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Friday, September 12, 2025
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कोटखाई में स्कूल के बाहर से छात्रा का अपहरण, टीचर ने पीछा करके छुड़ाया

शिमला।। हिमाचल प्रदेश के कोटखाई का चर्चित रेप ऐंड मर्डर केस अभी भी हल नहीं हो पाया है मगर इसी इलाके में एक बार फिर इसी तरह की वारदात को दोहराने की कोशिश हुई है। ईनाडू के मुताबिक कोटखाई में एक छात्रा को किडनैप करने की कोशिश की गई। यह तो भला हो टीचर का, जिन्होंने गाड़ी का पीछा करके छात्रा को बचा लिया। तीनों आरोपी पुलिस की गिरफ्त में हैं। (कवर इमेज प्रतीकात्मक है)

 

घटना गुरुवार की बताई जा रही है। शाम को स्कूल से छुट्टी होने के बाद घर जा रही छात्रा को तीन युवक जबरन गाड़ी में बिठाने की कोशिश करने लगे, जिससे छात्रा ने चिल्लाना शुरू कर दिया। आवाज सुनकर एक अध्यापक वहां पहुंचे। उन्होंने देखा कि कुछ लोग छात्रा को गाड़ी में बिठाकर ले गए हैं। उन्होंने गाड़ी का पीछा किया और पुलिस को जानकारी दी।

प्रतीकात्मक तस्वीर

जानकारी के मुताबिक टीचर ने काफी दूर तक पीछा किया और वह छात्रा को आरोपियों से छुड़ाने में कामयाब रहे। इसी बीच पुलिस भी मौके पर पहुंच गई और तीन युवकों को गिरफ्तार कर लिया गया। ईनाडू के मुताबिक एसपी सौम्या सांबशिवन ने इस तरह की घटना होने की पुष्टि की है। पुलिस अभी जांच कर रही है कि मामला क्या है।

विक्रमादित्य सिंह की संपत्ति को लेकर आक्रामक हुई बीजेपी

शिमला।। मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह ने साल 2012 विधानसभा चुनाव के दौरान नामांकन के वक्त जो हलफनामा दिया था, उसमें अपने साथ-साथ परिजनों की संपत्ति का जिक्र भी किया था। उस हलफनामे में वीरभद्र सिंह के बेटे विक्रमादित्य सिंह की संपत्ति 1.19 करोड़ रुपये बताई गई थी। मगर ठीक पांच साल बाद होने जा रहे चुनावों में संपत्ति बढ़ गई है। बीजेपी ने इसे मुद्दा बना लिया है।

 

विक्रमादित्य सिंह ने शिमला रूरल से कांग्रेस के उम्मीदवार के तौर पर नामांकन दाखिल किया है। उन्होंने इस बार अपनी संपत्ति 84 करोड़ रुपये बताई है। चल संपत्ति 4.50 करोड़ है जबकि अचल संपत्ति 79.82 करोड़ रुपये है। उनके बैंक खातों में 10.94 लाख रुपये जमान हैं।

 

इसके अलावा उन्होंने शेयरों में 38 लाख रुपये, गहनों में 10.26 लाख रुपये और अन्य वाहनों का जिक्र हलफनामे में किया है। इस तरह से वीरभद्र के 2012 में दिए हलफनामे में बताई गई संपत्ति की तुलना इस साल विक्रमादित्य के हलफनामे में बताई गई संपत्ति से की जाए तो यह उछाल 70 प्रतिशत का है। यानी पांच सालों में विक्रमादित्य की संपत्ति 70 गुना बढ़ी है।

 

इस मामले को लेकर बीजेपी भी आक्रमाक हो गई है। बीजेपी के राष्ट्रीय प्रवक्ता संबित पात्रा ने वीरभद्र पर प्रदेश में विक्रमादित्य मॉडल ऑफ डिवेलपमेंट लागू करने का आरोप लगाया। उन्होंने कहा कि 2012 में वीरभद्र सिंह के डिपेंडेंट रहे विक्रमादित्य की तब की 1.19 करोड़ की संपत्ति पांच साल में बढ़कर 84 करोड़ तक पहुंच गई। उन्होंने कहा कि वीरभद्र प्रदेश का नहीं बल्कि विक्रमादित्य का विकास करवा रहे हैं।

लेख: यह 2017 है, 1947 नहीं, राजशाही से मोह छोड़ें वीरभद्र

आई.एस. ठाकुर।। वीरभद्र सिंह जी का बयान पढ़ा कि मैं 122वां राजा हूं, कोई खानाबदोश नहीं और टूट सकता हूं मगर झुक नहीं सकता। इस बयान के दूसरे हिस्से से तो बड़ी प्रेरणा मिलती है। कितनी अच्छी बात है कि कोई कहे कि मैं टूट सकता हूं, मगर किसी तरह के दबाव के आगे झुक नहीं सकता। वीरभद्र सिंह ने यह बात उनके खिलाफ चल रहे मामलों के संदर्भ में कही। यह जताने के लिए कि वह संपन्न हैं और उन्हें भला करप्शन करने की क्या जरूरत।

 

उन्हें हक है अपना बचाव करने का क्योंकि अभी तक एक भी मामला अदालत में उनके खिलाफ साबित नहीं हुआ है। वह आरोपी हैं, दोषी नहीं। मगर उनके इस बयान का पहला हिस्सा निराश करने वाला है- मैं 122वां राजा हूं, कोई खानाबदोश नहीं। निराश इसलिए करता है, क्योंकि जो शख्स लोकतंत्र में जनता के वोटों सो चुना जाता रहा हो और लोकतांत्रिक प्रक्रिया के तहत 6 बार मुख्यमंत्री रहा हो, वह अब भी अपने बीते हुए शाही इतिहास से क्यों चिपका हुआ है?

 

मुख्यमंत्री कई बार बयान दे चुके हैं कि वह राजा हैं, शाही हैं, ऐसा है, वैसा है। आज उनका पंजाब केसरी पर जो बयान पढ़ा, उसपर जवाब दिया जाना चाहिए। और यह जवाब लोकतांत्रिक देश के एक नागरिक होने के नाते संवैधानिक अधिकार के तहत दिया जा रहा है। पहले तो उनका बयान पढ़िए-

भाजपा सरकार ने मेरी संपत्ति को लेकर एक ही मामले में 3-3 जांचें बिठाई हैं ताकि वह मुझे परेशान करके सत्ता साहिल कर सके लेकिन ऐसा नहीं होगा, क्योंकि मैं टूट सकता हूं लेकिन झुक नहीं सकता। मैं कोई खानाबदोश नहीं हूं, 122 वां राजा हूं। सीलिंग एक्ट के समय मेरे परिवार द्वारा कई करोड़ों रुपयों की जमीनें सरकार को दी गई।

खानाबदोशों का कोई सम्मान नहीं होता क्या?
उनके इस बयान को देखें तो यही है कि वह कह सकते हैं कि वह कठोर हैं और झुक नहीं सकते। मगर उनके इस बयान से सामंतवाद की बू आती है। वह कहते हैं कि मैं खानाबदोश नहीं हूं। तो क्या खानाबदोश लोगों का आत्मसम्मान नहीं होता? खानाबदोश लोग मामूली लोग होते हैं? क्या वे जल्दी से झुक जाया करते हैं? देश-दुनिया में करोड़ों खानाबदोश हैं। वे एक जगह से दूसरी जगह घूमते रहे हैं। आज बहुत से लोग जो खानाबदोश नहीं भी हैं, वे भी एक समय खानाबदोश थे। हिमाचल के बहुत से राजे-रजवाड़े खुद इधर-उधर से आए हैं। बल्कि हिमाचल ही नहीं, पूरी मानव सभ्यता का इतिहास खानाबदोशी का रहा है। मुख्यमंत्री को न जाने क्यों अपमानजनक तुलनाएं करने की आदत है। जैसे पिछले दिनों गद्दी समुदाय को लेकर की थी। कभी सफाई कर्मचारियों को की थी तो कभी अन्य नेताओं को की थी।

122वें राजा हैं तो क्या हुआ?
बुशहर रियासत के 121वें शासक पद्म सिंह और उनकी नौवीं पत्नी शांति देवी की संतान हैं वीरभद्र सिंह। पद्म सिंह का निधन अप्रैल 1947 में हो गया था। उस वक्त वीरभद्र सिंह नौ साल के थे। इसी साल अगस्त में देश आजाद हो गया और लोकतांत्रिक व्यवस्था लागू हो गई। सिंबॉलिक रूप से भले ही वीरभद्र सिंह राजा मानते रहें खुद को, मगर वह राजा नहीं हैं और न ही राजा के तौर पर खुद को पेश कर सकते हैं। वीरभद्र क्यों भूल जाते हैं कि आज वह जो कुछ हैं, वह जनता के कारण हैं न कि राजशाही के कारण? अगर वह कहते हैं कि मैं सातवीं बार मुख्यमत्री बनूंगा तो यह मुख्यमंत्री पद उन्हें इसलिए नहीं मिलेगा कि वह अपने वंश के 122वें राजा हैं। यह पद तभी मिल पाएगा जब इन चुनावों में प्रदेश की जनता कांग्रेस के पक्ष में मतदान करके उसे बहुमत देती है और फिर चुने हुए प्रतिनिधि और पार्टी उन्हें यह जिम्मेदारी सौंपती है। यह बात अलग है कि वह ‘मैं राजा हूं’ के दम पर कुछ मासूम लोगों को प्रभावित करके उनका फायदा चुनावों में उठाते हों।

 

‘करोड़ों की जमीनें मेरे परिवार ने सरकार को दी है’
क्या वीरभद्र का राजवंश आसमान से इन जमीनों को अपने नाम लिखवाकर लाया था? जमीन तो जमीन है। जमीन पर किसी का नाम नहीं लिखा होता, जमीन जरूर किसी के नाम लिख जाती है। अगर वीरभद्र सिंह के राजवंश ने करोड़ों की जमीनें सरकार को दी हैं तो महान कार्य नहीं किया। देश-प्रदेश के लाखों लोगों की तय सीमा से अधिक जमीन सरकार के पास गई है। फर्क इतना है कि जिन सामंतों और रजवाड़ों ने ज्यादा जमीन कब्जाई थी, उनकी ज्यादा गई। तो यह जमीन कहां से आई थी उनकी पास और किसकी थी? लोकतंत्र सबको समानता देता है। पूरे देश के रजवाड़ों को दर्द ही इसलिए हुआ था कि उन्होंने कई पीढ़ियों से जो जनता की जमीन कब्जाई थी, वह सरकार ने उनसे छुड़ाई और भूमिहीनों को दी। पहले के दौर में तो जितनी रियासत थी, वो सारी की सारी ही राजा की होती थी। तो क्या उस पूरी जमीन का ही मालिक रजवाड़ों को बनाकर रख दिया जाता? और जमीन देकर महानता ही साबित करनी है तो वीरभद्र सिंह अपने सेब के बागीचों को क्यों नहीं सरकार को दान कर देते, जिनपर यह ऐक्ट लागू नहीं होता।

 

राजा होना कोई महान काम नहीं था
मुख्यमंत्री से गुजारिश है कि वह इस सोच को अब तो छोड़ दें। प्रदेश के सबसे अनुभवी नेता हो और लोकतांत्रिक व्यवस्था से चुने जाते रहे नेता हो। फिर दूसरों को नीचा दिखाने और खुद को शाही दिखाने की आदत भी छोड़ दो। और वह वक्त गया कि जनता यह सोचकर आंखें मूंद ले कि भला एक संपन्न राज परिवार के वशंज को करप्शन करने की क्या आदत। राजा-रजवाड़ों की छवि जनता के मन में बहुत अच्छी नहीं है। राजा-रजवाड़े बहुत अच्छे नहीं थे। भारत समेत पूरी दुनिया के राजवंश तो जाने ही जाते हैं अपनी भोग-विलासिता के लिए, कई-कई विवाह करने के लिए, अनोखे कानून बनाने के लिए, जमीनों पर कब्जों के लिए लड़ाई करने के लिए, लोगों पर अत्याचार करने के लिए। भारत के रजवाड़े तो अपनी संपत्ति और सत्ता को बचाए रखने के लिए अंग्रेजों के पिछलग्गू भी बने थे। तो यह तर्क काम नहीं करता कि मैं तो राजा हूं, मुझे क्या जरूरत। सबसे ज्यादा जरूरत तो राजा को ही होती है। वरना आम जनता अपने आप में अपने हाल में मस्त है, जितना उसके पास है, उसी में गुजारा कर रही है।

आपको रजवाड़ाशाही से ऊपर होकर जिम्मेदार लोकतांत्रिक नेता की तरह बातें करनी चाहिए। जहां तक बात है आप पर लगे आरोपों की, उनका जवाब भी लोकतांत्रिक ढंग से दीजिए। अब वह दौर गया कि रजवाड़ा होने का नाम लेकर सहानुभूति बटोरी जाए। यह 2017 है, 1947 नहीं।

लेखक मूलत: हिमाचल प्रदेश के हैं और पिछले कुछ वर्षों से आयरलैंड में रह रहे हैं। उनसे kalamkasipahi @ gmail.com पर संपर्क किया जा सकता है।

(ये लेखक के निजी विचार हैं)

मैं राजा हूं, टूट सकता हूं मगर झुक नहीं सकता: वीरभद्र सिंह

सोलन।। शिमला रूरल सीट बेटे के लिए छोड़ने के बाद अर्की से चुनाव लड़ रहे मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह बीजेपी की तरफ से लगाए जा रहे आरोपों पर हमलावर हो गए हैं। उन्होंने कहा कि बीजेपी सरकार ने मेरी संपत्ति को लेकर एक ही मामले में तीन-तीन जांचें बिठाई हैं ताकि परेशान करके सत्ता हासिल कर सके, मगर ऐसा नहीं होगा।

 

वीरभद्र सिंह ने कहा,  “मैं टूट सकता हूं लेकिन झुक नहीं सकता। मैं कोई खानाबदोश नहीं हूं। अपने वंश का 122वां राजा हूं। सीलिंग ऐक्ट के समय मेरे परिवार की करोड़ों रुपये की जमीनें सरकार को दी गई हैं।”

 

मुख्यमंत्री ने कहा कि भारतीय जनता पार्टी हमेशा से ही लोगों को तोड़ने का काम करती है। कभी वह क्षेत्रवाद के नाम पर लोगों को तोड़ती है, कभी धर्म के नाम पर तो कभी गोरक्षा के नाम पर।

गुड़िया केस में सही राह पर सीबीआई, कोर्ट ने थपथपाई पीठ

शिमला।। कोटखाई रेप ऐंड मर्डर केस की जांच कर रही सीबीआई ने बुधवार को हाई कोर्ट में स्टेटस रिपोर्ट पेश की। इस रिपोर्ट पर हाई कोर्ट ने संतोष जताया है। गौरतलब है कि अब तक हर बार फाइल की गई स्टेटस रिपोर्ट पर कोर्ट नाराज ही रहा था। मगर इस बार फाइल की गई 70 पन्नों की रिपोर्ट के हाई कोर्ट संतुष्ट नजर आया।

 

तीन भागों में बांटी गई इस रिपोर्ट को लेकर कोर्ट ने कहा कि जनता की भावनाओं को देखते हुए इस रिपोर्ट को सार्वजनिक किया जाना चाहिए। मगर सीबीआई ने गुजारिश की कि फिलहाल इसे सार्वजनिक न किया जाए। सीबीआई ने कहा कि वह मामले को सुलझाने के लिए सही ट्रैक पर है।

 

इसके बाद अदालत ने सीबीआई को 20 दिसंबर तक अंतिम स्टेटस रिपोर्ट फाइल करने की मोहलत दी है। मामले में सीबीआई अब तक 500 लोगों से पूछताछ कर चुकी है। करीब 200 लोगों के सैंपल भी लिए गए हैं। सीबीआई की टीम गुड़िया के पुराने स्कूल में भी गई थी।

देखें, सभी सीटों पर बीजेपी-कांग्रेस से कौन हैं आमने-सामने

इन हिमाचल डेस्क।। विधानसभा चुनाव के लिए बीजेपी और कांग्रेस ने अपने उम्मीदवार तय कर दिए हैं। बीजेपी ने जहां सभी 68 सीटों पर उम्मीदवारों का नाम एकसाथ घोषित कर दिया था, कांग्रेस को बहुत माथापच्ची करनी पड़ी।

 

कांग्रेस ने पहली लिस्ट में 59 उमीदवारों के नाम जारी किए। उसके चार दिन बाद दूसरी लिस्ट आई जिसमें 8 नाम थे। आखिर में शिमला रूरल और मंडी सीटों का भी ऐलान हो गया।

 

इस तरह से अब तक सभी सीटों पर कांग्रेस और बीजेपी के उम्मीदवारों की लिस्ट आ गई है। देखें, कौन कहां से किसके सामने है:

 

A. C. NO. Assembly Constituency Name BJP Congress
1 Churah हंस राज सुरेंदर भारद्वाज
2 Bharmour जिया लाल कपूर ठाकुर सिंह भरमौरी
3 Chamba पवन नैयर नीरज नैयर
4 Dalhousie डी.एस. ठाकुर आशा कुमारी
5 Bhattiyat बिक्रम सिंह जरयाल कुलदीप सिंह पठानिया
6 Nurpur राकेश पठानिया अजय महाजन
7 Indora रीता धीमान कमल किशोर
8 Fatehpur कृपाल परमार सुजान सिंह पठानिया
9 Jawali अर्जन सिंह ठाकुर चंद्र कुमार
10 Dehra रविंद्र सिंह विपल्व ठाकुर
11 Jaswan-Pragpur बिक्रम सिंह सुरेंद्र मनकोटिया
12 Jawalamukhi रमेश धवाला संजय रतन
13 Jaisinghpur रविंद्र धीमान यादविंद्र गोमा
14 Sullah विपिन सिंह परमार जगजीवन पाल
15 Nagrota अरुण कुमार कूका जी.एस. बाली
16 Kangra संजय चौधरी पवन काजल
17 Shahpur सरवीन चौधरी केवल सिंह पठानिया
18 Dharamshala किशन कपूर सुधीर शर्मा
19 Palampur इंदु गोस्वामी आशीष बुटेल
20 Baijnath मुल्ख राज प्रेमी किशोरी लाल
21 Lahaul and Spiti राम लाल मार्केंडेय रवि ठाकुर
22 Manali गोविंद सिंह ठाकुर हरि चन्द शर्मा
23 Kullu महेश्वर सिंह सुंदर सिंह ठाकुर
24 Banjar सुरेंद्र शौरी आदित्य विक्रम सिंह
25 Anni किशोरी लाल बंसी लाल
26 Karsog हीरा लाल मनसा राम
27 Sundernagar राकेश जम्वाल सोहन लाल ठाकुर
28 Nachan विनोद कुमार लाल सिंह कौशल
29 Seraj जय राम ठाकुर चेतराम ठाकुर
30 Darang जवाहर ठाकुर कौल सिंह ठाकुर
31 Joginder Nagar गुलाब सिंह ठाकुर जीवन लाल ठाकुर
32 Dharampur महेंद्र सिंह चंद्रशेखर
33 Mandi अनिल शर्मा चंपा ठाकुर
34 Balh इंद्र सिंह प्रकाश चौधरी
35 Sarkaghat कर्नल इंद्र  सिंह पवन ठाकुर
36 Bhoranj कमलेश कुमारी सुरेश कुमार
37 Sujanpur प्रेम कुमार धूमल राजिंदर राणा
38 Hamirpur नरिंदर ठाकुर कुलदीप पठानिया
39 Barsar बलदेव शर्माl इंद्र दत लखनपाल
40 Nadaun विजय अग्निहोत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू
41 Chintpurni बलबीर सिंह चौधरी कुलदीप कुमार
42 Gagret राजेश ठाकुर राकेश कालिया
43 Haroli राम कुमार शर्मा मुकेश अग्निहोत्री
44 Una सतपाल सिंह सत्ती सतपाल सिंह रायजादा
45 Kutlehar विरेंद्र कंवर विवेक शर्मा
46 Jhanduta जे.आर. कटवाल डॉ. बीरू राम किशोर
47 Ghumarwin राजिंदर गर्ग राजेश धर्माणी
48 Bilaspur सुभाष ठाकुर बंबर ठाकुर
49 Sri Naina Deviji रणधीर शर्मा राम लाल ठाकुर
50 Arki रत्न सिंह पाल वीरभद्र सिंह
51 Nalagarh कृष्ण लाल ठाकुर लखविंदर राणा
52 Doon सरदार परमीजीत सिंह (पम्मी) राम कुमार
53 Solan राजेश कश्यप कर्नल धनी राम शांडिल
54 Kasauli राजीव सैजल विनोद सुल्तानपुरी
55 Pachhad सुरेश कुमार गंगू राम मुसाफिर
56 Nahan राजीव बिंदल अजय सोलंकी
57 Sri Renukaji बलबीर चौहान विनय कुमार
58 Paonta Sahib सुख राम चौधरी किरनेश जंग
59 Shillai बदलेव सिंह तोमर हर्षवर्धन चौहान
60 Chopal बलबीर सिंह वर्मा सुभाष मंगलेट
61 Theog राकेश वर्मा दीपक राठौर
62 Kasumpti विजय ज्योति सेन अनिरुद्ध सिंह
63 Shimla सुरेश भारद्वाज हरभजन सिंह भज्जी
64 Shimla Rural प्रमोद शर्मा विक्रमादित्य सिंह
65 Jubbal-Kotkhai नरेंद्र बरागटा रोहित ठाकुर
66 Rampur प्रेम सिंह नंद लाल
67 Rohru शशि बाला मोहन लाल बरागटा
68 Kinnaur तेजवंत नेगी जगत सिंह नेगी

 

किसी तरह की त्रुटि के लिए फेसबुक पेज पर मेसेज भेजें या फिर contact @ inhimachal.in पर ईमेल करें।

कांग्रेस ने राठौर, वीरभद्र ने खाची को बताया ठियोग से कैंडिडेट

शिमला।। (अपडेट: खबर छपने के बाद से सीएम के पेज पर यह पोस्ट नज़र नहीं आ रही। शायद डिलीट कर दी गई है) गुड़िया प्रकरण के दौरान कथित संदिग्धों की तस्वीरें अपलोड करने को लेकर चर्चा में रहे मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह के फेसबुक पेज ने संभवतः फिर एक बड़ी ग़लती की है। कांग्रेस की तरफ से जारी लिस्ट में जहां ठियोग से कांग्रेस ने दीपक राठौर को टिकट दिया है, वहीं सीएम के पेज ने वहां से विजयपाल खाची को उम्मीदवार बताते हुए बधाई दे दी है।

 

देखें, मुख्यमंत्री मंत्री के पेज पर क्या पोस्ट हुआ है-

मुख्यमंत्री के पेज पर डाली गई पोस्टI

वहीं कांग्रेस ने जो लिस्ट जारी की है, उसमें दीपक राठौर का नाम है।

प्रेस रिलीज

अब दो बातें हो सकती हैं। या तो सीएम साहब के फेसबुक चलाने वालों के पास गलत जानकारी है या फिर कांग्रेस ने गलत नामों वाली लिस्ट जारी कर दी है। या एक बार फिर ठियोग से टिकट बदलने की तैयारी है?

कांग्रेस की दूसरी लिस्ट जारी, ठियोग का टिकट बदला

शिमला।। कांग्रेस ने पहली लिस्ट में 59 उमीदवारों के नाम जारी किए थे। बाकी की 9 सीटों को लेकर गतिरोध बना हुआ था मगर अब दूसरी लिस्ट भी जारी कर दी गई है। इसमें खास बात यह है कि ठियोग से अब विद्या स्टोक्स चुनाव नहीं लड़ेंगी।

पहली लिस्ट के बाद जो 9 सीटें बची थीं, उनमें से 2 पर पेंच फंसा हुआ था। मगर अब साफ हो चुका है कि मंडी से चम्पा ठाकुर कांग्रेस उम्मीदवार होंगी जो द्रंग से लड़ रहे ठाकुर कौल सिंह की बेटी हैं। वहीं शिमला ग्रामीण से वीरभद्र के बेटे विक्रमादित्य कांग्रेस के टिकट पर नामांकन दर्ज करेंगे। हालांकि दूसरी लिस्ट में इन दोनों सीटों का ज़िक्र नहीं है। खास बात यह है कि विद्या स्टोक्स की तबीयत खराब होने के कारण ठियोग का टिकट भी बदल दिया गया है।

 

दूसरी लिस्ट इस तरह से है-

शाहपुर- केवल सिंह पठानिया

पालमपुर- आशीष बुटेल

मनाली- हरि चन्द शर्मा

कुल्लू- सुरेंदर सिंह ठाकुर

कुटलेहड़- विवेक शर्मा

नालागढ़- लखविंदर राणा

ठियोग- दीपक राठौर

 

प्रेस रिलीज

पूरी लिस्ट देखने या सभी सीटों पर बीजेपी और कांग्रेस से कौन आमने-सामने है, जानने के लिए यहां क्लिक करें।

अपने कहे मुताबिक शिमला रूरल से दावेदारी क्यों नहीं छोड़ी विक्रमादित्य ने?

आई.एस. ठाकुर।। खबर पढ़ी कि मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह जी ने कहा है कि सुखराम की ‘याद्दाश्त गुम हो गई है’ और उन्हें पता नहीं चल रहा कि वे क्या बोल रहे हैं (पढ़ें)। यह पढ़कर हैरानी सी हुई क्योंकि पिछले दिनों कई मंचों पर मुख्यमंत्री वीरभद्र बोलते-बोलते अटके हैं और भूल चुके हैं कि आगे क्या बोलना है। कई बार तो वह यही भूल गए कि धूमल से पहले बीजेपी का मुख्यमंत्री कौन था और कई बार यही भूल गए कि वे कितनी बार मुख्यमंत्री रह चुके हैं। इसके वीडियो भी उपलब्ध हैं, जिनमें वे पीछे मौजूद लोगों से मदद लेते दिखे हैं।

 

रही बात बोलने का पता न चलने की, मुख्यमंत्री खुद ऐसे बयान दे चुके हैं जो उन्हें नहीं देने चाहिए थे। फिर वह गुड़िया केस में कोटखाई के लोगों पर की गई टिप्पणी हो, गद्दियों पर कथित टिप्पणी हो, होशियार सिंह मामले में टिप्पणी हो…. ऐसे कई मामलों में वह अंट-शंट बोल चुके हैं और मीडिया में इसके भी सबूत हैं। मगर कमजोर याद्दाश्त की बात आई तो बुजुर्ग मुख्यमंत्री पर ज्यादा कटाक्ष नहीं करना चाहिए। 83 साल की उम्र में और होगा भी क्या। चिंता तो उनके युवा बेटे विक्रमादित्य को लेकर है, जो कुछ ही दिन पुरानी बात भूल गए।

 

यह तो किसी से छिपा नहीं है कि भारत की राजनीति में परिवारवाद का आदर्श उदाहरण देखना हो तो आजकल शिमला का रुख करना चाहिए, जहां पिता (वीरभद्र सिंह) ने अपनी सीट अपने बेटे (विक्रमादित्य) को टिकट देने के लिए छोड़ दी। मगर अफसोस, टिकट है कि फाइनल होने में कई दिन का वक्त लग गया। अब खबर आ रही है कि हाईकमान से हरी झंडी मिल गई है। होना ही था, आखिरकार मुख्यमंत्री के बेटे जो ठहरे। मगर मैं विक्रमादित्य को याद दिलाना चाहता हूं उनका वह बयान, जिसमें उन्होंने कहा था- एक परिवार से एक ही व्यक्ति को टिकट मिलना चाहिए(पढ़ें)।

 

जब मीडिया में ये खबर छाई कि विक्रमादित्य एक परिवार से एक टिकट की हिमायत कर रहे हैं, तब कांग्रेस के ही मंत्री कौल सिंह ठाकुर ने व्यंग्य किया था- क्या विक्रमादित्य ने अपने पापा से पूछकर यह बयान दिया है(पढ़ें)। इसके बाद मुख्यमंत्री वीरभद्र ने कहा था कि कांग्रेस में एक परिवार एक टिकट जैसी कोई पॉलिसी नहीं है। मगर दोबारा विक्रमादित्य, जिन्हें कुछ लोग ‘टीका’ कहते हैं, तो ‘टीका’ ने टिप्पणी की कि मैं अभी भी अपनी बात पर कायम हूं।

 

उस वक्त लगा होगा कि कोई तो आया जो राजनीति में बदलाव की बात करता है। मगर ‘टीका’ की टिप्पणी की पोल तब खुल गई, जब वीरभद्र अर्की से चुनाव लड़ने जा रहे हैं। राजनीति में जुबान का बड़ा महत्व होता है। उम्मीद थी कि विक्रमादित्य अपनी जुबान का मान रखेंगे और कहेंगे, मैं अपनी बात पर कायम हूूं और चूंकि मेरे पापा को टिकट मिल गया, मैं शिमला रूरल से अपना दावा छोड़ता हूं।

 

मगर ऐसा हुआ क्या? वैसे चुनाव से पहले युवाओं को ज्यादा से ज्यादा टिकट देने का ऐलान भी इन्हीं जनाब ने किया था। उस वक्त ऐसा लग रहा था जैसे टिकट आवंटन खुद ही करेंगे। मगर कहीं पर 90 साल के बुजुर्ग चुनाव में उतर रहे हैं, कहीं 83 तो कहीं पर 80 साल के। अब कांग्रेस के लिए युवाओं की परिभाषा 75 साल पार हो तो अलग बात है। क्योंकि अधिकरत सीटों पर बुजुर्ग नेताओं को टिकट दिए गए हैं।

 

शायद विक्रमादित्य अपनी दोनों बातें भूल गए हैं। वन फैमिली, वन टिकट भी गायब हो गया और युवाओं को टिकट भी नहीं मिल रहे। प्लीज़, यह घिटा-पिटा डायलॉग न मारना कि पार्टी का फैसला है। हम जैसे लोगों तो विक्रमादित्य ने बहुत निराश किया है, जिन्हें लगता था कि वह शायद बाकी नेताओं से अलग हैं। ऐसे में लगता है कि मुख्यमंत्री जी को सुखराम के बजाय विक्रमादित्य की याद्दाश्त की और ‘क्या बोलना है क्या नहीं’ की चिंता करनी चाहिए। क्योंकि अभी वह युवा हैं और उनके सामने लंबा भविष्य पड़ा है।

(लेखक मूलत: हिमाचल प्रदेश के हैं और पिछले कुछ वर्षों से आयरलैंड में रह रहे हैं। उनसे kalamkasipahi @ gmail.com पर संपर्क किया जा सकता है।)

DISCLAIMER: ये लेखक के निजी विचार हैं।

तो क्या बीजेपी तय कर चुकी है अपना सीएम, बस घोषणा नहीं की?

शिमला।। हिमाचल प्रदेश में बीजेपी अभी भले ही बिना सीएम कैंडिडेट घोषित किए चुनावी रण में उतरी है, मगर पार्टी हाईकमान यह तय कर चुका है कि सरकार बन जाने की स्थिति में सीएम कौन होगा। बीजेपी बस एक रणनीति के तहत अभी इसका ऐलान नहीं कर रही। ये संकेत किसी और ने नहीं, बल्कि बीजेपी के ही एक बड़े नेता ने दिए हैं।

 

ये कयास तो बहुत पहले से लगाए जा रहे थे कि अन्य राज्यों की ही तरह हिमाचल प्रदेश में भी भारतीय जनता पार्टी बिना किसी चेहरे के चुनाव लड़ेगी। फर्क इतना है कि अन्य राज्यों में जहां उसने पीएम मोदी के नाम पर चुनाव लड़ा था, हिमाचल में उसका फोकस पीएम के नाम पर चनाव लड़ने का नहीं बल्कि लोकल लेवल के मुद्दों पर रहेगा।

मोदी को आगे क्यों नहीं किया जा रहा?
ऐसा इसलिए भी है क्योंकि हिमाचल प्रदेश में चुनाव अन्य राज्यों के चुनाव से अलग होते हैं। 2010 कॉमनवेल्थ गेम्स के बाद से ही जब पूरे देश में भ्रष्टाचार को लेकर एक कांग्रेस विरोधी लहर पैदा हो गई थी, उस वक्त कई राज्यों में कांग्रेस को नुकसान उठाना पड़ रहा था। मगर 2012 में वीरभद्र सिंह के नेतृत्व में हिमाचल में कांग्रेस को सरकार बनाने में कामयाबी मिली थी। वह भी तब, जब वीरभद्र को करप्शन के आरोपों केे चलते केंद्रीय मंत्रिमंडल से हटना पड़ा था।

नया चेहरा देना चाहती है बीजेपी
ऐसे में बीजेपी जानती है कि यहां पर लोकल समीकरण हावी रहते हैं, इसलिए पीएम मोदी के नाम पर चुनाव लड़ना घाटे का सौदा साबित हो सकता है और खासकर नोटबंदी और जीएसटी को लेकर पनपी नाराजगी के बाद। बीजेपी यह संदेश भी देना चाहती थी कि हम नया नेतृत्व देंगे, मगर यह भी नहीं चाहती थी कि पुराना नेतृत्व नाराज होकर पार्टी को नुकसान पहुंचाए। इसलिए पार्टी ने बीच का रास्ता अपनाते हुए किसी को भी सीएम कैंडिडेट नहीं बनाया। यानी वह बिना कहे जताना चाहती है कि उसके मन में क्या है, मगर सब स्पष्ट भी नहीं करना चाहती।

यह है राजनीतिक पंडितों की राय
राजनीतिक पंडित मानते हैं कि अगर बीजेपी को पुराना ही नेतृत्व देना होता तो वह पहले ही घोषणा कर देती। मगर वह जानती है कि प्रदेश में इस बार जनता नया चेहरा देखना चाहती है, इसलिए ऐसा रिस्क नहीं उठाना चाहती, जिससे सीधा फायदा कांग्रेस को मिले। हालांकि एक अनुमान यह भी है कि अगर बिना सीएम कैंडिडेट घोषित किए बीजेपी का प्रचार अभियान पेस नहीं पकड़ता है तो वह हालात का आकलन करके चेहरे का ऐलान कर सकती है।

केंद्रीय मंत्री जेपी नड्डा का बयान
पार्टी ने तय कर लिया है कि चुनाव जीतने पर मुख्यमंत्री कौन होगा। और यह माना जा सकता है कि मुख्यमंत्री का पद इस बार नए चेहरे को ही मिलेगा। दरअसल एक खबर के मुताबिक स्वास्थ्य मंत्री जेपी नड्डा कहा है कि बीजेपी में सीएम पद को लेकर कोई विवाद नहीं है। यह बीजेपी संसदीय बोर्ड की बैठक में तय हो गया है। कब क्या घोषणा करनी है, यह एक रणनीति का हिस्सा है।

ऐसे में संकेत स्पष्ट हैं कि बीजेपी नया चेहरा देने की तैयारी में हैं। मगर वह नया चेहरा कौन होगा, इसे लेकर कयासों का दौर नतीजे आने तक जारी रहेगा।