धर्मशाला स्काईवे को लेकर ‘इकनॉमिक टाइम्स’ ने उठाए कई सवाल

शिमला।। हिमाचल प्रदेश सरकार और धर्मशाला नगर निगम द्वारा बेलारूस की कंपनी स्काईवे टेक्नॉलजी से कुछ महीने पहले करार किया गया था। देश के सबसे बड़े आर्थिक अखबार ‘इकनॉमिक टाइम्स’ ने धर्मशाला स्काईवे प्रॉजेक्ट को लेकर विस्तृत स्टोरी कवर की है और इसपर कई सवाल खड़े किए हैं। गौरतलब है कि इस डील को लेकर उसी वक्त In Himachal ने कुछ अहम बिंदुओं पर सवाल खड़े किए थे (इस आर्टिकल के आखिर में लिंक दिए हैं)। इसके बाद हरकत में आते हुए विपक्ष ने सरकार से प्रश्न किए थे और धर्मशाला नगर निगम ने कहा था कि डील को लेकर बिना वजह शक पैदा किया जा रहा है। अब इकनॉमिक टाइम्स की रिपोर्ट कहती है कि इस मामले में कई लूप होल हैं।

इस स्टोरी के मुताबिक बेलारूस की कंपनी को चुनने की अपारदर्शी प्रक्रिया को लेकर हिमाचल सरकार के ही तीन मंत्रियों ने सवाल खड़े किए हैं। यही नहीं, मुख्यमंत्री के सलाहकार टी.जी. नेगी ने इस मामले में अखबार के पत्रकार को शहरी विकास मंत्री सुधीर शर्मा से बात करने के लिए कहा मगर अखबार के मुताबिक सुधीर शर्मा ने ईमेल, मेसेज और फोन किए जाने पर भी संपर्क स्थापित नहीं किया। इसके अलावा अखबार ने विशेषज्ञों से बात की है और उन्होंने भी इस प्रॉजेक्ट को लेकर कई तरह की चिंताएं जताई हैं। सबसे खास बात यह कि ET के मुताबिक बेलारूस की कंपनी का प्रतिनिधि संतोषजनक जवाब भी नहीं दे पाया।

नीचे हम ET के आर्टिकल- Doubts raised over Belarus company credential for Rs 250-crore skyway transport project in Dharamshala के अहम हिस्सों का अनुवाद कर रहे हैं। ध्यान दें, हम अपनी तरफ से कोई बात ऐड नहीं कर रहे। सिर्फ हर पैरा के निचोड़ को उसके ऊपर सब-हेड के तौर पर लिख रहे हैं। आप अनुवाद की हुई बातों को यहां क्लिक करके ET के ईपेपर पर जाकर वेरिफाई कर सकते हैं। ईपेपर में Himachal SkyWay Hangs In Midair टाइटल से यह छपी है। पढ़ें:

ET: बीच हवा में लटका हिमाचल का स्काईवे
हिमाचल प्रदेश सरकार का बेलारूस की कंपनी स्काईवे टेक्नॉलजीज से धर्मशाला में दुनिया का पहला सस्पेंडेड ट्रांसपोर्ट सिस्टम स्थापित करने का सौदा कंपनी की विश्वसनीयता और प्रॉजेक्ट की व्यावहारिकता को लेकर विवादों में पड़ गया है। कांग्रेस सरकार के अंदर और बाहर के आलोचकों ने ऐसी कंपनी के साथ MoU साइन करने को लेकर सवाल किए हैं जिसके दुनिया में कहीं पर कोई प्रॉजेक्ट काम नहीं कर रहे। 250 करोड़ रुपये के प्रॉजेक्ट की सुरक्षा और व्यावहारिकता को लेकर गंभीर चिताएं भी व्यक्त की गई हैं।

‘कंपनी ने फिजिबिलिटी रिपोर्ट सरकार को नहीं दी’
स्काईवे ट्रांसपोर्ट सिस्टम स्टील की पटरियों पर कार्बन फाइबर की बनी कारों को तेजी से दौड़ाने की बात करता है। सरकार के एक मंत्री ने पहचान न बताने की शर्त पर बताया, ‘बेलारूस की कंपनी क्यों चुनी गई, इस पर कोई स्पष्टता नहीं है। कंपनी ने सरकार के साथ कोई फिजिबिलिटी रिपोर्ट या स्टडी भी शेयर नहीं की है जो कि इस तरह के प्रॉजेक्टों के लिए जरूरी होती है। यह नहीं बताया है कि प्रॉजेक्ट को कैसे चलाया जाएगा।’

‘मुख्यमंत्री के सलाहकार ने कहा- सुधीर का प्रॉजेक्ट है’
मुख्यमंत्री के सलाहकार और प्रमुख सहयोगी टीजी नेगी ने ET को बताया कि सिर्फ शहरी विकास मंत्री सुधीर शर्मा की मीडिया के सवालों के जवाब दे सकते हैं क्योंकि यह उनका प्रॉजेक्ट है। हालांकि सुधीर शर्मा कई ईमेल, टेक्स्ट मेसेज और कॉल के जरिए बात करने की कोशिशों के बावजूद टिप्पणी करने के लिए उपलब्ध नहीं हुए।

‘तीन मंत्री CM से उठाना चाहते थे स्वाईवे का मुद्दा’
तीन मंत्रियों ने कहा कि वे स्काईवे प्रॉजेक्ट के मुद्दे को मुख्यमंत्री के सामने उठाना चाहते थे मगर झिझक थी क्योंकि ‘शर्मा को राजा (मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह) का काफी करीबी माना जाता है।’

कंपनी ने कहीं अपने चालू प्रॉजेक्टों का जिक्र नहीं किया
स्काईवे टेक्नॉलजी की वेबसाइट पर नजर जालें तो कंपनी बताती है कि वह ऐलिवेटेड रूट टेक्नॉलजी इस्तेमाल करेगी, जिसे ‘स्ट्रिंग ट्रांसपोर्ट’ कहा जाता है। वेबसाइट कहती है कि कंपनी भारत के अलावा ऑस्ट्रेलिया और तुर्की के साथ बातचीत कर रही है, मगर कहीं पर कोई प्रॉजेक्ट काम कर रहा है या नहीं, इसकी कोई जानकारी नहीं दी गई है।

मॉस्को यूनिवर्सिटी के मुताबिक जानलेवा है यह सिस्टम
एक्सपर्ट्स का कहना है कि ऐसी टेक्नॉलजी के शुरुआती मॉडल रूस में टेस्ट किए गए थे मगर स्टेट रेलवेज यूनिवर्सिटी मॉस्को के आकलन के बाद प्रॉजेक्ट को ड्रॉप कर दिया गया था। 2008 में यूनिवर्सिटी ने पाया था कि प्रॉजेक्ट व्यावहारिक नहीं है और असुरक्षित भी है। रिपोर्ट में कहा गया है कि स्ट्रिंग रल टेक्नॉलजी में ‘सिस्टम डिफेक्ट्स हैं और यह असलियत में काम करने वाले नहीं लगती क्योंकि यह ट्रैफिक के लिए सम रास्ता नहीं देती।’ रिपोर्ट यह भी कहती है कि “जमीन से ऊंचाई पर पैसंजर ट्रैवल करते हैं। अगर कोई स्ट्र्रिंग टूटी तो मौतें हो सकती हैं। सिस्टम में बहुत खतरा है।’ पिछले साल रूसी सरकार के पैनल ने इस टेक्नॉलजी का मूल्यांकन किया था और कहा था कि यह इनोवेटिव तो है, मगर सिर्फ थ्योरी में।

बावजूद इसके धर्मशाला नगर निगम ने अप्रूव किया टेक्निकल प्रपोजल
मगर राज्य सरकार के अधिकारी बताते हैं कि धर्मशाला नगर निगम ने पहले ही प्रॉजेक्ट के लिए टेक्निकल प्रपोजल को अप्रूव कर दिया है और वह प्रॉजेक्ट को पब्लिक-प्राइवेट पार्टनरशिप मोड में चलाने के लिए टेंडरिंग शुरू करेगी। प्रपोजल के मुताबिक 15.4 किलोमीटर का सस्पेंडेड स्काईवे ट्रैक बनाया जाएगा जिसके पहले चरण में 15 स्टेशन होंगे।

राज्य में विधानसभा चुनाव होने से कुछ ही महीने पहले MoU साइन करते वक्त शहरी विकास मंत्री सुधीर शर्मा, जो कि धर्मशाला के विधायक हैं, ने कहा था कि प्रॉजेक्ट 3 साल में काम करना शुरू कर देगा। मंत्री ने हाल ही में कंपनी के अधिकारियों से मिलने के लिए बेलारूस का दौरा भी किया था।

(L to R) Sudhir Sharma, Dorothea Jeger and Unitsky

बीजेपी नेता ने भी उठाए सवाल
बीजेपी नेता किशन कपूर, जो कि धर्मशाला से 4 बार विधायक रह चुके हैं और पूर्व ट्रांसपोर्ट मिनिस्टर भी हैं, कहते हैं, ‘स्मार्ट सिटी धर्मशाला को स्काईवे की भ्रष्ट नींव पर नहीं बनाया जा सकता। मैं गुजारिश करता हूं कि कांग्रेस सरकार यह बताए कि इस स्काईवे प्रॉजेक्ट के लिए स्विस या किसी अन्य कंपनी के बजाय बेलारूस की कंपनी को क्यों चुना गया? हिमाचल की गरीब जनता के पैसे ऐसी कंपनी पर क्यों खर्च किया जाए जिसकी विश्वसनीयता सवालों के घेरे में है?’

कंपनी की ऑडिट रिपोर्ट तक नहीं दिखाई गई
राज्य सरकार के एक अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर बताया, ‘जिस कंपनी से MoU साइन हुआ, कम से कम उसकी ऑडिट रिपोर्ट तो दिखाई जानी चाहिए ताकि यह पता चल सके कि किसी हवा-हवाई स्कीम मे तो नहीं फंस रहे।’

2 साल में स्काईवे नाम से कई कंपनियां बनाकर भंग की गईं
अगर स्काईवे ग्रुप ऑफ कंपनीज के बारे में इँटरनेट पर सर्च किया जाए तो असंख्य कंप्यूटर से बनाई गई तस्वीरें, ग्राफिक्स और फ्यूचरिस्टिक टेक्नॉलजी के विज्ञापन आदि सामने आ जाते हैं और लोगों से इन्वेस्ट करने के लिए कहा जाता है। हालांकि, स्ट्रिंग टेक्नॉलजी कई देशों में है मगर स्काईवे नाम की कंपनी का प्रॉजेक्ट कहीं पर शुरू नहीं हुआ। यूरोएशियन रेल स्काईवे सिस्टम, अमेरिकन रेल स्काईवे सिस्टम, अफ्रीकन रेल स्काईवे सिस्टम, ऑस्ट्रेलियन ऐंड ओशनिक रेल स्काईवे सिस्टम नाम की कंपनियां पिछले 2 सालों में दुनिया के कई हिस्सों में रजिस्टर की गईं और फिर भंग भी कर दी गईं।

स्काईवे टेक्नॉलजीज के फाउंडर एनातोली यूनित्सकी अपनी पर्सनल वेबसाइट पर खुद को इंजनियर, ऑथर और ‘यूनित्सकी स्ट्रिंग ट्रांसपोर्ट’ नाम के सिस्टम के डिजाइन बताते हैं। इस टेक्नॉलजी को स्काईवे ब्रैंड नेम के तहत मार्केट किया जा रहा है। वह कहते हैं कि स्काईवे को लाने के पीछे का मकसद ‘पृथ्वी को बचाना है।’
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स्काईवे ने अन्य कंपनियों से संबंध होने से किया इनकार
कंपनी के डेप्युटी जनरल डायरेक्टर विक्टर बबुरिन ET को बताते हैं कि स्काईवे टेक्नॉलजीज कंपनी (बेलारूस) साल 2015 से चल रही है। उन्होंने स्काईवे नाम की अन्य कंपनियों, जो कि दुनिया भर में बनाकर भंग की गईं, से संबंध होने से इनकार कर दिया। 2014 में लिथुएनिया में बेलारूस की कंपनी ने प्रॉजेक्ट बनाने की योजना बनाई थी मगर कुछ ही महीनों में फर्जीवाड़े की आशंका में इसे कैंसल कर दिया गया। बैंक ऑफ लिथुएनिया ने निवेशकों को इस मामले में चेताया भी था। ईटी के सवालों के ईमेल के जरिए भेजे गए जवाब में बबुरिन ने लिथुएनिया की इस घटना को ऐंटी रूस हिस्टीरिया करार दिया। उन्होंने कहा कि लिथुएनिया की सरकार रूस (और बेलारूस) की कंपनियों को लेकर चिंतित रहती हैं क्योंकि 2013 से वहां रूस के खिलाफ ‘पागलपन’ बना हुआ है।

क्या पूरी दुनिया में कहीं स्काईवे का प्रॉजेक्ट काम कर रहा है?
जब उनसे पूछा गया कि क्या दुनिया में कहीं आपका कोई प्रॉजेक्ट काम कर रहा है, तो उन्होंने कहा, “हमारे मुख्य प्रॉजेक्ट ईकोटेक्नोपार्क में हमारी टेक्नॉलजी सर्टिफिकेशन मिलने के आखिरी चरण में है। भारत में भविष्य के प्रॉजेक्ट को लोकर इंजिनियरिंग कंपनियों के साथ मिलकर लगाया जाएगा और सुरक्षा आदि के उच्च मानकों का ध्यान रखा जाएगा।

क्या कहते हैं एक्सपर्ट?
रेलवे बोर्ड के पूर्व चेयरमैन विवेक सहाय कहते हैं कि ऐसे प्रॉजेक्टों में सेफ्टी बड़ा मसला होती है। इसलिए यह साफ होना चाहिए कि कौन सा संगठन स्काईवे सिस्टम को प्रमाणित करेगा। वैसे भी रोपवे एक घंटे में 360 लोगों को कैरी करता है और दिल्ली मेट्रो 20 हजार लोगों को। इसलिए यह सिस्टम महंगा भी है। टूरिस्टों के लिए तो ठीक है मगर लोकल लोगों के लिए नहीं। मैं तो कहूंगा कि भारत के पहाड़ी राज्यों में तो सड़क ही ठीक रहेगी।

पूर्व रेल मंत्री और तृणमूल कांग्रेस नेता दिनेश त्रिवेदी ने ऐसे मामलों में स्विस टेक्नॉलजी की वकालत की। उन्होंने कहा कि सेफ स्काईवे बनाने में स्टिवटजरलैंड की कंपनियों का लंबा इतिहास रहा है। जापान की तकनीक को भी हम एक बार सोच सकते हैं और इस मामले में उन्हीं कंपनियों पर भरोसा करना चाहिए जो इस तरह से प्रॉजेक्ट चलाने के लिए प्रतिष्ठित हों। उन्होंने स्काईवे की मुखालफत भी की। उन्होंने कहा कि इस तरह ट्रांसपोर्ट सिस्टम अडवेंचर या टूरिजम के लिए सही है हमारे देश में। अगर ट्रांसपोर्ट के लिए इसे इस्तेमाल करना है तो इसे लंबे विश्लेषण से गुजरना होगा क्योंकि इसमें हादसों का खतरा है।

कोंकण रेलवे के मुखिया संजय गुप्ता कहते हैं कि विदेशी तकनीक को अपनाने से पहले ध्यान से उन्हें स्टडी किया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि स्काईवे ट्रांसपोर्ट सिस्टम में बहुत कम लोगों के लिए जगह होगी इसलिए भारत के लिए तो यह सही ऑप्शन नहीं है। यहां पर मेट्रो जैसे जांचे-परखे सिस्टम पर भरोसा करना चाहिए। मेट्रो के लिए यहां रेग्युलेटरी मकैनिजम और गवर्निंग बॉडी है। क्या नए सिस्टम के लिए भी कुछ ऐसा है?

ट्रांसपोर्ट एक्सपर्ट सुधीर बदामी कहते हैं कि दूसरों की तरफ देखने के बजाय भारत में अपनी टेक्नॉलजी पर रिसर्च करने का वक्त आ गया है। उन्होंने कहा कि कोंकण रेलवे में 2003-2005 में स्ट्रिंग रेल ट्रांसपोर्ट पर रिसर्च शुरू हुआ था मगर बंद करना पड़ा था। अगर रिसर्च जारी रहता तो शायद हमारे पास अपना सिस्टम होता। बदामी ने कहा, ‘भारतीय ट्रांसपोर्ट में इंटरनैशनल डील नई बात नहीं है। हमारे पास ऑस्ट्रियन ट्रॉलर्स और चीनी बसें हैं। इंटरनैशनल मार्केट में लॉबीइंग की जाती है जो कई स्तर पर डील करवाती है। हमें देखना चाहिए कि इस मामले में देश को कितना फायदा हो रहा है और कहीं यात्रियों की सुरक्षा से खिलवाड़ तो नहीं हो रहा।’

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