वनरक्षक होशियार सिंह की संदिग्ध हालात में मौत हत्या या आत्महत्या?

मंडी।। संदिग्ध हालात में मृत पाए गए वनरक्षक होशियार की हत्या के मामले को कहीं आत्महत्या के केस में बदलने की कोशिश तो नहीं हुई है? जनता के बीच इस प्रश्न को लेकर सुगबुगाहट शुरू हो चुकी है और तरह-तरह की बातें की जा रही हैं। चूंकि पुलिस ने अभी तक मामले को सुलझाने का दावा नहीं किया है इसलिए कुछ भी कहना जल्दबाजी है। मगर यह सवाल इसलिए उठने लगा है क्योंकि मीडिया में अब  इस केस के बारे में जो जानकारियां सामने आई हैं, उनके हिसाब से लगता है कि मामला गड़बड़ है। इस मामले को खुदकुशी का मामला बताने के पीछे जिन कथित सबूतों का हवाला दिया जा रहा है, वे कथित सबूत ही दरअसल इशारा कर रहे हैं कि मामले को खुदकुशी का रंग देने की कोशिश हुई है। यानी ऐसा लगता है कि हत्यारों ने हत्या के बाद जांच को गुमराह करने के लिए आत्महत्या का रंग देने की कोशिश की है।

सुसाइड नोट या टूर डायरी?
अमर उजाला का कहना है कि पुलिस ने गार्ड के कमरे से एक डायरी बरामद की है जिसमें उसने चार लोगों के नाम लिए हैं- लोभ सिंह, हेतराम, घनश्याम और अनिल। इसमें होशियार ने लिखा है कि चारों अवैध कटान के धंधे से जुड़े हैं और जब इन्हें रोका जाता है तो वे तंग करते हैं और धमकियां देते हैं। पुलिस ने चारों को हिरासत में ले लिया है। डायरी में वन विभाग के कर्मचारियों और अफसरों के नाम भी लिखे गए हैं। मीडिया में चर्चा है कि यह सुसाइड नोट है, मगर इस जानकारी से समझ आता है कि यह संभवत: टूर डायरी है जो फॉरेस्ट गार्डों को दी जाती है। इसमें इन्हें वन में घूमने के दौरान नोटिस की गई चीजों की जानकारी लिखनी होती है। साथ ही अखबार की रिपोर्ट में कहा गया है कि बैग में दादी के नाम संदेश मिला है। इसकी अभी पुष्टि नहीं हो पाई है।

जहर की शीशी का रहस्य क्या है?
अखबार की रिपोर्ट के मुताबिक पुलिस ने जांच के दौरान जहर की दो शीशियां भी बरामद की हैं। एक शीशी जंगल में मिले बैग में और दूसरी होशियार के क्वार्टर से मिली है। घटना स्थल के पास दो जगह उल्टी के निशान भी मिले हैं। पुलिस ने उल्टी के सैंपल्स को जांच के लिए भेज दिया है। अब कुछ अखबार लिखते हैं कि पुलिस को अब लगने लगा है कि मामला आत्महत्या का है। मगर परिजनों का कहना है कि यह तर्क आधारहीन है कि दो जगह उल्टियां मिलीं। उनका कहना है कि जब वह लापता हुआ था तो दो दिन भारी बारिश हुई थी। ऐसे में कैसे संभव है कि उल्टियां वैसी की वैसी हों। बहरहाल, कहा जा रहा है कि पुलिस इस ऐंगल को भी ध्यान में रखकर जांच कर रही है कि कहीं जहर पिलाकर मारने के बाद शव को पेड़ पर न टांगा हो।

कलाइयां नहीं काटी गईं तो वे निशान कैसे?
दिव्य हिमाचल का कहना है कि पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट में कलाइयां काटने की बात भी झूठी निकली है। अगर ऐसा है तो यह साफ दिखता है कि उसकी कलाइयों पर खून जमने के निशान हैं। कलाइयों में खून तभी जमेगा जब किसी चीज से बांधकर प्रेशर डाला गया हो। यानी यह हत्या के मामले में ही संभव हो सकता है कि होशियार की कलाइयां बांधकर उसे जबरन जहर पिलाया गया हो (अगल पिलाया गया है) और फिर उसी से खींचकर पेड़ पर टांगा गया और फिर हत्यारे रस्सियां खोलकर चले गए हों। क्योंकि आत्महत्या करने वाले शख्स के हाथों में इस तरह के चोट के निशान कैसे आ सकते हैं? नीचे तस्वीर देखें:

कलाइयों में खून के निशान साफ देखे जा सकते हैं

इन सवालों के जवाब देने होंगे पुलिस को
अगर पुलिस इसे आत्महत्या का मामला बतातीु है तो उसे कुछ मुश्किल सवालों के जवाब देने होंगे। प्रश्न यह उठता है कि मृतक की दोनों कलाइयों में ब्लड क्लॉटिंग क्यों हुई थी यानी खून के थक्के क्यों जमे थे? गौरतलब है कि ऐसी खरोंचें और खून के नील तभी आते हैं जब रस्सी से बांधकर प्रेशर डाला हो। अगर होशियार ने आत्महत्या की तो उसके हाथों में ये निशान कहां से आए? प्रश्न यह भी है कि अगर कोई सुसाइड नोट मिला है तो पहले ही दिन वह क्यों नहीं मिल गया? कोई जहर पीने के बाद पेड़ पर क्यों चढ़ेगा? और ऐसा कैसे संभव है कि वह उल्टा लटका है, शर्ट खुली हुई है और नीचे गिरी है? सिर पर चोट कैसे आ गई?

कुछ लोग डायरी में लिखे गए नामों और धमकी वाली बातों के आधार पर कह रहे हैं कि हो सकता है डिप्रेशन में आकर खुदकुशी की हो। सबसे बड़ा सवाल तो यह उठता है कि अगर वन माफिया का इतना ही प्रेशर था तो कोई जॉब छोड़ेगा या यह दुनिया? वैसे भी जिस दिन वह गायब हुआ था, उसी दिन उसने नर्सरी से लाकर महिला मंडल को पौधे भी दिए थे। अगर कोई इतने तनाव में होगा कि मुझे सुसाइड करना है तो क्या वह इस तरह के काम करने में जुटा रहता? चलो मान लिया कि उसे सुसाइड ही करना था क्यों नहीं उसने किसी ढांक से छलांग लगा दी या क्यों नहीं जहर कमरे में पी लिया या क्यों नहीं जंगल में जाकर फंदा बनाकर जान दे दी?

पहली बात तो यह है कि सुसाइड करने वाला सुसाइड नोट को छिपाता नहीं है, बल्कि सामने रखता है। इसे खुदकुशी बताने वाले लोग क्या यह कहना चाहते हैं कि पहले होशियार ने आत्महत्या करने का प्लान बनाया, नर्सली से पौधे लाकर महिला मंडल में दिए, फिर बैग उठाकर वह जंगल में गया, अपनी कलाइयों पर निशान डाले, फिर जहर पीया, उल्टियां कीं, अपना सिर फोड़ा, खरोंचें डालीं और फिर पेढ़ पर चढ़कर उल्टा लटक गया। अगर ऐसा है तो क्रिमिनल साइकॉलजी के इतिहास में यह अनोखा ही मामला है। कुछ अखबार यह लिख रहे हैं कि ‘खुदकुशी’ करने से पहले उसने दादी को फोन करके ख्याल रखने को कहा है। क्या हम-आप परिजनों से बात करने के बाद फोन रखने से पहले उन्हें ख्याल रखने के लिए नहीं कहते? टेक केयर नहीं कहते?

पुलिस की जांच गुमराह तो नहीं हो गई कहीं?
कहीं ऐसा तो नहीं कि पुलिस क्रिमिनल्स के बिछाए जाल में फंसकर गुमराह हो गई है? या कहीं ऐसा तो नहीं कि किसी दबाव में आकर गुनहगारों को बचाने की कोशिश हो रही है? वैसे तफ्तीश के लिए ऐंगल ये भी हो सकते हैं और इन बातों को ध्यान में रखकर भी अपराधियों तक पहुंचा जा सकता है-

चूंकि होशियार ने कुछ दिन पहले लकड़ी की तस्करी करती गाड़ी पकड़ी थी और इसकी शिकायत भी की थी, जाहिर है उसे खतरा था। परिजनों का भी कहना है कि इलाके में कई पेड़ ताजा कटे हैं और होशियार को धमकियां मिल रही थीं। या हो सकता है कि कोई और व्यक्ति हो जो होशियार से किसी खास वजह से खुन्नस खाकर बैठा हो और नफरत में उसने हत्या का प्लान बनाया हो।

हो सकता है कि जंगल में गए होशियार को कुछ लोगों ने घेर लिया हो और उसपर बंदूक या कोई हथियार तान दिया हो। फिर उसके हाथ बांधे हों और उसे जहर पिलाया हो या पीने को मजबूर किया हो। इस दौरान खुद को छुड़ाने की कोशिश के दौरान होशियार की कलाइयों में खून जम गया हो। या मारे जाने के बाद घसीटने के दौरान ऐसे रैशेज़ आए हों।

हो सकता है कि होशियार को मारने के बाद पेड़ पर टांगा गया हो। उसके शव को पेड़ पर फंसाने के बाद हमलावर रस्सियां खोलकर हमलावर फरार हो गए। यह भी हो सकता है कि होशियार के सिर पर किसी वजनदार चीज (संभवत: बंदूक बट्ट) से वार किया गया हो और उसे गंभीर चोट आई हो। इसी से उसकी मौत हुई हो। हो सकता है पीटने के बाद होशियार को बंदूक दिखाकर पेड़ पर चढ़ने के लिए मजबूर किया गया हो ताकि वहां से कूदवाकर मामले को खुदकुशी का रंग दिया जा सके। मगर जहर या चोट के असर के कारण वह चढ़ नहीं पाया और बीच रास्ते में उसने दम तोड़ दिया और उसका शव वहीं पर टहनियों में फंसा रह गया।

यह भी संभव है कि होशियार को कहीं पर बंधक बनाकर रखा गया हो। हो सकता है जब वह लापता चल रहा था तब वह जिंदा था और कहीं पर रस्सियों से बांधकर रखा गया हो। फिर जब मामला उठा तो उसके बाद उसे रास्ते से हटाने के लिए हत्यारों ने उसे मारा हो और इस तरह से शव को फेंक दिया हो और मामले को खुदकुशी का रंग देने की कोशिश की हो। शायद इसीलिए उल्टियों के निशान बचे हुए हैं क्योंकि बारिश तो होशियार के लापता होने के दो दिन बाद हुई थी। यानी बारिश होने के बाद होशियार को यहां लाकर मारा गया। बहरहाल, इसका खुलासा तो पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट आने के बाद ही हो पाएगा कि होशियार की मौत कब हुई थी।

कहीं ऐसा न हो कि होशियार सिंह के पिता की मौत (बताया जा रहा है कि उन्होंने खुदकुशी की थी) से होशियार की मौत को भी लिंक कर दिया जाए और कहा जाए कि फैमिली में डिप्रेशन की हिस्ट्री है, लिहाजा वनरक्षक ने भी प्रेशर न झेलते हुए यह कदम उठा लिया। इस मामले में पुलिस पर सबकी निगाहें टिकी हुई हैं। केस पेचीदा है और अपराधी शातिर। पुलिस को सबूत जुटाने होंगे और मामले की तह तक जाना होगा। अगर यह वाकई सुसाइड का मामला है तो पुलिस के लिए इसे सुसाइड साबित करना और भी मुश्किल होगा।

मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह ने केंद्रीय मंत्री जे.पी. नड्डा को बताया ‘बदतमीज’

मंडी।। हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह ने केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री जगत प्रकाश नड्डा पर हमला करते हुए उन्हें ‘बदतमीज’ करार दिया है। मंडी जिले के दौरे पर आए वीरभद्र सिंह ने पत्रकारों के साथ बातचीत में नड्डा को बदतमीज बताया। मुख्यमंत्री से पूछा गया था कि नड्डा आपका इस्तीफा मांग रहे हैं, इस पर वह भड़क उठे और उन्होंने नड्डा पर गुस्सा निकालना शुरू कर दिया।

भड़के हुए मुख्यमंत्री ने कहा, ‘मैं समझता था वह लड़का तमीज वाला है। वह जल्दबाजी में है और बदतमीज है। जिस आदमी को तमीज न हो, वह प्रदेश का मुख्यमंत्री बनने का सपना देखे तो यह प्रदेश का दुर्भाग्य है। बड़े से बड़े आदमी को तमीज से बात करनीचाहिए। मैं चाहता तो उनकी बदतमीजी का जवाब स्टेज पर ही दे देता मगर यह हमारी सभ्यता नहीं है।’

भले ही मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह नड्डा को बदतमीज बताते हुए शालीन भाषा में बात करने की सलाह दे रहे हों मगर इसी तरह के आरोप खुद मुख्यमंत्री के ऊपर भी लगते रहे हैं। बीजेपी विधायक राजीव बिंदल ने ‘न्यूज 18 हिमाचल’ से बात करते हुए कहा कि मुख्यमंत्री खुद मर्यादित भाषा में बात नहीं करते। उन्होंने उदाहरण देते हुए कहा कि मुख्यमंत्री दूसरों को मकरझंडू कहते हैं तो कभी कुछ, यह भी तो बदतमीजी है।

वनरक्षक होशियार सिंह की मौत के मामले में आया नया मोड़, खुदकुशी की आशंका: मीडिया रिपोर्ट

एमबीएम न्यूज नेटवर्क, मंडी।। संदिग्ध हालात में मृत पाए गए फॉरेस्ट गार्ड होशियार सिंह की मौत के मामले में नया मोड़ आता दिख रहा है। कहा जा रहा है जांस में आत्महत्या का मामला सामने आ रहा है। एमबीएम न्यूज नेटवर्क की रिपोर्ट के मुताबिक शनिवार को मृतक का जो बैग बरामद हुआ है, उससे एक सुसाइड नोट मिला है। इस नोट में चार लोगों पर मानसिक प्रताड़ना का आरोप लगा है और दादी से माफी भी मांगी है कि मैं खुदकुशी कर रहा हूं।  एमबीएम न्यूज नेटवर्क  ने सूत्रों के हवाले से लिखा है कि मौत को गले लगाने से पहले वनरक्षक ने अपनी दादी को ठीक से रहने की बात भी फोन पर कही थी।

गौरतलब है कि पुलिस ने पहली नजर में हत्या का मामला दर्ज किया था लेकिन जांच के दौरान यह सवाल उठा कि हत्या के बाद लाश को 15 फीट ऊंचे पेड़ पर चढ़ाना आसान नहीं है। कहा जा रहा है कि मौके से जहर की शीशी पुलिस ने बरामद की है और उल्टी के सैंपल लिए हैं। बैग से सुसाइड नोट मिलने से पुलिस को लगता है कि मामला आत्महत्या का है। एमबीएम न्यूज नेटवर्क ने सूत्रों के हवाले से लिखा है कि आत्महत्या के उकसाने के लिए पुलिस ने कुछ लोगों से पूछताछ भी शुरू कर दी है औऱ करीब डेढ़ दर्जन लोगों के बयान कलमबद्ध कर लिए गए हैं।

सवाल यह उठता है कि कोई खुदकुशी के लिए जंगल में जाकर जहर भी पिएगा, अपनी कलाइयां भी काटेगा और पेड़ पर क्यों चढेगा?

एमबीएम न्यूज नेटवर्क के मुताबिक पोस्टमॉर्टम के बाद चिकित्सकों ने होशियार सिंह के शरीर में किसी भी तरह की चोट न होने की बात कही है। काफी हद तक चिकित्सक भी इस नतीजे पर पहुंच चुके हैं कि मामला सुसाइड का है। सूत्र यह भी बता रहे हैं कि अगर मामला आत्महत्या के उकसाने का निकलता है तो उस सूरत में गिरफ्तारियां हो सकती हैं। एएसपी कुलभूषण वर्मा का कहना है कि हरेक पहलू को खंगाला जा रहा है। उन्होंने माना कि कुछ ग्रामीणों के अलावा वन विभाग के एक अधिकारी से भी इस मामले में पूछताछ कर रही है।

बताया जा रहा है कि वनरक्षक कुछ समय से डिप्रेशन में था। तीन महीने पहले ही डयूटी जॉइन की थी। यह पक्का है कि इस इलाके में बड़े स्तर पर अवैध कटान चल रहा था। इसे काबू करने के लिए होशियार ने काफी कोशिश की थी। माना जा रहा है कि अवैध कटान को काबू न कर पाने के कारण डिप्रेशन में आया होगा, क्योंकि इससे विभाग उस पर कार्रवाई कर सकता था। असल मामला जांच के बाद ही सामने आएगा मगर आत्महत्या के लिए उकसाना भई संगीन अपराध है और धारा  306 के तहत जमानत की गुंजाइश भी नहीं होती। अगर ऐसा पाया जाता है तो गिरफ्तारियां हो सकती हैं।

फिर भी कुछ सवालों के जवाब मुश्किल
अगर पुलिस के मन में यह सवाल उठ रहा था कि कोई लाश को इतनी ऊंचाई पर ले गया तो पुलिस के मन में यह सवाल क्यों नहीं उठा कि कोई आत्महत्या करने के लिए  ऐसा क्यों करेगा कि कहीं जंगल में जाएगा, सुसाइड नोट बैग में डालेगा और उसे फेंक देगा, अपनी कलाइयां भी काटेगा, जहर भी पिएगा और फिर पेड़ पर चढ़ जाएगा। आशंका यह उठने लगी है कि कहीं शातिर हत्यारों ने जांच को गुमराह करने के लिए ऐसा तो नहीं किया है कि बहुत सारे फैक्टर जोड़ दिए जाएं और पुलिस कुछ समझ ही न पाएं। बहरहाल, कुछ वक्त का इंतजार करना होगा।

 

बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने महात्मा गांधी को बताया ‘चतुर बनिया’

इन हिमाचल डेस्क।। छत्‍तीसगढ़ के दौरे पर गए बीजेपी अध्‍यक्ष अमित शाह महात्मा गांधी को चतुर बनिया कहने को लेकर विवाद में फंस गए हैं। शुक्रवार को कांग्रेस की आलोचना करते हुए अमित शाह ने कहा कि कांग्रेस कभी सिद्धांतों पर आधारित पार्टी नहीं रही और यह तो देश को आजादी दिलाने के खास मकसद से गठित संगठन था। उन्होंने कहा कि इसलिए आजादी के बाद महात्‍मा गांधी ने कांग्रेस को खत्‍म करने के लिए कहा था क्‍योंकि वह इसकी कमजोरियों को अच्‍छी तरह जानते थे। इंग्लिश न्यूजपेपर ‘द इंडियन एक्‍सप्रेस’ की रिपोर्ट के मुताबिक इसी दौरान शाह ने महात्‍मा गांधी को ‘चतुर बनिया’ कह दिया।

रिपोर्ट के मुताबिक शाह ने कहा, ‘हमारा लक्ष्य राज्य विधानसभा चुनाव में 65 सीटें जीतने का है।’ साथ ही उन्होंने महात्मा गांधी पर बड़ा बयान देते हुए कहा कि वो दूरदर्शी होने के साथ, बहुत चतुर बनिया था, उन्हें मालूम था कि आगे क्या होने वाला है, उन्होंने आजादी के बाद कहा था, कांग्रेस को बिखेर देना चाहिए।

कांग्रेस ने इस बयान का आपत्तिजनक बताते हुए अमित शाह से माफी मांगने को कहा है। अन्य कई पार्टियों ने अमित शाह के बयान को शर्मनाक बताया है। वहीं शाह ने अपने बयान पर सफाई देते हुए कहा है कि उनकी बात का गलत मतलब निकाला गया है। उन्होंने कहा, ‘सबको पता है कि मैंने यह बात किस संदर्भ में कही थी।’

वनरक्षक की मौत पर मुख्यमंत्री वीरभद्र ने कहा- इस तरह के एक-दो केस हो जाते हैं

मंडी।। मंडी जिले के करसोग में फॉरेस्ट गार्ड होशियार की संदिग्ध हालात में मौत के मामले में मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह ने कहा है कि कई बार इस तरह के एक-दो केस हो जाते हैं। उन्होंने वन माफिया की बातों को सिरे से खारिज करते हुए कहा कि प्रदेश में कभी वन माफिया का खौफ था, लेकिन आज वन माफिया दूर भागते हैं। उन्होंने यह भी कहा कि अभी मामले की सीबीआई जांच की जरूरत नहीं है। बीजेपी नेता राजीव बिंदल ने ”न्यूज 18 पंजाब, हरियाणा हिमाचल” से बात करते हुए मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह के बयान को दुर्भाग्यपूर्ण करार दिया। साथ ही उन्होंने मांग की कि इस मामले की केंद्रीय एजेंसी से जांच होनी चाहिए।

Courtesy: News 18 Himachal

मंडी में आए मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह ने इस मामले पर कहा, ‘कई दफा इस तरह के एक-दो केस हो जाते हैं क्योंकि वन रक्षकों का कार्य काफी जोखिम भरा होता है। इस मामले में एफआईआर दर्ज कर ली गई है और पुलिस पूरे मामले की जांच कर रही है। प्रदेश की पुलिस जांच करने में पूरी तरह से सक्षम है और भविष्य में अगर जरूरत पड़ी तो केंद्रीय जांच एजेंसियों का सहारा लिया जा सकता है।’

गौरतलब है कि इससे पहले स्वाइन फ्लू से होने वाली मौतों को लेकर पूछे गए सवाल के जवाब में भी उन्होंने कैजुअली कहा था- जहां आबादी होगी, वहां कोई न कोई बीमारी तो होगी ही (यहां क्लिक करके पढ़ें खबर) ।

उधर मृतक वन रक्षक होशियार सिंह का जोनल हॉस्पिटल मंडी में पोस्टमॉर्टम करवाया गया, मगर बाद में परिजनों ने शव लेने से इनकार कर दिया था। जब उच्च स्तरीय जांच का आश्वासन लिया तभी वे शव लेकर घर के लिए रवाना हुए। गौरतलब है कि होशियार सिंह के परिजन वन विभाग पर लापरवाही बरतने का आरोप लगा रहे है। वह यह भी कह रहे हैं कि वन माफिया को संरक्षण दिया जा रहा है।

कुछ महीने पहले ही लगी थी जॉब

परिजनों का कहना है कि होशियार सिंह को धमकियां मिल रही थीं और वन विभाग के अधिकारी इन धमकियों को हल्के में ले रहे थे। परिजनों का यहां तक कहना है कि जंगल में पेड़ों के ताजा कटान के सबूत भी मौजूद हैं लेकिन कार्रवाई नहीं हो रही।

जब बीजेपी कार्यकर्ताओं ने नारा लगाया- हमारा नेता कैसा हो, जी.एस. बाली जैसा हो

ऊना।। हिमाचल प्रदेश के पेखूबेला में आईओसी के टर्मिनल के उद्घाटन के मौके जमकर नारेबाजी हुई। बीजेपी और कांग्रेस के कार्यकर्ता एक तरह से शक्ति प्रदर्शन की होड़ में लगे हुए थे। कांग्रेस समर्थक जहां वीरभद्र सिंह जिंदाबाद बोल रहे थे वहीं बीजेपी कार्यकर्ता मोदी जिंदाबाद के नारों में जुटे हुए थे। दोनों पार्टियों के नेता जनता को खामोश करने की कोशिश में लगे हुए थे और केंद्रीय मंत्री धर्मेंद्र प्रधान तक को मंच संभालकर लोगों को शांत करवाना पड़ा। मगर तब माहौल मजेदार हो गया जब भाजपा कार्यकर्ताओं ने हिमाचल प्रदेश के परिहवन व खाद्य आपूर्ति मंत्री जी.एस. बाली के पक्ष में नारेबाजी की।

हिंदी अखबार पंजाब केसरी की रिपोर्ट के मुताबिक जैसे ही जी.एस. बाली अपनी सीट से उठकर संबोधन के लिए माइक पर आए तो मंच के सामने बैठे बीजेपी कार्यकर्ताओं ने नारेबाजी शुरू कर दी। पहले जहां ये कार्यकर्ता पीएम मोदी जिंदाबाद के नारे लगा रहे थे, अब उन्होंने ‘बाली जी को जय श्रीराम’ के नारे लगाने शुरू कर दिए। इस दौरान वीरभद्र जिंदाबाद के नारे लगा रहे कांग्रेस कार्यकर्ता हैरान रह गए। मगर वहां मौजूद सब लोगों की हैरानी तब और बढ़ गई जब बीजेपी कार्यकर्ताओं ने नारा लगाया- हमारा नेता कैसा हो, जी.एस. बाली जैसा हो।

इस घटनाक्रम से जहां कांग्रेस के नेता असमंजस में पड़ गए वहीं बीजेपी के आला नेता मुस्कुराते हुए नजर आए। मुस्कुराते हुए यह नारेबाजी कर रहे बीजेपी कार्यकर्ताओं को देख जी.एस. बाली भी मुस्कुराए बिना नहीं रह पाए। बहरहाल, इसके बाद बाली अपना भाषण शुरू किया। उन्होंने पीएम मोदी पर चुटकी भी और मुस्कुराते हुए कहा, ‘मोदी कहते हैं कि लोगों को चूल्हों से निजात दिलानी है। मगर चूल्हों पर ही सबसे स्वादिष्ट खाना बनता है और यह दौर मैंने खुद देखा है जब सभी जगह चूल्हों पर ही खाना बनता था। खैर, अब तो चूल्हों वाला दौर धीरे-धीरे बदल रहा है और लोग तरक्की कर रहे हैं।’

परिवहन मंत्री जीएस बाली

गौरतलब है कि हिमाचल कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और कैबिनेट मंत्री जीएस बाली प्रदेश में तेजी से लोकप्रिय हुए हैं। फेसबुक के माध्यम से समस्याओं का निपटारा करने की शुरुआत करने वाले वह हिमाचल के पहले मंत्री हैं। अपने फेसबुक पेज पर लाइव आकर वह कई बार लोगों के सुझाव ले चुके हैं। इसके अलावा प्रदेश को लाखों का चूना लगा रही अवैध बसों के खिलाफ छापेमारी में रात को खुद मौजूद रहने पर भी वह चर्चा में रहे।

बेरोजगारी भत्ते से लेकर अपनी संपत्ति का ऐलान करने की वजह से भी वह सुर्खियां बटोर चुके हैं। कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं के साथ-साथ बीजेपी के वरिष्ठ नेताओं से उनकी करीबी के भी चर्चे हैं, जिनके दम पर वह अपने विभागों में हिमाचल के लिए केंद्र से बहुत कुछ ला चुके हैं। ऐसे में यह चर्चाएं भी चल रही हैं कि कहीं वह भी बीजेपी में शामिल तो नहीं होने वाले। हो सकता है कि बीजेपी कार्यकर्ताओं की उनके पक्ष में नारेबाजी इन्हीं अटकलों पर आधारित हो।

धूमल और राजा की लड़ाई में जनता को बलि मत चढ़ाओ: केंद्रीय मंत्री धर्मेंद्र प्रधान

ऊना।। हिमाचल प्रदेश के ऊना जिले मे पेखूबेला में IOC टर्मिनल के शिलान्यास के मौके पर केंद्रीय तेल एवं प्राकृतिक गैस राज्यमत्री (स्वतंत्र प्रभार) पहुंचे थे। संबोधन के दौरान उन्होंने कहा- धूमल और राजा की राजनीतिक लड़ाई में हिमाचल प्रदेश की जनता का क्या कसूर है? गरीबों को इस लड़ाई की बलि मत चढ़ाओ (स्रोत)।  धर्मेंद्र प्रधान ने संबोधन के दौरान कहा कि योजनाओं को राजनीतिक द्वेष के चलते बंद करने या शुरू न होने देने से प्रदेश की जनता का नुकसान होता है और ऐसा नहीं होना चाहिए।

केंद्रीय मंत्री धर्मेंद्र प्रधान के सामने जमकर नारेबाजी भी हुई। भाजपा और कांग्रेस के कार्यकर्ता अपनी-अपनी पार्टी को श्रेय देने में लगे हुए थे। बीजेपी कार्यकर्ता मंच के सामने डेरा जमाए हुए थे और एक तरफ कांग्रेस के कार्यकर्ता थे। इस दौरान कांग्रेसियों ने मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह के पक्ष में नारेबाजी की तो भाजपाइयों ने भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के पक्ष में नारेबाजी की।

बीजेपी और कांग्रेस समर्थक करते रहे नारेबाजी

सांसद अनुराग ठाकुर, उद्योग मंत्री मुकेश अग्रिहोत्री और बीजेपी प्रदेशाध्यक्ष सतपाल सत्ती ने नारेबाजी कर रहे कार्यकर्ताओं को शांत करवाने की कोशिश करते रहे। जब माहौल शांत नहीं हुआ तो केंद्रीय मंत्री प्रधान खुद उठकर माइक के पास पहुंच गए। इस दौरान उन्होंने खुद को हिमाचल का दामाद बताया और दामाद की इज्जत रखने की दुहाई देते हुए सभी को चुप रहने के लिए कहा (स्रोत)। इसके बाद माहौल शांत हुआ और कार्यक्रम शुरू हुआ।

सिर्फ डंडे के सहारे बहुत बड़े इलाके में जंगलों की रक्षा करते हैं फॉरेस्ट गार्ड

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शिमला।। मंडी में लापता हुए फॉरेस्ट गार्ड का शव पेट से टंगा मिलने के मामले में पुलिस ने पहली नजर में हत्या का मामला मानकर छानबीन शुरू की है। शक है कि जंगल से पेड़ काटने वालों ने ही गार्ड को बेरहमी से मारा और फिर उसके शव को देवदार में टहनियों के बीच टांग दिया। यह घटना दिखाती है कि हमारे वनरक्षक किन हालात में काम करने को मजबूर हैं और उनके पास अपनी सुरक्षा के लिए न तो हथियार हैं और न ही कोई ऐसा बैकअप कि वे निडर होकर अपना काम कर सकें। गौरतलब है कि हिमाचल प्रदेश के वन मंत्री ठाकुर सिंह भरमौरी हैं। वही मंत्री, जो आए दिन कार्यक्रमों में शिरकत करते दिखते हैं और उनमें गाने गाते और नाचते नजर आते हैं। नाचने-गाने में कोई बुराई नहीं मगर उन्हें समझना चाहिए कि वह कला एवं संस्कृति मंत्री नहीं, बल्कि वन मंत्री हैं। दरअसल उन्होंने बातों के अलावा विभाग में पॉलिस ऐंड प्लानिंग के मामले क्या अभूतपूर्व किया है, अब तक नजर नहीं आया।

पढ़ें: मृत मिला लापता हुआ फॉरेस्ट गार्ड, पेड़ से उल्टी टंगी मिली लाश

पिछले साल जब ऊना में वन माफिया ने वन विभाग की टीम पर हमला किया था, उस वक्त मामला हिमाचल प्रदेश विधानसभा में भी गूंजा था। तब वन मंत्री ठाकुर सिंह भरमौरी ने कहा था कि जो बीट्स संवेदनशील हैं यानी जहां पर खतरा ज्यादा है, वहां पर कर्मचारियों को हथियार मुहैया करवाए जाएंगे। एक साल से ज्यादा वक्त हो गया मगर आज तक कोई नियम नहीं बना। हथियार रखने या गोली चलाने को लेकर कोई नियम या कानून नहीं बना। साफ है, यह घोषणा हवा-हवाई साबित हुई और अगर इस पर काम हो रहा है तो फाइलें कहां लटकी हैं और कब तक लटकी रहेगी। प्रेस कॉन्फ्रेंसों में भी मंत्री ने कहा था कि कर्मचारियों को असलहा दिया जाएगा। मगरवे भूल गए क्योंकि शायद उनकी रुचि वनों में नहीं, गानों में है। वरना अच्छा नेता और मंत्री वह है जो अपने विभाग को लेकर बेचैन रहे। फाइल के पीछे पड़ जाए और काम पूरा करवाकर दम ले। वह पुलिस और प्रशासन को भी कसे कि मेरे विभाग के कर्मचारियों का साथ देने में कोताही न बरती जाए और वन माफिया की कमर तोड़ी जाए। मगर अफसोस, ऐसा देखने को नहीं मिला।

लेख: वन मंत्री नाचते रहेंगे और पीछे से हिमाचल के जंगल साफ हो जाएंगे

बहुत मुश्किल हालात में काम करते हैं वनरक्षक
वनरक्षकों को अकेले ही बहुत बड़े इलाके की निगरानी करनी होती है और वह भी डंडे के सहारे। वन माफिया छोड़िए, कोई जंगली जानवर हमला कर दे तो उससे बचने के लिए धमाका करने वाली कोई खिलौना बंदूक तक नहीं। प्रदेश में 1700 के लगभग फॉरेस्ट बीट्स हैं और इनमें से एक चौथाई खाली हैं। ऐसे में इनमें ड्यूटी करने का काम भी बगल की किसी बीट को दे दिया जाता है। हिमाचल में ज्यादातर जंगल पहाड़ों में हैं। ऐसे में पैदल ही वनरक्षकों को अपने नॉलेज के सहारे चलना होता है। आज के इस युग में कोई जीपीएस डिवाइस तक नहीं दिया जाता (सिर्फ ब्लॉक लेवल पर उपलब्ध है, BO से लिया जा सकता है), आत्मरक्षा के लिए हथियार तो दूर बात है।

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वनरक्षकों के लिए हालात वहां मुश्किल हो जाते हैं जहां पर दूसरे राज्यों से सीमाएं लगती हैं। वहां तस्कर ज्यादा सक्रिय हैं। इन हालात में बेचारे वनरक्षकों को जबरदस्त दबाव के बीच काम करना पड़ता है। अकेले जंगल कोई मारकर कहां फेंक दे, पता ही नहीं चलेगा। होशियार के साथ भी ऐसा ही तो हुआ। कितने दिन लोग ढूंढते रहे मगर सुराग नहीं मिला। आखिरकार लाश पेड़ पर टंगी हुई मिली। दरअसल वनरक्षक अकेले कुछ नहीं कर सकते। विभाग को फ्री हैंड देना चाहिए और पुलिस का बैकअप होना चाहिए। राजनीतिक संरक्षण न मिले और पुलिस तुरंत कार्रवाई करे वन माफिया किसी पेड़ पर कुल्हाड़ी चलाने से पहले 100 बार सोचेगा और किसी की जान लेने से पहले 1000 बार। ऐसे में इस बार प्रदेश के पूरे सिस्टम पर जिम्मेदारी है जनता के बीच में विश्वास और माफिया के मन में दहशत पैदा करने की।

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मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक हिमाचल प्रदेश के वन विभाग के वरिष्ठ अधिकारी कहते हैं कि कर्मियों को हथियार देने की प्रक्रिया चल रही है। मगर  अभी तक विभाग के पास हथियारों के रखरखाव और आवंटन को लेकर कोई सिस्टम नहीं है। अब पता नहीं कब बनेगा इस बारे मे नियम और कब सरकारें होश में आकर वन माफिया पर नकेल कसेगा। हिमाचल वनों की वजह से ही हिमाचल है। वन नहीं रहेंगे तो सूखे पहाड़ों की क्या शोभा होगी? खैर, उम्मीद करें भी तो किससे। लोगों ने राजनेताओं के संरक्षण से देवदार के जंगल काटकर सेब के बागीचे लगा लिए हैं और सरकार भी अवैध कब्जों को नियमित करने को लेकर कानून लाने में जुटी रहती है। ऐसे में वनरक्षक बेचारे निहत्थे किस-किस से लड़ेंगे।

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ऊना।। वनरक्षक होशियार सिंह की निर्मम हत्या से पूरा प्रदेश हिला हुआ है। आशंका जताई जा रही है कि यह वन माफिया की करतूत है। यह पहला मामला नहीं है जब वनों को बचाने की जिम्मेदारी निभा रहे कर्मचारियों को माफिया ने इस तरह से निशाना बनाया है। अब तक कई मामले सामने आ चुके हैं। सिरमौर में महिला फॉरेस्ट गार्ड से मारपीट का मामला हो, कर्मचारियों पर गोलीबारी का मामला हो या ऊना में पथराव करके मोबाइल छीनने का मामला हो। प्रदेश में हर जगह वन माफिया निरंकुश हो चुका है। ऐसा भी नहीं है कि लकड़ी की तस्करी कोई जेब में रखकर कर रहा हो कि किसी को पता ही न चले। ट्रकों के ट्रक जाते हैं मगर सब मूकदर्शक बने रहते हैं। आरोप लगते हैं कि वन माफिया को राजनीतिक शह मिली हुई है। इसके कई उदाहरण भी देखने को मिले हैं।

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पिछले साल एक मामला चर्चा में रहा। फरवरी 2016 में जिला ऊना के हरोली में एक घटना घटी थी, जहां के विधायक मुकेश अग्निहोत्री मौजूदा कांग्रेस सरकार में कैबिनेट मंत्री हैं। यहां के गोंदपुर जयचंद गांव में वन विभाग की टीम पर माफिया ने जानलेवा हमला कर दिया था। हमले में वन खंड अधिकारी समेत तीन कर्मचारी घायल हो गए थे।  माफिया के दुस्साहस का इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि उन्होंने रेंज अधिकारी और चालक का मोबाइल फोन तक छीन लिया। यही नहीं, पत्थरों से गाड़ियों के शीशे भी तोड़ दिए गए। हालांकि पुलिस भी वन विभाग की टीम के साथ थी, लेकिन हमले के दौरान वहां से भाग गई (स्रोत)।

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टीम ने गुप्त सूचना के आधार पर गोंदपुर गांव में छापेमारी की थी। इस दौरान विभाग की टीम को चारों तरफ से घेर लिया गया था। हमले में घायल डेप्युटी रेंजर पवन कुमार ने बताया था कि सूचना मिली थी कि हरोली क्षेत्र के गोंदपुर जयचंद गांव के बेलिया में अवैध कटान हो रहा है। सूचना मिलते ही टीम मौके पर पहुंच गई। साथ ही इसकी खबर रेंज अधिकारी को भी दी गई। जब अधिकारियों ने लकड़ी काटने में संलिप्त लोगों से पूछताछ की तो उन्होंने पत्थरों से टीम पर हमला कर दिया। साथ ही गाड़ी भी तोड़ दी। रेंज अफसर ने बताया था कि हमलावर तेजधार हथियारों से लैस थे। उन्होंने कहा कि हमलावरों की संख्या 100 के आसपास थी(स्रोत)। हमलवावरों में पुरुषों के साथ महिलाएं और बच्चे भी थे

वन माफिया गोंदपुर जयचंद में बड़े पैमाने पर लकड़ी का कटान करने के बाद इसे ट्रक में लोड कर पंजाब में तस्करी के लिए ले जाने की फिराक में था, लेकिन अचानक वन विभाग की टीम को मौके पर पाकर आपा खो बैठा तथा जांच टीम पर हमला कर दिया। हमले के बाद वन माफिया लकड़ी से भरा ट्रक भगाकर ले जाने में कामयाब हो गया। हालांकि वन विभाग की टीम ने मौके से करीब सात से आठ ट्राली आम व शीशम की लकड़ी बरामद करने में सफलता प्राप्त की थी। पुलिस ने मामले में एक अभियुक्त मुश्ताक पुत्र गामा निवासी नंगल कलां हरोली को गिरफ्तार करके ट्रक (एचपी-72, 2577) को कब्जे में ले लिया था।

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गौरतलब है कि इस मामले में बीजेपी ने उद्योग मंत्री और स्थानीय विधायक मुकेश अग्निहोत्री पर माफिया को संरक्षण देने और आरोपियों को बचाने के आरोप लगाए थे और आरोपों का सिलसिला आज भी जारी है (स्रोत)। दरअसल मौके पर पकड़े गए आरोपी और कुछ अन्य के खिलाफ भले मामला चल रहा हो मगर हमला करने वाली भीड़ में शामिल लोग बच गए। आरोप लगे कि आखिर इतने बड़े पैमाने पर जंगल कट रहे थे और वन विभाग की टीम पर हमला कर दिया गया और बड़े स्तर पर कार्रवाई ही नहीं हुई? विपक्ष और मीडिया तक में सवाल उठ चुके हैं कि वह कैसा विधायक या मंत्री हुआ जिसे पता ही नहीं कि उसके इलाके में क्या हो रहा है।

जब तक सबूत न हों, मंत्रियों और विधायकों के ऐसे मामलों में शामिल रहने के आरोप हवा-हवाई ही कहे जाएंगे और उनके सत्ता में रहते इन आरोपों की निष्पक्ष जांच होना और सच सामने आना संभव नहीं। मगर इतना तो तय है कि कहीं पर वन माफिया इतने बड़े लेवल पर सक्रिय हो और स्थानीय नेता की नाक के नीचे उसके गृहक्षेत्र में ऐसा हो रहा हो और उसे कुछ मालूम ही न हो, दिखाता है कि वह नेता कितना लापरवाह और उदासीन है। यह तो एक घटना है, पूरे प्रदेश में इस तरह के कई मामले सामने आते रहते हैं जहां वन माफिया अपनी राजनीतिक पहुंच के दम पर खुलेआम पेड़ों को कत्ल करने में जुटा हुआ है।

हिमाचल में ‘जंगलराज’ आने की दस्तक है वनरक्षक की बेरहमी से हत्या?

मंडी।। जंगलराज  यानी जहां किसी को कानून का डर न हो, माफिया और अपराधी बेखौफ हो जाएं। हिमाचल प्रदेश के मंडी जिले में लापता हुए वनरक्षक होशियार सिंह का शव पेड़ से लटका मिला है। पुलिस का कहना है कि पहली नजर में मामला हत्या का लग रहा है। परिजन आशंका जता रहे हैं कि इसके पीछे वन माफिया हो सकता है। वैसे भी शव को पेड़ से टांगना दिखाता है मानो कोई संदेश देना चाहता हो कि हमसे टकराने का यही हश्र होगा। हत्या के पीछे वजह क्या रही, कौन लोग थे, यह पता लगाना पुलिस का काम है और उम्मीद है कि जल्द पता भी चल जाएगा। मगर पहली नजर में यह लग रहा है कि वन माफिया ने ही यह हरकत की हो।

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दरअसल परिजनों का कहना है कि कुछ दिन पहले होशियार ने अवैध लकड़ी ले जा रही एक गाड़ी पकड़ी थी। वह गाड़ी किसकी थी, पता लगाना पुलिस का काम है। परिजनों का कहना है कि होशियार की हाल ही में नौकरी लगी थी और वह हमेशा से निडर और ईमानदार रहा है। ऐसे में उनका कहना है कि कहीं उसकी जान ऐसे ही वन माफिया ने न ली हो जिन्हें होशियार खटक रहा हो।

हत्या करके शव को ऐसे लटकाना बताता है मानो कोई संदेश देने की कोशिश की गई हो।

हिमाचल प्रदेश में वन माफिया सक्रिय है, इसमें कोई दो राय नहीं। वन रक्षकों पर फायरिंग तक के मामले सामने आ चुके हैं। अकेले वन रक्षक बेचारे बहुत बड़े इलाके की जिम्मेदारी निभा रहे हैं और स्थानीय लोगों का सहयोग भी नहीं मिलता। वन विभाग खुद सोया रहता है और राजनीति प्रेशर में मामले तक नहीं उठते। ईमानदार वनरक्षक बेचारे या तो मजबूरी में खामोश हो जाते हैं या फिर उनके साथ मारपीट होती है (मामले अखबारों में आते रहते हैं)।

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अगर होशियार की हत्या वन माफिया ने की है तो साफ है कि उसकी लाश को टांगकर संदेश दिया गया है कि यह अंजाम होगा हमसे टकराने का। इस हत्याकांड से पूरे प्रदेश के वन रक्षकों का मनोबल टूटा है। इन हिमाचल हमेशा से यह मुद्दा उठाता रहा है कि वनों को लेकर वन मंत्री सक्रिय नहीं हैं। उन्हें समारोहों में नाचने-गाने से फुरसत नहीं। वह लोककलाकार रहे होंगे तो रहे होंगे। अब वह कलाकार नहीं बल्कि मंत्री हैं और पॉलिसी मेकर हैं। मगर उनका अब तक का एक भी फैसला ऐसा नहीं दिखा कि कुछ ढंग का काम किया हो।

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बहरहाल,  इस मामले में सारी जिम्मेदारी पुलिस पर है कि मामले की जांच करे और बिना किसी प्रेशर के अपराधियों को सलाखों से पीछे पहुंचाए। साथ ही सरकार की भी जिम्मेदारी बनती है कि फालतू के मुद्दों से हटे और वन माफिया और अन्य अपराधियों पर लगाम लगाए। वरना यह घटना अगर वाकई वन माफिया की करतूत है तो साफ है- हिमाचल में जंगलराज आ चुका है।