देवता का आदेश, बाहरी लोग नहीं ठहर पाएंगे मलाणा गांव में

कुल्लू।। हिमाचल प्रदेश के कुल्लू जिले का गांव मलाणा पूरी दुनिया से पर्यटकों को आकर्षित करता है। यह गांव चरस और गांजे के लिए ज्यादा पहचाना जाता है और यहां पाई जाने वाली तथाकथित उच्च कोटि की चरस को ‘मलाणा क्रीम’ नाम दिया जाता है।

यहां पर भारत ही नहीं, दुनिया के कई हिस्सों से पर्यटक आते हैं। मगर अब स्थानीय देवता के ‘आदेश’ पर यहां बाहरी लोगों के ठहरने पर बैन लगा दिया गया है। करीब 2500 लोगों की आबादी वाले इस गांव में करीब 500 परिवार हैं और अधिकतर ने देवता के आदेश को मानने का फैसला किया है। मगर मलाणा और बगियांदा से संबंध रखने वाले 2 लोगों ने इस आदेश को चुनौती दी है।

‘देव आदेश’ को चुनौती देने वाले लोगों का कहना है कि इस फैसले से तो मलाणा में टूरिजम से जो आमदनी हो रही थी, रोजगार मिल रहा था, वह बंद होने से लोगों को नुकसान हो जाएगा। ऐसे में दुनिया के सबसे पुराने लोकंतंत्रों मे गिने जाने वाले मलाणा में अब अपनी संसद का आयोजन हो रहा है। कुछ दिनों में इस संसद का फैसला आ जाएगा।

लोगों की देवता में गहरी आस्था है

अलग-थलग बसा है मलाणा
कुल्लू में पार्वती घाटी में बसा मलाणा गांव थोड़ा अलग सा है। यहां के बाशिंदों को सिकंदर की आर्मी के यहां बच गए योद्धाओं का वंशज बताया जाता है। मलाणा के लोग जो बोली बोलते हैं, वह भी कुल्लू से थोड़ी अलग है। कुछ महीने पहले गांव ने फोटोग्राफी पर रोक लगा दी थी क्योंकि गांववालों को लगता है कि वे लोग यहां की तस्वीरें खींचते हैं और फिर मलाणा को नशे के लिए प्रसिद्ध टूरिस्ट डेस्टिनेशन बताते हैं।

यहां का सिस्टम कुछ अलग है
मलाणा के प्रमुख देवता का नाम जमलू है जो ऋषि जमदग्नि का ही अपभ्रंश है। देवता जमलू का आदेश है कि स्थानीय संस्कृति और परंपराओं को बचाए रखने के लिए सभी गेस्ट हाउस बंद किए जाएं। बाहर के लोगों को हैरानी हो सकती है कि देवता का आदेश कैसे आ सकता है। दरअसल स्थानीय संस्कृति ऐसी है कि यहां पर एक तरह की संसद बनी हुई है। अपर हाउस को ज्येष्ठांग कहा जाता है और निचले सदन को कनिष्ठांग। तो हुआ यह कि गांव वालों ने संसद का आयोजन किया था। फिर लोगों ने एक माध्यम के जरिए देवता का आह्वान किया जिसने देवता के आदेश को सुनाया। यानी माध्यम बने व्यक्ति को जो महसूस होगा, वही देवता का आदेश होगा वह लोग मानते हैं कि देव जमलू इसी तरह से उनके सवालों के जवाब देते हैं। ऐसा सदियों से यहां चला आ रहा है और देवता के आदेश को माना भी जाता है।

मलाणा में बच्चों से लेकर बूढ़ों तक को कई तस्वीरों और वीडियो में भांग मलते देखा जा चुका है।

मलाणा पंचायत के प्रधान भागी राम ने इंग्लिश अखबार हिंदुस्तान टाइम्स को बताया है कि देवता नहीं चाहते कि गांव वाले अपनी प्रॉपर्टी को गेस्ट हाउस या रेस्टोरेंट चलाने के लिए किराए पर दें। उन्होंने सभी के ऐसा करने पर रोक लगा दी है और जो इस आदेश का उल्लंघन करेगा, उसे देवता के प्रकोप का सामना करना होगा। इस मामले में कुल्लू के डिस्ट्रिक्ट टूरिजम ऑफिसर रजनीश गौतम ने अखबार को बताया कि मुझे इस बारे में जानकारी मिली है कि गांव वालों को गेस्ट हाउस चलाने से मना किया गया है। गौरतलब है कि 5000 लोगों की आबादी वाले इस गांव में करीब एक दर्जन गेस्ट हाउस हैं, जिनका पंजीकरण इसी विभाग के पास करवाना होगा है।

देवता में गहरी आस्था है लोगों की, मगर…
एचटी से साथ बातचीत में मलाणा पर डॉक्युमेंट्री बनाने वाले विवेक मोहन बताते हैं, ‘मलाणा दो वजहों से अपनी संस्कृति को बचाने में कामयाब रहा है- पहला तो यह कि लोगों की देवता जमलू पर गहरी आस्था है औऱ दूसरा यह भौगोलिक दृष्टि से थोड़ा अलग सा है। अब हाइड्रो प्रॉजेक्ट और मोबाइल आने से दोनों वजहें कमजोर हो रही हैं। देवता को लेकर उनकी आस्था ने उन्हें जोड़ा हुआ है मगर वक्त के कभी न कभी यह भी परंपरा निभाने जैसा काम रह जाएगा।’

गांव वालों को विदेशियों ने सिखाया चरस का कारोबार
पारंपरिक रूप से मलाणा के बांशिंदे भांग के रेशों से टोकरियां, रस्सियां और चप्पलें (पूलें) बनाया करते थे। मगर 80 के दशक के आखिर में विदेशियों ने गांव के लोगों को भांग के पौधों से चरस निकालना सिखा दिया। तब से लेकर आज तक सरकारों ने ग्रामीणों को चरस के कारोबार से दूर ले जाने की लाख कोशिशें की मगर मलाणा के लोगों के लिए यही चोखी कमाई है। मक्की और आलू उगाने से लोगों को इतना पैसा नहीं मिलत पाता जिसने भांग के उत्पादों से मिलता है।

80 के दशक के आखिर में विदेशियों ने लगाया चरस के कारोबार का चस्का

नशे के कारोबार का ठप्पा हटाना चाहते हैं लोग
अखबार के साथ बातचीत में महिला मंडल प्रधान राम कली ने कहा, ‘यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि भांग के व्यापार ने हमारे गांव को बदनाम किया है। गांव के लोगों की अपनी मान्यताएं और परंपराए हैं। हम भांग के ठप्पे से मुक्ति पाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं।’

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