सरकारी गाडियों पर ऐश: काश शास्त्री जी से सबक लेते हिमाचल के मंत्री

इन हिमाचल डेस्क।। इन दिनों शिक्षा मंत्री गोविंद सिंह ठाकुर एक एसयूवी को लेकर विवादों में हैं। सवाल उठ रहे हैं कि पहले से तीन गाड़ियां होने के बावजूद क्यों नई एसयूवी ली गई और वो भी कोरोना काल में। इसपर मंत्री ने जो सफाई दी, वह लोगों को पसंद नहीं आई।

गोविंद ठाकुर ने पुरानी गाड़ी के कबाड़ होने और पहले से मंजूरी मिले होने की बात कही। उन्होंने यह भी कहा कि मंत्री के लिए एक गाड़ी नाकाफी होती है। नई गाड़ी के सस्ती और स्वदेशी होने का भी उन्होंने तर्क दिया। साथ ही कहा कि उन्होंने गाड़ी मोह के कारण नहीं बल्कि जरूरत के कारण ली।

हालांकि, गोविंद ठाकुर सरकारी गाड़ी के दुरुपयोग के आरोप में घिरे रह चुके हैं। जब वह परिवहन मंत्री थे तो उनकी पत्नी एचआरटीसी के एमडी के नाम पर रजिस्टर्ड कार में चंडीगढ़ के एक ब्यूटी पार्लर में गई थीं। इस मामले का पता तब चला था जब उसी कार से कैश चोरी हुआ था।

जब सरकारी वाहनों के दुरुपयोग का सवाल उठा तो सीएम ने इस संबंध में जांच करवाने की बात कही थी मगर अब तक पता नहीं चला कि इस जांच का क्या हुआ। जनता को वैसे भी कोई खास उम्मीद नहीं थी क्योंकि सरकारी वाहनों का दुरुपयोग अफसरों और नेताओं के लिए आम हो गया है।

जलशक्ति मंत्री महेंद्र सिंह ठाकुर भी इस मामले में पीछे नहीं हैं। बतौर मंत्री अलॉट एसयूवी से इतर अन्य महकमों से भी उन्हें गाड़ियां मिली हैं और आरोप लगता है कि परिजन उसका इस्तेमाल करते हैं। हाल ही में एक एक्सईएन के नाम पर ली गई गाड़ी उनके बेटे द्वारा इस्तेमाल करने का आरोप लगा था।

बात सिर्फ़ सरकारी पैसे पर खरीदी जाने वाली गाड़ियों की नहीं है।  यह नैतिकता का मुद्दा है। पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री जी तो इतना करते थे कि सरकारी गाड़ी से कहीं निजी काम पर जाना पड़े तो उसके तेल का खर्च अपनी जेब से भरते थे। मगर आज के नेता और अफसर जहां मन आए, वहां घूमते हैं।

बहादुर शास्त्री के बेटे सुनील शास्त्री ने बताया था कि परिवार का कोई भी सदस्य सरकारी गाड़ी इस्तेमाल नहीं कर सकता था। एक बार सुनील अपने पिता को बतौर प्रधानमंत्री मिली शेवर्ले इम्पाला कार की चाबियां ड्राइवर से लेके चुपके से रात को दोस्तों के साथ घूमने निकल गए।

सुबह शास्त्री जी को यह बात पता चली तो उन्होंने ड्राइवर को बुलाया और कहा कि लॉग बुक में लिखो कि कल रात कार कितने किलोमीटर चली और इसे निजी काम के लिए इस्तेमाल हुआ दर्ज करो। तत्कालीन प्रधानमंत्री ने बेटे को भी डांटा और ड्राइवर को भी।रात को कार 14 किलोमीटर चली थी। शास्त्री जी ने पत्नी से कहा कि 14 किलोमीटर के हिसाब से जितना पैसा बनता है वह उनके निजी सचिव को सौंप दें ताकि वह उसे जमा करवा सके।

सुनील ने बताया था कि इस घटना के बाद उन्होंने और उनके भाई ने कभी सरकारी गाड़ी को निजी काम में इस्तेमाल नहीं किया।

क्या हिमाचल के नेता या अफसर ऐसा कर सकते हैं? या वो जनता के पैसे को लुटाना अपना जन्मसिद्ध अधिकार समझने लगे हैं?

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