बिना इजाजत मीडिया को जारी नहीं की जा सकेंगी सीएम की तस्वीरें

शिमला।। हिमाचल प्रदेश सरकार का कोई भी विभाग अब सूचना एवं जन संपर्क विभाग के निदेशक की मंजूरी के बिना मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू की तस्वीरें मीडिया को जारी नहीं कर पाएगा।

यह बैन मुख्यमंत्री की विभागीय बैठकों, आधिकारिक कार्यक्रमों और जनसभाओं पर लागू होगा।

सचिवों और विभागाध्यक्षों को भेजे पत्र में कहा गया है कि यह संज्ञान में आया है कि मुख्यमंत्री की तस्वीरें बिना इजाजत लिए मीडिया को जारी की जा रही हैं।

‘कुछ मामलों में इन तस्वीरों में अनुचित भंगिमाएं होती हैं और इससे मुख्यमंत्री की छवि को नुकसान पहुंच सकता है।’

‘अनियंत्रित ढंग से मुख्यमंत्री की तस्वीरें बांटे जाने से कई तरह के नतीजे देखने को मिल सकते हैं जिससे मुख्यमंत्री और सरकार तक की छवि पर असर पड़ सकता है।’

समोसे में था ‘बैंडवैगन इफ़ेक्ट’ और साथ थी ‘रीसेंसी बायस’ की चटनी

आई.एस. ठाकुर।। हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू से जब बीते दिन आज तक की पत्रकार ने समोसे को लेकर हुए हंगामे के बारे में पूछा तो वह असहज होकर हंसते दिखे और बोले- मैं तो समोसे खाता ही नहीं। उनके मीडिया सलाहकार भी हैरान-परेशान दिखे। उन्होंने शिमला में मीडिया से कहा- दुख की बात है मुझे इस विषय पर सफाई देनी पड़ रही है। हैरानी और हताशा के ऐसे ही भाव डीजीपी सीआईडी के चेहरे पर भी दिखे, जब वह मीडिया से मुख़ातिब हो रहे थे।

दूसरी ओर हिमाचल प्रदेश से लेकर देशभर में समोसा सोशल मीडिया से लेकर मीडिया पर छाया हुआ था। हिमाचल के लोगों ने इस मामले में तरह-तरह की चुटीली टिप्पणियां की। उन्होंने कार्टून, चुटकुले, पुराने वीडियो, मीम्स और खुद की समोसे खाते हुए फोटो और वीडियो शेयर किए। बीजेपी के कुछ नेताओं ने इस मामले को गंभीर बताते हुए सुक्खू सरकार की आलोचना की तो  नेता प्रतिपक्ष जयराम ठाकुर समेत कुछ नेता चटखारे लेते हुए समोसे खाते दिखे।

ये एक वायरल ट्रेंड बन  गया  और एक वक्त को एक्स (जो पहले ट्विटर था) पर इंडिया में दूसरे नंबर पर ट्रेंड कर रहा था। हिमाचल से बाहर भी बहुत से लोग इस ट्रेंड में शामिल तो थे, मगर उन्हें समझ नहीं आ रहा था कि आखिर इस मामले में हुआ क्या।

आइए, इसके कारण ढूंढने से पहले यह समझ लें कि वास्तव में मामला क्या था। सबसे पहले तो खबर आई कि हिमाचल पुलिस के सीआईडी विभाग ने जांच की है कि उनके जिस कार्यक्रम में सीएम आए थे, उस दिन एक होटल से समोसे और केक मंगवाए थे, मगर वे सीएम समेत अन्य वीआईपीज़ को परोसे नहीं जा सके। ऐसा क्यों हुआ, इसका पता लगाते हुए जब एक अधिकारी ने रिपोर्ट सौंपी तो उस पर वरिष्ठ अधिकारी ने लिखा था- कर्मचारियों की यह लापरवाही सीआईडी और सरकार विरोधी है।

दरअसल, कन्फ्यूजन के कारण वे समोसे सीएम और वीआईपीज़ के अलावा कर्मचारियों को ही खाने के लिए परोस दिए गए थे। जाहिर है, एन मौके पर  मेहमानों को चीज न परोसे जाने पर थोड़ी असहजता हुई होगी आयोजकों को। ऐसे में विभाग को अपने स्तर पर जांच करनी थी कि ऐसी लापरवाही कैसी हुई। जांच उसी की हुई मगर उसपर वरिष्ठ अधिकारी की लिखित टिप्पणी पर प्रश्न उठे कि आखिर समोसे ही तो गायब हुए थे, हो गई लापरवाही, तो इसमें सरकार विरोधी काम कैसा?

शुरुआती खबरें इसी पर थीं और इसी बीच सोशल मीडिया पर जांच वाला पेपर और उस पर अधिकारी की पेन से लिखी टिप्पणी की तस्वीरें वायरल होने लगीं। सोशल मीडिया पर यह संदेश चला गया कि ‘सीएम सुक्खू को समोसे नहीं मिले तो सीआईडी की जांच हो गई।’ जबकि ऐसी ही जांच अगर शिक्षा विभाग अपने कार्यक्रम में हुई चूक पर करता तो शायद इतना हंगामा न होता। लोगों की नजर में यहां मामला था- सीआईजी जैसे संवेदनशील और महत्वपूर्ण महकमे का समोसों की जांच करना, क्योंकि अमूमन सीआईडी को संगीन मामलों की ही जांच सौंपी जाती है।

तो इस कारण लोगों में हैरानी पैदा हो गई कि क्या सीआईडी और सरकार के पास इतनी फुरसत है कि वह बाकी काम छोड़ यह जांच कर रही है सीएम को समोसे क्यों नहीं मिल पाए। यहीं से मामला उठा और फिर नैशनल मीडिया में छा गया।  सरकार हड़बड़ा गई। हर कोई सफाई देने लगा और यहां तक कि डीजीपी सीआईडी तक को मीडिया के सामने ला दिया गया, जो कि एक गैरजरूरी कदम था। इतने में ‘समोसे की सीआईडी जांच’, ‘सीएम के समोसे किसने खाए’, ‘सीएम सुक्खू के समोसों की सीआईडी जांच’.. ऐसी पंक्तियां सोशल मीडिया पर वायरल होने लगीं।

अनुप्रास अलंकार
आप ध्यान देंगे कि कुछ समाचार चैनलों ने भी ऊपर लिखी पंक्तियों को इस्तेमाल किया था। इनमें अनुप्रास अलंकार था। जब एक ही ध्वनि से शुरू होने वाले दो या दो से ज़्यादा शब्दों का बार-बार इस्तेमाल किया जाता है तो उसे अनुप्रास अलंकार कहा जाता है। इसमें वह ध्वनि है – स। तो इस तरह के अनुप्रास वाले वाक्य ज़हन और ज़बान, दोनों में आसानी से चढ़ जाते हैं।

Collective Resonance
लेकिन इतना ही नहीं, इसी के साथ कुछ और मनोवैज्ञानिक घटनाक्रम भी साथ जुड़ते गए। ये सभी घटनाक्रम करीब-करीब एक जैसे हैं और इनका संबंध इस बात से है कि कुछ घटनाओं पर बहुत सारे लोगों की प्रतिक्रिया क्या रहती है। जैसे कि Collective Resonance. कलेक्टिव रेज़ोनेंस उसे कहा जाता है, जब लोग किसी ऐसी घटना या नैरेटिव से जुड़ाव महसूस करते हैं, जैसी घटनाएं पहले भी हो चुकी हों।  उन्हें वो जानी-पहचानी लगती है और उससे जुुड़ने पर उन्हें संतोष महसूस होता है। फिर वो घटना के हिसाब से हंसने, ट्रोलिंग करने या फिर आलोचना करने लगते हैं।  इसमें बहुत मजा आता है।

Bandwagon Effect
इसी तरह जब बहुत से लोग ऐसे मामलों में देखादेखी में कूद पड़ते हैं, जिसका पिछली घटना से संबंध हो या नहीं, तो उसे Bandwagon Effect यानी बैंडवैगन इफ़ेक्ट  कहा जाता है। जैसा दूसरे कर रहे होते हैं, बाकी भी वैसा करने लगते हैं। ये ऐसा सामूहिक व्यवहार होता है जिसमें लोग अपने कमेंट्स या मीम्स आदि की बाढ़ ले आते हैं। ऐसा ही तो समोसे के मामले में हुआ।

Recency Bias
और कई बार इसी से जुड़ी होती है-  रीसेंसी बायस (Recency Bias) जिसे Collective Memory  (कलेक्टिव मेमरी) भी कहा जाता है। इसमें लोगों के जहन में सरकार आदि को लेकर जो नाराजगी होती है, वो उनके जहन में बनी रहती है। फिर कोई ताजा घटना हो जाए, भले ही उसका संबंध सरकार से न हो, लोगों को पुरानी फ्रस्ट्रेशन याद आती है और फिर  वो एकसाथ गुबार के रूप में बाहर निकलती है।

इन सभी कारणों को मिला दें, तो समझ आता है कि क्यों लोग इस तरह से आलोचना करने लगते हैं या फिर ट्रोल या मज़े लेने लगते हैं। तो इस बार हिमाचल में कांग्रेस सरकार के साथ यही हुआ। भले ही सरकार का और सीएम का सीआईडी के वायरल जांच पत्र मामले में सीधा कोई संबंध नहीं था, मगर सरकार को ही लोगों का गुस्सा और निशाना झेलना पड़ा। मगर इसका कारण यह नहीं है कि यह पूरा हंगामा अकारण था। सरकार को समझना होगा कि समोसे में बैंडवैगन इफ़ेक्ट और रीसेंसी बायस आए कहां से।

लोगों की नाराजगी को समझे सरकार
ऐसा इसलिए हुआ, क्योंकि सरकार को भले ही अहसास न हो, वह लोगों की नाराजगी के केंद्र में रही है और उसके फैसले जनता के बड़े वर्ग को रास नहीं आ रहे हैं। विभिन्न मीडिया चैनल्स के सोशल मीडिया हैंडल्स पर सरकार से जुड़ी खबरों या नेताओं के बयानों पर आ रहे कमेंट्स से इसका पता चलता है कि लोगों में कई बातों को लेकर फ्रस्ट्रेशन है। जैसे कि सरकार ने खुद ही दी गई गारंटियों को अब तक पूरा नहीं किया है। और लोग इस बात से और चिढ़े होते हैं कि मुख्यमंत्री जगह-जगह जाकर दावा कर रहे हैं कि उन्होंने गारंटियां पूरी कर दी हैं।  जबकि हकीकत में वो पूरी तरह से पूरी नहीं हुई हैं। ओपीएस को छोड़ दें तो बाकियों का या तो स्वरूप बदल दिया गया है या फिर उन्हें लागू करने की शुरुआत भर हुई है।

ऊपर से लोगों के मन में गुस्सा इस बात से और बढ़ता है कि वादों को पूरा करने के बजाय मुख्यमंत्री से लेकर मंत्री और कांग्रेस के नेता ये दावे करते हैं कि गारंटियों को पूरा किया जा रहा है। जैसे कि आज ही में सीएम ने महाराष्ट्र में 1500 रुपये देने को लेकर कहा। चुनाव से पहले नेता कहते थे हर महिला को मिलेंगे, लेकिन अब इसमें शर्तें डाल दी गई हैं और उसमें भी कहां किसे मिले, इसे लेकर पारदर्शिता नहीं है।

जल्दबाजी में दिए गए बयान भी अविश्वास पैदा करते हैं। जैसे कि मुख्यमंत्री ने एक बार एलान कर दिया था कि एक महीने में सभी पेंडिंग परिणाम निकाल देंगे। ऐसा हुआ नहीं तो युवाओं में और हताशा बढ़ी। खुद उम्मीद जगाकर तोड़ने से ऐसा होना स्वाभाविक है। इसी तरह बीते साल मंत्री हर्षवर्धन ने कहा था कि अस्थायी टीचर रखे जाएंगे। हंगामा हुआ तो सीएम ने कहा कि नहीं, ऐसा नहीं होगा, ये अफवाह है। लेकिन वीडियो तो उपलब्ध थे। और अब फिर अस्थायी टीचर रखे जा रहे हैं। तो जनता सब देखती है और नाराज होती है।

युवाओं में नौकरियों को लेकर गुस्सा है। कहां तो चुनाव से पहले दावा और गारंटी थी एक लाख सरकारी नौकरियां देंगे। वादा था कि आउटसोर्स पर नौकरियां और अस्थायी नौकरियां बंद होंगी, मगर वही दी जा रही हैं। पक्की नौकरियां कम निकल रही हैं। फिर एक मंत्री के परिवार के सदस्य की नौकरी लगी तो नाराज़गी बढ़ गई। भले ही वह नौकरी काबिलियत से लगी हो, लेकिन रीसेंसी बायस ने लोगों के जहन में गुस्सा भरा हुआ है।

इसी तरह लोगों में इस बात को लेकर भी गुस्सा है कि एक ओर तो मुख्यमंत्री समेत कांग्रेस नेता हमेशा कर्मचारियों के स्वाभिमान और उनके बुढ़ापे की बात करते हुए ओपीएस देने का बखान करते हैं, जबकि बाकी वर्गों को भूल जाते हैं।  हिमकेयर का दायरा सीमित होने, सहारा योजना की पेमेंट न मिलने आदि को समाज कल्याण की योजनाओं पर कैंची चलने के तौर पर देखा जा रहा है। इनकी क्षतिपूर्ति सुखाश्रय योजना जैसी अच्छी पहलों से भी नहीं की जा सकती।

रही कसर तब पूरी हो जाती है, जब बीच-बीच में अधिकारी ऐसी नोटिफिकेशन्स निकालते हैं, जिनसे भ्रम पैदा होता है। भले ही वे विभागीय तौर पर एकदम सही हों, लेकिन जब उनका सीमित हिस्सा मीडिया में आता है तो हंगामा होता है। जैसा हाल ही में एचआरटीसी में मालभाड़े को लेकर हुआ था। टॉयलेट टैक्स वाला घटनाक्रम इसी की देन था। इसके अलावा भी असंख्य घटनाक्रम हैं, जो धीरे-धीरे गुबार जमा करते रहते हैं। समोसे वाले घटनाक्रम में भी यही हुआ है।

मीडिया मैनेजमेंट मतलब मीडियाकर्मियों को मैनेज करना नहीं
मीडिया में सरकार को लेकर प्रश्न उठें तो उसके लिए मीडिया को ही कोसने से या उनपर कार्रवाई करने से समस्या हल नहीं होती।  हिमाचल प्रदेश सरकार के सबसे बड़े वकील, एडवोकेट जनरल अनूप रत्तन अपने फेसबुक अकाउंट पर मीडिया को ‘समोसा मीडिया’ के नाम से संबोधित करते हुए लिखते हैं- मीडिया मैनेजमेंट का भ्रष्टाचार नहीं करेंगे।  मगर आपसे कौन कह रहे है कि मीडिया मैनेजमेंट का भ्रष्टाचार करिए?

मीडिया मैनेजमेंट का अर्थ मीडियाकर्मियों को मैनेज करना नहीं होता। बल्कि अपने आप को मैनेज करना होता है कि मीडिया तक क्या छवि, क्या बात, क्या संदेश पहुंचना है। यानी सरकार को अपना आचरण, अपने बयान, अपनी शैली सुधारनी है। वह मैनेज हो जाएगी तो मीडिया तक वही पहुंचेगा। मीडिया का काम कुछ का कुछ करना नहीं, बल्कि जो आप पेश कर रहे हैं, उसे आगे ले जाना है। इसीलिए वह मीडिया कहलाता है। साथ ही, सरकार को यह भी ध्यान रखना चाहिए कि वह अपने सोशल मीडिया हैंडल्स पर जो कुछ पोस्ट करती है, उसमें सावधानी बरते। अक्सर नेताओं के सोशल मीडिया पर उनके बयानों और फैसलों के वही  हिस्से पोस्ट होते हैं, जिनसे जनता चिढ़ चुकी है  या जो हकीकत से मेल नहीं खाते।

दोहराव नहीं, पारदर्शिता जरूरी
मुख्यमंत्री और मंत्रियों ने सरकार बनने से लेकर अब तक, जितनी भी बातें कही हैं, उनमें से अस्सी फीसदी बातों में दोहराव है। इन हिमाचल पर ही सरकार बनने के चंद समय बाद एक लेख प्रकाशित था, जिसमें कहा गया था कि व्यवस्था परिवर्तन नारे का दोहराव लोगों को उबाऊ लग सकता है। हुआ भी यही। हर रोज, तकरीबन हर मंच में या मीडिया के सामने आते ही मुख्यमंत्री डिफ़ेंसिव मोड में नजर आते हैं। मंत्रियों के बजाय मीडिया को ज्यादातर सामना उन्हीं को करना पड़ता है। और फिर आखिर में वह कहते हैं- ये सब हम व्यवस्था परिवर्तन के लिए कर रहे हैं। आम जनता की मजबूरी नहीं है कि वे रोज ही एक ही तरह की बात सुने।

इससे हुआ यह है कि जब कभी मुख्यमंत्री का वीडियो टाइमलाइन पर आता है तो उससे यह जिज्ञासा नहीं पैदा होती कि वह कुछ नया कह रहे होंगे। लगता है कि या तो वह किसी बात का गोल-मोल जवाब दे रहे होंगे या फिर किसी मामले की सफाई दे रहे होंगे। इस छवि को बदलना है तो बदलाव खुद में लाना होगा।  सलाहकार रखने भर से कुछ नहीं होता, बल्कि जिम्मेदार सलाहकारों की बात माननी भी होती है।

आख़िर में, सुख की सरकार (अनुप्रास अलंकार) को यही सुझाव है कि वह वाकई सुख की सरकार (उपमा अलंकार के लिहाज से) बनना चाहती है, अगर उसे समोसे जैसे प्रकरणों से बचना है तो उसे अभी से गंभीर होना होगा। सरकार और नेताओं की कथनी-करनी में फर्क नहीं होना चाहिए। जो गलत है, कमी है, उसे स्वीकार कीजिए। कड़े फैसले लेने हैं तो लीजिए, मगर उन्हें किसी और तर्क का आवरण लेकर मत ढकिए।  जनता के साथ पारदर्शिता का रिश्ता रखिए। सीधे संवाद का अर्थ गांव में रुककर चले आना नहीं है। बल्कि दूर से भी कही गई बात सीधी और सादगी भरी हो, यह जरूरी है।  कार्यकाल को तीन साल बचे हैं। प्रदेश के व्यवस्था परिवर्तन से पहले यह जरूरी है कि सरकार अपनी दो साल से बनी व्यवस्था में परिवर्तन लाए।

ये लेखक के निजी विचार हैं

(लेखक लंबे समय से हिमाचल प्रदेश से जुड़े विषयों पर लिख रहे हैं। )

हिमाचल प्रदेश कांग्रेस कमेटी को आलाकमान ने किया भंग, प्रतिभा सिंह बोलीं- मैं बनी रहूंगी अध्यक्ष

शिमला।। कांग्रेस आलाकमान ने हिमाचल प्रदेश कांग्रेस कमेटी को भंग करने का फैसला किया है। पीसीसी के साथ-साथ जिला और ब्लॉक स्तर की कमेटियों को भी भंग कर दिया गया है। इस बीच प्रतिभा सिंह ने कहा है कि वह पीसीसी चीफ बनी रहेंगी।

बुधवार शाम को कांग्रेस कांग्रेस महासचिव केसी वेणुगोपाल की ओर से जारी पत्र में बताया गया है कि कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने हिमाचल प्रदेश कांग्रेस कमेटी की पूरी प्रदेश इकाई, जिला व ब्लॉक इकाइयों को भंग करने को मंजूरी दी है।

इस बीच, इंडियन एक्सप्रेस के अनुसार, मंडी की पूर्व सांसद प्रतिभा सिंह ने बताया है कि वह कांग्रेस की प्रदेशाध्यक्ष बनी रहेंगी। हालांकि, इस बाबत केसी वेणुगोपाल की चिट्ठी में कोई जिक्र नहीं है।

मगर इंडियन एक्सप्रेस से प्रतिभा सिंह ने कहा, “मुझे हिमाचल प्रदेश कांग्रेस कमेटी की अध्यक्ष बने रहने के लिए कहा गया है। मैं लंबे समय से पीसीसी के साथ-साथ जिला और ब्लॉक स्तर की इकाइयों को भंग करने पर जोर डाल रही थी क्योंकि बहुत सारे लोगों को राज्य में हुए चुनाव के समय जगह दी गई थी। परिवर्तन हमेशा अच्छा ही होता है।”

चलाने के लिए प्राइवेट कंपनियों को दिए जाएंगे HPTDC के होटल और कैफ़े

शिमला।। हिमाचल प्रदेश पर्यटन विकास निगम (HPTDC) अपने कुछ होटलों और कैफ़े को प्राइवेट कंपनियों को सौंपने की तैैयारी में है। हालांकि, इन होटलों और कैफ़े का मालिकाना हक निगम का ही रहेगा।  ऐसा नहीं है कि सिर्फ़ घाटे में चल रहे होटलों आदि को ही सही से चलाने के लिए प्राइवेट प्लेयर्स को दिया जाएगा, बल्कि फायदे में चल रहे होटल और कैफ़े के संचालन का जिम्मा भी प्राइवेट कंपनियों को दिया जाएगा।

यह फैसला HPTDC के बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स की बैठक में लिया गया है। इसके तहत मुनाफे और घाटे वाली कुछ संपत्तियों को ऑपरेशन एंड मैनेजमेंट के लिए प्राइवेट प्लेयर्स को देना तय हुआ है।

इस समय HPTDC के पास प्रदेश में 60 के करीब होटल, रेस्ट्रॉन्ट और कैफ़े हैं। बताया जाता है कि इनमें 35 घाटे में हैं। यह तय हुआ है कि प्राइवेट प्लेयर्स को सौंपने के बावजूद इन होटलों आदि में HPTDC के कर्मचारियों की सेवाएं ली जाती रहेंगी।

हाल ही में हिमाचल सरकार ने पूर्व आईएएस अधिकारी तरुण श्रीधर को HPTDC की वित्तीय हालत सुधारने की जिम्मेदारी सौंपी थी। इसके लिए एक सदस्यीय कमेटी का गठन किया गया था। तरुण श्रीधर को एक निश्चित अवधि में सुझाव देकर बताना है कि कैसे एचपीटीडीसी की हालत बेहतर की जा सकती है।

पूर्व आईएएस अधिकारी तरुण श्रीधर

द ट्रिब्यून की खबर के अनुसार, तरुण श्रीधर ने हाल ही में कुछ होटलों और कैफ़े आदि का दौरा करके वहां के कर्मचारियों और संबंधित व्यक्तियों से फीडबैक लिया था, ताकि HPTDC को संकट के बाहर निकालने की योजना तैयार की जा सके।

इसके अलावा, होटलों में कमरों की बुुकिंग के लिए HPTDC ने एक प्राइवेट कंपनी से संपर्क किया है। साथ ही, अच्छी जगहों पर मौजूद होटलों पर मेहमानों की आमद बढ़ाने के लिए ट्रैवल एजेंट्स की मदद लेने की भी योजना है। बताया जा रहा है कि नए प्रयासों का मकसद यह है कि सरकारी होटल, रेस्ट्रॉन्ट और कैफ़े आदि को प्राइवेट सेक्टर की तरह बेहतर ढंग चलाया जा सके।

चिट्टा मामले के अभियुक्तों ने जमानत मिलते ही गवाह को धुना

ऊना।। हिमाचल प्रदेश के ऊना में चिट्टा रखने के आरोप में पकड़े गए दो युवाओं पर जमानत मिलते ही गवाही देने वाले शख़्स पर हमला करने के आरोप में मामला दर्ज हुआ है। गवाही देना वाला शख्स वॉर्ड पंच है और बीजेपी विधायक सतपात सिंह सत्ती का भतीजा है। उमंग ठाकुर नाम के इस शख्स का कहना है कि उसपर हमला करने वाले दोनों भाइयों ने गोली मारने की धमकी भी दी है।

पुलिस ने हाल ही में संदीप कुमार और विकास कुमार नाम के दो भाइयों को .77 ग्राम चिट्टा रखने के आरोप में गिरफ्तार किया था। उस समय गवाही के तौर पर वॉर्ड पंच उमंग ठाकुर के बयान कलमबंद किए गए थे। उमंग का कहना है कि इससे चिढ़े दोनों भाइयों ने सोमवार सुबह उनपर हमला कर दिया।

उमंग का आरोप है कि जिस समय वह अपनी गाड़ी में बैठकर कुछ सामान लाने गांव में गए थे, संदीप और विकास बाइक पर आए और गवाही देने को लेकर बहस करने लगे।  जैसे ही वह गाड़ी से उतरे, संदीप ने उन्हें धक्का दिया और विकास ने लात-घूंसे मारना शुरू कर दिया। आरोप है कि संदीप ने लाठी से भी हमला किया। शोर मचाने पर लोग जमा हुए तो दोनों बाइक पर सवार होकर वहां से चले गए।

उमंग का कहना है कि उन्हें मुंह और दांतों पर चोट लगी है। एसपी ऊना राकेश सिंह ने बताया कि इस बाबत शिकायत मिली है। उन्होंने कहा कि घायल वॉर्ड पंच का इलाज करवाया गया है और शिकायत के आधार पर दोनों अभियुक्तों के खिलाफ मामला दर्ज कर आगे की कार्रवाई की जा रही है।

रोहड़ू के ‘शाही महात्मा’ के बाद रामपुर के ‘राधे’ गिरोह पर पुलिस की नकेल

शिमला।। रोहड़ू में शाही महात्मा गैंग के बाद अब शिमला पुलिस ने रामपुर में दलीप कुमार उर्फ राधे गैंग का भंडाफोड़ करने का दावा किया है। पुलिस ने का कहना है कि अंतरराज्यीय चिट्टा तस्कर गिरोह ‘राधे गैंग’ की जड़ों औऱ संपर्कों के बारे में तफ़्तीश के दौरान कई चौंकाने वाली जानकारियां मिल रही हैं।

हिमाचल प्रदेश पुलिस का कहना है कि इस गिरोह का सरगना दलीप कुमार उर्फ राधे रामपुर के बेरोजगार युवाओं को अपने जाल में फंसाता था। पुलिस का दावा है कि वो इलाके के युवाओं को बद्दी में सिक्यॉरिटी गार्ड की नौकरी दिलाने का झांसा देकर अपने साथ ले जाता था और फिर बाद में उनसे नशीली चीज़ों की तस्करी करवाता था।

पुलिस का कहना है कि क़रीब दो दर्जन लोग इस गिरोह से जुड़े हैं। दलीप कुमार उर्फ राधे से पूछताछ के दौरान मिली जानकारी के आधार पर इस गिरोह से जुड़े सदस्यों को पकड़ने की कोशिश की जा रही है।

रामपुर में सक्रिय राधे गैंग बेरोजगार युवाओं को कंपनियों में नौकरी का झांसा देकर चिट्टा तस्करी करवाता था। मामले की गहनता से जांच की जा रही है और जल्द इसमें कई गिरफ्तारियां होंगी। नशा तस्करों पर पुलिस की कार्रवाई लगातार जारी है

रामपुर में सक्रिय राधे गैंग बेरोजगार युवाओं को कंपनियों में नौकरी का झांसा देकर चिट्टा तस्करी करवाता था। मामले की गहनता से जांच की जा रही है और जल्द इसमें कई गिरफ्तारियां होंगी। नशा तस्करों पर पुलिस की कार्रवाई लगातार जारी है

– संजीव कुमार गांधी, एसपी, शिमला

अमर उजाला की ख़बर के अनुसार, शिमला में नशे से जुड़े जितनी भी तस्कर पकड़े जाते हैं, उनमें ज्यादातर अन्य राज्यों से होते हैं। अब तक पकड़े गए 102 अंतरराज्यीय तस्करों में करीब 60 पंजाब से हैं। पुलिस ने दावा किया है कि यह गिरोह पंजाब से चिट्टा लाकर रामपुर और आसपास के इलाक़े में सप्लाई किया करता था। दलीप उर्फ राधे बद्दी में रहकर सबकुछ ऑपरेट करता था।

कैसे पता चला राधे का
पुलिस ने 18 अक्तूबर को गुप्त सूचना के आधार पर संदीप कुमार नाम के एक अभियुक्त को चरस के साथ दबोचा था। पुलिस ने जांच की तो पता चला कि यहां एक गिरोब लंबे समय से सक्रिय है। इसके बाद पुलिस ने जांच के आधार पर बद्दी से दलीप कुमार उर्फ राधे को पकड़ा।

अब पुलिस अभियुक्तों के बैंक खातों की भी जांच करेगी। पिछले दिनों पुलिस ने रोहड़ू में शाही महात्मा गैंग का भंडाफोड़ करने का भी दावा किया था, जिसपर इस इलाक़े में सालों से चिट्टे का कारोबार चलाने का आरोप। पुलिस का कहना है कि जांच जारी है और अभी और बहुत कुछ सामने आ सकता है।

हिमाचल में पहली बार पकड़ा गया हेरोइन से भी ज्यादा खतरनाक ड्रग- मेथ

मालिक को घसीट रहा था भालू, बैलों ने खूंटा तोड़ बोल दिया धावा

चंबा।। हिमाचल प्रदेश के चंबा जिले में भालू के हमले की चपेट में आए एक शख़्स के लिए उसके बैल जीवनरक्षक बनकर सामने आए। मामला जुम्हारधार का है, जहां भेड़पालक नूर जमाल पर एक भालू ने अचानक हमला कर दिया।

यह भालू नूल जमाल को घसीटकर घर से बाहर ला रहा था। अचानक बाहर बंधे दो बैलों ने खूंटा तोड़ा और वो भालू से भिड़ गए और उन्होंने सीटों से उठाकर भालू को जोर से पटक दिया। अचानक हुए इस हमले से घबराकर भालू वहां से नौ दो ग्यारह हो गया।

इस हमले में नूर जमाल को चेहरे और पीठ पर चोटें आई हैं और चंबा मेडिकल कॉलेज में उनका इलाज चल रहा है। अगर बैल खूंटा तोड़कर भालू को न भगाते तो मामला गंभीर भी हो सकता था। इस इलाक़े में भालुओं के जानलेवा हमले आम हैं।

नूल जमाल के पोते हासम ने कहा, “मैं और मेरे 75 सााल के दादा नूर जमाल शुक्रवार रात को कोठे (कच्चे मकान) में सो रहे थे। रात करीब साढ़े ग्यारह बजे भालू आया और उसने दादा पर हमला कर दिया। वह उन्हें घसीटकर बाहर ले जा रहा था। फिर बाहर बंधे बैलों ने खूंटा तोड़ा और पहले भालू सो सींगों से उठाकर पटका और फिर करीब 50 मीटर तक भगाया।”

Image: Amar Ujala.com

हासम कहते हैं कि अगर भालू को बैलों ने नहीं भगाया होता तो दादा की जान को खतरा हो सकता था। अगले दिन अन्य परिजन वहां पहुंचे और घायल नूर जमाल को चंबा मेडिकल कॉलेज ले गए। पल्यूर पंचायत के उप-प्रधान मोहम्मद हुसैन ने कहा कि बैलों ने वफादारी निभाते हुए मालिक की जान बचाई है। उन्होंने मांग की है कि घायल को वन विभाग की ओर से उचित मुआवजा मिलना चाहिए।

हिमाचल सरकार ने तरुण श्रीधर को सौंपी HPTDC की माली हालत सुधारने की जिम्मेदारी

शिमला।। हिमाचल प्रदेश सरकार ने रिटायर्ड आईएएस अधिकारी तरुण श्रीधर की अध्यक्षता में एक सदस्य वाली कमेटी का गठन किया है, जिसका काम हिमाचल प्रदेश पर्यटन विकास निगम (HPTDC) की वित्तीय स्थिति की समीक्षा करना होगा।

ये कमेटी या यूं कहें कि तरुण श्रीधर एचपीटीडीसी की आर्थिक व्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए सुझाव देंगे कि क्या कदम उठाए जाने चाहिए। खास बात यह है कि इस काम के लिए तरुण श्रीधर कोई भी पारिश्रमिक नहीं लेंगे। वह न तो को कोई मानदेय लेंगे और न ही बैठक में शिरकत करने पर मिलने वाली राशि लेंगे।

तरुण श्रीधर की अध्यक्षता में गठित इस कमेटी में एचपीटीडीसी के प्रबंध निदेशक सचिव के रूप में कार्य करेंगे। नियमों और शर्तों के मुताबिक एचपीटीडीसी को तरुण श्रीधर को उनकी जरूरत के आधार पर मदद मुहैया करवानी होगी। जैसे कि उनके काम करने की जगह, खाने, रहने और काम के लिए आने-जाने का इंतज़ाम करना शामिल है। इस कमेटी को करीब छह महीने में अपनी सिफारिशें सरकार को सौंपनी होगीं।

तरुण श्रीधर हिमाचल सरकार में विभिन्न पदों पर अपनी सेवाएं दे चुके हैं। डीसी मंडी रहते हुए वह काफी लोकप्रिय रहे थे। हिमाचल पथ परिवहन निगम के प्रबंध निदेशक भी रहे हैं। उस दौरान एचआरटीसी की आर्थिक हालत सुधारने की दिशा में उनका महत्वपूर्ण योगदान रहा था। उन्होंने बसों को नया रंग भी दिया था। वह प्रदेश और देश-दुनिया से जुड़े मसलों पर लेखन भी करते हैं।

एचआरटीसी ने दिवाली से पहले मालभाड़े में की कटौती, ये हैं नई दरें

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शिमला।। हिमाचल प्रदेश पथ परिवहन निगम (एचआरटीसी) ने दिवाली से पहले मालभाड़े में कटौती की है। हालांकि, इस संबंध में जारी अधिसूचना में सिर्फ एक क्लॉज़ में बदलाव कर दरें बदलने का जिक्र किया गया था, जिससे यह भ्रम फैल गया कि अब यात्रियों को अपने बैग, बैगेज या अन्य सामग्री पर भी शुल्क देना होगा।

इसके बाद एचआरटीसी की ओर से स्पष्टीकरण देकर बताया गया कि नई दरें सिर्फ अतिरिक्त कमर्शियल चीज़ों की ढुलाई के लिए है और यात्री पहले की तरह अपने साथ अधिकतम तीस किलो तक के व्यक्तिगत सामान या किसी भी आकार के बैग, बैगेज या बक्से निशुल्क ले जा सकते हैं।

जिन सामग्रियों को छूट मिली हुई है, उसके अतिरिक्त किसी बैग, बैगेज या बॉक्स  में ऑटोमोबाइल स्पेयर पार्ट, इलेक्ट्रॉनिक आइटम,  ड्राई फ्रूट, नए बर्तन, कॉस्मेटिक आइटम, होजरी आइटम, मेडिसन या मेडिकल उपकरण ले जाने की दरें बदली गई हैं। यात्रियों के साथ या बिना यात्री के इन चीज़ों को भेजने की नई दरें पहले की दरों के मुकाबले कम हैं और इस संबंध में स्पष्टीकरण जारी कर जानकारी दी गई है।

इस संबंध में आप नीचे एचआरटीसी की ओर से जारी स्पष्टीकरण देख सकते हैं।

संजीव शर्मा: कर्मचारी राजनीति में ‘व्यवस्था परिवर्तन’ करता कर्मचारी नेता

देवेंद्र।। सचिवालय कर्मचारी महासंघ के अध्यक्ष संजीव शर्मा ने कर्मचारियों की मांगें को लेकर सरकार पर हल्ला बोल कर सरकार की इस गलतफहमी को दूर कर दिया कि प्रदेश के कर्मचारी अपनी मांगों को लेकर मुखर नहीं होंगे। शायद लंबे अर्से बाद कोई ऐसा कर्मचारी नेता सामने आया जिसने प्रदेश के कर्मचारियों की दबी पीड़ा को जुबान दी। पिछले कई वर्षों से कर्मचारी व शिक्षकों के कई संगठन बने हुए हैं लेकिन सभी जानते हैं ये कर्मचारी नेता जिन शिक्षकों व कर्मचारियों के बलबूते संगठनों की बागडोर संभालते हैं अपनी स्वार्थ सिद्धि के लिए उनके हितों की बलि दे देते हैं। कोई इनसे समस्या उठाता है तो समाधान करने की बजाए उल्टा उन्हें हडका डरा कर चुप करा देते हैं। पिछले कुछेक समय में तो इतनी गंदी राजनीति हो गयी है कि यदि कोई सोशल मीडिया पर अपनी मांगों के बारे में लिख दे या आलोचना कर दे तो ये तरह-तरह के हथकंडे अपना कर उनपर दबाव बनाते हैं।

शिक्षक नेताओं का तो कहना ही क्या खुद निदेशालय, उप-निदेशक कार्यालय, या यहां-वहां डेपुटेशन लेकर खुद सत्ता का सुख भोगते हैं जबकि प्रदेश में सैंकड़ों शैक्षणिक संस्थानों में शिक्षकों के हजारों पद खाली हैं। लेकिन मजाल है ये शिक्षक नेता शिक्षकों की समस्याओं के बारे में आवाज़ उठाएं। सरकार ने आते ही ट्रांसफर के नाम पर clubbing नामक जिन्न से चुन-चुन कर शिक्षकों की ट्रांसफरे की, अच्छा होता सबकी की होती परंतु चहेतों की दो-तीन किलोमीटर के भीतर म्यूचुअल ट्रांसफर की और कईयों पर राजनीतिक टैग लगाकर उन्हें उठा दिया जबकि भूल गए इस सरकार को लाने में कर्मचारियों व शिक्षकों का कितना बड़ा हाथ था फिर भी शिक्षकों को clubbing के नाम पर निशाना बनाया गया। अच्छा होता सरकार सभी के लिए बदला नीति की बजाए तबादला नीति बनाती फिर कोई भी होता उसके साथ भेदभाव नहीं होना था।

बेरोजगार पिछले दो वर्षों से सरकार से नौकरियों की आस में टकटकी लगाए बैठे हैं। लेकिन उनके पास संजीव शर्मा जैसा कोई नुमाइंदा नहीं फिर भी जिस तरह संजीव शर्मा ने सरकार की कार्यप्रणाली की परत दर परत पोल खोली उससे उन्हें भी लगा कि कोई तो है बेरोजगारी का दर्द समझने वाला।
यह आक्रोश केवल सचिवालय कर्मचारियों का नहीं यह आक्रोश वह है जो हर कर्मचारी में कहीं न कहीं एक लावे के रूप में धधक रहा था पर डर के मारे ज्वालामुखी नहीं बन पा रहा था।
सचिवालय कर्मचारी महासंघ के अध्यक्ष संजीव शर्मा ने जिस बेबाकी और निडरता से इस आक्रोश को भांपा और कर्मचारियों के लिए न्याय की आवाज़ उठायी उसके लिए प्रदेश का हर कर्मचारी अंतर्मन से उनका अहसानमंद हो गया। उनकी कही बातें उनकी कोई निजी खुन्नस नहीं थी यह तो कर्मचारियों की आवाज़ व पीड़ा थी जिसे उनके चेहरे के रूप में एक मंच मिला। सबसे बड़ी बात शायद प्रदेश के इतिहास में पहली बार किसी कर्मचारी ने सरकार की फिजूलखर्ची की पोल खोलकर रख दी जबकि यह काम विपक्ष का था जिसमें विपक्ष नाकामयाब रहा, विपक्ष ने शायद एक ही मन बनाया होगा कि सत्र के दौरान वाक आऊट करके अपनी जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ लेंगे। पहले 26 जनवरी फिर 15 अप्रैल और अब 15 अगस्त को मंहगाई भत्ते की घोषणा न होने से कर्मचारी इतने आक्रोशित हो जाएंगे सरकार ने सपने में भी नहीं सोचा होगा।

कर्मचारियों की मुख्य मांग है मंहगाई भत्ता व पे कमीशन का एरियर्स केंद्र सरकार के कर्मचारी लगभग 50% डीए ले रहे हैं इसी तरह प्रदेश में यह 38% है मतलब 12% की तीन किश्तें पेंडिंग हैं। जब सेवा नियमों में भत्ता मिलना जरूरी है तो सरकार मात्र यह कह कर अपना पल्ला नहीं छुडा सकती कि हमारे पास वित्तीय संसाधन नहीं। प्रश्न यह भी है कि केवल कर्मचारियों व बेरोजगारों के लिए ही वित्तीय संसाधन नहीं? रही सही कसर सरकार के काबीना मंत्री राजेश धर्माणी ने कर्मचारियों के विरुद्ध बयानबाजी करके पूरी कर दी वे भूल गए कि भाजपा शासन में पूर्व मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर के एक ब्यान ने उन्हें सत्ता से बाहर करने का काम कर दिया था।

सरकार व्यवस्था परिवर्तन की बात करती आयी परंतु किसी ने सोचा तक नहीं था कर्मचारी राजनीति में संजीव शर्मा नामक कर्मचारी नेता इतनी बेबाकी व तथ्यों से अपनी बात रख कर्मचारी राजनीति में भी व्यवस्था परिवर्तन कर देगा।

(ये लेखक के निजी विचार हैं। उनसे Writerdevender@gmail.com पर ईमेल के माध्यम से संपर्क किया जा सकता है)