सड़क रिस्क मैनेजमेंट रिपोर्ट का पालन करने में हिमाचल प्रदेश विफल

शिमला।। हिमाचल प्रदेश में भूस्खलन और अचानक बाढ़ नियमित रूप से कहर बरपा रहे हैं। इसके बावजूद भी अधिकारी 2015 की उस रिपोर्ट के सुरक्षा प्रोटोकॉल का पालन करने में विफल रहे हैं, जिसमें सड़कों, बिजली परियोजनाओं और अन्य विकास कार्यों के निर्माण के लिए कुछ इंजीनियरिंग उपायों का सुझाव दिया गया था।

हिमाचल प्रदेश में हाल ही में भूस्खलन और बाढ़ के कई दृश्य देखने को मिले हैं। कांगड़ा, किन्नौर, लाहौल-स्पीति और सिरमौर जिला में बड़े पैमाने पर भूस्खलन की घटनाएं देखने को मिली हैं। कांगड़ा और कुल्लू जिला में अचानक बाढ़ का रौद्र रूप भी देखने को मिला है। इन सारी घटनाओं में कई लोगों को अपनी जान भी गवानी पड़ी है।

एक शोधकर्ता के अनुसार इन घटनाओं ने परियोजनाओं को क्रियान्वित करने में नेशनल हाईवे अथॉरिटी ऑफ इंडिया और पीडब्ल्यूडी सहित विभिन्न एजेंसियों के कथित ढुलमुल रवैये को उजागर करने का काम किया है। उन्होंने आकस्मिक दृष्टिकोण से लोगों की जान जाने का भी आरोप लगाया।

हालांकि ‘भूस्खलन जोखिम और जोखिम प्रबंधन’ अध्ययन 2015 में किया गया था, लेकिन दुर्घटनाओं को रोकने के लिए रिपोर्ट में सुझाए गए जरूरी इंजीनियरिंग उपायों की ओर बहुत कम ध्यान दिया गया है।

एक पर्यावरणविद के अनुसार सड़क परियोजनाओं को ठेकेदारों को आबंटित किया था और वे नाजुक पारिस्थितिकी की परवाह किये बगैर लापरवाही से पहाड़ियों को काट रहे थे।

दिलचस्प बात यह है कि “2015 की रिस्क रिपोर्ट” के अनुसार, हिमाचल में आठ नेशनल हाईवे की 1,628 किलोमीटर लंबाई में से 993 किलोमीटर उच्च संवेदनशील क्षेत्र में आते हैं। वहीं 2,178 किलोमीटर लंबे स्टेट हाईवे के लिए यह आंकड़ा 1,111 किलोमीटर था। आरटीआई के तहत प्राप्त जानकारी के अनुसार, 2014 से एनएचएआई को हिमाचल में विभिन्न सड़क परियोजनाओं के लिए 83,320 पेड़ गिराने की अनुमति दी गई थी।

जबकि एनएचएआई और पीडब्ल्यूडी अधिकारियों का दावा है कि किसी भी परियोजना को शुरू करने से पहले गहन वैज्ञानिक और भूवैज्ञानिक अध्ययन किए गए थे। राज्य में आई आपदाओं ने एक अलग तस्वीर पेश की है।

पर्यावरणविद का कहना है कि जिस तरह से एनएचएआई ने पांवटा-शिलाई-हाटकोटी नेशनल हाईवे-707 पर प्राकृतिक नालों में मलबा डाला है, वह एक आपदा के लिए एक आदर्श नुस्खा है।

इस बारे एक विशेषज्ञ ने कहा कि भूस्खलन के उभरते जोखिम को कम करने के लिए किसी क्षेत्र के खतरे की रूपरेखा को ध्यान में रखते हुए सड़क काटने और विकास गतिविधियों को अंजाम दिया जाना चाहिए।

सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय के प्रोजेक्ट डायरेक्टर विवेक पांचाल ने दावा किया कि भूस्खलन संभावित स्थलों का आकलन करने के लिए एक वैज्ञानिक अध्ययन किया गया था और एनएच-707 को चौड़ा करते समय उचित उपाय किए गए थे।

वहीं हिमधारा कलेक्टिव के शोधकर्ता और कार्यकर्ता प्रकाश भंडारी का कहना है कि पहाड़ों की संवेदनशील प्रकृति और बड़े पैमाने पर कटाई की आवश्यकता के कारण फोरलेन परियोजनाएं पहाड़ी क्षेत्रों के लिए उपयुक्त नहीं हैं।

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