क्या है प्राइवेट स्कूल फीस बिल, क्यों खुश हैं पैरंट्स, क्यों नाराज हैं स्कूल

अंकित कुमार, मंडी।। हिमाचल प्रदेश सरकार ने निजी स्कूलों में फीस संरचना को विनियमित करने के लिए एक कानून लाने के लिए ड्राफ्ट तैयार किया जा रहा है। पिछले कुछ सालों में निजी स्कूलों द्वारा फीस और अन्य शुल्कों में बार-बार बढ़ोतरी करने पर अभिभावकों के आक्रोश के बाद सरकार ने यह ड्राफ्ट तैयार किया जा रहा है।

अगर यह क़ानून लागू हो जाता है तो हिमाचल उत्तर भारत का ऐसा कानून लाने वाला दूसरा राज्य होगा। इससे पहले दिल्ली सरकार ने ऐसा कानून लाया है। इस कानून का नाम हिमाचल प्रदेश प्राइवेट विद्यालय (फीस और अन्य संबंधित मामलों का विनियमन) विधेयक, 2021 रखा गया है।

क्या है प्रदेश प्राइवेट विद्यालय (फीस और अन्य संबंधित मामलों का विनियमन) विधेयक, 2021

ड्राफ्ट के अनुसार, यह प्रस्तावित किया गया है कि प्राइवेट स्कूलों को प्रत्येक शैक्षणिक वर्ष की शुरुआत से 60 दिन पहले फीस का विवरण अपनी वेबसाइट पर अपलोड करना होगा और नोटिस बोर्ड पर भी प्रदर्शित करना होगा। यह भी कहा गया है कि अगर कोई प्राइवेट स्कूल फीस वृद्धि करता है तो कोई भी स्कूल शैक्षणिक सत्र में छह प्रतिशत से अधिक फीस नहीं बढ़ा सकता है। इसके अलावा, छात्रों को खुले बाजार से किताबें, बैग और वर्दी आदि खरीदने की स्वतंत्रता होगी। स्कूलों द्वारा छात्रों को किसी भी प्रकार से बाध्य नहीं किया जा सकता। प्राइवेट स्कूल किताबें, लेखन सामग्री, स्कूल बक़ग और वर्दी आदि न तो खुद बेच सकते हैं और न ही छात्रों व अभिभावकों को किसी विशेष दुकान से सामग्री लेने को कहेंगे।

साथ ही प्राइवेट स्कूल अपने परिचालन खर्च, सुविधाओं में वृद्धि, बुनियादी ढांचे के विस्तार और शिक्षा के विकास के लिए छात्रों को प्रदान की जाने वाली सुविधाओं के आधार पर ही अपनी फीस संरचना का निर्धारण करेंगे।

क्या है स्कूल संचालकों का कहना?

हमने जोगिंदर नगर स्थित शांति निकेतन स्कूल के प्रबंधक विकास गुप्ता से बात की। उनका कहना है कि वह इस बिल के कुछ बिंदुओं से सहमत हैं लेकिन कुछ बिंदुओं से आपत्ति भी रखते है। उन्होंने कहा कि उनके द्वारा पहले से ही शैक्षणिक वर्ष की शुरुआत से पहले फीस के विवरण नोटिस बोर्ड पर लगा दिए जाते हैं। उन्हें फ़ीस का विवरण 60 दिन पहले अपनी वेबसाइट पर अपलोड करने में कोई आपत्ति नहीं है। इसके अलावा, उन्होंने यह भी माना कि छात्र खुले बाजार से किताबें, बैग और वर्दी आदि खरीदने के लिए स्वतंत्र हैं। छात्रों को स्कूलों द्वारा किसी भी प्रकार से बाध्य नहीं किया जाना चाहिए और न ही उनके स्कूल द्वारा बाध्य किया जाता है।

स्कूल संचालकों को किस बात से है आपत्ति?

स्कूलों द्वारा फीस वृद्धि के सवाल पर उन्होंने कहा फीस बढ़ाना स्कूलों की मजबूरी होती है। क्योंकि निजी स्कूलों को सरकार की तरफ किसी भी तरह का फंड नहीं दिया जाता है। स्कूल के सारे खर्चे फीस से ही पूरे होते है। चाहे अध्यापकों की सैलरी हो या फिर स्कूल में बच्चों को उपलब्ध करवाई गई सुविधाएं, सब फीस से सम्भव होता है। इसलिए सरकार द्वारा इस बिल में रखी गयी शर्त कि कोई भी स्कूल शैक्षणिक सत्र में छह प्रतिशत से अधिक फीस नहीं बढ़ा सकता है, अगर इसमें छह की जगह दस प्रतिशत तक कर दिया जाए तो उन्हें कोई आपत्ति नहीं रहेगी। उन्होंने कहा कि हम अभिभावकों का दर्द समझते हैं इसलिए जितना जायज़ हो उतनी ही फीस वृद्धि की जाती है।

ड्राफ्ट से अभिभावक खुश

मंडी से अभिभावक लेखराज ने कहा, मैं धन्यवाद करना चाहूंगा आदरणीय शिक्षा मंत्री गोविंद ठाकुर जी का जिन्होंने निजी स्कूलों के ऊपर नजर रखने के लिए बिल ड्राफ्ट तैयार किया है। बहुत बारीकी से पढ़ने के पश्चात ज्ञात हुआ कि ड्राफ्ट बहुत ही बहुत ही अच्छे ढंग से बनाया गया है। इसमें आम अभिभावकों के अंदर एक आशा की किरण जगती है। जिस तरह से मनमाने ढंग से निजी संस्थान स्कूल फीस व अतिरिक्त सर चार्ज वसूल करते थे या फिर वर्दी/किताबों की बात कहें इसमें अभिभावक पूरी तरह से स्वतंत्र है कि उन्हें कहां से वर्दी या किताबें लेनी है। ग्रामीण क्षेत्रों में बहुत सारे ऐसे छोटे या मझले दर्जे के स्कूल है, जहां पर प्राइमरी के पश्चात मिडिल की मान्यता के लिए अप्लाई किया है और स्कूल बिना मान्यता के ही धड़ाधड़ चल रहे हैं और स्कूल में सरकारी आदेशों के अनुसार कोई भी शर्तें लागू नहीं है।

उन्होंने कहा कि पेरेंट्स टीचर एसोसिएशन भी नाम मात्र की एसोसिएशन रखी होती है जिसमें अपने कुछ चहेते लोगों को चुना जाता है। यहां तक की कई बार तो ऐसी एसोसिएशन के चुनाव सिर्फ कागजों में ही होते हैं। बाकी फीस का स्ट्रक्चर भी मनमाने ढंग से चलाते हैं। जो स्कूल प्राइमरी से मिडिल के लिए मान्यता अप्लाई किए हुए हैं, वे प्राइमरी की तुलना में मिडिल वाले बच्चों से बहुत कम फीस वसूल कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि ड्राफ्ट विधेयक बनने के पश्चात सरकार का सीधा चेक निजी स्कूलों पर रहेगा जोकि होना भी चाहिए।

साथ ही साथ उन्होंने सरकार से यह भी अनुरोध किया है कि सरकारी स्कूलों में निजी स्कूलों की तर्ज पर अच्छी सुविधाएं प्रदान की जाए, जिससे आम जनता को फायदा मिल सके। एक आम गरीब का बच्चा यह महसूस ना करें कि मैं सरकारी स्कूल में पढ़ रहा हूं और मध्यवर्गीय या अमीर लोगों के बच्चे निजी स्कूलों में पढ़ रहे हैं।

बालीचौकी से अभिभावक महेंद्र राणा ने कहा कि निजी स्कूलों की मनमानी बंद करने के लिए यह विधेयक बहुत जरूरी है। प्राइवेट स्कूलों को रेगुलेट करने के लिए कमीशन होना चाहिए ताकि स्कूल किसी भी तरह की अपनी मनमानी न कर सकें।

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