खतरों के खिलाड़ियों की भी सांसें थम जाती हैं स्पीति घाटी के इस रोपवे पर

इन हिमाचल डेस्क।। हिमाचल प्रदेश का लाहौल-स्पीति जिला देखने में जितना सुंदर है, वहां पर रहना उतना ही मुश्किल। भौगोलिक स्थिति ऐसी है कि आसान से आसान काम भी मुश्किल बन जाता है। ऊंची-ऊंची पहाड़ियों, टीलों और खाइयों से भरी स्पीति घाटी का एक खूबसूरत गांव है किब्बर। पास ही चीचम गांव है। दूरी वैसे तो ज्यादा नहीं मगर सड़क जहां से बनी है, उसके जरिए किब्बर से चीचम जाना हो तो एक घंटे का समय लग जाता है। बीच में एक गहरी खाई है जिसकी तलहटी में एक जलधारा बहती है। पार जाने के दो तरीके हो सकते हैं- या तो सड़क से जाएं या फिर खाई में उतरें और फिर से चढ़ें। पहले वाले तरीके में टाइम ज्यादा लगेगा और दूसरा तरीका न सिर्फ थकाऊ होगा बल्कि खतरनाक भी साबित हो सकता है। मगर आना-जाना तो पड़ता ही है लोगों को। इसके लिए एक नायाब तरीका ढूंढ निकाला गया है। खाई को पाटने के लिए चूंकि पुल नहीं है, इसलिए यहां पर एक लोहे की रस्सिों पर चलने वाली ट्रॉली लगाई गई है जिसे हाथ से खींचना पड़ता है। हिमाचल प्रदेश, जम्मू-कश्मीर, उत्तराखंड और नेपाल से लेकर एशिया के कई देशों में इस तरह की ट्रॉलियां आज भी नदियों या खाइयों को पार करने में इस्तेमाल होती हैं (वीडियो नीचे हैं)।

 

हिमाचल प्रदेश के कई इलाकों में पुल बन जाने से ऐसी ट्रॉलियां दिखना अब कम हो गई हैं मगर बहुत से इलाके हैं जहां पर आज भी लोग इन्हें इस्तेमाल कर रहे हैं। किब्बर-चीचम को जोड़ने वाली यह ट्रॉली भी ऐसी ही है।

 

 

इस सिस्टम में खतरा तो है मगर विवशता में कोई करे भी तो क्या? अगर कोई पुल बना दिया जाए तो लोगों की समस्या जरूर कम होगी। इस मामले में हमें चीन से सीखना चाहिए। उसने गहरी खाइयों के पुल बनाए हैं। कुछ जगहों पर तो उसने शीशे के पुल बनाए हैं। लोग तो आ-जा रहे ही हैं, बाहर से टूरिस्ट्स भी आ रहे हैं ऐसे पारदर्शी पुलों पर चलने के लिए, जिनके नीचे गहरी खाई नजर आती।

ग्लास ब्रिज (चीन)

लाहौल-स्पीति की यह ट्रॉली शीशे का परदर्शी पुल बनाने के लिए एकदम उपयुक्त है। क्योंकि चारों तरफ शानदार नजारे तो हैं ही, नीचे देखने पर गहरी खाई में जलधारा बहती हुई नजर आती है जिसका पानी बहुत साफ है। पूरी दुनिया से टूरिस्ट्स ऐसे पुल को देखने के लिए आ सकते हैं। मगर अभी भी जो लोग किब्बर आते हैं, वे रोमांच के लिए इस ट्रॉली का लुत्फ उठाना नहीं भूलते। बाहरी लोगों के लिए यह अडवेंचर का विषय है मगर स्थानीय लोगों के लिए मजबूरी। देखें वीडियो:

 

 

इस वीडियो को ध्यान से देखें, इसमें ड्रोन से पता चलता है कि ऊंचाई कितनी है:

 

यह तो अलग तरह का अडवेंचर है। सरकार को चाहिए कि स्थानीय लोगों की सुविधा के लिए सुरक्षित इंतजाम करे। वैसे ग्लास ब्रिज जैसे विकप्लों पर विचार किया जाता सकता है क्योंकि वे सुरक्षित तो होंगे ही, टूरिस्ट्स को भी आकर्षित करेंगे।

कार्यक्रम को बीच में ही रोककर ऐंबुलेंस के लिए रास्ता बनाने लगे जेपी नड्डा

कांगड़ा।। आमतौर पर देखने को मिलता है कि राजनेताओं की रैलियों और काफिलों के चलते लोगों को समस्याओं का सामना करना पड़ता है। टीवी पर आए दिन मामले देखने को मिलते हैं कि मंत्रियों या नेताओं का काफिला या रोडशो निकालने के चक्कर में ऐंबुलेंस तक फंस गई। राजनेता इस मामले में जिस तरह से लापरवाही भरा रवैया अपनाते हैं, वह हम सभी ने देखा है। मगर इस मामले में हिमाचल प्रदेश थोड़ा अलग रहा है। कई मंत्रियों और नेताओं के काफिले इस तरह के हालात में इमर्जेंसी वीइकल्स को रास्ता देते रहे हैं। यह दिखाता है कि हिमाचल प्रदेश और यहां के राजनेताओं में कई कमियां हैं मगर वे अपेक्षाकृत अन्य राज्यों से बेहतर हैं। ऐसे ही एक काम के लिए हिमाचल प्रदेश के वरिष्ठ बीजेपी नेता और केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री जेपी नड्डा सोशल मीडिया पर चर्चा हैं। एक कार्यक्रम के सिलसिले में घुघर आए जेपी नड्डा के स्वागत में भारी भीड़ जुटी थी। कार्यकर्ताओं का उत्साह ऐसा था कि वे नड्डा के स्वागत में रोड पर ही जमा हो गए थे। कई नेता अपनी गाड़ियों में भी आए थे। इस बीच वहां ऐंबुलेंस आई और फंस गई। जैसे ही नड्डा का ध्यान इस ओर गया, उन्होंने अपना कार्यक्रम बीच में ही रोक दिया और कार्यकर्ताओं को वहां से हटने को कहा। वह खुद ही गाड़ियों और कार्यकर्ताओं को वहां से हटाकर ऐंबुलेंस के लिए रास्ता बनाने में जुट गए।

 

नड्डा को खुद मोर्चा संभालते देख वहां मौजूद लोग भी हरकत में आए और ऐंबुलेंस के लिए रास्ता बनाने में जुट गए। आसपास खड़े लोग भी मदद के लिए आगे आए ताकि साइड में खड़ी गाड़ियों को और किनारे करके जगह बनाई जाए और ऐंबुलेंस आराम से निकल सके।

 

एक अन्य मामले में जेपी नड्डा का काफिला उस वक्त भी रुका जब उन्होंने रास्ते में एक ऐक्सिडेंट देखा। नड्डा गाड़ी से उतरे और उन्होंने घायलों के लिए ऐंबुलेंस का इंतजाम करवाया और उन्हें टांडा मेडिकल कॉलेज भिजवाया।

 

 

नड्डा से पहले हिमाचल प्रदेश के अन्य नेता भी इस तरह से संवेदनशीलता दिखाते रहे हैं। हिमाचल प्रदेश के लोगों को, भले वे नेता हों या कोई और, यह भावना बरकरार रखनी चाहिए। प्रदेश की पहचान इन्हीं अच्छाइयों की वजह से होनी चाहिए।

लेख: हिमाचल प्रदेश में स्वास्थ्य सेवाओं को है उपचार की जरूरत

विजय शर्मा।। हिमाचल प्रदेश की गिनती देश के उन राज्यों में होती है जहां स्वास्थ्य सेवाएं ठीकठाक हैं। प्रदेश सरकार का दावा है कि सरकार प्रति वर्ष, प्रति व्यक्ति 26,000 हजार स्वास्थ्य सेवाओं पर खर्च कर रही है लेकिन हैरानी की बात यह है कि करीब 20 प्रतिशत पंचायतों में कोई स्वास्थ्य केंद्र ही नहीं हैं। प्रदेश की 739 पंचायतों में कोई स्वास्थ्य केन्द्र नहीं हैं और जहां यह स्वास्थ्य केन्द्र हैं भी, वहां डॉक्टरों और दवाइयों का अभाव है। आपात स्थिति चिकित्सकों की सेवाएं, ऐम्बुलेंस या प्राथमिक उपचार की कोई व्यवस्था नहीं है। सबसे ज्यादा खराब हालत जनजातीय क्षेत्रों एवं निचले यानि नए हिमाचल हमीरपुर, कांगड़ा, ऊना की है जहां स्वास्थ्य केन्द्रों का अभाव है। अस्पतालों में डॉक्टरों, ढांचागत सुविधाओं और दवाओं की भारी कमी है। तहसील एवं जिला स्तर पर गाइनोकॉलजिस्ट की भारी कमी के चलते प्रसव पीड़ित महिलाओं को टांडा और शिमला रैफर करने की बात की जाती है। यह अस्पताल इतनी दूरी पर हैं कि आपात स्थिति में वहां पहुंचना जच्चा और बच्चा दोनों के लिए खतरनाक है। अतः विवश होकर परिजनों को प्राइवेट नर्सिंग होम्स या अस्पतालों की शरण लेनी पड़ती है। इसके अलावा प्रशासनिक स्तर पर भ्रष्टाचार के चलते सरकारी अस्पतालों के डॉक्टरों द्वारा दवाइयाँ और टेस्ट बाहर से कराने पर जोर दिया जाता है। अब तो यह प्रचलन सा हो गया है कि जब भी प्रदेश में कांग्रेस की सरकार होती है नए हिमाचल के ज्यादातर सरकारी अस्पतालों में विशेषज्ञ डॉक्टरों का भारी टोटा रहता है। यही कारण है कि प्राइवेट नर्सिंग होम और अस्पताल फल-फूल रहे हैं और सरकारी स्वास्थ्य सेवाओं का भट्टा बैठता जा रहा है।

 

मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह के गृह जिले की 30 और उनके विधानसभा क्षेत्र की 6 पंचायतों में कोई भी स्वास्थ्य केंद्र नहीं है। पूर्व मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल के गृह जिले की 54 पंचायतों में कोई चिकित्सा सुविधा नहीं है और स्वास्थ्य मंत्री श्री कौल सिंह ठाकुर के विधान सभा क्षेत्र की 8 पंचायतों में कोई चिकित्सा सुविधा नहीं है। इसी प्रकार मंडी जिले की 93 पंचायतों में कोई चिकित्सा सुविधा नहीं है। इसके अलावा चंबा की 57, कांगड़ा की 242, कुल्लू की 80, सिरमौर की 59 और ऊना की 83 ग्राम पंचायतों में कोई स्वास्थ्य केंद्र नहीं है। यहां आशा वर्कर एवं आंगनबाड़ी केन्द्रों की मदद से ही काम चलाया जा रहा है। हालांकि कहने को तो इन पंचायतों को किसी न किसी स्वास्थ्य केन्द्र से जोड़ा गया है लेकिन इनकी दूरी एवं चिकित्सा सुविधाओं और डॉक्टरों की कमी के कारण यहां के लोग प्राइवेट डॉक्टरों या फिर गंभीर हालत में बड़े सरकारी अस्पतालों की शरण लेते हैं। बड़े सरकारी अस्पतालों में ढांचागत सुविधाओं की कमी, दवाओं का अभाव एवं बाहर से कराये जाने वाले टेस्टों की मार से रोगी एवं उनके परिजन खुद को ठगा महसूस करते हैं. इंदिरा गांधी मेडिकल कॉलेज शिमला में ढांचागत सुविधाओं की भारी कमी है। टांडा मेडिकल कॉलेज अस्पताल में जितनी सुविधाएं हैं, उससे कहीं अधिक मरीज हैं। खासतौर पर स्त्रीरोग विभाग में प्रसव के सामान्य मामले भी तहसीलों और जिला अस्पतालों से टांडा रेफर कर दिए जाते हैं. टांडा मेडीकल कॉलेज के डॉक्टर अत्यधिक दबाव में काम करते हैं।

जगह-जगह अस्पतालों में अच्छी सुविधाएं न होने पर बड़े अस्पतालों पर बोझ बढ़ रहा है।

केन्द्र सरकार की आर्थिक मदद के बावजूद प्रदेश की राजधानी शिमला में पिछले साल बड़े पैमाने पर पीलिया फैला, जिसमें 35 लोगों की मौत हो गई और करीब 33000 से अधिक लोग प्रभावित हुए थे। डेंगू और अब स्क्रब टाइफस 25 से अधिक लोगों को अपना शिकार बना चुका है। केंद्र सरकार ने प्रदेश के 4 मेडिकल कॉलेजों के लिए 600 करोड़ रूपए जारी किये हैं और 5 जिलों में ट्रॉमा केयर सेन्टर स्वीकृत किए हैं. इसके अलावा वित्त वर्ष 2014-15 में नेशनल हेल्थ मिशन के तहत 234 करोड़ तथा वर्ष 2015-16 के लिए 298करोड़ रूपए की आर्थिक सहायता प्रदान की है लेकिन इसके बावजूद स्वास्थ्य सेवाओं की कमी चिंता का विषय है।

तस्वीर सिरमौर की है जहां लोगों ने बर्फबारी के बीच मरीज को 15 किलोमीटर कंधे पर उठाकर अस्पताल पहुंचाया था।

केन्द्र सरकार ने प्रदेश में 7552 आशा वर्कर्स लगाने के लिए 15.24 करोड़ रूपए के साथ 2744 अनुबन्ध पर रखे जाने वाले कर्मियों के पदों की स्वीकृति दी है। जननी सुरक्षा योजना के लिए प्रदेश को 33 करोड़ रूपए और गरीबों को मुफ्त दवाईयां उपलब्ध करवाने के लिए 61 करोड़ रूपए स्वीकृत किए हैं। इसके अलावा आधारभूत संरचनाएं खड़ी करने के लिए 60 करोड़ रूपए और ऐम्बुलेंस खरीदने के लिए 3.46 करोड़ रूपए का प्रावधान किया है। अब यह प्रदेश सरकार पर निर्भर करता है कि वह इसका कितना सदुपयोग करती है।

यह भी देखें: हिमाचल के नेताओं की बेशर्मी की पोल खोलती हैं ये 10 तस्वीरें

(लेखक हमीरपुर के हिम्मर डाकघर के गांव दरब्यार से हैं। उनसे vijaysharmaht@gmail.com पर संपर्क किया जा सकता है)

Disclaimer: ये लेखक के अपने विचार हैं। ‘इन हिमाचल’ इस लेख में दिए गए आंकड़ों या विचारों के लिए उत्तरदायी नहीं है।

देखें, ये हैं हिमाचल प्रदेश की प्रमुख कृत्रिम झीलें जो बेहद खूबसूरत हैं

प्रतीक बचलस।। हिमाचल प्रदेश की अर्थव्यवस्था में पर्यटन और बागवानी का बहुत ज्यादा योगदान है। प्रदेश की कृत्रिम झीलें कई तरह से हिमाचल प्रदेश को समृद्ध बनाने में अपना योगदान दे रही हैं। ये कृत्रिम झीलें मुख्यत: सिंचाई, पीने का पानी और संचय के काम आती हैं ताकि कमी होने पर इस्तेमाल किया जा सके। फायदे तो हैं मगर इनका नुकसान भी प्रदेश को उठाना पड़ा है। एक तो बांधों का निर्माण बहुत ही खर्चीला काम है, साथ ही रख-रखाव का भी खास ख्याल रखना पड़ता है। प्रदेश की प्रमुख कृत्रिम झीलें इस तरह से हैं:

 

1. गोविंद सागर झील
गोविंद सागर झील हिमाचल प्रदेश की सबसे बड़ी कृत्रिम झील है। यह बिलासपुर जिले में सतलुज नदी पर बनी है। इस झील की लंबाई 88 किमी.और क्षेत्रफल 168 वर्ग किमी. है। इसमें पुराना बिलासपुर शहर डूबा है। पुरानी इमारतें, महल और मंदिर तक डूबे हैं। कुछ मंदिर पानी का स्तर कम होने पर नजर आने लगते हैं।

Source: MyStateInfo.com

2. पौंग झील
यह झील कांगडा जिले के नगरोटा सूरियां में स्थित है।इसकी लम्बाई 42 किमी. है। इस झील के पास पौंग बांध भी है जो 1960 में बना था। यह झील महाराणा प्रताप सागर के नाम से जानी जाती है। यहां भी कुछ मंदिर डूबे हुए है। पहचान है इसकी प्रवासी पक्षियों के खूबसूरत जमावड़े के लिए।

Source: https://in.pinterest.com/pin/573857177496799604/

3. पंडोह झील
यह झील मंडी जिले में ब्यास नदी पर बनी हुई है। इसकी लम्बाई 14 किमी. है । यह राष्ट्रीय राजमार्ग -21 के किनारे है।

Source: https://commons.wikimedia.org/wiki/File:Pandoh_Lake_NH_View.jpg


4. सुंदरनगर झील
यह झील बहुत ही सुंदर है।अपने मनमोहक दृश्य से ये कई पर्यटकों का मन मोह लेती है। यह मंडी जिले के सुंदरनगर शहर में स्थित है।

Soruce: http://wikimapia.org/10111184/Balancing-reservoir-Sundernagar-Lake

5. चमेरा झील
यह झील चम्बा जिले में स्थित है । यह झील रावी नदी पर बनी हुई है।यह झील डलहौजी से 25 किमी. की दूरी पर स्थित है। सर्दियों के दिनों में यहां का दृश्य और भी मनमोहक हो जाता है क्योंकि आस पास के वृक्ष और मैदान पूरी तरह बर्फ से ढक जाते है।

Source: https://www.tripadvisor.com/LocationPhotoDirectLink-g503693-d2475558-i87930575-Chamera_Lake-Dalhousie_Himachal_Pradesh.html

कुछ और झीलें भी हैं हिमाचल में जो अन्य बांधों पर बनी हैं। अगर आपको लगता है कि उन झीलों का नाम भी इनमें शामिल होना चाहिए था तो कॉमेंट करके बताएं।

(लेखक हिमाचल प्रदेश के ऊना से हैं और नैशनल ऐग्री फूड बायोटेक्नॉलजी रिसर्च इंस्टिट्यूट में सेवाएं दे चुके हैं। उनसे prateekdcoolest120@gmail com पर संपर्क किया जा सकता है।)

सरकारी गाड़ी में ‘कोकीन’ के साथ पकड़ा गया एचआरटीसी सोलन का रीजनल मैनेजर

शिमला।। एचआरटीसी के सोलन के रीजनल मैनेजर को उनकी सरकारी गाड़ी में संदिग्ध नशीली सामग्री के साथ रंगे हाथों पकड़ा गया है। साथ में पुलिस ने 3 और लोगों को गिरफ्तार किया है। पुलिस का कहना है कि इस ऐक्शन में उसने 4 किलो 400 ग्राम कोकीन बरामद की है। नशे की इस खेप को जम्मू-कश्मीर से शिमला लाया जा रहा था। आरोपी इस पैकेज को एक तस्कर को देने जा रहा था। इसका सौदा 30 लाख रुपये में किया गया था।  पुलिस के हत्थे चढ़ा आरएम महेंद्र सिंह धर्मशाला के सिद्धबाड़ी का रहने वाला है। विकास नाम का एक शख्स धर्मशाला और दूसरा राजीव बैजनाथ का है। तीसरा आरोपी गयासुद्दीन जम्मू कशमीर का रहने वाला है।

 

पुलिस ने रविवार रात को शोघी में वाहनों की तलाशी के लिए नाकेबंदी की थी और गाड़ियों की तलाशी की जा रही थी। सुबह करीब एक बजे सोलन की तरफ से एक गाड़ी आई। रोकने पर ड्राइवर ने बताया कि यह आरएम सोलन की गाड़ी है और साहब पीछे पैठे हैं। पुलिस ने कहा कि सभी गाड़ियों की तलाशी ली जा रही है और आपकी गाड़ी की भी तलाशी ली जाएगी। जैसे ही पुलिस ने तलाशी लेने की बात की तो आरएम अपने पांव के पास रखे बैद को पीछे करने लगा। पुलिस की नजर पड़ी तो बैग को खोल गया। अंदर पांच पैकेट मिले जिनमें सफेद रंग का कुछ था।

 

लिफाफा खोलने पर निकले सफेद पदार्थ को एक पुलिसचर्मी ने चेक किया तो नशीला पदार्थ लगा। गाड़ी मे ंबैठे सभी लोगों को हिरासत में ले लिया गया। बात में शिमला के एसपी डी.डब्ल्यू. नेगी ने कहा कि सभी आरोपियों के खिलाफ बालूगंज पुलिस स्टेशन में मामला दर्ज कर लिया है और छानबीन की जा रही है। आरोपियों से पकड़े गए पदार्थ को जांच के लिए फरेंसिंक लैबरेटरी में भेज दिया गया है।

 

इस मामले में पुलिस ने जिस तरह से फर्ज निभाते हुए आरएम की गाड़ी को भी चेक किया, वह काबिल-ए-तारीफ है। अगर अधिकारी की गाड़ी को ऐसे ही जाने दिया गया होता तो नशे के सौदागर पकड़ में न आते। ड्यूटी पर मुस्तैद रहे इन अधिकारियों को पुरस्कार मिलना चाहिए ताकि विभाग के अन्य कर्मियों को भी प्रेरणा मिले।

महिला टूरिस्ट ने पायलट पर बिलिंग में उड़ान के दौरान छेड़छाड़ का आरोप लगाया

कांगड़ा।। पैराग्लाइडिंग के लिए दुनिया भर में मशहूर हिमाचल प्रदेश के बीड़-बिलिंग में एक अलग तरह का मामला सामने आया है। खबरों के मुताबिक प्रदेश पुलिस ने बिलिंग के एक पैराग्लाइडिंग पायलट के खिलाफ उड़ान के दौरान एक महिला टूरिस्ट से छेड़छाड़ करने पर एफआईआर दर्ज की है। मुंबई की एक युवती ने आरोप लगाया है कि पैराग्लाइडिंग के दौरान इस पायलट ने गलत हरकत की। अपने आरोप को पक्ष में इस युवती ने वीडियो क्लिप भी पुलिस को सौपा है। हालांकि, सूत्रों के मुताबिक इस क्लिप को देखकर यह तय कर पाना मुश्किल है कि इतनी हाइट पर सेफ्टी के लिए कदम उठाते वक्त बेल्ट को खींचते हुए गलती से पायलट का हाथ टच हुआ या इरादतन ऐसी हरकत की गई। यह इस तरह का पहला मामला है जो सुर्खियों में आया है। उड़ान के दौरान कैमरे से अडवेंचर को कैद करने के लिए टूरिस्ट्स वीडियो बनाया करते हैं। बताया जा रहा है कि पीड़ित लड़की शिकायत करते की हिम्मत इसलिए कर सकी क्योंकि इसी वीडियो रिकॉर्डिंग के दौरान पायलट की हरकत भी कैमरे में कैद हो गई। इसी को आधार बनाते हुए विक्टिम ने पुलिस की मदद लेने की ठानी ताकि किसी और को इस तरह के हालात का सामना न करना पड़े।

 

मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार कांगड़ा के एसपी संजीव गांधी ने कहा है, ‘महिला की शिकायत है कि पैराग्लाइडर पायलट ने टैंडम पैराग्लाइडिंग फ्लाइट (जिसमें पायलट अपने साथ टूरिस्ट्स को उड़ाते हैं) के दौरान मॉलेस्ट किया। हम वीडियो क्लिप की जांच कर रहे हैं। महिला के बयान को CrPC के सेक्शन 164 के तहत दर्ज कर लिया गया है।’ रिपोर्ट्स के मुताबिक महिला टूरिस्ट का कहना है कि बैजनाथ के बीड़-बिलिंग में हाल ही में पैराग्लाइडर पायलट ने यह हरकत की है। पुलिस को पहले इस मामले में ऑनलाइन कंप्लेंट मिली थी और अब पीड़ित युवती खुद भी मुंबई से वापस आई है। पायलट के खिलाफ सेक्शन 354 के तहत एफआईआर दर्ज की गई है। एसपी का कहना है कि जब तक आरोपों की पुष्टि नहीं हो जाती, आरोपी की पहचान नहीं बताई जा सकती।

पैलाग्लाइडिंग करवाने वालों पर कोई नियंत्रण नहीं
इस मामले की तो अभी जांच जारी है मगर बीड़-बिलिंग में शरारती तत्वों का जमावड़ा बढ़ता जा रहा है। यहां पर टेंडम फ्लाइट्स तो भरी जा रही हैं मगर यह निगरानी करने के लिए कोई अधिकृत संस्था नहीं है जो लोग यहां टूरिस्ट्स को अपने साथ उड़ा रहे हैं, उनकी क्वॉलिफिकेश क्या है या वे कितने ट्रेन्ड हैं। इससे वे अपने साथ-साथ बाहर से आने वाले टूरिस्ट्स की जान भी जोखिम में डाल रहे हैं। कुछ टूरिस्ट्स यहां तक शिकायत कर चुके हैं कि पायलट्स चरस और गांजा पीकर उड़ाने भरते हैं। अगर लड़की के आरोप सही पाए जाते हैं तो सवाल उठ सकता है कि कहीं ऐसा तो नहीं कि इस तरह के शरारती तत्व बीच हवा में महिला टूरिस्ट्स के साथ छेड़छाड़ करते रहे हों और प्रदेश का नाम खराब करते रहे हों। हालांकि पुलिस मामले की जांच कर रही है कि लड़की के आरोपों में सच्चाई है या नहींं।

पुलिस की कार्यप्रणाली भी सवालों के घेरे में
बीड़ में पिछले कुछ वक्त से टूरिस्ट्स के साथ अभद्र व्यवहार के मामले बढ़ रहे है। यहां घूमने आने वाले कपल्स के साथ कुछ स्थानीय गुंडातत्व बदसलूकी करते रहे हैं। इसी साल जनवरी में कुछ लोगों ने हमीरपुर के टूरिस्ट्स की कार को टक्कर मारकर खाई से गिरा दिया था। इस घटना में हमीरपुर विकासनगर निवासी वरुण शर्मा (30), विपन कुमार (38), निशा कुमारी (37), रुचिता शर्मा (28) और वीहा शर्मा (5) को गंभीर चोटें आई थीं।


घटना में घायल हुए विपिन ने बताया था कि तीनों युवक उनकी कार में बैठी महिलाओं के साथ बदतमीजी करने लगे, मगर उन्होंने इस बात पर ध्यान नहीं दिया। लेकिन इसके बाद तीनों ने कोटली गांव के पास गाड़ी को जान-बूझकर पास लेने के बहाने टक्कर मार दी, जिससे गाड़ी अनियंत्रित होकर पहाड़ी से नीचे ढांक में लुढ़क गई। बाद में पुलिस ने सिर्फ लापरवाही से गाड़ी चलाने का मामला दर्ज किया था। (यहां क्लिक करके पढ़ें खबर) सवाल उठ रहे हैं कि इस तरह के गंभीर मामलों में पुलिस द्वारा ढीला रवैया अपनाने से ऐसे गुंडा तत्वों का हौसला नहीं बढ़ेगा तो और क्या होगा। यहां देश-दुनिया से टूरिस्ट्स आते हैं और अगर उनके साथ कुछ गलत होता है तो पूरे प्रदेश का नाम बिना वजह बदनाम होता है।

ऐसे में ताजा मामले में पुलिस को तुरंत कार्रवाई करनी चाहिए और अगर दोषी पाया जाए तो पायलट को गिरफ्तार करना चाहिए। क्योंकि पुलिस अक्सर ”बदनामी होगी” वाला तर्क देकर ऐसे मामलों में समझौता करवाती पाई जाती है। मगर मामला प्रदेश की प्रतिष्ठा से जुड़ा है, इसलिए ढील नहीं बरतनी चाहिए। हालांकि इस मामले में सभी को कांगड़ा के तेज-तर्रार एसपी संजीव गांधी से उम्मीदें हैं अपराध और अपराधियों के लिए जीरो टॉलरंस नीति अपनाने के लिए पहचाने जाते हैं। साथ ही बीड़ समेत अन्य जगहों पर पैराग्लाइडिंग करवाने वालों का रजिस्ट्रेशन होना चाहिए और उड़ान भरने से पहले उनका मेडिकल भी होना चाहिए। साथ ही उड़ान के दौरान वीडियो रेकॉर्डिंग अनिवार्य कर देनी चाहिए। वरना क्या पता कल को कोई शरारती तत्व आए और किसी महिला टूरिस्ट को अपने साथ उड़ाकर किसी अज्ञात जगह पर उतार ले। किसी अप्रिय घटना के लिए कौन जिम्मेदार होगा? सरकार को इस ओर ध्यान देना चाहिए।

चंडीगढ़ के मॉल में हिमाचली नाटी ने मचाया धमाल, वीडियो वायरल

इन हिमाचल डेस्क।। ‘नाटी’ हिमाचल प्रदेश का पारंपरिक लोकनृत्य है। एकसाथ ग्रुप में पारंपरिक लोकधुनों या हिमाचली गानों पर किया जाने वाला यह डांस भले ही हिमाचल से बाहर लोकप्रियता न बटोर पाया हो मगर हिमाचल में इसका क्रेज बना हुआ है। प्रदेश में कोई भी उत्सव या पर्व होने पर लोग बेशक डीजे आदि पर पंजाबी और बॉलिवुड गानों पर नाचते हों, बीच-बीच में वो हिमाचली गीतों पर नाटी डालना नहीं भूलते। बेशक वे ग्रुप में डांस न करते हों मगर स्वतंत्र होकर अकेले-अकेले नाटी की भाव-भंगिमाओं में डांस करते हैं। यह बात भी है कि आजकल लोग पारंपरिक वेशभूषा के साथ नाटी डालते नजर नहीं आते। खासकर युवा पीढ़ी में यह ट्रेंड देखने को नहीं मिलता। मगर स्कूल-कॉलेजों के कार्यक्रमों में बच्चों की कोशिश रहती है कि वे नाटी को पेश करें। कई तरह के प्रयोग भी बच्चे करते हैं जो अच्छे बन पड़ते हैं। जैसे कि इंग्लिश गानों पर नाटी डालना या फिर आधुनिक या सामान्य परिधान में ही पारंपरिक गीतों पर नाटी डालना। यह सब लोगों को पसंद या नापसंद आ सकते हैं मगर कुलमिलाकर देखा जाए तो प्रदेश की इस लोकसंस्कृति को बचाए रखने में इनका बहुत योगदान है।

 

अब हम आपको दिखाने जा रहे हैं कि पालमपुर की कृतिका परमार द्वारा अपनी फेसबुक प्रोफाइल पर अपलोड किया गया वीडियो। चंडीगढ़ के Elante Mall में स्टूडेंट्स द्वारा नृत्य प्रस्तुति दी गई (फ्लैश मॉब के नाम पर) जिसमें विभिन्न गानों के साथ हिमाचली गानों पर नाटी भी पेश की गई। मॉल के बीचोबीच की जा रही इस नाटी को बहुत से लोगों ने देखा। मॉल में आई हिमाचली कम्यूनिटी के साथ-साथ अन्य राज्यों के लोगों को भी हिमाचल प्रदेश की नाटी की झलक देखे को मिली। इसके बाद अब सोशल मीडिया पर तेजी से यह वीडियो वायरल हो रहा है। आप भी देखें। नाटी कुछ सेकंड्स बाद शुरू होगी:

अगर आप भी किसी कार्यक्रम में जाते हैं या इस तरह का कोई अच्छा वीडियो आपके पास आता है तो हमारे साथ शेयर करना न भूलें। आप हमारे फेसबुक पेज पर मेसेज कर सकते हैं या फिर Inhimachal.in@gmail.com पर ईमेल कर सकते हैं।

शिमला हवाई सेवा पर हवा-हवाई बातें करके चले गए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी?

इन हिमाचल डेस्क।। उड़ान योजना का आरंभ करते वक्त प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शिमला में बड़ी-बड़ी बातें की थीं। उनका कहना था कि यह ऐसी हवाई सेवा है जिसमें ‘हवाई चप्पल’ पहनने वाला आदमी भी यात्रा कर सकेगा। उनका अर्थ था कि आमतौर हवाई सेवा के किराए महंगे होते हैं और गरीब आदमी उन्हें अफॉर्ड नहीं कर सकता मगर इस योजना के बाद सस्ते किराए में कोई भी यात्रा कर सकेगा। प्रधानमंत्री ने शिमला के जुब्बड़हट्टी से दिल्ली के बीच चलने वाली एयर सर्विस की शुरुआत करते हुए पीएम मोदी ने कहा था कि इससे न सिर्फ हिमाचल प्रदेश के टूरिज़म को बूस्ट मिलेगा बल्कि हिमाचल के लोग इमर्जेंसी की स्थिति में कम किराए पर तुरंत दिल्ली पहुंच सकेंगे। पहली नजर में इन घोषणाओं को सुनकर अच्छा लगता है मगर अब पीएम के ये दावे हवा-हवाई होते नजर आ रहे हैं। दरअसल इस योजना को लेकर अब भी भ्रम की स्थिति बनी हुई है। जानें, क्या है इस एयर सर्विस की स्थिति:

दिल्ली से शिमला के बीच 42 सीटों वाला विमान उड़ान भरेगा मगर शिमला से दिल्ली आते वक्त इसमें कुल 35 यात्री और शिमला से दिल्ली 14 यात्री ही जा सकेंगे। वैसे तो शिमला से दिल्ली के लिए 28 सीटें मंजूर हैं मगर अभी 14 ही सीटें ही भरी जा रही हैं। शिमला एयरपोर्ट का रनवे छोटा होने, इंजन क्षमता और मौसम को ध्यान में रखते हुए ऐसा किया जा रहा है। ध्यान देने वाली बात यह है कि इस उड़ान सेवा में दोनों तरफ आधे टिकट ही सस्ते रेट पर मिलेंगे। यह रेट है 1920 रुपये और टैक्स मिलाकर ग्राहकों को 2021 रुपए चुकाने होंगे। बाकी टिकटों को मार्केट रेट पर खरीदना होगा जो कि बुक कराने की डेट के आधार पर 5000 से 19000 हजार रुपये तक हो सकते हैं।

नियम के अनुसार दिल्ली से शिमला आते वक्त 25 में से 17 सीटें ही 2021 रुपये की होंगी। इसी तरह से नियमों के अनुसार शिमला से दिल्ली के लिए मंजूर 28 सीटों में से सिर्फ 14 सीटें सस्ती होनी हैं। चूंकि अभी सिर्फ 14 ही यात्री दिल्ली ले जाए जा रहे हैं, इसलिए ये सभी 14 टिकट सस्ते खरीदे जा सकते हैं। ‘पंजाब केसरी’ की रिपोर्ट का तो कहना है कि अभी 10 लोगों को ही दिल्ली ले जाया जा रहा है।

अगर स्थिति यह है तो प्रश्न उठता है कि इस योजना का लाभ क्या होगा, क्योंकि हमने देखा कि दिल्ली से शिमला और शिमला से दिल्ली की फ्लाइट्स की आने वाले कुछ हफ्तों की सीटें पहले ही बुक हो चुकी हैं। शिमला से दिल्ली की फ्लाइट्स तो जून तक बुक हुई पड़ी हैं क्योंकि 14 ही सीटें दिल्ली के लिए उपलब्ध हैं और सभी सस्ती हैं। दिल्ली से शिमला के लिए सस्ते टिकटों की भी यही स्थिति है। अगर कोई तुरंत दिल्ली से शिमला आना चाह रहा हो तो उसे महंगा टिकट खरीदना होगा।

दिल्ली से शिमला फ्लाइट की स्थिति।

इस तरह से वह पॉइंट तो खत्म हो जाता है कि कोई इमर्जेंसी की स्थिति में इस विमान सेवा को इस्तेमाल करेगा। अगर किसी को तुरंत एयर सर्विस से दिल्ली निकलना हो तो वह उसे जून के बाद का इंतजार करना होगा जिसका कोई मतलब नहीं है। इसी तरह से जब सस्ते टिकट उपलब्ध नहीं हैं तो उसे 9000 रुपये तक में दिल्ली से शिमला का टिकट खरीदना पड़ सकता है। 9000 रुपये में एयरसेवा से शिमला देने के बजाय कोई भी बस सेवा से आकर या प्राइवेट टैक्सी हायर करके पूरे परिवार के साथ शिमला आ सकता है।

शिमला से दिल्ली की सीटें जून तक बुक

आलम यह है कि गुरुवार को पीएम मोदी ने भले ही आधिकारिक रूप से इस योजना को लॉन्च किया है मगर एयर इंडिया के कस्टमर केयर सेंटर पर अब तक इस योजना की कोई जानकारी नहीं है। ‘अमर उजाला’ अखबार का दावा है कि कंपनी के कस्टमर केयर नंबर 1800 180 1407 पर संपर्क करके फ्लाइट की जानकारी लेने की कोशिश की गई तो दूसरी तरफ से ऐसी कोई जानकारी न होने की बात कही गई।

प्रश्न यह भी उठता है कि जब रनवे छोटा है, इंजन की क्षमता आदि कम है तो शिमला से दिल्ली की उड़ान के लिए 28 सीटें किस आधार पर मंजूर की गईं और अब सिर्फ 14 यात्री ही क्यों ले जाए रहे हैं? जिस विमान के ट्रायल पर 28 सीटें मंजूर की, उसके बजाय ऐसा विमान क्यों उड़ाया जा रहा है जो सिर्फ 14 ही यात्रियों को लेकर जुब्बड़हट्टी से उड़ान भर सकता है। जब यह योजना पूरी तरह से क्रियान्वित ही नहीं हो पा रही है तो इसका उद्घाटन करके श्रेय लूटने की जल्दबाजी क्या थी? इस तरह की महंगी यात्राएं तो पहले भी शुरू होकर बंद हो चुकी हैं और प्रदेश के अन्य एयरपोर्ट्स पर पहले ही चल रही हैं। फिर इसे लेकर माहौल बनाने की क्या जरूरत थी?

गौरतलब है प्रधानमंत्री ने हिमाचल दौरे पर इस योजना से शुभारंभ और हाइड्रो इंजिनियरिंग कॉलेज के शिलान्यास के अलावा रिज से सिर्फ राजनीतिक भाषण दिया है, हिमाचल के लिए किसी और योजना या तोहफे का ऐलान नहीं किया है। सोशल मीडिया पर यही मुद्दा छाया है कि यह उड़ान सेवा सफेद हाथी बनकर रह जाएगी। यह स्कीम इसलिए भी नई नजर नहीं आ रही क्योंकि बहुत बाद की बुकिंग करवाने पर किसी भी रूट के टिकट बहुत सस्ते मिलते हैं और तुरंत लेने पर महंगे। स्पेशल ऑफर आने पर तो ये 2000 रुपये से भी सस्ते होते हैं। उडान योजना नई बोतल में पुरानी शराब लग रही है।

नुकसान करवा सकती है पीएम के सामने धूमल समर्थकों की नारेबाजी

इन हिमाचल डेस्क।। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के हिमाचल दौरे को लेकर बीजेपी ने बड़े स्तर पर तैयारी की थी और शिमला रैली में उसका नतीजा देखने को भी मिला। ऐतिहासिक रिज मैदान पर बीजेपी कार्यकर्ताओं का जमावड़ा लगा था। प्रदेश के कोने-कोने से पार्टी कार्यकर्ता शिमला पहुंचे थे। पार्टी संगठन ने इस रैली को कामयाब बनाने के लिए पूरी मेहनत की थी। मौजूदा विधायकों के अलावा विभिन्न विधानसभाओं से पार्टी विधायक रहे नेताओं और पदाधाकारियों ने अपने स्तर पर ज्यादा से ज्यादा लोग लाने की कोशिश की थी। कुल-मिलाकर पार्टी की यह कोशिश सफल हुई और रिज मैदान पर तिल धरने को भी जगह नहीं बची थी। इससे यह संकेत तो मिला कि बीजेपी के कार्यकर्ताओं का जोश इस वक्त पूरे उफान पर है, मगर यह भी नजर आया कि खेमों में बंटी हुई है। खेमेबाजी का सबसे बड़ा सबूत उस वक्त देखने को मिला जब शिमला के रिज पर कार्यकर्ताओं का एक समूह एक नेता विशेष के पक्ष में नारे लगा रहा था। शुरू से लेकर आखिर तक यह समूह उस नेता के पक्ष में नारेबाजी करता रहा। क्षेत्र विशेष से आए कार्यकर्ताओं के इस समूह की यह हरकत उस नेता के लिए नुकसानदेह साबित होती दिख रही है, जिसके पक्ष में वे नारे लगा रहे थे। बीजेपी हाईकमान के पास यह संदेश गया है कि उक्त नेता ने इन समर्थकों के जरिए अपना शक्ति प्रदर्शन करने की कोशिश की है।

शिमला में रैली के दौरान देखा गया कि एक हिस्से में बैठे कार्यकर्ता बार-बार नारेबाजी कर रहे थे। उनकी पार्टी का सबसे बड़ा नेता और देश का प्रधानमंत्री मंच पर बैठा हुआ था मगर वह उसके समर्थन में नारेबाजी करने के बजाय पूर्व सीएम और विधानसभा मे नेता प्रतिपक्ष प्रेम कुमार धूमल लेते हुए नारेबाजी कर रहा था। यह समूह शुरू से लेकर आखिर तक नारेबाजी करता रहा। यह नारेबाजी उस वक्त भी जारी रही जब बीजेपी के अन्य वरिष्ठ नेता और यहां तक कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी खुद भी भाषण दे रहे थे। जब धूमल खुद भाषण देने आए तो समर्थकों का यह समूह और जोश से नारे लगाने लगा। नारे कुछ इस तरह से थे-धूमल जी आगे बढ़ो, हम तुम्हारे साथ हैं। आलम यह रहा कि खुद धूमल को कहना पड़ा कि मैं आगे तो तभी बढ़ूंगा जब आप लोग चुप होंगे। इसके बाद रिज मैदान के कार्यकर्ताओं के बीच ठहाके गूंज उठे। उस वक्त तो बात मजाक में आई-गई हो गई मगर ‘इन हिमाचल’ को सूत्रों से जानकारी मिली है कि इस हरकत पर पार्टी का शीर्ष नेतृत्व गंभीर है और इस कदम को अनुशासनहीनता मान रहा है। पार्टी आलमाकमान को लगातार हो रही इस नारेबाजी से संदेश गया है कि इन समर्थकों की नारेबाजी के जरिए अपनी ताकत और प्रासंगिकता दिखाई जा रही थी।

दरअसल हर बार किसी न किसी को सीएम कैंडिडेट बनाकर लड़ती रही बीजेपी ने इस बार पत्ते नहीं खोले हैं। हिमाचल प्रदेश विधानसभा चुनावों के लिए बहुत कम वक्त रह गया है मगर इस बार यह नहीं बताया गया कि पार्टी किसके नेतृत्व में चुनाव लड़ेगी। ऐसे में अपने-अपने नेता के सीएम कैंडिडेट बनने का ख्वाब देख रहे बीजेपी कार्यकर्ताओं में बेचैनी बढ़ती जा रही है। पिछली बार तक यह साफ रहता था कि बीजेपी प्रेम कुमार धूमल के नेतृत्व में ही चुनाव लड़ेगी। मगर इस बार बीजेपी ने राष्ट्रीय स्तर पर ही अपनी रणनीति बदल दी है। हरियाणा, महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड समेत कई राज्यों में बीजेपी बिना किसी को सीएम कैंडिडेट बनाए चुनाव लड़ी और सफलता हासिल की। इससे बीजेपी को पार्टी की गुटबाजी और भितरघात से बचने में भी सफलता मिली। अब इसी रणनीति को वह हिमाचल प्रदेश में भी लागू करने की तैयारी में है। पार्टी नहीं चाहती कि अब तक शांता और धूमल खेमों में बंटी रही बीजेपी अब आगे भी इसी तरह बंटी रहे। इस संबंध में आलाकमान पहले भी निर्देश देता रहा है मगर रिज पर इन निर्देशों का खुलकर उल्लंघन हुआ।

गौरतलब है कि बीजेपी हर विधानसभा चुनाव से पहले अपनी एक टीम तैनात करती है जो उस राज्य का सर्वे करती है। गुपचुप काम करने वाली यह टीम देखती है कि उस राज्य में क्या-क्या मुद्दे हैं जिन्हें उठाया जा सकता है। यह मौजूदा सरकार की कमजोरियों को पकड़ती है और साथ ही संगठन की कमियों पर भी रिपोर्ट बनाती है। यह स्थानीय मीडिया और सोशल मीडिया पर भी नजर रखती है। यह देखा जाता है अपनी पार्टी का कौन सा नेता पार्टी लाइन से हटकर संगठन के बजाय सेल्फ प्रमोशन के लिए बयानबाजी कर रहा है या मीडिया को मैनेज कर रहा है। शिमला रैली के बाद विभिन्न अखबारों में और पत्रिकाओं में इस तरह के आर्टिकल्स की बाढ़ आ गई थी जिनमें दावा किया जा रहा है कि शिमला रैली मोदी के बजाय धूमल मय हो गई क्योंकि लोग धूमल के पक्ष में नारे लगाते रहे। ‘इन हिमाचल’ को सूत्रों ने बताया है कि इस संदर्भ में भी इस टीम ने एक रिपोर्ट तैयार की है। यह रिपोर्ट भी धूमल के खिलाफ जा सकती है।

इस टीम में शामिल होने का दावा करने वाले एक शख्स ने नाम न बताने की शर्त पर ‘इन हिमाचल’ को बताया, ‘पार्टी आलाकमान ने पहले ही साफ किया है कि चुनाव से पहले सभी को एकजुट होना है। मुख्यमंत्री कौन बनेगा कौन नहीं, यह तब की बात होगी जब मिलकर चुनाव जीतेंगे। पार्टी में अगर आप हैं तो सीएम क्या किसी भी पद के लिए दावेदारी जताने का आपको अधिकार है। अगर चुनाव जीतने से पहले ही कोई व्यक्ति या नेता खुद को मीडिया या अन्य माध्यमों के जरिए सक्षम दिखाने की कोशिश करता है तो वह अनुशासनहीनता है। बेहतर हो कि अगर किसी को शंका है तो वह आलाकमान से स्पष्ट बात करे न कि अप्रत्यक्ष रूप से दबाव बनाने की कोशिश करे।’ जब इनसे पूछा गया कि समर्थक तो अपनी तरफ से भी नारेबाजी कर सकते हैं, इसके लिए नेता को कैसे जिम्मेदार माना जा सकता है, तो जवाब मिला, ‘देखिए समर्थकों को सही दिशा-निर्देश देना नेताओं का काम है। प्रधानमंत्री अगर आ रहे हों तो समर्थकों को ब्रीफ किया जाना चाहिए क्या करना है क्या नहीं। और फिर प्रदेश में और भी तो वरिष्ठ नेता हैं, उनके समर्थकों ने तो उनके पक्ष में इस तरह से नारेबाजी नहीं की। नेताओं को समझना चाहिए कि इस तरह की हरकतें न सिर्फ पार्टी को कमजोर करती हैं बल्कि अन्य कार्यकर्ताओं का मनोबल भी तोड़ती हैं।’

गौरतलब है कि शिमला में रैली के दौरान शांता कुमार, जेपी नड्डा और अनुराग ठाकुर के पक्ष में भी नारे लगे थे मगर जोरदार नारेबाजी धूमल के पक्ष में ही हुई थी। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि बीजेपी के वरिष्ठ नेता शांता कुमार अब हिमाचल की राजनीति में रुचि नहीं रख रहे इसलिए उनकी तरफ से किसी तरह की कोई दावेदारी अब बाकी नहीं रही है। नड्डा खुद हिमाचल लौटने के इच्छुक लगते हैं मगर वह सार्वजनिक मंचों से कभी भी ऐसी बात कहते नजर नहीं आते जिससे लगे कि वह दावेदारी पेश कर रहे हों। संभवत: यह परिपक्वता इसलिए भी है क्योंकि अब वह बीजेपी के राष्ट्रीय संगठन में अहम भूमिका में हैं और जब चाहें हिमाचल लौट सकते हैं। अमित शाह के अध्यक्ष बनने के बाद बीजेपी में नड्डा को अहम भूमिका रही है क्योंकि जब नड्डा भाजयुमो के राष्ट्रीय अध्यक्ष थे, उसके बाद अमित शाह भाजयुमो के राष्ट्रीय कोषाध्यक्ष बने थे। बीजेपी पार्ल्यामेंट्री बोर्ड के मेंबर जेपी नड्डा लोकसभा चुनाव से लेकर विभिन्न राज्यों में विधानसभा चुनाव के दौरान टिकट आवंटन में मुख्य भूमिका में रहे थे। विश्लेषकों का यह भी मानना है कि शायद नड्डा अब हिमाचल लौटने के बजाय केंद्र में ही रहेंगे और वहां बड़ी जिम्मेदारी संभालते रहेंगे। मगर बीच-बीच में ऐसी खबरें भी आती रही हैं कि नड्डा की भूमिका टिकट आवंटन में अहम रहेगी और वह अपने किसी खास व्यक्ति को हिमाचल का सीएम बना सकते हैं।

उधर राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि धूमल जैसे अनुभवी नेता को Between the lines पढ़ना चाहिए। उन्हें देखना चाहिए हर जगह पर बीजेपी नए और युवा चेहरों को सीएम बना रही है। वैसे भी 70+ को बड़ी जिम्मेदारी न देने की बीजेपी की रणनीति भी धूमल के सीएम के तौर पर भविष्य पर सवालिया निशान लगाती है। ऊपर से पार्टी अध्यक्ष अमित शाह भी हिमाचल दौरे के दौरान कर चुके हैं कि अब हिमाचल में बीजेपी को ऐसा नेतृत्व चाहिए जो कम से कम 20-25 साल टिक सके। उनका इशारा धूमल की तरफ ही माना जा रहा है क्योंकि धूमल और शांता कभी भी हिमाचल में बीजेपी की सरकार को लगातार रिपीट करवाने में नाकाम रहे हैं। ऐसे में बावजूद इसके पीएम के शो में समर्थकों का नारेबाजी करना या आए दिन अनुराग ठाकुर का उनके पक्ष में बयानबाजी करना फायदे के बजाय नुकसान करवा सकता है। यह न सिर्फ उनके लिए, बल्कि उनके बेटे अनुराग ठाकुर के लिए भी नुकसानदेह हो सकता है कि क्योंकि भविष्य में अनुराग ठाकुर को भी हिमाचल प्रदेश की राजनीति करनी है। विश्लेषकों का कहना है कि इसलिए उन्हें दूरदृष्टि अपनाते हुए संगठन के अनुरूप चलना चाहिए। उत्साह में अप्रत्यक्ष रूप से भी दावेदारी पेश करना पांव पर कुल्हाड़ी मारने जैसा साबित हो सकता है।

रोमांचित कर देगी HRTC बस से की गई सबसे जटिल इलाके की यात्रा

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इन हिमाचल डेस्क।। एक यूट्यूब चैनल है ‘Himalayan Roads‘ जिसमें दुनिया की सबसे खतरनाक सड़कों में शुमार हिमालय की पर्वतमालाओं पर बनी सड़कों के रोमांचक वीडियो देखे जा सकते हैं। इसमें अधिकतर वीडियो हिमाचल प्रदेश के विभिन्न इलाकों के हैं। ये वीडियो दिखाते हैं कि पहाड़ की सड़कें कितनी अडवेंचरस और खतरनाक हैं। जाहिर है इनमें खूबसूरती तो देखने को मिलती ही है। इस यूट्यूब चैनल ने नया वीडियो पोस्ट किया है, जिसका टाइटल है- Nerve-Racking Himalayan Ride in an HRTC Bus.

इसका अर्थ हुआ- HRTC की बस से हिमालय की रोमांचित कर देने वाली यात्रा। इसमें HRTC के ड्राइवरों के स्किल्स भी देखने को मिलते हैं कि वे कितने मुश्किल हालात में ड्यूटी करते हैं और कितनी खतरनाक सड़कों पर बस चलाते है। उनके ऊपर जिम्मेदारी होती है बस पर सवार लोगों की जिंदगी की। क्योंकि एक गलती और बस कई फीट गहरी खाई में। बचने की संभावनाएं लगभग शून्य। रेस्क्यू के लिए भी कब कौन आएगा, कोई तय नहीं।

 

छोटी सी गलती भी जानलेवा हो सकती है।

 

हिमाचल प्रदेश के चर्चित फटॉग्रफर हिमांशु खागटा ही इस वीडियो के डायरेक्टर और एडिटर हैं। उन्होंने बहुत खूबसूरती से इस वीडियो को बनाया है। तो नीचे देखिए आप यह वीडियो और घर पर बैठकर निकल जाइए रोमांचित कर देने वाली यात्रा पर, HRTC बस के जरिए।

 


‘इन हिमाचल’ का यह भी मानना है कि इन इलाकों की सड़कों की दशा सुधारने की दिशा में केंद्र और प्रदेश दोनों सरकारों को गंभीरता से सोचना होगा। आज टेक्नॉलजी के दौर में सबकुछ संभव है। ऐसी सड़कें बनाई जा सकती हैं जो प्रतिकूल मौसम और भौगोलिक परिस्थितियों में भी सुरक्षित बनी रहें।