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Saturday, September 13, 2025
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पशु ले जा रहे मुस्लिम युवक की पीट-पीटकर हत्या

नाहन।।

शांत हिमाचल प्रदेश को कट्टरवाद की नजर आखिरकार लग ही गई। सिरमौर जिले में धर्म के ठेकेदारों ने कानून अपने हाथ में लेते हुए एक मुस्लिम युवक को मौत के घाट उतार दिया।

बुधवार को  सराहां इलाके में बजरंग दल ने लोगों को बताया कि पांच लोग पशुओं को ट्रक में भरकर ले जा रहे हैं। भीड़ ने पांच गायों और 10 बैलों के साथ जा रहे इन लोगों को रोका। मुस्लिम समुदाय के होने की वजह से लोगों ने इन्हें बिना कुछ पूछे पीटना शुरू कर दिया। ये लोग उत्तर प्रदेश के सहारनपुर से थे। इन्हें लोगों ने इतना पीटा कि नोमान नाम का एक युवक बुरी तरह जख्मी हो गया, जिसकी अस्पताल में मौत हो गई।

घटना के बाद सहारनपुर से बहुत से लोग घटनास्थल पर पहुंच गए, जिसके बाद हालात तनावपूर्ण बन गए। पुलिस की तैनाती की गई है। पुलिस ने अन्य मुस्लिम युवकों के खिलाफ पशु तस्करी और क्रूरता का मामला दर्ज किया है। ये पांच दिन की पुलिस रिमांड पर हैं।

तस्वीर: अमर उजाला से साभार

बताया जा रहा है कि पशु पंजाब से सहारनपुर ले जाए जा रहे थे और ये युवक दिहाड़ी पर काम कर रहे थे। पुलिस ने हत्या का मामला दर्ज कर लिया है और धर्म के कथित ठेकेदार उसके बाद से अंडरग्राउंड हो गए हैं।

पुलिस का यह भी कहना है कि मारा गया नोमान नाम का युवक आपराधिक पृष्ठभूमि का है और सहारनपुर में उसके खिलाफ गोहत्या के करीब 10 मामले दर्ज हैं।

इस तरह से कानून को अपने हाथ में लेने की हिमाचल में यह असामान्य घटना है। दादरी और अन्य जगहों पर हुईं इसी तरह की घटनाओं की कड़ी में हिमाचल का नाम जुड़ जाने को लेकर प्रदेश की छवि को नुकसान पहुंचना तय माना जा रहा है।

प्रदेश में सबसे ज्यादा मंदिर हैं मंडी जिले में

देवभूमि हिमाचल के कण में है देवी-देवताओं का वास। प्रदेश का शायद ही कोई ऐसा जिला होगा जहां देवी- देवताओं के प्रसिद मन्दिर न हों। इन मंदिरों में नवरात्रों के दौरान सैंकड़ों श्रद्धालु माता के दरबार में शीश नवाने आते हैं।

प्रदेश में 150 से अधिक प्रसिद मंदिरों में से लगभग 35 मंदिर माता दुर्गा के विभिन्न रूपों को हैं। प्रदेश में सबसे अधिक मंदिर मंडी  जिला में हैं। इसी कारण इसे हिमाचल की छोटी काशी के नाम से भी जाना जाता है। श्यामाकाली मन्दिर, सिद्धभद्रा, रूपेश्वरी, राजेश्वरी, भुवनेश्वरी, महिषासुरमर्दिनी, शीतलादेवी, सिद्धकाली मंदिर मंडी नगर में हैं।

मंडी का श्यामाकाली मंदिर जिसे टारना देवी मंदिर भी कहा जाता है, 17वीं शताब्दी में राजा श्यामसेन ने बनवाया था। करसोग का  काव देवी मंदिर महाकाली का एक रूप है। यहां शरद नवरात्र की नवमी को मेला लगता है। शिकारी देवी का मंदिर,जो माता की 64 जोगनियों में से एक है, यह मंदिर 11000 फ़ीट की ऊंचाई पर स्थित है और यह जाने के लिए जंजैहली से रास्ता है।

मंडी नगर से 10 किलोमीटर दूर काह्न्वाल की बगलामुखी का मंदिर है। यह देवी मंदी की शिवरात्रि मेले के दौरान जलेब शामिल नही होती और राजमहल के बेह्ड़े में ही रहती हैं। इसके इलावा  चार और ऐसे देवियाँ हैं जो रथ-यात्रा में शामिल नही होती। रूपेश्वरी देवी(रोपा, मंडी नगर के निकट), बगलामुखी(बाखली), कश्मीरी (तुलाह), बूढी भैरव(पंडोह) ऐसे देवियाँ हैं जो परदे में रहती हैं। इन्हें मंडियाली में ”नरोल की देवियाँ’” कहते हैं।

धूमावती मंदिर मंडी से 17 किलोमीटर दूर सौली खड्ड से ऊपर स्थित है। बाखली का बगलामुखी मंदिर का रास्ता पंडोह से हो कर जाता है। सिमसा देवी का मंदिर लड़भड़ोल में स्थित है,जो बैजनाथ से 30 किलोमीटर दूर है। जोगिंदरनगर से सरकाघाट जाते वक्त माता चतुर्भुजा का मंदिर भी स्थित है।

कुल्लू जाते हुए हनोगी माता के दर्शन भी होते हैं। यहाँ दुर्गा माता की मूर्ति स्थापित की गई है। बंजार से 8 किलोमीटर गुशैनी में माता का मंदिर है जहाँ शरद नवरात्रों के दिन मेला लगता है।  शरद नवरात्रों में इन मंदिरों की रौनक देखते ही बनती है।

शक्तिपीठ, जहां मुसलमान भी आते हैं माता के दर पर

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  • विवेक अविनाशी
पाकिस्तान के बलूचिस्तान प्रांत में कराची से 328 किलोमीटर दूर हिंगलाज माता की हिन्दुओं के साथ-साथ मुसलमान भी इज्जत करते हैं। कराची से इस मंदिर की यात्रा में 4 घंटे लग जाते हैं। हिन्दुओं के 51 शक्ति पीठों में से एक हिंगलाज माता के यहां अप्रैल मास के नवरात्रों के दौरान मेला लगता है।
यहाँ गुफा में माता की पिंडी है जिसे सिन्दूर से सजाया गया है। मुसलमान हिंगलाज को नानी और यहां की यात्रा को नानी का हज कहते हैं। हिन्दू इस मंदिर में तीन नारियल चढाते हैं और मुसलमान “शिरनियों” का प्रसाद चढाते हैं।
इस मंदिर में पूजा नंद्पंथी अखाड़े के छड़ीदारों द्वारा की जाती है। भारत में हिंगलाज माता के पूजक गुजरात और राजस्थान में सर्वाधिक हैं। अन्य शक्ति पीठों की भांति इस मन्दिर के साथ भी सती के अंगों के गिरने की कथा जुडी है। सती का शव लेकर शिव पृथ्वी पर विचरण करते हुए तांडव नृत्य कर रहे थे, जिससे पृथ्वी पर प्रलय की स्थिति उत्पन्न होने लगी। पृथ्वी समेत तीनों लोकों को व्याकुल देखकर और देवों के अनुनय-विनय पर भगवान विष्णु सुदर्शन चक्र से सती के शरीर को खण्ड-खण्ड कर धरती पर गिराते गए।
जब-जब शिव नृत्य मुद्रा में पैर पटकते, विष्णु अपने चक्र से शरीर का कोई अंग काटकर उसके टुकड़े पृथ्वी पर गिरा देते। हिंगलाज में सती का ब्रह्मरंध गिरा था। पुराणों में हिंगलाज पीठ की अतिशय महिमा है।
श्रीमद भागवत के अनुसार यह हिंगुला देवी का प्रिय महास्थान है- ‘हिंगुलाया महास्थानम्’। ब्रह्मवैवर्त पुराण में कहा गया है कि हिंगुला देवी के दर्शन से पुनर्जन्म कष्ट नहीं भोगना पड़ता है। बृहन्नील तंत्रानुसार यहाँ सतीका “ब्रह्मरंध्र” गिरा था। यहाँ पर शक्ति ‘हिंगुला’ तथा शिव ‘भीमलोचन’ हैं-

‘ब्रह्मरंध्रं हिंगुलायां भैरवो भीमलोचनः।
कोट्टरी सा महामाया त्रिगुणा या दिगम्बरी॥
देवी के शक्तिपीठों में कामख्या, कांची, , त्रिपुर, हिंगुला प्रमुख शक्तिपीठ हैं। ‘हिंगुला’ का अर्थ सिन्दूरहै। हिंगलाज खत्री समाज की कुल देवी हैं। कहते हैं, जब 21 बार क्षत्रियोंका संहार कर परशुराम आए, तब बचे राजागण माता हिंगुला की शरण में गए और अपनी रक्षा की याचना की। तब माँ ने उन्हें ‘ब्रह्मक्षत्रिय’ कहकर अभयदान दिया थाl
(vivekavinashi15@gmail.com)

अठारह महाशक्ति पीठों में से एक है कांगड़ा का ज्वालामुखी मन्दिर

  • विवेक अविनाशी
भारत की महाशक्ति पीठों में से  हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा जिला में स्थित  ज्वालामुखी मन्दिर है जहाँ देश के कोने –कोने से भक्तजन मन्नते मांगने शारदीय नवरात्रों में भी आते हैं। वैसे तो भक्तों का आना-जाना समस्त वर्ष ही यहाँ लगा रहता  है लेकिन नवरात्रों में माता के दर्शनों का जो पुण्य प्राप्त करता है उस पर  माता विशेष कृपा करती है।

यह नवरात्र आश्विन मास की शुक्ल-पक्ष की प्रतिपदा से प्रारम्भ हो कर 9 दिन  तक चलता है। इस मन्दिर का निर्माण राजा भूमि चंद ने करवाया था और महाराजा रंजीतसिंह ने मन्दिर का जीर्णोद्धार करवाया था। हिन्दू धर्म के पुराणों के अनुसार जहां-जहां सती के अंग के टुकड़े, धारण किए वस्त्र या आभूषण गिरे, वहां-वहां शक्तिपीठ अस्तित्व में आया। ये शक्ति पीठ पूरे भारतीय उपमहाद्वीप पर फैले हुए हैं।

मंदिर की तस्वीर

देवी पुराण में 51 शक्तिपीठों का वर्णन है। हालांकि देवी भागवत में जहां 108 और देवी गीता में 72 शक्तिपीठों का ज़िक्र मिलता है, वहीं तन्त्रचूडामणि में 52 शक्तिपीठ बताए गए हैं। देवी पुराण में ज़रूर 51 शक्तिपीठों की ही चर्चा की गई है। इन 51 शक्तिपीठों में से कुछ विदेश में भी हैं।  वर्तमान में भारत में 42, पाकिस्तान में 1, बांग्लादेश में 4, श्रीलंका में 1, तिब्बत में 1 तथा नेपाल में 2 शक्ति पीठ  है।

आदिशंकराचार्य के द्वारा वर्णित 18 महाशक्ति पीठो में भी ज्वालामुखी मन्दिर का उल्लेख है। माता के इन 51 शक्तिपीठों के बनने की कथा के अनुसार  राजा प्रजापति दक्ष की पुत्री के रूप में माता जगदम्बिका ने सती के रूप में जन्म लिया था और भगवान शिव से विवाह किया। एक बार मुनियों का एक समूह यज्ञ करवा रहा था। यज्ञ में सभी देवताओं को बुलाया गया था। जब राजा दक्ष आए तो सभी लोग खड़े हो गए लेकिन भगवान शिव खड़े नहीं हुए।

भगवान शिव दक्ष के दामाद थे। यह देख कर राजा दक्ष बेहद क्रोधित हुए। दक्ष अपने दामाद शिव को हमेशा निरादर भाव से देखते थे। सती के पिता राजा प्रजापति दक्ष ने कनखल (हरिद्वार) में ‘बृहस्पति सर्व / ब्रिहासनी’ नामक यज्ञ का आयोजन किया था। उस यज्ञ में ब्रह्मा, विष्णु, इंद्र और अन्य देवी-देवताओं को आमंत्रित किया गया, लेकिन जान-बूझकर अपने जमाता और सती के पति भगवान शिव को इस यज्ञ में शामिल होने के लिए निमन्त्रण नहीं भेजा था। जिससे भगवान शिव इस यज्ञ में शामिल नहीं हुए।

नारद जी से सती को पता चला कि उनके पिता के यहां यज्ञ हो रहा है लेकिन उन्हें निमंत्रित नहीं किया गया है। इसे जानकर वे क्रोधित हो उठीं। नारद ने उन्हें सलाह दी कि पिता के यहां जाने के लिए बुलावे की ज़रूरत नहीं होती है। जब सती अपने पिता के घर जाने लगीं तब भगवान शिव ने मना कर दिया। लेकिन सती पिता द्वारा न बुलाए जाने पर और शंकरजी के रोकने पर भी जिद्द कर यज्ञ में शामिल होने चली गई।

यज्ञ-स्थल पर सती ने अपने पिता दक्ष से शंकर जी को आमंत्रित न करने का कारण पूछा और पिता से उग्र विरोध प्रकट किया। इस पर दक्ष ने भगवान शंकर के विषय में सती के सामने ही अपमानजनक बातें करने लगे। इस अपमान से पीड़ित हुई सती को यह सब बर्दाश्त नहीं हुआ और वहीं यज्ञ-अग्नि कुंड में कूदकर अपनी प्राणाहुति दे दी।

भगवान शंकर को जब इस दुर्घटना का पता चला तो क्रोध से उनका तीसरा नेत्र खुल गया। सर्वत्र प्रलय-सा हाहाकार मच गया। भगवान शंकर के आदेश पर वीरभद्र ने दक्ष का सिर काट दिया और अन्य देवताओं को शिव निंदा सुनने की भी सज़ा दी और उनके गणों के उग्र कोप से भयभीत सारे देवता और ऋषिगण यज्ञस्थल से भाग गये।

तब भगवान शिव ने सती के वियोग में यज्ञकुंड से सती के पार्थिव शरीर को निकाल कंधे पर उठा लिया और दुःखी हुए सम्पूर्ण भूमण्डल पर भ्रमण करने लगे। भगवती सती ने अन्तरिक्ष में शिव को दर्शन दिया और उनसे कहा कि जिस-जिस स्थान पर उनके शरीर के खण्ड विभक्त होकर गिरेंगे, वहाँ महाशक्तिपीठ का उदय होगा।

सती का शव लेकर शिव पृथ्वी पर विचरण करते हुए तांडव नृत्य भी करने लगे, जिससे पृथ्वी पर प्रलय की स्थिति उत्पन्न होने लगी। पृथ्वी समेत तीनों लोकों को व्याकुल देखकर और देवों के अनुनय-विनय पर भगवान विष्णु सुदर्शन चक्र से सती के शरीर को खण्ड-खण्ड कर धरती पर गिराते गए। जब-जब शिव नृत्य मुद्रा में पैर पटकते, विष्णु अपने चक्र से शरीर का कोई अंग काटकर उसके टुकड़े पृथ्वी पर गिरा देते।

‘तंत्र-चूड़ामणि’ के अनुसार इस प्रकार जहां-जहां सती के अंग के टुकड़े, धारण किए वस्त्र या आभूषण गिरे, वहां-वहां शक्तिपीठ अस्तित्व में आया। इस तरह कुल 51 स्थानों में माता की शक्तिपीठों का निर्माण हुआ। अगले जन्म में सती ने हिमवान राजा के घर पार्वती के रूप में जन्म लिया और घोर तपस्या कर शिव को पुन: पति रूप में प्राप्त किया। कहते हैं इस क्षेत्र में सती की जीभ गिरी थी।

ज्वाला मुखी मन्दिर के भीतर 9 ज्योतियां हैं जो 9 देवियों का प्रतीक हैं l इस मन्दिर में कुछ सीढियां चढ़ कर बाबा गोरखनाथ का मन्दिर है  जिसे गोरख डिब्बी भी कहते हैं। यहाँ खौलता हुआ पानी है जो हाथ लगाने पर बिलकुल ठंडा होता है।  इसके दर्शन  लपटों के रूप में पुजारी करवाते हैं। यहाँ चढावे के रूप नारियल चढाया जाता है।

कहते हैं अकबर के काल में ध्यानु भगत ने यहाँ अपना सिर काट कर भेंट चढाया था । दरअसल अकबर को मातारानी की महिमा के बारे में ध्यानु भगत ने ही बताया था लेकिन अकबर को विश्वास नही आया उसने ध्यानु भगत के घोड़े का सिर काट दिया और ध्यानु से कहा कि इसे माता रानी से जुडवा लो। ध्यानु भगत माता रानी के दरबार में फिर आया लेकिन कई दिन बीत जाने पर जब  सिर नही जुड़ा तो उसने अपना सिर माता के चरणों में काट कर भेंट चढ़ा दिया।

माता  प्रकट हुई और ध्यानु का सिर तो जोड़ ही दिया घोड़े की सिर भी दुबारा  लगा दिया। माता का करिश्मा देख अकबर नंगे पांव  आ कर सोने का छत्र चढ़ा गया था। तब से माता रानी ने यह निर्देश दिया था कि यहाँ नारियल ही चढ़ेगा।  ज्वालामुखी से कुछ ही दूर पहाड़ी में टेढ़ा मन्दिर है जो 1905 के काँगड़ा भूकम्प में टेढ़ा हो गया पर गिरा नही। ज्वालामुखी के पास सपडी के जंगलों में चन्दन के वृक्ष भी हैं।

(vivekavinashi15@gmail.com)

केंद्र सरकार की स्कीम में हिमाचली बेरोजगार लगा सकते हैं अपना सोलर प्लांट

  • इन हिमाचल डेस्क
ग्रामीण क्षेत्र के बेरोजगार युवकों एवं किसानों के लिए भारत सरकार की एक स्कीम आई है। इसके तहत  ग्रेजुएट 35 साल के नीचे के  ग्रामीण बेरोजगरों  एवं किसानों को 0.5  से 5  MW  के सोलर प्लांट आबंटित होंगे
गौरतलब है की 1 MW का सोलर प्लांट लगाने के लिए लगभग  7 करोड़ की जरूरत होती है।  केंद्र की ओर से 1 MW के लिए 50 लाख सब्सिडी दी जाएगी। बाकी सोसाइटी बनाकर या NGO  के नाम पर या अकेले व्यक्ति को लोन का प्रावधान बैंक  से करना होगा।
हिमाचल प्रदेश स्टेट इलेक्ट्रिसिटी बोर्ड को अनिवार्य रूप से सोलर प्लांट से पैदा होने वाली बिजली खरीदनी होगी जिसके लिए बकायदा पावर परचेस एग्रीमेंट होगा। हिमाचल सरकार  सरकार की रिन्यूएबल एजेंसी हिम   ऊर्जा आवेदनों की छंटनी करके।  भारत सरकार के नवीनकरनिया ऊर्जा मंत्रालय को भेजगी।

प्लांट सैंक्शन होने पर  युवाओ एवं किसानो को 6 महीने की अनिवार्य ट्रेनिंग के लिए  गुड़गांव स्थित सोलर एनर्जी इंस्टिट्यूट में बुलाया जाएगा एवं यहाँ विभिन्न पहलुओं पर ट्रेंड किया जाएगा।  ट्रेनिंग का सारा खर्च सरकार वहन करेगी।
सोलर प्लांट का सांकेतिक चित्र
अधिक जानकारी के लिए शिमला में कुसुमटी स्थित हिम ऊर्जा के चीफ एक्सिक्यूटिव आफिसर से बात की जा सकती है।  नेशनल इंस्टिट्यूट आफ टेक्नोलॉजी हमीरपुर के ऊर्जा सेंटर से  भी विस्तृत जानकारी ली जा सकती है।
जानकारी के लिए लिंक पर क्लिक करें
http://www.hpseb.com/whatsnew/advertisement%2007-09-2015.pdf

 इस योजना पर विस्तृत चर्चा करने के लिए  इन हिमाचल ने  आशीष नड्डा से सम्पर्क किया ।  नड्डा  आई आई टी दिल्ली में सोलर एनर्जी  एवं पालिसी प्लानिंग पर रिसर्च कर रहे हैं।  उन्होंने कहा की अभी उन्होंने इस योजना को डिटेल में स्टडी नहीं कि  है इसलिए  अभी कुछ ज्यादा नहीं सकते।

राजसी वैभव की कथा सुनाती हिमाचल की सिरमौर रियासत

  •  विवेक अविनाशी

नाहन  के चौगान मैदान के बिलकुल सामने खड़ा रणजोर पैलेस आज भी सिरमौर रियासत के राजसी वैभव की गौरव गाथा सुनाता है l इस रियासत के अंतिम शासक महाराजा   राजेंद्र प्रकाश ने देश की आज़ादी के बाद 13 मार्च ,1948 को भारत संघ में विलय के लिए हस्ताक्षर किये और 15 अप्रैल 1948 को सिरमौर  हिमाचल प्रदेश का एक जिला बना।  

 राजेंद्र प्रकाश 1934 में सिहासन पर बैठे थे।   18वीं सदी तक सिरमौर रियासत की सीमायें पूर्व में टीहरी गड़वाल, उत्तर में रामपुर बुशहर,दक्षिण में अम्बाला  व पश्चिम में  पटिआला रियासत के कुछ भू-भाग तक फैले हुई थी।    कर्नल फ्रांसिस मैसी द्वारा वर्णित अँगरेज़ शासकों की तरतीबवार दरबार में बैठने वाली फेहरिस्त  में सिरमौर रियासत के राजा शमशेर प्रकाश, जो 1856 में सिंहासन पर बैठे, को 13 तोपों की सलामी दी जाती थी , इनमे से दो तोपें राजा की निजी तोपें थीं।
उस समय सिरमौर रियासत की वार्षिक आय 3 लाख रूपये  और  जनसंख्या11,271 थी।   आय के आधार पर सिरमौर के राजा के दरबार में बैठने का स्थान दूसरा था।   अंग्रेजों के वक्त में इस रियासत के पोलिटिकल अफसर शिमला पहाड़ी रियासतों के सुपरिटेंडैट थे।

सन  1800 में सिरमौर रियासत की स्टंप
राजा कर्म प्रकाश ने  सन 1621 में नाहन को राजधानी बनाया और आठ वर्ष तक राज किया l इससे पूर्व सिरमौर रियासत की राजधानी कालसी थी l सिरमौर में सबसे अधिक जन कल्याण कार्य राजा शमशेर प्रकाश के काल में हुएl सन 1867 में नाहन फाउंड्री की स्थापना भी राजा  शमशेर प्रकाश के काल में हुईl
सिखों के दसवें गुरु गोविन्द सिंह भी पोंटा साहिब जाते हुए यहाँ रुके थे।

नाहन फोर्ट का चित्र 1850 (Source www. wikipedia.org)

विभिन्न इतिहासकारों के अनुसार सिरमौर रियासत पर 11वीं सदी से लेकर हिमाचल प्रदेश में विलय तक 44 से ले कर 48 राजाओं ने राज किया l  सिरमौर का पहला राजा सुभाहंस प्रकाश था।  स्वर्गीय परमानन्द शास्त्री ने इन्दुकाव्यम के पांचवें सर्ग  से ले कर सातवें सर्ग तक सिरमौर की कथा का वर्णन किया है।   उन्होंने अपने इस  काव्य में 46 राजाओं का उल्लेख किया है।   परमानन्दशास्त्री ने  अपने काव्य में नटनी की कथा का भी उल्लेख किया है जिस के श्राप के  कारण 11वीं सदी में सिरमौर की तत्कालीन राजधानी सिरमौरी ताल राजा समेत नष्ट हो गयी थी।

इन्दुकाव्य्म की परमानंद जी की हस्त लिखित पांडुलिपि

इन  हिमाचल ,का सोभाग्य है कि यह फोटो प्रति हमारे पाठक  सतीश धर ने  विशेष रूप से हमें प्रेषित की हैl  जो खुद भी एक लेखक हैं लेखक सतीशधर ने स्वर्गीय परमानंद की पुस्तक ‘भारत और भारतीय संस्कृति ‘ का सह-सम्पादन उनके पुत्र रमेश शर्मा के साथ किया है।  


1877 में बनाया गया  Lytton  मेमोरियल 


लेखक हिमाचल प्रदेश के हितों के पैरोकार हैं और जनहित के मुद्दों पर लंबे समय से लिख रहे हैं। इन दिनों ‘इन हिमाचल’ के नियमित स्तंभकार हैं। उनसे vivekavinashi15@gmail.com के जरिए संपर्क किया जा सकता है)

पंचायत चुनाव में पार्टीबाजी ग्रामीण विकास एवं भाईचारे के लिए घातक

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पंचायत चुनाव में पार्टीबाजी  ग्रामीण विकास एवं भाईचारे  के लिए घातक : लेख

  • आशीष नड्डा 
गुलाबी ठण्ड की शुरुआत से ही प्रदेश की राजनैतिक  फिजाओं में एक अलग तरह की गर्मी का एहसास भी होने लगा है।  दिसम्बर में पंचायत चुनाव आने वाला हैं।  गावँ -घर की राजनीति को चूल्हे तक प्रभावित करने वाला यह चुनाव लोकतंत्र में हार जीत के हिसाब से सबसे कठिन माना जाता है , क्योंकि प्रत्याशी के अच्छे बुरे आचार व्यव्यहार कर्म से मतदाता पूरी तरह  वाफिक रहता है।
 सरपंच का चुनाव जहां पड़ोसी राज्यों मे एक विधायक के चुनाव की तरह बन जाता है वहीं हिमाचल प्रदेश की बात की जाए तो पैसा परोसने के मामले मे पड़ोसी राज्यों से हिमाचल बहुत पीछे है। हालांकि शराब बकरा बांटा जाना हिमाचल के  ग्रामीण परिवेश मे चलता है पर यह सब  यहाँ सामर्थ्य अनुसार ही हो पाता है । यह सब करने के बाद जरूरी भी नहीं की जीत इसी से तय हो।
पंचायत चुनाव  के समीकरणों पर नजर डाली जाए तो  इस चुनाव ने वक़्त के साथ बहुत  रंग बदले हैं।  शुरआती दौर की बात की जाए तो इलाके के मान्यवर धाक रखने वाले लोग ही चुनाव में उतरा करते थे।  जनता भी प्रत्याशी  के दम ख़म  समाज में चरित्र रुतबे  बेबाकी  को देखकर फैसला लेती थी।  इसके कुछ कारण भी थे  जनता को सिर्फ आपसी विवाद सुलझाने के लिए पंचायतों का रुख करना होता था इसलिए ऐसे व्यक्ति का सरपंच या पंच होना  जरूरी होता था जिसकी समाज में बात मानी जाती हो जिसका फैसला सबको स्वीकार्य हो जो फैसला देने की हिम्मत भी रखता हो।   उस दौर में पंचायतों को विकास कार्य के लिए इतना धन नहीं आता था , पंचायत सदस्य होना एक पार्ट टाइम कार्य की तरह था।  अधिकांश पंचायतों के कोई अपने भवन भी नहीं थे।  कोरम के दौरान भारी तादाद में लोग पहुंचा करते थे ,पंचो का फैसला सर्वमान्य होता था उसे भेदकर  कोर्ट जाने की हिम्मत कोई नहीं कर सकता था।  पार्टीबाजी राजनिति का कोई नामो निशान नहीं था।
90 के दशक में पंचायत चुनाव में एक नयी तरह का फ्लेवर आया।  यह फ्लेवर  प्रत्याशी को  सामाजिक प्रतिष्ठा के आधार पर चुनने से सबंधित नहीं था बल्कि जातिगत समीकरणों पर आधारित था।  इस दौर के लगभग सभी चुनाव जातिगत आधार पर होने लगे  फलां बंदा हमारी जाती का है यह समीकरण हार -जीत निर्धारित करने लगे।   हालाँकि ऐसा नहीं कहा जा सकता की पहले जातिवाद नहीं था परन्तु हाँ,  सामजिक प्रतिष्ठा से सर्वोपरि नहीं था।  सरपंच बनने के लिए  शराब का बांटा जाना , बकरे काटना आदि इसी दौर के  टोटके रहे।  इस दौर में महिलाओं ने भी आरक्षण के दम पर पंचायती सरदारी में कदम रखा।  चूल्हे – चौके  तक सिमटी महिला  अब गावं के  विवादों  (बीड़ -बन्ने ) पर फैसले देने लगी। विकास कार्यों के लिए  भी धन में इजाफा हुआ।  कौन किस पार्टी राजनैतिक दल से है इसकी सुगबुगाहट गाहें बगाहें इस दौर में रही परन्तु  क्षेत्रीय मुद्दों को भेदकर निर्णायक नहीं हो पायी।
अब हम इक्कसवीं सदी के पंचायती राज  की बात करते हैं।  यह रोजगार गारंटी योजना का दौर है।  गरीबों के चयन से लेकर लाखों के विकास कार्यों की जिमेवारी पंचायतों के ऊपर है।  स्वछता अभियान शोचलाय निर्माण सैंकड़ों तरह की योजनाये भारत सरकार पंचायतों के माध्यम से ग्रामीण स्तर तक पहुँचाने की अभिलाषी है।  पंचायत भवन में सुख सुविधाएँ कंप्यूटर का आगमन हो चूका है,  बकायदा एक सचिव सारे कार्य देख रहा है।  जाहिर है जब विकास कार्य के लिए धन की इतनी आमद है तो सरपंच बनने के लिए चाह्वानों की फेरहिस्त भी लम्बी होगी और हुयी है।
सामाजिक प्रतिष्ठा रुतबा बेबाकी अब पीछे रह गयी है।  बीड बन्ने की लड़ाई अब सीधे थाने या कोर्ट में लड़ी  जाने लगी है।   एक  सरपंच के लिए 20 उमीदवार फाइट करने लगे हैं।  सरपंची अब पार्ट टाइम कार्य नहीं है।

 इन सब के बीच जो नया फ्लेवर एड्ड हुआ है वो है पार्टीबाजी फ्लेवर।  सामाजिक प्रतिष्ठा  को पीछे छोड़कर , जाती पाती से होकर पंचायत चुनाव अब पार्टीबाजी की धुरी पर आकर घूमने लगा है।  जिस चुनाव को कभी घरेलू कहा जाता था वो अब भाजपा कांग्रेस के नाम पर आ गया है।  हिन्दू – मुस्लिम का बंटवारा फिर  राजपूत ब्राह्मण – वैश्ये – शूद्र के  फर्क  से आगे अब हम भाजपाई कांग्रेसी  नामक नयी ब्रीड में बंट गए हैं।

पंचयात यानी चार छ गावों का चुनाव है उसमें हम अब इस बेस पर यह निर्धारण करने लगें हैं की कौन आदमी किस पार्टी की विचारधारा का है।  हालाँकि पंचायत चुनाव पार्टी चिन्ह पर नहीं लड़ा जाता परन्तु राजनैतिक पार्टिया इसे सेमीफइनल की संज्ञा देती हैं।  बड़े बड़े नेता  अपने वर्कर्स से आह्वाहन करते हैं  पंचायत चुनाव के लिए तैयार रहो।

व्यक्तिगत रूप से मेरा मानना है ग्रामीण संसद के इस चुनाव में पार्टीबाजी का ज़हर  घातक है।  हमें पार्टी देखकर नहीं योग्यता देखकर चुनाव करना होगा।  पार्टीबाजी की पट्टी आँखों पर बंधी रहेगी तो हम सही फैसला नहीं ले पाएंगे।  पार्टीबाजी के नाम पर आया व्यक्ति गरीबों का चयन भी पार्टी वोट बैंक  की मजबूती के मद्देेनजर करेगा और सबसे बड़ी बात आसपास के गावों में रहने वाले अपने ही लोगों को क्या हम पार्टीयों के  आधार पर देखने लगेंगे  यह कहाँ तक सही है।  एक समान  ग्रामीण विकास इससे प्रभावित होगा।  मतदाता मतदाता रहे तभी लोकतंत्र की खूबसूरती है , अगर मतदाता भी कार्यकर्ता पार्टी विशेष का हो जायेगा तो जनमत का क्या  वजूद रहेगा।
एक बात  और है  लाखों  रुपये  पंचायती कार्यों के लिए देने वाली सरकारों को पंचायत प्रतिनिधियों के वेतनमान में एक लेवल तक बढ़ोतरी करनी चाहिए।  सरपंच होना   आज के समय में पार्ट टाइम जॉब नहीं है।  दो तीन हजार मानदेय पर  सरपंची लोग कैसे कर रहे हैं,  मैं नहीं जानता।  या फिर सरकार ने भी अपनी तरफ से एक मौन स्वीकृति  दे रखी है की अपने परिवार का लालन पोषण का खर्च पंचायत प्रधान विकास कार्यों के फण्ड से ही निकाल लें।  फुल जॉब और  दो हजार  का मानदेय तो यही निष्कर्ष निकालता है।  सरपंच का वेतन कम से कम 20 हजार होना चाहिए ताकि पढ़ा लिखा जागरूक युवा भी ग्रामीण संसद का हिस्सा बनने की सोचे।
” लेखक आशीष नड्डा  आई आई टी   दिल्ली में  रेसेरच स्कॉलर हैं एवं इन हिमाचल के  नियमित पाठक हैं  और सामाजिक मुद्दों पर लिखते  रहते हैं।  अन्य पाठक भी  प्रदेश से सबंधित  सामाजिक मुद्दे पर हमें  inhimachal.in@gmail.com पर अपने लेख भेज सकते हैं।  

हिमाचल की सांस्कृतिक राजधानी मानी गई है मंडी रियासत

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विवेक अविनाशी।।  हिमाचल की  ‘छोटी काशी’ के नाम से विख्यात मंडी सबसे पुरानी रियासतों में से एक हैl  प्राप्त दस्तावेजों के अनुसार  यह रियासत पंजाब के पोलिटिकल कमिश्नर की निगरानी में थी और राजा बलबीर सेन के सुपुत्र विजय सेन (1851) को हिजहाइनेस की उपाधि से अलंकृत किया गया था l राजाओं का रुतबा तोपों की सलामी और रियासत की वार्षिक आय से आँका जाता था l मंडी रियासत की वार्षिक आय चार लाख रूपये थी और राजा साहिब को 11 तोपों की सलामी दी जाती थी lयह क्षेत्र उत्तर में कुल्लू और काँगड़ा , दक्षिण में सुकेत और पश्चिम में काँगड़ा से घिरा हुआ है l इस रियासत की राजधानी शुरू से ही मंडी रही हैI यह वह शहर नही जो हम आज देख रहे हैं बल्कि पुराना शहर ब्यास के दायें छोर पर बसा हुआ  थाl जिसे आज पुरानी मंडी के नाम से जाना जाता है l मंडी का  वर्तमान शहर अजबर सेन ने  सन 1527 में राजधानी के रूप में बसाया यहाँ चार मंजिला महल जिसे चौकी कहा जाता है l अजबर सेन  ने भूतनाथ मंदिर का निर्माण भी किया था l राजा अजबर सेन ने 35 वर्ष तक मंडी पर राज किया।

वर्ष 1846 में में सिखों और अंग्रेजों के बीच हुई संधि के आधार पर सतलुज तथा ब्यास नदियों के बीच का क्षेत्र अंग्रेजों को मिलाl मंडी और सुकेत भी अंग्रेजों के आधीन आ गए और इन दोनों रियासतों को जालंधर के कमीशनर के आधीन कर दिया गया l 24 अक्तूबर , 1846 को राजा बलबीर सेन को सनद दे कर राजा बनाया गया l  राजा बलबीर सेन ने प्रशासन की दृष्टि से मंडी रियासत में काफ़ी सुधार किया l बलबीर सेन के बाद राजा विजय सेन के काल में मंडी में स्कूल,अस्पताल और डाक घर खोले गए थेl विजय सेन के बाद भवानी सेन मंडी के राजा बने l भवानी सेन की  29 वर्ष की आयु में निसंत्तान मृत्यु  हो गई l भवानी सेन के बाद उनके निकटस्थ सम्बन्धी जोगिन्दर सेन को   1913 में राजा घोषित किया गया l

हिमाचल में विलय के समय राजा जोगिन्दर सेन मंडी के राजा थे l कर्नल मैसी, जिन्होंने पंजाब की पहाड़ी रियासतों का इतिहास लिखा है , मंडी रियासत को काँगड़ा पहाड़ की सबसे बड़ी रियासत माना हैl आज अपने प्राचीन विभव और समृद्ध  सांस्कृतिक धरोहर के कारण मंडी हिमाचल की सांस्कृतिक राजधानी के रूप में भी जानी जाती है।

(लेखक हिमाचल प्रदेश के हितों के पैरोकार हैं और जनहित के मुद्दों पर लंबे समय से लिख रहे हैं। इन दिनों ‘इन हिमाचल’ के नियमित स्तंभकार हैं। उनसे vivekavinashi15@gmail.com के जरिए संपर्क किया जा सकता है)

बी जे पी आलाकमान नहीं चाहता की इस्तीफा दे वीरभद्र !

सुरेश चंबियाल।।

हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह के घर में पड़ी सी बी आई रेड हालाँकि देश की राजनीति के इतिहास का  पहला  मौका है की किसी सिटींग सी एम के घर में सी बी आई ने इस तरह से दस्तक दी है।  हिमाचल प्रदेश में इस मुद्दे को भुनाने के लिए जहाँ पूरी बी जे पी ने जोर लगा दिया है वहीँ कांग्रेस भी इसे साज़िश बताते हुए प्रधानमंत्री मोदी के पुतले फूंक रही है।  बी जे पी हिमाचल यूनिट लगातार सी एम वीरभद्र सिंह से इस्तीफे की मांग कर रही है।
परन्तु देखने वाली बात यह है की इतने बड़े मुद्दे को सिर्फ राज्य इशू बना दिया गया है , जहाँ कांग्रेस आलाकमान की तरफ से पूर्व केंद्रीय मंत्री गुलाम नबी आजाद सीधे वीरभद्र के समर्थन में आये।  उस तरह से  बी जे पी के आलाकमान ने इस मुद्दे को जोर शोर से नहीं उठाया।  बी जे पी की तरफ से सिर्फ केंद्रीय मंत्री जे पी नड्डा ने मीडिया को उस दिन बाइट देते हुए कहा की नैतिकता के आधार पर वीरभद्र का इस्तीफा बनता है।
कांग्रेस को करप्शन के मुद्दे पर विदेशों तक खींचने वाले प्रधानमंत्री मोदी की दिल्ली टीम वीरभद्र मामले में उग्र नहीं है इसके कई कयास लगाये जा रहे हैं।  राजनैतिक पंडितों का मानना है की , बी जे पी आलाकमान इस मुद्दे को ज्यादा तूल  नहीं देना चाहता इसके कुछ कारण हैं।
पहला कारण यह है की मध्य प्रदेश में सी बी आई भी व्यामप घोटाले की जांच कर रही है।  जिसके छींटे शिवराज सिंह चौहान के परिवार के दामन के ऊपर भी लगे हैं।  बी जे पी  पंडितों का सोचना हो सकता है की अगर वीरभद्र सिंह ने इस्तीफा दिया और कल को व्यामप की जांच में कुछ भी शिवराज से सबंधित निकल कर आया तो इन मुद्दों पर पहले से उग्र कांग्रेस शिवराज के पीछे पद जाएगी जिस से जांच पूरी होने से पहले उनपर भी दबाब बढ़ जाएगा।
दुसरा कारण यह माना जा कि कांग्रेस ने अभी अभी ललित गेट के बाद राजस्थान की मुख्यमंत्रीं  वशुन्धरा राजे पर 4500 करोड़  की माइंस हेराफेरी के आरोप  लगाए हैं , साथ ही वसुन्दरा के एक खास  अधिकारी को करोड़ों रुपये के साथ पकड़ा गया है। उन पर भी दबाब बढ़ सकता है।
कुल मिलाकर बी जे पीआलाकमान ने वीरभद्र मामले में इसीलिए चुप्पी साधी है की कहीं वीरभद्र ने दबाब में इस्तीफा दिया तो   नैतिक दबाब उनके  नेतायों पर आ जाएगा।  इसलिए बी जे पी आलाकमान यह चाहता है की प्रदेश बी जे पी यूनिट बेशक इस मामले को उठाती रहे पर इसे राष्ट्रीय पटल पर न लाया जाए।

वकामुल्ला बोला नहीं दिया कोई लोन : वीरभद्र सिंह का ही था पैसा !

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शिमला। ।

आय से अधिक संपत्ति मामले में हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह की मुश्किलें बढ़ गयीं है।  एक दैनिक न्यूज़ पेपर  अमरउजाला में छपी खबर के अनुसार सी बी आई जल्द ही वीरभद्र सिंह और उनके परिवार से पूछताछ की तैयारी कर रहे है जिसके प्रश्नों की लिस्ट सी बी आई ने तैयार कर ली है।
गौरतलब है की मनी लॉन्ड्रिंग एवं पैसों की हेरा[फेरी के मामले में सी बी आई ने हाल में ही वीरभद्र सिंह के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की है और बाकायदा वीरभद्र सिंह के आवासों पर रेड भी की थी।
इस मामले में कई पहलु खुल के सामने आ रहे हैं वीरभद्र सिंह ने वकामुल्ला नाम के एक शखस से रामपुर महल की मुरम्मत के लिए लोन के नाम पर  पैसे लिए थे परन्तु सी बी आई के सामने  वकामुल्ला ने कहा है की मैंने वो पैसे वीरभद्र से ही लिए थे जिन्हे महल की मुरम्मत के तौर पर दिखाया गया।  वकामुल्ला के अनसुसार वो पैसा वीरभद्र का ही था।  सी बी आई इस मामले पहले ही शक की नजर से देख रही थी क्योंकि जब वीरभद्र सिंह ने  5. 9  करोड़ रूपए लोन के रूप में लिए  उस समय उनके  खाते में 20 करोड़ रूपए थे।
उधर सी बी आई कोर्ट के फैसले के खिलाफ ही सामान को दिल्ली  ले गयी। सीबीआई ने दिल्ली में अपने कानून विशेषज्ञों से राय लेने के बाद यह कदम उठाया है। सोमवार शाम को एसपी रैंक के अफसर की निगरानी में जब्त सामान दिल्ली ले जाया गया है। इसमें लैपटॉप, नगदी, पेन ड्राइव, दस्तावेज और अन्य सामान शामिल है।
वीरभद्र सिंह