कोटा प्रकरण: सीधे फ़ैसले न लेकर गोलमोल बातें क्यों करती है सरकार

आशीष नड्डा।। डरे-डरे से सरकार, जाने कौन सलाहकार और माशा अल्लाह चाटुकार… कमोबेश यही हालत हिमाचल प्रदेश सरकार की कोटा प्रकरण में नज़र आई। कोटा प्रकरण यानी कोटा में कोचिंग लाने गए बच्चों को वापस हिमाचल लाने के लिए बसों का इंतज़ाम करने को लेकर पूरे प्रदेश में भ्रम की स्थिति पैदा करना। इस पूरे मामले में जनता को भ्रमित करके रखा गया जबकि बात को सीधे, बिना किसी लाग-लपेट के जनता के सामने रखा जा सकता था।

पर यह कोई पहला मामला नहीं है। पहले भी मामूली सी बातों को सरकार ने अपने ही कर्मों से विवाद में बदल दिया। इश बार भी ऐसा ही किया गया। साधारण सी बातों को डेढ़ा करके उन्हें विवादों में तबदील कर देने में सरकार में बैठे सीएम जयराम के राजनीतिक कुनबे और बेलगाम सी नज़र आती अफ़सरशाही को जाने क्या मज़ा आता है।

इस पूरे मामले में सरकार की जमकर किरकिरी हो रही है और सीएम की छवि भी एक कमजोर और समय पर फ़ैसले लेने में असमर्थ सीएम की छवि पनप रही है। कोटा में बसें भेजने के निर्णय पर सरकार की तरफ़ से कोई आधिकारिक घोषणा नहीं हुई थी मगर चाटुकारों ने शुक्रवार की दोपहर को ही फ़ेसबुक पर इसे सरकार का ऐतिहासिक कदम बताकर 105 बच्चों को लाए जाने का आँकड़ा जारी करके बधाइयाँ देना शुरू कर दिया।

बाक़ी राज्यों ने भी कोटा से लाए हैं अपने यहाँ के छात्र

लेकिन सोशल मीडिया पर ही इसका प्रचण्ड विरोध शुरू हो गया कि कोटा ही क्यों? इस बाबत सरकार के मुखिया जयराम ठाकुर से शाम उनके रोज़ के बुलेटिन के बाद पत्रकारों ने सवाल पूछा कि कोटा से बच्चे लाए जाने को लेकर जो ख़बरें आ रही हैं, उनका क्या है। तो सीएम ने इसका खंडन करते हुए गोलमोल का जवाब देकर पल्ला झाड़ लिया। जबकि परिवहन विभाग के निदेशक जेएम पठानिया पहले ही बता चुके थे कि कितनी बसें जाएंगी।

मगर रात होते-होते फिर से पुष्टि हो गई कि बसें जा रही हैं और लाए जाने वालों का आँकड़ा 105 से 172 हो गया। अगर यही काम करना था तो सीएम क्या शाम के अपने संबोधन में कह नहीं सकते थे कि राजस्थान की सरकार ने हाथ खड़े कर दिए हैं, कोटा से हर राज्य अपने छात्रों को लाने में लगा है तो हम भी अपने यहाँ के छात्रों को लाने के लिए बसें भेज रहे हैं।

अगर सीएम साफ़ ये बात कहते तो क्या बवाल मचता? और ऐसा कहने से कौन सा घाटा हो रहा था जब गहलोत सरे आम ये कह रहे थे कि इस संबंध में बाक़ी राज्यों के मुख्यमंत्रियों से उनकी बात हुई। बाक़ी राज्यों ने भी तो इसी कारण अपने यहाँ के छात्रों को लाने का इंतज़ाम किया था। आगे ट्वीट देखें।

सबसे अहम बात ये है कि वे कौन से चाटुकार हैं जिनके पास सरकार के प्रस्तावित प्लान पहले ही पोस्टर बनकर पहुँच जाते हैं और आधिकारिक घोषणा होने से पहले ही सोशल मीडिया पर फैल जाते हैं? जिस फ़ैसले को लेकर पूछे गए सवाल पर मुख्यमंत्री अनभिज्ञता जताते हैं, वह उन्हीं की पार्टी के लोगों द्वारा बाक़ायदा बधाई संदेशों के साथ वायरल किया पड़ा होता है।

कुलमिलाकर यह सरकार कॉन्फ़िडेंस की कमी से जूझती दिखाई देती है। मंत्रिमंडल पूरा नहीं है, जो हैं वे भी छाप छोड़ते नज़र नहीं आ रहे। 2017 में जब नया चेहरा प्रदेश में आया था तो जनता को उम्मीदें थीं। मगर जनता की उम्मीदों का शीघ्र ही यह पतन हो जाना और वह भी फ़ालतू के मुद्दों पर, भविष्य के लिए सुखद संदेश नहीं है।

(लेखक हिमाचल प्रदेश के बिलासपुर से हैं और लंबे समय से हिमाचल प्रदेश से जुड़े विषयों पर लिख रहे हैं। यह लेख उनकी फेसबुक टाइमलाइन से साभार लिया गया है।)

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