वैदिक भारतीय संस्कृति में नारी का स्थान और वर्तमान अवधारणा

भारत में नारी को शक्ति और दुर्गा का प्रारूप माना जाता रहा है इसका एक कारण यह भी हो सकता है की अगर पुरुष के पौरुष की बात की जाए उसके शक्तिशाली व्यकतित्व की बात की जाए उसमें भी माँ  द्वारा  नौ महीने तक बच्चे को गर्भ में रखने और अबोध बालक के रूप में एक पुरुष  का लालन पालन पोषण करने में सब से बड़ा योगदान है।  आज भारतीय समाज में भी इस विषय पर चर्चा चल जाती है की हम महिलाओं को बराबरी पर नहीं ला पाये हैं वर्तमान परिपेक्ष में यह सच भी है परन्तु समाज का एक एलिट क्लास तबका जब द्रौपदी सीता का आदि महान नारियों का उदाहरण देकर यह सिद्ध करने की कोशिश करता है की हम प्राचीन काल से नारी शोषित कर रहे हैं यह भारतीय संस्कृति पर एक मिथ्या आरोप हो सकता है।  हमारे एक पाठक अश्वनी कुमार वर्मा  ने हमें ऐसा ही एक संस्मरण भेजा हैं जिसमे उन्होंने काफी प्रभावी शब्दों में प्राचीन भारत की संस्कृति और नारीवादी सोच को छद्दम एलिट क्लास लोगों के बीच विस्तार से अथ्यों के साथ  परिभाषित किया उन्ही की जुबानी पढ़ें यह लेख। … 
” दिल्ली यूनिवर्सिटी(डीयू) का मिरिंडा हाउस प्रगतिशील महिलाओं के लिए मशहूर हैं| भारत की सबसे सशक्त व जागरूक महिलाएँ यहीं मिलती हैं| एक बार मैंने यहीं की एक महिला को महिला सशक्तिकरण के ऊपर बोलते सुना, हालांकि उन्होने भारतीय महिलाओं की जो समस्याएँ गिनाई ,उससे पूर्णरुपेण सहमत था, उनका कहना था कि भारतीय समाज में एक लड़की को अपनी पसंद का लड़का चुनने का अधिकार नहीं दिया जाता, उसका वस्तुकरण कर दिया है अपने समाज ने, लड़की पढ़ना चाहे तो आज भी बहुत से रोड़े हैं| आदि आदि इत्यादि ! लेकिन तभी उन्होने बोला कि भारत में ये कुरीति यहाँ के संस्कृति के कारण हैं ,जहाँ राम कथा व रामायण का पाठ होगा ,वहाँ महिलाओं के साथ सीता जैसा ही अन्याय किया जाएगा| भारतीय महिलाओं को यूरोपीय महिलाओं की तरह समानता चाहिए|उनका लेक्चर चल रहा था |मुझसे रहा नहीं गया ! 
मैंने उनसे बोला कि आपको मालूम नहीं है क्या कि सीता जी स्वयंवरा थी ? सीता जी ही नहीं ,अपने प्राचीन भारतीय संस्कृति में स्वयंवर के अनेकों उदाहरण हैं| दूसरे वो एक विदुषी महिला थी| इतना ही नहीं अपने देश में गार्गी ,अपाला, घोषा, लोपामुद्रा,निवावरी आदि अनेकों विदुषी महिलाएँ हुई ऋग्वेद में जिनके प्रमाण मौजूद हैं और ये मैं नहीं कहता ,स्वयं वामपंथी इतिहासकारों ने इसे लिखा है|

हो सकता है आप को सीता जी की अग्निपरीक्षा न रास आई हो ,लेकिन आप भूल गयी कि अग्निपरीक्षा के बाद श्रीराम ने उन्हे स्वीकारा तो सही लेकिन समाज की महिलाएँ व्यभिचार में लिप्त होने लगी और उन्होने श्रीराम से न्याय माँगना शुरू किया ये बोलकर जब सालों रावण के पास रहकर आई सीता का वरण राम कर सकते हैं तो हमारे पति हमारा क्यों नहीं ? सीता की पवित्रता जानते हुए भी ,अगाध प्रेम के बावजूद केवल राजधर्म निभाने के लिए राम ने सीता का त्याग किया ! 


दुख: इस बात का है कि अनिर्णय कि स्थिति में भी व्यक्तिगत स्वार्थ से ऊपर निर्णय लेकर भविष्य के लिए राजधर्म की मिसाल कायम करने वाले श्रीराम को अन्यायी कहा जाता है| ये बिल्कुल ठीक हैं कि वर्तमान भारतीय समाज में महिला की स्थिति ठीक नहीं हैं ,वो भी इसीलिए क्योंकि यहाँ पाखंडी बहुत हैं ,श्री राम,रामायण में आस्था रखते हैं , लेकिन अपनी ही बेटे -बेटी को कसम खिला देते हैं कि यदि अपनी मर्जी से विवाह किया,तो एक रिश्ते कि कीमत तुम्हें सभी रिश्तेदारों व नातेदारों के रिश्ते से चुकनी होगी !माँ-बाप तुम्हारे लिए मर जाएँगे ,कभी मुँह नहीं देखेंगे आदि आदि ! नतीजा -प्रेम किसी से ,शादी किसी से और जीवन नर्क ! यहाँ रामायण सिर्फ सिधान्त में है ,व्यवहार में नहीं ! लेकिन जिस पश्चिमी संस्कृति कि हिमायत आप कर रही हैं ,वहाँ क्या स्थिति है? एक ही महिला के ज़िंदगी में 5 विवाह और हर पति से बच्चे और सारे बच्चो का पालन पोषण कान्वेंट (यानि अनाथालय जहाँ शिक्षा दीक्षा,देख रेख होती है) में ? क्या इसमें आपको अच्छाई दिख रही है ? संपन्नता के बावजूद भी कान्वेंट कल्चर के कारण ही यूरोप में अपराध दर किसी भी विकासशील देश से ज्यादा है| सैद्धांतिक रूप से अपनी संस्कृति तो यही है कि विवाह के रिश्ते अपनी मर्जी से वरण हो और एक बार वरण हो जाये तो आजीवन निभाना है, जबकि यूरोप में अपनी मर्जी से वरण के बावजूद भी रिश्ते में केवल भोगवाद होता है ,एक से मजा खत्म तो दूसरा ढूँढ लो ! भारत स्वतन्त्रता में यकीन करता है और यूरोप स्वछंदता में !

अतः हमें किसी से सीखने कि जरूरत नहीं है ,बस केवल पाखंड से बाहर निकलकर सनातन संस्कृति के वास्तविक मूल्यों को वरण करना है, नारी सशक्तिकरण इसी में निहित है “

लेखक : अश्वनी कुमार वर्मा
लेखक नेशनल थर्मल पावर कारपोरेशन (NTPC) के विध्यांचल प्लांट में प्रबंधक के पद पर सेवा दे रहे हैं

हर्षवर्धन के ऐतिहासिक फैसले को रद्द करने पर पकड़ा गया जे पी नड्डा का सफ़ेद झूठ

केंद्रीय स्वास्थ्यं मंत्री जगत प्रकाश नड्डा ने अपने ही मंत्रालय की उस ऐतिहासिक अधिसूचना को रद्द  कर दिया है , जो पूर्व मंत्री डाक्टर हर्षवर्धन के कार्यकाल में जारी हुयी थी।  उस ऐतिहासिक अधिसूचना में तम्बाकू सिगरेट बना ने वाली कंपनियों को सख्त निर्देश दिए गए थे की।  बीड़ी सिगरेट तम्बाकू आदि के पैकेट पर 85 % भाग में  वैधनिक चेतावनी के साथ साथ कैंसर से होने वाले नुक्सान के फोटो भी अंकित रहेंगे।  गौरतलब है की भारत में हर साल लगभग दस लाख लोग इन उत्पादों से होने वाले कैंसर से मर जाते हैं।  हर्षवर्धन के कार्यकाल में आई इस अधिसूचना की देश और अंतरास्ट्रीय मंचों पर भी बहुत वाहवाही हुए थी। सूत्रों के मुताबिक़ मंत्रालय ने एक शुद्धि पत्र जारी किया है जिसमे यह कहा गया है की एक  अप्रैल से अब यह नियम लागू नहीं होगा हालाँकि किसी नयी तारीख का जिक्र भी नहीं किया गया है। नड्डा के दस्तखत के बाद इसे अब लागू करने के लिए गजट में छापने के लिए भेजा  गया है।  हालाँकि हस्तक्षार करने के बावजूद भी नड्डा  ने मीडिया के सामने इस बात से साफ़ इंकार कर दिया मंगलवार को अधिसूचना को टाले जाने की सम्भावना पर मीडिया द्वारा पूछे प्रशन में उन्होंने साफ़ इंकार कर दिया की मंत्रालय का ऐसा कोई विचार नहीं है।  उन्होंने कहा की इस बारे में कोई आपत्ति आने पर मंत्रालय इस पर विचार  करेगा हालाँकि उस से पहले ही वो हस्ताक्षर कर चुके थे।  जनहित से जुडी यह अधिसूचना  उन्हें वापिस क्यों लेनी पड़ी इस पर तरह तरह के कयास लगाये जा रहे हैं पहले  भी मीडिया में यह खबरे आती रहीं हैं की   ही तम्बाकू और दवा माफिया के दबाब से  सख्त फैसले लेने वाले  मंत्री डाक्टर हर्षवर्धन को इस मंत्रालय से हटाया गया था।  तो क्या नड्डा उस दबाब के आगे झुक गए हैं इस पर तरह तरह की चर्चा हो रही है। 

आसान नहीं थी कंगना रणौत के बॉलिवुड ‘क्वीन’ बनने की राह

इन हिमाचल डेस्क।।

कंगना रणौत भले ही फिल्मफेयर और नैशनल अवॉर्ड जीतने के बाद बॉलिवुड की क्वीन बन गई हों, लेकिन उनके लिए मायानगरी का सफर जरा-भी आसान नहीं रहा है। अपने ख्वाब को पूरा करने के लिए कंगना को बहुत कुछ करना पड़ा और बहुत दर्द भी सहने पड़े। आइए, डालते हैं कंगना के उस सफर पर नजर जो कभी फिल्मों के रुपहले पर्दे पर नजर नहीं आया…


दो नैशनल अवॉर्ड जीत चुकीं कंगना रणौत का जन्म 23 मार्च, 1987 को हिमाचल प्रदेश के मंडी जिला के भाम्बला गांव में हुआ, कंगना की मां आशा स्कूल टीचर और पिता अमरदीप व्यापारी हैं। कंगना बचपन से ही बोल्ड खयालातों की थीं। कंगना ने एक इंटरव्यू के दौरान बताया था कि उनके पापा जब उनके भाई के लिए प्लास्टिक गन और कंगना के लिए बॉल लाकर देते थे तो वह सवाल कर देती थीं कि यह फर्क क्यों किया जा रहा है।  कंगना के परिवार वाले चाहते थे कि वह साइंस की पढ़ाई करें, लेकिन कंगना बेहद इमोशनल और सेंसिटिव थीं।


बॉम्बे टाइम्स की एक रिपोर्ट के मुताबिक, जब कंगना 15 साल की थीं, तब उनके पिता ने पहली बार उन्हें झापड़ मारा। इस पर रोने या बिलखने की बजाय कंगना ने कह दिया था कि अगर दोबारा उनके पापा ने थप्पड़ मारा तो वह भी उन्हें थप्पड़ मार देंगी।

बॉम्बे टाइम्स के मुताबिक, कंगना की उनके पापा से नहीं बनी। झापड़ वाली बात के बाद उनके पापा ने कंगना से घर छोड़ने को कह दिया और कंगना भी सामान पैक करके अपने 10 साल बड़े एक दोस्त जसप्रीत के घर चली गईं। इसके बाद कंगना ने मॉडलिंग शुरू की और अस्मिता थियेटर ग्रुप से भी जुड़ गईं। कंगना ने यह भी कहा था कि उन्होंने खाने और रहने के लिए वह सब कुछ किया जो वह कर सकती थीं।

बॉम्बे टाइम्स के मुताबिक, जब कंगना अकेले रहने लगीं तो उनके पापा उन्हें 50 हजार रुपये देने गए ताकि उनका खर्च चल सके लेकिन कंगना ने पैसे लेने से मना कर दिया। इसके बाद, बाप-बेटी का रिश्ता और भी तल्ख हो गया।

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कंगना रणौत को उनकी पहली फिल्म गैंगस्टर किस्मत से मिली। कंगना ने अनुपम खेर के एक शो कुछ भी हो सकता है में खुलासा किया कि फिल्म हजारों ख्वाहिशें ऐसी के बाद शाइनी आहूजा हिट हो गए थे और भट्ट कैंप उन्हें गैंगस्टर के लिए साइन कर चुका था। शाइनी के साथ कंगना उम्र में काफी छोटी लग रही थीं इसलिए चित्रांगदा को साइन कर लिया गया। लेकिन फिर भाग्य पलटा और चित्रांगदा ने उसी दौरान फिल्म इंडस्ट्री को अलविदा कहने का मन बना लिया। फिर क्या था, कंगना को मेकअप से बड़ा किया गया और उन्हें सुपरहिट शुरुआत मिल गई।

जब कंगना ने गैंगस्टर में इमरान हाशमी के साथ बोल्ड किसिंग सीन दिया, तो उनके परिवार को गहरा धक्का पहुंचा। उनके दादा ने तो उन्हें यहां तक मेसेज कर दिया कि वह अपना सरनेम ही बदल लें।

बॉम्बे टाइम्स को दिए एक इंटरव्यू में कंगना ने बताया था कि उन्हें अपनी बहन रंगोली से बहुत प्यार है, जो कि एसिड अटैक का शिकार हो गई थीं। रंगोली के इलाज के लिए कंगना ने सब कुछ दांव पर रख दिया। बेस्ट जगहों पर रंगोली का इलाज करवाया। क्योंकि इस दौरान कंगना के पास काम भी नहीं था तो उन्होंने सिर्फ पैसे के लिए जगह-जगह गेस्ट बनकर जाना शुरू कर दिया।



यह बात भी आपको हैरान कर देगी कि कंगना खुद भले ही फिल्मों की क्वीन बन चुकी हों लेकिन एक वेबसाइट को दिए इंटरव्यू में उन्होंने बताया था कि उन्होंने सिर्फ 10 फिल्में देखी हैं। फिल्मों की जगह कंगना को किताबों और म्यूजिक का साथ पसंद है।

यात्रियों की जान खतरे में डाल रहे HRTC के अधिकारी

मंडी।।
एचआरटीसी की पहचान प्रदेश के मुश्किल इलाकों में भी खराब सड़कों के बावजूद यात्रियों को सुविधा देने की है। मगर विभाग द्वारा लापरवाही बरतने की वजह से कई बार हादसे भी हो चुके हैं। ऐसा ही वाकया मंडी के जोगिंदर नगर में देखने को मिला। यहां पर यात्रियों की जान को खतरे में डालते हुए बसों में ही डीज़ल ढोया जा रहा है।
जोगिंदर नगर में विभिन्न प्रकार के जनसेवा के कार्यों में लगे युवाओं के संगठन ‘हमारा जोगिंदर नगर’ ने पर्दाफाश किया है कि किस तरह से विभाग लापरवाही बरत रहा है। काम में कोताही बरतना कहिए या फिर कोई और खेल, डीज़ल के बड़े कैन्स को यात्री बसों में सीटों के नीचे रखकर ढोया जा रहा है। विडियो देखिए:
दरअसल जोगिंदर नगर में बैजनाथ डिपो की बसें चलती हैं। हमारा जोगिंदर नगर टीम के अनिश ठाकुर ने बताया कि एक सदस्य से टीम को जानकारी मिली थी कि एक बस में अवैध ढंग से डीज़ल ढोया जा रहा है। बीते शनिवार को HRTC की बस नंबर HP 53-6194 (बैजनाथ-जोगिंदर नगर रूट) बस में स्कूल और कॉलेज के स्टूडेंट्स समेत कई यात्री सवार थे। इसमें सीटों के नीचे डीजल के कंटेनर रखे गए थे। इनसे तेल भी लीक हो रहा था।
 इस तरह से कंटेनर ढोया जाना अवैध है और इससे बड़ा हादसा भी हो सकता है। सही ढंग से कैरी न किए जाने पर और किसी भी झटके या अन्य वजहों से चिंगारी के संपर्क में आने से धमाका हो सकता है, जिससे यात्रियों को संभलने का मौका तक नहीं मिलेगा।
अधिवक्ता अनिश ठाकुर ने बताया कि एक्सप्लोसिव सबस्टांसेज़ ऐक्ट, मोटर वीइकल ऐक्ट और पेट्रोलियम ऐक्ट के तहत ऐसा करना गलत है। ऐसे में संबंधित अधिकारियों को इस बारे में शिकायत भेज दी गई है। हैरानी की बात यह है कि यह सब काम अधिकारियों की जानकारी में हो रहा है।
हमारा टीम के मुताबिक इस बारे में एचआरटीसी बैजनाथ के रीजनल मैनेजर बेनी प्रसाद भरमौरिया से बात की गई, तो उन्होंने कहा कि अभी कोई और व्यवस्ता न होने की वजह से विभाग की मजबूरी है कि इसी तरह से डीजल भेजना पड़ रहा है। इससे साफ होता है कि खतरे के बारे में अंदाजा होने के बावजूद विभाग यात्रियों की जान खतरे में डाल रहा है।

हर तरह के फोक म्यूजिक को आगे लाना चाहते हैं आकाशदीप सिंह

इन हिमाचल डेस्क।।

दिल्ली में रहने वाले हमारे एक नियमित पाठक आशीष नड्डा ने हमें एक विडियो भेजा है। उनके अनुसार पिछले दिनों वह अपने कुछ मित्रों के साथ डिनर करने नोएडा के एक होटेल में गए थे।  डिनर  के साथ साथ वहां संगीत संध्या का भी आयोजन था।  लोग खाने के आनंद के साथ साथ गजल भी सुन रहे थे।  आशीष के ग्रुप में एक लड़का था- आकाश, जो संगीत का शौक रखता है और हिमाचल और पंजाब से सटे सीमावर्ती इलाके से है।

इन लोगों ने मैनेजर से आकाश से भी गाना गवाने के लिए रिक्वेस्ट की। मैनेजर ने काफी ना-नुकर के बाद दो मिनट का समय दिया। आकाश ने दो मिनट में क्या गाया, वह आप इस विडियो में देख सकते हैं।

आकाश सिंह आईआईटी दिल्ली से एम.टेक कर रहे हैं। उनकी बी.टेक पंजाब इंजिनियरिंग कॉलेज चंडीगढ़ से हुई है। समाज के पिछड़े तबके की शिक्षा के लिए काम करने के साथ साथ आकाश म्यूजिक में भी दिलचस्पी रखते हैं। क्लासिकल और सूफी फोक, हर तरह के म्यूजिक को जानना-समझना उन्हें रोमांचित करता है।

आकाशदीप सिंह

भविष्य में आकाश हिमाचली, डोगरी, पहाड़ी, पंजाबी, हर तरह के पारम्परिक फोक म्यूजिक को, जो कि आज विलुप्त होने के कगार पर है, एक्स्प्लोर करके आगे लाना चाहते हैं।  इन हिमाचल की तरफ से आकाश सिंह को इस कार्य के लिए शुभकामनाएं।

                                                                                                                                   

(अन्य पाठक  भी ऐसी किसी घटना के संस्मरण हमें मेल कर सकते हैं। हमारी ई-मेल आई डी है-
inhimachal.in@gmail.com)

कठुआ आतंकी हमले में हिमाचल निवासी की मौत

जम्मू
जम्मू-कश्मीर के कठुआ में शुक्रवार को हुए आतंकी हमले में हिमाचल प्रवेश निवासी एक शख्स की भी मौत हुई है। रणधीर सिंह नाम का यह शख्स नूरपुर का रहने वाला था। आतंकियों ने इसी शख्स की गाड़ी से लिफ्ट मांगी थी।
बताया जा रहा है कि नूरपुर के रहने वाले रणधीर सिंह और उनके साथी जम्मू मंडी से फल बेचकर महिंद्रा जीप से वापस आ रहे थे। रास्ते में सेना की वर्दी में खड़े आतंकियों ने लिफ्ट मांगी। सैनिक समझकर रणधीर ने लिफ्ट तो दी, लेकिन उन्हें नहीं मालूम था कि ये लोग मौत के सौदागर हैं।

फाइल फोटो

आतंकियों ने इसी गाड़ी को इस्तेमाल किया और पुलिस स्टेशन में पहुंचकर हमला किया। उन्होंने बंधक बनाए रणवीर की भी हत्या कर दी। इस आतंकी हमले में 3 सुरक्षाकर्मी भी शहीद हुए थे। दोनों आतंकियों को सुरक्षा बलों ने मार गिराया था।

पूरे भारत के लिए मिसाल है हिमाचल का यह गांव और यहां की प्रधान

मेरे लिए यह यक़ीन करना मुश्किल हो रहा था कि एक महिला किसी पंचायत की स्वतंत्र मुखिया भी हो सकती है। जी हां, ‘स्वतंत्र’ मुखिया क्योंकि अभी तक मैंने जितनी भी महिला प्रधान या सरपंचों से मुलाक़ात की है, वे सभी अपने पतियों के आसरे हैं। उनके बदले उनके पति ही बात करने के लिए सामने आते हैं। पंचायत का कामकाज उनके पति ही देखते हैं। अब तो महिला प्रधानों के ऐसे पतियों के लिए एक शब्द भी बन गया है ‘प्रधानपति’। पत्नी तो प्रधान होगी लेकिन बतौर प्रतिनिधि पंचायत के सभी अधिकार उसके पति के पास होंगे और यह सामाजिक रूप से स्वीकार्य भी है। गांव के लोग भी महिला प्रधान के पति को ही ‘प्रधानजी’ कहकर संबोधित करते हैं। महिलाएं चुनाव में खड़ी तो होती हैं, मगर यह क़वायद सिर्फ विकल्प के तौर पर होती है। जहां भी पंचायत की सीट महिलाओं के लिए रिज़र्व हो जाती है, वहां पर पुरुष अपनी पत्नी को चुनाव में खड़ा कर देता है। काग़ज पर पत्नी होती है, लेकिन चुनाव का चेहरा तक पति ही होता है। हालांकि शकुंतला देवी के साथ ऐसा नहीं था।
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हिमाचल प्रदेश के सोलन की शकुंतला देवी ग्राम पंचायत शमरोड़ की मुखिया हैं। उनका क्षेत्र वाईएस परमार यूनिवर्सिटी ऑफ हॉर्टिकल्चर ऐंड फॉरेस्ट्री के पास ही है। शकुंतला जी से मिलना मेरे लिए एक सरप्राइज़ ही था। हॉर्टिकल्चर यूनिवर्सिटी में ही मेरे ठहरने का इंतजाम था। रात को ख़्याल आया कि क्यों न इसी यूनिवर्सिटी के आस-पास के गांवों पर भी एक-दो स्टोरी कर ली जाएं। इसी विचार से मैं अपनी टीम के साथ गांवों की ओर बढ़ चला। वहां एक चाय की दुकान पर एक शख्स ने शकुंतला देवी जी के बारे में बताया और कहा कि वह मेरी मदद कर सकती हैं। मुझे बताया गया कि शमरोड़ गांव के ‘पंचायत भवन’ में मेरी उनसे मुलाक़ात हो सकती है। मैं शमरोड़ गांव की ओऱ बढ़ चला। पहाड़ी गांव होने के चलते रास्ता चढ़ाई से भरा था, लेकिन रास्तों में सुविधा का पूरा ख़्याल रखा गया था। पगडंडियों पर टाइल्स लगी हुईं थीं। ख़तरनाक ढलानों पर सीढ़ियां बना दी गईं थीं। गांव के भीतर घुसने ही वाला था कि एक बोर्ड दिखाई दिया। जिस पर लिखा था – ‘यदि कोई व्यक्ति खुले में शौच करता पाया गया तो उस पर 100 रुपये से 500 रुपये तक का जुर्माना किया जा सकता है।’ पॉलिथीन या कूड़ा-कर्कट फेंकने या गांव में सरेआम धूम्रपान करने पर भी जुर्माने का प्रावधान था।
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प्राकृतिक सौंदर्य के बीच बसे इस गांव में इस तरह की कोशिश देखकर मेरा मन और हरा-भरा हो गया। हालांकि, मैंने आसपास मुआयना किया कि कहीं बोर्ड के आस-पास गंदगी तो नहीं फैली है लेकिन मुझे दूर-दूर तक कुछ भी दिखाई नहीं दिया। अलबत्ता रास्तों में सोलर लाइटें दिखाई दीं, ठीक वैसे ही जैसे शहरों में स्ट्रीट लाइट्स दिखाई देती हैं। पहाड़ों पर चढ़ते-चढ़ते सांस उखड़ चुकी थी मगर गांव की इन व्यवस्थाओं ने मुझे ऊर्जा से लबरेज कर दिया था। शमरोड़ गांव पहुंचने पर पता चला कि ग्राम प्रधान शकुंतला देवी पंचायत भवन में मीटिंग कर रही हैं। पंचायत भवन! मीटिंग! मैं थोड़ा सा हैरान था। इतने अर्से से मैदानी इलाकों में घूमता रहा हूं, लेकिन किसी भी गांव में ऐसा नहीं देखा कि पंचायत भवन का सही इस्तेमाल हो रहा हो। अधिकांश जगहों पर पंचायत भवन का सिर्फ ढांचा ही दिखाई देता है, जिनमें भेड़-बकरियां बैठी रहती हैं। इंसान के नाम पर जुआरी या शराबी मिलेंगे।

हालांकि शमरोड़ के पंचायत भवन में बाकायदा बैठक चल रही थी। पंचायत भवन के हॉल में से लोगों की चर्चा सुनाई दे रही थी। मीटिंग खत्म होने के बाद मैं शकुंतला जी से मिलने हॉल के अंदर दाखिल हुआ, तो वहां पर नज़ारा बिल्कुल अलग था। सेक्रेटरी साहब कंप्यूटर लिए बैठे हुए थे। ठीक वैसे ही, जैसे दूसरे ऑफिसों में कर्मचारी बैठे रहते हैं। पंचायत सदस्य लाइन से कुर्सी लगाए बैठे थे और शकुंतला जी एक बड़ी सी कुर्सी पर बैठी थीं। इस दौरान बातचीत करते हुए पता चला कि पंचायत सदस्य गांव के बजट पर चर्चा कर रहे थे। शकुंतला जी की पंचायत में 6 गांव आते हैं। इन्हीं गांवों में से एक ‘धारों की धार’ गांव के सरकारी स्कूल से एक अध्यापक भी मौजूद थे। अध्यापक महोदय स्कूल में मिड-डे मील के मेन्यु को लेकर कुछ बात कर रहे थे।

शकुंतला देवी रोज पंचायत भवन में 9 बजे से 12 बजे तक बैठतीं हैं। इस दौरान सभी 6 गांव के लोग अपने जरूरी कागजों को सत्यापित कराने या फिर दूसरे शिकायतों को लेकर पहुंचते हैं जिनका वह समाधान निकालने की कोशिश करती हैं। शकुंतला जी ने महिलाओं के लिए ‘स्वयं सहायता समूह’ का भी गठन किया है। इसके तहत महिलाओं को आर्थिक रूप से मजबूत बनाने के लिए ट्रेनिंग दी जाती है। संगठन से जुड़ी महिलाएं सिलाई-कढ़ाई के अलावा आचार बनाने और घर बैठे बाकी प्रफेशनल काम करती हैं। इस समूह की सदस्या के लिए फीस भी तय है। हर महीने सभी महिला सदस्य को 200 रुपये देने होते हैं। जब किसी महिला के घर शादी या कोई आयोजन होता है, तो सभी मिलकर उसकी आर्थिक मदद करती हैं। इन महिला समूहों ने एक बैंक भी बना लिया है, जो 2 पर्सेंट के ब्याज पर समूह की बाकी औरतों को लोन भी मुहैया करता है।

शमरोड़ गांव के सभी घरों में टॉइलट हैं और जिसके पास टॉइलट बनाने के पैसे नहीं हैं, उसकी मदद पंचायत और ‘स्वयं सहायता समूह’ करता है। शकुंतला जी ने मुझे बताया कि जब उनकी शादी हुई तब उनके घर में टॉइलट नहीं था। शौच के लिए उन्हें बाहर जाना पड़ता था। उन्होंने अपने पति से इसका विरोध किया। शकुंतला जी के पति को उस वक्त यह बात उतनी महत्वपूर्ण नहीं लगी। ऐसे में उन्होंने अपने मायके चले जाना ही उचित समझा और वापस तभी लौटीं जब उनके पति ने घर में शौचालय बनवा दिया। शकुंतला जी ने तब इसे एक मुहिम की शक्ल दे दी और यहीं से उनकी सामाजिक और राजनीतिक गतिविधि शुरू हो गई।
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उस दौर में उन्होंने अपनी चार-पांच महिला साथियों के साथ मिलकर शौचालय के लिए अभियान चलाया। उन्होंने बताया कि सुबह-सुबह ही वह अपनी महिला साथियों के साथ पहाड़ी के ऊपर चढ़ जातीं और जो भी खुले में शौच करता दिखाई देता उस पर कंकड़ मारतीं। शुरू में मामला काफी तनातनी वाला रहा। लोगों ने उनके पति से शिकायत भी की लेकिन बाद में धीरे-धीरे लोगों ने समझना शुरू किया। जिनके पास पैसे थे, वे लोग अपने घरों में शौचालय बनाने लगे लेकिन ग़रीब तबके के लिए यह एक चुनौती थी। उसी दौरान शकुंतला जी ने पंचायत का चुनाव लड़ा और अच्छे अंतर से जीत भी दर्ज की। ग्राम प्रधान बनते ही उन्होंने सबसे पहले गरीब तबके के लिए शौचालय बनवाने का काम किया। इस दौरान जब पैसों की कमी हुई, तो गांव के ही लोगों ने चंदा देकर मदद की।

आज की तारीख़ में यह गांव न सिर्फ हरा-भरा है, बल्कि साफ-सुथरा भी है। शकुंतला जी के साथ महिलाओं का एक बड़ा समूह काम करता है। इन लोगों ने पहाड़ी के जल-स्रोतों का बेहतर इस्तेमाल ढूंढ निकाला है। सभी की कोशिशों की वजह से गांव के ऊपरी हिस्सें पर एक टैंक बनाया गया है, जहां पानी इकट्ठा किया जाता है। यहां से हर गांव में पानी की सप्लाई पंहुचाई गई है। मैंने शकुंतला जी और बाकी महिलाओं से पूछा भी कि जब वे सभी सामाजिक कामों में लगी रहती हैं, तो उनका घर कैसे चलता है? परिवार के बाकी सदस्य ख़ासकर पति इसका विरोध नहीं करते? जवाब था कि वे नौकरियों में व्यस्त रहते हैं या फिर खेतों में काम करते हैं। बाकी घरेलू काम वे लोग इसी दौरान मैनेज कर लेती हैं। उल्टा इस काम के लिए उनके पतियों का उन्हें पूरा समर्थन हासिल है और यह सिर्फ शमरोड़ ही नहीं, बल्कि सोलन ज़िले के अधिकांश घरों में देखने को मिल जाएगा। हालांकि कमाल की बात यह भी है कि उनके पतियों से खटपट उसी तरह से होती है, जो देश के आम दंपति में होती रहती है।

शमरोड़ के अलावा मैंने उनसे दूसरे गांवों में भी जाने की बात कही। मेरे साथ मेरे और भी साथी थे। हम सभी शकुंतला जी के साथ सोलन ज़िले के सबसे हाइट पर बसे गांव ‘धारों की धार’ की ओर चल दिए। धारों की धार गांव उनकी पंचायत के सबसे आखिरी छोर पर बसा गांव है इसलिए हम लोगों ने पहले अपनी गाड़ी से फिर वहां से पैदल जाने का निश्चय किया। शकुंतला जी का एनर्जी लेवल भी कमाल का था। एक गांव से दूसरे गांव की दूरी वह पैदल ही तय कर लेती हैं। मेरे जैसा युवा आदमी हांफते-फिसलते रास्ता तय कर रहा था मगर उन्हें जंप लगाते और टापमटाप कदमों से चढ़ाई चढ़ते देख मैं हैरान था। ऐसे में रहा नहीं गया और नैतिकता का लबादा फेंक उनसे उनकी उम्र पूछने का दुस्साहस कर बैठा। कई बार मुझे टोका जा चुका है कि महिलाओं से उनकी उम्र पूछना नैतिक रूप से ग़लत है, भले ही वह महिला 70 साल की बुढ़िया ही क्यों ना हो। मेरे सवाल पर शकुंतला जी मुस्कुराईं और पूछा, ‘आप यह क्यों पूछ रहे हैं?’ मुझे उनके इस सवाल की पहले से ही उम्मीद थी, ऐसे में बिना देर किए मैंने उनकी बढ़ाई में ताबड़तोड़ कई बातें रख दीं। इस दौरान वह हंसती रहीं और गेस लगाने की बात कहकर सवाल टाल गईं। बस इतना बताया कि उनके बेटे-बेटियां कॉलेज में पढ़ते हैं।

 ‘धारों की धार’ पहुंचकर हम लोग वहां के जूनियर हाई स्कूल के पास खड़े थे। यहां एक और प्यारी सी बात दिखाई दी। स्कूल जाता हुआ हर स्टूडेंट हमें ‘नमस्ते जी’ बोलकर आगे बढ़ रहा था। मैंने इस विलुप्त होते आचरण के बारे में वहां के बाकी लोगों से पूछा। लोगों ने बताया कि इनके अध्यापकों ने इन्हें इसकी शिक्षा दी है। मैं हैरान था कि सिलेबस के अलावा नैतिक शिक्षा भी दी जाती है और वह भी सरकारी स्कूल में! बच्चों के इस आचरण ने हमारे सभी साथियों को गदगद कर दिया था। जानकारी के लिए बता दूं कि हमारी टीम के सभी साथी दिल्ली या फिर एनसीआर में रहते हैं।
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स्कूल में गया तब प्रार्थना-सभा चल रही थी। वहां, बच्चों की संख्या लगभग 60 के आसपास थी। प्रार्थना के बाद छात्रों में से ही एक छात्र देश-विदेश के मुख्य समाचारों को लेकर हाजिर हुआ। इसके बाद दौर शुरू हुआ जीके के प्रश्नों का। यह दृश्य देखकर वाकई मज़ा आ गया। एक तरफ लड़कों की कतार थी और दूसरी तरफ लड़कियों की। जीके के सवालों का दौर 15 मिनट चला। इसके बाद सभी छात्र अपनी-अपनी कक्षाओं में चले गए। स्कूल के प्रधानाध्यापक ने बताया कि प्रार्थना सभा के बाद रोज न्यूज़ रीडिंग के बाद सब्जेक्ट आधारित 15 मिनट की एक प्रतियोगिता होती है।

सरकारी स्कूल में ऐसी पढ़ाई देखकर मन सोच रहा था कि काश! यह सुविधा देश के बाकी सभी हिस्सों में हो जाती। अक्सर मैं स्कूलों की इमारतों में घोटाले देखता हूं, मगर यहां की इमारत काफी अच्छी थी। यहां एक पार्क सा भी बनाया गया था, जहां पर बच्चों के खेलने का सारा साजो-सामान था।

बतौर ग्राम प्रधान शकुंतला जी ने अपने गांव में शिक्षा स्तर को बेहतर बनाने के लिए अध्यापकों के साथ बैठकर ही समाधान निकाला। पंचायत के सभी स्कूलों के अध्यापकों ने शकुंतला जी का साथ दिया और शकुंतला जी ने उनका। रिजल्ट मेरे सामने था। जहां मैदानी इलाकों के सरकारी स्कूलों में बच्चों को ठीक ढंग से अपना नाम और पता लिखना नहीं आता है। वहीं, सोलन के इस सरकारी स्कूल के बच्चे हिंदी और अंग्रेजी में निबंध लिख ले रहे थे। मैं यूपी, बिहार, मध्यप्रदेश और हरियाणा के गांवों में स्थित कई सरकारी स्कूलों में गया, लेकिन वहां छात्र एनरोलमेंट के हिसाब से मौजूद भी नहीं थे। कई जगहों पर एक ही अध्यापक एक से पांचवी कक्षा तक के छात्रों को पढ़ाने की खानापूर्ति कर रहा था लेकिन यहां पर सभी विषय के लिए अलग-अलग अध्यापक मौजूद थे।

अपने विषयों को लेकर भी बच्चे काफी जागरूक थे। कहा जाता है कि जैसा समाज होता है, लोगों पर भी उसकी वैसी ही छाप होती है। सोलन के गांवों में यह देखने को बखूबी मिला। सोलन के अलावा हिमाचल की अधिकांश जगहों पर घूमने के बाद यही अनुभव हुआ कि यहां का समाज शांतिप्रिय और संजीदा है। यहां के अधिकांश कार्यों में महिलाओं की भागीदारी मैदानी इलाकों से कहीं ज्यादा है। यही वजह है कि एक महिला ग्राम-प्रधान ना सिर्फ अपने घर में भी सम्मान और समर्थन पाती है, बल्कि अपने पंचायत क्षेत्र में भी उसे बराबरी का सम्मान और समर्थन मिलता है।


‘धारों की धार’ से निकलने के बाद मैंने शकुंतला जी से विदा ली और उन्हें जीवन में और अहम पद मिले, इसकी शुभकामना देकर चल दिया। पहाड़ी घुमावदार रास्तों के साथ-साथ मेरे दिमाग में भी कई विचार उमड़-घुमड़ रहे थे। आख़िर कब मैदानी इलाकों ख़ासकर उत्तर भारत में महिलाएं इस तरह से सबल होंगी? कब पुरुष समाज उनके अंतर्गत काम करना अपनी हेठी नहीं समझेगा? कब महिलाएं ‘फलाने की पत्नी’ की टैग-लाइन से छुटकारा पाएंगी?


लेखक: अमृत कुमार तिवारी, प्रड्यूसर: Green TV, ईमेल: amrit.writeme@gmail.com

मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह ने पेश किया पॉप्युलिस्ट बजट

शिमला।।

मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह ने बुधवार को साल 2015-16  के लिए हिमाचल प्रदेश विधानसभा में बजट पेश किया। सीएम ने 18वीं बार बजट पेश किया, जिसके प्रमुख बिंदु इस तरह से हैं: 

  •  दैनिक दिहाड़ी बढ़ाकर 180 रुपये की गई
  • 31 मार्च तक पांच वर्ष का कार्यकाल पूरा करने वाले अनुबंध कर्मचारी होंगे नियमित
  • विधायक निधि 50 लाख से बढ़ाकर 70 लाख रुपये 
  • डिजिटल राशन कार्ड बनेंगे
  • दुर्घटना संभावित क्षेत्र सड़कों में स्टील क्रेश के लिए 50 करोड़ रुपये
  • पर्यटकों की सुविधा हेतु चंडीगढ़ से शिमला हैलीकाप्टर सेवा उपलब्ध होगी
  • 100 राजकीय वरिष्ठ विद्यालय में व्यवसायिक प्रशिक्षण आरम्भ होगा और 200 व्यवसायिक शिक्षक भर्ती होंगे
  • राष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त शिक्षकों को दो वर्ष का सेवा विस्तार और नकद पुरस्कार के एवज में अतिरिक्त वेतन वृद्धि मिलेगी
  • सांस्कृतिक कार्यक्रम के आयोजन के लिए जिला स्तर पर अंतरंग भवनों का निर्माण कुल 25 करोड़ का बजट जारी होगा
  • सभी एक्रीडेडिट पत्रकारों को पांच लाख और मान्यता प्राप्त पत्रकारों को तीन लाख रुपये का दुर्घटना बीमा कवर
  • प्रेस क्लबों के निर्माण के लिए एक करोड़ रुपये का प्रावधान
  • अंशकालिक जलवाहकों का मानदेय 1500 से बढ़ाकर 1700 रुपये
 
 

स्वाइन फ्लू ने अब तक हिमाचल में ली 20 की जान

शिमला।।

हिमाचल प्रदेश के स्वास्थ्य मंत्री कौल सिंह ठाकुर ने मंगलवार को विधानसभा में बताया कि प्रदेश में अब तक स्वाइन फ्लू से 20 लोगों की जान जा चुकी है। सबसे ज्यादा 7 लोगों की मौत शिमला में हुई है।

कौल सिंह ने कि सोमवार की रात शिमला के इंदिरा गांधी मेडिकल कॉलेज एंड हॉस्पिटल (आईजीएमसीएच) में स्वाइन फ्लू से पीड़ित दो लोगों ने दम तोड दिया। उन्होंने कहा कि 13 लोगों ने आईजीएमसी में दम तोड़ा है, जबकि कांगडा जिले के टांडा स्थित राजेंद्र प्रसाद मेडिकल कॉलेज में सात लोगों की मौत हुई है।

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कौल सिंह ने कहा कि राज्य में स्वाइन फ्लू के 302 संदिग्ध नमूने इकटे किए गए थे, जिनमें से 79 की जांच के नतीजे पॉजिटिव आए। उन्होंने कहा कि 50 लोगों में स्वाइन फ्लू के लक्षण पाए गए हैं, जिनका इलाज किया गया है।

वॉट्स ऐप पर 15 मिनट की कॉलिंग पर खर्च हो रहा 12 एमबी डेटा

इन हिमाचल डेस्क।।
उम्मीद है आप सब वॉट्सऐप का कॉलिंग फीचर इस्तेमाल कर रहे होंगे। जिन लोगों ने डाउनलोड नहीं किया है, वे यहां पर क्लिक करके लेटेस्ट वर्ज़न डाउनलोड करें और उसे इन्स्टॉल करें। फिर आपको अपने नंबर पर किसी ऐसे शख्स से वॉट्सऐप कॉल करवाना होगा, जिसके मोबाइल पर पहले से यह फीचर ऐक्टिवेट है।

बहरहाल, बहुत से लोगों के मन में यह शंका है कि आखिर वॉट्सऐप से कॉल करना सस्ता पड़ेगा, या महंगा। अगर आपके आपके मोबाइल पर अनलिमिटेड डेटा प्लान है, तब तो आप चिंता करना छोड़ दीजिए। वाई-फाई पर भी अनलिमिटेड इंटरनेट यूज कर रहे हैं, तो भी दिक्कत वाली कोई बात नहीं है। मगर आप अगर लिमिटेड डेटा इस्तेमाल करते हैं, तो आपका बता दें कि 15 मिनट की वॉइस कॉलिंग 12 एमबी डेटा खर्च कर रही है।

बिना डेटा प्लान के लुट जाएंगे आप
इन हिमाचल ने एयरटेल कनेक्शन वाले फोन से करीब दो बार 15-15 मिनट के कॉल किए। हमने पाया कि इस दौरान औसतन 12 एमबी डेटा खर्च हुआ। मान लीजिए आपने कोई डेटा प्लान नहीं लिया है, तब आपको 4 पैसे प्रति 10केबी (10paise/10KB) के हिसाब से चार्ज लगेगा। इस तरह से आपको 1 एमबी डेटा के लिए 4 रुपये से ज्यादा चुकाने होंगे। और 12 एमबी के लिए चुकाने होंगे 12×4=48 रुपये। यानी कुलमिलाकर 50 रुपये के करीब।

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डेटा प्लान पड़ेगा सस्ता
अक्सर हम लोग डेटा प्लान ही लेते हैं। मान लीजिए आपने एयरटेल का 1 जीबी  प्लान लिया है, जो कि 250 रुपे में आता है। इस हिसाब से देखें तो आप 1 एमबी डेटा के लिए 25 पैसे से भी कम चुकाते हैं। तो 15 मिनट बात करने के लिए जो 12 एमबी डेटा खर्च होगा, उसके लिए आपके 3 रुपये से भी कम खर्च हो रहे हैं। यानी डेटा प्लान लेने में भी समझदारी है।