कंगना रणौत, नेताओं और हिमाचल प्रदेश के कुछ लोगों का पाखंड

आई.एस. ठाकुर।। किसी महापुरुष ने कहा था- हिपॉक्रसी की भी सीमा होती है। मगर असल बात ये है कि हिपॉक्रसी यानी पाखंड की कोई सीमा नहीं होती। यही बात आजकल कंगणा रणौत और उनका समर्थन क रहे नेताओं, लोगों और खासकर हिमाचल वासियों में देखने को मिल रही है।

कंगना रणौत एक सफल अभिनेत्री हैं और शायद ही कोई होगा जो उनके अभिनय का मुरीद न हो। इस बात में भी कोई शक नहीं कि बॉलिवुड में प्रवेश के बाद आगे का सफर उन्होंने अपने दम पर तय किया है और जिस मुकाम पर वह पहुंची थीं, उसका पूरा श्रेय उन्हीं को जाता है। वह सेल्फ मेड लेडी हैं और एक उदाहरण भी कि जिस जगह सितारों के बच्चों को आराम से काम मिल जाता है, वहां पर कैसे आप प्रतिभा और धैर्य के दम पर अपना मुकाम बना सकते हैं।

मगर पिछले कुछ समय से कंगना ने जिस तरह के बयान देना शुरू किया, खासकर सोशल मीडिया हैंडल्स पर उनके कॉमेंट आए, वे विवादों को जन्म देते गए। बीच-बीच में उनकी बहन रंगोली की ओर से की गई टिप्पणियां भी चर्चा में आती रहीं। अपनी बात रखने में कोई बुराई नहीं और दूसरों की आलोचना या निंदा करना भी एक हद तक ग़लत नहीं। मगर बात तब गलत हो जाती है जब आप इसी में जुटे रहें और आरोप लगाते समय यह भी ध्यान न रखें कि आप जो कह रहे हैं, वह सही है या नहीं।

कंगना रणौत Image Courtesy: Kangana Ranaut

यह हिपॉक्रसी नहीं तो और क्या है?
सुशांत सिंह राजपूत की मौत के बाद से कंगना ने जो मन में आया, वह कहना शुरू कर दिया। उनकी भाषा भी दिन-ब-दिन खराब होती चली गई। अब तो ऐसा लग रहा है कि कंगना के खुद सोशल मीडिया पर प्रत्यक्ष आने से पहले ‘टीम कंगना’ के नाम से जो ट्वीट आदि किए जाते थे, वे वास्तव में उनकी टीम के नहीं, खुद के अपने ही विचार होते थे।

कंगना ने हाल के दिनों में ऐसी टिप्पणियां की हैं जो शिवसेना नेता संजय राउत की घटिया भाषा से भी गई-गुजरी हैं। नेताओं को बदतमीजी से संबोधित करना, इंडस्ट्री के लोगों पर आरोप लगाना, उनके प्रति अपमानजनक टिप्पणियां करना… यह किसी भी हाल में सही नहीं है। फिर भी लोग उन्हें एक योद्धा की तरह सम्मान दे रहे हैं और हिमाचल के लोग तो इसे अपनी अस्मिता से जोड़ रहे हैं।

पिछले कुछ समय से कंगना उसी राह पर चल रही हैं जिस राह पर अक्षय चले थे। वह जानती हैं कि देश, देशभक्ति, देशप्रेम, हिंदू गौरव आदि जैसे विषयों फिल्में बनाना फायदे का सौदा है। इसीलिए मणिकर्णिका मूवी के बाद वह अयोध्या पर मूवी बनाने का एलान कर चुकी हैं। मगर अक्षय ने देशभक्ति की फिल्में बनाने तक ही खुद को सीमित रखा है। उन्होंने कभी उस तरह से आपत्तिजनक बातें नहीं कीं, जैसी बातें कंगना कर रही हैं। कंगना जानती हैं कि किन विषयों पर बात करना आज तुरंत आपको सुर्खियों में ला सकता है।

कंगना खुद को सबसे बड़ी देशभक्त, हिंदू संस्कृति की रक्षक और ‘क्षत्राणी’ बताने में जुटी हुई हैं। वह बता रही हैं कि वह अकेली बहादुर हैं जो गलत, अन्याय, बुराई और ‘निरंकुश शासन’ से लोहा ले रही हैं। मगर उनकी अधिकतर बातें बेहद छिछली और वाहियात हैं। और ये पसंद भी उन्हीं को आ सकती हैं जो खुद छिछले हों, जिनकी समझ का दायरा संकुचित हो। कंगना के आचरण और उनकी बातों में विरोधाभास है। ऐसा विरोधाभास जो बताता है कि या तो उनके साथ कोई समस्या है या फिर वह पाखंडी हैं, हिपॉक्रसी से भरी हुई हैं।

Image Courtesy: Kangana Ranaut

बिना सबूत आरोप लगाना कितना सही?
कंगना आज कहती हैं कि उन्होंने अपने दम पर जगह बनाई है, उन्होंने इंडस्ट्री को फेमिनिज़म सिखाया और उनसे पहले अभिनेत्रियों को हीरो के साथ सोने पर रोल मिलते थे। वह उर्मिता मातोंडकर को सॉफ्ट पॉर्न स्टाकर करके उन्हें नीचा दिखाने की कोशिश करती हैं। उन्होंने पिछले कुछ दिनों में कई लोगों पर गंभीर आरोप लगाए हैं। और मीडिया उन्हें वेरिफाई किए बिना तवज्जो दिए जा रहा है और जनता भी यह मान बैठी है कि जो कंगना कह रही हैं, वह सही है। लेकिन आरोप तो आरोप होते हैं। क्या कंगना रणौत और उनके समर्थक भूल गए कि आदित्य पंचोली की पत्नी ने उनपर क्या आरोप लगाए थे? वे क्या भूल गए कि अध्ययन सुमन ने उनपर कैसे-कैसे आरोप लगाए थे?

कंगना रणौत खुद एकतरफा आरोपों को झेल चुकी हैं। ऐसे में उन्हें तो इस मामले में सजग होना चाहिए। मगर अफसोस, वह खुद लगातार आरोप लगाती जा रही हैं। आज वह संस्कृति की सबसे बड़ी पैरोकार खुद को बता रही हैं। जबकि ज्यादा समय नहीं हुआ है जब कंगना शादीशुदा और दो बच्चों के पिता ऋतिक रोशन को अपना ‘सिली एक्स’ बता रही थीं। यह कोई आरोप नहीं है बल्कि कंगना ने खुद इस बात को साबित करने के लिए जमीन-आसमान एक दिया था कि ऋतिक का उनके साथ ‘अफेयर’ रहा था। क्या यह व्यवहार नैतिकता भरा था? क्या ‘हिंदू क्षत्राणियां’ इस तरह का व्यवहार करती हैं? यह हिपॉक्रसी नहीं तो और क्या है?

कंगना कह रही हैं कि बीएमसी ने उनका ऑफिस का हिस्सा तोड़कर उनका एक तरह से ‘रेप’ किया है। रेप जैसे अपराध की तुलना किसी और बात से करना बहुत ही शर्मनाक और हल्की बात है। कंगना यह तो कह रही हैं कि बीएमसी ने उनका ‘मंदिर’ तोड़ दिया, मगर वह यह क्यों नहीं बतातीं कि इसका निर्माण वैध था या नहीं। बीएमसी ने 2018 में भी इस संबंध में कंगना और उस इमारत के अन्य लोगों को नोटिस जारी किया था। यह सही है कि बीएमसी ने जिस समय यह कार्रवाई की, वह उसकी सिलेक्टिव अप्रोच को दिखाता है। मगर नैतिकता की बात कर रही कंगना को यह बताना चाहिए कि यह निर्माण नियमों के अनुसार था या नहीं? जब जांच हो ही रही है तो यह जांच भी होनी चाहिए कि अगर कंगना का निर्माण अवैध था तो कैसी मिलीभगत या दबाव था जो अब तक कार्रवाई नहीं की गई थी।

बीएमसी ने जो किया, वह बताता है कि कैसे अधिकारी पहले मिलीभगत करके चुप बैठे रहते हैं और फिर कभी भी राजनीतिक कारणों से जाग जाते हैं।

नेताओं की हिपॉक्रसी
महाराष्ट्र बीजेपी तो इस पूरे मामले को लेकर बैकफुट पर है क्योंकि कंगना ने मुंबई को पीओके आदि कहकर वहां के लोगों को नाराज किया है। बीजेपी स्थानीय लोगों की नाराजगी मोल नहीं लेना चाहती। मगर हिमाचल बीजेपी ने तुरंत इस विषय को ‘हिमाचल की बेटी’ होने से जोड़ा। शिमला में अप्रासंगिक होने लगे कुछ नेताओं और उनके पुत्रों ने तो रैलियां तक निकाल दीं। इनकी लोगों की ऐसी सक्रियता अब कोटखाई के गुड़िया रेंप एंड मर्डर केस को लेकर नहीं दिखती, जिसकी सीबीआई जांच को लेकर अब तक सवाल उठ रहे हैं।

हिमाचल बीजेपी की नेत्रियां कंगना के लिए प्रियंका का घर तोड़ने तक की धमकी देती हैं, बड़ी-बड़ी बातें करती हैं मगर प्रदेश के ही दूसरे हिस्से में किसी बेटी के परिजन कहते हैं कि उनकी बेटी की ससुराल वालों ने हत्या कर खुदकुशी का रंग दे दिया है तो वे चुप रहती हैं। छोटा सा पहाड़ी प्रदेश रोजगार सृजित नहीं कर पा रहा, कोरोना संकट के कारण अब हालात और खराब हो गए हैं, एएचएआई के तहत आने वाली सड़कों की मेनटेनेंस न होने से वे जानलेवा बन गई हैं, मगर हिमाचल के सांसद इन विषयों को संसद में नहीं उठाते। वे संसद में बोलते हैं- कंगना को सुरक्षा देने के लिए प्रधानमंत्री और गृहमंत्री जी का धन्यवाद

आज ‘हिमाचल की बेटी’ की रट लगाए ये नेता भूल गए कि इसी बेटी ने उनके सामने कैसे शिगूफा किया था और पूरे देश में यह संदेश दिया था कि वह हिमाचल में सुरक्षित नहीं। जब बागवानों ने चमगादड़ भगाने के लिए पटाखे छोड़े तो इसका भी कंगना की ओर ये यह कहते हुए माइलेज लेने की कोशिश की गई उनके घर के पास गोली चलने की आवाज आई है। जब पुलिस ने जांच की तो पाया कि ऐसा कुछ नहीं था।

फिर भी, केंद्र ने जानबूझकर कंगना को सुरक्षा दी ताकि महाराष्ट्र में अपनी पूर्व सहयोगी शिवसेना को निशाने पर ले सके जो इस बार उसके साथ न होकर कांग्रेस और एनसीपी के साथ सत्ता में है। मगर कंगना हिमाचल लौट आईं, उसी सुरक्षा के साथ, जो केंद्र से मिली है। महाराष्ट्र में तो उन्हें खतरा था मान लिया, मगर हिमाचल में भी खतरा है क्या? एक शब्द उन्होंने इस बारे में नहीं कहा। इनफैक्ट हिमाचल को लेकर तो वह कुछ कहती ही नहीं, यहां के पत्रकारों से बात भी नहीं करतीं।

कंगना रणौत Image Courtesy: Kangana Ranaut

आम लोगों की हिपॉक्रसी
‘आई सपॉर्ट कंगना’ कंगना का अभियान चलाकर अपनी डीपी में यह फ्रेम लगा रहे हिमाचल के लोग भी कम हिपोक्रेट नही हैं। यह तो समझ आता है कि क्यों वे कंगना के ऑफिस के हिस्से के वैध-अवैध होने पर बात नहीं कर रहे। क्योंकि यहां पर तो खुद ही लोगों ने देवदार के जंगलों को साफ करके सेब के बागीचे लगाए हुए हैं। कई जगहों पर अवैध कब्जे करके मकान और खेत बनाए हैं जिस कब्जे को रेग्युलर करने के लिए वीरभद्र सरकार पूरी कोशिश कर रही थी और अभी की सरकार भी खामोश है।

मगर हैरान करता है हिमाचल के लोगों का यह पाखंड कि जिस सीबीआई पर वे गुड़िया केस को सही से न सुलझा पाने का आऱोप लगाते हैं, उसी को सुशांत राजपूत मौत मामले की जांच मिलने का स्वागत करते हैं। हिमाचल के लोग सुशांत की मौत की वजह जानने के इच्छुक हैं मगर वनरक्षक होशियार सिंह को भूल गए जिसके बारे में सीबीआई अब तक सवालों को शांत नहीं कर पाई।

हैरान करती है ये बात कि जिस हिमाचल को मलाणा क्रीम, चरम, गांजे और अब चिट्टे के लिए भी जाना जाने लगा है, जहां नशा स्कूली बच्चों तक को गिरफ्तर में लेने लगा है, वहां के लोग अपने प्रदेश की चिंता करने की बजाय मुंबई और फिल्म इंडस्ट्री में ड्रग्स की चिंता करने में मशगूल हैं। और सबसे बड़ी हैरानी की बात ये कि वे उस कंगना रणौत का समर्थन कर रहे हैं, जो घोर जातिवादी हैं। जबकि अपने प्रदेश में मिड डे मील में नन्हे बच्चों के साथ जातिगत भेदभाव, मंदिरों में मंत्रियों तक को आने से टोकने की घटनाएं आए दिन होती हैं। और कंगना का समर्थन करने वालों में वे हिमाचली भी शामिल हैं, जो खुद किसी न किसी तरह इस भेदभाव के शिकार होते हैं।

कंगना रणौत

 

प्रीति ज़िंटा का भी अपमान
‘हिमाचल की बेटी’ का तमगा देना ठीक है। मगर क्या कंगना के बयान कि उनसे पहले इंडस्ट्री में अभिेनत्रियों को हीरो के साथ सोने पर रोल मिलते थे, हिमाचल की अन्य बेटियों का अपमान नहीं जो इस इंडस्ट्री में काम कर रही हैं या काम कर चुकी हैं? जैसे कि प्रीति ज़िंटा। क्या शिमला में जन्मी हिमाचल की उस बेटी ने अपने दम पर मुकाम नहीं बनाया? क्या कंगना की आज की बातें उनके लिए अपमानजनक नहीं? यह बात हैरान है कि प्रीति जिंटा के ही इलाके के कुछ तथाकथित युवा नेता कंगना के समर्थन में मुहिम छेड़े हुए हैं। कभी ज्ञापन सौंप रहे हैं, कभी इंटरनेट वॉरियर बन रहे हैं तो कभी कोरोना काल में लोगों की रैलियां निकाल रहे हैं। सब इसलिए कि कंगना के नाम पर अपनी राजनीति चमकाई जाए।

कंगना काबिल हैं, अपने दम तक यहां पहुंची हैं और आगे बढ़ने में भी सक्षम हैं। फिर वह राजनीति में जाएं या कुछ और करें, यह उनकी चॉइस है। मगर चिंता की बात है- बीजेपी के नेताओं का इस संकट के काल में कंगना के बहाने असल मुद्दों के बजाय बेवजह राजनीति करना। बीजेपी के समर्थक तो जानते हैं कि कल को फिर शिवसेना-बीजेपी सरकार बना सकती हैं। वे सिर्फ टाइम पास कर रहे हैं। मगर हिमाचली सोचें कि आप जिसे अपने गौरव से जोड़ रहे हैं, हिमाचल की अस्मिता से जोड़ रहे हैं, वह उसके काबिल है भी या नहीं। अपमानजक भाषा और छिछले आरोप लगाकर अनर्गल बातें करने से हिमाचल का गौरव नहीं बढ़ रहा है।

(ये लेखक के निजी विचार हैं, उनसे kalamkasipahi@gmail.com से संपर्क किया जा सकता है)

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