ़ा जा सकता।  आखिर आज से पहले भी यही छात्र थे, जिनका रिजल्ट अच्छा आता था।

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यह तो डिग्री कोर्सेज की बात थी। इन दिनों हिमाचल प्रदेश में तकनीकी शिक्षा की गुणवत्ता सुधारने का काम जोरों पर चला हुआ है।   इसी कड़ी में प्रदेश सरकार के  ‘सबसे ऐक्टिव मंत्री’  ने  ऐतिहासिक फैसला लेते हुए 16 निजी पॉलिटेक्निक कॉलेजों  की मान्यता रद्द कर दी है।  मान्यता रद्द करने का कारण  ख़राब  रिजल्ट और  संस्थानों में मूलभूत सुविधाएं नहीं होना बताया जा रहा है।   हिमाचल में तकनीकी शिक्षा के इस हाल और सरकार के फैसले से संदेह की बू आ रही है।

पहले क्या सरकार सोई हुई थी?
आज से पहले गुणवत्ता सुधारने के लिए सरकार  ने क्या किया? क्या इन कॉलेजों को कभी  वॉर्निंग दी गई थी?  क्या कभी यह चेक किया गया था कि वहां मूलभूत सुविधाएं या फैकल्टी हैं या नहीं? यकायक लिया गया यह फैसला संदेह के घेरे में तो रहेगा ही।  टेक्निकल यूनिवर्सिटी के इस रिजल्ट के कारण पूरे देश में हिमाचल की साख गिरी है। भविष्य में अभिभावक अपने बच्चों को हिमाचल प्रदेश  टेक्निकल यूनिवर्सिटी में भेजने से पहले सौ बार सोचेंगे।  बाहरी क्षेत्रों की तरफ पलायन बढ़ेगा।  यह सच है की निजी कॉलेज अपनी मनमानी  करते हैं। प्रदेश के कई इंजिनियरिंग कॉलेजों की फैकल्टी से हमने बात की तो पता चला कि लैब तो सिर्फ कागजों में चल रही है।  इन्हें यूजीसी नॉर्म्स के अनुसार वेतन तक नहीं दिया जाता, बस सिग्नेचर करवा लिए जाते हैं।  मगर सवाल यह उठता है कि सिर्फ रिजल्ट आने पर सरकार  को वस्तुस्तिथि का पता चला ? इससे पहले आज तक यूनिवर्सिटी कहां सोई थी ? वह वार्षिक इंस्पेक्शन के दौरान क्या  लैब्स देखकर आते थे?

पढ़ें: हिमाचल के तकनीकी शिक्षा मंत्री के नाम एक खुला पत्र

कॉलेजों की हालत वाकई खराब है
नाम न छापने की शर्त पर एक इंजिनियरिंग कॉलेज के फैकल्टी मेंबर ने बताया की  उनके कैंपस में एक  पॉलिटेक्निक है और एक डिग्री कॉलेज।  पॉलिटेक्निक की ऐफिलिएशन  टेक्निकल  बोर्ड से होती है जबकि  इंजिनियरिंग कॉलेज की यूनिवर्सिटी से।  जब भी वार्षिक इंस्पेक्शन लैब आदि देखने के लिए यूनिवर्सिटी की टीम को आना  तो उस के आने से पहले पॉलिटेक्निक की लैब्स के सारे इंस्ट्रूमेंट्स  डिग्री कॉलेज में पहुंचा दिए जाते हैं और जब पॉलिटेक्निक में इंस्पेक्शन की टीम आये तो यही इंस्ट्रूमेंट उठाकर वहां की लैब में सजा दिए जाते हैं।  इस तरह से प्रदेश में इंजिनियर बनाये जा रहे है।

मगर सरकार भी कम दोषी नहीं
यूनिवर्सिटी या टेक्निकल बोर्ड का काम सिर्फ साल में एक बार के औपचारिक निरिक्षण का रह गया है।  क्या औचक निरिक्षण नहीं किया  जा  सकता था?   क्या स्टूडेंट के लिए कोई हेल्पलाइन नहीं बनाई जा सकती  जो उनके नाम का खुलासा किये वगैर उनकी शिकायत का संज्ञान ले और कॉलेज प्रशासन  से जबाबदेही ले? अब ख़राब रिजल्ट आने पर यह लकीर पीटने वाली बात है।  इसमें  हिमाचल प्रदेश सरकार  ही गलती है और वो भी इसके लिए जबाबदेह है।

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पड़ोसी राज्यों के शिक्षा माफिया का हाथ?
कहीं न कहीं एक दम से इसी बार आए खराब रिजल्ट के लिए और निजी कॉलेजों  की मान्यता रद्द करने के पीछे बाहरी राज्यों के शिक्षा माफिया का हाथ भी माना जा रहा है। हिमाचल में 6-7 साल पहले इतने कॉलेज नहीं थे, जिस कारण छात्र शिक्षा के लिए पंजाब आदि राज्यों में जाया करते थे। वहां के कॉलेज हिमाचली छात्रों से गुलजार रहा करते थे और उनका धंधा खूब जोरों पर चलता था  बाकायदा उनके एजेंट  प्रदेश से छात्रों को ऐडमिशन दिलवाकर कमिशन खाया करते थे। मगर जैसे-जैसे हिमाचल में कॉलेज बढ़े,  उनका धंदा चौपट हो गया। पंजाब के कई कॉलेज आज बंद होने की कगार पर हैं।

कहीं हिमाचल यूनिवर्सिटी की साख गिराने के लिए इन्होंने ही यह हथकंडा तो नहीं अपनाया? कहीं  ऐसा तो नहीं कि सरकार में बैठे कुछ लोग उनके इशारों पर एकदम सक्रिय हो गए हैं और उनके फायदे के लिए ताबड़तोड़ फैसले ले रहे हैं।  क्योंकि गुणवत्ता एक रात में नहीं सुधर जाती। इसके लिए कॉलेज प्रबंधन, छात्रों, यूनिवर्सिटी और सरकार का मिला-जुला सहयोग जरुरी है। लेकिन सरकार, यूनिवर्सिटी और कॉलेज प्रबंधन की भूमिका यहां संदेह के घेरे में है। इसका खामियाजा हिमाचल की नई पीढ़ी को भुगतना पड़ रहा है जो  किसी साज़िश का शिकार हो रही है।

शिक्षा के स्तर को सुधारने के लिए कड़े कदम बेशक उठाए जाने चाहिए, लेकिन प्लैनिंग के साथ। ऐसा नहीं कि जब अपनी नींद खुले तो बिना सोचे-समझे तबाही मचा दी जाए। हिमाचल प्रदेश का भविष्य प्रदेश के अंदर भी शिक्षा माफिया के लालच का शिकार हो रहा है और प्रदेश के बाहर भी। सरकार अगर इन शिक्षा माफियाओं पर नकेल कसने के बजाय प्रोत्साहित करने वाले फैसले लेगी तो यह चिंता का विषय है। अफसोस की बात है कि अभी तक शिक्षा के स्तर को सुधारने के लिए सरकार ने एक भी समझदारी भरा और प्रभावी कदम नहीं उठाया है।

हिमाचल के तकनीकी शिक्षा मंत्री के नाम एक IITian का खुला पत्र

‘इन हिमाचल’ को अपने फेसबुक पेज पर एक पाठक और IIT दिल्ली में रिसर्च स्कॉलर आशीष नड्डा की तरफ से एक मेसेज मिला है। इस मेसेज में उन्होंने हिमाचल प्रदेश सरकार के उस फैसले से अहमति जताई है, जिसके तहत इंजिनियरिंग करने की इच्छा रखने वाले छात्रों को पॉलिटेक्निक या इंजिनियरिंग के लिए होने वाले नैशनल लेवल टेस्ट्स देना अनिवार्य कर दिया गया है। उन्होंने प्रदेश के तकनीकी शिक्षा मंत्री जी.एस.बाली को एक पत्र लिखा है, जिसे हम यथावत प्रकाशित कर रहे हैं।- संपादक

श्री जी.एस.बाली,
तकनीकी शिक्षा एवं परिवहन मंत्री,
हिमाचल प्रदेश सरकार।

आदरणीय बाली जी,
मैं आशीष नड्डा आपके राज्य का एक नागरिक हूं और भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान दिल्ली(IIT Delhi )  से पीएचडी कर रहा हूं। सबसे पहले तो मैं आपको इस बात के लिए बधाई देना चाहता हूं कि आप हिमाचल सरकार के इकलौते ऐसे मंत्री हैं, जो पारंपरिक ढर्रे से हटकर प्रदेश की तरक्की के लिए कुछ न कुछ दूरदर्शी फैसले लेते रहते हैं। मैंने यह देखा है कि आप नई और व्यावहारिक सोच लेकर चलते हैं।

श्रीमान जी! इस पत्र के माध्यम से मैं आपका ध्यान आपकी सरकार और मंत्रालय के ऐसे फैसले की तरफ लाना चाहता हूं, जिसमें मुझे नीतिगत स्तर पर अमल लाने में कुछ त्रुटियां नजर आ रही हैं। इस फैसला का नुकसान आम आदमी और हिमाचल प्रदेश के छात्रों को ही उठाना पड़ रहा है। लेकिन उस बात पर आने से पहले मैं यह साफ़ कर देना चाहता हूं कि मैं किसी राजनीतिक या शैक्षणिक संस्था से नहीं जुड़ा हूं। इस मामले का मैंने अपने विवेक और अनुभव से स्वतः संज्ञान लिया है।

मंत्री जी! कैबिनेट की मीटिंग के एक फैसले के तहत सरकार ने यह निर्णय लिया है कि जो छात्र पॉलिटेक्निक की परीक्षा या इंजिनियरिंग की राष्ट्रीय स्तर पर होने वाली परीक्षा में नहीं बैठेंगे, उन्हें बाद में प्रदेश के किसी भी संस्थान में दाखिला नहीं दिया जाएगा। या यूं कहा जाए कि इन परीक्षाओं में बैठना अनिवार्य कर दिया गया है, भले ही छात्र को बाद में शून्य अंक ही क्यों न आएं। नीतिगत रूप से आपका यह निर्णय सही हो सकता है, लेकिन प्रदेश की भौगोलिक और ग्रामीण परिस्थितियों को देखते हुए इस फैसले के दुष्परिणामों से आपको अवगत कराना चाहता हूं।

‘नंबर मायने न रखते हों, ऐसे टेस्ट का क्या फायदा?’

श्रीमान! प्रदेश में कई ऐसे परिवार हैं जो खुद उच्च शिक्षित नहीं हैं और न ही स्कूल लेवल के बाद सही से जानते हैं कि बच्चे को आगे क्या शिक्षा दी जाए। जो भी टेस्ट आपने अनिवार्य किए हैं, इनके फॉर्म अक्टूबर नवंबर में भर दिए जाते हैं। यानी अगर कोई दसवी या बारहवीं कक्षा में पढ़ रहा हो तो उसे स्कूल के बाद तकनीकी शिक्षा के लिए अगले सत्र में ऐडमिशन के लिए यह फॉर्म नवंबर-अक्टूबर में भरने होंगे। कई बार उन घरों के बच्चे, जिनके घर में शिक्षा से जुड़ा माहौल न हो, उस समय ये फॉर्म अनिभज्ञता या जागरूकता की कमी या सेशन में व्यस्त रहने के कारण नहीं भर पाते। परन्तु बाद में जब वे अपनी स्कूली शिक्षा पूरी कर लेते हैं, तब जाकर ही कहीं ऐडमिशन के लिए सोचते हैं। इधर-उधर पता करते हैं तो उन्हें पता चलता है की वे किसी निजी संस्थान में दाखिल ले सकते हैं। परन्तु आपके इस रूल के कारण ऐसे छात्र प्रदेश में अपने घरों के आसपास शिक्षा प्राप्त नहीं कर पाएंगे। इसके लिए उनके गरीब अभिवावकों को उन्हें बाहरी प्रदेशों में भेजना होगा। इसके लिए उन्हें वहां हॉस्टल की फीस या रहने के लिए अलग से खर्च वहन करना होगा। क्या यह उनके साथ ज्यादती नहीं है?

आपके रूल से या तो बच्चे का एक साल खराब होगा या कोई गरीब जो अपने घर के आसपास बच्चे को शिक्षा दे सकता है, उसे प्रदेश के बाहर भेज कर अनावश्यक खर्चे के बोझ तले दबना पड़ेगा। और उसे टेस्ट में सिर्फ बैठना अनिवार्य करना, भले ही अंक शून्य या नेगेटिव हों, कहां तक व्यावहारिक है?

श्रीमान जी! अब मैं आपका ध्यान तकनीकी शिक्षा के डिग्री कोर्स की तरफ लाता हूं। मैं आज आईआईटी दिल्ली से पीएचडी कर रहा हूं, लेकिन मैंने स्कूल पास करके इंजिनियरिंग में जाने के लिए एक साल कोचिंग भी ली थी। इसके बावजूद मैंने IIT-JEE का फॉर्म नहीं भरा था। मुझे लगता था कि मेरी तैयारी उस लेवल की नहीं है तो मैं क्यों अपने पैसे फालतू में बर्बाद करूं। श्रीमान! आज वही फॉर्म, जिसका टेस्ट आपने अनिवार्य किया है, एक हजार रुपये के आसपास का हो गया है। हो सकता है किसी गरीब का बच्चा उसे इसलिए नहीं भरता हो कि प्रतिस्पर्धा के हिसाब से मेरी तैयारी नहीं है तो मैं क्यों पैसे बर्बाद करूं। मान लीजिए बाद में उस बच्चे के घर वालों को लगता है कि हम कैसे न कैसे पैसे जोड़कर या बैंक से लोन लेकर अपने बच्चे को प्रदेश के किसी कॉलेज से इंजिनियरिंग करवा देंगे। ऐसे में आपका बनाया रूल उस बच्चे के भविष्य के आड़े आ जाएगा।

मंत्री जी, मेरे कहने का मतलब है कि आपके इस रूल से शिक्षा की गुणवत्ता में कोई वृद्धि नहीं हो रही। गरीब या जो लोग जागरूक नहीं हैं, उन परिवारों के बच्चों पर प्रदेश से बाहर जाकर शिक्षा ग्रहण करने का अतिरिक्त आर्थिक बोझ पड़ रहा है और कुछ तो शिक्षा से महरूम रह जा रहे हैं। हैरानी की बात यह है कि इसका कारण वे टेस्ट हैं, जिनमें बैठना आपने अनिवार्य कर रखा हैं। वह भी इस अजीब तर्क के साथ कि मार्क्स कितने भी आएं, कोई फर्क नहीं पड़ेगा, बस एग्जाम दीजिए।

मैं उम्मीद करता हूं कि आपका पूरा ध्यान प्रदेश में निजी कॉलेजों की गुणवत्ता सुधारने पर रहेगा। लेकिन आपके इस फैसले से सिर्फ बाहरी राज्यों की तरफ पलायन बढ़ रहा है और यह गारंटी नहीं है वहां अधिक पैसे खर्च करके भी इन बच्चों को क्वॉलिटी एजुकेशन मिले।

भवदीय,
Aashish Nadda (PhD Research Scholar)
Center for Energy Studies
Indian Institute of Technology Delhi
E-mail  aksharmanith@gmail.com

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नाहन में बस खाई में गिरी, 13 लोगों की मौत

नाहन।।
हिमाचल प्रदेश के सिरमौर जिले में एक सड़क हादसे में 13 टूरिस्ट्स की मौत हो गई है। इन टूरिस्ट्स को ले जा रही एक बस गहरी खाई में गिर गई, जिस वजह से यह हादसा पेश आया। इस हादसे में 13 की मौत हो गई है, जबकि 40 लोग जख्मी हैं।नाहन की एसडीएम ज्योति राणा ने बताया, ‘बस पर यूपी के सहारनपुर के 56 यात्री सवार थे। रेणुका से वापस यूपी लौटते वक्त बस मोडराघाट के पास 250 फीट गहरी खाई में गिर गई।‘ उन्होंने बताया कि 40 यात्रियों का नाहन में इलाज चल रहा है, जबकि गंभीर रूप से जख्मी 3 लोगों को चंडीगढ़ पीजीआई शिफ्ट कर दिया गया है।

स्थानीय लोगों ने हादसे के बाद घटनास्थल पर पहुंचकर बचाव कार्य में मदद की। उन्होंने जख्मी लोगों को कबाड़ बन चुकी बस से निकालने में मदद की। स्थानीय लोगों ने बताया कि उन्होंने प्रशासन और ऐंबुलेंस को बुलाया था, मगर वे टाइम पर नहीं पहुंचे। अगर वे वक्त पर पहुंचे होते तो कुछ और जानें बचाई जा सकती थीं।
गौरतलब है कि कुछ ही दिन पहले उत्तराखंड में भी एक बस के खाई में गिर जाने से दर्जन भर रूसी पर्यटकों की मौत हो गई थी। यह पहाड़ी राज्यों में हुई कोई नई घटना नहीं है। आए दिन पहाड़ी राज्यों में इस तरह के हादसों में कई लोग जान गंवा देते हैं।

इस बार लोकसभा चुनाव के लिए प्रचार के दौरान नरेंद्र मोदी ने वादा किया था वह पहाड़ी क्षेत्रों में रेल नेटवर्क का विस्तार करेंगे। हिमाचल के सुजानपुर में संबोधित की गई रैली में मोदी ने कहा था, ‘अक्सर सुनने को आता है कि बस या ट्रक के खाई में गिरने से लोगों की मौत हो गई। मित्रो! यह समस्या तभी हल होगी, जब रेल का जाल बिछेगा।’

चूंकि अब वह पीएम बन चुके हैं, ऐसे में उनसे उम्मीद की जा रही है कि वह इस दिशा में कदम भी उठाएंगे। राष्ट्रपति के अभिभाषण में भले ही इस मुद्दे का जिक्र हुआ हो, लेकिन अभी तक कोई प्रगति होती नहीं दिख रही है। हिमाचल की जनता इंतजार कर रही है कि न सिर्फ बड़े शहरों को मुख्य लाइन से जोड़ा जाएगा, बल्कि आंतरिक जाल भी बिछाया जाएगा।

सुजानपुर में मोदी ने कहा था कि हिमाचल में सड़क हादसों को टालने के लिए ट्रेन होना जरूरी है।

इसके अलावा हिमाचल प्रदेश में टूरिस्ट्स के साथ हो रहे हादसों पर लगाम लगाने के लिए कड़े कदम उठाए जाने की मांग भी उठ रही है। एक ऐसी पॉलिसी बनाने की मांग की जा रही है जिससे यह देखा जाए कि हिमाचल में आ रहे टूरिस्ट्स के पास पहाड़ी इलाकों में गाड़ी चलाने का अनुभव है या नहीं।

इस सब के साथ ही टूरिस्ट्स को खास बुकलेट्स और गाइड मुहैया कराने की मांग भी उठ रही है, जो हिमाचल के माहौल, मौसम और दूसरी चीज़ों के बारे में एजुकेट करे। ऐसा इसलिए किया जाना जरूरी है ताकि कोई भी टूरिस्ट कौतूहलवश नदी के बीच न जाए या अकेले अडवेंचर स्पोर्ट्स न करे।

विज्ञापनों पर न जाएं, सोच-समझकर लें ऐडमिशन

स्पेशल डेस्क, शिमला।।
परीक्षाओं  का दौर खत्म हो चुका है। स्कूल या ग्रैजुएशन के बाद हिमाचल प्रदेश के बच्चे सुनहरे भविष्य के सपने लिए हायर या प्रफेशनल एजुकेशन के लिए कई संस्थानों में ऐडमिशन लेने की सोच रहे होते हैं। देखा गया है कि इन दिनों हिमाचल के युवाओं का रुझान टेक्निकल एजुकेशन या एमबीए की तरफ ज्यादा है। इसी बात को भांपते हुए प्रदेश के अंदर और बाहर के कई प्राइवेट इंस्टिट्यूट यहां के हर छोटे-बड़े कस्बे में अपने ऑफिस खोलकर बैठ जाते हैं। दिन-रात लोकल केबल नेटवर्क और अखबारों पर अपने इस्टिट्यूट के ऐड चलाते हैं। 100% जॉब दिलाने का वादा करने वाले ये इंस्टिट्यूट दिखाते हैं कि इन्हें कई अवॉर्ड मिल चुके हैं। एक खास ऐंगल से खींची गई तस्वीरों के जरिए ये अपने कैंपस को बढ़ा-चढ़ाकर दिखाते हैं। लैब्स, लाइब्रेरी और अन्य सुविधाओं को लेकर भी वे ऐसा ही करते हैं। कई बार पोस्टर्स और पैंफलेट्स में इंटरनेट से उठाकर तस्वीरें छाप दी जाती हैं।

छात्रों को दाखिला लेने के बाद पता चलता है कि यह संस्थान तो मूलभूत सुविधाएं तक नहीं दे पा रहा। ऐसे में ये जॉब के नाम पर क्या करेंगे, आप अंदाजा लगा सकते हैं। ये प्रॉस्पेक्टस में दिखाते हैं कि बड़ी बड़ी कंपनियां इनके यहां प्लेसमेंट करने आती हैं। मगर ऐसा हमेशा सच नहीं होता। वे जॉब प्लेसमेंट के झूठे आंकड़े दिखाते हैं और कई बार अपनी मेहनत से जॉब हासिल करने वाले बच्चों के फोटो भी प्रॉस्पेक्टस या ऐड्स वगैरह में दिखा देते हैं। ‘इन हिमाचल’ ने  ऐसे कई संस्थानों से पढ़े स्टूडेंट्स से बात की तो मालूम हुआ कि वहां तो बेसिक इन्फ्रास्ट्रक्चर तक नहीं। यहां तक कि यूजीसी के गाइडलाइन्स और पैमाने के आधार पर फैकल्टी तक इन कॉलेजों में नहीं होती।

देखादेखी में न जाएं। सोच-समझकर कॉलेज का चुनाव करें।

इन हिमाचल ने ऐसे कुछ कॉलेजों की वेबसाइट्स पर दिखाई गई फैकल्टी की लिस्ट से ईमेल या फोन नंबर्स के माध्यम से बात की, तो पता चला कि उनमें से ज्यादातर तो उस कॉलेज में कभी थे ही नहीं, तो कुछ को संस्थान छोड़े 2 साल से ऊपर का अर्सा बीत चुका है। मगर इनके नाम और एजुकेशनल क्वॉलिफिकेशन का हवाला देकर ये संस्थान बच्चों को अपने जाल में फंसाए जा रहे हैं। ‘इन हिमाचल’ को एक सरकारी स्कूल के अध्यापक ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि सरकारी स्कूलों के कुछ अध्यापक भी इन संस्थानों के एजेंट की तरह काम कर रहे हैं। ये वे लोग हैं, जो स्कूल के बाद अपना ट्यूशन सेंटर भी चलाते हैं। वे अपने उन्हीं स्टूडेंट्स को गुमराह करके इन घटिया संस्थानों में ऐडमिशन दिलाते हैं और बदले में कमिशन के तौर पर मोटी रकम डकारते हैं। कुल मिलाकर बात यह है कि शिक्षा के नाम पर यह गोरखधंधा जमकर फल-फूल रहा है।

हिमाचल के भोले-भाले लोग कई बार इनकी  चिकनी चुपड़ी बातों में आकर अक्सर  गलत  जगह ऐडमिशन ले लेते हैं।  अपने बच्चों के लिए जीवन की सारी कमाई दांव पर लगा देने वाले पैरंट्स को सिवाय धोखे और झूठ के कुछ नहीं मिल पाता।  अधिकांश संस्थानों का माहौल ऐसा होता है की स्कूल में 80-90 पर्सेंट मार्क्स लाने वाले बच्चे भी वहां जाकर फेल होने लगते हैं। ऐसे संस्थानों को से डिग्री हासिल करना भी मुश्किल काम बन जाता है, प्लेसमेंट की बात तो अलग है। विद्यार्थियों पर अलग-अलग तरह के जुर्माने लगाकर ये संस्थान  मालामाल हो रहे हैं।  शिक्षा के नाम पर यह एक व्यवसाय हो गया है, जिसके शिकार बन रहे हैं हिमाचल के मासूम लोग।

प्लेसमेंट के दावले खोखले भी हो सकते हैं।

किसी संस्थान में किसी कोर्स के लिए ऐडमिशन लेना जिंदगी का एक महत्वपूर्ण फैसला होता है।  इसी बात को ध्यान में रखते हुए ‘इन हिमाचल’ ने शिक्षा क्षेत्र से जुड़े कुछ अनुभवी लोगों से बात करके  कुछ ऐसे पॉइंट्स हाइलाइट करने की कोशिश की है, जो हिमाचल के  बच्चों और उनके पैरंट्स के लिए मददगार साबित होंगे। अहम सवाल यह है कि आखिर किस आधार पर किसी इंस्टिट्यूट को ऐडमिशन के लिए चुना जाए।

ऐफिलिएशन
सबसे पहले तो यह देखें कि जिस यूनिवर्सिटी, इंस्टिट्यूट या कॉलेज में आप ऐडमिशन लेने जा रहे हैं, वह मान्य भी है या नहीं। यूजीसी की वेबसाइट पर जाकर आप मान्यता प्राप्त यूनिवर्सिटीज़ का नाम देख सकते हैं। इसके साथ ही कुछ कॉलेज और इंस्टिट्यूट कुछ यूनिवर्सिटीज़ से डिस्टेंस एजुकेशन की डिग्री देते हैं। यानी यह डिग्री ठीक उसी तरह की होगी, जैसी आप घर पर बैठकर उस यूनिवर्सिटी से हासिल कर सकते हैं। ऐसे में चुनाव कर लीजिए कि आपको ऐसे संस्थान से पढ़ाई करनी है या नहीं। रेग्युलर और डिस्टेंस एजुकेशन के कोर्स में फर्क होता है। यूं तो पढ़ाई में ज्यादा फर्क नहीं है और डिग्री भी मान्य है, लेकिन कई बार कुछ वेकंसीज़ में डिस्टेंस एजुकेशन की डिग्री को प्राथमिकता नहीं दी जाती।

इंफ्रास्ट्रक्चर
इंफ्रास्ट्रक्चर का मतलब अच्छी सी दिखने वाली या बड़ी सी बिल्डिंग नहीं है। इसका मतलब है कि ऐडमिशन लेने से पहले यह सुनिशित करें कि जिस संस्थान में आप ऐडमिशन लेने जा रहे हैं,  वह आपके कोर्स के हिसाब से लैब्स,  इंस्ट्रूमेंट्स  वर्कशॉप्स, लाइब्रेरी आदि जैसी सुविधाएं दे रहा है कि नहीं।

फैकल्टी
इंफ्रास्ट्रक्चर के बाद अगला पॉइंट है फैकल्टी। एक अच्छा अध्यापक एक संस्थान का हीरा होता है।  आप सुनिशित करें कि क्या अच्छी पढ़ी-लिखी और अनुभवी फैकल्टी संस्थान में मौजूद है या नहीं।  संस्थान की वेबसाइट पर जो फैकल्टी दिखाए गए हैं, क्या वाकई वे वहां पर हैं या नहीं? इसके लिए आप ईमेल या साथ में दिए नंबर्स का सहारा ले सकते हैं।

मूलभूत  सुवधिाएं
हायर या प्रफेशनल एजुकेशन में  सेल्फ स्टडी का बहुत बड़ा रोल है।  यह चीज भी ध्यान देने योग्य है कि क्या कॉलेज की लाइब्रेरी या इंटनेट लैब्स में सारी सुविधाएं मौजूद हैं? हॉस्टल में कितने विधयर्थी रखे गए हैं, कॉलेज से कितनी दूरी पर है हॉस्टल, खेलने के लिए मैदान है या नहीं, सेमिनार हॉल कैसे हैं, सफाई ववस्था कैसी है, खाना कैसा मिलता है। इसके लिए आप किसी पुराने स्टूडेंट्स से जानकारी ले सकते हैं।

अन्य ऐक्टिविटीज़
शिक्षा का मतलब सिर्फ एग्जाम पास करके डिग्री लेना नहीं होता है। कोई भी कम्पनी सिर्फ मार्क्स शीट देखकर नौकरी नहीं देती है।  बल्कि आपका पूरा व्यक्तित्व और कम्यूनिकेशन स्किल तक देखे जाते हैं। आखिरकार आपको  मार्किट में जाकर गला काट प्रतियोगिता  का सामना करना होता है।  इसलिए संस्थान की अन्य ऐक्टिविटीज़, जैसे कि ऐनुअल फंक्शन, स्पोर्ट्स मीट, NCC ,NSS , इंडस्ट्रियल ट्रेनिंग, फेस्टिवल्स आदि के बारे में भी पता करें, जो आपकी पर्सनैलिटी को निखारने में और पढ़ाई को बोझ न बनने देने में मदद करती हैं।

प्लेसमेंट
यह सब से महत्वपूर्ण पॉइंट है।  पढ़ाई के बाद नौकरी पाना आपका मुख्य लक्ष्य है। किसी भी संस्थान की प्लेसमेंट बहुत से फैक्टर्स पर  डिपेंड करती है।  इसमें इंफ्रास्ट्रक्चर , फैकल्टी, स्टूडेंट्स की परफॉर्मेंस वगैरह मैटर करती है। वर्तमान समय में आप किसी भी संस्थान का प्लेसमेंट रेकॉर्ड जानने के लिए सोशल मीडिया के द्वारा वहां के पुराने स्टूडेंट्स से पता कर सकते हैं।

लोकेशन
वैसे तो यह फैक्टर इतना महत्वपूर्ण नहीं है, फिर भी अगर आपका संस्थान किसी ऐसी जगह के आसपास होगा, जहां आप पढ़ाई के दौरान भी बहुत कुछ सीख सकते हैं, तो अच्छा रहेगा। आपकी ट्रेनिंग या प्लेसमेंट के लिए यह फैक्टर फायदेमंद भी हो सकता है।  कई  बार प्लेसमेंट के लिए कंपनीज़ ज्यादा दूर और  रेल हवाई यातायात से कनेक्ट नहीं होने वाले संस्थान में नहीं जाती हैं।  नाम न छापने की शर्त पर ‘इन हिमाचल’ को एक पूर्व छात्र ने बताया कि अच्छा इंफ्रास्ट्रक्चर और समस्त सुविधाएं होने के बावजूद  NIT  हमीरपुर जैसे प्रतिष्ठित संस्थानों तक में ऐसा होता देखा गया है।

अब मुद्दा यह है कि इन सब प्रश्नों के उत्तर जानने के लिए आपको क्या करना है। उसके लिए यहां पर कुछ टिप्स दिए गए हैं:
1.  आप  शहर में खुले ऑफिस में जाकर ही ऐडमिशन न लें, बल्कि खुद जाकर संस्थान में यह सब देखें।
2 . सोशल मीडिया का प्रयोग करते हुए संस्थान के पुराने या वर्तमान स्टूडेंट्स से सारी इन्फर्मेशन लें।
3. कोई शंका हो तो संस्थान की फैकल्टी को भी मेल लिख मारें या फोन पर बात करें।
4 . आप किसी अनुभवी शख्स और अच्छे कॉउंसलर की मदद भी ले सकते हैं।
5. भेड़चाल में बिल्कुल न चलें। दोस्तों की देखादेखी में अक्सर बच्चे गलत चुनाव कर सकते हैं।

हिमाचल में ट्रेन के विस्तार के विरोध में हिमाचली?

हिमाचल और अन्य पहाड़ी राज्यों में रेल के विस्तार की मोदी सरकार की योजना से प्रदेश कीजनता में उत्साह है। लेकिन क्या कोई इस कदम का विरोध भी कर सकता है? सुनने में भले ही अजीब लगे, लेकिन ‘इन हिमाचल’ को मिली एक ई-मेल में ऐसी ही बात कही गई है। हिमाचल फैण्टम नाम के किसी अनसुने से संगठन की तरफ से विक्रांत डोगरा नाम के शख्स ने हमें एक ई-मेल भेजी है। इसका कॉन्टेंट हम यथावत आपके सामने रख रहे हैं:

आदरणीय संपादक जी,
हमारा एक सोशल मीडिया संगठन है जिसने एक विषय पर प्रस्ताव पारित किया है। उम्मीद है कि आप इसे प्रकाशित करेंगे।


हम हिमाचल में रेलवे के विस्तार का हम विरोध करते हैं। ऐसा नहीं है कि हम हिमाचल का विकास नहीं चाहते। यह हमारा सपना है कि हम भी रेल के जरिए देश के अन्य हिस्सों से जुड़ें ताकि समय और पैसे की बचत हो सके। इससे हमारे प्रदेश में ढुलाई वगैरह भी आसान हो जाएगी। मगर एक सबसे बड़ी समस्या है जिसे नजरअंदाज किया जा रहा है।


1. रेल के आने से प्रवासी मजदूर सीधे हिमाचल में घुस आएंगे। वे औने-पौने दामों में काम करके यहां की जनता का रोजगार छीन सकते हैं। इससे हिमाचल की अर्थव्यवस्था भी प्रभावित होगी। साथ ही अपने पूरे परिवार को साथ लेकर चलने वाले ये मजदूर स्वास्थ्य सुरक्षा चक्र के लिए भी खतरा हैं। ये समय पर टीकाकरण नहीं करवाते, जिससे बच्चे कई संक्रामक बीमारियों के संवाहक बन जाते हैं। अपराध दर बढ़ने की आशंका भी है।


हमारी मांग है कि जब तक देश के अन्य हिस्सों और खासकर जिन प्रदेशों में पलायन की समस्या है
 वहां पर लोगों को रोजगार दिया जाए। उन प्रदेशों के लोग जब तक काम की तलाश में बाहर निकलना बंद नहीं करेंगे तब तक हिमाचल में रेल की पटरी न बनाई जाए। अभी सस्ता साधन होने की वजह से ये मजदूर वहां-वहां पहुंच जाते हैं जहां ट्रेन है। हिमाचल रेल न होने की वजह से बचा हुआ है। यहां अभी इन प्रदेशों से सिर्फ दक्ष लेबर पहुंच रही है, जिससे हिमाचल को लाभ हो रहा है।

हम समाज और मजदूर विरोधी नहीं हैं और न ही क्षेत्रवादी। मगर यह कदम ठीक उसी प्रकार जरूरी है, जैसा गोवा में उठाया गया था। गोवा में एक पलायनग्रस्त प्रदेश से सीधी ट्रेन शुरू करने का विरोध किया गया था।

2. दूसरी समस्या है कि हिमाचल प्रदेश में अभी ट्रांसपोर्ट का काम ट्रकों से होता है। सेब से लेकर सीमेंट तक की ढुलाई ट्रकों से होती है। बरमाणा में एशिया की ट्रकों सी सबसे बड़ी यूनियन है। 23000 से ज्यादा ट्रक वालों का रोजगार भी ट्रेन से छिन जाएगा।

हमारी मांग है कि पहले योजना बनाई जाए कि इतने सारे लोगों की रोजी-रोटी के लिए क्या वैकल्पिक व्यवस्था है। विकास जरूरी है, लेकिन विनाश की शर्त पर नहीं। सरकार पहले अपना खासा सामने रखे, वरना ट्रेन आना हिमाचल के लिए सुविधा के बजाय अभिशाप साबित सकता है।

साभार,
Vikrant Dogra
Himachal Phantom.

(Disclaimer: In Himachal इस ई-मेल की सामग्री का किसी भी तरह से समर्थन नहीं करता नहीं करता है। हमारे संपादकीय बोर्ड ने इस ई-मेल को छापने का फैसला इसलिए किया, ताकि यह देखा जा सके कि इस मुद्दे पर हिमाचल प्रदेश की जनता क्या राय रखती है।)

रेत माफिया के इशारे पर छोड़ा गया था डैम से पानी?

मंडी।।
ब्यास नदी में हुए दर्दनाक हादसे के कारणों को जानने के लिए ‘इन हिमाचल’ ने जब तफ्तीश शुरू की, तो कई चौंकाने वाली बातें सामने आईं। भले ही कुछ लोग मानवीय भूल या होनी कहकर इस मामले को हल्का कर रहे हैं, लेकिन असल बात कुछ और भी हो सकती है। स्थानीय लोगों ने आरोप लगाया है कि बांध से अचानक पानी छोड़ने के पीछे सैंड माफिया यानी रेत का गोरखधंधा करने वालों का हाथ भी हो सकता है।

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नाम न छापने की शर्त पर मंडी के एक पत्रकार ने आशंका जताई गई कि अचानक पानी छोड़े जाने का मकसद रेत माफिया को फायदा पहुंचाना भी हो सकता है। उन्होंने कहा कि गर्मियों के पूरे सीजन में रेत माफिया जमकर नदी किनारे जमा बालू जमा करके उसे बेचते हैं। जून आते-आते वे नदियों को कंगाल कर देते हैं। चूंकि जून में मॉनसून के दस्तक देने के बाद नदियां उफान पर होती हैं, ऐसे में रेत के कारोबारियों का धंधा बंद हो जाता है। इसलिए वे चाहते हैं कि बरसात के मौसम से पहले ही ज्यादा से ज्यादा रेत निकाल ली जाए।

एक अन्य शख्स ने बताया कि बांध पर तैनात कर्मचारियों या उनके सीनियर ऑफिसर्स के लिंक इन रेत माफियाओं से हो सकते हैं। अक्सर वे मिलीभगत करके डैम से पानी छोड़ देते हैं, जिससे उफनती हुई नदी अपने साथ पहाड़ी इलाकों से बालू बहाकर मैदानी हिस्से में जमा कर देती है। इससे रेत माफियाओं की चांदी हो जाती है। उनका मंद पड़ रहा धंधा एक बार फिर से चमकने लगता है।

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इस तरह की आशंकाएं कई लोग जाहिर कर चुके हैं। लोगों की मांग है कि इस ऐंगल से भी मामले की जांच करनी चाहिए। अगर ऐसा कोई लिंक पाया जाता है तो दोषी अधिकारियों के खिलाफ भी कार्रवाई की जानी चाहिए। गौरतलब है कि कई राष्ट्रीय स्तर के अखबार भी अपनी रिपोर्ट्स में रेत माफिया का लिंक होने की आशंका जाहिर कर चुके हैं।

ब्यास नदी में बह गए हैदराबाद के 24 छात्र

मंडी
हिमाचल प्रदेश से एक दर्दनाक खबर है। इन हिमाचल को खबर मिली है कि कुल्लू और मंडी जिले की सीमा के पास ओट में एक दर्दनाक हादसे में 24 टूरिस्ट मारे गए हैं। ये सभी स्टूडेंट थे और फोटो खिंचवाने के लिए ब्यास नदी के किनारे गए थे।

ब्यास में पानी का स्तर एकदम बढ़ जाने से ये छात्र एकदम बह गए। लापता छात्रों को ढूंढने की कोशिश की जा रही है, लेकिन अंधेरा होने की वजह से राहत कार्य में जुटी टीमों को समस्या हो रही है। 24 में से 18 लड़के हैं और 6 लड़कियां हैं।

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इन हिमाचल को मिली जानकारी के मुताबिक सभी लापता छात्र हैदराबाद के जीएमआर इंजिनियरिंग कॉलेज के हैं। मनाली से लौटते वक्त ये छात्र फोटो खिंचवाने के लिए बस रुकवाकर ब्यास नदी के किनारे चले गए थे। इसी बीच लारजी डैम से छोड़े गए पानी की चपेट में आ गए और देखते ही देखते बह गए।

टूरिस्ट कम पानी देखकर अक्सर इसी तरह से तस्वीरें खिंचवाने के लिए चले जाते हैं, जिससे कई हादसे हो चुके हैं।(Demo Pic)

पूरा प्रशासनिक अमला घटना स्थल पर पहुंचा हुआ है। पुलिस का कहना है कि लापता छात्रों को ढूंढने की कोशिश की जा रही है। अंधेरा हो जाने की वजह से बचाव कार्य में मुश्किलें आ रही हैं। इस वक्त घटना स्थल पर अफरा-तफरी फैली हुई है। गुस्साए लोग प्रदर्शन भी कर रहे हैं। हाइवे जाम होने जाने से गाड़ियों की लंबी कतारें भी लग गई हैं।

विस्तृत खबर का इंतजार है।