अनुराग ठाकुर को सुप्रीम कोर्ट से राहत, वीरभद्र सरकार को झटका

शिमला।। व्यवसायी, क्रिकेट प्रशासक और हमीरपुर से बीजेपी सांसद अनुराग ठाकुर को बड़ी राहत मिली है। एचपीसीए स्टेडियम धर्मशाला को लेकर सरकारी जमीन पर अतिक्रमण के मामले में अनुराग समेत 7 लोगों के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने की याचिका रद हो गई है। सुप्रीम कोर्ट ने एफआईआर दर्ज करने के हिमाचल सरकार के फैसले को गैरकानूनी भी करार दिया है।

सुप्रीम कोर्ट का यह आदेश जहां अनुराग के लिए राहत भरा है, वहीं वीरभद्र सरकार के लिए एक झटका है। गौरतलब है कि इससे पहले हाईकोर्ट ने भी अनुराग ठाकुर के हक में फैसला दिया था। इसके बाद इस फैसले को हिमाचल सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी।

यह है मामला
दरअसल एचपीसीए स्टेडियम के गेट नंबर एक के साथ लगती भूमि पर शिक्षा विभाग का दो मंजिला रिहायशी भवन था। भवन का निर्माण 720 वर्ग मीटर में हुआ था। यहां कॉलेज प्राध्यापकों की रिहायशी के लिए टाइप-4 सेट बने हुए थे। पहले भूमि शिक्षा विभाग के नाम थी। आरोप है कि बाद में इस खेल विभाग को सौंपा गया। भूमि लीज पर भी नहीं है।

बिना अनुमति भवन गिराने का आरोप
इस मामले में एक फाइल भी गुम हई है। आरोप है कि स्टेडियम के निर्माण के दौरान बिना किसी अनुमति भवन को गिराया गया था। कांग्रेस चार्जशीट में इस मामले का उठाया गया था। हिमाचल प्रदेश विजिलेंस ने इस मामले पर धर्मशाला में 447,120 बी और पीडीपी एक्ट 13 (2) के तहत मामला दर्ज किया था।

अनुराग समेत 7 लोग थे आरोपी
सरकारी जमीन पर अतिक्रमण करने के इस मामले में एचपीसीए अध्यक्ष अनुराग ठाकुर, पूर्व डीसी कागड़ा केके पंत, पूर्व प्रिसिंपल ललित मोहन शर्मा, धर्मशाला कॉलेज के पूर्व प्रधानाचार्य नरेंद्र अवस्थी, पूर्व एक्सईएन देवी चंद चौहान, पूर्व एसडीओ एमएस कटोच, एचपीसीए पीआरओ संजय शर्मा, अतर नेगी और गौतम ठाकुर का नाम शामिल था।

छात्रा ने PM मोदी को लिखी चिट्ठी, पीएमओ ने हिमाचल सरकार से मांगा जवाब

करसोग (मंडी)।। हिमाचल प्रदेश की सड़को की खस्ताहालत किसी से छिपी नहीं है। गौरतलब है कि यह महकमा मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह ने अपने पास रखा हुआ है। इस बीच मंडी जिले के करसोग की एक बेटी ने देखा कि जब उसके गांव की सड़क की हालत सुधारने की कोशिश नहीं की जा रही तो उसने पीएम नरेंद्र मोदी को चिट्ठी भेज दी। अब पीएमओ ने प्रदेश के मुख्य सचिव से जवाब मांगा है।

मेगली गांव की 23 साल की छात्रा कुसुम शर्मा ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र भेजकर लोगों की दिक्कतों से अवगत करवाया था। पत्र में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से जिला मंडी के दूरदराज के क्षेत्र करसोग उपमंडल में सड़कों को दुरुस्त करने के लिए गुहार लगाई गई थी। कुसुम ने लिखा था कि नरेंद्र मोदी जैसे प्रधानमंत्री को पाकर हम जैसे नागरिकों का मनोबल बढ़ा है। उम्मीद है कि समस्या का समाधान जरूर करेंगे। कुसुम ने ग्रामीणों की तरफ से पीएम को यह पत्र भेजा था। 23 दिसंबर को भेजे गए पत्र पर पीएमओ ने संज्ञान लेकर प्रदेश के मुख्य सचिव से जवाब मांगा है।
Image courtesy: MBM News Network

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कुसुम शर्मा का कहना है कि मेगली गांव उपमंडल मुख्यालय से मात्र एक किलोमीटर दूर है और यहां से गुजरने वाली कच्ची सड़क कई गांवों को जोड़ती है। न सिर्फ इस सड़क की हालत बहुत खराब है बल्कि बाकी सड़कों का भी यही हाल है। पहाड़ी क्षेत्र की सड़कों की दुर्दशा के कारण हादसों में कई लोग जान गंवा चुके हैं। धूल-मिट्टी के कारण लोगों का स्वास्थ्य खराब हो रहा है। प्रशासनिक व विभागीय अधिकारी सड़कों की समस्या पर कोई गौर नहीं कर रहे हैं। कुसुम ने कहा है कि प्रधानमंत्री के माध्यम से करसोग की सड़कों की बदहाली सुधर जाए तो करसोग क्षेत्र के लोगों के मुरझाए चेहरों पर आशा की किरण जाग उठेगी।

करसोग के एमएलएल मनसा राम प्रदेश सरकार में सीपीएस भी हैं। अब वह कहते हैं कि करसोग के युवा भी जागरूक हैं। समय-समय पर लोक निर्माण विभाग से सड़कों की बदहाली को लेकर बात की जाती है। खस्ताहाल सड़कों के बारे में मेंटेनेंस करने के आदेश दिए जाते हैं। उधर पीडब्ल्यूडी के मुख्य अभियंता करतार चंद ने कहा कि इस बारे में अधिशासी अभियंता करसोग से सारी जानकारी प्राप्त करने के बाद उचित कार्यवाही की जाएगी और मार्च महीने से करसोग की सड़कों का पैच वर्क व टारिंग की जाएगी।

‘इन हिमाचल’ कुसुम को बधाई देता है और शुभकामनाएं भी। अन्य युवाओं के लिए कुसुम ने उदाहरण पेश किया है कि कैसे हार नहीं माननी चाहिए और अपने इलाके के विकास और बेहतरी के लिए हर संभव प्रयास करना चाहिए। लेटर की कॉपी नीचे दी गई है:

कुसुम द्वारा लिखे गए लेटर का हिस्सा
कुसुम द्वारा लिखे गए लेटर का हिस्सा

24 फरवरी से शुरू हो रहा है Horror Encounter Season 2

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सभी पाठकों को नमस्कार। हमें खुशी है कि पिछले साल शुरू की गई भुतहा कहानियों और आपबीती घटनाओं की सीरीज ‘हॉरर एनकाउंटर’ आपको पसंद आई। इस सीरीज में हमने पाठकों द्वारा भेजी गई कहानियों को छापा। हमारी कोशिश रहती है कि पाठकों को अच्छी क्वॉलिटी की चीजें पेश करें। ऐसे में हमारे पास बहुत से लोगों ने कहानियां भेजीं। कुछ का दावा था कि यह उनके साथ घटी घटना है। हमने इन सैकड़ों कहानियों में से कुछ एक ही आपके सामने रखीं। कुछ ऐसी कहानियां, जिनमें कहीं न कहीं डर का अंश मौजूद था। हम दावे से नहीं कह सकते कि उन घटनाओं मे कितनी सच्चाई है, मगर कहानियों का चुनाव करते वक्त हमने इस बात का ख्याल रखा कि वे डराने वाली हों।

इन कहानियों को छापने का मकसद यह दावा करना नहीं है कि भूत-प्रेत वाकई होते हैं। हम अंधविश्वास फैलाने में यकीन नहीं रखते। हमें खुशी होती है जब हॉरर कहानियों के पीछे की संभावित वैज्ञानिक वजहों पर आप पाठक चर्चा करते हैं। वैसे हॉरर कहानियां साहित्य में अलग स्थान रखती हैं। इसलिए इन्हें मनोरंजन के लिए तौर पर ही पढ़ें। तो कुछ महीनों के गैप के बाद हम फिर शुरू कर रहे हैं हॉरर कहानियों का सिलसिला। पहली कहानी शुक्रवार यानी 24 फरवरी को शाम को 8 बजे पब्लिश की जाएगी।

इस बीच आप पहले ही सबसे चर्चित हॉरर कहानियां पढ़ने के लिए नीचे दिए लिंक पर क्लिक कर सकते हैं:

कभी नहीं भूल पाऊंगा बैजनाथ-पपरोला ब्रिज पर हुआ वह अनुभव

टेंट के बाहर कोई महिला रोने लगी और अंदर मेरी गर्लफ्रेंड

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अपने बेटों के चक्कर में नूरा कुश्ती कर रहे नेताओं के बीच पिस रहा है हिमाचल

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आई.एस. ठाकुर।। कोई भी व्यक्ति राजनीतिक रूप से तटस्थ नहीं हो सकता। उसकी कोई न कोई विचारधारा या पसंद होती है। हिमाचल प्रदेश में भी ऐसा ही है। कुछ लोग बीजेपी को पसंद करते हैं, कुछ कांग्रेस को, कुछ वीरभद्र को, कुछ धूमल को, कुछ शांता कुमार को तो कुछ नड्डा को। अपनी राजनीतिक पसंद के मामले में हम इतने पक्के हो जाते हैं कि हमें अपनी पार्टी या अपने नेता के खिलाफ कही जाने वाली सभी बातें झूठी लगती हैं और ऐसा करने वाला हमें या तो विरोधी पार्टी का एजेंट लगता है या फिर बेवकूफ। यह सही है कि जिन नेताओं के आप समर्थक हों, उन्होंने आपके लिए बहुत काम किए होंगे और आपका उनसे अच्छा रिश्ता होगा। अच्छी बात है, होना भी चाहिए और ऐसा होता भी है। मगर आज वक्त आ गया है कि हमें शांत मन से सोचना होगा कि क्या हमारे लिए अच्छा है, क्या हमारे लिए खराब।

प्रदेश का हित सीधे तौर पर हरेक व्यक्ति के हित से जुड़ा है। यानी प्रदेश अगर तरक्की करता है तो यह हर व्यक्ति की तरक्की है। प्रदेश का नुकसान हर व्यक्ति का नुकसान। चूंकि यह चुनावी साल है और इस साल के आखिर में विधानसभा चुनाव हो जाएंगे, इसलिए प्रदेश की जनता का खुले मन सोचना विचारना बहुत जरूरी हो जाता है। हमें यह तय करना होगा कि प्रदेश के लिए क्या अच्छा है और क्या बुरा। बड़े ही अफसोस के साथ कहना पड़ रहा है कि प्रदेश के मौजूदा नेतृत्व में कोई भी बात ऐसी नहीं दिखाई देती, जो हिमाचल को नई दिशा दे सकती है। प्रदेश की राजनीति नूरा-कुश्ती यानी फिक्स्ड मैच सा लगने लगी है। कभी एक पार्टी सत्ता में आती है और कभी दूसरी पार्टी। नेताओं ने मानो सोच लिया हो कि बारी-बारी नंबर आना है, टेंशन क्यों ली जाए। इसलिए सत्ताधारी पार्टी अपने हिसाब के ऊल-जुलूल कदम उठाती रहती है और विपक्ष सुस्त पड़ा ऊंघता रहता है।

Dhumalइस वक्त प्रदेश में कांग्रेस की सरकार है इसलिए शुरुआत सत्ताधारी पार्टी और इसके नेताओं से ही करूंगा। हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह का बयान आता है कि प्रदेश जुगाड़ से चला रहा हूं। उनका आरोप है कि केंद्र से पैसा नहीं आता और बड़ी मुश्किल से प्रदेश चलाना पड़ रहा है। मगर हैरानी होती है उनके इस बयान से क्योंकि वह इधर का पैसा उधर खर्च कर रहे हैं। ऐसी-ऐसी घोषणाएं की जा रही हैं जिनका कोई तुक नही ंहै। पहले से ही स्कूलों की गुणवत्ता सुधारने के बजाय नए स्कूल खोलने के ऐलान किए जा रहे हैं। वह भी तब जब आज या कल में ही शिक्षा विभाग 5 से कम छात्रों वाले 99 स्कूलों को बंद करने की सिफारिश कर चुका है। 99 स्कूल बंद करने का मतलब है कि यहां के लिए बने भवन और संसाधनों पर खर्च करोड़ों रुपया जीरो। क्यों बिना प्लैनिंग के ये ऐलान कर दिए जाते हैं राजनेताओं द्वारा? कहीं गए तो स्थानीय नेता ने मांगपत्र पकड़ाया तो ऐसे ऐलान कर दिया मानो राजा रेवड़ियां बांट रहा हो। मुख्यमंत्री या मंत्री या विधायक जनता के सेवक होते हैं और जनता के टैक्स के पैसे को खर्च करने का अधिकार रखते हैं। यह उनका पुश्तैनी धन नहीं कि इसे लुटाते रहें।

यही नहीं, पटवारखाने खोले जा रहे हैं, जब साइबर लोकमित्र केंद्रों से नक्शे लिए जा सकते हैं। कॉलेज खोले जा रहे हैं, जब मौजूदा कॉलेजों में बच्चों की संख्या कम है, क्योंकि वे प्रफेशनल कोर्स करना चाहते हैं। इन हिमाचल पर ही एक अच्छा लेख पढ़ा था जिसमें खूबसूरती से लिखा गया है कि हिमाचल के नेताओं ने हिमाचल में वक्त पर बीएड कॉलेज और इंजिनियरिंग कॉलेज और यूनिवर्सिटियां नहीं खोलीं और नतीजा यह रहा कि कई सालों तक प्रदेश के बच्चे बीएड करने के लिए, नर्सिंग करने के लिए या अन्य प्रेफेशनल कोर्सों के लिए पड़ोसी राज्यों का रुख करते रहे। मगर सबक अब तक नहीं सीखा। जहां जाओ, वहां नए कॉलेज का ऐलान कर दो। यह भी मत सोचो कि बच्चों को इससे फायदा होगा या नहीं।

न जाने जातियों के आधार पर कितने बोर्डों का ऐलान कर दिया मुख्यमंत्री ने। ब्राह्मण बोर्ड, राजपूत बोर्ड, धीमान बोर्ड, फ्लां बोर्ड ढिमकाणा बोर्ड। कुछ दिन पहले मंडी में मुख्यमंत्री जाति की राजनीति पर ज्ञान दे रहे थे। उनसे कोई पूछे कि सरकार का काम सभी जातियों का मिलकर विकास करना है तो अलग से बोर्ड बनाकर रेवड़ियां क्यों बांटी जा रही हैं? किसी जाति के भवन के नाम पर पैसा दिया जा रहा है जहां उस जाति के लोग शादी आदि के आयोजन करवा सकें और इसी तरह से अन्य जातियों को भी दिया जा रहा है। यह कदम न सिर्फ समाज में खाई पैदा करने वाला है बल्कि सरकार के पैसे की बेकद्री भी है। अरे बनवाना ही है तो एक सामुदायिक केंद्र बनाओ जहां किसी से जाति न पूछी जाए। मगर नहीं, जाति की राजनीति से बाज नहीं आना है।

कुछ दिन पहले ही इन हिमाचल पर टांडा मेडिकल कॉलेज की दुर्दशा की तस्वीरें देख सिर चकरा गया। अस्पताल के नाम पर क्या बना डाला है? प्रदेश के सबसे बड़े अस्पताल की यह दुर्दशा है तो अन्य छोटे अस्पतालों की क्या होगी। दांतों का इलाज करवाने सीएम पीजीआई जाते हैं, स्वास्थ्य मंंत्री पर फोन पर कुछ अभद्र बातों का आरोप लगता है तो दिल का दर्द होने पर पीजीआई जाते हैं, परिवहन मंत्री और आईपीएच मिनिस्टर तक इलाज के लिए प्रदेश से बाहर का रुख करते हैं। क्या इस सरकार को शर्म नहीं आती कि प्रदेश के बड़े मंत्री भी इलाज करने बाहर जाते हैं तो प्रदेश की जनता को प्रदेश के अस्पतालों के भरोसे क्यों छोड़ा है? लापरवाही का आलम यह है कि कहीं कोई ऑक्सिजन की कमी से मर जाता है तो कोई पीजीआई जाते-जाते। एक हादसा हो जाए तो रेफर करने की गेम चलती है और आखिर में पीड़ित इस दुनिया को छोड़कर चला जाता है। ये निष्ठुर नेता क्या समझेंगे जनता का दर्द? अपनों को बेवक्त किसी मामूली हादसे या बीमारी की वजह से खोना पड़े तब पता चलता है। जनता की याद्दाश्त कमजोर है। भूल जाती है कि कितने कष्ट सहे हैं। सत्ताधारी ही नहीं, आज जो विपक्ष में बैठे हैं, वे भी इस दुर्दशा के जिम्मेदार हैं क्योंकि सत्ता में वे भी रह चुके हैं।

रोजगार नहीं मिल रहा युवाओं को। बैकडोर से भर्तियां हो रही हैं। हिमाचल प्रदेश मे सब जानते है कि चिट पर भर्तियां कौन करवाता है। 4 साल तक सरकार में रहकर इन नेताओं को पता नहीं चलता कि किन विभागों में कर्मचारियों की जरूरत है। सरकार जाने वाली होती है तो भर्तियां निकालते हैं, रिटन लेते हैं और इंटरव्यू लटका देते हैं ताकि बहुत से परिवार इस लालच में सत्ताधारी पार्टी को वोट दे दें कि दोबारा आएंगे तो हमारा कुछ हो जाएगा। यही नहीं, कमिशन बोर्ड से किसी भी भर्ती का टेस्ट नहीं लिया जा रहा। प्रतिभावान युवा इंतजार करते हैं कि भर्तियां निकलेंगी तो हम टेस्ट देंगे औऱ कुछ होगा। मगर नहीं, विभिन्न तरीकों से अपने बंदों को टेंपररी रखवा दो और बाद में उन्हें पक्का कर देंगे जब 5 साल बाद सरकार आएगी। अयोग्य व्यक्ति भी तरीके से नौकरी लग जाता है और योग्य व्यक्ति हताश होता रहता है।

दरअसल इस प्रदेश के नेताओं ने लोगों के मन में सरकारी नौकरी का जहर भर दिया है। जहर इसलिए कि हर कोई सरकारी नौकरी करना चाहता है। दोष सरकार का इसलिए है, क्योंकि वह युवाओं को बताती नहीं है कि प्राइवेट सेक्टर में कितना स्कोप है और स्वरोजगार कैसे पाया जा सकता है। हिमाचल की तो खरपतवार भी करोड़ों में बिक जाए, हिमाचल में क्षमता इतनी है। अऱे युवाओं को बताओ कि कैसे खेती की जा सकती है, बागवानी की जा सकती है आधुनिक तरीकों से। लोग मशरूम उगाकर, फूलों की बागवानी से और जड़ी-बूटियां उगाकर अपनी ही नहीं बल्कि हिमाचल और भारत तक की तस्वीर बदल सकते हैं। युवाओं के कौशल यानी स्किल का विकास करना चाहिए। एक कौशल विकास निगम तो बनाया मगर उसमें भी मुख्यमत्री ने अपना बेटा बिठा दिया। उनका बेटा तो सेट हो गया मगर प्रदेश के बेटे आज भी बेरोजगारी की फ्रस्ट्रेशन में नशे की तरफ रुख कर रहे हैं।

नशे की बात आई तो यह बात किसी से छिपी नहीं है। लोग पूरी दुनिया से हिमाचल आ रहे हैं नशा करने के लिए। मिनी इजरायल कहलाने में न जाने किसी गर्व होता होगा, मुझे तो शर्म आती है। सरकार हाथ पर हाथ धरे बैठी है क्या? जब सबको पता है कि कहां से क्या मिलता है तो पुलिस तंत्र क्यों कुछ नहीं कर रहा? ऐसे में वे लोग गलत नहीं हैं जो कहते हैं कि नशे के कारोबारियों को नेताओं का संरक्षण मिला है।

पॉलिसी ऐंड प्लानिंग के नाम पर ठप हो चुका है प्रदेश। सड़कों की हालत खराब, बसों की हालत माड़ी, अस्पताल बीमार, शिक्षण संस्थानों में सुविधाओं का अभाव, विभिन्न विभागों में स्टाफ की कमी। मैं तो सोचकर हैरान होता हूं कि पिछले 5 सालों मे इस सरकार ने क्या पॉलिसी बनाई? बस ये कि 5 बीघा तक सरकारी जमीन पर कब्जे को रेगुलर कर दिया जाएगा? अपराधियों को बढ़ावा देने वाली नीति बनाई? प्रदेश की वन संपदा मैच्योर हो चुकी है और उसके दोहन का वक्त है। वरना पेड़ सड़ जाएंगे और करोड़ों का नुकसान। मगर वन मंत्री को नाचने से फुरसत नहीं। वह जरूर नाचें मगर अपना काम भी तो करें। शहरी विकास मंत्रालय की क्या उपल्बधि रही? स्मार्ट सिटी का क्रेडिट लेने वाले ये न भूलें कि यह केंद्र की योजना है और इसमें किसी न किसी शहर का नंबर तो प्रदेश में पड़ना ही था। यह आपकी अचीवमेंट नहीं है। टूरिजम में क्या नया काम हुआ, कौन सी नई जगह विकसित हुई या पहले वाली जगहों का उद्धार हो गया? आईपीएस मंत्री ने क्या काम ऐसा कर दिया कि जहां पहले लोग पानी की कमी से जूझते थे, वहां पानी आ गया? परिवहन मंत्रालय ने प्रदेश में परिवहन के वैकल्पिक साधनों के बारे में क्या नया किया?

अगर कोई मंत्रालय सही से काम नहीं करता है तो उसके मंत्री की ही नहीं, मुख्यमंत्री की भी बड़ी जिम्मेदारी होती है। क्यों मुख्यमंत्री जो सरकार का मुखिया है, अपने मंत्रि्यों को नहीं कसता। इसका मतलब साफ है कि मुख्यमंत्री कमजोर हैं। कमजोर इसलिए भी, क्योंकि 82 साल की उम्र हो चुकी है। आए दिन अजीब और अमर्यादित बयान दे रहे हैं। इससे पता चलता है कि अब इस उम्र में तो वह कुछ नया देने से रहे। अब भी वो सोचते है कि वह दौर है जब मंच से भाषण देकर घोषणा कर दो कहीं स्कूल या कॉलेज खोलने की तो जनता खुश हो जाती थी। उन्हें दरअसल पता ही नहीं है कि अब प्रदेश के युवाओं की जरूरतें क्या हैं। हिमाचल प्रदेश युवाओं से भरा प्रदेश है। इसे युवा नेता की जरूरत है जो समझे आज के दौर को। ऐसा नहीं कि दूसरी राजधानी का ऐलान करे। यह बाद मौजूदा मुख्यमंत्री और कांग्रेस पर ही लागू नहीं होती बल्कि विपक्षी पार्टी और विपक्ष के नेता पर भी लागू होती है।

4 साल तक मै हिमाचल प्रदेश के अखबारों में विधानसभा सत्र के दौरान यही पढ़ता रहा कि बीजेपी ने किया वॉकआउट, बीजेपी ने किया वॉकआउट। फालतू-फालतू बातों पर वॉकआउट। प्रेम कुमार धूमल के नेतृ्तव में बीजेपी वॉकाउट पार्टी बनकर रह गई। अरे विपक्ष का काम होता है सरकार की खबर लेना। सवाल पूछना जनता से जुड़े हुए और काम करवाना। मगर नौटंकी और करतब का अड्डा बना दिया विपक्ष ने विधानसभा को। कभी कोई विधायक खुद ही  स्पीकर की कुर्सी पर बैठ जाता तो कभी कुछ। सवाल-जवाब सत्ता और विपक्ष में विधानसभा में नहीं, मीडिया के जरिए हुए। औऱ इन सवालों मे भी जनता के मुद्दे नहीं, पर्सनल मुद्दे हावी रहे। वीरभद्र और धूमल की बयानबाजी 50 पर्सेंट अनुराग को लेकर हुई है और 50 पर्सेंट करप्शन केस को लेकर। जनता की फसलों को सुअर और बंदर खा गए, सीमेंट प्रदेश में ही बनता है फिर भी महंगा मिलता, अस्पतालों में सुविधाएं नहीं हैं, सरकारी स्कूल बदहाल हैं, सड़कें उखड़ गई हैं, रोजगार नहीं मिल रहे– ये सब मुद्दे विपक्ष उठाना ही भूल गया।

ऐसा इसलिए क्योंकि पता है इन्हें कि सरकार कुछ भी करे, अगला नंबर हमारा आना है। जब नंबर बिना कुछ किए आ जाएघा तो कुछ क्यों किया जाए। यही सोच इस प्रदेश का बेड़ा गर्क कर रही है। इन नेताओं ने इस प्रदेश को अपनी जागीर समझ लिया है औऱ जनता को ढक्कन। पहले एक जनता को बेवकूफ बनाता है फिर दूसरा। एक को अपने बेटे को सेट करने की चिंता है तो दूसरे को अपने बेटे के स्टेडियम की चिंता। कुलमिलाकर हिमाचल की राजनीति अपने बेटों के लिए जूझ रहे दो पिताओं की राजनीति बन गई है। इन लोगों ने अब तक ऐसा क्या किया प्रदेश के लिए, जिसे देखकर लगता हो कि अभी कुछ और करना बाकी रह गया है? मेरा मानना है कि दोनों पार्टियों में बदलाव की लहर बहे या न बहे, हिमाचल में बदलाव की हवा चलनी चाहिए। बाकी इन पार्टियों या नेताओं के मसर्थकों को इनका झंडा उठाना है तो उठाएं, कम से कम मैं तो इन बूढ़े और नकारा हो चुके नेताओं को अपने हिमाचल का भविष्य नहीं सौंपना चाहता। हमें ऐसे नेता चाहिए जो अपने बच्चों के लिए नहीं, हिमाचल के बच्चों के लिए लड़ें, उनके भविष्य के लिए जूझें, उनके भविष्य के लिए समर्पित हों।

(लेखक आयरलैंड में रहते हैं और ‘इन हिमाचल’ के नियमित स्तंभकार हैं। उनसे kalamkasipahi@gmail.com से संपर्क किया जा सकता है।)

पढ़ें: क्यों हिमाचल अभी तक वहां नहीं पहुंच पाया, जहां इसे होना चाहिए था

DISCLAIMER: यह लेखक के निजी विचार हैं, इन हिमाचल इनके लिए उत्तरदायी नहीं है। किसी तरह की आपत्ति या सुझाव के लिए inhimachal.in@gmail.com पर मेल करे। आप अपने लेख भी इसी आईडी पर भेज सकते हैं।

वीडियो गेम्स और क्रिकेट से पहले इन गेम्स को खेलकर बड़े होते थे बच्चे

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इन हिमाचल डेस्क।। टेक्नॉलजी के इस दौर में गेम्स अब मैदान से कंप्यूटर और स्मार्टफोन्स पर खेले जाने लगे हैं। एक्सबॉक्स, प्लेस्टेशन के इस दौर में आजकल के बच्चे अगर रियल लाइफ में जो गेम खेलते हुए दिख जाते हैं, वह है क्रिकेट। मगर क्रिकेट के अलावा भी बहुत से गेम्स थे जो हिमाचल प्रदेश, पंजाब, हरियाणा, जम्मू-कश्मीर और अन्य प्रदेशों में बच्चे चाव से खेलते थे।

शायद ही आज इन गेम्स को कोई जानता हो। सोशल मीडिया पर किसी कलाकार ने इन गेम्स को संजोने की कोशिश की है। देखें और नीचे कॉमेंट करके बताएं अगर कोई गेम छूट गया हो, जिसे आप बचपन में खेला करते थे:

1
गिट्टियां
2
गिल्ली डंडा
3
पतंगबाजी
4
पिट्ठू
5
कोटला छिपाकी, जिम्मे रात आई-ए, जिहड़ा मेरे आगे पीछे देखे उहदी शामत आई ऐ
7
लट्टू घुमाना
8
किस-किसने चलाया है गड्ढा
6
🙂
पिट्ठू
सीपी (Chindo, Stapoo or Kidi Kada)
सीपी (Chindo, Stapoo or Kidi Kada)

14 साल की इस बेटी पर डाला जा रहा था शादी का दबाव, विरोध कर पेश की मिसाल

एमबीएम न्यूज नेटवर्क, चंबा।। आप जो तस्वीर देख रहे हैं, वह है चंबा जिले की बेटी बीना कुमारी  (बदला हुआ नाम) की। 14 साल की बीना कुमारी की शादी की जा रही थी 35 साल के शख्स से। मगर बीना ने हिम्मत का परिचय देते हुए अपने अध्यापकों को सूचना दी, प्रशासन ने दखल देकर बीना को मुश्किल हालात में फंसने से बचा लिया।

नानी के दवाब के बावजूद इस छात्रा ने हार नहीं मानी थी और स्कूल में जाकर अध्यापकों को बताया कि शादी के दबाव बनाया जा रहा है। बीना ने बाल विवाह का विरोध करके मिसाल कायम की है। अब जिला प्रशासन इस बहादुर छात्रा को महिला दिवस पर सम्मानित करेगा।

बीना कुमारी ने बताया कि वह अब स्वतंत्र महसूस कर रही हैं। उसका कहना है कि वह आत्मनिर्भर बनने के साथ-साथ अपने लक्ष्यों को पूरा करेगी। बकौल बीना उसकी माता ने दो शादियां की हैं और नानी के साथ मिलकर एक 35 वर्षीय के साथ उसकी शादी तय कर दी। इसका विरोध जब किया तो नानी दवाब डालने लगी। लेकिन, बीना ने हिम्मत ना हारी और बड़ा खुलासा कर खुद को एक नई जिंदगी दी।

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बीना पढ़ाई में भी अव्वल है। जिस स्कूल में वह पढ़ती है, वहां के अध्यापकों का कहना है कि बीना पढ़ने में अच्छी है। कक्षा में अनुशासन में रहती है।

बीना तो बच गई, मगर इससे संकेत यह भी मिलते हैं कि हिमाचल के दूर-दराज इलाकों में हो सकता है कि अभी भी कम उम्र में बेटियों की शादी की जा रही हो। प्रशासन को सजग तो रहना ही चाहिए, अध्यापकों को भी चाहिए कि बच्चों को गाइड करें कि ऐसे कोई प्रेशर डाले शादी के लिए तो तुरंत सूचित करें।

घोटाले से पर्दा उठाने का दावा करने वाला कर्मचारी नेता सस्पेंड

शिमला।। कर्मचारी परिसंघ के अध्यक्ष विनोद कुमार को हिमाचल प्रदेश सरकार ने सस्पेंड कर दिया है। गौरतलब है कि कुछ दिन पहले विनोद ने प्रेस कॉन्फ्रेंस करके कुछ घोटालों से पर्दा उठाने का दावा किया था। बागवानी निदेशक डॉक्टर एच.एस. बाजवा ने शुक्रवार को विनोद कुमार के सस्पेंशन ऑर्डर जारी किए थे।

निलंबन के साथ ही सरकार ने विनोद कुमार को चंबा स्थित डेप्युटी डायरेक्टर ऑफिस से अटैच कर दिया है। खास बात यह है कि उनके सस्पेंशन से पहले ही बागवानी निदेशालय ने शिमला से उन्हें सिरमौर ट्रांसफर कर दिया था।

अपने ट्रांसफर के खिलाफ विनोद हिमाचल प्रदेश प्रशासनिक ट्रिब्यूनल चले गए। अभी मामला निपटा भी नहीं है कि उन्हें सस्पेंड कर दिया गया । अमर उजाला के मुताबिक इससे पहले साल 2013 में विनोद को पांगी स्थानांतरित किया गया लेकिन वहां से भी कोर्ट के आदेश पर ऑर्डर कैंसल कर दिया था। इसके बाद 2015 में भी उन्हें किन्नौर भेजा गया था और इस आदेश को भी वापस लेना पड़ा था।

क्या है विनोद का दावा
विनोद कुमार ने आरोप लगाया था कि गैर कृषि एवं बचत सहकारी सोसायटी में गत चार वर्षो में करीब 90 लाख रुपये का गोलमाल किया गया है। उन्होंने कहा था कि उनके पास गोलमाल के पूरे दस्तावेज हैं और जल्द इसकी चार्जशीट तैयार कर राज्यपाल को सौपेंगे।

न धूमल और न नड्डा, हिमाचल बीजेपी का नेतृत्व कर सकते हैं अजय जम्वाल

इन हिमाचल डेस्क।। हिमाचल प्रदेश में इस साल चुनाव होने वाले हैं और इसके लिए तमाम सियासी दल अभी से तैयारियों में जुट गए हैं। इस बीच हलचल बढ़ाने वाली खबर यह आ रही है कि बीजेपी को हिमाचल प्रदेश में एक और चेहरा मिलने वाला है। यह खबर नड्डा और धूमल, दोनों कैंपों के समर्थकों की धड़कनें बढ़ा सकती है क्योंकि बीजेपी संगठन में अहम भूमिका निभा रहे अजय जम्वाल हिमाचल वापसी करने वाले हैं।

‘इन हिमाचल’ को नई दिल्ली के सूत्रों से जानकारी मिली है कि इस वक्त उत्तर-पूर्वी राज्यों में बीजेपी संगठन की जिम्मेदारियां संभाल रहे मंडी जिले के अजय जम्वाल इस बार हिमाचल के विधानसभा चुनावों में सक्रिय हिस्सा लेने वाले हैं। सूत्रों का कहना है कि बीजेपी उन्हें जोगिंदर नगर विधानसभा सीट से टिकट देने वाली है। यही नहीं, अगर बीजेपी चुनावों में जीत हासिल करके सरकार बनाने में कामयाब रहती है तो जम्वाल को ही मुख्यमंत्री बनाया जाएगा।

अमित शाह के साथ अजय जम्वाल
अमित शाह के साथ अजय जम्वाल

कौन हैं अजय जम्वाल?
मंडी जिले के जोगिंदर नगर के रहने वाले अजय जम्वाल यहां के वरिष्ठ बीजेपी नेता रहे कर्नल गंगा राम जम्वाल के बेटे हैं।अजय जम्वाल ने साल 1984 में मंडी के वल्लभ राजकीय कॉलेज में ग्रैजुएशन की और फिर एचपीयू शिमला में 1989 को एबीवीपी के प्रचारक के रूप में राजनीतिक सफर शुरू किया। सोलन से उन्होंने शुरुआत की और करीब 7 साल तक यहां रहे। 1991 में अरुणाचल प्रदेश में तीन साल तक रहे और 1995 में आरएसस (संघ) में आकर लेह-लद्दाख में प्रचारक रहे।

इसके बाद सक्रिय राजनीति में एंट्री हुई और बीजपी ने उन्हें जम्मू-कश्मीर का संगठन मंत्री बनाया। यहां बीजेपी को 16 सीटें जीतने में कामयाबी मिली। बाद में पंजाब में आए और करीब 7 साल तक संगठन मंत्री की जिम्मेदारियां संभालीं। बीजेपी-अकाली सरकार यहां रिपीट करने में कामयाब रही। फिर अरुणाचल में 3 साल का अनुभव होने की वजह से असम चुनाव से पहले उन्हें नॉर्थ-ईस्ट की जिम्मेदारी दी गई। नतीजा यह रहा कि आज असम मे बीजेपी सरकार है।

अजय जम्वाल के पक्ष में हैं बहुत सी बातें
गौरतलब है कि मोदी और अमित शाह के युग का आगाज होने के बाद से हुए विधानसभा चुनावों में बीजेपी चुनाव से पहले किसी को भी सीएम कैंडिडेट घोषित करने से बचती रही है। साथ ही जीत होने के बाद नए चेहरों को मुख्यमंत्री बनाया गया है और वह भी उन लोगों को, जिनकी संघ और संगठन से करीबी रही है। हरियाणा, झारखंड और महाराष्ट्र में यही देखने को मिला है। हिमाचल को लेकर भी बीजेपी अभी तक इसी नीति पर चलती हुई दिख रही है, क्योंकि अभी तक यहां भी किसी को सीएम कैंडिडेट घोषित करने को लेकर कोई संकेत नहीं दिया गया है। इस बात को लेकर धूमल खेमा पहले से ही चिंता में दिख रहा है।

अजय जम्वाल के साथ सतपाल सत्ती
अजय जम्वाल के साथ सतपाल सत्ती

पिछले दिनों हिमाचल प्रदेश आए पीएम मोदी ने कहा था कि हिमाचल को ऐसा नेतृत्व चाहिए जो सरकार एक बार आए तो कम से कम 10-15 साल टिके। माना जा रहा है कि उनका इशारा पार्टी के मौजूदा नेतृत्व की तरफ था, क्योंकि हिमाचल में न तो शांता कुमार और न ही प्रेम कुमार धूमल सरकार को रिपीट करवा पाए हैं। ऐसे में कयास लगाए जा रहे थे कि जेपी नड्डा केंद्रीय मंत्री पद छोड़कर हिमाचल आ सकते हैं और उन्हें निर्णायक भूमिका दी जा सकती है। मगर ताजा डिवेलपमेंट बताते हैं कि नड्डा केंद्र में ही रहेंगे और धूमल को भी यह जिम्मेदारी नहीं दी जाएगी। ऐसा इसलिए क्योंकि 70 साल से ज्यादा उम्र के नेताओं को पार्टी अब अहम पद देने से बच रही है। ऐसा इसलिए किया जा रहा है ताकि युवा नेतृत्व तैयार किया जा सके जो आने वाले 15-20 साल तक जिम्मेदारी निभाए। ये सब बातें जम्वाल के पक्ष में जाती हैं।

धूमल कैंप को लगेगा डबल झटका
जम्वाल के हिमाचल आने की खबर धूमल कैंप के लिए इसलिए भी झटका देने वाली है क्योंकि एक तो जम्वाल के आने से धूमल के सीएम बनने की संभावनाएं खत्म हो जाएंगी। साथ ही अजय जम्वाल जोगिंदर नगर से चुनाव लड़ सकते है। मौजूदा समय में जोगिंदर नगर से प्रेम कुमार धूमल के समधी (अनुराग ठाकुर के ससुर) और वरिष्ठ बीजेपी नेता गुलाब सिंह ठाकुर बीजेपी के विधायक हैं। ऐसे में उनकी जगह जम्वाल का चुनाव लड़ना बड़ा परिवर्तन होगा। गौरतलब है कि गुलाब सिंह ठाकुर भी उम्रदराज हो चुके हैं और पिछले साल उनके बेटे सोमेंद्र ठाकुर जिला परिषद का चुनाव भी नहीं जीत सके थे। ऐसे में पार्टी उनकी जगह कोई यंग चेहरा देना चाहेगी और परिवाद के ठप्पे से भी बचना चाहेगी।

जोगिंदर नगर में अजय जम्वाल के चुनाव लड़ने के लिए हालात काफी अनुकूल हैं, क्योंकि उनके पिता सम्मानित समाजसेवी रहे हैं। साथ ही अजय छोटे भाई पंकज जम्वाल लगातार यहां सक्रिय हैं। पंकज इस वक्त मंडी जिले के बीजेपी महामंत्री हैं। स्टूडेंट पॉलिटिक्स में एबीवीपी से जुड़े रहे पंकज अब बीजेपी संगठन में हैं और मंडी लोकसभा सीट से बीजेपी सांसद रामस्वरूप शर्मा के करीबी हैं। 2014 से जोगिंदर नगर हलके में रामस्वरूप शर्मा जहां-जहां गए हैं, पंकज जम्वाल उनके साथ गए है। उस वक्त उनके इस कदम के राजनीतिक मायने भले ही समझ न आ रहे हों, मगर अब साफ हो रहा है कि उनकी यह कवायद थी जनता से सीधा संपर्क बनाने की ताकि बड़े भाई अजय के लिए रास्ता आसान किया जाए।

…मगर सीट निकालना हो सकता है मुश्किल
लेकिन यह राह आसान नहीं है क्योंकि गुलाब सिंह ठाकुर को टिकट नहीं मिला तो वह मुश्किलें खड़ी कर सकते हैं। गुलाब सिंह ठाकुर काफी पॉप्युलर नेता हैं और वोटरों का एक बड़ा हिस्सा उनका कट्टर समर्थक है। ऐसे में गुलाब सिंह को विश्वास में लिए बिना सीट निकालना मुश्किल है। गुलाब सिंह का अगर टिकट कटता है तो उन्हें पता है कि उनकी परिवार की राजनीति के युग का भी अंत हो सकता है, इसलिए वह बड़ा कदम उठा सकते हैं।

फिर नड्डा और धूमल क्या होगा?
लंबे समय से चर्चा चल रही है कि धूमल सक्रिय चुनाव में हिस्सा न लेकर पार्टी के लिए प्रचार करेंगे और चुनाव के बाद उन्हें राज्यपाल बनाकर कहीं भेजा जा सकता है। अगर केंद्र से इस तरह का कोई संकेत मिलता है तो धूमल उसे मानने में आनाकानी नहीं कर सकते, क्योंकि उन्हें पता है कि बेटे अनुराग ठाकुर को अभी कई साल राजनीति करनी है, ऐसे में पार्टी के साथ चलना ही अच्छा होगा। उधर नड्डा का इंतजार कर रहे समर्थकों के हाथ भी कुछ नहीं लगेगा। सूत्रों का कहना है कि पीएम मोदी चाहते हैं कि नड्डा केंद्रीय मंत्रिमंडल में ही रहें और साथ में दिल्ली में बैठकर संगठन की जिम्मेदारियों को भी निभाएं। ऐसे में अजय जम्वाल को हिमाचल लाने के कदम पीछे नड्डा भी हो सकते हैं, क्योंकि उनके जम्वाल से अच्छे रिश्ते हैं। केंद्र मे रहकर नड्डा हमेशा चाहेंगे कि उनका करीबी प्रदेश में शीर्ष पद पर हो।

बिलासपुर कांड: घायलों ने दी कांग्रेस MLA बंबर ठाकुर को क्लीन चिट

बिलासपुर।। पिछले हफ्ते बिलासपुर शहर के डियारा में दो गुटों के बाद हुई मारपीट में विधायक बंबर ठाकुर के बेटे पर भी आरोप लगा था। मगर इस मामले में अब नया मोड़ आ गया है। घटना में घायल हुए युवकों और उनके परिजनों ने विधायक बंबर ठाकुर या उनके बेटे को क्लीन चिट दे दी है।

हिंदी अखबार जागरण की रिपोर्ट के मुताबिक जख्मी युवकों और उनके परिजनों का कहना है कि विधायक और उनके बेटे का इस वारदात से कोई लेना-देना नहीं है। नका कहना है कि इस मामले में नशे का कारोबार करने वाला एक शख्स ही मुख्य आरोपी है। उन्होंने प्रशासन और सरकार से इस शख्स को शहर से बाहर करने की मांग की है।

बिलासपुर सदर से कांग्रेस विधायक बंबर ठाकुर

बिलासपुर सदर से कांग्रेस विधायक बंबर ठाकुर

खबर के मुताबिक शनिवार को विद्युत विश्राम गृह बिलासपुर में आयोजित प्रेस कॉन्फ्रेंस में मारपीट में जख्मी रोहित सोनी, अंकित टंडन की मां बीना टंडन, पिता अशोक कुमार और बबली आदि ने बताया कि मारपीट मामले में विपक्षी दल बिना वजह विधायक और उनके बेटे के नाम को घसीट रहे हैं, जबकि मारपीट के मुख्य आरोपी और उसके साथी शहर में बिना किसी डर के घूम रहे हैं।

सरकारी जमीनों के कब्जाधारियों के लिए नीति बनाएगी वीरभद्र सरकार

शिमला।। जिस साल चुनाव होना होता है, उस साल सरकारें लोगों को लुभाने के  लिए कई तरह के प्रलोभन भरे फैसले लेती है। मगर जिस तरह का फैसला हिमाचल प्रदेश सरकार ने लिया है, वह चौंकाने वाला है। प्रदेश सरकार हिमाचल प्रदेश सरकारी भूमि पर स्वामित्व अधिकार प्रदान करने के लिए योजना बनाएगी ताकि सरकारी जमीन पर कब्जा करने वाले हजारों कब्जाधारकों को राहत पहुंचे।

शुक्रवार को हुई कैबिनेट की बैठक में इस स्कीम को बनाने की मंजूरी दे दी गई है। अमर उजाला की रिपोर्ट के मुताबिक इसके साथ ही सरकारी भूमि पर कब्जों को लेकर गठित की गई हाईपावर कमिटी की सिफारिशों को भी मंजूरी दे दी गई है। अब सरकार 28 फरवरी को हाईकोर्ट में इस पॉलिसी और स्कीम को पेश कर सकती है।

VBS%2B2.jpgगौरतलब है इससे पहले भी प्रदेश सरकार ने अवैध कब्जों को मान्यता देने का ऐलान किया था, मगर प्रदेश हाई कोर्ट ने सरकार को इसके लिए फटकार लगाई थी। विस्तृत खबर आप यहां क्लिक करके पढ़ सकते है