लेख: अपने फायदे के लिए हिमाचल बांटने से बाज आएं राजनेता

(यह लेख 30 अगस्त, 2015 को पहली बार छपा था। जैसे-जैसे हिमाचल में चुनाव नजदीक आते जा रहे हैं, हिमाचल को अपर और लोअर में बांटने की कोशिश शुरू हो गई है। ऐसे में एक बार फिर इस आर्टिकल को फेसबुक पर शेयर कर रहे हैं। लेख में मौजूद कुछ बातों का संदर्भ अब बेशक बदल चुका होगा, मगर भाव वही हैं।)

आई.एस. ठाकुर।। क्या हिमाचल प्रदेश एक नहीं हो पाएगा? यह सवाल उन लोगों के लिए चौंकाने वाला हो सकता है, जिन्हें लगता होगा कि हिमाचल तो एक ही है। वे मासूम नहीं जानते कि हिमाचल प्रदेश ठीक उसी तरह से बंटा हुआ है, जिस तरह से भारत एक होने के बावजूद बंटा हुआ है। जी हां, बंटे होने का अर्थ सांस्कृतिक या भौगोलिक विविधता नहीं है। इसका अर्थ है- क्षेत्रवाद।

ज्यादातर लोग जानते हैं कि हिमाचल प्रदेश की राजनीति ने इसे ‘अपर हिमाचल’ और ‘लोअर हिमाचल’ नाम के दो हिस्सों में बांट दिया है। माना जाता है कि यह सिलसिला उसी वक्त शुरू हो गया था, जब डॉक्टर यशवंत परमार के बाद सत्ता अगली पीढ़ी के हाथों में गई। आरोप लगे वीरभद्र पर। कहा जाता है कि उन्होंने अपर हिमाचल यानी शिमला वह आसपास के जिलों को प्राथमिकता दी। वहां के लोगों को नौकरियां दीं, प्रॉजेक्ट्स वहां दिए और योजनाओं को वहां सही से लागू करवाया। आरोप यह भी कि उन्होंने लोअर हिमाचल यानी कांगड़ा, मंडी, कुल्लू, हमीरपुर, बिलासपुर, ऊना और चंबा आदि के साथ भेदभाव किया।

इसके बाद शांता कुमार को ऐसे मुख्यमंत्री के तौर पर याद किया जाता है, जिन्होंने संतुलन बनाया। अपर और लोअर हिमाचल का टंटा खत्म करके प्रदेश को एक नजर से देखा। मगर उनके जाने के बाद वही सिलसिला चालू रहा। वीरभद्र अपर हिमाचल को तरजीह देते रहे और उसके बाद आए बीजेपी के प्रेम कुमार धूमल पर मैदानी इलाकों को प्राथमिकता देने का आरोप लगा। हालांकि इस कथित लोअर हिमाचल के लोग मानते हैं कि धूमल के आने के बाद से उनकी भी सुध ली जाने लगी है। उनका कहना है कि वीरभद्र भी अब पूछने लगे हैं, वरना पहले वो ऊपरी हिमाचल वालों को ही सिर पर बिठाते थे।

गली-चौराहों, नुक्कड़ों और अब सोशल मीडिया पर भी यह चर्चा होती है कि हिमाचल दो हिस्सों में बंटा है। एक अपर हिमाचल, जो वीरभद्र का दुलारा है और लोअर हिमाचल, जिसकी चिंता धूमल को रहती है। कहा तो यहां तक जाता है कि धूमल ने इस लोअर हिमाचल के बूते ही प्रदेश पर राज किया है। वरना धूमल न तो विज़नरी दिखते हैं और न ही इतने प्रभावी वक्ता हैं कि जनता का अपनी बातों या रवैये से दिल जीत सकें।

यह तो रही पुरानी पीढ़ी की बात। उस पीढ़ी की, जो एक अवसर के चलते राजनीति में आई। जी हां, उनका लक्ष्य प्रदेश की राजनीति में आकर प्रदेश की सेवा करना नहीं था। वे अचानक से राजनेता बन गए। भले ही वे नाकाबिल रहे हों, मगर वे कई सालों तक राजनीति में छाए रहे क्योंकि लायक लोगों ने या तो उन्हें चुनौती देने की हिम्मत नहीं दिखाई या फिर वे उस लेवल तक पहुंच ही नहीं पाए। मगर अब प्रदेश अगली पीढ़ी के राजनेताओं की तरफ देख रहा है। मगर लक्षण ठीक नहीं हैं।

अगली और युवा पीढ़ी के नेताओं की बात करें तो कौन दिखाई देता है? अनुराग ठाकुर (धूमल के बेटे), विक्रमादित्य (वीरभद्र के बेटे), चेतन बरागटा (नरेंद्र बरागटा के बेटे), गोकुल बुटेल (बुटेल खानदान से), नरेंद्र अत्री (अनुराग के साथी), यदोपति ठाकुर (विक्रमादित्य के साथी)… इनके अलावा सुरेश चंदेल से लेकर गुलाब सिंह ठाकुर और अन्य कई नेताओं के बेटे ही नजर आते हैं। इनमें से ज्यादातर की योग्यता यह है कि वे नेता पुत्र हैं और बाकियों की यह है कि वे नेतापुत्र के करीबी होकर यहां पहुंचे हैं। इनमें से ज्यादातर को अपनी योग्यता अभी साबित करनी है।

क्या आपको हिमाचल प्रदेश की राजनीति में कोई ऐसा युवा चेहरा नजर आता है जो अपनी बातों, अपने विज़न या अन्य किसी योग्यता की वजह से जमीन से उठकर छाया हुआ है? जवाब ‘न’ में मिलेगा। नेता पुत्र होना अपराध नहीं है। अगर आप नेता के बेटे हैं तो आपको संवैधानिक अधिकार है कि कोई भी पेशा चुनें और राजनीति भी उसमें से एक है। मगर चिंता का विषय अलग है। अगर हिमाचल प्रदेश के पास यही विकल्प बचे हैं तो प्रदेश का भविष्य बहुत अच्छा होगा, ऐसा भ्रम नहीं पालना चाहिए।इनमें से कोई भी नेता ऐसा नहीं है, जो क्षेत्रवाद से उठकर प्रदेश हित की बात करता हो। किसी को फ्लां जगह पर एम्स चाहिए, किसी को फ्लां जगह पर आईआईटी चाहिए, किसी को फ्लां शहर स्मार्ट सिटी चाहिए, किसी को वहां पर स्टेडियम चाहिए तो किसी को वहां पर सेंट्रल यूनिवर्सिटी चाहिए। वहां का मतलब है- अपने चुनाव क्षेत्र में।

हम वृहद होकर नहीं सोच सकते क्या? हिमाचल प्रदेश का सौभाग्य है कि यहां के लोग शांत हैं और आबादी भी कम है। यहां के लोग सक्षम हैं और आत्मसम्मान के साथ जीने वाले हैं। वे अपने लिए ही नहीं, प्रदेश और देश के लिए भी जान छिड़कते हैं। उनके अंदर कभी ऐसी भावना नहीं आती कि फ्लां जगह पर ऐसा है, फ्लां जगह पर वैसा है। मगर बार-बार राजनेता उन्हें अहसास दिलाते हैं कि आप अपर हिमाचल के हैं और आप लोअर के। अगर मंडी में आईआईटी बनता है तो अच्छी बात है। एम्स अगर बिलासपुर में खुलता है तो अच्छी बात है। भला तो प्रदेश का ही हो रहा है न? फायदा तो सभी लोगों को होगा न? ऐसा तो नहीं होगा कि बिलासपुर में एम्स बनेगा तो बिलासपुर के मरीजों को सोने के बिस्तर पर रखा जाएगा और बाकी जिले के मरीज़ों को लकड़ी के तख्ते पर। फिर हल्ला क्यों?

पहले इन राजनेताओं ने आईआईटी को लेकर हल्ला किया, फिर सेंट्रल यूनिवर्सिटी को लेकर, फिर एम्स को लेकर और अब स्मार्ट सिटी को लेकर कोहराम मचा दिया है। भैया, जब साफ है कि प्रदेश से फिलहाल एक ही स्मार्ट सिटी का नॉमिनेशन होना है तो हल्ला क्यों? शिमला के एक युवा बीजेपी नेता पूछते हैं कि शिमला को किस आधार पर नहीं लिया गया। ठीक है, उनकी आरटीआई का जवाब जरूर मिलना चाहिए। जानकारी छिपाई नहीं जानी चाहिए। वैसे भी प्रियंका वाड्रा को लेकर डाली गई आरटीआई की जानकारी देने में भी आनाकानी की गई थी। मगर इससे इतर सवाल उठाने वाले नेता को समझना चाहिए कि शिमला सिलेक्ट नहीं हुआ तो पहाड़ टूट गया क्या? वह पढ़े-लिखे हैं और यह भी जानते होंगे कि शिमला को AMRUT स्कीम के तहत केंद्र की एड मिलना शुरू हो गई है। उन्हें यह भी होना चाहिए कि यह स्कीम स्मार्ट सिटी योजना से कमतर नहीं है। तो क्या पहले से ही मदद पा रहे शिमला को दोबारा स्मार्ट सिटी में डाल दिया जाए?

स्मार्ट सिटी के लिए 100 शहर चुने जाने थे, मगर ऐलान 98 का हुआ। 2 शहरों को इसलिए रिजेक्ट कर दिया गया क्योंकि वे कैटिगरी में आते ही नहीं थे? क्या हिमाचल सरकार को AIIMS जैसी ही गलती दोहरानी चाहिए थी? गौरतलब है कि केंद्र ने हिमाचल सरकार से पूछा था कि एम्स के लिए जगह बताओ। तब वीरभद्र सरकार ने आलस में आकर राजनीतिक पचड़े से बचने के लिए कहा था कि टांडा मेडिकल कॉलेज को ही एम्स में बदल दो। यह तो भला हो कि बीजेपी के जे.पी. नड्डा स्वास्थ्य मंत्री थे जिन्होंने दोबारा लेटर भिजवाया कि नए संस्थान के लिए जगह ढूंढो, किसी पुराने संस्थान को अपग्रेड नहीं करना है। तब जाकर हिमाचल को एम्स मिला, वरना हिमाचल रह जाता बिना एम्स के। स्मार्ट सिटी के लिए किस आधार पर चयन हुआ, किस पर नहीं, यह तकनीकी मामला है। मगर एम्स जैसा ही मामला शिमला को दोबारा भेजे जाने पर होता।

जो शहर पहले ही AMRUT से ऐड ले रहा है, उसे स्मार्ट सिटी के लिए भी क्यों भेजा जाए? वह भी सिर्फ इसलिए, क्योंकि ऐसी मांग करने वाले शिमला से हैं? अगर वह नेता पक्षपाती नहीं होते तो उनका सवाल वृहद होता। वह पूछते कि धर्मशाला क्यों चुना गया, मंडी या शिमला क्यों नहीं। मगर उनकी चिंता सिर्फ शिमला को लेकर थी। उनकी आरटीआई में सिर्फ शिमला का जिक्र था। साफ पता चलता है कि उनका झुकाव शिमला के प्रति है।अपने इलाके के प्रति झुकाव होना भी चाहिए, मगर प्रदेश हित उससे ऊपर होना चाहिए और देश का हित सबसे ऊपर।

सवाल पूछना सभी का हक है और इससे कोई नहीं रोक सकता। मगर इसे लेकर माहौल बनाने के पीछे अक्सर लोगों की इच्छा खबरों में छाने की और लोगों से सहानुभूति बटोरने की होती है। इस मामले में भी ऐसा ही लग रहा है। ठीक इसी तरह से कुछ दिन पहले मुख्यमंत्री के साथ अहम पद पर तैनात कांगड़ा के युवा नेता ने सवाल उठाया था कि हिमाचल प्रदेश की सरकारें निकम्मी रही हैं कि मेडिकल सुविधाएं नहीं जुटा पाईं। उनका इशारा स्वास्थ्य मंत्री कौल सिंह के प्रदेश के बाहर एक अस्पताल में सर्जरी करवाने को लेकर था। सवाल अच्छा था, मगर वह भी जनता के बीच छाने का का मामला लग रहा था। क्योंकि वह भूल गए कि ज्यादातर समय उनकी अपनी ही सरकार हिमाचल में सत्ता में रही है।

प्रदेश के युवा नेताओं को समझना होगा कि अब वे लोग उसमें कामयाब नहीं हो पाएंगे। पावरफुल नेता पुत्रों के कुछ समर्थक ‘भाई जी जिंदाबाद’ के नारे लगा देंगे, मगर पढ़ी-लिखी जनता उल्लू नहीं बनेगी। वह सवाल करेगी लॉजिक के आधार पर। वैसे भी अगर किसी को चयन का क्राइटीरिया जानना है तो केंद्र में डालिए न RTI, योजना केंद्र की है। केंद्र यानी बीजेपी सरकार से पूछिए कि हिमाचल को एक ही राज्य का कोटा क्यों दिया गया। मगर नहीं, बीजेपी के युवा नेता अपनी ही सरकार से कैसे सवाल पूछें, पोजिशन खराब हो जाएगी। चलो हिमाचल सरकार को घेरा जाए।

किसी से कोई व्यक्तिगत समस्या नहीं है। दरअसल समस्या हर उस शख्स से होनी चाहिए जो प्रदेश को एक इकाई के तौर पर नहीं देखता। जो अपर हिमाचल, लोअर हिमाचल, कांगड़ी, मंडयाली, हमीरपुरिया आदि के आधार पर बांटने की कोशिश करे, उसे तुरंत खारिज कर दिया जाना चाहिए। हमें डॉक्टर परमार की उस कल्पना को पूरा करना होगा, जो उन्होंने हिमाचल के लिए की थी। वही एकजुट हिमाचल एक मजबूत भारत के निर्माण में अपनी भूमिका सुनिश्चित कर सकता है।

(लेखक मूलत: हिमाचल प्रदेश के हैं और पिछले कुछ वर्षों से आयरलैंड में रह रहे हैं। उनसे kalamkasipahi@gmail.com पर संपर्क किया जा सकता है।)

नोट: आप भी अपने लेख inhimachal.in@gmail.com पर भेज सकते हैं। हमारे यहां छपने वाले लेखों के लिए लेखक खुद जिम्मेदार है। ‘इन हिमाचल’ किसी भी वैचारिक लेख की बातों और उसमें दिए तथ्यों के प्रति उत्तरदायी नहीं है। अगर आपको कॉन्टेंट में कोई त्रुटि या आपत्तिजनक बात नजर आती है तो तुरंत हमें इसी ईमेल आईडी पर मेल करें।

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