सरकारी स्कूलों में टीचरों की कमी पर सरकार का अजीब तर्क, हाई कोर्ट ने लगाई फटकार

शिमला।। हिमाचल प्रदेश हाई कोर्ट ने राज्य सरकार को हलफनामा दाखिल करके जानकारी देने को कहा है कि स्कूलों में अध्यापकों के ख़ाली पदों को भरने के लिए अब तक उसने क्या-क्या कदम उठाए हैं। कोर्ट ने यह आदेश भी दिया कि आठ हफ़्तों के अंदर फ़िज़िकल एजुकेशन के अध्यापकों के ख़ाली पदों का ब्योरा भी दिया जाए।

चीफ जस्टिस एल. नारायण स्वामी और जस्टिस ज्योत्सना रेवाल दुआ की बेंच ने मंडी के राजकीय वरिष्ठ माध्यमिक पाठशाला डोघरी के छात्रों की ओर से लिखी चिट्ठी के आधार पर यह आदेश जारी किया। इन चिट्ठी में छात्रों ने अपने स्कूल में स्टाफ की कमी का जिक्र किया था। छात्रों का आरोप था कि उनके स्कूल में अधिकतर पद खाली हैं जिसके कारण वे शिक्षा के अधिकार से वंचित रह रहे हैं।

इससे पहले कोर्ट ने राज्य सरकार को आदेश दिया था कि वह नियमों में बदलाव करके अधिसूचित करे और बताए कि एक जनवरी, 2020 तक ख़ाली पदों को भरने के लिए क्या किया गया।

हैरान कर देने वाले आँकड़े
सोमवार को सुनवाई के दौरान प्रिसिपल सेक्रेटरी एजुकेशन ने हलफनामा दाखिल करके बताया कि स्कूलों में लेक्चरर की भर्ती और प्रमोशन के नियमों को अंतिम रूप देने और इन पदों (डीपीए के पद भी) को तुरंत भरने के लिए कदम उठाए गए हैं। उन्होंने यह भी कहा कि 31 दिसंबर 2019 तक जेबीटी के 693, लैंग्वेज टीचर (उलटी) के 590, शास्त्री के 1049, टीजीटी आर्ट्स के 684, टीजीटी मेडिकल के 261, टीजीटी नॉन मेडिकल के 359 पद ख़ाली हैं।

प्रिंसिपल सेक्रेटरी एजुकेशन ने कहा कि इसके लिए वित्त विभाग से मंज़ूरी ले ली गई है और चयन प्रक्रिया शुरू करने के लिए कैबिनेट की मंज़ूरी चाहिए होगी।

सरकार का अजीब तर्क और हाई कोर्ट की फटकार
सुनवाई के दौरान एडवोकेट जनरल ने बताया कि कुछ सरकारी स्कूलों में छात्रों की उपस्थिति बहुत कम है और सरकार के लिए ऐसे स्कूलों में अध्यापक या लेक्चरर नियुक्त करना सही नहीं होगा। मगर इस तर्क से नाखुश कोर्ट ने शिक्षा विभाग की ओर से अध्यापकों की नियुक्ति के लिए बरती जा रही ढील पर असंतोष ज़ाहिर किया।

कोर्ट ने कहा, “जब तक सरकार स्कूलों में अच्छा माहौल तैयार करके उन्हें अच्छी सुविधाएँ देकर सही ढंग से नहीं चलातीं तब तक यह उम्मीद नहीं की जा सकती कि छात्र सरकारी स्कूलों में दाखिल लेंगे।”

अदालत ने पाया कि सरकार की ओर से बरती जा रही ढील के कारण बच्चे प्राइवेट स्कूलों में जा रहे हैं और यह सिलसिला काफ़ी समय से चल रहा है। एक समय ऐसा आएगा जब सरकार इस तरह से सरकारी स्कूलों को ही बंद कर देगी और यह ठीक बात नहीं होगी।

कोर्ट ने यह भी कहा, “समाज का गरीब तबका और कृषि क्षेत्र में मज़दूरी करने वाले लोग अपने बच्चों को भारी खर्च के कारण प्राइवेट स्कूलों में नहीं भेज सकते। इसलिए यह सरकार की ज़िम्मेदारी है कि समाज के निचले तबके को शिक्षा मुहैया करवाए।”

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