बहुत दूर से चलकर आते हैं पहाड़ों पर तबाही मचाने वाले बादल

  • विवेक अविनाशी (vivekavinashi15@gmail.com)

हिमालयी क्षेत्रों में बरसने वाले बादल बंगाल की खाड़ी और अरबसागर से चलकर लगभग ढाई से तीन हजार किलोमीटर का आसमानी सफर तय करके यहां तक पहुंचते हैं और मूसलाधार बारिश से तबाही मचा देते हैं। वास्तव में जल कणों से भरपूर इन बादलो की राह में कोई व्यवधान  आता है, तभी ये टकराकर बरस पड़ते हैं। 
बरसात का शायद ही कोई ऐसा मौसम होगा जब हिमाचल में  बादल फटने और मूसलाधार बारिश से भू-स्खलन के कारण जानमाल  के नुकसान की  खबरें सुर्खियां न बनी हों। हाल ही में हिमाचल प्रदेश के मंडी जिले में बादल फटने के बाद सोन खड्ड में बाद आ जाने से धर्मपुर में पांच लोगों को जान गंवानी पड़ी और करोड़ों की संपत्ति को नुकसान हुआ।  ऐसा हिमाचल में पहली बार नहीं हुआ है। 1970 में पहली बार बादल फटने की घटना का नोटिस लिया गया, जहां एक मिनट में 38.10 मिलीमीटर बारिश रिकॉर्ड की गई थी। शिमला जिले के चिड़गांव में 15 अगस्त ,1997 को 1500 लोग बादल फटने की घटना से हताहत हुए थे। किनौर, कुल्लू और मनाली से भी बादल फटने के समाचार यदा कदा आते रहते हैं।
मंडी शहर के अस्पताल रोड पर साल 1984 में भारी बारिश से करोड़ों का नुक्सान हुआ था। धर्मपुर क्षेत्र में भी वर्ष 2004 में बादल फटने के बाद बारिश का पानी 10 दुकानों में घुस गया था, जिससे दुकानों को भारी नुकसान हुआ था। तबाही वाले बादलों की जानकारी रखने वाले विशेषज्ञ ऐसे मूसलाधार बारिश करने वाले बादलों को ‘क्यूमोलोनिंबस’ बादल के नाम से पहचानते हैं। ये बादल गोभी की शक्ल के लगते हैं और ऐसा लगता है जैसे गोभी का फूल आकाश में तैर रहा हो।

गोभी जैसा बादल

क्यूमोलोनिंबस बादलों में एकाएक जब नमी पहुंचनी बंद हो जाती है या बहुत ठंडी हवा का झोंका इनमें प्रवेश कर जाता है तो ये सफ़ेद बादल एकदम काले हो जाते हैं। इसके बाद तेज गरज से वे उसी जगह अचानक बरस पड़ते हैं।

बादल फटने की यह घटना अमूमन पृथ्वी से 15 किलोमीटर की ऊंचाई पर होती है। इसके कारण होने  वाली बारिश लगभग 100 मिली मीटर की दर से होती है। वास्तव में पारिस्थितिक असंतुलन भी बादल फटने की घटनाओं  का एक कारण है। ग्लोबल वॉर्मिंग के कारण धरती के तापमान में वृद्धि से भी मूसलाधार बारिश की सम्भावनाएं बढती हैं। एक अनुमान के अनुसार यदि धरती का तापमान एक डिग्री सेल्सियस बढ़ेगा तो वातावरण में जलकणों की मात्र 7 प्रतिशत बढ़ेगी। इसका अर्थ हुआ कि एक डिग्री तापमान बढ़ने से बारिश 4-6 फीसदी ज्यादा होगी।

हमारे देश में अभी ऐसे बादलों के बारे में भविष्यवाणी करना  सम्भव नहीं। जिला मंडी की जिला  आपदा प्रबंधन योजना-2012 में जारी सूचना के अनुसार प्रदेश का मंडी जिला प्राकृतिक आपदाओं की श्रेणी में उच्च अंकित किया गया है, इसलिए  इन आपदाओं से सबक लेकर प्रदेश सरकार ग्राम स्तर की आपदा  प्रबंधन समितियों को पूरी तरह सक्रिय कर सकती है, ताकि इस तरह की दुर्घटनाओं के समय जान-माल का नुकसान कम से कम हो।
(लेखक हिमाचल प्रदेश के हितों के पैरोकार हैं और जनहित के मुद्दों पर लंबे समय से लिख रहे हैं। इन दिनों ‘इन हिमाचल’ के नियमित स्तंभकार हैं।)
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