नई दिल्ली।। मंडी से भारतीय जनता पार्टी के विधायक अनिल शर्मा जल्द ही कांग्रेस में शामिल हो सकते हैं। कांग्रेस के दिल्ली स्थित मुख्यालय के सूत्रों का दावा है कि हिमाचल से कांग्रेस का एक समूह अनिल शर्मा को वापस लेने का विरोध कर रहा है मगर केंद्र के एक दिग्गज नेता की पैरवी विरोध पर भारी पड़ गई है। ऐसे में जल्द ही एक कार्यक्रम में अनिल शर्मा कांग्रेस में शामिल हो सकते हैं।
बता दें कि दिवंगत कांग्रेस नेता पंडित सुखराम और उनके बेटे अनिल शर्मा पिछले विधानसभा चुनाव से पहले ही कांग्रेस छोड़ भारतीय जनता पार्टी में आए थे। बीजेपी की सरकार बनने पर अनिल शर्मा मंत्री भी बने थे। मगर उनके बेटे आश्रय शर्मा ने अपने दादा पंडित सुखराम के साथ मिलकर कांग्रेस का दामन थाम लिया था और 2019 में हुए लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ा था। उस समय अनिल शर्मा ने परिवार के हाथों मजबूर होने की बात कही थी और मंत्री पद से इस्तीफा दे दिया था।
इसके बाद उनकी लगातार भारतीय जनता पार्टी से दूरी बनी रही। अपने विधानसभा क्षेत्रों में हुए मुख्यमंत्री के कार्यक्रमों में वह शामिल तो होते रहे लेकिन अनिल शर्मा की नाराजगी यह रही कि उन्हें पार्टी विधायकों की बैठकों और पार्टी के अन्य आधिकारिक कार्यक्रमों का न्योता नहीं दिया गया। लेकिन खुद अनिल शर्मा ने भी कभी यह खुलकर नहीं कहा कि उनके बेटे की राजनीतिक विचारधारा भले अलग हो लेकिन मैं बीजेपी के साथ हूं।
इस अलगाव का नतीजा यह रहा है कि अभी तक अनिल शर्मा अपना रुख साफ नहीं कर पाए हैं। राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि वह चाह रहे हैं कि भारतीय जनता पार्टी उन्हें मनाए लेकिन बीजेपी इस मूड में बिल्कुल नहीं दिख रही। ऊपर से अनिल शर्मा का कांग्रेस के नेताओं के संपर्क में आकर ब्लैकमेल करना भी बीजेपी को स्वीकार नहीं आ रहा। हाल ही में अनिल शर्मा ने दिल्ली का दौरा किया था जिसमें उन्होंने कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं से मुलाकात की थी।
दिल्ली से लौटने के बाद पत्रकारों से बात करते हुए अनिल शर्मा ने सभी अटकलों को गलत बताया है और कहा है कि वह दिल्ली दोनों पार्टियों के नेताओं से मिले हैं और अपनी बात कही है। उन्होंने कहा कि जहां से भी उन्हें फ्री हैंड मिलेगा, वहां से वह चुनाव लड़ेंगे।
लंबे समय से बीजेपी को कवर कर रहे एक वरिष्ठ टीवी पत्रकार ने बताया कि तटस्थ एजेंसियों के सर्वे में यह बात निकलकर आई है कि पंडित सुखराम के निधन के बाद अनिल शर्मा के लिए परिस्थितियां काफी बदल गई हैं। खासकर उनके परिवार के अंदर तनाव की बातें बाहर आने के बाद भी विश्वसनीयता में गिरावट आई है। बार-बार दल बदलने, पिता के पुत्र और पौत्र के अलग-अलग पार्टियों में होने से सदर मंडी के लोगों के बीच अच्छा संदेश भी नहीं गया है। 2019 के लोकसभा के चुनाव में रिकॉर्ड 2 लाख 37 हजार वोटों से आश्रय की हार हुई थी।
उस घटनाक्रम ने भी लोगों के मन में संशय पैदा किया है जिसमें अनिल शर्मा की बड़ी बहू और आश्रय की पत्नी ने फेसबुक पर पोस्ट डालकर अपने ससुर पर गंभीर आरोप लगाए थे। बाद में अनिल शर्मा की छोटी बहू यानी सलमान खान की बहन अर्पिता ने अपने ससुर का बचाव किया था। अनिल ने भी कहा था, जोश से नहीं, होश से काम ले बहू। वरिष्ठ पत्रकार के अनुसार, इस पूरे प्रकरण से सुखराम परिवार को लेकर आम लोगों में गंभीरता खत्म हुई है।
बहरहाल, चुनाव को अभी कुछ समय बाकी है। मगर हिमाचल की सियासत के चाणक्य कहे जाने वाले पंडित सुखराम के बिना यह उनका पहला चुनाव होगा। इसलिए यह चुनाव उनकी अपनी क्षमताओं का भी इम्तिहान होगा। फिर चाहे वह किसी भी पार्टी से लड़ें।