‘हरियाणा की बसों जैसी क्यों नहीं हो सकतीं HRTC बसों की सीटें?’

इन हिमाचल डेस्क।। हिमाचल प्रदेश की सरकारी बसों को लेकर लोगों की पुरानी शिकायत रही है कि इनमें लेग रूम नहीं होता यानी टांगों के पास जगह कम होती है। सीटें इतनी पास-पास हैं ज्यादातर बसों में कि सामान्य कद-काठी वाले आदमी के भी घुटने भी अगली सीट से टच हो जाते हैं। पहाड़ों की सड़कें वैसे भी मोड़ वाली होती हैं इसलिए मोड़ आने पर इतना प्रेशर पड़ता है कि कभी घुटनों की कैप (कटोरी) भी फ्रैक्चर हो सकती है। छोटी दूरी की यात्रा करनी हो, तब तो काम चलाया जा सकता है, मगर लॉन्ग रूट की बसों में भी यही समस्या देखने को मिलती है। दिल्ली से हिमाचल तक आना-जाना सजा बन जाता है। वॉल्वो बसों को छोड़ दें तो अन्य बसों, टाटा एसी और सेमी डीलक्स तक में घुटनों की शामत आ जाती है। यही नहीं, इन सेमी डीलक्स बसों में अगर कोई रिक्लाइनर सीट की बैक पीछे कर दे तो वह पीछे वाले के पेट में धंस जाती है। कई बार तो यात्री इस चक्कर में एक-दूसरे से मारपीट पर उतारू हो जाते हैं।

लोग इतने समय से इन बसों को लेकर शिकायत कर रहे हैं मगर कोई भी ध्यान देता नहीं दिख रहा। सरकार चाहे बीजेपी की रही हो या कांग्रेस की, हर कोई इस बात को नजरअंदाज करता रहा है और यात्रियों को झेलना पड़ता है। यात्री अक्सर सवाल उठाते हैं कि HRTC की बसों के साथ ही ऐसी समस्या क्यों आती है, जबकि हरियाणा रोडवेज की बसों में न सिर्फ लेगरूम काफी होता है बल्कि वे कम्फर्टेबल भी होती हैं। फिर क्यों हिमाचल में ऐसी बसें नहीं चलाई जा सकतीं? इस बारे में सोशल मीडिया पर ऐक्टिव रहने वाले हिमाचल के परिवहन मंत्री से भी लोगों ने फेसबुक लाइव पर सवाल पूछे थे। उस दौरान मंत्री ने कहा था कि आगे जो भी बसें खरीदी जाएंगी, उनमें इस बात का ख्याल रखा जाएगा। मगर यात्रियों की शिकायत है कि पिछले दिनों HRTC के बेड़े में जो बसें नई जुड़ी हैं, इनके साथ भी यही समस्या है। अब लोगों का गुस्सा सोशल मीडिया पर जाहिर हो रहा है।

एक फेसबुक पेज ने 21 अप्रैल को पोस्ट डाली है, ‘हिमाचल की #HRTC बसों में लॉन्ग रूट पर सफर करना सच में मुस्किल है, बसें इतनी छोटी और सीट इतनी तंग बनाई गई हैं एसा लगता है जैसे डब्बे में पैक कर दिया हो 🙂 उपर से जहां ये बसें खाना खाने रूकती है वहाँ हमें बुरी तरह लुटा जाता है कोई सुनने वाला नहीं जो सवारी खाने के ज्यादा रेट पर बहस करती है उसको ढाबे वाले गुंडे पीटने पर उतारू हो जाते हैं जिन अधिकारियीं ने इनको बनाने का आईडिया दिया हो उनको हर महीने जरूर 10 घंटे बैठ के इन बसों में सफर के लिए बोला जाए और इन ढाबों पर इन अधिकारीयों को बासी और महंगा खाना खिलाया जाए घुटने छिल जाते हैं रिश्तेदार के यहाँ पहुँचने से पहले।’ (नीचे देखें पोस्ट)

2 दिनों के अंदर करीब डेड़ हजार लोग इसे लाइक कर चुके हैं और 600 के करीब शेयर कर चुके हैं। लोगों ने कॉमेंट करके अपने अनुभव साझा किए हैं और बताया है कि उन्हें भी समस्या होती है।

यह वाकई गंभीर समस्या है और इस ओर ध्यान दिया जाना चाहिए। In Himachal का भी मानना है कि HRTC को चाहिए कि यात्राओं को सुरक्षित बनाने के साथ-साथ सुविधाजनक भी बनाना चाहिए। कई बार 2 दिन की छुट्टी बड़ी मुश्किल से मिलती है बाहर काम कर रहे या पढ़ रहे लोगों को घर जाने के लिए। अगर वे HRTC की बसों से जाते हैं तो कमर और टांगों की हालत दर्द के मारे खराब हो जाती है और सही से नींद भी नहीं आती। ऐसे में घर की यात्रा परेशानी का सबब बन जाती है।

रिवालसर: अब तक 40 टन मछलियां मरीं, बचाव कर्मी बीमार

मंडी।। रिवालसर झील में अब तक करीब 40 टन मछलियां प्रदूषण की वजह से दम तोड़ चुकी हैं। पानी में ऑक्सिजन की कमी हो जाने की वजह से यह सब हो रहा है। शनिवार को भी झील से मछलियों की 5 ट्रॉलियां निकाली गईं। इसबीच मछलियों को बचाने में जुटे करीब आधा दर्जन कर्मचारी बीमारी की चपेट में आ गए हैं। खबर है कि उल्टी-दस्त की से जूझ रहे इन लोगों ने अस्पताल का रुख नहीं किया और प्राइवेट क्लीनिक से मिली दवाई से काम चल रहे हैं। अब पूरे इलाके में महामारी फैलने का खतरा भी मंडराने लगा है।

गौरतलब है कि दो हफ्ते पहले अचानक झील का रंग बदलने लगा था और पीला हो गया था। इसके बाद से मछलियों के मरने का सिलसिला शुरू हो गया था अब मत्स्य पालन विभाग जिंदा बची मछलियों को प्राकृतिक स्रोतों में डालकर उन्हें बचाने की कोशइश में लगा है। मरी मछलियों को निकालकर उन्हें जमीन में दबाने के लिए करीब 90 लोग लगे हुए हैं। लोग भी अपने स्तर पर हर संभव योगदान दे रहे हैं।

इस बीच मंडी के एक कारोबारी सुधांशु कपूर ने रिवालसर झील में जिंदा मछलियों को बचाने के लिए कृत्रिम ऑक्सीजन के 30 सिलिंडर अपनी ओर से प्रशासन को दिए हैं। इसके अलावा आईपीएच और अग्निशमन विभाग लगातार झील में शुद्ध पानी डाल रहा है ताकि जिंदा मछलियों को बचाया जा सके।

कैदियों का वीडियो बनाने वाले पुलिकर्मी को जेल सुपरिटेंडेंट ने बताया अनुशासनहीन

शिमला।। मॉडल सेंट्रल जेल कंडा (शिमला) में कैदियों द्वारा फेसबुक इस्तेमाल करने के मामले में नई जानकारी सामने आई है। जेल प्रशासन का कहना है कि वीडियो बनाने वाला पुलिसकर्मी अनुशासनहीन है और पहले भी उसपर विभाग कार्रवाई कर चुका है। गौरतलब है कि सस्पेंड किए गए कॉन्स्टेबल भानु पराशर ने फेसबुक पर एक वीडियो डाला है जिसमें दो कैदी फेसबुक पर प्रोफाइल पिक्चर लगाते नजर आ रहे हैं। मगर जेल के सुपरिटेंडेंट शेर चंद का कहना है कि ये कैदी फेसबुक पर नहीं, बल्कि वेबसाइट पर काम कर रहे थे। मगर जेल के सुपरिटेंडेंट का यह दावा झूठा साबित होता नजर आ रहा है।

हिमाचल प्रदेश के न्यूज पोर्टल ‘समाचार फर्स्ट’ की रिपोर्ट के मुताबिक सस्पेंड किए गए कॉन्स्टेबल भानु पराशर ने आरोप लगाए हैं कि कैदी जेल में कई स्तर पर सुरक्षा से खिलवाड़ हो रहा है। कैदी संवेदनशील जगहों पर पहुंच जाते हैं और अधिकारियों के कैबिन तक आ जाते हैं। इंटरनेट, मोबाइल फोन और दूसरे गैजट्स का धड़ल्ले से इस्तेमाल हो रहा है। यहां तक कि कैदी बिना परोल भी जेल से बाहर जाते हैं। जेल के बाहर इसके लिए कई गाड़ियां भी खड़ी रहती हैं।

पढ़ें: अधिकारी के कमरे में फेसबुक यूज कर रहे कैदियों का वीडियो बनाने वाला पुलिसकर्मी सस्पेंड

भानु का कहना है कि उसने इस मामले की शिकायत वरिष्ठ अधिकारियों से भी की मगर उसके बदले सस्पेंशन लेटर थमा दिया गया। भानु का कहना है कि इस दौरान मुझे प्रताड़ित भी किया गया और गालियां तक दी गईं। यहां तक फेसबुक पर पोस्ट्स लाइक करने वाले सहयोगी पुलिकर्मियों को भी तंग किया जा रहा है। भानु का कहना है कि इस जेल की बात नहीं है, अन्य जगहों पर भी वह इस तरह की खामियों को लेकर आवाज उठाते रहे हैं मगर बदले में कार्रवाई ही झेलनी पड़ी है। 5 महीने से तनख्वाह तक रोकी गई है।

भानु पराशर

‘समाचार फर्स्ट’ ने जेल सुपरिटेंडेंट शेर चंद से भी बात की। उनका कहना था कि सारे आरोप निराधार हैं और आरोप लगाने वाला पुलिसकर्मी खुद ही अनुशासनहीन है। उसके खिलाफ कई बार विभागीय कार्रवाई की जा चुकी है। शेर चंद ने कहा कि इस कर्मी ने नाम में दम कर रखा है। जब पोर्टल ने शेर चंद से पूछा कि क्या जेल मैनुअल में कैदियों को सोशल मीडिया यूज करने की इजाजत देने का प्रावधान है, तो शेर चंद ने इनकार किया मगर कहा कि वे सोशल मीडिया नहीं, बल्कि हमारी वेबसाइट पर काम कर रहे थे। जब पूछा गया कि वेबसाइट पर स्टाफ क्यों नहीं काम कर रहा तो शेर चंद ने कहा कि अच्छे कैदियों को प्रोत्साहित करने के लिए हम कई स्तर पर कार्य चलाते हैं। (नीचे देखें वीडियो)

शेर चंद का यह दावा झूठ साबित होता दिखता है, क्योंकि साफ दिख रहा है कि वे कैदी फेसबुक पर एक बच्चे की फोटो को प्रोफाइल पिक्चर सेट कर रहे थे। वे दोनों अकेले ही थे और वीडियो बनाने वाले ने जब उनसे पूछा तो सकपका गए।

कैदी फेसबुक ही यूज कर रहे थे। यह देखें स्क्रीन पर क्या खुला है।

प्रश्न यह है कि दोनों कैदी अगर पढ़े लिखे थे और उनसे वेबसाइट के लिए भी सेवा ली जा रही थी, तो उस वक्त निगरानी के लिए कोई औऱ वहां मौजूद क्यों नहीं था? हैं तो आखिर कैदी ही, फिर क्या गारंटी की वे इंटरनेट से किसी साजिश को अंजाम नहीं देंगे या किसी अन्य आपराधिक गतिविधि की योजना नहीं बनाएंगे। प्रश्न यह भी है कि जब वीडियो में साफ देखा जा सकता है कि फेसबुक इस्तेमाल हो रही थी, क्यों जेल सुपरिटेंडेंट झूठ बोल रहे हैं? प्रश्न यह भी है कि अगर आरोप लगाने वाला पुलिसकर्मी भानु पराशर अगर पहले भी अनुशासनहीता कर चुका है, तब इसका मतलब यह नहीं कि वीडियो में जो दिख रहा है कि वह झूठ है।

गौरतलब है कि यह मामला बीएसएफ के जवान तेज बहादुर जैसा होता हुआ दिख रहा है जिसने खऱाब खाने का वीडियो शेयर किया था तो उसके खिलाफ न सिर्फ कार्रवाई हुई थी बल्कि उसे आदतन अनुशासनहीनता करने वाला बता दिया गया था। यहां तक कि अब बीएसएफ ने उसे बर्खास्त भी कर दिया है। प्रश्न यह है कि अगर कोई बार-बार प्रश्न उठाता है तो इसका मतलब नहीं कि वह अनुशासनहीन ही है। कम से कम इस मामले में भानु पराशर ने जो मुद्दा उठाया है, Dvgवह गंभीर है क्योंकि इसी जेल में आईएसआईएस के संदिग्ध को भी रखा गया है। क्या गारंटी है कि कैदियों की मिलिभगत से वह इटरनेट के जरिए अपने आकाओं से संपर्क न साध ले? इस मामले पर विभाग ने तुरंत कार्रवाई करते हुए शिकायतकर्ता भानु पराशर को तो सस्पेंड कर दिया, मगर प्रथम दृष्टया ही जो बड़ी चूक नजर आ रही है, उसके लिए संबंधित बड़े अधिकारियों पर कार्रवाई नहीं हुई। और तो और अब वे अधिकारी खुलेआम झूठ बोल रहे हैं।

अधिकारी के कमरे में फेसबुक यूज कर रहे कैदियों का वीडियो बनाने का दावा करने वाला पुलिसकर्मी सस्पेंड

शिमला।। हिमाचल प्रदेश में एक सनसनीखेज मामला सामने आया है। सोशल मीडिया पर एक वीडियो वायरल हुआ है जो प्रदेश की जेलों के खतरनाक हालात की तरफ इशारा करता है। जिस शख्स ने इस वीडियो को अपलोड किया है, बताया जा रहा है कि वह मॉडल सेंट्रल जेल कंडा (शिमला) में बतौर संतरी तैनात है। उसके द्वारा अपलोड किए गए वीडियो में दो कैदी इंटरनेट पर फेसबुक इस्तेमाल करते हुए दिखते हैं। भानु पराशर नाम के इस शख्स का दावा है कि ये दोनों कैदी डेप्युटी सुपरिटेंडेंट जेल के पर्सनल केबिन में कंप्यूटर इस्तेमाल कर रहे थे, तभी उसने यह वीडियो बनाया। ताजा अपडेट यह है कि वीडियो अपलोड करने वाले इस पुलिसकर्मी ने कहा है कि उसे विभाग ने सस्पेंड कर दिया गया है।

(यह खबर अपडेट हो चुकी है। सुपरिटेडेंट जेल ने वीडियो बनाने वाले इस पुलिसकर्मी को अनुशासनहीन बताया है। मगर सुपरिटेंडेंट का यह दावा गलत होता दिख रहा है कि कैदी फेसबुक नहीं यूज कर रहे थे बल्कि किसी वेबसाइट पर काम कर रहे थे। अपडेटेड खबर पढ़ने के लिए यहां पर क्लि्क करें)

20 अप्रैल को डाली गई तस्वीर में भानु पराशर ने लिखा है, ‘मॉडल सेंट्रल जेल कंडा (शिमला) में, जहां ISIS का एजेंट बंद है, वहां के प्रशासन पर कैदियों का दबदबा। गरीब प्रिज़नर गर्मी में मेस में खाना बनाएं और जो ऑफिसर्स को चारा चराए उसे बेनिफिट। जेल में होकर सोशल मीडिया को सरेआम डेप्युटी सुपरिटेंडेंट जेल के पर्सनल कैबिन में कंप्यूटर पर इंजॉय करते हुए। अगर कोई ऑब्जेक्शन करे तो उसपर डिपार्टमेंटल इंक्वायरी। प्लीज़ ज्यादा से ज्यादा शेयर करो।’ 

इस पोस्ट के अगले दिन यानी 21 अप्रैल को भानु ने एक लेटर अपलोड किया है जो सस्पेंशन लेटर नजर आ रहा है। (देखने के लिए यहां क्लिक करें)। अभी से 8 घंटे पहले यानी 22 अप्रैल को ही भानु ने एक वीडियो शेयर किया है जिसमें दो लोग (कैदियों की ड्रेस) में कंप्यूटर यूज कर रहे हैं और बच्चे की तस्वीर अपलोड कर रहे हैं। बोल रहे है- बाद में कोई और तस्वीर अपलोड कर देंगे। अगर ये कैदी ही हैं तो उनके पास इंटरनेट ऐक्सेस आना और वह भी किसी की गैरमौजूदगी में और फेसबुक यूज करना गलत है। यह न सिर्फ नियमों का उल्लंघन है बल्कि खतरनाक भी है क्योंकि इस तरह वे फेक आईडी बनाकर न जाने जेल के अंदर से किस अपराध को अंजाम दे दें। नीचे वह वीडियो देखें (नोट: In Himachal इस वीडियो की सच्चाई को प्रमाणित नहीं करता है)

सोशल मीडिया पर चर्चा है कि इस वीडियो को बनाने को लेकर जहां पुलिस विभाग को भानु को पुरस्कार देकर आरोपी अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई करनी चाहिए थी मगर यहां मामला उल्टा ही होता दिख रहा है।

अभी तक हम सिर्फ भानु का पक्ष उसकी फेसबुक प्रोफाइल के जरिए रख पाए हैं। वीडियो की पुष्टि भी अभी नहीं की जा सकती। पुलिस प्रशासन और जेल की तरफ से अभी कोई टिप्पणी उपलब्ध नहीं हो पाई है। जल्द ही हम इस बारे में अपडेट देंगे।

ना-ना करते हिमाचल सरकार ने भी किया लाल बत्तियां हटाने का फैसला

शिमला।। केंद्र सरकार की तर्ज पर चलते हुए अब हिमाचल प्रदेश सरकार ने भी वीआईपी कल्चर खत्म करने के इरादे बत्ती हटाने का फैसला लिया है। सरकार द्वारा जारी अधिसूचना के मुताबिक अब राज्य में लाल, नीली और पीली बत्ती का इस्तेमाल नहीं होगा। अब राज्य के मुख्यमंत्री, मंत्री और विधायकों की गाड़ियों पर बत्ती नजर नहीं आएगी। ध्यान देने वाली बात यह है कि कुछ दिन पहले जब परिवहन मंत्री जीएस बाली ने लाल बत्ती छोड़ने का ऐलान किया था, मुख्यमंत्री व अन्य मंत्रियों ने उनपर तंज कसा था और उनका व्यक्तिगत फैसला बताया था। मगर एक हफ्ते के अंदर सरकार को बैकफुट पर आते हुए खुद वही फैसला लेना पड़ा। मुख्यमंत्री वीरभद्र के लिए स्थिति और असहज करने वाली है क्योंकि उन्होंने इस विषय पर एक अमर्यादित बयान दिया था।

चंबा जिले के सलूणी उपमंडल के लचोड़ी में परिवहन मंत्री जीएस बाली के लालबत्ती छोड़ने पर पत्रकारों के पूछे सवाल पर वीरभद्र सिंह ने कहा था,  ‘हमने तो पैंट पहनने को दी थी अगर कोई लंगोट ही पहनना चाहता है तो हम क्या करें।’ (क्लिक करके खबर पढ़ें: पंजाब केसरी | जागरण | ) सोशल मीडिया लोग टिप्पणियां कर रहे हैं कि जिस ‘लंगोट’ की बात मुख्यमंंत्री कर रहे थे, अब वही उन्हें खुद भी पहननापड़ेगा। शुक्रवार को जारी इस अधिसूचना के तहत हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश और अन्य जजों को राहत दी गई है। गुरुवार को हिमाचल के राज्यपाल आचार्य देवव्रत ने खुद ही पहल कर अपनी गाड़ी से लालबत्ती हटा दी थी। एचपीयू के कुलपति ने भी पहल की थी।

इस वक्त सीएम वीरभद्र सिंह ईडी की पूछताछ के सिलसिले में देश की राजधानी दिल्ली में है। कहा जा रहा है कि सुबह उनके आवास पर कुछ कैबिनेट मंत्रियों ने इस बाबत चर्चा भी की थी और उसी के बाद ये आदेश दिए गए हैं।

(Disclaimer: ‘इन हिमाचल’ लंगोट या इस तरह की अमर्यादित भाषा इस्तेमाल करने या उदाहरण देने का पक्षधर नहीं है। खबर को इसलिए ऐसे प्रस्तुत किया गया है ताकि प्रदेश के सबसे बड़े पद पर बैठे नेता व अन्य सभी को अहसास हो कि वह क्या बोल रहे हैं।)

भावुक कर देती हैं शहीद आर.के. राणा की बहादुर बेटियों की बातें

इन हिमाचल डेस्क।। फरवरी 2016 में जम्मू से श्रीनगर की ओर जा रहे सीआरपीएफ के काफिले पर पंपोर के पास आतंकी हमला हुआ था। इसमें शहीद जवानों में हिमाचल प्रदेश के मंडी जिले के हवलदार राजकुमार राणा भी थे। जोगिंदर नगर के भराड़ू गांव के राणा की दो बेटियां हैं- अंशिता और कशिश। जब शहीद राणा की पार्थिव देह गांव पहुंची थी, सबका रो-रोकर बुरा हाल था। नन्ही बेटियां हर बार अपने पापा के आने का इंतजार करती थीं। वह आते थे तो खुशी की सारी सीमाएं पार हो जाती थीं। मगर उस दिन ऐसा नहीं हुआ था। बच्चियों का बिलख-बिलखकर बुरा हाल था। अपनों को खोने का दर्द क्या होता है, यह महसूस करना शायद सबसे बस की बात नहीं। मगर युद्ध और उसकी वीभत्सता के बारे में लोगों को बातने और शांति को बढ़ावा देने की कोशिश के तहत Indiatimes वेबसाइट #ChildrenOfTerror नाम से एक सीरीज चला रही है। यह शहीदों के बच्चों से बात करती है और उनके दर्द को लोगों तक पहुंचाने की कोशिश करती है ताकि शायद उन लोगों का भी दिल पसीजे, जो इन हालात के लिए जिम्मेदार हैं।

इंडियाटाइम्स ने शहीद राणा की बेटी कशिश और अंशिता से बात की है। बेटियां पापा के बारे में बात कर रही हैं तो आंसुओं का सिलसिला थम नहीं रहा। शायद आपके लिए भी उनकी बात सुनते हुए आंसू रोक पाना मुश्किल होता है। बच्ची की रोआंसी आवाज बताती है कि उनके अंदर कितना दर्द है। वे बता रही हैं पापा होते थे क्या-क्या करती थी वे। वे बता रही हैं कि पापा को कैसे मिस कर रही हैं। साथ ही भविष्य की चिंता भी उन्हें सता रही है। उम्मीद है कि आतंकवाद को बढ़ावा देने वालों के दिल में इस तरह के वीडियो इंसानियत पैदा करें। देखें:

इससे पहले इसी सीरीज के तहत पठानकोट आतंकी हमले में शहीद शाहपुर के संजीवन राणा की बेटी से भी बात की थी। वह वीडियो और भी दर्द भरा है। उसे देखने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर जाएं:

रो पड़ेंगे हिमाचल के वीर शहीद की बहादुर बेटी की बातें सुनकर

गुम्मा बस हादसे में जिंदा बचे 19 साल के रोहित ने बताई पूरी बात

शिमला।। शिमला के गुम्मा में हुए दर्दनाक हादसे में अन्य यात्री तो नहीं बचे मगर 19 साल का रोहित बच गया। अफसोस, इस बस से यात्रा कर रही कि रोहित की मां भी अब इस दुनिया में नहीं। रोहित को यकीन नहीं हो रहा कि इतना बड़ा हादसा हो गया। वह जख्मी भी है और बदहवास भी। उसे समझ नहीं आ रहा कि खुद को खुशकिस्मत समझे कि जान बच गई या शोक मनाए कि मां भी नहीं रही और इतने सारे लोग भी चले गए। वक्त रोहित की हिम्मत का इम्तिहान ले रहा है। बहरहाल, रोहित ने बताया है कि कैसे क्या हुआ।

उत्तराखंड के जैन ट्रैवल की बस गुम्मा में रुकी। परिचालक ने बस के नीचे घुसकर कुछ देखने के बाद बस को चलाने के लिए आवाज लगाई। बोहर गांव निवासी 19 साल का रोहित कुमार अपनी माता प्रोमिला के साथ बस में बैठ गया। दोनों अटाल बैंक से रुपये निकालने जा रहे थे। बस भरी हुई थी और सीट नहीं थी। उसने मां को बीच में खड़ा होने को कहा और खुद पिछले दरवाजे के पायदान पर खड़ा हो गया। कुछ ही दूरी पर सामने से गाड़ी आई और उसे पास देने के लिए ड्राइर ने बस को रोकने की कोशिश की।

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रोहित का कहना है कि परिचालक दरवाजा खोलकर बाहर देख रहा था। बस नियंत्रित नहीं हो सकी और पहाड़ी से लुढ़क गई। इस बीच रोहित कुमार और परिचालक तुलसीराम झटके के साथ सड़क पर जा गिरे। बस कई मीटर गहरी खाई पर गिर गई और सब लोगों की जान चली गई। रोहित और तुलसीराम बच गए। इस हादसे में रोहित की मां की भी मौत हो गई।

तांत्रिक की मदद से भगाया ‘भूत’, जेसीबी से गिराया गया तहसील भवन

हमीरपुर।। हमीरपुर के नादौन में मिनी सचिवालय के लिए गिराए जा रहे पुराने तहसील भवन में प्रेत आत्मा होने की चर्चा थी। मजदूर इतने डरे हुए थे कि सामान बांधकर अपने गांव भागने की तैयारी में थे। खबर मिली है कि वहां पर एक तांत्रिक को बुलाया गया जिसने आत्मा को भगाने का दावा किया। इसके बाद ही इस भवन के आखिरी कमरे को गिराया गया। कमरे को गिराने में जेसीबी इस्तेमाल की गई क्योंकि मजदूर इसे तोड़ने को तैयार नहीं थेे।

दरअसल इस भवन को गिरा रहे मजदूरों ने कुछ दिन पहले काम बंद कर दिया था। उनका कहना है कि कोई प्रेत आत्मा उन्हें भवन नहीं गिराने दे रही है। मजदूरों का कहना है कि उन्हें किसी महिला के होने का आभास होता है। मजदूर इतने डरे हुए थे कि उन्हें सपनों में भी वह महिला दिखाई देने लगी थी जिसके साथ बच्चा होता था। वह कहती थी कि इस कमरे को मत गिराओ वरना बुरा होगा। गौरतलब है कि वह सिर्फ एक ही कमरे की बात करती थी, बाकियों की नहीं।

Work
यह था पुराना तहसील भवन।

घबराए हुए मजदूर काम करने को तैयार नहीं थे, ऐसे में गग्गल से तांत्रिक मोहम्मद इब्राहिम को बुलाया गया। इब्राहिम ने प्रेत आत्मा को भगाने का दावा किया है। उसका कहना है कि पुराने भवन को बनाने से पहले इस जगह पर एक महिला और पुरुष की मौत हुई थी। तभी से यह आत्मा यहां रह रही थी। दिन में यह पेड़ में रहती थी और रात को बदल वाले कमरे में आ जाती थी। तांत्रिक ने दावा किया है कि उसने अपनी विद्या से दोनों प्रेत आत्माओं को शांत कर सही जगह भेज दिया है।

तांत्रिक द्वारा भरोसा दिलाने के बाद ही जेसीबी चालक ने कमरा गिराया। पूरी प्रक्रिया के दौरान तांत्रिक वहीं रहा। तांत्रिक के साथ आए लोगों का कहना है कि इब्राहिम गग्गल में मेहनत मजदूरी का काम करता है। ठेकेदार विजय धवन का कहना है कि वह अब तक 200 से ज्यादा भवन गिरा चुके हैं मगर ऐसा कभी नहीं हुआ। रविवार को एक मजदूर के बेहोश होने और हाथ पर गंभीर चोट आने के बाद मजदूरों ने काम बंद कर दिया गया था। आज के दौर में भी भूत-प्रेत और तांत्रिक आदि से जुड़ी यह घटना पूरे इलाके में चर्चा का विषय बनी हुई है।

पढ़ें: भूत के डर से काम छोड़कर घर भाग रहे हैं मजदूर

हिमाचल में हर साल 3000 हादसों में जाती है 1000 की जान

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इन हिमाचल डेस्क।। शिमला के गुम्मा में हुए सड़क हादसे ने पूरे प्रदेश को झकझोर दिया है। मगर यह न तो इस तरह का पहला हादसा है और दुख की बात है कि न ही यह आखिरी हादसा लगता है। आए दिन हादसों की खबरें आती हैं। कभी कोई गाड़ी नदी में गिर जाती है तो कभी टूरिस्ट्स की बस पलट जाती है। कभी कोई जीप खाई में गिर जाती है तो कभी कोई यात्री वाहन लुढ़क जाता है। बावजूद इसके हादसों पर मुआवजों का ऐलान होता है, लोग एक-आध दिन दुखी होते हैं और फिर अपने कामों में डूब जाते हैं। इस बीच फिर हादसा होता है, फिर वही सिलसिला और फिर कोई नतीजा नहीं। मगर 60 लाख की आबादी वाले प्रदेश में इतने हादसे होते हैं जिनका कोई हिसाब नहीं है।

इस मामले में आंकड़े भी चौंकाने वाले हैं। 2015 तक पिछले 10 सालों में हिमाचल में 29,555 सड़क हादसे दर्ज किए गए। 2011 से 2015 के बीच ही 15,047 हादसे हुए और इनमें 5,612 लोगों की जिंदगी चली गई और 26,580 जख्मी हो गए। पुलिस द्वारा दर्ज किया गया यह आंकड़ा दिखाता है कि हर साल इस राज्य में 3000 हादसे होते हैं और उनमें 1000 लोगों की मौद हो जाती है जबकि 5000 जख्मी हो जाते हैं। चौंकाने वाली बात यह है कि 2016 में नवंबर तक 2,096 हादसे दर्ज किए गए थे और उनमें 780 लोगों की मौत हो चुकी थी। 3,919 लोग जख्मी हो गए थे।

File Photo
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ये हादसे होते क्यो हैं? अखबारों पर नजर डालें तो ज्यादातर हादसे वाहनों के खाई से लुढ़कने या सड़क से बाहर गिरने पर होते हैं। शराब पीकर गाड़ी चलाना या ओवरस्पीडिंग भी वजह हो सकती है मगर इस बारे में अभी कोई स्पष्ट आंकड़ा उपलब्ध नहीं है मगर प्रदेश की सड़कों की हालत भी दयनीय है। कई प्रमुख सड़कों को बना तो दिया गया है, मगर यह नहीं देखा गया कि सड़क की ढलान कैसे रखनी है। मोड़ों पर पैराफिट, क्रैश बैरियर तो छोड़िए कुछ जगहों पर साइन बोर्ड नहीं होते और न ही रिफ्लेक्टर लगे होते हैं। आए दिन सड़कों के किनारे भवन निर्माण सामग्री गिराना या केबल बिछाने के लिए खुदाई करना भी हादसों को आमंत्रित करता है।

पिछले साल सितंबर में दिल्ली में सभी प्रदेशों के परिवहन मंत्रियों की बैठक हुई थी। उसमें हिमाचल के परिवहन मंत्री जी.एस. बाली ने भारत सरकार से गुजारिश की थी कि पहाड़ी इलाकों में रोड इंजिनियरिंग की टेक्नॉलजी को बदलने की जरूरत है। उन्होंने कहा था कि पहाड़ी इलाकों में विशेष तौर पर डिजाइन की हुईं सड़कें बननी चाहिए। साथ ही उन्होंने गुजारिश की थी कि हिमाचल को एयर ऐंबुलेंस की सुविधा दी जाए ताकि जख्मी लोगों को तुरंत मेडिकल सहायता दी जाए। दरअसल हादसों के बाद आधे लोग तो अस्पताल ले जाते वक्त ही दम तोड़ देते हैं। अस्पतालों में कभी डॉक्टर नहीं होते तो कभी डॉक्टरों के पास अनुभव नहीं होता तो कभी जरूरी सुविधाएं नहीं होतीं। रेफर करने का गेम चलता है और इलाज मिलने से पहले ही जानें चली जाती हैं।

सवाल एक ही उठता है- जिम्मेदार कौन है?

भैंस लग रहे हो प्रैंक पार्ट 2: जब लोगों से कहा गया भैंस के साथ क्यों चल रहे हो

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इन हिमाचल डेस्क।। पिछले दिनों हमने हिमाचली प्रैंकस्टर्स kLoL Star का एक वीडियो दिखाया था, जिसमें वे लोगों से कह रहे हैं ‘भैंस लग रहे हो एकदम।’ यह सुनकर लोग हैरान रह जाते हैं कि उन्हें कौन सिरफिरा ऐसा बोल रहा है। मगर असल में इसमें ट्विस्ट है। प्रैंकस्टर्स में से एक बंदा लोगों के ठीक पीछे भैंस के सिर वाला मुखौटा पहने हुआ है। काला चश्मा लगाकर सामने से आने वाला बंदा कुछ इस अंदाज में डायलॉग मारता है कि सामने वालों को लगे कि उनके बारे में बात हो रही है। मगर बाद में वह आगे बढ़ जाता है और भैंस का मुखौटा लगाए शख्स से मिलता है।

लोगों को यह प्रैंक खूब पसंद आया था इसलिए प्रैंकस्टर्स ने इसका सेकंड पार्ट बनाया है। इसमें भी तरीका वही है। हालांकि ‘इन हिमाचल’ का मानना है कि प्रैंकस्टर्स को थोड़ी सावधानी बरतनी चाहिए क्योंकि अनजान लोगों के साथ प्रैंक गलत दिशा में भी जा सकता है। साथ ही लड़कियों को लेकर और संवेदनशीलता बरतनी चाहिए कि क्योंकि प्रैंक के नाम पर छेड़छाड़ करने वाले कुछ लफंगे भी सक्रिय होते हैं। इसलिए अतिरिक्त सावधानी बरतनी चाहिए ताकि किसी तरह का गलत मेसेज न जाए। बहरहाल, आप वीडियो देखें:

इससे पिछला पार्ट यह रहा।

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