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Friday, September 12, 2025
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मोदी की रैली से पहले धूमल का दबाव- पार्टी CM कैंडिडेट घोषित करे

शिमला।। जैसे-जैसे चुनाव नजदीक आ रहा है, राजनीतिक पार्टियों के नेताओं की धुकधुकी बढ़ती जा रही है। सत्ता के लिए पांच साल से इंतज़ार कर रही बीजेपी और उसके कैडर में फिलहाल यही प्रश्न चल रहा है कि चुनाव से पहले सीएम कैंडिडेट घोषित होगा या नहीं। और अगर नहीं होता है तो चुनाव के बाद जीतने की स्थिति में बीजेपी की तरफ से सीएम कैंडिडेट कौन होगा।

 

यह सवाल और भी गहराता जा रहा है क्योंकि आचार सहिंता लगने और उसके बाद चुनाव होने में कुछ ही समय बचा है, लेकिन बीजेपी आलाकमान की चुप्पी से कुछ इशारा नहीं मिल पा रहा है। इस सिलसिले को तोड़ते हुए प्रधानमंत्री की रैली से पहले पूर्व मुख्यमंत्री और विपक्ष नेता प्रेम कुमार धूमल ने एक इंटरव्यू में कहा है कि बीजेपी को मुख्यमंत्री पद का कैंडिडेट या प्रदेश में नेतृत्व का चेहरा साफ़ कर देना चाहिए।

 

अभी तक धूमल हर सवाल पर यही कहते थे कि पार्टी आलाकमान समय आने पर कैंडिडेट घोषित कर देगा। पर अब इस तरह से धूमल ने अपने अनुभव के आधार पर अपना रुख स्पष्ट कर दिया है कि अब समय नहीं बचा है, इसलिए पार्टी को सीएम कैंडिडेट घोषित कर देना चाहिए। धूमल का तर्क है कि पार्टी 1982 से लेकर 2012 तक ऐसा ही करती हुई आई है।

धूमल का यह बयान ऐसे समय में आया है, जब प्रधानमंत्री मोदी की रैली जिला बिलासपुर में होने जा रही है और मुख्यमंत्री पद के सशक्त दावेदारों में चल रहे केंद्रीय मंत्री जे पी नड्डा 15 दिन से हिमाचल में ही खुद रैली की तैयारियों में जुटे हुए हैं। हालाँकि इससे पहले कई बार बड़े स्तर की रैलयां हुई हैं, मगर नड्डा इस तरह से इतने दिन हेल्थ मिनिस्ट्री का कार्य छोड़कर गृह प्रदेश में खुद नहीं डटे हैं।

 

धूमल के बयान को केंद्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद के उस बयान से अलग राय माना जा रहा है, जिसमें हाल ही में उन्होंने शिमला में कहा था कि प्रदेश में चुनाव सामूहिक नेतृत्व में लड़ा जाएगा। प्रदेश में कद्दावर नेता धूमल भी अन्य लोगों की तरह संशय में नजर आ रहे है। उन्होंने पांच साल में सरकार को कई मुद्दों पर घेरने की कोशिश की है, इसलिए हो सकता है धूमल चाहते हों कि पार्टी उन्हें नेतृत्व का दायित्व सौंपे। और अघर पार्टी किसी और को सौंपना चाहती है, तो भी क्लियर करे ताकि इस आधार पर वह प्रदेश की राजनीति में अपनी भविष्य की भूमिका देखें।

 

पिछले चुनावों में पार्टी की हार के लिए भी धूमल ने गलत टिकट आबंटन को जिम्मेदार बताया है। उन्होंने कहा है कि पिछले चुनावों में ऐसे लोगों को टिकट दिए गए थे, जो जीतने की क्षमता नहीं रखते थे। यह इशारा सीधे-सीधे शांता समर्थकों की तरफ था क्योंकि कांगड़ा में पार्टी की दुर्गति के चलते भाजपा सत्ता से बाहर हो गयी थी और धूमल के समर्थक माने जाने वाले नेताओं ने बागी होकर हर सीट से ठीकठाक वोट लेकर चुनावी गणित को प्रभावित किया था।

 

सीएम का चेहरा घोषित करने की धूमल की राय पर पार्टी आलाकमान का फैसला क्या होता है, यह देखने वाली बात होगी। हालांकि मोदी लहर पर बीजेपी हाल ही में उत्तराखंड और उत्तर प्रदेश चुनाव में बिना सीएम दिए क्लीन स्वीप कर चुकी है। मगर हिमाचल में वह धूमल को दरकिनार करते हुए नया फेस देती है या अपने ही अजेंडे पर चलती है, यह सवाल भविष्य के गर्भ में हैं। मगर प्रदेश के इस वरिष्ठ नेता ने अपने अनुभव के आधार पर अपनी राय सामने रख दी है।

सेब पर कथित स्टिंग पर बवाल, पत्रकार पर भी सवाल

शिमला।। पूर्व मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल के छोटे बेटे अरुण ने बुधवार को प्रेस कॉन्फ्रेस में जिस कथित स्टिंग का हवाला देकर मौजूदा सरकार और मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह पर सेब के पौधों के आवंटन में गड़बड़ी का आरोप लगाया था, वह पूरा का पूरा मामला तूल पकड़ता जा रहा है। जानकारी सामने आई है कि अरुण ने जिस कथित ‘स्टिंग’ का हवाला दिया था, कथित रूप से उसे अंजाम देने वाले पत्रकार पर एफआईआर हो गई है। इसके बाद अरुण जहां इस कार्रवाई को लेकर सवाल उठा रहे हैं, वही हिमाचल सरकार के डेप्युटी एडवोकेट जनरल विनय शर्मा ने इस मामले में शामिल पत्रकार पर गंभीर आरोप लगाए हैं।

जानें, क्या है मामला
आरोप लगे हैं कि विदेश से आए हुए सेब के पौधे लोगों को न देकर मुख्यमंत्री के बागीचे में लगा दिए गए और लोगों के नाम की फर्जी एंट्री की गई। इस संबंध में अरुण ने बुधवार को एक प्रेस कॉन्फ्रेंस की थी।

अब अरुण ने किया सरकार पर प्रहार
पत्रकार पर एफआईआर दर्ज होने की खबर को लेकर अरुण ने अपनी फेसबुक पोस्ट पर लिखा है, “इससे ज़्यादा रोचक और इससे ज़्यादा शर्मनाक क्या होगा ? सरकार इस बात की जाँच की ग़रीब बागवानों का हक़ किसने मारा ताकि उन अधिकारियों को सज़ा मिले, आज एक FIR शक के बिनाह पर कि फ़लाँ आदमी ने ये स्टिंग मुख्यमंत्री के बाग़ीचे में किया कर दी। मैं माननीय मुख्यमंत्री को चुनौती देता हूँ, मेने पत्रकार वार्ता में आपका पर्दाफ़ाश किया की आपने ग़रीबों का हक़ कितनी बेशर्मी से मारा। अगर दम है तो मेरे ख़िलाफ़ FIR करें। शक के बिनाह पर किसी पर अपनी सरकार की धौंस दिखा कर आपके पाप नहीं धुलेंगे। दम है तो मेरे ख़िलाफ़ करें FIR !!!”


उन्होंने आगे लिखा है, “प्रदेश की पुलिस की भी हद देखिए, Trespassing का पर्चा एक महीने बाद कर रही है। लगता है हिमाचल पुलिस जेल के अंदर ज़्यादा ख़ुश रहती है !!! इस फ़र्ज़ी FIR करने वालों को भी जवाब देना पड़ेगा, ग़रीब का हक़ मारने वालों पर कारवाई करोगे या ग़रीबों को हक़ दिलाने वालों पर। इससे कहते हैं – अंधेर नगरी चौपट राजा सबका खाएगा रामपुर हो या क़ाज़ा.”

 

डेप्युटी एडवोकेट जनरल के सवाल
वहीं कथित रूप से इस स्टिंग को करने को लेकर जिस पत्रकार पर एफआईआऱ हुई है, उसे लेकर विनय शर्मा ने लिखा है, “हॉर्टिकल्चर यूनिवर्सिटी का डॉक्टर बताकर गेट फांद कर बगीचे में घुसे पत्रकार पर FIR दर्ज। D कंपनी का एजेंट बने इस पत्रकार ने गुड़िया मामले में भी 3 करोड़ की झूठी रिपोर्टिंग की थी जिसकी बजह से लोगों का गुस्सा भड़का ओर ठियोग थाने पर पत्थराव हुआ था। मैंने ओर पंजाब केसरी ने इस पत्रकार के झूठ का पर्दाफाश किया था। कल माननीय मुख्यमंत्री पर झूठे आरोपों की वीडियो और ऑडियो इस पत्रकार से बनबा कर D कंपनी के छोटे सपूत ने प्रेस कांफ्रेंस की थी। तब प्रदेश के प्रबुद्ध पत्रकारों ने इस पत्रकार की हरकत का अफसोस जताते हुए तीखे सवाल झड़े थे।अब साफ हो गया है कि गुड़िया मामले को किन लोगों के इशारे पर इस पत्रकार ने उछाला था।

 विनय आगे लिखते हैं, “पत्रकारिता की आड़ में विपक्ष का एजेंट बने इस पत्रकार ने पत्रकारिता की सारी मर्यादाओं को तोड़ते हुए जिस तरह से एक गांव के भोले भाले माली को धमका कर जो कथित स्टिंग किया उसकी पोल भी खुल गयी और गुड़िया मामले की भी। क्या यह वहां भी कोई फ़र्ज़ी इंस्पेक्टर बनकर तो नहीं गुड़िया मामले की तहकीकात करता रहा? क्योंकि इस पत्रकार की सारी रिपोर्टिंग एक पार्टी को फायदा पहुंचाकर सरकार को बदनाम करने के लिए थी। माँ भीमाकाली ने इंसांफ कर दिया और विपक्ष की घिनोनी साजिश का भी पर्दाफाश हो गया।अब यह बात साफ हो गयी है कि इसका बॉस कोन था और इसका मकसद क्या था। देवभूमि को कलंकित करने वालों से देवता खुद ही निपट लेते हैं।’

मगर अरुण ने एक और ऑडियो पोस्ट किया है और दावा किया है इस बातचीत में शामिल महिला को भी प्लांट नहीं मिले हैं।

कुल मिलाकर मामला पेचीदा होता जा रहा है। हालांकि जनहित में पत्रकार स्टिंग कर सकते हैं मगर उसमें कई बातों का ध्यान रखना पड़ता है। आने वाले कुछ दिनों में यह राजनीतिक मुद्दा बन सकता है। फिलहाल अरुण धूमल और डीएजी विनय शर्मा के बीच आरोप चल रहे हैं। यह बताया जाना जरूरी है कि दोनों की राइवलरी का पुराना इतिहास रहा है।

शिमला ग्रामीण बेटे को देकर खुद यहां से लड़ने की तैयारी में हैं वीरभद्र?

शिमला।। बीते कुछ दिन शिमला जिले की राजनीति के लिए काफी हलचल भरे रहे। पहले से ही लग रहा था कि शिमला ग्रामीण सीट को मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह अपने बेटे के लिए छोड़ सकते हैं। उस दिशा में वीरभद्र एक कदम और बढ़ गए। ब्लॉक कमिटी ने प्रस्ताव पास करते हुए शिमला ग्रामीण सीट से विक्रमादित्य के लिए संगठन से टिकट की बात की। इस मौके पर मुख्यमंत्री ने भी अपने बेटे की जमकर तारीफ करते तय कर दिया कि विक्रमादित्य शिमला रूरल सीट से ही दावेदार हैं। वैसे भी विक्रमादित्य की शिमला ग्रामीण में बढ़ रही सक्रियता भी इस ओर इशारे कर रही थी। मगर अब तो सब साफ हो गया है।

 

इसके साथ ही जो नया सवाल प्रदेश की राजनीति में उमड़कर आया, वह कि मुख्यमंत्री अगर शिमला ग्रामीण को छोड़ देंगे तो किस सीट का रुख करेंगे। इसमें अर्की का नाम भी आता रहा है। मगर ध्यान देने की बात है कि लोकसभा के लिए मंडी से कई बार सांसद चुने जा चुके वीरभद्र सिंह ने विधानसभा चुनाव में कभी भी जिला शिमला के बाहर की किसी सीट से चुनाव नहीं लड़ा। फिर वह रामपुर हो, जुब्बल-कोटखाई या फिर रोहड़ू या फिर शिमला ग्रामीण।

रोहड़ू और रामपुर तहसील उसी रियासत का हिस्सा रहे हैं, जहां कभी वीरभद्र सिंह के पूर्वजों का राज चला करता था। मगर दोनों सीटें रिजर्व हुईं तो वीरभद्र सिंह शिमला ग्रामीण से लड़ने आए थे। रही बात जुब्बल-कोटखाई की, यहां से उनका अनुभव कड़वा रहा था।

तो फिर अगला चुनाव वह कहां से लड़ेंगे? इस सवाल के जवाब का इशारा मिला शिमला से ही। वीरभद्र सिंह ने शिमला जिले के ठियोग-कुमारसैन में शिलान्यासों और उद्घाटनों की झड़ी लगा दी। इस मौके पर जिस चीज़ ने हैरान किया, वह यह कि ठियोग कुमारसैन से विधायक और वीरभद्र सरकार में मंत्री विद्या स्टोक्स ने मुख्य कार्यक्रम से दूरी बनाए रखी। स्टोक्स नारकंडा में कुछ देर के लिए मुख्यमंत्री के साथ नजर आई थीं, मगर कुमारसैन में रैली और मुख्य कार्यक्रम से नदारद थीं। इस रैली में विक्रमादित्य भी थे। वीरभद्र ने अपने बेटे की यहां जमकर तारीफ की। ध्यान देने की बात यह है कि ब्लॉक कांग्रेस अध्यक्ष और उनकी टीम भी इस रैली में नहीं थी। विद्या स्टोक्स और वीरभद्र के पुराने मतभेद किसी से छिपे नहीं हैं, मगर मुश्किल समय में दोनों नेता साथ खड़े रहे हैं। ऐसे में उनका सीएम के इस दौरे में न होना हैरान करने वाला रहा।

सूत्रों की मानें तो वीरभद्र सिंह ने शिमला ग्रामीण को बेटे के लिए छोड़कर ठियोग कुमारसैन से लड़ने का विचार बहुत पहले से ही सोचकर रखा था। क्योंकि माना जा रहा था कि उम्र के इस पड़ाव पर विद्यो स्टोक्स चुनाव नहीं लड़ेंगी। मगर जैसे ही वीरभद्र की रणनीति की भनक स्टोक्स को साल भर पहले लगी थी, उन्होंने कह दिया था कि मैं चुनाव लड़ूंगी। हालांकि स्टोक्स के करीबियों का कहना है कि मैडम स्टोक्स इस सीट से अपने किसी ख़ास सिपहसालार को मौका देना चाहती हैं। और अगर वह ऐसा नहीं कर पाती हैं तो कुछ चुनावी मैदान में कूदेंगी। मगर ऐसा करना उनकी उम्र के लिहाज़ से आसान भी नज़र नहीं आता। पिछली सीट पर बहुत कम अंतर से जीत पाई थीं।

 

स्टोक्स का अपनी विधानसभा में मुख्यमंत्री के कार्यक्रम से इस तरह दूरी बनाना कई अटकलों और सवालों को जन्म दे रहा है। इसका यह भी मतलब निकल रहा है कि बेटे के लिए शिमला ग्रामीण छोड़ने की सार्वजानिक घोषणा के बाद वीरभद्र ने यह तय कर लिया है कि व ठियोग कुमारसैन से ही लड़ेंगे और इससे मैडम स्टोक्स नाराज मानी जा रही हैं।

मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह

वीरभद्र सिंह के करीबी और तथाकथित ‘ऊपरी हिमाचल’ से ही सबंधित कांग्रेस के एक युवा नेता ने ‘इन हिमाचल’ को बताया कि वीरभद्र सिंह इस मामले में पूरी तैयारी कर चुके है। और अगर पार्टी के अंदर के अंदर के उनके विरोधियों ने उनपर दबाब बनाया कि परिवार से एक ही व्यक्ति को टिकट मिलेगा, तब भी वीरभद्र सिंह ने रणनीति तैयार रखी है। इस रणनीति के तहत वह शिमला ग्रामीण और ठियोग कुमारसैन, दोनों सीटों से पर्चा भरेंगे। दोनों सीटें जीत जाने की स्थिति में ठियोग कुमारसैन सीट को विक्रमादित्य के लिए छोड़ेंगे।

 

उक्त नेता ने बताया कि फिलहाल तो वीरभद्र सिंह बेशक विक्रमादित्य की पैरवी शिमला ग्रामीण से कर रहे है, मगर लंबी राजनीतिक पारी के लिए वह इस सीट को बेटे के लिए सेफ नहीं मानते। इसलिए ठियोर कुमारसैन को अपने नाम करने की रणनीति के तहत वह अगले (संभवत: 2022 के) चुनाव में विक्रमादित्य को शिमला ग्रामीण से ठियोग कुमारसैन शिफ्ट करने की प्लानिंग कर चुके हैं।

 

हालांकि वीरभद्र सिंह के अर्की से हटने का कारण बीजेपी की वह रणनीति भी बताई जा रही है, जिसके तहत केंद्रीय मंत्री जेपी नड्डा को बीजेपी अर्की सीट से चुनाव उनके खिलाफ लड़वाने की फिराक में है। ऐसे में वीरभद्र सिंह इस वक़्त परिवार के लिए कोई रिस्क नहीं लेना चाहते। संयोगों पर भरोसा रखने वाले मुख्यमंत्री अपने राजनीतिक जीवन के इतिहास को जारी रखते हुए शिमला जिला से बाहर कहीं भी चुनाव लड़ने के इच्छुक नहीं है। हालांकि अगर वह किन्नौर सीट से लड़ते हैं, तब भी उनकी जीत लगभग निश्चित ही है। मगर वीरभद्र सिंह की पूरी रणनीति इस समय कांग्रेस के लिए सीटों की गिनती बढ़ाने पर नहीं बल्कि बेटे विक्रमादित्य सिंह के लिए ऐसी राजनीतिक नींव रखने की है, जो उनके राजनीतिक करियर को लंबा बनाए।

 

ऊपरी शिमला में दशकों पहले से एक नारा चलता रहा है कि सत्यानंद स्टोक्स हिमाचल में सेब लेकर आए और विद्या स्टोक्स हिमाचल प्रदेश की राजनीति में वीरभद्र को लेकर आईं। अब वीरभद्र अगर ठियोग कुमारसैन से लड़ते हैं तो यह नारा ठियोग कुमारसैन के लोगों की जुबान पर फिर चढ़ सकता है। मगर हो सकता है कि इस बार वीरभद्र को लाने में मैडम स्टोक्स की मर्जी न हो।

कहां चले गए विदेश से मंगवाए गए सेब के पौधे: अरुण

हमीरपुर।। अक्सर मौजूदा वीरभद्र सरकार पर आरोप लगाने के लिए पहचाने जाने वाले ठाकुर अरुण सिंह ने दो पन्नों की एक लिस्ट अपने फेसबुक पेज पर डाली है, जिसमें कथित रूप से उन लोगों के नाम हैं जिन्हें सेब के पौधे सिर्फ कागजों में मिले हैं। पूर्व मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल के छोटे बेटे और बीजेपी पदाधिकारी अरुण ने बुधवार को प्रेस कॉन्फ्रेंस करके विदेशों से मंगवाए गए सेब के पौधों के आवंटन में गड़बड़ी का आरोप लगाया था। गुरुवार को उन्होंने अपने फेसबुक पेज पर लिस्ट डाली है, जिसमें 50 लोगों के नाम हैं।

 

फेसबुक पर इस लिस्ट को शेयर करते हुए अरुण ने लिखा है- “यह रामपुर के लोगों की सूची है, जिन्हें विदेश से मंगाए गए सेब के पौधे केवल काग़ज़ों में मिले। इनके पौधे कोई और ही खा गया। इससे शर्मनाक क्या होगा ?”

 

 

अरुण ने बुधवार को कहा था- ‘केंद्र की मिशन फॉर इंटिग्रेटेड डेवलपमेंट ऑफ हार्टिकल्चर (एमआईडीएच) योजना में बागवानी विभाग ने 25 हजार सेब और चार हजार से अधिक नाशपाति के पौधे विदेशों से आयात किए। जनवरी में 250 रुपये प्रति पौधा एक बागवान को अधिकतम 50 पौधे बेचे गए। मगर विभाग ने जिन किसानों को पौधे बेचने की लिस्ट जारी की है, उनमें अधिकांश को पौधे मिले ही नहीं हैं।’

आश्रम की बच्चियों ने बताया, ‘खाने में दिया जाता था नशा’

चंबा।। हिमाचल प्रदेश के चंबा जिले के चुराह में बालिका आश्रम में आधा दर्जन बच्चियों से कथित यौन शोषण के मामले में नई जानकारी सामने आई है। 8 से लेकर 14 साल की आधा दर्जन बच्चियों ने हाई कोर्ट के जज त्रिलोक सिंह चौहान और डीसी सुदेश मोख्टा के सामने कहा है कि रात को उन्हें खाने में नशीली चीज़ दी जाती थी, जिससे वे बेहोश हो जाती थीं। सुबह उठती थीं तो आंखों के आगे अंधेरा छा जाता था और ऐसा एहसास होता था कि कुछ गलत हुआ है। कुछ बच्चियों ने आरोप लगाया है कि उनसे छेड़छाड़ भी होती थी।

 

इस मामले में पुलिस आश्रम से तीन लोगों को गिरफ्तार किया है। आश्रम के पूरे स्टाफ को बदलकर दो महिला होमगार्ड्स को नियुक्त किया गया है। सीसीटीवी कैमरों की हार्ड डिस्क जब्त कर ली गई है। खास बात यह है कि इसमें एक ही दिन की रिकॉर्डिंग है, बाकी दिन सीसीटीवी कैमरा खराब होने की बात कही जा रही है।

प्रतीकात्मक तस्वीर

बच्चियों को मेडिकल भी करवाया गया है, जिसकी रिपोर्ट आने के बाद पता चल सकेगा कि मामला क्या है। डीसी चंबा सुदेश मोख्टा ने कहा है कि पॉक्सो ऐक्ट के तहत मामला दर्ज करके छानबीन की जा रही है।

यशवंत सिन्हा की किन बातों ने बंद की मोदी सरकार की बोलती?

भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ नेता और वाजपेयी सरकार में वित्त मंत्री रहे यशवंत सिन्हा ने देश की अर्थव्यवस्था की हालत खराब होने में मौजूदा सरकार और इसके वित्त मंत्री के योगदान पर खुलकर बात कही है। क्या वजह है कि बीजेपी के समर्थक और अन्य नेता भी यशवंत सिन्हा की बातों से समहत नजर आ रहे हैं? दरअसल सिन्हा ने अपनी बात तथ्यों और तर्कों के साथ रखी है, जिसे सभी को एक बार पढ़ना चाहिए।

‘द इंडियन एक्‍सप्रेस’ में I need to speak up now (मुझे अब बोलना ही होगा) शीर्षक से लिखे संपादकीय में वित्‍त मंत्री अरुण जेटली को आड़े हाथों लिया है। उन्होंने लिखा है, “मैं अपने राष्‍ट्रीय कर्त्‍तव्‍य के पालन करने में असफल होऊंगा अगर मैंने अब वित्‍त मंत्री द्वारा अर्थव्यवस्‍था की दुर्गति के बारे में नहीं बोला। मैं निश्चितं हूं कि मैं जो भी कहने जा रहा हूं वह बड़ी संख्‍या में भाजपा के लोगों की भावनाएं हैं, जो डर की वजह से बोल नहीं रहे। इस सरकार में अरुण जेटली सर्वोत्‍तम और सबसे माहिर समझे जाते हैं। यह 2014 लोकसभा चुनावों से पहले तय था कि वह नई सरकार में वित्‍त मंत्री होंगे। अमृतसर से लोकसभा चुनाव हारना भी उनकी राह का रोड़ा नहीं बना। याद होगा कि ऐसी ही परिस्थितियों में अटल बिहारी वाजपेयी ने 1998 में जसवंत सिंह और प्रमोद महाजन को मंत्री बनाने से इनकार कर दिया था, जबकि वे दोनों उनके बेहद करीबी थे।

 

जेटली की अपरिहार्यता उस समय लक्षित हुई जब प्रधानमंत्री ने उन्‍हें न सिर्फ वित्‍त मंत्रालय, बल्कि रक्षा और कॉर्पोरेट मामलों का मंत्रालय भी सौंप दिया। एक बार में चार मंत्रालय, जिनमें से तीन उनके पास अभी भी हैं। मैंने वित्‍त मंत्रालय संभाला है और मैं जानता हूं कि अकेले उसी मंत्रालय में कितना काम होता है। इस मंत्रालय को अपने प्रमुख के पूरे ध्‍यान की आवश्‍यकता होती है। कठिन समय में यह 24×7 की नौकरी हो जाती है, यहां तक कि जेटली जैसा सुपरमैन भी काम के साथ न्‍याय नहीं कर सकता।

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सिन्हा ने कहा है जेटली अपने पूर्व के वित्त मंत्रियों के मुकाबले बहुत भाग्यशाली रहे हैं। उन्होंने वित्त मंत्रालय की बागडोर उस समय हाथों में ली, जब वैश्विक स्तर पर कच्चे तेल कीमत में कमी के कारण उनके पास लाखों-करोड़ों रुपये की धनराशि थी। लेकिन उन्होंने तेल से मिले लाभ को गंवा दिया। उन्होंने कहा कि विरासत में मिली समस्याएं, जैसे बैंकों के एनपीए और रुकी परियोजनाएं निश्चित ही उनके सामने थीं, लेकिन इससे सही ढंग से निपटना चाहिए था। विरासत में मिली समस्या को न सिर्फ बढ़ने दिया गया, बल्कि यह अब और खराब हो गई है। सिन्हा ने भारतीय अर्थव्यवस्था की स्थिति पर टिप्पणी करते हुए कहा कि दो दशकों में पहली बार निजी निवेश इतना कम हुआ और औद्योगिक उत्पादन पूरी तरह ध्वस्त हो गया है। कृषि की हालत खस्ता हाल है, विनिर्माण उद्योग मंदी के कगार पर है और अन्य सेवा क्षेत्र धीमी गति से आगे बढ़ रहा है, निर्यात पर बुरा असर पड़ा है, एक बाद एक सेक्टर संकट में है।

 

वाजपेयी सरकार में वित्त मंत्री रहे सिन्हा ने कहा कि गिरती अर्थव्यवस्था में नोटबंदी ने आग में घी डालने का और बुरी तरह लागू किए गए जीएसटी से उद्योग को भारी नुकसान पहुंचा है और कई इस वजह से बर्बाद हो गए हैं। सिन्हा ने कहा, “इस वजह से लाखों लोगों को अपनी नौकरियां गंवानी पड़ी है और बाजार में मुश्किल से ही कोई नौकरी पैदा हो रही है। मौजूदा वित्त वर्ष की पिछली तिमाही में आर्थिक वृद्धि दर गिर कर 5.7 प्रतिशत हो गई, लेकिन पुरानी गणना के अनुसार यह वास्तव में केवल 3.7 प्रतिशत ही है।”

 

उन्होंने कहा कि अगर सरकार ने जीडीपी दर गणना की पुरानी पद्धति वर्ष 2015 में नहीं बदली होती तो यह अभी वास्तव में 3.7 प्रतिशत या इससे कम रहती। उन्होंने सरकार पर आर्थिक वृद्धि दर कम होने को तकनीकी वजह बताने की आलोचना करते हुए भारतीय स्टेट बैंक के हवाले से कहा कि यह आर्थिक सुस्ती अस्थायी या तकनीकी नहीं है, यह फिलहाल बनी रहने वाली है। सिन्हा ने कहा कि आर्थिक गति कम होने की वजहों का अनुमान लगाना बहुत मुश्किल नहीं है और इससे निपटने के लिए उपाय उठाए जाने चाहिए। उन्होंने कहा कि लेकिन इसके लिए कार्य पूरा करने के लिए समय देने, दिमाग का गंभीरता से उपयोग, मुद्दे को समझने और तब इससे निपटने के लिए योजना बनाने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि मैं इस बात से भी सहमत हूं कि भाजपा में बड़ी संख्या में लोग इस बात को कहना चाहते हैं, लेकिन वे डर की वजह से कुछ नहीं बोल रहें हैं।

सिन्हा ने कहा है, “जीएसटी के अंतर्गत एकत्रित 95000 करोड़ रुपये में इनपुट क्रेडिट डिमांड 65,000 करोड़ रुपये है। सरकार ने आयकर विभाग को बड़ी संख्या में दावा करने वाले को पकड़ने को कहा है।” उन्होंने कहा, “वित्तीय प्रवाह की समस्या कई कंपनियों, खासकर छोटे और मध्यम उद्योग (एसएमई) सेक्टर की समस्या है। लेकिन फिलहाल वित्त मंत्रालय का काम करने का यही तरीका है।”

 

सिन्‍हा ने अपने लेख में भारतीय अर्थव्‍यवस्‍था के सामने आई चुनौतियों का जिक्र करते हुए लिखा है, “प्रधानमंत्री चिंतित हैं। प्रधानमंत्री द्वारा वित्‍त मंत्री और उनके अधिकारियों की बुलाई गई बैठक अनिश्चितकाल के लिए स्‍थगित कर दी गई है। वित्‍त मंत्री ने ग्रोथ बढ़ाने के लिए एक पैकेज की घोषणा की है। हम सभी सांस रोके इस पैकेज का इंतजार कर रहे हैं। अभी तक तो यह आया नहीं। एक नई चीज यह है कि प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहर समिति का पुर्नगठन किया गया है। पांच पांडवों की तरह, उन्‍हीं से नये महाभारत का युद्ध जीतने की उम्‍मीद है।” लेख के अंत में सिन्‍हा लिखते हैं, “प्रधानमंत्री दावा करते हैं कि उन्‍होंने बेहद करीब से गरीबी देखी है। उनके वित्‍त मंत्री दिन-रात लगकर इस दिशा में काम कर रहे है कि सभी भारतीय भी उतनी ही करीबी से गरीबी देख लें।”

सरकार ने किसे फायदा पहुंचाने के लिए दी चाय बागान का लैंड यूज़ बदलने की इजाजत?

इन हिमाचल डेस्क।। पिछली सरकार का कार्यकाल खत्म हुआ था तो चुनाव के दौरान कांग्रेस ने बीजेपी पर सत्ता में रहते हुए हिमाचल की जमीनों को बाहरी राज्यों के लोगों को बेचने का आरोप लगाया था और इसे एक बड़ा मुद्दा बनाया था। मगर चुनाव से ठीक पहले हिमाचल प्रदेश की वीरभद्र सरकार की कैबिनेट ने कांगड़ा ज़िले के चुनिंदा चाय बागानों के मालिकों के लिए लैंड यूज़ को बदलने के लिए सैद्धांतिक मंजूरी दे दी है। इससे चाय के इन बागानों की जमीन को बेचे जाने का रास्ता खुल गया है, जिस पर हिमाचल प्रदेश सीलिंग ऑन लैंड होल्डिंग्स ऐक्ट के तहत रोक लगी हुई है। मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह की कैबिनेट ने इस बदलाव के लिए एक नई टर्म गढ़ी है और वह है ‘टी टूरिज़म।’

दरअसल सरकार ने कहा है कि लैंड यूज़ बदला गया है मगर सिर्फ टूरिज़म से जुड़े प्रॉजेक्टों के लिए। यानी ‘टी टूरिज़म’ के प्रचार के लिए ऐसा किया जा सकता है। मगर टी-टूरिज़म के नाम पर सरकार ने इतना बड़ा फैसला क्यों लिया और क्यों इतने दिनों से ऐसा करने में तुली हुई थी। कहीं ऐसा तो नहीं कि सरकार में शामिल कुछ लोगों को इस डील से ‘लाभ’ होना है या उनके करीबियों को लाभ पहुंचना है?

ये सवाल उठते हैं अंग्रेजी अख़बार ‘द ट्रिब्यून’ की उस रिपोर्ट के आधार पर, जिसमें दावा किया गया है- ‘चाय बागान बेचने के लिए लॉबीइंग चल रही है। इसके मुताबिक टी गार्डन बेचे जाने से स्मार्ट सिटी धर्मशाला का हरियाली भरा हिस्सा गायब हो सकता है। दो कैबिनेट मीटिंगों में इससे पहले धर्मशाला के एक बड़े टी-गार्डन को बेचे जाने के लिए नियम बदलने की कोशिश की गई थी, मगर कुछ मंत्रियों ने विरोध किया था। मगर अख़बार ने दावा किया था कि इसका विरोध करने वाले मंत्रियों को पड़ोसी राज्य (इशारा पंजाब की ओर) में सर्वोच्च पदों पर बैठे लोगों से कॉल आया कि जरा अपने रुख में नरमी लाइए।

 

धर्मशाला में चाय के दो बड़े बागान हैं और दोनों का मालिकाना हक एक ही परिवार के पास है। पिछले पांच सालों ने कुमाल पथरी मंदिर के पास टी गार्डन की जमीन पर सरकार ने एक होटल बनाने की इजाजत दी थी। होटल प्रभावशाली लोगों का है और पूरा होने को तैयार है। कुछ समय पहले इसी सरकार ने कांगड़ा के चाय बागान की बिक्री पर रोक लगा दी थी। यह फैसला तब लिया या था जब सुप्रीम कोर्ट के वकील प्रशांत भूषण की एजुकेशन सोसाइटीको टी गार्डन की जमीन मिलने को लेकर विवाद हो गया था। मगर अब सरकार बड़े बागान मालिकों को खुश करने के लिए नियमों में ढील दे रही है।

हिमाचल प्रदेश सीलिंग ऑफ लैंड होल्डिंग्स (अमेंडमेंट) ऐक्ट 1999 के तहत चाय के उथ्पादन के लिए इस्तेमाल होने वाली जमीन की बिक्री पर पूर्ण प्रतिबंध लगा दिया गया था और इसे किसी दूसरे काम में इस्तेमाल करने पर सरकार को इसका अधिग्रहण कर लेने का अधिकार मिल गया था। मगर कैबिनेट के फैसले से चाय बागान के मालिकों को लैंड सीलिंग ऐक्ट से इस शर्त पर छूट मिली है कि उन्हें कांगड़ा की चाय बागान की विरासत बरकरार रखनी है। मगर प्रश्न यह उठता है कि इस तरह की छूट सिर्फ चुनिंदा और बड़े रसूखदार चाय बागान के मालिकों को ही क्यों दी गई? छोटे बागान के मालिक भी तो जरूरत के समय, किसी बीमारी या आर्थिक संकट के चलते पैसों के लिए जमीन का हिस्सा बेचकर कुछ पैसे ला सकते हैं? उन्हें यह अधिकार क्यों नहीं? और रोक हटानी ही है तो पूरी रोक हटा दी जाए और सभी को चाय के बागीचे उखाड़कर वहां इमारतें बनाने का अधिकार दे दो और अपनी विरासत को नष्ट कर दो।

 

बता दें कि कानून कहता है कि किसी के पास भी 300 कनाल से ज्यादा का मालिकाना हक नहीं हो सकता, मगर कांगड़ा के चाय बागानों के मालिकों को यह छूट दी गई है कि वे सैकड़ों एकड़ अपने पास रख सकें। मगर यह छूट इस शर्त पर मिली है कि वे इसे बेचेंगे नहीं और इनकी देखभाल करेंगे। धर्मशाला और पालमपुर के सिर्फ दो राजनीतिक रूप से प्रभावशाली टी एस्टेट मालिकों के पास 1000 बीघा से ज्यादा ज़मीन है।

वैसे सरकारों की हालत का अंदाजा इससे भी लगाया जा सकता है कि कांगड़ा जिलों मे कई धार्मिक संगठनों और बाबाओं सैकड़ो कनाल जमीन चाय बागानों की ली हुई है और उसके ऊपर पक्के ढांचे खड़े कर दिए हैं। यह सब खुलेआम हुआ मगर सरकार और प्रशासन मूकदर्शक बने रहे। आज तक किसी भी पार्टी के नेता की जुबान इसके खिलाफ नहीं खुली। इसी तरह से अब कैबिनेट ने जो तथाकथित शर्तों के तहत ‘टी टूरिज़म’ के नाम पर छूट दी है, उसकी भी धज्जियां यदि उड़ेंगी तो कोई कुछ नहीं बोलेगा। मगर जितनी बेचैन मौजूदा सरकार नियमों में परिवर्तन देने के लिए दिख रही थी, वह भी चुनाव से ठीक पहले, इसके लिए उसकी नीयत पर सवाल उठना लाजिमी है। साथ ही विपक्ष की खामोशी पर भी।

बाल आश्रम की 6 बच्चियों ने लगाए यौन शोषण के आरोप

एमबीएम न्यूज नेटवर्क, चंबा।। हिमाचल प्रदेश चंबा जिला के चुराह उपमंडल स्थित चिल्ली बाल आश्रम में 6 छात्राओं के साथ कथित यौन शोषण का मामला सामने आया है। छात्राओं ने स्टाफ पर यह गंभीर आरोप लगाया है, जिसके आधार पर तीन लोगों को पुलिस ने गिरफ्तार किया है।

 

इस मामले को लेकर हाई कोर्ट के जज भी चंबा पहुंच चुके हैं। पीड़ित छात्राओं के बयान बुधवार सुबह दर्ज कर लिए गए हैं। मामला सामने आने के बाद बच्चियों को दूसरी जगह शिफ्ट किया गया है। इन बच्चियों के बयान दर्ज करने के बाद न्यायाधीश अन्य छात्राओं के बयान दर्ज करने के लिए चिल्ली आश्रम गए हैं।

प्रतीकात्मक तस्वीर

आरोप है कि आश्रम में यह सिलसिला काफी समय से चल रहा था। शनिवार को मामले की जानकारी जिला बाल संरक्षण यूनिट को मिली, जिसके बाद टीम ने पीड़ित छात्राओं को दूसरी जगह शिफ्ट किया। बताया जा रहा है कि एक छात्रा ने शनिवार को इसका खुलासा किया। इसके बाद सोमवार तक छह छात्राओं ने आपबीती बयां की।

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चंबा के उपायुक्त सुदेश मोख्टा ने बताया कि इस मामले की छनबीन की जा रही है।

(यह एमबीएम न्यूज नेटवर्क की खबर है जिसे सिंडिकेशन के तहत प्रकाशित किया गया है)

ऊर्जा मंत्री सुजान सिंह पठानिया आईजीएमसी में भर्ती

शिमला।। हिमाचल प्रदेश के ऊर्जा और कृषि मंत्री सुजान सिंह पठानिया को तबीयत खराब होने की वजह से आईजीएमसी में दाखिल किया गया है। बताया जा रहा है कि वह ब्रेन स्ट्रोक से जूझ रहे हैं और उनका इलाज किया जा रहा है। पठानिया आज होने वाली बैठक के लिए शिमला में थे।

मंगलवार शाम को उनकी तबीयत उस समय खराब हुई जब वह अपने दफ्तर में थे। आईडीएमसी के वरिष्ठ चिकित्सा अधिकारी के मुताबिक पठानिया को ब्रेन स्ट्रोक हुआ है।

म्यूजिक कंपनी SMS Nirsu ने सम्मानित किए ‘अचीवर्स’

शिमला।। म्यूजिक कंपनी SMS Nirsu ने अपनी फील्ड में योगदान देने वालों हिमाचल अचीवर्स-2017 के नाम से सम्मानित किया। सम्मान समारेाह से पहले कार्यक्रम में प्रदेश भर के गायक कलाकारों की प्रस्तुतियों ने समा बांधा। सबसे पहले सिरमौर की गायिका निधि वालिया ने ‘हो वे लालिये’, ‘सांवरिया बीन बजा डस लई’ की प्रस्तुति दी। इसके बाद कांगड़ा से आए गायक कलाकार कुमार साहिल की प्रस्तुतियों में ‘मैं तैनु समझा वां की’ एक से बढ़कर एक प्रस्तुतियां दी।

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इसके बाद पुराने गीत ‘इक प्यार का नगमा है’,’क्या हुआ तेरा वादा’ की प्रस्तुतियों से दर्शकों को झूमने पर मजबूर किया। इसके बाद प्रिंस गर्ग कामेडियन ने अपनी प्रस्तुतियों से दर्शकों को खूब हंसाया। चंबा के गायक कलाकार पियूष राज ने ‘जुग जियो धारा रे गुजरो’ की मनमोहक प्रस्तुतियां दी।

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कार्यक्रम में हिमवानी एक्सप्रेस मासिक पत्रिका का शुभारंभ मुख्यातिथि ने किया। इस मौके पर लाइफ टाइम अचीवर अवाॅर्ड से पूर्व सांसद बिमला कश्यप, सूद सभा की पूर्व उपप्रधान सुमन सूद, अच्छर सिंह परमार,सर्वजीत सिंह बॉबी, विनोद चन्ना,मोहन जांगल,चांद गौत्तम, सीडी शर्मा,बाबूराम विकास काे विभिन्न क्षेत्रों सहित अन्य को सम्मानित किया। बेस्ट अचीवर अवाॅर्ड अजय सकलानी, रंजीत सिंह, कपिल शर्मा, अचीवर अवार्ड कुशल वर्मा, विक्की जुनेजा, संतोष तोषी,तरुणा मिश्रा, हिमांशी तनवर, जॉन नेगी, सुनील चौहान, निधि वालिया, नेहा दीक्षित, विकी राकटा ,डिंपल ठाकुर, को सम्मानित किया।

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इसके अलावा इंद्रजीत सिंह ,संतोष तोसी, वाॅलीवुड सौरभ अग्निहोत्री, किशन शर्मा , कुमार साहिल, संतोष तोशी, दीपक जनदेवा, राजीव शर्मा, पीयूष राज को ट्राफी देकर सम्मानित किया गया। गेस्ट परफॉरमेंस में पियूष राज, डी प्राईटस क्रीयू, सोशल मीडिया पर लोकप्रिय इंडिया गोट टेलेंट के विनर को सम्मानित किया गया। इस मौके पर लगभग 80 लोगों को सम्मानित किया गया।