मंडी।। जोगिंदर नगर विधानसभा क्षेत्र के तहत पड़ने वाले इलाके लड-भड़ोल की खद्दर पंचायत के एक टीनेजर ने भारत की अंडर-19 क्रिकेट टीम में जगह बनाई है। मंगडोल गांव के आयुष जम्वाल ने अंडर-19 टीम में जगह बनाई है।
आयुष हिमाचल प्रदेश की अंडर-16 टीम के कैप्टन रह चुके हैं। उन्होंने साल 2012 में अंडर-14 टीम से हिमाचल की तरफ से खेलना शुरू किया था। अब 4 साल के अंदर अपनी प्रतिभा के दम पर उन्होंने अंडर-19 टीम में जगह बनाई है।
आयुष जम्वाल। (Image: Ladbharol.com)
13 दिसंबर से लेकर 24 दिसंबर तक श्रीलंका में होने जा रहे एशिया कप में आयुष हिस्सा लेंगे। आयुष के पिता श्याम सिंह ने ही उनके कोच की भूमिका निभाई है। श्याम सिंह खुद डीडीसीए लीग में क्रिकेट मैच खेल चुके हैं।
आयुष जम्वाल के अंडर-19 क्रिकेट टीम में चुने जाने से पूरे इलाके में और मंडी जिले में खुशी की लहर है। तमाम नेताओं ने आयुष को इस उपलब्धि के लिए बधाई है। इन हिमाचल की तरफ से भी आयुष को उज्ज्वल भविष्य के लिए शुभकामनाएं।
इन हिमाचल डेस्क।। आज तो मनोरंजन के कई साधन मौजूद हैं मगर 100-150 साल पहले लोग क्या किया करते थे? उस दौर में स्मार्टफोन, टीवी, रेडियो वगैरह भी नहीं थे। ऐसे में लोकनृत्य, गायन और नाटक आदि वगैरह ही लोगों के मनोरंजन के साधन थे। हिमाचल प्रदेश के मंडी जिले में मनोरंजन का ऐसा ही एक माध्यम था- बांठड़ा।
बांठड़े की पंरपरा ऐसी थी कि लोग तरह-तरह के वेश रचकर मनोरंजन किया करते थे। वे न सिर्फ लोगों का यानी प्रजा का मनोरंजन करते थे बल्कि राजाओं का भी मनोरंजन हुआ करता था। लोगों को स्वांग रचकर हंसाया जाता था और मजेदार संवाद कहे जाते थे। चुटीली बातों के जरिए जो मनोरंजन होता था, उसे लोग खूब पसंद किया करते थे। शाम को बांठड़े का सिलसिला शुरू होता और देर रात तक चलता। इस स्वांग की बातों के जरिए जनता की समस्याओं को भी उठाया जाता था।
आज भी मंडी में बांठड़ा देखने को मिलता है, मगर औपचारिक रूप में। पहले यह आए दिन हुआ करते थे और कलाकार अपनी समस्याओं को रोचक ढंग से राजाओं के सामने रखा करते थे और उनका सामाधान भी हुआ करता था। अब साल में एक बार बांठड़े का आयोजन किया जाता है, वह भी परंपरा को बचाए रखने की कोशिश के रूप में।
अब ग्रामीण अपने स्तर पर बांठड़े का आयोजन करते हैं तो लोग रुचि नहीं लेते। टीवी पर आने वाले सीरियल्स आदि की तुलना में उन्हें यह मनोरंजक नहीं लगता। अब गिने-चुने लोग ही बांठड़े में आते हैं। देव पंरपराओं से जुड़े होने की वजह से ही अब तक यह औपचारिक रूप से ही सही, मगर बचा हुआ है। पंजाब केसरी की यह रिपोर्ट देखें-
कुल्लू।। हिमाचल प्रदेश के लोगों की जिंदादिली और हेल्पिंग नेचर की मिसालें दी जाती हैं, मगर कुल्लू में ऐसी घटना हुई, जो सिर झुका देती है। कुल्लू के ढालपुर चौक पर सुबह करीब साढ़े 10 बजे गांव पीची, दोहरेनाला के रहने वाले बुजुर्ग गिरधर (68) को हार्ट अटैक आया। दर्द के मारे वह फुटपाथ पर गिर गए।
बुजुर्ग गिरधर के साथ उनकी करीब 3 साल की पोती भी थी। जब उसने अपने दादा को इस हालत में देखा तो वह डर गई और रोने लगी। पंजाब केसरी की रिपोर्ट के मुताबिक फुटपाथ पर गिरा बुजुर्ग दर्द से तड़प रहा था और उसे अस्पताल ले जाने के लिए करीब 10 मिनट तक लोग सड़क पर चल रहे वाहनों को रोकते रहे परंतु किसी ने उसको अस्पताल पहुंचाने के लिए अपना वाहन रोकने की जहमत नहीं उठाई। इसी बीच दर्द से तड़पते बुजुर्ग ने दम तोड़ दिया।
Image: Punjab Kesari
अखबार की रिपोर्ट के मुताबिक सामाजिक कार्यकर्ता नवनीत सूद जब गिरधर को लेकर अस्पताल पहुंचे और डॉक्टरों से उसे चैक करने को कहा तो डाक्टरों ने पहले तो बदतमीजी की और बिना चेक किए कहा कि व्यक्ति की मौत हो गई है। बहुत आग्रह करने के बाद डॉक्टर का सीधा जवाब था कि डॉक्टर मैं हूं या आप।
लोगों ने सरकार व जिला प्रशासन से आग्रह किया है कि डॉक्टरों के व्यवहार की तरफ भी ध्यान दिया जाए ताकि जनता के साथ किसी प्रकार की कोई दुर्व्यवहार न सके। इसी बीच पुलिस ने मामला दर्ज कर लिया है।
आप ऐसे कर सकते हैं मदद अगर आप किसी को इस तरह से हार्ट अटैक की चपेट में देखें तो फर्स्ट एड देकर डॉक्टरी मदद मिलने से पहले उसकी मदद कर सकते हैं-
– हार्ट पेशेंट को लंबी सांस लेने को कहें और उसके आसपास से हवा आने की जगह छोड़ दें ताकि उन्हें पर्याप्त मात्रा में ऑक्सीजन मिल सके।
– कई बार ऐसा देखा गया है के घर में या कहीं किसी को अटैक आया और लोग उसको बुरी तरह से चारों तरफ घेर लेते हैं। कुल्लू की तस्वीर में भी ऐसा ही देखने को मिल रहा है। तो इस बात का विशेष ध्यान रखें के रोगी को ऑक्सीजन लेने के लिए पर्याप्त खुली जगह होना चाहिए।
– अटैक आने पर पेशंट को उल्टी आने जैसी फीलिंग होती है ऐसे में उसे एक तरफ मुड़ कर उल्टी करने को कहें ताकि उल्टी लंग्स में न भरने पाए और इन्हें कोई नुकसान ना हो।
– पेशंट की गर्दन के साइड में हाथ रखकर उसका पल्स रेट चेक करें यदि पल्स रेट 60 या 70 से भी कम हो तो समझ लें कि ब्लड प्रेशर बहुत तेजी से गिर रहा है और पेशेंट की हालत बहुत सीरियस है।
– पल्स रेट कम होने पर हार्ट पेशंट को आप इस तरह से लिटा दें उसका सर नीचे रहे और पैर थोड़ा ऊपर की और उठे हुए हों। इससे पैरों के ब्लड की सप्लाई हार्ट की और होगी जिससे ब्लड प्रेशर में राहत मिलेगी।
– इस दौरान पेशंट को कुछ खिलाने पिलाने की गलती ना करें इससे उसकी स्थिति और भी बिगड़ सकती है।
– एस्प्रिन ब्लड क्लॉट रोकती है इसलिए हार्ट अटैक के पेशेंट को तुरंत एस्प्रिन या डिस्प्रिन खिलानी चाहिए। लेकिन कई बार इनसे हालात और भी ज्यादा बिगड़ जाते हैं इसलिए एस्प्रिन या डिस्प्रिन देने से पहले डॉक्टर से सलाह जरूर ले लेना चाहिए।
प्रधानमंत्री बनने के बाद नरेंद्र मोदी की पहली हिमाचल रैली आजकल पूरे प्रदेश में चर्चा का विषय बनी हुई है। कांगड़ा से किन्नौर तक पूरे प्रदेश को बीजेपी काडर ने पोस्टरों से भगवामय कर दिया है। ध्यान देने वाली बात यह है कि अर्से बाद बीजेपी व्यक्तिवाद से उठकर संगठनवाद की तरफ जाती दिख रही है। जो भी मोर्चे सेल नाममात्र को बने होते थे इस बार पूर्ण ऊर्जा के साथ रैल्ली में अपनी अपनी भूमिका और जिमेदारियों के निर्वहन के लिए जी-जान से लगे हुए हैं। महिला मोर्चे ने तो 25 हजार महिलाएं मंडी के पड्डल मैदान में एकत्रित करने का संकल्प ले लिया है, जो हिमाचल जैसी छोटी स्टेट में बहुत बड़ा आंकड़ा है। इसी तरह युवा मोर्चा से लेकर अनुसचित जाती जनजाति मोर्चा और ज़िला स्तर के संगठनों के लोग अपने अपने स्तर पर लगे हैं।
रैली के इस गरमाहट भरे माहौल में बारीकी से देखने वाली बात है- प्रदेश राजनीति में जेपी नड्डा की बढ़ती सक्रियता। मोदी की रैली की तैयारियों के लिए नड्डा जितने दिन हिमाचल में गुजार रहे हैं, यह संकेत कुछ अलग ही बयां कर रहे हैं। अभी तक हिमाचल प्रदेश में जितनी भी रैलियां होती थीं, भीड़ जुटाने से लेकर कार्यक्रम तय करने, जिमेदारिया सौंपने और तैयारियां देखने यह सब कार्य पूर्व मुख्यमंत्री धूमल के नेतृत्व में उनके ख़ास सिपहसलार ही करते थे। परन्तु इस बार धूमल सक्रिय भूमिका में कहीं नहीं दिख रहे हैं। संगठन फ्रंट फुट पर रखते हुए यह जिम्मेदारी इस बार जेपी नड्डा ने ले ली है।
जेपी नड्डा इस रैल्ली को लेकर इतना समय और जिमेदारी अपने ऊपर क्यों लिए हुए हैं, यह राजनीतिक पंडितों के लिए कौतूहल का विषय बना हुआ है। केंद्रीय मंत्री बनने से पहले केंद्रीय संगठन में रहने के दौरान भी भी जेपी नड्डा अधिकांश रैलियों में सिर्फ रैली वाले दिन ही प्रदेश का रुख किया करते थे। परंतु इस बार बाकायदा 5 दिन उन्होंने इस कार्य के लिए अपने शेड्यूल से निकाल रखे हैं। वाया कांगड़ा से होकर बिलासपुर की तरफ जेपी नड्डा का आना भी कहीं न कहीं कुछ अलग संकेत दे रहा है। गग्गल एयरपोर्ट पर राकेश पठानिया अपनी फ़ौज लेकर उनके इस्तकबाल के लिए पहुंचे। शांता कुमार और नड्डा के साथ एक ही गाड़ी में एयरपोर्ट से धर्मशाला के लिए रवाना हुए पठानिया ने अपने विरोधियों को यह पैगाम दे दिया कि नूरपुर का नूर पार्टी उनके हाथ में ही देने वाली है।
सबसे बड़ी बात यहां जो ध्यान देने योग्य है कि प्रदेश बीजेपी के पितामह शांता कुमार जो अक्सर पार्टी संगठन के प्रोग्रामों को किसी न किसी बहाने किनारा करते रहते हैं, व्यक्तिगत रूप से नड्डा के स्वागत के लिए खुद एयरपोर्ट पहुंचे। शांता कुमार जैसी शख्शियत का एयरपोर्ट तक आना बताता है की पुरानी पीढ़ी नई पीढ़ी के इस्तकबाल के लिए तैयार है। उसके अलावा पूरे बीजेपी कुनबे ने दरबार में हाजिरी लगाई। कांगड़ा में शांता कुमार के घर पालमपुर से सबसे अधिक 5000 कार्यकर्ता मंडी ले जाने का अजेंडा भी इसी मीटिंग में तय हुआ। ऐसे ही मंडी में सर्वधिक 6000 कार्यकर्ता पहुँचाने की जिम्मेदारी प्रदेश में नड्डा के हनुमान कहलाने वाले जयराम ठाकुर ने ली है।
प्रधानमंत्री मोदी के हिमाचल रैली के साथ जेपी नड्डा का यह जिम्मेदारीपूर्ण लगाव कहीं न कहीं इन समीकरणों और संभावनाओं को ही हवा दे रहा है कि आलाकमान की तरफ से भी उन्हें हिमाचल प्रदेश की और देखने और चलने का इशारा मिल गया है।
(लेखक हिमाचल प्रदेश के कुल्लू के रहने वाले हैं और प्रदेश की राजनीति पर पैनी नजर रखते है।)
एमबीएम न्यूज नेटवर्क, नाहन।। हम पाठकों को बताते रहे हैं कि कैसे हिमाचल प्रदेश सांप्रदायिक सौहार्द्र की मिसाल है पूरी दुनिया के लिए। कैसे यहां पर मुस्लिम समुदाय के लोग ईद और शिवरात्रि पर भंडारा लगाते हैं, कैसे इस बार भगवान रघुनाथ के रथ को हिंदुओं और मुस्लिमों ने मिलकर खींचा और सिख समुदाय के लोगों ने इत्र का छिड़काव किया। वहीं मुसलमानों में शिया और सुन्नी समुदायों के बीच का प्रेम भी यहां देखने लायक है।
पूरी दुनिया में यह माना जाता है कि शिया और सुन्नी समुदाय के लोगों के बीच के रिश्ते अच्छे नहीं होते। इराक, सीरिया और यहां तक कि पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान तक में शिया और सुन्नियों के बीच हिंसक झड़कों की खबरें आती रही हैं। अपने देश की ही बात करें तो कई मौकों पर उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ की स्थिति तनावपूर्ण हो जाती है
मुहर्रम पर शिया समुदाय के लोग इमाम हुसैन की शहादत को याद करते हैं। हिमाचल प्रदेश के नाहन शहर में बुधवार को ताजियों का जुलूस निकाला गया। देश के विभिन्न हिस्सों में ताजिये निकालने की पंरपरा शिया समुदाय के लोग निभाते हैं, मगर यहां सुन्नी समुदाय के लोग यह काम करते हैं। गौरतलब है कि नाहन शहर में एक भी शिया परिवार नहीं है। विभिन्न मस्जिदों से आए चारों ताजिये कच्चा टैंक स्थित जामा मस्जिद में इकट्ठे हुए। इनके सामने मुस्लिम युवकों ने मातम किया। युवकों ने खुद को यातनाएं देकर और छाती पीटकर इमाम हुसैन की शहादत को याद किया।
नाहन की तस्वीर। Courtesy: MBM News Network
सुन्नी समुदाय के लोग कई सालों से यह अनोखी मिसाल पेश कर रहे हैं। शहर के चार मोहल्लों हरिपुर, गुन्नूघाट, रानीताल और कच्चा टैंक में सुन्नी समुदाय के लोग मुहर्रम से दस दिन पहले ही ताजिये बनाने शुरू कर देते हैं। दिन-रात काम करने के बाद आकर्षक ताजिये तैयार होते हैं।
सुन्नी मुस्लिमों द्वारा मुहर्रम मनाने की परंपरा 18वीं शताब्दी में महाराजा शमशेर प्रकाश के समय में शुरू हुई थी। उस समय यहां कुछ शिया परिवार रहते थे। वह परिवार अब यहां पर नहीं रहते। महाराजा सुरेंद्र प्रकाश के समय में इस बारे में एक फरमान जारी हुआ था कि सभी धर्मों के लोग इस समारोह में शामिल होंगे। आज भी सुन्नी मुस्लिम रियासतकाल की इस परंपरा का लगातार निवर्हन कर रहे हैं।
जिस दौर में हर धर्म के लोगों में कट्टरपन बढ़ता हुआ दिखाई दे रहा है, उस दौर में हिमाचल मिसाल बना हुआ है। बहरहाल, हम भी यही कामना करते हैं कि हिमाचल प्रदेश को किसी की नजर न लगे और देश के अन्य हिस्से भी यहां से प्रेरणा लें।
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इन हिमाचल डेस्क।। आज पूरे हिमाचल में दशहरा धूमधाम से मनाया गया। हर छोटे-बड़े कस्बे में रावण, कुंभकर्ण और मेघनाद के पुतले फूंके गए, मगर प्रदेश का एक कस्बा ऐसा भी है, जहां पर ऐसा कुछ देखने को नहीं मिला। मगर यह पहला मौका नहीं था कि यहां पर रावण दहन नहीं हुआ, बल्कि कई सालों से यहां पर यह काम नहीं किया जाता और न ही रामलीला का मंचन किया जाता है।
हम बात कर रहे हैं कांगड़ा जिले के प्रसिद्ध धार्मिक स्थल बैजनाथ की। जी हां, वही बैजनाथ, जहां पर प्रसिद्ध बैजनाथ शिवमंदिर है। जोगिंदर नगर और बीड़-बिलिंग के पास वाला बैजनाथ वही जगह मानी जाती है, जहां पर लंकापति रावण ने स्थापना करके शिव को प्रसन्न करने के लिए हवनकुण्ड में शीश अर्पित किए थे। हालांकि ऐसी ही मान्यता झारखंड के वैद्यनाथ मंदिर को लेकर भी है, जो 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक है।
बैजनाथ मंदिर
बहरहाल, कहा जाता है कि यहां कभी भी रामलीला के आयोजन और रावण के पुतले फूंकने की परंपरा नहीं रही थी, मगर 70 के दशक में स्थानीय लोगों ने कुछ सालों तक इसका आयोजन किया था। मगर करीब 5 साल के अंदर ही रामलीला में शामिल लोगों को कई तरह के नुकसान झेलने पड़े और कुछ की अकाल मृत्यु हो गई। ऐसे में यह सिलसिला रोक दिया गया और आज तक इसी अनहोनी के डर से किसी की हिम्मत नहीं हुई फिर से यह काम शुरू करने की।
एक खास बात और यह है बैजनाथ को लेकर कि इस कस्बे में सोने की एक भी दुकान नहीं है। बिनवा खड्ड के एक छोर पर बसे इस शहर में बेशक एक भी जूलरी शॉप नहीं, मगर दूसरी छोर पर बसा पपरोला शहर सोने की दुकानों के लिए प्रदेश भर में प्रसिद्ध है। इसका भी सोने की लंका के स्वामी रावण से कोई लिंक माना जाता है।
खड्ड के एक किनारे बैजनाथ है और दूसरे किनारे पर पपरोला। (साभार: Travellingcamera.com)
अब इन किवदंतियों में कितनी सच्चाई है, यह तो नहीं मालूम। मगर लोग इन परंपराओं का सम्मान करते आते हैं। वे मानते हैं कि भगवान शिव की इस धरती पर उनके अनन्य भक्त का पुतला न ही जलाने अच्छा है।
कांगड़ा।। पैराग्लाइडिंग के लिए स्वर्ग मानी जाने वाली बिलिंग घाटी में पर्यटक उड़ान नहीं भर पा रहे हैं। धर्मशाला में 16 अक्टूबर को होने वाले वनडे इंटरनैशनल और दशहरा उत्सव तो ध्यान में रखते हुए पैराग्लाइडिंग पर रोक लगा दी है। खास बात यह है कि यह सबसे आदर्श समय है पैराग्लाइडिंग का और दर्जनों लोगों की रोजी-रोटी इस पर निर्भर करती है। इसके बाद सर्दियों में पैराग्लाइडिंग खराब मौसम की वजह से संभव नहीं हो पाती। ऐसे में इस सीजन के दौरान हुई कमाई से ही बाकी महीने लोगों को घर चलाना पड़ता है।
बिलिंग
जिला प्रशासन ने यह फैसला यहां आने वाले दर्शकों सहित अन्य सुरक्षा कारणों के चलते लिया। उल्लेखनीय है कि इन दिनों धर्मशाला के इंद्रुनाग तथा बैजनाथ के बीड़ बिलिंग में पैराग्लाइडिंग के शौकीन अपना डेरा जमाते हैं लेकिन पैराग्लाइडिंग पर लगे प्रतिबंध के चलते उन्हें मायूसी हाथ लग रही है।
पुलिस प्रशासन जिला में इतने बड़े आयोजन के दौरान सुरक्षा की दृष्टि से कोई भी चूक नहीं चाहता है, इसी के चलते पैराग्लाइडिंग पर कुछ समय के लिए प्रतिबंध लगाया गया है। पुलिस प्रशासन ने मैच तथा दशहरा पर्व की सुरक्षा को लेकर इस संबंध में पैराग्लाइडिंग एसोसिएशन को निर्देश जारी कर दिए हैं। उल्लेखनीय है कि कांगड़ा में धर्मशाला के इंद्रूनाग तथा बीड़-बीलिंग में पैराग्लाइडिंग साइट हैं। पुलिस प्रशासन द्वारा मैच की सुरक्षा को लेकर पुलिस द्वारा मंत्रणा की जा रही है।
इसी के चलते पुलिस अधिकारी स्टेडियम का भी दौरा कर रहे हैं। अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट स्टेडियम धर्मशाला में 16 अक्तूबर को भारत-न्यूजीलैंड क्रिकेट टीम के बीच वन-डे मैच खेला जाएगा। इस मैच के दौरान धर्मशाला पहुंचने वाले दर्शकों सहित क्रिकेट खिलाडिय़ों की सुरक्षा को लेकर भी पुलिस द्वारा प्लान तैयार किया जा रहा है।
बीसीसीआई में बदलाव को लेकर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान बीसीसीआई के वकील कपिल सिब्बल ने अपनी दलील में बीसीसीआई के अध्यक्ष अनुराग ठाकुर को क्रिकेटर बता डाला। इस पर चीफ जस्टिस ने भी मजाकिया लहजे में कहा कि मैं भी तो एक क्रिकेट मैच में सुप्रीम कोर्ट टीम का कप्तान था।
कोर्ट ने पूछा क्या बीसीसीआई प्रशासकों में कुछ खास कौशल है? अनुराग ठाकुर ने बोर्ड का अध्यक्ष बनने से पहले केवल एक रणजी मैच खेला है। इस दौरान बिहार बोर्ड के वकील ने कोर्ट को बताया कि अनुराग ठाकुर ने हिमाचल क्रिकेट एसोसिएशन की ओर से खुद को चुना था, जिससे वो नॉर्थ जोन जूनियर सेलेक्शन कमेटी के सदस्य बन सकें। इसे सुन कर जज सन्न रह गए।
इस मामले को समझने के लिए इकनॉमिक टाइम्स के एक आर्टिकल का हिंदी अनुवाद आपको पढ़ना होगा। इसमें पूरे मामले को समझाया गया है। इस आर्टिकल को हमने उस वक्त भी पोस्ट किया था, जब अनुराग ठाकुर बीसीसीआई के चीफ चुने गए थे। उस दौरान लिखी गई आर्टिकल की भूमिका को फेड कर दिया है। आर्टिकल का अनवाद उसके नीचे से शुरू है।
अनुराग ठाकुर BCCI के अध्यक्ष चुने गए हैं। उनके समर्थक खुश हैं और बधाइयां दे रहे हैं। प्रदेश में बहुत से बीजेपी कार्यकर्ताओं में भी खुशी की लहर है। अनुराग के छोटे भाई अरुण धूमल ने एक फेसबुक पोस्ट में बताया कि उनके भाई मेहनत से यह मुकाम हासिल किया है, बलिदान देकर और बिना पिता प्रेम कुमार धूमल से कोई फायदा लेकर। मगर ‘इन हिमाचल’ को प्रतिष्ठित अखबार ‘इकनॉमिक टाइम्स’ का 5 मार्च, 2014 का एक आर्टिकल हाथ लगा, जिसमें बताया गया है कि अनुराग ठाकुर ने किस तरह से HPCA पर कब्जा जमाए रखने के लिए दांव-पेच अपनाए। नीचे इकनॉमिक टाइम्स के उस आर्टिकल के अंशों का हिंदी अनुवाद दिया गया है। पाठक इन्हें पढ़कर खुद अवधारणा बनाने के लिए स्वतंत्र हैं।
’23 नवंबर, 2000. जम्मू में तवी नदी के किनारे का मौलाना आजाद मेमोरियल स्टेडियम। रणजी के 2000-2001 सीजन में हिमाचल प्रदेश का मुकबाला जम्मू-कश्मीर से था। यह हिमाचल का पांचवां मैच था। हिमाचल दो मैच हार चुका था और दो अन्य ड्रॉ हो चुके थे।
हिमाचल का एक खिलाड़ी अनुराग ठाकुर रणजी में अपना पहला मैच खेल रहा था। इस खिलाड़ी ने 7 मिनट क्रीज़ पर बिताए, 7 गेंदों का सामना किया और बिना कोई रन बनाए आउट हो गया। मगर इस खिलाड़ी का इस मैच में होना दो वजहों से सबका ध्यान खींच रहा था।
भारत के प्रतिष्ठित घरेलू फर्स्ट क्लास क्रिकेट टूर्नमेंट रणजी ट्रोफी के इतिहास में यह पहला मौका था, जब अपना पहला मैच खेल रहा खिलाड़ी उस टीम का कैप्टन भी बना था। यह भी इकलौता ऐसा मामला था, जिसमें स्टेट की सिलेक्शन कमिटी ने खुद इस खिलाड़ी को चुना था और कैप्टन बनाने के लिए भी उपयुक्त माना था।
इस शानदार एंट्री से दो महीने पहले ही ठाकुर को हिमाचल प्रदेश क्रिकेट असोसिएशन का प्रेजिडेंट बनाया गया था। इसका मतलब यह हुआ कि अब प्रेजिडेंट ही अपने राज्य की सिलेक्शन कमिटी का हेड था।
बीसीसीआई चीफ अनुराग ठाकुर।
एक पूर्व HPCA अधिकारी के मुताबिक अनुराग ने कभी सिलेक्शन के लिए ट्रायल नहीं दिया और न ही वह किसी इंटर डिस्ट्रिक्ट मैच में खेले। फिर भी उन्हें राज्य का कप्तान बना दिया गया। उस वक्त वह 25 साल के थे और उनके पिता प्रेम कुमार धूमल हिमाचल के मुख्यमंत्री थे। इस एक मैच की बदौलत अनुराग ठाकुर फर्स्ट क्लास खेलने वाले खिलाड़ी बन गए।
अगले साल, जब बीसीसीआई की मीटिंग में नैशनल सिलेक्टर नॉमिनेट करने के लिए हिमाचल की बारी आई, HPCA के प्रेजिडेंट अनुराग ठाकुर ने खुद को नॉमिनेट कर दिया। इस पद के लिए फर्स्ट क्लास क्रिकेट खेलना जरूरी होता है, जो कि अनुराग ठाकुर पिछले साल खेल चुके थे। भले ही उन्होंने एक भी रन नहीं बनाया हो (2 विकेट लिए थे), वह नैशनल जूनियर टीम के तीन साल के सिलेक्टर रहे। (बाद में बीसीसीआई ने सिलेक्टर बनने के लिए 25 रणनी मैच खेलना जरूरी कर दिया)।
ठाकुर ने ‘इकनॉमिक टाइम्स’ को बताया कि उस मैच में वह इसलिए खेले क्योंकि टीम का मनोबल टूटा हुआ था और वह उसका ऐटीट्यूड बदलना चाहते थे। उन्होंने कहा कि सिलेक्टर्स ने ही उन्हें खेलने के लिए कहा था, क्योंकि मैं अंडर 19 और अंडर 16 में अच्छा खेल चुका था।
‘अपने फायदे के लिए बदला HPCA का संविधान’
2000 में HPCA संभालने के बाद ठाकुर ने इस संस्था के संविधान में बड़ा बदलाव कर दिया। अब तक 12 डिस्ट्रिक्ट क्रिकेट असोसिएशन के प्रेजिडेंट और सेक्रेटरीज़ के पास सोसायटी में वोटिंग राइट्स थे। इसका मतलब हुआ कि 5 साल में एक बार 24 सदस्य (साथ में एग्जिक्यूटिव कमिटी के आउटगोइंग मेंबर्स) ही प्रेजिडेंट और नई एग्जिक्यूटिव कमिटी का चयन करते थे। मगर ठाकुर ने HPCA में वोट देने वालों का विस्तार किया और 25 लाइफ मेंबर्स बनाकर उन्हें वोटिंग राइट दे दिया। इनकी नियुक्ति प्रेजिडेंट की सहमति से होनी तय की गई और प्रेजिडेंट ही एग्जिक्यूटिव कमिटी को भी नॉमिनेट कर सकता था।
इसका मतलब यह हुआ कि अगर सभी जिले (24) अनुराग ठाकुर का विरोध करते, तब भी अनुराग ठाकुर द्वारा मनोनीत किए गए सदस्य (25) उन्हें दोबारा प्रेजिडेंट चुन सकते थे। 2001 में HPCA ने अपना संविधान बदल दिया। ठाकुर ने ET को बताया कि यह फैसला सदस्यों द्वारा एकमत से निर्विरोध लिया गया था। यह इसलिए लिया गया था, क्योंकि असोसिएशन को पैसे चाहिए थे। उन्होंने कहा, ‘लाइफ मेंबर्स पर हर सोसायटी की तरह आखिरी फैसला प्रेजिडेंट ने लिया।’
‘पिता प्रेम कुमार धूमल से ऐसे लिया फायदा’
अनुराग ने अपने पिता और हिमाचल के उस वक्त के मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल को HPCA का चीफ पैटरन बना दिया और वोटिंग राइट्स भी दे दिए। जांच में शामिल एक शख्स के मुताबिक 2002 में धूमल सरकार ने HPCA को एक रुपये प्रति माह की दर पर 50,000 स्क्वेयर फीट जमीन 99 साल की लीज़ पर दे दी। पूर्व मुख्यमंत्री पर आरोप यह भी लगा था कि उन्होंने इस जमीन अलॉट करने के लिए जो कैबिनेट नोट पेश किया था, उसमें यह नहीं बताया था कि उनके पास सोसायटी में वोट करने का भी अधिकार था या उनका बेटा HPCA का प्रेजिडेंट है।
धूमल ने ईटी को बताया कि ऐसा करने की जरूरत ही नहीं थी। उन्होंने कहा, ‘जब कोई राज्य का मुख्यमंत्री है, कई सारी सोसाइटीज़ उसे सदस्यता ऑफर करती हैं। मैंने कोई पैट्रनशिप स्वीकार नहीं की और न ही मीटिंग में शामिल हुआ। हर कोई जानता था कि अनुराग प्रेजिडेंट है। यह छिपी हुई बात नहीं थी। फिर इसका ब्योरा क्यों देना था? जमीन उसके अपने इस्तेमाल के लिए नहीं थी। वह एक असोसिएशन का प्रेजिडेंट था और जमीन लोगों की भलाई के लिए उस असोसिएशन के इस्तेमाल के लिए थी। अगर कुछ गलत था तो कांग्रेस सरकार को 2003 से 2007 के बीच सत्ता में रहते हुए इस पर ऐक्शन लेना चाहिए था।’
जब कांग्रेस सरकार ने पेश किया था स्पोर्ट्स ऐक्ट
2005 में कांग्रेस सरकार ने स्पोर्ट्स ऐक्ट पेश किया। इसमें कहा गया कि जिन स्पोर्ट्स असोसिएशन के नाम में ‘हिमाचल’ लगा है, उन्हें सिर्फ उस एसोसिएशन के जिलों के प्रतिनिधियों को वोटर राइट्स देने होंगे। मगर हिमाचल हाई कोर्ट ने इस कानून पर स्टे लगा दिया। 2008 में बीजेपी सरकार सत्ता में आई और इस कानून को रद्द कर दिया गया। धूमल ने कहा कि कांग्रेस सरकार ने ही इस ऐक्ट को रद्द करने की प्रक्रिया शुरू कर दी थी और इस बारे में कैबिनेट नोट पेश किया गया था। मगर वीरभद्र सिंह का कहना है कि 2007 में स्पोर्ट्स डायरेक्टर ने ऐसा प्रस्ताव तो पेश किया था, मगर कैबिनेट में ऐसा कोई फैसला नहीं लिया गया था।
‘जब बनाई गईं दो-दो HPCA’
2005 में यह साफ हो गया कि कांग्रेस सरकार HPCA पर अनुराग ठाकुर का एकाधिकार खत्म करना चाहती थी। उसी साल कानपुर में एक कंपनी बनाई गई, जिसका नाम था- हिमालयन प्लेयर्स क्रिकेट असोसिएशन। इस कंपनी के पहले डायरेक्टर अनुराग ठाकुर थे और 6 अन्य सदस्य हिमाचल में HPCA के नाम से बनाई गई सोसायटी के थे। दो महीने बाद कानपुर की कंपनी ने अपना नाम बदलकर हिमाचल प्रदेश क्रिकेट असोसिएशन रख लिया। यह सेक्शन 25 कंपनी थी, जो नॉन प्रॉफिट थी और अपने शेयर होल्डर्स को डिविडेंट नहीं दे सकती थी। अनुराग ठाकुर के मुताबिक यह कदम इसलिए उठाया गया था, क्योंकि हिमाचल सरकार स्पोर्ट्स ऐक्ट के जरिए HPCA पर अधिकार जमाना चाहती थी। इसलिए बीसीसीआई के अप्रूवल के बाद ही इसे केस्खन 25 में बदलने का फैसला लिया गया था।
‘सरकार से मिली संपत्ति प्राइवेट कंपनी को ट्रांसफर’
2012 में राज्य में विधानसभा चुनाव होने के तुरंत बाद HPCA ने रजिस्ट्रार ऑफ सोसायटी को लिखा और कहा कि हमने इसी नाम की सेक्शन 25 कंपनी में विलय कर लिया है और सोसायटी को भंग कर दिया गया है। इस बीच 2010 में HPCA नाम की कंपनी ने अपना रजिस्टर्ड ऑफिस हिमाचल प्रदेश में शिफ्ट कर दिया था। 2011 से हिमाचल प्रदेश क्रिकेट असोसिएशन नाम एक कंपनी और एक सोसायटी, दोनों ही एक रजिस्टर्ड ऑफिस पर चल रही थीं। दोनों के मुखिया अनुराग ठाकुर थे। इसका मतलब हुआ कि उनके पिता की सरकार ने HPCA सोसायटी को जो संपत्ति अलॉट की थी, अब वह एक प्राइवेट कंपनी के पास थी, जिसके डायरेक्टर अनुराग ठाकुर थे।
अनुराग के छोटे भाई अरुण।
छोटे भाई अरुण को भी बनाया HPCA का मेंबर
अनुराग के भाई अरुण धूमल भी HPCA के सदस्य थे, उन्हें 2012 में इसका डायरेक्टर बनाया गया। सोसायटी राज्यों द्वारा तय किए गए कानूनों के आधार पर चलती हैं, मगर कंपनी पर राज्यों के ज्यादा अधिकार नहीं होते। इससे HPCA थोड़ी राजनीतिक खींचतान से सुरक्षित हो गई। मगर हिमाचल के रजिस्ट्रार ऑफ सोसायटी ने कोर्ट का रुख किया और कहा कि सोसायटी को राज्य सरकार से जो संपत्तिया मिली हैं, उसे वह राज्य की अनुमति के बिना किसी निजी कंपनी को नहीं बेच सकती। इसी मामले में राज्य सरकार ने लीज़ कैंसल की और रातोरात HPCA के परिसर पर कब्जा कर लिया। बाद मे अनुराग ने कोर्ट का रुख किया और इस पर स्टे लग गया।
इस मामले पर अनुराग ने कहा, ‘हमने सोसायटी के रजिस्ट्रार को कन्वर्जन के बारे में बताया था।’ धूमल ने कहा कि मेरे और मेरे बेटे के खिलाफ उठाए गए सारे कदम राजनीतिक दुर्भावना से प्रेरित है। कांग्रेस गले तक करप्शन में डूबी हुई है। कुछ भी गैरकानूनी नहीं किया गया।’
(नोट: इस आर्टिकल में एक भी बात अपनी तरफ से नहीं लिखी गई है। यह इकनॉमिक टाइम्स के लेख का हिंदी अनुवाद है। इस बात को ऊपर के लिंक से वेरिफाई किया जा सकता है। इन हिमाचल इसके कॉन्टेंट के लिए जिम्मेदार नहीं है।)
प्रदेश में सर्दी की आहट के बीच चुनावी सरगर्मियों का दौर भी शुरू हो गया है। प्रदेश के दोनों प्रमुख राजनीतिक दल तैयारी में जुट गए हैं। कांग्रेस में सभी नेता लगभग यह मान चुके हैं कि वीरभद्र सिंह को अभी भी पार्टी के अंदर से कोई चुनौती नहीं है। सीबीआई और ईडी के मामले भी लंबी कोर्ट प्रक्रिया का हिस्सा होकर लोगों के रुझान और जिज्ञासा को खत्म कर रहे हैं। वीरभद्र चाहते हैं कि किसी भी तरह सातवीं बार सत्ता पर कब्जा किया जाए। इस इच्छा के कारण वह संगठन की कमान अपने हाथ में लेना चाहते हैं। सार्वजनिक मंचों से वीरभद्र के सुक्खू के ऊपर सचिवों की आड़ से किए गए हमले इस बात को और पुख्ता करते हैं।
धूमल की राह चल पड़े हैं वीरभद्र?
पिछले चुनाव में जिस रास्ते और मानिसकता के साथ पूर्व मुख्यमंत्री धूमल चले थे, वीरभद्र भी उसी राह पर चल पड़े हैं। धूमल भी मिशन रिपीट तो चाहते थे, परंतु अपने विरोधियों को विधानसभा के अंदर नहीं देखना चाहते थे। इसलिए जहां-जहां शांता समर्थक टिकट पा गए, वहां-वहां कांगड़ा में धूमल समर्थक बागी हो गए। नतीजा सबके सामने रहा- बिना कांगड़ा किले को भेदे भाजपा सत्ता से दूर हो गई। वीरभद्र भी चाहते हैं सरकार बने, पर उनके विरोधियों का वजूद न रहे। इसी कड़ी में अपने सबसे ताकतवर प्रतिद्वंद्वी परिवहन मंत्री जीएस बाली के खिलाफ जो घेरेबंदी ओबीसी के नाम पर की गई, वह किसी रणनीति का हिस्सा जान पड़ती है।
बाली पर भारती के हमले भी चर्चा में रहे।
नीरज भारती ने कांगड़ा में बाली पर जो हमले किए, वे उसी रणनीति का हिस्सा जान पड़ते हैं। प्रदेश की राजनीति में यह हमले चर्चा का केंद्र रहे, मगर लोगों को हैरानी इस बात की हुई कि बेबाक और तुरंत रिऐक्ट करने वाले परिवहन मंत्री इस मामले में कुछ नहीं बोले। इस कारण ज्यादा सुर्खियां मीडिया के हिस्से में भी नहीं आईं।
इस बार प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष सुक्खू को अलग-थलग करने के लिए मुख्यमंत्री के बेटे के नेतृत्व वाले युवा संगठन ने मोर्चा संभाला। मगर कहीं न कहीं वरिष्ठ नेता राम लाल ठाकुर, सुधीर शर्मा, बाली और स्टोक्स आदि भांप गए हैं कि आपस में लड़े तो खत्म हैं। वैसे भी देश में जिस तरह से कांग्रेस का सूपड़ा साफ हो रहा है, उस हिसाब से तो ऐसी लड़ाई वजूद ही खत्म कर देगी। इस चक्कर में डैमेज कंट्रोल शुरू हुआ और वीरभद्र व सुक्खू की मीटिंग के साथ सीजफायर हो गया।
सुक्खू ने कांग्रेस संगठन पर पकड़ बनाई हुई है।
भाजपा की बात करें तो मोदी शाह मॉडल के ढर्रे पर चली यह पार्टी अंदर से जितनी कुलबुला रही हो, बाहर से संगठित दिख रही है। हालांकि एम्स को लेकर अनुराग ठाकुर का नड्डा को लिखा लेटर उनकी आंतरिक हसरतों की झलक देता है। यह बताता है कि बड़े नेताओं के बीच कितनी संवादहीनता भाजपा में है। अनुराग एम्स के लिए नड्डा को लेटर लिख रहे हैं, उनसे मिल नहीं रहे हैं। ऐसी भी सुगबुगाहट है कि इस पत्र के माध्यम से अनुराग दिखाना चाहते थे कि एम्स को लेकर केंद्रीय मंत्री नड्डा से ज्यादा संवेदनशील मैं हूं।
अनुराग ठाकुर की नड्डा को लिखी चिट्ठी चर्चा में है।
नड्डा इस पत्र का क्या जबाब देते हैं या नहीं देते हैं, यह आने वाला समय ही बताएगा। फिलहाल बीजेपी समर्थक भी असमंजस में हैं कि आने वाले चुनाव में उनका नेता कौन होगा। न धूमल यह बता पा रहे हैं कि वह नेता हैं, न नड्डा यह जता रहे हैं कि वह आ रहे हैं। सोचने समझने का वक़्त सत्ती और पवन राणा की जोड़ी भी किसी को नहीं दे रही है।
नड्डा और धूमल को लेकर बीजेपी कार्यकर्ता असमंजस में हैं।
अभ्यास वर्ग पर अभ्यास वर्ग से कार्यकर्तायों को पवन राणा और सत्ती ने इस बार व्यस्त रखा है। वर्षों से प्रदेश में कांग्रेस के पर्याय वीरभद्र सिंह और भाजपा के धूमल रहे हैं। मगर इस बार हालात अलग है। कांग्रेस मतलब वीरभद्र भी नहीं कही जा सकती, क्योंकि सुक्खू संगठन में पकड़ बनाकर समानांतर उपस्थिति बनाए हुए हैं। दूसरी तरफ बीजेपी में भी धूमल के बजाय संगठन सर्वमान्य चल रहा है।
(लेखक हिमाचल प्रदेश से जुड़े विभिन्न मसलों पर लिखते रहते हैं। इन दिनों इन हिमाचल के लिए नियमित लेखन कर रहे हैं।)
सोलन।। हिमाचल प्रदेश के सोलन जिले में सामने आए स्कूल के टैंक में जहर मिलाने के मामले में अभी तक पुलिस को कामयाबी नहीं मिली है। बच्चों ने पानी से तेज गंध आने पर पानी नहीं पिया, वरना अप्रिय घटना हो सकती थी। यह जहर उस टंकी में मिलाया गया था, जहां से बच्चे मिडडे मील खाने के बाद पानी पीते थे। इस घटनाक्रम से आईपीएच विभाग की पोल भी खुलती है, क्योंकि यही जहर गांव के पेयजल टैंक में भी मिलाया गया था।
तस्वीर: amarujala.com
बुधवार को स्कूल का दौरा करने आई राज्य बाल अधिकार संरक्षण आयोग की चेयरपर्सन किरण धांटा उस वक्त हैरान रह गईं, जबक पानी की टंकी को अब भी ढका नहीं गया था और न ही इसपर ताला लगाया गया था। इस मौके पर उनके साथ 3 और सदस्य व शिक्षा विभाग के डेप्युटी डायरेक्टर भी मौजूद थे। डीएसपी व अन्य आलाअधिकारी भी इस दौरान मौजूद रहे।
कक्कड़हट्टी मिडल स्कूल और गांव के पेयजल टैंक में सोमवार को अज्ञात शरारती तत्वों ने जहर मिला दिया था। बच्चे जब पानी पीने लगे तो उन्हें तेज गंध आई। पानी का रंग भी दूधिया हो गया था। इसकी जानकारी उन्होंने हेडमास्टर को दी और उन्होंने आईपीएच को सूचित किया। जांच में पता चला कि इसमें Nuvan नाम का कीटनाशी डाला गया था। यही जहर पास के ही पानी के टैंक में भी पाया गया। इस स्कूल में करीब 300 छात्र पढ़ते हैं और खुले टैंक से जिस गांव को सप्लाई जाती है, वहां भी करीब 300 लोग रहते हैं। अगर बच्चों को पता नहीं चलता को बड़े पैमाने पर अप्रिय घटना घट सकती थी।
तस्वीर: amarujala.com
आपीएछ विभाग की शिकायत पर पुलिस पोस्ट सुबाथू में अज्ञात शरारती तत्वों के खिलाफ केस दर्ज किया गया है। लोग अभी भी दहशत में हैं क्योंकि टैंक खुले हुए हैं। गौरतलब है कि शिमला में युग हत्याकांड के बाद आईपीएच पूरे प्रदेश में पानी के टैंकों को ढकने और तालाबंद करने की व्यवस्था करने की बात कही थी। मगर अभी तक ऐसा कुछ होता नहीं दिख रहा है। गौरतलब है कि हत्यारों ने युग को जिंदा ही पानी के टैंक में डाल दिया था और कई महीनों बाद उसका कंकाल बरामद हुआ था।