IMPACT: अब और स्कूल-कॉलेज खोलने की जरूरत नहीं, गुणवत्ता लाऊंगा: वीरभद्र

इन हिमाचल डेस्क।। हिमाचल प्रदेश सरकार द्वारा शिक्षा के क्षेत्र में बिना ठोस प्लानिंग के किए जाने वाले ऐलानों के खिलाफ ‘In Himachal’ ने हमेशा से मोर्चा खोला है। विभिन्न खबरों के जरिए हमने दिखाया कि कैसे लगातार स्कूल और कॉलेज खोलने के ऐलान तो हो रहे हैं, मगर वहां कैसी एजुकेशन मिल रही है, इस पर ध्यान नहीं दिया जा रहा। इस संबंध में इन हिमाचल को विभिन्न लेखकों ने समय-समय पर अपने विचार भेजे और हमने उन्हें भी प्रकाशित किया। अब अच्छी बात यह है कि इनका प्रभाव होता नजर आ रहा है। मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह ने ऐलान किया है अब और स्कूल या कॉलेज खोलने की जरूरत नहीं है या फिर कम है।

भोरंज में चुनाव प्रचार के दौरान जनसभा को संबोधित करते हुए सीएम ने कहा कि विस्तार का चरण पूरा हो गया है और अब मैं गुणवत्ता पर ध्यान दूंगा। उन्होंने कहा कि आलोचना की जाती है कि वीरभद्र स्कूल पर स्कूल खोले जा रहे हैं, मगर मैं उन्हें बता दूं कि ऐसा इसलिए किए जा रहा है ताकि सबको, खासकर लड़कियों को शिक्षा मिले। उन्होंने कहा कि लोग बेटियों को पढ़ने के लिए दूर नहीं भेजते, घर के पास कॉलेज हो तो वहां बेटियां पढ़ रही हैं। वीडियो देखें:

हालांकि अब भी ‘इन हिमाचल’ मुख्यमंत्री की राय से इत्तफाक नहीं रखता कि स्कूल या कॉलेज खोलने की जरूरत बची ही नहीं है। क्योंकि हिमाचल प्रदेश में विविधता है और बहुत से इलाके ऐसे हैं जहां पर इनकी जरूरत हो सकती है। इसलिए बेहतर होगा कि फैसले सोच-समझकर लिए जाएं। स्कूल-कॉलेज खोलने के साथ ही यह भी सुनिश्चित किया जाए कि वहां अच्छी शिक्षा मिले। प्रफेशनल एजुकेशन के इस दौर में ऐसे कॉलेज खोले जाने की जरूरत है जो बच्चों को आज के कॉम्पिटीशन के दौर के हिसाब से तैयार कर सकें।

इन हिमाचल समय-समय पर शिक्षा को लेकर उठाता रहा है आवाज
‘इन हिमाचल’ को भेजे एक आर्टिकल में लेखक सुरेश चंबयाल ने लिखा था, ‘प्रदेश के लाखों स्नातक जम्मू-कश्मीर जाकर जिस दौर में B Ed करने जाते थे, उस दौर में हिमाचल सरकार कभी नहीं सोच पाई कि B Ed करने के लिए ऐसा क्या इन्फ्रास्ट्रक्टर चाहिए, ऐसी क्या सुविधाएं, कितना बजट चाहिए कि हमारे लोगों को बाहर जाना पड़ रहा है। वो लोग वहां से बीएड करके आए। फिर सरकारी टीचर लगने के लिए जहां एक अच्छा-खासा कमिशन का टेस्ट पास करना होता था, वहां राजा साब ने चंद तनख्वाह पर PTA के नाम से टीचर भी भर लिए। जिनका न टेस्ट होता था, न ढंग का इंटरव्यू सिर्फ स्कूल प्रिंसिपल और प्रधान तय करते थे कौन PTA में लगेगा।’ इस पूरे लेख को पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें।

इसी तरह के अन्य लेख में आशीष नड्डा ने शिक्षा नीति पर बात करते हुए लिखा था, ‘पहले 15 गांवों का इकलौता स्कूल था, जहाँ ख़ुशी-ख़ुशी बच्चे दूर-दूर से पढ़ने आते थे। मगर अभ उस स्कूल के आसपास सबसे पहले दो प्राइमरी स्कूल खोले गए और वह भी डेढ़ से 3 किलोमीटर के दायरे में। यह दूरी भी बाइ-रोड मानी गई, जबकि पगडंडियों से ये स्कूल नजदीक पड़ते थे। यह किसके लिए हुआ? वोट बैंक के लिए और लोगों के तुष्टीकरण के लिए। एक-एक कमरे में 20-25 बच्चों के साथ यह स्कूल चलने शुरू हो गए। जो 7 टीचर एक स्कूल में थे, उन्हें इन स्कूलों में बांट दिया गया। अब हर स्कूल में औसतन 2 टीचर बचे। जो अध्यापक पहली से पांचवीं तक 40-50 बच्चों के एक बैच को ही पांच साल तक पढ़ाता था। वो अध्यापक एक वर्किंग डे में अब कभी फर्स्ट क्लास के 5 बच्चों को पढ़ा रहा था तो कभी उसी दिन तीसरी क्लास के 9 बच्चों को पढ़ा रहा था। मतगणना में जब उसकी ड्यूटी लगती थी तो स्कूल में उसकी क्लास की पढ़ाई बंद, क्योंकि एक ही टीचर बाकी बचता था। वो 5 क्लास कैसे पढ़ाए और क्या-क्या पढ़ाए?’ इस पूरे लेख को यहां क्लिक करके पढ़ें।

‘इन हिमाचल’ बिना शिक्षकों के या छात्रों की कमी के कारण बंद हो चुके स्कूलों की खबरें भी उठाता रहा है। अभी पिछले सप्ताह इन हिमाचल ने बताया था कि कैसे कई स्कूलों को बंद करना पड़ रहा है तो कुछ स्कूलों में बच्चों को सही शिक्षा नहीं मिल रही। उसके आखिर में इन हिमाचल ने लिखा था- ‘जिले के अधिकतर स्कूल ऐसे हैं, जहां पर या तो अध्यापक है ही नहीं या फिर एक-दो अध्यापकों के सहारे स्कूल चल रहे हैं। ऐसे में सवाल उठता है कि सर्वाधिक बजट का प्रावधान करने के बाद भी प्रदेश में शिक्षा का स्तर गिरता क्यों जा रहा है। इस सवाल पर सरकार को चिंतन करने की आवश्यकता तो है, लेकिन लगता है सरकार के पास चिंतन करने का समय नहीं है। सरकार का फोकस नए स्कूल खोलने के ऐलानों पर ज्यादा लगता है, क्वॉलिटी ऑफ एजुकेशन पर नहीं।’ पूरी खबर यहां क्लिक करके पढ़ी जा सकती है

विपक्ष ने तो शिक्षा को लेकर या स्कूलों की दुर्दशा को लेकर कब सवाल उठाए यह कहा नहीं जा सकता। क्योंकि बीजेपी की सरकार के दौरान भी शिक्षा को लेकर बहुत बदलाव हुआ हो, ऐसा देखने को नहीं मिला है। ‘इन हिमाचल’ की नीति रही है कि वह कभी किसी सरकारी या प्राइवेट संस्थान से सीधे विज्ञापन नहीं लेता ताकि निष्पक्षता और बेबाकी पर आवाज न आए। आगे भी हम इसी तरह से प्रदेश हित में अपने पाठकों और हिमाचल प्रदेश वासियो की मदद से स्टैंड लेते रहेंगे।

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