बैजनाथ में नहीं होता रामलीला का मंचन, नहीं फूंका जाता रावण

इन हिमाचल डेस्क।। आज पूरे हिमाचल में दशहरा धूमधाम से मनाया गया। हर छोटे-बड़े कस्बे में रावण, कुंभकर्ण और मेघनाद के पुतले फूंके गए, मगर प्रदेश का एक कस्बा ऐसा भी है, जहां पर ऐसा कुछ देखने को नहीं मिला। मगर यह पहला मौका नहीं था कि यहां पर रावण दहन नहीं हुआ, बल्कि कई सालों से यहां पर यह काम नहीं किया जाता और न ही रामलीला का मंचन किया जाता है।

हम बात कर रहे हैं कांगड़ा जिले के प्रसिद्ध धार्मिक स्थल बैजनाथ की। जी हां, वही बैजनाथ, जहां पर प्रसिद्ध बैजनाथ शिवमंदिर है। जोगिंदर नगर और बीड़-बिलिंग के पास वाला बैजनाथ वही जगह मानी जाती है, जहां पर लंकापति रावण ने स्थापना करके शिव को प्रसन्न करने के लिए हवनकुण्ड में शीश अर्पित किए थे। हालांकि ऐसी ही मान्यता झारखंड के वैद्यनाथ मंदिर को लेकर भी है, जो 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक है।

बैजनाथ मंदिर

बहरहाल, कहा जाता है कि यहां कभी भी रामलीला के आयोजन और रावण के पुतले फूंकने की परंपरा नहीं रही थी, मगर 70 के दशक में स्थानीय लोगों ने कुछ सालों तक इसका आयोजन किया था। मगर करीब 5 साल के अंदर ही रामलीला में शामिल लोगों को कई तरह के नुकसान झेलने पड़े और कुछ की अकाल मृत्यु हो गई। ऐसे में यह सिलसिला रोक दिया गया और आज तक इसी अनहोनी के डर से किसी की हिम्मत नहीं हुई फिर से यह काम शुरू करने की।

एक खास बात और यह है बैजनाथ को लेकर कि इस कस्बे में सोने की एक भी दुकान नहीं है। बिनवा खड्ड के एक छोर पर बसे इस शहर में बेशक एक भी जूलरी शॉप नहीं, मगर दूसरी छोर पर बसा पपरोला शहर सोने की दुकानों के लिए प्रदेश भर में प्रसिद्ध है। इसका भी सोने की लंका के स्वामी रावण से कोई लिंक माना जाता है।

खड्ड के एक किनारे बैजनाथ है और दूसरे किनारे पर पपरोला। (साभार: Travellingcamera.com)

अब इन किवदंतियों में कितनी सच्चाई है, यह तो नहीं मालूम। मगर लोग इन परंपराओं का सम्मान करते आते हैं। वे मानते हैं कि भगवान शिव की इस धरती पर उनके अनन्य भक्त का पुतला न ही जलाने अच्छा है।

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