राजनीति भूलकर धौलाधार के आंचल में भावुक हुए हिमाचल की राजनीति के ‘राजा’

बैजनाथ।।

शनिवार को बैजनाथ पहुंचे मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह कुछ अलग अंदाज़ में दिखे। आमतौर पर उनका भाषण राजनीति और सरकार के कार्यों पर ही फोकस्ड रहता है लेकिन बैजनाथ की गुनगुनी धूप में उन्होंने अपने विरोधियों पर भी कोई प्रहार नहीं किया। राजनीतिक भाषण संक्षिप्त में निबटाकर ज्यों ही धोलाधार की तरफ उनकी नजर उठी, कुछ क्षण रुककर धौलाधार को निहारते रहे। इसके बाद उनके शब्द किसी और तरफ ही रुख कर गए।

मुख्यमंत्री बोले समस्त राजनीतिक जीवन में पूरा प्रदेश घूमा, हर जगह गया मगर बड़ा भंगाल कभी नहीं जा पाया। इस बार गर्मियों में जरूर जाऊंगा। इसके बाद वह हिमाचल प्रदेश की संस्कृति पर बोलने लगे। कुछ क्षण विराम लेने के बाद उन्होंने कहा दया और धर्म हिमाचल प्रदेश संस्कृति हैं, लेकिन हम अपनी संस्कृति को भूल रहे हैं। मुख्यमंत्री ने कहा, ‘सड़कों पर घूमती दर-दर की ठोकरें खाती गऊ माता की दशा से दिल दुखी होता है। सरकार इनके लिए गोशाला का निर्माण करने जा रही है परन्तु लोगों सहयोग के बिना यह कार्य पूर्ण नहीं हो पायेगा।’

भावुक होते हुए वीरभद्र ने कहा, ‘आखिर ऐसी नौबत ही क्यों आई कि गाय सड़कों पर छोड़ दी गई। आखिर हमारे दीन धर्म को क्या हो गया? कल को ऐसा न हो बच्चे बूढ़े मां-बाप बोझ समझने लगें।’ युवा लोगों ओर मुखातिब होते हुए मुख्यमंत्री ने आह्वाहन किया, ‘आज का बच्चा कल का युवा और परसों का बुज़ुर्ग होगा। कोई कितना पढ़-लिख ले मगर संस्कृति न भूले। हिमाचल प्रदेश की पहचान बनी रहे यही हमारी उपलब्धि होगी।’

इसी साथ मुखयमंत्री का सम्बोधन खत्म हुआ और काफी देर तक तालियों की आवाज गूंजती रही। महिलाओं और ख़ासकर उम्र का दौर गुजार चुके लोगों की आंखें इस दौरान भर आई थीं।

बीजेपी का सदस्यता अभियान हिमाचल में बना मजाक का विषय

  • सेल्समैन की तरह लोगों के पीछे पड़ रहे हैं बीजेपी के कार्यकर्ता
  • बीजेपी कार्यकर्ताओं को देखकर अब कतराने लगी है जनता

हमीरपुर।।
दुनिया की सबसे बड़ी पार्टी बनने की कोशिश में जुटी बीजेपी का सदस्यता अभियान सवालों के घेरे में आने के साथ-साथ  मजाक का पात्र  भी बन गया है।  बीजेपी से जुड़ा हर कोई पदाधिकारी इन दिनों इस कोशिश में जुटा है कि ज्यादा से ज्यादा  लोगों से फॉर्म भरवाकर वह पार्टी की नजरों में सूरमा बन जाए। कॉर्पोरेट सेक्टर की कार्यशैली की तर्ज पर सदस्यता अभियान में ऊपर से नीचे तक हर लेवल के नेता व्यस्त हैं।  बड़े नेता नीचे वालों को टारगेट देते हैं और नीचे वाले सड़कों पर फॉर्म लेकर घूम रहे हैं ताकि अपने आका के सामने नंबर बना सकें।

सांकेतिक तस्वीर (The Hindu से साभार)

बस स्टैंड से लेकर गांव की चाय  की दुकान वाली चौपाल तक जहां भी चार व्यक्ति खड़े मिलें, ये नेता जेब से पेन और फॉर्म बुक निकल कर  रिक्वेस्ट करने लग जा रहे हैं।  मिस कॉल की रिक्वेस्ट पूरी होने पर ये नेता राहत की सांस लेते है कि  फलां व्यक्ति बीजेपी से जुड़ गया है।  ऐसा ही वाकया  हमीरपुर जिले में  देखा गया। बस के इंतज़ार में कुछ लोग खड़े थे कि एक ‘नेता जी’ फॉर्म लेकर पहुंच गए। लोगों के बीच कुछ सरकारी कर्मचारी भी थे। अब नेता जी  पड़  गए पीछे। ठीक उसी तरह,  जैसे डोर टु डोर सेल्समैन प्रॉडक्ट बेचने के लिए पीछे पड़ जाते हैं। अब नेता जी भी लोकल और लोग भी लोकल। तो गांव का आदमी समझकर पिंड छुड़ाने के लिए दो चार बन्दों ने मिस कॉल मार दी और फॉर्म भी भर दिया।

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अब नेता जी ने रिश्तेदारी गिनाकर एक महिला का भी फॉर्म भर दिया। वह बेचारी सरकारी स्कूल में चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी थी।  महिला ने बहुत ना-नुकर की पर नेता जी फॉर्म भरकर और मिस कॉल मरवाकर ही माने।  अब  नेता जी को  कौन समझाता कि जनाब! सरकारी कर्मचारी किसी पार्टी का सदस्य नहीं होता। मगर उन्हें तो बस टारगेट पूरा करना था।  बाद में जब महिला से किसी ने पूछा कि आप तो अब बीजेपी वाली  हो गईं, तो पहाड़ी में महिला कहती है- “फुक्या ए फारम, एनी रिस्तेदारी कढी ती। ना नी करी होई।  मिसकॉल मारिओ, बोट थोड़ी पाया। बोट ता मर्जिया ते पाणा।(ऐसी-तैसी इस फॉर्म की। इसने रिश्तेदारी निकाल दी इसलिए न नहीं कह सकी। मिस कॉल मारी है, वोट थोड़े ही डाला है। वोट तो मर्जी से डालूंगी।”

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इस पर सभी ने हंसी के ठहाके लगाए।  पार्टी के आला नेता साफ कर चुके हैं कि पार्टी का सदस्य बनाने का मतलब है कि लोगों को पार्टी की विचारधारा और सरकार की नीतियों के बारे में बताकर पहले उन्हें समझाया जाए और उन्हें कन्वींस किया जाए ताकि वे खुद ही सदस्या लेने के इच्छुक हों। इस बारे में इन हिमाचल ने भारतीय जनता युवा मोर्चा के राष्ट्रीय सदस्य और पूर्व प्रदेश अध्यक्ष नरेद्र अत्री से बात की। हमने उन्हें बताया कि ‘इन हिमाचल’ को जानकारी मिली है कि पार्टी के कार्यकर्ता लोगों के पीछे पड़कर फॉर्म भरवा रहे हैं। इस पर जब उनसे प्रतिक्रिया मांगी गई तो उन्होंने कहा इन बातों में कोई सचाई नहीं है।

बीजेवाईएम नेता नरेंदर अत्री से हुई बातचीत का स्क्रीनशॉट

जिस तरह का वाकया हमीरपुर में देखने को मिला, अगर पूरे प्रदेश और देश में इसी तरीके से अभियान चलाया जा रहा है तो इससे बीजेपी को फायदा होने की संभावनाएं कम ही हैं। क्योंकि लोग औपचारिक रूप से सदस्यता तो ले लेंगे और सदस्यों की संख्या बहुत ज्यादा हो जाएगी। मगर यह संख्या वोटों में भी बदल पाएगी, इसकी उम्मीद कम ही है।

2017 में प्रदेश में बाली बनाम नड्डा के समीकरण

सुरेश चंबियाल 
मोदी रथ पर सवार बीजेपी हर राज्य में नए प्रयोग कर रही है और उसमें उसे आशातीत सफलता भी मिल रही है। बीजेपी प्रदेश में युवा तुर्कों, स्वच्छ छवि और संघ की विचारधारा के लोगों को नेतृत्व का मौका दे रही है।  देवेन्द्र फडणवीस, मनोहर लाल खट्टर , रघुवीर दास  समेत अन्य राज्यों के  चुनाव के साथ  यह लिस्ट और भी लम्बी हो सकती है।  मोदी-शाह और संघ मॉडल को लेकर चले तो यह कहना भी अतिश्योक्ति  नहीं होगी कि हिमाचल प्रदेश की जनता के सामने भी बीजेपी एक नए नेतृत्व का विकल्प रख सकती है।  इसी मॉडल को ध्यान में रखते हुए अगर हिमाचल प्रदेश की राजनीति को देखें तो बीजेपी के कप्तान प्रेम कुमार धूमल 2017 तक   74  वर्ष के हो जाएंगे।  ऐसे में बीजेपी चाहेगी ऐसे हाथों में सत्ता सौंपी जाए जो मात्र अगले पांच साल के लिए नहीं, बल्कि दस पंद्रह साल की नींव डाल सके। बीजेपी का मानना है कि जब अन्य राज्यों में वह लगातार जीत सकती है हिमाचल में क्यों नहीं। धूमल के  अलावा हिमाचल बीजेपी में नेतृत्व की बात करें तो जगत प्रकाश  नड्डा मोदी मॉडल में सब से फिट बैठते हैं और केंद्र में अमित शाह से लेकर संघ तक के प्रिय भी हैं।

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प्रदेश बीजेपी में नड्डा समर्थकों की अच्छी खासी फौज है। नड्डा के बढे़ रुतबे से हिमाचल बीजेपी पदाधिकारी भी नड्डा से नजदीकियां बढ़ाने लग गए हैं। समीकरण कह रहे हैं  शांता धूमल गुटों में  पिसती आई प्रदेश बीजेपी नड्डा के रूप में आगे बढ़ने की सोच सकती है।  नड्डा के बाद बीजेपी को मोदी मॉडल से देखा जाए तो   युवा  तुर्क अनुराग ठाकुर भी रुतबा रखते हैं।  मोदी के नवरत्नों में से एक अनुराग ठाकुर राष्ट्रीय राजनीति में बीजेपी का एक क्रन्तिकारी चेहरा हैं। उनके रास्ते की रुकावट है- राजनितिक खानदान से होना।  परिवारवाद पर निशाना साधकर हर राज्य में विपक्ष को निशाने पर लेने वाले प्रधानमंत्री शायद ही अनुराग ठाकुर को हाल-फ़िलहाल प्रदेश राजनीति में  उतारने का रिस्क लें।  कुल मिलाकर बीजेपी नड्डा के साथ जाती ही दिख रही है। अन्य विकल्पों में राजीव बिंदल, जय राम ठाकुर या रविंदर रवि भी हो सकते हैं, लेकिन इनके आगे बढ़ने में भी नड्डा की ही भूमिका अहम होगी।

अब जरा सत्ता में में बैठी कांग्रेस के समीकरणों पर गौर किया जाए तो हिमाचल में कांग्रेस की राजनीति के पितामाह राजा वीरभद्र सिंह बूढ़े हो चले हैं। 2017 तक 85 साल के होंगे। इस बार भी बमुश्किल कांग्रेस हाईकमान ने उन्हें मौका दिया था। उनके बिना हिमाचल में देखें तो  कांग्रेस मॉडल कहता है  कि गांधी परिवार और केंद्रीय संगठन से जिसकी नजदीकियां होंगी, वही राज्यों में कांग्रेस का नेता होता है।  मंडी सीट से प्रतिभा सिंह जब उपचुनाव में जीत कर आई थी तो जीत से उत्साहित वीरभद्र सिंह को लगा था कि  कैसे भी करके वह अपनी विरासत उन्हें सौंप देंगे।  मात्र एक साल बाद आई मोदी आंधी ने उनका सपना काफी हद तक  चकनाचूर कर दिया है।  इनके बाद कांग्रेस में लम्बी लिस्ट है- जिसमे आनंद शर्मा ,कौल सिंह, जी.एस. बाली, सुधीर शर्मा और मुकेश अग्निहोत्री के नाम हैं।  आनंद शर्मा खुद जानते हैं वह हिमाचल की जनता में स्वीकार्य नहीं हो पाएंगे इसलिए वह हमेशा राज्य राजनीति से अपने आप को दूर ही रखते हैं।  कौल सिंह सदियों से राजा के बाद मुख्यमंत्री बनने का अरमान पाले हुए हैं परन्तु उनकी दिक्कत यह है की हाल के कुछ बरसों को छोड़कर उनकी सारी जिंदगी राजा ‘भक्ति’ में ही बीती है। ऐसे में वह कांग्रेस में ऊपर तक ज्यादा पहचान नहीं रखते। पिछली बार भी वह आनंद शर्मा की दया पर ही निर्भर थे।  ऐसे ही सुधीर शर्मा , मुकेश अग्निहोत्री आदि की भी  वीरभद्र से आगे  राष्ट्रीय  स्तर पर  कोई पहचान नहीं है।  अब बचते है जी एस बाली, जो मौजूदा राजनीति के हिसाब से सबसे फिट बैठते हैं।

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बाली हमेशा सुर्ख़ियों में रहने वाले मंत्री हैं। दबंग नेतृत्व की पहचान बाली गांधी परिवार और  कांग्रेस संगठन से ठीक करीबियां रखते हैं।  कांग्रेस के दिग्गज महासचिव अभिषेक मनु सिंघवी से बाली की नजदीकियां जग जाहिर हैं।  नगरोटा की रैली में बाली के साथ  विद्या स्टोक्स , राजेश धर्माणी का होना उन्हें स्टोक्स और वीरभद्र विरोधी खेमे का मौन समर्थन समझा जा रहा है। बाली अपने आप को विकल्प के रूप में जनता के सामने लाने की पूरी तैयारी में है। कुल मिलाकर 2017 चुनाव  में बीजेपी-कांग्रेस दोनों ही दलों की तरफ से नए नेतृत्व का आगाज होगा। बीजेपी के वाइब्रेंट नेता जेपी नड्डा और कांग्रेस के दबंग जीएस  बाली में से हिमाचल प्रदेश को कोई मुख्यमंत्री मिलेगा, यह समीकरण कह रहे  हैं।

क्या एम्स भी राजनीति की भेंट चढ़ जाएगा?

इन हिमाचल डेस्क।।

हिमाचल प्रदेश में एम्स को लेकर इन दिनों जमकर राजनीति हो रही है। सत्ताधारी कांग्रेस और विपक्षी कांग्रेस इस मुद्दे को भुनाने में कोई कसर नहीं छोड़ रहीं। मगर आप यह जानकर शायद हैरान रह जाएं कि प्रदेश सरकार ने भी इस मुद्दे पर गंभीर लापरवाही बरती है। क्या है यह पूरा मसला, आइए एक-एक पॉइंट को लेकर समझें।

1. केंद्र ने संस्थान के लिए जगह ढूंढने को कहा
जून में जब मोदी सरकार बनी थी, तब केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने 11 राज्यों को चिट्ठी लिखकर कहा था कि वे अपने यहां एम्स जैसे संस्थान के निर्माण के लिए 200 एकड़ जमीन तलाश करें।

2. हिमाचल सरकार नहीं ढूंढ पाई जमीन
केंद्र से आई इस चिट्ठी का जवाब एक महीने के अंदर दिया जाना था। यानी एक महीने के अंदर प्रदेश सरकार को जमीन फाइनल करके केंद्र सरकार को उसकी जानकारी देनी थी। मगर वीरभद्र सरकार जमीन ही नहीं ढूंढ पाई।

3. हिमाचल सरकार ने दिया अनोखा सुझाव
तय वक्त पर जमीन ढूंढ पाने में नाकाम रही हिमाचल सरकार ने केंद्र को अनोखा सुझाव दे दिया। वीरभद्र सरकार ने केद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय को लिखी चिट्ठी में सुझाव दिया कि अगर एम्स बनाना है तो क्यों न टांडा मेडिकल कॉलेज को ही एम्स में बदल दिया जाए।

4. केंद्र ने ठुकराया हिमाचल सरकार का प्रस्ताव
टांडा मेडिकल कॉलेज को एम्स में बदलने का प्रस्ताव केंद्र ने ठुकरा दिया। केंद्र ने कहा कि पहले से ही मेडिकल कॉलेज को कैसे एम्स में बदल दिया जाए। केंद्र का कहना था कि बात नए एम्स जैसे संस्थान की स्थापना की हो रही है, न कि किसी पुराने संस्थान को अपग्रेड करके एम्स बनाने की।

5. इस साल टल गया एम्स का प्रस्ताव
हिमाचल प्रदेश सरकार द्वारा तय वक्त में जमीन का चुनाव न कर पाने और फिर उसके सुझाव के खारिज हो जाने का नतीजा यह निकला कि हिमाचल में एम्स के मुद्दे पर इस साल कोई प्रगति नहीं हो सकी। प्रदेश सरकार अभी जमीन ढूंढने में लगी है। 12 जिलों के डीसी को अपने यहां एम्स के लिए 200 एकड़ जमीन तलाश करने को कहा गया है।

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ऊपर जो भी बातें कही गई हैं, उसकी जानकारी खुद हिमाचल के स्वास्थ्य मंत्री कौल सिंह ठाकुर ने दी। धर्मशाला में चल रहे विंटर सेशन में प्रश्न काल के दौरान बीजेपी विधायक गुलाब सिंह ठाकुर ने एम्स को लेकर सवाल किया था। उस पर जवाब देते हुए कौल सिंह ने बताया कि अब तक इस मामले में क्या-क्या डिवेलपमेंट हुआ। कौल सिंह ने बताया कि 12 डीसी से कहा गया है कि वे बताएं कि उनके जिले मे कहां पर एम्स बनाया जा सकता है। आखिरी फैसला लेने के बाद उस जमीन को केंद्र को दे दिया जाएगा।

इस पूरे प्रकरण से न सिर्फ हिमाचल प्रदेश सरकार के कामकाज के तौर-तरीके का पता चलता है, बल्कि यह भी साफ होता है कि वह कितनी अदूरदर्शी है। पता चलता है कि:

1. सरकार ने कभी नहीं सोचा कि अगर कोई बड़ा संस्थान बनाना हो तो उसके लिए जमीन कहां-कहां उपलब्ध है। अगर सरकार के पास विजन होता तो वह पहले से ही हर जिले में जगहें ढूंढकर अपने रेकॉर्ड में रखती।

2. सरकार के पास विज़न नहीं है। अगर जगह तय नहीं हो पाई थी, तो वह केंद्र से कह सकती थी कि थोड़ा और वक्त दिया जाए। मगर बजाय इसके यह लिखा गया कि टांडा मेडिकल कॉलेज को एम्स बना दिया जाए।

3. उसे महसूस नहीं हुआ कि अगर एक और उच्च स्तरीय हॉस्पिटल खुलेगा तो यह लोगों के लिए फायदेमंद ही है। डांटा मेडिकल कॉलेज को एम्स बनाने का सुझाव देने से साफ होता है कि प्रदेश सरकार ने अपने सिर से बला टालनी चाही।

4. सरकार को अभी भी यह बात समझ नहीं आ रही है कि एम्स जैसे संस्थान को ऐसी जगह पर होना चाहिए, जहां से वह पूरे प्रदेश के लोगों के लिए फायदेमंद हो। इसीलिए सरकार ने सभी जिलों के डीसी से पूछा है कि जमीन का पता लगाओ।

कहां बनना चाहिए एम्स?
‘इन हिमाचल’ ने प्रदेश के विभिन्न भागों के लोगों से बातचीत करके जानना चाहा कि एम्स कहां बनना चाहिए। ज्यादातर लोगों का कहना था कि इसे प्रदेश के केंद्र में होना चाहिए, ताकि पूरा प्रदेश इसका फायदा उठा सके। कुल्लू में रहने वाले धीरज भारद्वाज बताते हैं कि अगर हमारे यहां कोई सड़क हादसा हो जाए तो अस्पताल पीजीआई रेफर कर देते हैं और घायल रास्ते में दम तोड़ देते हैं। वहीं सोलन और बिलासपुर आदि पंजाब से लगते जिलों से पीजीआई नजदीक है। ऐसे में एम्स ऐसी जगह बने जहां से कुल्लू के लोग भी जल्दी पहुंचे और सोलन, बिलासपुर, ऊना, चंबा, किन्नौर आदि के भी।

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सिरमौर में रहने वाले दिनेश शर्मा बताते हैं कि एम्स के मुद्दे पर राजनीति हो रही है। कुछ लोग उसे अपने चुनाव क्षेत्र में बनवाना चाहते हैं। मगर उन्हें सोचना चाहिए कि यह क्रिकेट स्डेडियम बनाने की नहीं, बल्कि जनता के लिए हॉस्पिटल खोलने की बात हो रही है। यह लग्ज़री नहीं, बल्कि बुनियादी जरूरत है। हमें कोई आपत्ति नहीं कि यह हमीरपुर में बने या लाहौल स्पीति में। मगर इसके पीछे वजह होनी चाहिए। जमीन तो कहीं भी मिल सकती है, मगर जमीन वहां देखी जाए जहां बनाना प्रदेश की जनता के हित में हो।

करसोग के रहने वाले डॉक्टर विजय कुमार ने ‘इन हिमाचल’ से कहा कि 12 के 12 जिलों को जमीन ढूंढने के लिए कहना दिखा रहा है कि प्रदेश सरकार अभी तक दुविधा में है। वह यही तय कर पाने की स्थिति में नहीं है कि एम्स को कहां बनाना लोकहित में। वरना पहले वह लोकेशन तय कर लेती और उसके बाद वहां पर जमीन की तलाश शुरू की जाती है। यह बड़े अफसोस की बात है।

इसके अलावा इन हिमाचल ने फेसबुक पर भी अपने पाठकों से सवाल पूछा था कि एम्स कहां खोला जाना चाहिए। जवाब इस तरह हैं:

“टांडा मेडिकल कॉलेज को एम्स में अपग्रेड कर देना चाहिए और टांडा मेडिकल कॉलेज जैसा कोई संस्थान हिमाचल के बीचोबीच बनाना चाहिए, ताकि सभी हिमाचलियों को बेहतर स्वास्थ्य सुविधाएं मिलें।” वरिंदंर चौधरी, कांगड़ा।

“मंडी जिले में ESIC ने कॉलेज कम हॉस्पिटल पर 756 करोड़ रुपये इन्वेस्ट किए हैं, मगर आज तक यह इस स्थिति में नहीं पहुंचा है कि लोग इसका लाभ उठा सकें। ESIC तो इसे चलाने के मूड में दिख नहीं रहा है, ऐसे में इसे एम्स में बदल देना चाहिए। नेरचौक में न सिर्फ जमीन उपलब्ध है, बल्कि यह प्रदेश के एकदम सेंटर में भी है।”  -गोविंद ठाकुर, मंडी।

“लोअर हिमाचल में कहीं भी बनना चाहिए। देहरा, शाहपुर या धर्मशाला।” -बिकास डोगरा, नूरपुर।

“इसे बिलासपुर में बनाना सही होगा।” राजिंदर गर्ग, घुमारवीं।

“यह मंडी जिले में ही कहीं होना चाहिए, क्योंकि मंडी हमीरपुर, कांगड़ा, कुल्लू, बिलासपुर जैसे जिलों से नजदीक है। इसलिए ज्यादा से ज्यादा लोग इस प्रॉजेक्ट का फायदा उठा सकते हैं।” -प्रणव घाबरू, बैजनाथ

“एम्स में मंडी में बनना चाहिए।” -संजय ठाकुर, धर्मपुर।

‘एम्स हिमाचल के बीच में कहीं बनना चाहिए। कांगड़ा या हमीरपुर में बनाया जा सकता है।” -ओजस्वी कौशल, चंडीगढ़।

हिमाचल प्रदेश में नहरों के ऊपर लगेंगे सौर ऊर्जा प्लांट

शिमला।।
ऊर्जा राज्य हिमाचल प्रदेश ने हाइड्रो प्रोजेक्ट्स से बिजली पैदा करने के अलावा सौर ऊर्जा से बिजली पैदा क
रने की ओर भी अपने कदम बढ़ा दिए हैं। दिलचस्प बात यह है की यह सौर ऊर्जा प्लांट खाली जमीन पर नहीं बल्कि नहरों के ऊपर लगाए जाएंगे। गौरतलब है की केंद्र सरकार ने प्रदेश की नहरों पर सोलर प्लांट लगाने की सम्भावना का प्रस्ताव राज्य सरकार से माँगा था जिसकी प्रारंभिक रिपोर्ट हिम ऊर्जा ने तैयार कर ली है।

सिंचाई के लिए बनी प्रदेश की नहरों पर यह प्लांट लगाये जाएंगे। हिम ऊर्जा की रिपोर्ट के अनुसार जिला कांगड़ा की सिद्धार्थ नहर में सब से ज्यादा सोलर बिजली पैदा करने का पोटेंशियल है। यूँ तो नहर की लम्बाई या चौड़ाई के आधार पर पता चलेगा की कितना एरिया आवश्यक होगा परन्तु फिर भी औसतन यह आँका गया है की लगभग एक किलोमीटर नहर पर एक मेगावाट तक बिजली पैदा की जा सकती है। हिम ऊर्जा के निदेशक भानु प्रताप सिंह ने इस बात की पुष्टि की है।

DESH
deshgujrat.com से साभार।

केंद्र सरकार इन प्रोजेक्ट्स के लिए अनुदान देगी बाकी राज्य सरकार खर्च करेगी। इन हिमाचल ने इस तरह के प्रोजेक्ट्स की तकनीकी व्यावहारिकता के बारे में आईआईटी दिल्ली में सोलर एनर्जी की फील्ड में कार्य करने वाले शोधकर्ता आशीष नड्डा जी से जानकारी ली तो उन्होंने बताया की निश्चित रूप से यह एक ऐतिहासिक कदम होगा ऐसे प्रोजेक्ट्स जरूर कामयाब होंगे तथा दोहरा लाभ मिलेगा । एक तो नहरों के सोलर पैनल से ढक जाने से दिन के समय पानी का ऐवपोरशन रेट भी कम होगा, दूसरे नहर के पानी की ठंडक से सोलर पैनल गर्म नहीं हो पाएंगे जिस से उनकी उत्पादन क्षमता सही रहेगी।

आशीष नड्डा ने बताया कि एक निर्धारित तापमान के बाद सोलर पैनल की उत्पादन क्षमता कम हो जाती है। परन्तु हिमाचल का ठंडा मौसम और नहर के ऊपर पैनल लगे होने से हिमाचल प्रदेश में यह सम्भावना कम रहेगी। उन्होंने जोड़ा की पिछले कुछ वर्षों में ही सोलर से पैदा हुए बिजली के दाम और लागत बहुत कम हुए है तथा हाइड्रो प्रोजेक्ट्स से होने वाले पर्यावरण नुक्सान को देखते हुए हिमाचल प्रदेश को भी सोलर एनर्जी के क्षेत्र में संभावनाएं तलाशनी चाहिए।

शर्मनाक! 17 साल में भी नहीं लग पाए बिजली के तार

शिमला।।

चीन को 1,181 किलोमीटर लंबा गोर्मू-ल्हासा रेलमार्ग बिछाने में सिर्फ 4 साल का वक्त का लगा, मगर चीन से लगते हिमाचल प्रदेश के किन्नौर जिले में 150 किलोमीटर लंबी बिजली की तारें लगाने में ही 17 साल से ज्यादा का वक्त लग गया है। अफसोस, काम अभी भी पूरा नहीं हुआ है।

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सर्दियों में जनजातीय इलाकों में बिजली की सप्लाई बरकरार रहे, इसलिए लिए साल 1997 में राज्य सरकार ने 66 किलोवाट का प्रॉजेक्ट लगाने का फैसला किया। इरादा था कि किन्नौर और लाहौल-स्पीति जिलों के दूर-दराज के इलाकों में बिजली पहुंचाई जाए। मगर अफसोस! अभी तक यह काम पूरा नहीं हो पाया है।

ये सर्दियां भी अंधेरे में कटेंगी

मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह ने हाई लेवल इन्क्वायरी के आदेश दिए हैं। बिजली विभाग का कहना है कि अगले साल मई तक यह काम पूरा कर लिया जाएगा। मगर लोगों की परेशानी का अंदाजा लगाइए, जिन्हें ये सर्दियां भी बिना बिजली के गुजारनी पड़ रही हैं। वहीं मैदानी इलाकों और राजधानी में बड़े कार्यालयों में बैठने वाले आला अफसर और नेता सरकारी बिजली पर हीटर सेंक रहे हैं।

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अब BJYM पदाधिकारी की फेसबुक पोस्ट पर बवाल

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मंडी।।
कांग्रेस विधायक और सीपीएस नीरज भारती के बाद अब भारतीय जनता युवा मोर्चा के एक पदाधिकारी की फेसबुक पोस्ट पर बवाल हो गया है। मामला मंडी जिले के जोगिंदर नगर का है, जहां पर BJYM के मंडल अध्यक्ष पर ब्लॉक कांग्रेस कमिटी के अध्यक्ष जीवन ठाकुर ने 50 लाख रुपये का मानहानि का दावा ठोका है। इसके साथ ही उनके ऊपर अपनी ही पार्टी के सांसद पर भी टिप्पणी करने का आरोप लगा है।

कुछ दिनों पहले मंडी लोकसभा सीट से सांसद रामस्वरूप शर्मा ने जोगिंदर नगर मंडल की द्रुब्बल पंचायत का दौरा किया था। इस दौरान जोगिन्दर नगर ब्लॉक कांग्रेस के अध्यक्ष जीवन ठाकुर, जो कि इस पंचायत के प्रधान भी हैं, ने प्रोटोकॉल के तहत सांसद का स्वागत किया। वह पंचायत प्रधान होने की वजह से मंच पर आगे वाली पंक्ति पर बैठे और सभा को संबोधित करते हुए उन्होंने सांसद को गांव की समस्याओं से भी अवगत करवाया।

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इसी बात को लेकर जोगिन्दर नगर मंडल के BJYM अध्यक्ष ने इस सभा की तस्वीर अपनी फेसबुक टाइमलाइन पर शेयर करते हुए लिखा कि कांग्रेस अध्यक्ष बीजेपी की बैठक में शामिल हुए और वह बीजेपी में शामिल होने जा रहे हैं। इसी पोस्ट से नाराज जीवन ठाकुर ने पुलिस में शिकायत दी है और साथ ही 50 लाख रुपये का मानहानि का दावा ठोका है। कांग्रेस नेता का कहना है कि उनकी छवि को खराब करने की कोशिश की गई है।

यही नहीं, युवा बीजेपी पदाधिकारी ने इस पूरे प्रकरण में सांसद रामस्वरूप शर्मा को भी घसीट लिया था। उन्होंने फेसबुक पोस्ट डाली कि सांसद रामस्वरूप बीजेपी कार्यकर्ताओं को पीछे धकेल रहे हैं और कांग्रेस कार्यकर्ताओं को आगे कर रहे हैं। बीजेवाईएम पदाधिकारी की इस पोस्ट पर फेसबुक पर बहस छिड़ गई थी। बीजेपी से ही जुड़े स्थानीय नेताओं ने भी इस पोस्ट पर कॉमेंट करके आपत्ति जाहिर की। पार्टी के कुछ लोगों ने इसे अनुशासनहीनता मानते हुए प्रदेश आलाकमान  तक पहुंचा दिया है।

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खुद को बीजेपी समर्थक बता रहे कुछ लोग फेसबुक पर युवा बीजेपी पदाधिकारी की तस्वीर शेयर करते हुए सांसद पर की गई टिप्पणी का विरोध कर रहे हैं। एक शख्स ने कॉमेंट किया है, ‘जनता के चुने हुए प्रतिनिधि पार्टी से ऊपर होते हैं। ऐसे में किसी भी विचारधारा से संबंध होने पर पंचायत प्रधान का सांसद के कार्यक्रम में जाना गलत नहीं है। ऐसी सोच प्रदेश को गर्त की तरफ ले जा रही है।’

सूत्रों की मानें तो हिमाचल बीजेपी के वरिष्ठ नेताओं को एक सांसद के खिलाफ अपनी ही पार्टी के पदाधिकारी द्वारा की गई यह टिप्पणी नागवार गुजरी है। ‘इन हिमाचल’ को नाम न बताने की शर्त पर युवा मोर्चा के एक वरिष्ठ पदाधिकारी ने बताया की संगठन उस टिप्पणी के आधार पर कार्रवाई करने का मन बना चुका है। इस बारे में जब ‘इन हिमाचल’ ने सांसद रामस्वरूप शर्मा से प्रतिक्रिया लेने की कोशिश की तो उनसे संपर्क नहीं हो पाया।

अभी तो भारतीय जनता युवा मोर्चा के नेता ने ये पोस्ट्स डिलीट कर दी हैं, लेकिन कानूनी जानकारों का मानना है कि डिलीट कर देने से मुश्किलें कम नहीं हुई हैं। जिस तरह से कोई भी क्राइम होते देखने वालों की गवाही अहम मानी जाती है, उसी तरह से किसी पोस्ट को पढ़ने वालों की गवाही को भी कोर्ट में मान्य समझा जाता है। पोस्ट के स्क्रीनशॉट्स के साथ लोगों की गवाही अहम हो जाती है।

कोर्ट अगर उचित समझे तो पुलिस फेसबुक के हेडक्वॉर्टर से संपर्क करके जानकारी मांगने का अधिकार रखती है, जहां से हर पोस्ट का पूरा रेकॉर्ड लिया जा सकता है। कानूनी जानकारों का कहना है कि बीजेवाईएम पदाधिकारी के खिलाफ आईटी ऐक्ट की धारा 66(A) और आईपीसी की धारा 153(A) तहत भी मामला दर्ज हो सकता है।

(नोट: इस पूरे प्रकरण पर  युवा बीजेपी पदाधिकारी को भी उनकी फेसबुक प्रोफाइल पर इन हिमाचल की तरफ से मेसेज भेजा गया है, ताकि इस मामले में उनका पक्ष भी जाना जा सके। अभी तक कोई जवाब नहीं आया है, अगर जवाब आता है तो हम उसे भी पब्लिश करेंगे।)

बचकाना व्यवहार, भारती ने ‘इन हिमाचल’ की पोस्ट पर किए कॉमेंट

शिमला।।
खबर छापे जाने पर ‘इन हिमाचल’ की फेसबुक पोस्ट पर आकर कुछ ऐसे कॉमेंट किए नीरज भारती ने। बड़ी इमेज देखने के लिए नीचे दी गई इमेज पर क्लिक करें।