गौरतलब है यह प्राधिकरण निकम्मेपन की वजह से मीडिया के निशाने पर भी है। कई अखबारों की रिपोर्ट्स की मुताबिक अभी तक बादल फटने, फसलों को नुकसान पहुंचने या अन्य किसी आपदा के प्रबंधन की बात तो दर, अभी तक कहीं पर भी नुकसान का आकलन करने में इसे कामयाबी नहीं मिली है। आरोप है कि जनता के खून-पसीने की कमाई को सरकार ऐसे पदों पर अपने लोगों को बिठाकर लुटा रही है।
ऐसे होगा आपदा प्रबंधन? राजेंद्र राणा ने पीठ पर सवार होकर किया मुआयना
अनुराग पर कहे अपने शब्द वापस लेता हूं: वीरभद्र

वीरभद्र ने कहा कि वह हर व्यक्ति विशेष की प्रतिष्ठा का पूर्ण सम्मान करते हैं। यदि उनके शब्दों से किसी की भावनाओं को ठेस पहुंची हो तो उन्हें अपने शब्द वापस लेने में कोई गुरेज नहीं है। मुख्यमंत्री ने मंगलवार को कहा कि राजनीतिक कारणों के चलते कुछ केंद्रीय परियोजनाओं के कार्यान्वयन में हो रहे विलंब पर चिंता के चलते उन्होंने कुछ कड़ी टिप्पणियां की थीं। उन्होंने अनुराग ठाकुर को सकारात्मक सोच अपनाने और लोगों के व्यापक हित के मद्देनजर अपने निर्वाचन क्षेत्र एवं प्रदेश के विकास के लिए कार्य करने की सलाह दी। उन्होंने कहा कि वह विपक्ष के नेताओं का पूरा सम्मान करते हैं। वीरभद्र सिंह ने कहा कि उनके ऊना दौरे के दौरान स्थानीय लोगों ने उन्हें जानकारी दी कि क्षेत्र के लिए विभिन्न केंद्रीय परियोजनाओं में जानबूझकर देरी की जा रही है। 500 करोड़ रुपये के इंडियन ऑयल डिपो का शिलान्यास रखने में काफ ी विलंब के कारण इसका कार्य अभी तक शुरू नहीं हो सका है जबकि प्रदेश सरकार ने इस परियोजना से संबंधित भूमि हस्तांतरण इत्यादि सभी औपचारिकताएं काफी पहले पूरी कर ली थीं।
13 साल का यह हिमाचली बच्चा है सेबों का गजब आढ़ती
तकनीकी एवं उच्च शिक्षा के मामले में सुस्त और अदूरदर्शी रही है हिमाचल की पॉलिसी
मनीष कौशल।। शिक्षित राज्यों की लिस्ट पर अगर नजर दौड़ाई जाए तो हिमाचल प्रदेश का नाम प्रमुख राज्यों की श्रेणी में आता है। परन्तु शिक्षा का मतलब सिर्फ डिग्री लेना मात्र नहीं है बल्कि सही गुणवत्तापूर्ण शिक्षा के साथ कम्पीटीशन के इस युग में अपने आप को दौड़ में रखना भी महत्वपूर्ण है। जिसमे हिमाचल प्रदेश फिसड्डी पाया गया है और सबसे खराब बात यह है की बीते दशकों में नए से नए संस्थान खोलने के अलावा प्रदेश सरकारें इस दिशा में ना कुछ सोच पायीं हैं ना कुछ कर पायीं हैं।
हिमाचल प्रदेश के पास शिक्षा के लिए ना कोई नीति है ना ही भविष्ये के लिए रोडमैप इसलिए बी टेक जैसी जैसी बड़ी बड़ी डिग्रिया लेकर भी यहाँ बेरोजगारों की फौज घर बैठने पर मजबूर है। हर अभिवावक चाहते है कि उनका बच्चा अचछी शिक्षI ग्रहण करे। इसके लिए अभिवावक अपनी उम्र भर की पूंजी बच्चों की शिक्षा पर लगाने के लिए तैयार भी हैं परन्तु शिक्षा खास कर तकनिकी शिक्षा के नाम पर प्रदेश में या तो निजी संगठन हैं जिनका मुख्य मक्सद पैसे कमाना है या फ़िर ऐसी सरकारी संस्थाये हैं जिनके पास तकनीकी शिक्षा के लिये जरूरी बुनियादी सुविधाये भी न के बराबर हैं।
हम इसी से अंदाजा लगा सकते हैं कि प्रदेश मे लग्भग 24000 इंजीनियरिंग की सीटें हैं और इस बार के आंकड़ों के अनुसार आधी सीटें भी नहीं भर पायी हैं। आखिर यह हुआ क्यों इसके लिए थोड़ा इतिहास पर नजर दौड़ाना आवश्यक है।
1990 के दशक के प्रारम्भिक वर्षों में भारतीय अर्थववस्था ने जब उदारीकरण की राह पकड़ी तो उसका असर दशक के उत्तरार्ध में दिखा। आई टी सेक्टर मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर एवं कम्युनिकेशन क्रांति के साथ देश में इंजीनियर्स की जरुरत पैदा हुयी। सरकारी संस्थान जैसे आई आई टी एवं राज्यों के इंजीनियरिंग कालेज इतनी मैनपॉवर नहीं दे पा रहे थे इसलिए कुछ राज्यों ने जैसे कर्नाटक महाराष्ट्र आदि ने निजी संस्थानों के लिए इस क्षेत्र में रास्ते खोले। `धीरे धीरे इंजीनियरिंग कालेजों में निजी क्षेत्र की भागीदारी पंजाब तक भी पहुंची। उस दौर में मैनपॉवर की इतनी मांग मार्किट से थी की नए नए खुले संस्थान भी इंजीनियरिंग में दाखिला देने के लिए पहले भारी भरमक डोनेशन की मांग करते थे। और दोयम दर्जे के कालेजों से पास आउट हुए छात्र भी ठीक ठाक पैकेज पर कार्य करते थे। यह सब मार्किट और इनपुट में समन्वय के कारण था।
1990 के अंतिम दौर में हिमाचल प्रदेश में इंजीनियरिंग करने के लिए कालेज के नाम पर सिर्फ 1987 में खोला गया संस्थान रीजनल इंजीनियरिंग कालेज हमीरपुर था। 2001 में हिमाचल प्रदेश की आबादी 60 लाख के करीब पहुँच गयी थी मार्किट में मांग जोरों पर थी परन्तु प्रदेश के बच्चों का भविष्ये एक ही इंजीनियरिंग कालेज के सहारे चल रहा था बाद में वो भी केंद्रीय संस्थान नेशनल इंस्टिट्यूट आफ टेक्नोलॉजी बन गया।
उस समय मार्किट की स्थिति की भांपते हुए पंजाब ने अपने यहाँ निजी इंजीनियरिंग कालेजों के लिए रास्ते खोल दिए परन्तु हिमाचल प्रदेश की सरकार सोयी रहीं , हिमाचल के बच्चों को जो शिक्षा घर द्वार भी मिल सकती थी उसके लिए पंजाब का रुख करना पड़ा। सारे पंजाब हरियाणा के कालेज हिमाचली बच्चों से भरे रहे परन्तु प्रदेश में उन्हें सिर्फ 2 या तीन प्राइवेट कालेज मिले ।
2005-06 में जब रिसेशन का दौर आया अंतरास्ट्रीय स्तर पर मार्किट बिगड़ी इंजीनियर बेरोजगार होने लगे। तब हिमाचल सरकारें उस क्षेत्र में सोचने लगी जो डूब रहा था और बाकी प्रदेश जो सोच 10 साल पहले ही सोच चुके थे आर कार्य करके फल ले चुके थे। फिर भी देर सवेर प्रदेश में पहला सरकारी इंजीनियरिंग संस्थान जवाहर लाल नेहरू इंजीनियरिंग कालेज खुला। जो कई वर्षों तक सिर्फ दो कोर्स एवं आधे अधूरे इंफ्रास्ट्रक्चर के साथ चलता रहा या यूँ कहें अभी भी चल रहा है ।
इसके बाद तो मानों हिमाचल की सरकारों में क्रांति ही आ गयी हो पहले अदूरदर्शी बनकर सोयी रही सरकारें आँख बंद करके रेवड़ियों की तरह इंजीनियरिंग संस्थान बांटने लगीं। ऐसे ऐसे लोग इंजीनियरिंग कालेज खोल कर बैठ गए जिन्हे सिर्फ सड़के और पुलिया बंनाने में महरात थी कुछ को तो स्कूल तक चलाने का अनुभव नहीं था। एक क्षेत्र विशेष में 5 -5 किलोमीटर के दायरे में डीम्ड यूनिवर्सिटी की बाढ़ आ गयी। इंजीनियरिंग कालेज खोलना और घोषणा करना राजनीति का मुद्दा हो गया।
अभी सरकारी क्षेत्र का पहला कालेज (सुंदरनगर) बजट फैकल्टी और इंफ्रास्ट्रक्चर को तरस रहा था और अगली सरकार ने शिमला के प्रगतिनगर में एक और इंजीनियरिंग कालेज की घोषणा कर दी।
एक बार एक बच्चे मुझे बताया की भाई प्रगतिनगर कालेज की कक्षाएं जिस बिल्डिंग में लगती हैं उसमे एक ही छत है बाकी 8 -8 फ़ीट दीवारे देकर कमरों को डिवाइड किया गया है , हाल यह है की अगर एक तरफ टीचर बोलता है तो तीन कमरों में सुनायी देता है। आधी अधूरी कॉन्ट्रैक्ट फैवल्टी पर चलते हुए यह संस्थान जब सही का इंफ्रास्ट्रक्चर नहीं दे पाये तो आगे की गुणवत्ता और बच्चों को मार्किट से माहोल से लड़ने की शिक्षा क्या दे पाते। प्राइवेट संस्थान शोशण करते रहे लोग लुटे जाते रहे पर आखिर सरकार किस आधार और पैमाने पर उन्हें रोकती जब उसके खुद के सस्थान स्टैण्डर्ड मीट नहीं कर पा रहे थे। हिमाचल के इंजीनियरिंग संस्थान नौकरी प्लेसमेंट देना तो दूर की बात इंफ्रास्टक्चरे में भी बाहरी राज्यों का मुक़ाबला नहीं कर पाये।
स्थिति यहीं नहीं थमी उसके बाद कई प्राइवेट संस्थानों को परमिशन देने के साथ सरकार ने नगरोटा और जेयूरी में भी भी इंजीनियरिंग कालेज खोल दिया। हिमाचल प्रदेश टेक्निकल यूनिवर्सिटी का गठन किया गया जिसका अभी खुद का अपना भवन नहीं है। कुल मिलाकर हिमाचल में अभी 4 सरकारी एवं दर्जनों प्राइवेट इंजीनियरिंग कालेज हैं जिनके पास 24000 सीटें हैं। और आधी भी हर साल नहीं भर पा रहीं हैं. इनमे से अभी तीन सरकारी संस्थानों की मूल बिल्डिंग भी नहीं है।
यह सब हिमाचल में तब हो रहा है जब देश में इंजीनियरिंग की मांग उतार पर थी फिर भी यह प्रशन सरकार के मन में नही आया की इतने इंजीनियर्स बना के क्या करेगी अगर उनके पास प्रदेश में इंजीनियर्स को नौकरी देने की ना खुद केपेसिटी है ना ही मार्किट में अब मांग है। इंजीनियरिंग की सीटें कालेज बढ़ाने से अच्छा होता सरकार क्वालिटी एडुकेशन की तरफ ध्यान देती। कुछ नियम कानून बनती उन्हें सही से लागू करती ताकि गुणवत्ता की शिक्षा सुनिश्चित होती तब प्रदेश के इंजीनियर्स चार साल का कोर्स करके पैसा खर्च करके घरो में ना बैठे होते।
प्रदेश की जनसँख्या को देखते हुए अगर यहाँ सरकारी प्राइवेट मिलाकर 10 इंजीनियरिंग संस्थान भी होते और क्वालिटी एजुकेशन देते तो बहुत थे। परन्तु हैरानी की बात है पिछले दो दशकों में आई प्रदेश सरकारों का क्या विज़न था ये कोई नहीं जानता। आजकल इंजीनियरिंग की ये दशा है कि कोई भी अभिवावक अपने बच्चो को इंजीनियरिंग नहीं करवाना चाहता। क्योंकि कॉलेज इंजीनियर्स नहीं बना रहे बस डिग्री दे रहे हैं। स्टूडेंट्स में क्वालिटी नाम की चीज ही नहीं तो जॉब कहाँ से मिलेगी।
हिमाचल सरकारों के विज़न का पता यहीं से चल जाता है की निजी संस्थानों की जो हालत है सो है। पर 10 साल पहले खुले सरकारी इंजीनियरिंग कालेज में अभी स्टाफ पूरा नहीं कई कोर्स नहीं चलते और तो और हॉस्टल की सुविधा नहीं परन्तु तीन तीन कालेज और खोल दिए गए हैं
क्या ऐसा नहीं किया जा सकता था की जेयूरी , नगरोटा प्रगतिनगर में सस्थान खोलकर थोड़ा थोड़ा पैसा वहां देने से अच्छा होता अगर सुंदरनगर इंजीनियरिंग कालेज का ही वो बजट देकर सेंटर फॉर एक्सीलेंस टाइप बनाया जात्ता यहाँ कोर्स बढाए जाते। राष्ट्रीय संस्थानों के लेवल पर हिमाचल का एक इंजीनियरिंग कालेज तो पहुँच पाता। तकनिकी संस्थान कोई अस्पताल तो हैं नहीं जो जगह जगह खोल दो जनता की सुविधा के लिए. . अरे भाई जब टेस्ट पास करके ही आना है तो सस्ंथान कहीं भी क्या फर्क पड़ता है। इसमें आखिर क्या वोट बैंक है और अगर जनता भी अपने अपने इलाके में संस्थान खुल जाने से खुश है चाहे वहां पढ़कर बच्चों भविष्ये लटक जाए तो जनता को भी आत्ममंथन करना होगा।
यह सब सिर्फ तकनिकी शिक्षा के हाल नहीं है हिमाचल प्रदेश सरकारों की यही अदूरदर्शिता साइंस और बीएड एवं साइंस के क्षेत्र में भी रही। जब प्रदेश से स्टूडेंट भारी संख्या में बी एड करते थे तब यहाँ दो ही बी एड कालेज हुआ करते थे। हमारे लोगों को बीड करने जम्मू से श्रीनगर आगरा ग्वालियर जाना पड़ता था। छोटे छोटे बच्चों को छोरड़कर माएं बीएड करने प्रदेश से बाहर जाती थीं।
किसी सरकार को यहाँ बीएड के लिए निजीकरण करने की सुध नहीं आई , बीएड की डिग्री के लिए ऐसा क्या आधारभूत ढांचा जरुरी था जिसके लिए हमें बाहर जाना पड़ता था। और जब लोगों ने बी एड से मुंह मोड़ लिया तो तहसील लेवल पर निजी क्षेत्र को आगे लाकर सरकार ने घर द्वार बीएड कालेज खोल दिए। तब करने वाले कोई नहीं थे यही काम हमारी सरकारों ने एमएससी आदि कोर्सेज के साथ किया। कुल मिलाकर स्कूली शिक्षा के आधार पर शिक्षा क्षेत्र में आयाम छूने का दावा करने वाले इस प्रदेश की सरकारें हमेशा दूरदर्शिता के मामले में फिसड्डी रहीं और अपने यहाँ गुणवत्तापूर्ण उच्च शिक्षा को उचित समय पर पर कभी बढ़ावा नहीं दे पायीं।
बहुत दूर से चलकर आते हैं पहाड़ों पर तबाही मचाने वाले बादल
- विवेक अविनाशी (vivekavinashi15@gmail.com)
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गोभी जैसा बादल |
क्यूमोलोनिंबस बादलों में एकाएक जब नमी पहुंचनी बंद हो जाती है या बहुत ठंडी हवा का झोंका इनमें प्रवेश कर जाता है तो ये सफ़ेद बादल एकदम काले हो जाते हैं। इसके बाद तेज गरज से वे उसी जगह अचानक बरस पड़ते हैं।
युवाओं के लिए प्रेरणा है शांता कुमार का व्यक्तित्व
- विजय इंद्र चौहान (vijayinderchauhan@gmail.com)
मैं आठवीं कक्षा में था जब से मैंने शांता कुमार को जानना शुरू किया। यह 1992 की बात है जब शांता कुमार दूसरी बार हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री थे। मुझे यह ठीक से याद नहीं कि मैं क्यों शांता कुमार के व्यक्तित्व की ओर आकर्षित हुआ, मगर शायद उस समय की उनकी सरकार की नीतियां सारे देश मे चर्चा में थीं। इस बात से मैं उनकी ओर आकर्षित हुआ। उनकी दो मुख्य बातें सबसे ज्यादा पसंद थीं- 1. व्यवस्था सुधारने के लिए कड़ा निर्णय लेना, चाहे उसका राजनीतिक परिणाम कुछ भी हो। 2. भ्रस्टाचार के प्रति कड़ा रुख।
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एक पुरानी तस्वीर(साभार: PIB) |
(लेखक एक मल्टिनैशनल कंपनी में कार्यरत हैं)
बादल फटने से धर्मपुर में तबाही; 5 की मौत, करोड़ों का नुकसान
मंडी।।
हिमाचल प्रदेश के मंडी जिले में पड़ने वाले धर्मपुर में बादल फटने से भारी तबाही मची है। अभी तक 5 लोगों की मौत की खबर है, जबकि कई करोंड़ों का नुकसान होने की आशंका है। 5 बसों और 3 कारों के बहने की खबर सामने आई है, मगर बाद में संख्या बढ़ सकती है।
शुक्रवार रात को सोन खड्ड में अचानक बाढ़ आ गई। बादल फटने की वजह से आए पानी ने कुछ ही पलों के अंदर आसपास के इलाके में बने घरों और अन्य इमारतों को अपनी चपेट में ले लिया। बहुत से लोग अपनी जान बचाकर बच निकले, मगर कुछ लोगों के बारे में अभी तक कोई पता नहीं चल पाया है। आशंका जताई जा रही है कि इन लोगों की मौत हो गई है, मगर प्रशासन ने 5 मौतों की ही पुष्टि की है।
गौरतलब है कि सोन खड्ड किनारे कुछ ही फीट की रोक लगाकर नया बस अड्डा तैयार किया गया है। खड्ड की एक धारा वहां से भी बहा करती थी, जहां पर यह निर्माण हुआ है। शुक्रवार रात को आए सैलाब ने तटबंध को तोड़ दिया और बस अड्डे में खड़ी कई बसों को अपने आगोश में ले लिया। पूरा इलाका, कॉलेज ग्राउंड, कई दुकानें भी पानी में डूब चुकी थीं। काफी घंटों तक खड्ड उफनती रही। जब पानी उतरा तो पीछे तबाही के निशान छोड़ गया। कई बसें बुरी तरह से तबाह हो चुकी हैं और बस अड्डे का फर्निचर और कागजात भी नष्ट हो गए हैं।
अन्य दुकानों औऱ घरों में भी कीचड़ औऱ मलबा भर गया है। कई बसें बह गई हैं तो कई छोटी गाड़ियों का नामो-निशां तक बाकी नहीं रहा है। सही मायनों में इस आपदा से कितना नुकसान हुआ है, इसका पता एक दो दिन में ही चल पाएगा। अभी अफरा-तफरी जैसी स्थिति है और सही स्थिति का पता नहीं चल पा रहा।
देखिए, तबाही की कुछ और तस्वीरें:
(बसों वाली ये तस्वीरें अमर उजाला से साभार ली गई हैं)
प्रदेश के निजी इंजिनियरिंग कॉलेज खाली, कुछ जगह एक ऐडमिशन भी नहीं
धूमल ने CM रहते बेटे अनुराग को 100 करोड़ की जमीन 1 रुपये में दी: कांग्रेस
कांग्रेस ने ललित मोदी प्रकरण में राजस्थान की सीएम वसुंधरा राजे और उनके बेटे दुष्यंत सिंह के बाद अब हिमाचल प्रदेश में जमीन आवंटन मामले में हिमाचल प्रदेश के पूर्व सीएम प्रेम कुमार धूमल और उनके बेटे अनुराग ठाकुर को निशाने पर लिया है।
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता जयराम रमेश ने प्रेस कॉन्फ्रेंस कर कहा, ‘राजस्थान के मां-बेटे की कहानी के बाद अब हिमाचल के बाप-बेटे की कहानी का समय आ गया है। जयराम रमेश ने कहा कि 2002 से क्रिकेट के नाम पर हिमाचल प्रदेश में प्रेम कुमार धूमल और उनके बेटे अनुराग ठाकुर ने सत्ता का दुरुपयोग किया है।
कांग्रेसी नेता का कहना था कि उन्होंने सार्वजनिक जमीन पर कब्जा कर लिया है। कपटपूर्वक निर्णय लिए गए हैं। हितों का भारी टकराव देखने को मिला है। उन्होंने आगे कहा, ’16 एकड़ जमीन धर्मशाला में हिमाचल प्रदेश क्रिकेट असोसिएशन को दी जाती है एक क्रिकेट स्टेडियम बनाने के लिए। 16 एकड़ जमीन धर्मशाला में जो HP क्रिकेट असोसिएशन को दी गई थी, उससे हिमाचल सरकार को हर साल 94 लाख मिलने थे।’
इसपर अनुराग ठाकुर का कहना था, ‘कांग्रेस झूठ बोलने में पारंगत है। वे बीजेपी नेताओं पर आधारहीन और झूठे आरोप लगाने की कोशिश करते हैं। अगर किसी क्रिकेट संघ को जमीन दी गई तो मुझे व्यक्तिगत तो नहीं दी गई? वह एक संस्था है, उसको दी गई है।’
अनुराग ने आगे कहा, ‘हम लोग 28 लाख प्रतिवर्ष उसका किराया लेते हैं, कांग्रेस अपने वरिष्ठ नेताओं को भ्रमित करके प्रेस कॉन्फ्रेंस करवाती है। HPTDC 100 होटल चलाकर भी 34 लाख घाटे में है, हम लोग जमीन का किराया 28 लाख प्रति वर्ष लेते हैं।’
ऊना में नड्डा का पार्टी को संकेत- शांता हमेशा सम्माननीय
पार्टीं के बदले परिद्वश्य के बीच नड्डा की भूमिका सब नेताओं से कहीं ऊपर नजर आ रही है। आज जिस तरह से शांता कुमार ने नड्डा का गर्मजोशी से स्वागत किया है उससे साफ संकेत मिलते हैं कि अब नई खिचडी़ पार्टी के बीच पककर ही रहेगी। नड्डा के साथ मंडी के सांसद रामस्वरूप व शिमला के सांसद वीरेंद्र कश्यप भी पहुंचे हैं। उधर, धूमल खेमे के नेता सीधे ही भरवाईं पहुंचे।
ऊना गेस्ट हाउस में पार्टी नेतायों एवं कार्यकर्ताओं से खचाखच भरे हाल में जब नड्डा सोफे पर बैठने लगे तो अचानक उन्होंने अपने आसपास नजर दौड़ाई और शांता कुमार जी को बुलाते हुए कहा शांता जी आप कृपया यहाँ बैठे। इसी के साथ उन्होंने शांतकुमार की एकदम बीच सोफे पर बिठाया। नड्डा के इस अंदाज से समस्त हिमाचल बीजेपी यह समझ गयी की लेटर बम के बावजूद यह ना समझा जाए की शांता कुमार पार्टी में अलग थलग हो गए हैं। नड्डा द्वारा शांता कुमार को दिए सम्मान से यह पता भी चल गया की क्यों केंद्रीय आलाकमान शांता कुमार के लेटर वाले मुद्दे पर चुप रहा।