जांच और कार्रवाई तो ठीक है मगर पेपर लीक होते ही क्यों हैं?

प्रतीकात्मक तस्वीर | Photo by Chau Luong on Unsplash

कुमार अनुग्रह।। हिमाचल पुलिस भर्ती पेपर लीक मामले की जांच अब सीबीआई करेगी। पेपर लीक होने की सूचना मिलते ही एफआईआर दर्ज कर एसआईटी गठित करने की जानकारी भी खुद मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने 6 मई को सुबह प्रेस कॉन्फ्रेंस कर दी थी। अब सीबीआई को मामला सौंपने की जानकारी भी खुद मुख्यमंत्री ने ही एक बार फिर प्रेस कॉन्फ्रेंस कर 17 मई को दी।

इन 11 दिनों में हिमाचल प्रदेश पुलिस की एसआईटी ने करीब 73 आरोपियों को धर दबोचा। इनमें से 10 अन्य राज्यों के थे। मामले का विस्तार हुआ तो सीएम ने मामले की सीबीआई जांच की सिफारिश कर डाली। जानकारों का मानना है कि पुलिस भर्ती पेपर लीक मामले को सीबीआई को सौंपना मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर का मास्टर स्ट्रोक है। इसकी दो वजहें हैं- एक तो यह कि चुनावी साल में जयराम ठाकुर चाहते हैं कि दूध का दूध और पानी का पानी हो जाए ताकि राज्य सरकार पर किसी तरह की जांच न आए। दूसरी यह कि अब कांग्रेस के हाथ से एक मुद्दा छिन गया है।

लेकिन इस पूरे मामले में राजनीतिक पहलू से भी ज्यादा महत्वपूर्ण है- युवाओं की उम्मीदें और उनका विश्वास। सवाल यह है कि विभिन्न भर्तियां लटकने और कुछ के पेपर लीक होने के बाद कहीं युवा नाउम्मीद तो नहीं हो गए हैं? कहीं सरकार और व्यवस्था पर से उनका भरोसा कम तो नहीं हो गया है?

पुलिस और एसआईटी का अच्छा काम
यदि पहली बार हिमाचल में इतने बड़े स्तर पर किसी भर्ती लीक में इतनी गिरफ्तारियां हुई हैं तो पुलिस की तारीफ करनी होगी कि उसने अपने विभाग के मामले को दबाया नहीं। मुख्यमंत्री को इस संबंध में तुरंत जानकारी दी और सरकार ने तुरंत भर्ती को रद्द करने का फैसला किया। इसके बाद तुरंत उन्होंने एफआईआर के आदेश देकर प्रेस कॉन्फ्रेंस के माध्यम से बताया कि उन्होंने लिखित परीक्षा को रद्द करने का फैसला किया है। इस तरह जयराम ठाकुर इस मामले में पारदर्शिता अपनाने के लिहाज से शुरू में फ्रंट फुट पर रहे।

चुनावी वर्ष होने के बावजूद इस तरह का फैसला लेना एक बड़ा कदम था। वह भी तब, जब पुलिस की आंतरिक जांच की जानकारी सार्वजनिक नहीं थी। यह देखा गया है कि सरकारें तब किसी भर्ती की जांच करती हैं, जब कोर्ट का आदेश हो या बड़े पैमाने पर प्रदर्शन हो रहे हों। लेकिन यहां सरकार ने खुद आगे बढ़कर लिखित परीक्षा दोबारा करवाने का फैसला किया।

सीबीआई जांच का फैसला एक दूसरी वजह से भी मास्टर स्ट्रोक माना जा रहा है क्योंकि इससे कांग्रेस के हाथ से सरकार को घेरने का एक मुद्दा छिन गया है। क्योंकि भर्तियों के पेपर तो कांग्रेस शासित राजस्थान में भी लीक हुए हैं। संयोग ही है कि वहां भी इस समय पुलिस भर्ती पेपर लीक प्रकरण चल रहा है। वहां कांग्रेस पूरी तरह से बैकफुट पर है। जबकि हिमाचल में जयराम सरकार ने जिस एसआईटी का गठन किया था, उसने तुरंत छह दर्जन संदिग्धों से पूछताछ की और जब मामले के तार अन्य राज्यों से जुड़े तो सीबीआई को जांच सौंप दी क्योंकि केंद्रीय एजेंसी होने के कारण वह अंतरराज्यीय जांच अभियान सहजता से चला सकती है।

राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि अगर राज्य पुलिस निष्पक्षता से जांच करती, तब भी विपक्ष यह आरोप लगाता कि जांच निष्पक्ष नहीं हुई है। खास बात यह है कि सीएम ने सीबीआई को जांच सौंपने का फैसला तब लिया, जब कहीं से भी बड़ा दबाव नहीं था। ऐसे में अब विपक्ष के पास कहने के लिए ज्यादा कुछ नहीं बचा है। रही बात पेपर फिर से करवाने की तो पेपर भी इसी महीने के अंत तक करवाने की बात कही गई है। हां, इस बार जरूर अतिरिक्त सावधानी बरतनी होगी। इस बार की लिखित परीक्षा में कहीं पर भी किसी भी तरह की चूक हुई तो पुलिस विभाग ही नहीं, प्रदेश सरकार को भी संभलना मुश्किल हो जाएगा।

मामलों को दबाने की कोशिशें
पूर्व की वीरभद्र सिंह सरकार में चुनावी वर्ष में कई घटनाक्रम हुए थे लेकिन मामले को हैंडल करने के तरीक बिलकुल अलग रहे। पिछली सरकार में पुलिस चुनाव के कुछ महीने पहले ही एक तथाकथित साधु के यहां रेड डालती है। बाबा के यहां के तेंदुए की खाल, वायरलेस सेट जाने क्या-क्या बरामद होता है, लेकिन सरकार के मुखिया पुलिस को शाबाशी देने के बजाय अगले ही दिन पूरे थाने के कर्मचारियों की ट्रांसफर कर देते हैं। जब यह साधु स्थानीय लोगों से मारपीट करता है और घायल होता है तो मुख्यमंत्री स्वयं इस साधु से मिलने अस्पताल जाते हैं।

यही नहीं, वनरक्षक होशियार सिंह मामले को भी हाई कोर्ट के दखल के बाद सीबीआई को सौंपा गया था। इसी तरह गुड़िया बलात्कार एवं हत्याकांड के दौरान कांग्रेस सरकार के फैसले और उस समय के पुलिस अधिकारियों की कारगुजारियां अभी भी न्यायालय में विचाराधीन हैं। उस समय के वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों पर मामले को दबाने के लिए गलत व्यक्ति को हिरासत में मारने और अपने महकमे के कर्मचारियों पर दबाव डालने तक के मामले चले हैं। कांग्रेस सरकार ने अधिकारियों को पूरा संरक्षण दिया मगर लीपापोती सामने आने पर जांच सीबीआई के हाथ में चली गई थी।

युवा भरोसा करें भी तो कैसे?
हिमाचल प्रदेश पहले भी महत्वपूर्ण परीक्षाओं में धांधली के आरोपों से जूझता रहा है। 2006 के पीएमटी परीक्षा पेपर लीक मामले ने पूरे देश में हिमाचल की किरकिरी करवाई थी। तत्कालीन वीरभद्र सरकार ने पहले मामले में कोई भी गड़बड़ होने से इनकार कर दिया था मगर बाद में हाई कोर्ट के दखल के बाद एसआईटी बनाई गई थी। जांच में पता चला था कि तत्कालीन सरकार में एक मंत्री के रिश्तेदार भी इसमें शामिल थे। जब दोबारा टेस्ट करवाया गया तो पहले टॉपर रहे कई अभ्यर्थी फेल हो गए। इसके अलावा तृतीय और चतुर्थ श्रेणी की भर्तियों में इंटरव्यू के नाम पर चहेतों को भर्तियां करवाने के आरोप भी पूर्व सरकार पर लगे थे। वर्तमान सरकार ने इस व्यवस्था को खत्म कर दिया है।

अब पुलिस भर्ती प्रकरण को लेकर एक सवाल का जवाब तलाशना जरूरी है कि जब परीक्षा पुलिस विभाग खुद आयोजित कर रहा था तो पेपर सेट होने से लेकर परीक्षा केंद्र पहुंचाने तक की प्रक्रिया में यह लीक आखिर कहां से हुआ। इसकी जांच सीबीआई कर ही लेगी और अगर विभाग का कोई अधिकारी या कर्मचारी इसमें शामिल हुआ तो उसका भी पता देर-सवेर चल ही जाएगा। लेकिन पेपर लीक हो ही क्यों? इतना बड़ा देश, हर लिहाज से सक्षम, फिर भी हर साल असंख्य परीक्षाओं के पेपर लीक होते हैं। ऐसा प्रतीत होता है कि देश में एक परीक्षा माफिया उभर आया है जिसे किसी बात का खौफ नहीं।

हर कोई जानता है कि सभी को सरकारी नौकरी मिलना संभव नहीं है। फिर भी युवा मेहनत करते हैं और हजारों अभ्यर्थियों से स्पर्धा करते हैं। उनकी मेहनत पर पानी नहीं फिरना चाहिए। जरूरत है कि फूल-प्रूफ सिस्टम बनाने की ताकि परीक्षाओं और भर्तियों में किसी भी तरह का लूप-होल न रहे। इससे इस तरह का माफिया खुद ब खुद खत्म हो जाएगा। वरना ऐसा न हो कि युवाओं का सरकारों और सरकारी परीक्षाओं पर ही भरोसा खत्म हो जाए। अगर ऐसा हुआ तो यह बेहद खराब स्थिति होगी। किसी पार्टी की सरकार के लिए नहीं बल्कि पूरे समाज के लिए।

(ये लेखक के निजी विचार हैं)

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