शक्तिपीठ, जहां मुसलमान भी आते हैं माता के दर पर

  • विवेक अविनाशी
पाकिस्तान के बलूचिस्तान प्रांत में कराची से 328 किलोमीटर दूर हिंगलाज माता की हिन्दुओं के साथ-साथ मुसलमान भी इज्जत करते हैं। कराची से इस मंदिर की यात्रा में 4 घंटे लग जाते हैं। हिन्दुओं के 51 शक्ति पीठों में से एक हिंगलाज माता के यहां अप्रैल मास के नवरात्रों के दौरान मेला लगता है।
यहाँ गुफा में माता की पिंडी है जिसे सिन्दूर से सजाया गया है। मुसलमान हिंगलाज को नानी और यहां की यात्रा को नानी का हज कहते हैं। हिन्दू इस मंदिर में तीन नारियल चढाते हैं और मुसलमान “शिरनियों” का प्रसाद चढाते हैं।
इस मंदिर में पूजा नंद्पंथी अखाड़े के छड़ीदारों द्वारा की जाती है। भारत में हिंगलाज माता के पूजक गुजरात और राजस्थान में सर्वाधिक हैं। अन्य शक्ति पीठों की भांति इस मन्दिर के साथ भी सती के अंगों के गिरने की कथा जुडी है। सती का शव लेकर शिव पृथ्वी पर विचरण करते हुए तांडव नृत्य कर रहे थे, जिससे पृथ्वी पर प्रलय की स्थिति उत्पन्न होने लगी। पृथ्वी समेत तीनों लोकों को व्याकुल देखकर और देवों के अनुनय-विनय पर भगवान विष्णु सुदर्शन चक्र से सती के शरीर को खण्ड-खण्ड कर धरती पर गिराते गए।
जब-जब शिव नृत्य मुद्रा में पैर पटकते, विष्णु अपने चक्र से शरीर का कोई अंग काटकर उसके टुकड़े पृथ्वी पर गिरा देते। हिंगलाज में सती का ब्रह्मरंध गिरा था। पुराणों में हिंगलाज पीठ की अतिशय महिमा है।
श्रीमद भागवत के अनुसार यह हिंगुला देवी का प्रिय महास्थान है- ‘हिंगुलाया महास्थानम्’। ब्रह्मवैवर्त पुराण में कहा गया है कि हिंगुला देवी के दर्शन से पुनर्जन्म कष्ट नहीं भोगना पड़ता है। बृहन्नील तंत्रानुसार यहाँ सतीका “ब्रह्मरंध्र” गिरा था। यहाँ पर शक्ति ‘हिंगुला’ तथा शिव ‘भीमलोचन’ हैं-

‘ब्रह्मरंध्रं हिंगुलायां भैरवो भीमलोचनः।
कोट्टरी सा महामाया त्रिगुणा या दिगम्बरी॥
देवी के शक्तिपीठों में कामख्या, कांची, , त्रिपुर, हिंगुला प्रमुख शक्तिपीठ हैं। ‘हिंगुला’ का अर्थ सिन्दूरहै। हिंगलाज खत्री समाज की कुल देवी हैं। कहते हैं, जब 21 बार क्षत्रियोंका संहार कर परशुराम आए, तब बचे राजागण माता हिंगुला की शरण में गए और अपनी रक्षा की याचना की। तब माँ ने उन्हें ‘ब्रह्मक्षत्रिय’ कहकर अभयदान दिया थाl
(vivekavinashi15@gmail.com)
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