इन हिमाचल डेस्क।। अक्सर ऐसा होता है कि भारी मात्रा में ओले गिरने पर लोग खुश हो जाते हैं और फेसबुक, इंस्टाग्राम, tiktok और वॉट्सऐप आदि पर वीडियो डालकर कहने लगते हैं कि उनके यहां बर्फबारी हो रही है।
ऐसा नहीं है कि यह शरारतन किया जा रहा है। दरसअल लोगों को ओलों और बर्फ में फर्क नहीं पता। शायद उन्हें आइस और स्नो में फर्क भी न मालूम हो। इसलिए उनकी सुविधा के लिए हम यह लेख लाए हैं।
स्नो या बर्फ तब गिरती है जब बादलों में मौजूद वाष्पकण बेहद कम तामपान के कारण सीधे जम जाते हैं (बिना लिक्विड स्टेट में आए) और फिर उसी अवस्था में षट्कोणीय क्रिस्टल के रूप में फाहे बनाते हुए धरती तक आ जाते हैं। वे फाहों के रूप में तभी धरती तक पहुंचेंगे, जब बादलों से धरती तक आते हुए उन्हें हिमांक से कम तापमान मिले। वे बहुत हल्के होते हैं, रूई के फाहों की तरह।
स्नोफॉल सर्दियों के मौसम में ही होता है मगर ओले किसी भी मौसम में गिर सकते हैं। जब गरजने-बरसने वाले तूफानी बादलों के बीच पानी की बूंदें जम जाने से बनते हैं। इनके लिए ऊंचाई में कम तापमान चाहिए होता है। नीचे आते समय कई बार ये और बड़ा आकार ले लेते हैं। ऊंचाई से गिरने और साइज़ बड़ा होने के कारण से बहुत जोर से गिरते हैं और नुकसान भी पहुंचा सकते हैं।
वैसे बादलों से सिर्फ बारिश, बर्फबारी या ओलावृष्टि ही नहीं होती। आगे ध्यान से पढ़ें-
वर्षण क्या है
वर्षण यानी अंग्रेजी में प्रेसिपिटेशन (Precipitaion). इसका अर्थ है- वायुमंडल में मौजूद वाष्पकणों का संघनित होकर पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण बल के कारण नीचे की ओर गिरना। वर्षण का मतलब सिर्फ बारिश से नहीं है, बल्कि विभिन्न स्वरूपों से है। ये स्वरूप हैं- बारिश, बर्फ, ओले, बजरी (स्लीट) और फ्रोज़न रेन।
बारिश (रेन)- बादलों में मौजूद वाष्पकणों का संघनित होकर द्रव (लिक्विड स्टेट) बन जाना और बूंदों के रूप में धरती पर गिरना बारिश कहलाता है।
बर्फ (Snow)- जब बादलों से लेकर धरती तक तापमान हिमांक (फ्रीजिंग मार्क- 32 डिग्री फारेनहाइट) या इससे कम रहेगा, बर्फ गिरेगी। जब जमीन पर तापमान 32 फारेनहाइट से ज्यादा हो, तब भी बर्फ गिरती है अगर थोड़ी ऊंचाई तक तापमान इससे नीचे हो।
स्लीट (Sleet)- जब बर्फ के फाहे रास्ते में पिघलकर बारिश की बूंदों में बन जाएं मगर धरती के पास कम तापमान होने के कारण फिर से जम जाएं तो इसे स्लीट कहते हैं। इससे छोटी-छोटी बारिश की बूंदें या बरफ के फाहे होते हैं। हिमाचल में इसको बोलते हैं- बजरी।
फ्रीज़िंग रेन (Freezing Rain)- ऐसा तब होता है जब पृथ्वी की सतह बहुत ठंडी हो मगर हवा गर्म हो। तो ऊपर से तो बारिश की बूंदें गिरती हैं मगर धरती पर गिरते ही वो जम जाती हैं। हिमाचल में ऐसा कम ही देखने को मिलता है।
कच्चे ओले या ग्रॉपल (Graupel)- ये भी कम ही देखने को मिलते हैं। पहली नजर में ये ओलों जैसे लगेंगे मगर साइज छोटा होता है नरम होते हैं। दरअसल बर्फ के फाहों का बाहरी हिस्सा पिघलकर दोबारा जम जाता है तो छोटी-छोटी गोलियां सी बन जाती हैं। बाहर से सख्त ओलों जैसे नजर आते हैं मगर दबाने पर मुलायम होते हैं।
ओले (Hail) – ओले तो आपको पता ही हैं क्या होते हैं। जमे हुए पानी के टुकड़े होते हैं जिनका निर्माण चमकते-गरजते तूफानी बादलों में होता है। बर्फ, स्लीट, फ्रीज़िंग रेन और ग्रॉपल तो सर्दियों में बनते हैं मगर ओले गर्म वातावरण में भी बन जाते हैं। इनका आकार इस बात पर निर्भर करता है कि थंडरस्टॉर्म कितना बड़ा है। वैसे दिल्ली एनसीआर के लोग ओलों को ही समझ बैठे बर्फ। उन्हें ये लेख जरूर पढ़ाएं।
तो उम्मीद है कि आपको इतनी जानकारी मिल गई होगी कि आप बर्फ, स्लीट, ग्रॉपल और ओलों की पहचान कर पाएंगे। जब कभी आप ओले या बर्फबारी देखें, जरूर सोचें कि बादलों से लेकर धरती तक पहुंचने की इसकी यात्रा कैसी रही होगी। बहरहाल, चलते-चलते इस वीडियो को भी देख लीजिए-
जानें, जहां आमतौर पर बर्फ नहीं पड़ती, वहां क्यों हुई बर्फबारी