अटल जी ने मोदी नहीं, अपने इस दोस्त के सुझाव पर देखा था टनल का सपना

इन हिमाचल डेस्क।। अटल टनल रोहतांग का शनिवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लोकार्पण कर दिया। हर साल लंबे समय तक कठिन मौसम के बीच बुनियादी सुविधाओं के अभाव में रहने वाली आबादी के लिए एक अच्छी खबर है। इस सुरंग की मांग बहुत पहले से हो रही थी मगर इस दिशा में काम नहीं हो पा रहा था। अब, जबकि सुरंग बन गई है तो इसे लेकर क्रेडिट लेने की होड़ मची हुई है।

पंडित सुखराम के पोते आश्रय शर्मा कहते है कि उनके दादा की वजह से सुरंग बनी, कांग्रेस कहती है कि ये सपना सोनिया गांधी ने देखा था, प्रेम कुमार धूमल समर्थक कहते हैं कि उनके प्रयास थे और आज तो खुद पीएम मोदी ने कह दिया कि अटल की जो सुरंग का सुझाव वह देते थे और इसी कारण यह सपना साकार हो पाया।

हो सकता है कि इसमें सभी के प्रयास रहे हों। उनके दावों को कमतर नहीं आंका जा सकता। लेकिन जब भी बात होगी निर्णायक लम्हे की, तब छेरिंग दोरजे और टशी दावा का जिक्र होगा। ये उन हस्तियों में शामिल हैं, अटल जी को टनल बनाने के लिए तैयार करने में जिनकी अहम भूमिका रही है। और अटल ने इनके सुझाव के कारण टनल का सपना ही नहीं देखा बल्कि वास्तविकता में इसकी नींव भी रखी थी। कौन हैं ये लोग, इनकी बात हम आगे करेंगे।

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पीएम ने कहा, “मैं और धूमल जी अक्सर वाजपेयी जी को सुरंग का सुझाव देते थे।”

पुरानी मांग और रोपवे बनाने की योजना
लाहौल जब पंजाब का हिस्सा था तब यहां के विकास के लिए जनजातीय सलाहकार परिषद बनी थी। साल 1955 की बात है। देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहलाल नेहरू मनाली आए। लाहौल के लोगों ने अपनी समस्या बताई और कहा कि सुरंग बन जाए तो सब ठीक हो जाएगा। पीएम ने कहा कि देश की माली हालत अभी ऐसी नहीं कि सुरंग बन सके, कुछ और तरीका ढूंढना होगा।

पीएम के दिल्ली लौटने के कुछ दिनों बाद जापानी कंपनी का एक इंजीनियर यहां पहुंचा। यह कंपनी रोपवे बनाने की माहिर थी। इंजीनियर ने शुरुआती मुआयना किया और लौटने लगा तो जीप हादसे की शिकार हो गई और उसकी मौत हो गई। फिर यह मामला यहीं अटक गया। आगे कोई प्रोगेस नहीं हुई।

फिर कई साल बीते। 1972 में लाहौल स्पीति की पूर्व विधायक लता ठाकुर ने तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को बताया था कि कैसे भारी बर्फबारी के कारण एक बड़ा इलाका बाकी देश से कट जाता है। इससे होने वाली समस्याओं को लेकर उन्होंने इंदिरा गांधी को अवगत करवाया। लता से पहले और बाद में इलाके के विधायक रहे ठाकुर देवी सिंह भी कई बार ये मांग उठाई मगर कुछ नहीं हुआ। कुछ दिन तक सुरंग की चर्चा चलती लेकिन कोई ठोस काम नहीं होता।

कई साल बीत गए। फिर आता है साल 2002. अटल बिहारी वाजपेयी अपने मित्र टशी टावा के निमंत्रण पर केलांग पहुंचे। यहां उन्होंने घोषणा की कि सुरंग बनाई जाएगी। यह इस सुरंग के संबंध में इस तरह की पहली विधिवत और आधिकारिक घोषणा थी। और यह घोषणा भी यूं ही नहीं हो गई। इसकी भी अपनी एक कहानी है।

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भारत रत्न अटल बिहारी वाजपेयी

साल 1998 में उठाई गई वो मांग…
लाहौल के टशी दावा आज इस दुनिया में नहीं हैं। उनकी वाजपेयी से गहरी दोस्ती थी। मित्रता का आगाज हुआ था राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के कारण। दोनों एक ट्रेनिंग के दौरान मिले, बातों का आदान-प्रदान हुआ और दिल का रिश्ता बन गया। टशी दावा और उनके करीबी सर्कल के लोग जानते थे कि इस सुरंग का लाहुल के लिए कितना महत्व है। इसलिए उन्होंने टशी को तैयार किया कि  वह वाजपेयी जी से सुरंग के बारे में कम से कम एक बार मांग अवश्य उठाएं।

टशी ने टनल की मांग को लेकर एक चिट्ठी लिखवाई। यह खत लिखा था जाने-माने साहित्यकार छेरिंग दोरजे ने। फिर, टशी दावा ने चमल लाल से संपर्क किया जो पठानकोट से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रचारक थे और पांगी में प्रवास कर चुके थे। साथ ही उन्होंने हमीरपुर से संबंध रखने वाले ठाकुर राम सिंह से भी संपर्क साधा। चमन लाल ने इन्हें दिल्ली बुला लिया। तो दिल्ली पहुंचे- टशी दावा, छेरिंग दोरजे और साथ में एक और सहयोगी अभय।

ठाकुर राम सिंह तब दिल्ली के झंडेवालान में संघ के कार्यालय में थे। तो हिमाचल से गई ये टीम उनके वहां पहुंची। वहां तय हुआ कि इस तरह से निजी हैसियत से जाने से बेहतर होगा किसी संस्था या संगठन के प्रतिनिधि के तौर पर एक व्यापक इलाके की मांग उठाई जाए। तो वहीं लाहौल एवं पांगी जनजातीय सेवा समिति का गठन कर दिया गया। अध्यक्ष बने टशी दावा, सचिव बनाए गए छेरिंग दोरजे, अभय को कोषाध्यक्ष और चमन लाल को संरक्षक बनाया गया।

छेरिंग दोरजे Image: Jagran

लद्दाख और कारगिल का जिक्र…
उसी दौरान छेरिंग दोरजे ने सुझाव दिया कि मांगपत्र में लाहुल के लोगों के लिए सुरंग मांगने के बजाय देश की रक्षा के लिए इसकी अहमियत की भी बात होनी चाहिए। सबकी सहमति के बाद उन्होंने मांगपत्र में लिखा कि कैसे चीन और पाकिस्तान से लद्दाख और कारगिल आदि की रक्षा के लिए इस सुरंग का बनना काफी महत्वपूर्ण होगा क्योंकि यह सुरंग हर मौसम में चालू रहेगी। दोरजे आज वयोवृद्ध हैं मगर उन्हें याद है कि कैसे उन्होंने लाहौल के लोगों की मांग को नीचे रखकर रक्षा ज़रूरतों के हिसाब से सुरंग की अहमियत को मांगपत्र में ऊपर लिखा था।

बाद में छेरिंग ने बताया कि उन्होंने अपने मांगपत्र में कारगिल को क्यों तरजीह दी थी। वह बताते हैं, “मैं लेह होते हुए कारगिल जाता था। वहां जिलाधीश काचो गुलाम मोहम्मद के साथ मित्रता थी। वह कहते थे कि पाकिस्तान बहुत पास है, एक दिन हड़प लेगा इस इलाके को, तुम होटल में छत पर न सोया करो, गोली लग सकती है। मगर मुझे हमेशा लगता था कि चीन जो है, वह पाकिस्तान से कहीं बड़ा शत्रु है। मैंने प्रार्थना पत्र में सुरंग को पाकिस्तान और चीन के कोण से प्रमुखता दी थी। विषय में भी यही लिखा। उसके बाद लाहौल का नाम लिया था।”

सुरक्षा के लिए भी अहम है यह सुरंग

खैर, तीन सदस्यों वाली इस टीम ने पीएम से मुलाकात की। छेरिंग दोरजे को 1998 में वाजपेयी से हुई मुलाकात अच्छी तरह याद है। वह बताते हैं कि वाजपेयी जी प्रतिक्रिया सकारात्मक थी। दोरजे के मुताबिक, वाजपेयी जी ने उस मुलाकात में कहा था कि ‘ये सुरंग महत्वपूर्ण है और काफी पहले ही बन जानी चाहिए थी। अभी खर्च बढ़ेगा मगर बनानी तो पड़ेगी ही।’ तत्कालीन पीएम ने उन्हें रक्षा मंत्री जॉर्ज फर्नांडिज़ से मिलने के लिए कहा था। इस तरह से पहली मुलाकात संपन्न हुई थी। बाद में वे लोग जॉर्ज से भी मिले थो जो उन्हें स्वयं प्रवेशद्वार तक लेने आए थे।

इसके बाद कागरिल में युद्ध छिड़ गया। भारत ने विजय हासिल की और घुसपैठियों को खदेड़कर फिर नियंत्रण रेखा तक अपने हिस्से पर कब्जा किया। युद्ध खत्म होने के बाद साल 1999 में टशी दावा अपने साथ छेरिंग दोरजे को लेकर फिर वाजपेयी से मिलने गए। बकौल दोरजे, तत्कालीन पीएम ने हैरानी जताई कि पिछली मुलाकात में हमने कैसे इस सुरंग की मांग को रखते हुए लद्दाख और कारगिल का जिक्र किया गया था। फिर उन्होंने तुरंत इस सुरंग को बनाने के लिए सहमति दे दी। साल 2002 में जब वाजपेयी अपने मित्र टशी के साथ केलांग आए तो उन्होंने वहीं से लेह और मनाली को जोड़ने की योजना की घोषणा की। तत्कालीन पीएम ने सुरंग के लिए अप्रोच रोड का शिलान्यास भी किया था।

यह शुरुआत थी इस बरसों पुरानी मांग के धरातल पर उतरने की। फिर अगली सरकारों ने लेटलतीफी बरती। यूपीए सरकार ने 2010 में इसका शिलान्यास किया। कछुए की रफ्तार से काम होता रहा और अब जाकर 2020 में यह सुरंग पूरी हुई है। इससे जनजातीय इलाके के लोगों को कितनी सुविधा होगी, इसकी कल्पना बहुत से लोग नहीं कर सकते। कई फुट बर्फ के बीच कई महीनों तक संसाधनों के अभाव में रहना सबके बस की बात नहीं। जो काम सबसे बस में है, वह है- बिना कुछ किए क्रेडिट लेने की कोशिश करना।

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