हिमाचल प्रदेश सरकार ने दो साल में क्या किया, यह सोचने पर पर मेरा ध्यान कभी नहीं जाता अगर दिल्ली में रहते हुए भी प्रदेश से लगाव के कारण मैं रोज सुबह उठकर ऑनलाइन अखबारें नहीं पढ़ता। मैं अकेला नहीं हूं जो दिनचर्या की शुरुआत हिमाचल के अख़बारों पर नजरें दौड़ाकर राजनीति, संस्कृति और सुख-दुःख की हर खबर से रू-ब-रू होकर करता हूं। प्रदेश से बाहर दूसरे राज्यों में आजीविका और शिक्षा से सबंधित कार्यों के लिए निकले लाखों हिमाचल वासियों के दिन की शुरआत भी ऐसे ही होती होगी।
छोटा राज्य होने के कारण हिमाचल प्रदेश के अख़बारों की हेडलाइन अक्सर मुख्यमंत्री के दौरे और उनके भाषण पर ही होती है। किसी भी प्रदेश के मुख्यमंत्री का भाषण लोगों के मन में एक आशा और उम्मीद का संचार करता है। मैंने यहां ख़ासकर सिर्फ मुख्यमंत्री इसलिए कहा क्योंकि राजनीति में रोज हर पार्टी के नेता नए-नए प्लान अपने भाषणों में गढ़ते हैं परन्तु जनता की विश्वश्नीयता सिर्फ मुख्यमंत्री पर अधिक होती है। वो किसी पार्टी विशेष का नहीं, सरकार का मुखिया होता है।
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हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह बहुत अनुभवी, धीर-गंभीर, जुबान के पक्के और प्रदेश हितैषी राजनेता माने जाते हैं। वीरभद्र सिंह का यही व्यक्तित्व लोगों को प्रभावित करता रहा है परन्तु इस बार व्यक्तिगत रूप से मुझे लगा राजनीति में पच्चास साल पूरे कर चुका प्रदेश का सबसे अनुभवी नेता अपने व्यक्तित्व से न्याय नहीं कर पा रहा है।
व्यक्तिगत रूप से वीरभद्र सिंह मेरे लिए आदरणीय हैं। प्रदेश का आम नागरिक होने के नाते मैं या मेरी जगह कोई भी नागरिक अपने मुखयमंत्री से क्या सुनना चाहेगा? प्रदेश हित में कोई योजना , कोई पॉलिसी रिफॉर्म , बेरोजगारों के लिए वह क्या कर रहे हैं या क्या करेंगे, गांव की सड़कों, पेयजल योजनाओं पर उनका क्या प्लान है, प्रदेश की सड़कों की खस्ता हालत पर सरकार का क्या अजेंडा है, बागवानों और किसानों की बंदरों द्वारा तबाह होती फसलों पर प्रदेश सरकार का क्या संज्ञान है, रोज-रोज हो रही वारदातों ,एटीएम चोरी की घटनाओं पर सरकार का क्या ऐक्शन है, कर्मचारियों की कमी से जूझते बिजली बोर्ड और अन्य सरकारी उपक्रमों की मांगों को सरकार कैसे पूरा करेगी, शिक्षा क्षेत्र में सुधार के लिए सरकार की क्या नीति है, कुकरमुत्तों की तरह खोले जा रहे सरकारी इंजिनियरिंग संस्थानों के स्थाई भवन कब तक बनेंगे, वहां रेग्युलर फैकल्टी कब तक नियुक्त होगी, बड़े-बड़े हाइड्रो प्रॉजेक्ट्स से विस्थापित हुए लोगों और उनकी चीखों समस्याओं का क्या बना, क्या नीति अमल में लाई जा रही है…. वगैरह-वगैरह।
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मगर पिछले दो वर्षों के अखबार पढ़ने पर मैंने मुख्यम्नत्री के मुंह से जो सुना, मुझे हैरानी हुए कि प्रदेश के इस अनुभवी नेता को आखिर किस बात की बौखलाहट है। वह ऐसे क्यों व्यहार कर रहें हैं। रोज हर जगह मुख्यमंत्री एक ही तरह के भाषण से अब जी उकताने लगा है। एक निराशा सी मन में आने लगी है। कभी-कभी लगता है क्या प्रदेश के बाकी मुद्दे गौण हो गए हैं? क्या एक मुख्यमंत्री उसे सुनने आये हजारों लोगों के जनसमूह को रोज यह खबरे सुनाने आता है?
वीरभद्र सिंह ने बाकी मुद्दों के बारे में बाते करना बंद कर दिया है। वह जहां भी जाते हैं उनके भाषण की शुरुआत और अंत सिर्फ पूर्व मुखयमंत्री धूमल और उनके परिवार के खिलाफ गुब्बार निकालने से शुरू होता है और उसी पर खत्म हो जाता है। फोन टैपिंग मामले का सुबह शाम हौवा बनाया गया। उस समय की अखबारों को अगर कोई आज निकल कर देखे तो वीरभद्र सिंह ने बिना कोई नागा डाले रोज इस मामले में कांग्रेस प्रवक्ता की तरह कुछ न कुछ कहा। आज उस मुद्दे का क्या बना कोई नहीं जानता। क्या कार्रवाई हुई, कौन गुनहगार निकले, किसी को कुछ पता नहीं। क्या एक मुख्यमंत्री को यह शोभा देता है? क्या ऐसा करना एक मुख्यमंत्री पद की गरिमा के अनुसार है कि पुलिस की जांच और कार्रवाई जिन मामलों में चल रही हो, आप रोज प्रवक्ता बन कर उस पर टिप्पणी करें?
उसके बाद के समय में वीरभद्र सिंह ने क्रिकेट असोसिएशन का राग पकड़ा। इस मामले के सामने आने के बाद की अखबारें आप देखंगे तो पाएंगे फिर मुख्यमंत्री रोज सिर्फ वही बात करते थे। धूमल परिवार को कोसते थे झल्लाते थे। शांता कुमार से सीख लेने की सलाह उन्हें देते थेय़ पर क्या उन्हें नहीं लगता कि वह भी अपने समकालीन नेता शांता से कुछ सीख सकते हैं कि मुख्यमंत्री का काम जांच के आदेश देना है, उसके बाद जांच एजेंसियां अपना काम करेंगी। मुख्यमंत्री काम यह नहीं है कि रोज प्रवक्ता बन कर उसी मुद्दे पर बात करता रहे औऱ बाकी किसी नीति या योजना पर मुंह तक न खोले।
ठीक है, सरकार किसी के खिलाफ जांच करवाने का हक रखती है। कोई दोषी है तो जांच से सब निकल कर आएगा। पर रोज एक ही बात हर जनसभा में दोहराना समझदारी नहीं है। क्या प्रदेश में कोई और मुद्दा नहीं रह गया है? अभी कितने शर्म की बात है की प्रदेश के नाम विदाई सन्देश में राज्यपाल यह कह कर गई हैं कि हमारी सड़कों की हालत कितनी खस्ता है। इस पर सरकार ने कुछ नहीं कहा।
बीजेपी चाहती थी सेंट्रल यूनिवर्सिटी देहरा में बने। मुख्यमंत्री चाहते हैं यह धर्मशाला में बने। दोनों पार्टियों की इस कलह में कई साल तक सेंट्रल यूनिवर्सिटी के लिए फैसला नहीं हो पाया। वह अस्थायी भवन में चलती रही। सिर्फ राजनेता व्यग्र हैं यूनिवर्सिटी कहां बने, मेरे जैसी आम जनता चाहती है बस कहीं भी बनाओ, उसे बना दो। बस राजनीति खत्म करो। खैर जमीन देखने का विशेष अधिकार सरकार के पास है। सरकार ने धर्मशाला में जमीन फाइनल कर दी। मगर वीरभद्र सिंह फिर मुख्यमंत्री से प्रवक्ता बन गए। उन्होंने अनुराग-राग छेड़ दिया, ‘वो यह चाहता है, ऐसा करता है, धर्मशाला में बनेगी, ऐसा-वैसा….’ फिर रोज हर जगह यही भाषण।
ठीक है जनाब, आपने जगह फाइनल कर दी तो बात खतम। अब आप रोज यही अलापते रहते हो, यह क्या बात हुई। अब आप सत्ता में है, न कि विपक्ष में। ऐक्शन लीजिये और आगे की बात कीजिये। जिसे जो कहना है, कहता रहेगा। आपको तो और भी मुद्दे देखने हैं प्रदेश के। पर नहीं, आपको तो रोज इस पर टिप्पणी करनी है। कितना निराशाजनक है यह।
ज्यादा पीछे नहीं जाऊंगा। आजकल मुख्यमंत्री हिमाचल प्रदेश के निचले क्षेत्रों के दौरे पर हैं। इस बीच विजिलेंस ने पूर्व मुख्यमंत्री धूमल के खिलाफ सीबीआई जांच की सिफारिश की है। लोगो को भी मीडिया के द्वारा इस खबर का पता लग चुका है पर हैरानी है कि हर जनसभा में वीरभद्र सिंह का भाषण धूमल राग पर सीमित हो जाता है। जनता उनसे कुछ नयापन सुनने आती है। मगर मुख्यमंत्री बताने लगते हैं कि धूमल के खिलाफ सीबीआई जांच होगी। ठीक है जनाब जांच होगी, लग गया है पता सबको। आप मीडिया वाले नहीं, प्रदेश के मुख्यमंत्री हैं। गरिमापूर्ण पोस्ट पर हैं आप। अभी पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह से सीबीआई ने पूछताछ की तो क्या नरेंद्र मोदी ने बताया जनता को कि ऐसा हुआ है? यह मीडिया का काम है।
क्या। शिक्षा सड़क बेरोजगारी, हिमाचल प्रदेश की खस्ताहाल सड़कों , दिन ब दिन गिरती हिमाचल प्रदेश यूनिवर्सिटी की साख, बेरोजगारों की बढ़ती फौज, टांडा मेडिकल कॉलेज की खस्ताहाली पर करने के लिए आपके पास यही सब है? इन मुद्दों पर कौन बात करेगा? कौन योजना लाएगा? ऐसा लगता है मुख्यमंत्री इस कार्यकाल में कांग्रेस के चुनावी घोषणापत्र को पूरा करने के लिए नहीं बल्कि बीजेपी के खिलाफ बनाई गई चार्जशीट के क्रियान्वन के लिए ज्यादा उत्साहित हैं।
कुछ समय पहले अख़बारों में मैंने देखा था कि हिमाचल में निवेश लाने के लिए मुख्यमंत्री ने मुंबई और दिल्ली जैसे महानगरों में उद्योगपतियों के साथ बैठकें कीं। कई दिन तक यह दौर चला। यह एक अच्छा प्रयास था। पर उसके बाद क्या हुआ, कौन आया या आना चाहता है, कुछ मालूम नहीं हुआ।
धूमल परिवार या किसी के भी खिलाफ इस प्रदेश में जांच होगी या सिफारिश होगी यह खबर हम मीडिया से सुन लेंगे। आपका यह काम नहीं है। हम आम नागरिक आपके मुंह से यह सुनने में ज्यादा दिलचस्पी रखते हैं कि कौन सी नई योजना लाई जा रही है, क्या नया कदम उठाया जा रहा है। प्रदेश के सबसे अनुभवी नेता से प्रार्थना है कि आप किसी के खिलाफ कोई भी जांच करवाएं हम नागरिकों को कोई आपत्ति नहीं है। पर कृपया इंस्पेक्टर ही न बन जाएं। आप हमारे मुख्यमंत्री हैं और हमें आपसे और भी आशाएं हैं ।
‘लेखक:
Aashish Nadda (PhD Research Scholar)
Center for Energy Studies
Indian Institute of Technology Delhi
E-mail aksharmanith@gmail.com
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