जानें, जहां आमतौर पर बर्फ नहीं पड़ती, वहां क्यों हुई बर्फबारी

इन हिमाचल डेस्क।। सर्दियों का मौसम इस बार मस्त रहा। बेशक कुछ लोग त्रस्त भी हुए मगर बर्फबारी इस बार अच्छी हुई है। इसका मतलब है कि हिमालय की पहाड़ियों पर भी दबाकर बर्फबारी हुई होगी और इससे साल भर बर्फीली पानी वाली नदियां लबालब रहेंगी। बर्फ देखने में तो सुंदर लगती है मगर इसकी भी कई परेशानियां हैं। प्रचण्ड ठंड में पानी जम जाता है, बिजली की सप्लाई बाधित हो जाती है और यातायात भी रुक जाता है।

पहाड़ी इलाकों, जहां अक्सर बर्फबारी होती है, वहां के लोगों को तो इसकी आदत होती है इसलिए वे तैयार रहते हैं। मगर इस बार कुछ ऐसे इलाकों में भी बर्फ गिरी, जहां अमूमन स्नोफॉल होता नहीं है। जैसे कि मंडी में 10 साल बाद बारिश हुई। सुंदरनगर में बर्फ के फाहे गिरे। हमीरपुर, बिलासपुर और ऊना की कई जगहें भी लंबे अंतराल के बाद बर्फ के दर्शन कर लेती हैं।

लेकिन सवाल उठता है कि आखिर जिन इलाकों में बर्फ नहीं पड़ती, कई बार वहां क्यों अचानक बर्फबारी हो जाती है? आगे आसान भाषा में समझिए-

कैसे बनती है बर्फ
बात बर्फ की हो रही है, इसलिए हम ध्यान इसी पर रखेंगे। आप जानते हैं कि पानी तीन अवस्थाओं में मौजूद रह सकता है- ठोस, द्रव और गैस। गैस यानी वाष्प, द्रव यानी वो पानी जो हम-आप देखते हैं और ठोस यानी बर्फ। अब जरा बारिश होने की प्रक्रिया को याद कीजिए जो आपने स्कूल में पढ़ी होगी। याद करें कि कैसे हमारे आसपास से लगातार पानी वाष्पीकृत होता रहता है। सूरज की गर्मी के कारण वाष्पीकरण की यह रफ्तार बढ़ती है और विभिन्न जगहों से द्रव के रूप में मौजूद पानी भाप बनकर गैस की अवस्था में बदल जाता है।

तो ये भाप हल्का होने के कारण वायुमंडल में ऊपर उठता चलता है। ऊपर ये पानी के महीन कण इकट्ठे होते हैं तो बादलों का रूप ले लेते हैं। आपको यह भी मालूम होगा किजैसे-जैसे हम वायुमंडल में ऊपर जाते हैं, तापमान में गिरावट आती चलती है। तापमान कम होने के कारण पानी की महीन बूंदें संघनित होने लगती हैं यानी गैस की अवस्था से द्रव में बदलने लगती हैं। तो फिर भारी होकर पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण के कारण ये बूंदों के रूप में गिरने लगती हैं तो नीचे बारिश होने लगती है।

यानी गैस से द्रव में बदली तो बारिश हुई। मगर कई बार तापमान में गिरावट के कारण बादलों में गैस की अवस्था में मौजूद पानी के ये कण द्रवित होने के बजाय सीधे ठोस अवस्था में चले जाते हैं। इस प्रक्रिया को कहते हैं Sublimation, हिंदी में ‘उर्ध्वपातन।’ जब ऐसा होता है तो बर्फ का निर्माण होता है जो नीचे की ओर फाहों के रूप में गिरना शुरू करती है। बर्फ के फाहे दरअसल जमे हुए जल कणों से बनते हैं जो षटकोणीय क्रिस्टल के रूप में एक-दूसरे से जुड़ना शुरू करते हैं। बर्फ के फाहों का आकार कई तरह का हो सकता है, मगर अंदर से उनके जुड़ने का क्रम छटकोणीय ही रहता है।

जैसा कि आप ऊपर क्लोज़ तस्वीर में देख सकते है, ये कण होते तो पारदर्शी हैं मगर जब आपस में जुड़कर फाहों का रूप लेते हैं तो सफेद दिखते हैं। इसलिए क्योंकि जब बर्फ पर रोशनी गिरती है तो यह सभी रंगों की किरणों में विभक्त हो जाती है और फिर क्रिस्टलों से रिफ्लेक्ट होती है। ये क्रिस्टल सभी रंगों की किरणों को रिफ्लेक्ट करते हैं तो हमें बर्फ सफेद दिखाई देती है। सभी रंगों की  क्योंकि बर्फ के क्रिस्टल सभी रंगों की किरणों को परावर्तित करते हैं तो हमें सफेद रंग दिखाई देता है। (सभी रंगों को मिलाने से सफेद रंग बनता है)।

कहां-कहां पड़ती है बर्फ
दुनिया में कई जगहों पर बर्फबारी होती है। कुछ पहाड़ों, ध्रुवीय क्षेत्रों, उत्तरी गोलार्ध के ऊपरी हिस्से, दक्षिणी गोलार्ध के पहाड़ी इलाकों और अंटार्कटिक में बर्फबारी देखने को मिलती है। मगर कई बार उन क्षेत्रों में भी बर्फबारी होती है, जहां आमतौर पर इसका होना असामान्य है। इसके पीछे कई मौसमी कारण होते हैं। वैसे तो बर्फ लो प्रेशर एरिया, झीलों और समंदर के कारण पैदा होने वाले विशेष प्रभाव और मौसम को प्रभावित करने वाले वायमुंडल के विभिन्न घनत्व वाले हिस्सों के कारण भी पड़ती है, मगर हम  माउंटेन इफेक्ट की बात करेंगे क्योंकि हिमाचल प्रदेश में बर्फबारी का प्रमुख कारण माउंटेन इफेक्ट ही है।

क्या है माउंटेन इफेक्ट
जब हवा के दबाव कारण वायुमंडल का एक हिस्सा पर्वतों या ऊंची उठी जगह से टकराता है तो हवा ऊपर की ओर उठती है। जब हवा ऊपर उठती है तो नमी अलग हो जाती है और नीचे शुष्क और गर्म हवा रह जाती है। ऊपर की ओर उठी हवा का तापमान ऊंचाई के साथ कम होता जाता है। इससे एडीअबैटिक कूलिंग होती है। नतीजा यह रहता है कि ऊपर कम तापमान के कारण बारिश या बर्फबारी के लिए आदर्श हालात बन जाते हैं। वाष्पकण संघनित होने लगते हैं और वर्षण होने लगता है। सामान्य तौर पर बारिश होगी और तापमान और गिर जाएगा तो बर्फ का निर्माण होगा, सीधे गैस से ठोस में तब्दीली होने से।

आपने पढ़ा भी होगा कि कैसे हिमालय पर्वत बारिश करने में अहम भूमिका निभाता है। यही कारण है उसका। तो इस माउंटेन इफेक्ट के कारण वायुमंडल के ऊपरी हिस्से में बर्फ बनती है तो वह नीचे आते-आते कई बार पिघल जाती है और बारिश के रूप में गिरती है। सर्दियों में तापमान कम रहता है तो वायुमंडल में बर्फ बनने की और उसके ऊपर से नीचे तक आने तक पिघलने से बचे रहने की संभावनाएं ज्यादा होती हैं। इसी कारण सर्दियों में हिमपात ज्यादा देखने को मिलता है।

जहां नहीं गिरती बर्फ, वहां क्यों गिर जाती है कई बार
मौसम विज्ञान एक बेहद मजेदार, रोमांचक मगर पेचीदा विषय है। मगर इसके बुनियादी नियम आसान से हैं। एक बार आप पढ़ लेंगे तो समझ जाएंगे कि कहीं पर हो रही बारिश या कहीं हो रही बर्फबारी के पीछे क्या साइंस कम कर रही है। इस बात को समजना है तो समझिए वर्षण क्या है और ये कितनी तरह से होता है।

वर्षण क्या है
वर्षण यानी अंग्रेजी में प्रेसिपिटेशन (Precipitaion). इसका अर्थ है- वायुमंडल में मौजूद वाष्पकणों का संघनित होकर पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण बल के कारण नीचे की ओर गिरना। वर्षण का मतलब सिर्फ बारिश से नहीं है, बल्कि विभिन्न स्वरूपों से है। ये स्वरूप हैं- बारिश, बर्फ, ओले, बजरी (स्लीट) और फ्रोज़न रेन।

बारिश (रेन)- बादलों में मौजूद वाष्पकणों का संघनित होकर द्रव (लिक्विड स्टेट) बन जाना और बूंदों के रूप में धरती पर गिरना बारिश कहलाता है।

बारिश की बूंदें

बर्फ (Snow)- जब बादलों से लेकर धरती तक तापमान हिमांक (फ्रीजिंग मार्क- 32 डिग्री फारेनहाइट) या इससे कम रहेगा, बर्फ गिरेगी। जब जमीन पर तापमान 32 फारेनहाइट से ज्यादा हो, तब भी बर्फ गिरती है अगर थोड़ी ऊंचाई तक तापमान इससे नीचे हो।

बर्फ़

स्लीट (Sleet)- जब बर्फ के फाहे रास्ते में पिघलकर बारिश की बूंदों में बन जाएं मगर धरती के पास कम तापमान होने के कारण फिर से जम जाएं तो इसे स्लीट कहते हैं। इससे छोटी-छोटी बारिश की बूंदें या बरफ के फाहे होते हैं। हिमाचल में इसको बोलते हैं- बजरी।

चूंकि पहले तापमान थोड़ा गर्म होता है इसलिए बर्फ पिघलकर बजरी या स्लीट में बदल जाता है। मगर इससे तापमान में गिरावट होती है और फिर बर्फ गिरने की संभावना बन जाती है। इसीलिए स्लीट गिरने पर लोग कहते हैं- अब बर्फ गिरने वाली है।

फ्रीज़िंग रेन (Freezing Rain)- ऐसा तब होता है जब पृथ्वी की सतह बहुत ठंडी हो मगर हवा गर्म हो। तो ऊपर से तो बारिश की बूंदें गिरती हैं मगर धरती पर गिरते ही वो जम जाती हैं। हिमाचल में ऐसा कम ही देखने को मिलता है।

फ्रीजिंग रेन पौधों और जीव जंतुओं के लिए खतरनाक है। बारिश की बूंदें तुरंत गिरते ही जम जाती हैं।

कच्चे ओले या ग्रॉपल (Graupel)- ये भी कम ही देखने को मिलते हैं। पहली नजर में ये ओलों जैसे लगेंगे मगर साइज छोटा होता है नरम होते हैं। दरअसल बर्फ के फाहों का बाहरी हिस्सा पिघलकर दोबारा जम जाता है तो छोटी-छोटी गोलियां सी बन जाती हैं। बाहर से सख्त ओलों जैसे नजर आते हैं मगर दबाने पर मुलायम होते हैं।

ग्रॉपल बर्फ़ की तरह सफेद होते हैं मगर मुलायम और थोड़े खुरदरे से लगते हैं देखने में।

ओले (Hail) – ओले तो आपको पता ही हैं क्या होते हैं। जमे हुए पानी के टुकड़े होते हैं जिनका निर्माण चमकते-गरजते तूफानी बादलों में होता है। बर्फ, स्लीट, फ्रीज़िंग रेन और ग्रॉपल तो सर्दियों में बनते हैं मगर ओले गर्म वातावरण में भी बन जाते हैं। इनका आकार इस बात पर निर्भर करता है कि थंडरस्टॉर्म कितना बड़ा है। वैसे दिल्ली एनसीआर के लोग ओलों को ही समझ बैठे बर्फ। उन्हें ये लेख जरूर पढ़ाएं।

ये तो बड़े खतरनाक होते हैं। कई बार साइज बड़ा होता है। गाड़ियों, घरों, जीव-जुंतुओं, इंसानों और सेब के पौधों समेत अन्य वनस्पति के लिए खतरनाक होते हैं।

…तो इसलिए गिरी बर्फ़

तो जैसा कि आपने ऊपर पढ़ा, तापमान में ज्यादा गिरावट आ जाए तो ऊपर से नीचे की ओर गिर रही बर्फ को पूरे वायुमंडल में कम तापमान मिले तो नीचे बर्फबारी होगी। जिन इलाकों में आमतौर पर तापमान अधिक रहने के कारण बर्फबारी नहीं हो पाती, वहां का तापमान कई बार बहुत गिर जाता है। इस कारण वहां बर्फबारी हो जाती है। कई बार ऐसा भी होात है कि हवा के कारण ऊपर पहाड़ों से उड़ रही बर्फ उन नजदीकी जगहों तक पहुंच जाती है, जहां कम हिमपात होता है या नहीं होता है।

तो उम्मीद है कि आपको इतनी जानकारी मिल गई होगी कि आप बर्फ, स्लीट, ग्रॉपल और ओलों की पहचान कर पाएंगे। जब कभी आप ओले या बर्फबारी देखें, जरूर सोचें कि बादलों से लेकर धरती तक पहुंचने की इसकी यात्रा कैसी रही होगी। बहरहाल, चलते-चलते इस वीडियो को भी देख लीजिए-

नोट- इस लेख को बहुत सावधानी से तैयार किया गया है। फिर भी अगर किसी भी तरह की गलती हो तो तुरंत In Himachal के फेसबुक पेज पर मेसेज भेजें या inhimachal.in @ gmail.com पर ईमेल करें।

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