प्रदेश में सबसे ज्यादा मंदिर हैं मंडी जिले में

देवभूमि हिमाचल के कण में है देवी-देवताओं का वास। प्रदेश का शायद ही कोई ऐसा जिला होगा जहां देवी- देवताओं के प्रसिद मन्दिर न हों। इन मंदिरों में नवरात्रों के दौरान सैंकड़ों श्रद्धालु माता के दरबार में शीश नवाने आते हैं।

प्रदेश में 150 से अधिक प्रसिद मंदिरों में से लगभग 35 मंदिर माता दुर्गा के विभिन्न रूपों को हैं। प्रदेश में सबसे अधिक मंदिर मंडी  जिला में हैं। इसी कारण इसे हिमाचल की छोटी काशी के नाम से भी जाना जाता है। श्यामाकाली मन्दिर, सिद्धभद्रा, रूपेश्वरी, राजेश्वरी, भुवनेश्वरी, महिषासुरमर्दिनी, शीतलादेवी, सिद्धकाली मंदिर मंडी नगर में हैं।

मंडी का श्यामाकाली मंदिर जिसे टारना देवी मंदिर भी कहा जाता है, 17वीं शताब्दी में राजा श्यामसेन ने बनवाया था। करसोग का  काव देवी मंदिर महाकाली का एक रूप है। यहां शरद नवरात्र की नवमी को मेला लगता है। शिकारी देवी का मंदिर,जो माता की 64 जोगनियों में से एक है, यह मंदिर 11000 फ़ीट की ऊंचाई पर स्थित है और यह जाने के लिए जंजैहली से रास्ता है।

मंडी नगर से 10 किलोमीटर दूर काह्न्वाल की बगलामुखी का मंदिर है। यह देवी मंदी की शिवरात्रि मेले के दौरान जलेब शामिल नही होती और राजमहल के बेह्ड़े में ही रहती हैं। इसके इलावा  चार और ऐसे देवियाँ हैं जो रथ-यात्रा में शामिल नही होती। रूपेश्वरी देवी(रोपा, मंडी नगर के निकट), बगलामुखी(बाखली), कश्मीरी (तुलाह), बूढी भैरव(पंडोह) ऐसे देवियाँ हैं जो परदे में रहती हैं। इन्हें मंडियाली में ”नरोल की देवियाँ’” कहते हैं।

धूमावती मंदिर मंडी से 17 किलोमीटर दूर सौली खड्ड से ऊपर स्थित है। बाखली का बगलामुखी मंदिर का रास्ता पंडोह से हो कर जाता है। सिमसा देवी का मंदिर लड़भड़ोल में स्थित है,जो बैजनाथ से 30 किलोमीटर दूर है। जोगिंदरनगर से सरकाघाट जाते वक्त माता चतुर्भुजा का मंदिर भी स्थित है।

कुल्लू जाते हुए हनोगी माता के दर्शन भी होते हैं। यहाँ दुर्गा माता की मूर्ति स्थापित की गई है। बंजार से 8 किलोमीटर गुशैनी में माता का मंदिर है जहाँ शरद नवरात्रों के दिन मेला लगता है।  शरद नवरात्रों में इन मंदिरों की रौनक देखते ही बनती है।

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