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हिमाचल पुलिस में अंतर्कलह: एसएसपी संजीव गांधी ने डीजीपी अतुल वर्मा पर लगाए आरोप

शिमला।। विमल नेगी मौत मामले की जांच को लेकर पुलिस विभाग में चल रही कलह अब और खुलकर सामने आ गई है। हिमाचल प्रदेश पावर कॉरपोरेशन लिमिटेड के चीफ इंजीनियर रहे विमल नेगी की मौत की जांच सीबीआई को सौंपी जाए या नहीं, इस पर हाई कोर्ट में सुनवाई के दौरान डीजीपी ने एक हलफनामा दिया था। उसमें उन्होंने एसआईटी और शिमला के एसएसपी संजीव गांधी पर सवाल उठाए थे।

अब संजीव गांधी ने शिमला में प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा कि मैंने 25 साल तक ईमानदारी से तपस्या की तरह पुलिस विभाग में नौकरी की है। उन्होंने कहा कि अगर कोई उनकी ईमानदारी पर सवाल उठाता है तो वो पद छोड़ना पसंद करेंगे। उन्होंने कहा कि एसआईटी इस मामले को दोबारा अदालत में लेकर जाएगी ताकि विमल नेगी को न्याय मिल सके।

डीजीपी पर गंभीर आरोप
इस प्रेस कॉन्फ्रेंस में संजीव गांधी ने डीजीपी पर कई गंभीर आरोप लगाए। गांधी ने कहा कि शिमला पुलिस ने सीआईडी के एक मामले में जांच की थी, लेकिन इसका एक गुप्त पत्र को चुराकर पुलिस महानिदेशक के निजी स्टाफ ने लीक करवाया था। इसके साथ ही उन्होंने आरोप लगाया कि डीजीपी का स्टाफ ड्रग पेडलर्स के संपर्क में पाया गया है। गांधी ने कहा कि संजय भूरिया नामक गैंग में डीजीपी के निजी स्टाफ का कर्मचारी संलिप्त पाया गया है।

उन्होंने ये भी कहा कि पुलिस महानिदेशक ने सीआईडी में रहते हुए एक जूनियर अधिकारी पर दबाव बनाकर एक रिपोर्ट तैयार करवाई थी और कोर्ट को गुमराह करवाया था। गांधी ने कहा कि जब पुलिस महानिदेशक का कार्यालय का इस प्रकार के व्यक्तियों के साथ संचालित हो रहा तो पुलिस अधीक्षक का धर्म व कर्म बनता है कि न्याय व प्रक्रिया को ध्यान में रखते हुए ऐसे कार्यालय की विश्वसनीयता के बारे में जनता को भी सचेत करें और इस तरह की महत्वपूर्ण जांच को भी इस तरह के व्यक्ति से बचाए।

पूर्व डीजीपी पर भी आरोप
शिमला एसएसपी ने कहा कि जब शिमला के मिडल बाजार में हिमाचली रसोई में गैस लीक होने से ब्लास्ट हुआ था, उसमें एनएसजी (शायद वह एनआईए कहना चाह रहे थे) को बुलाया गया। एसएसपी का आरोप है कि सबूतों से छेड़छाड़ की गई और कहा गया कि इसमें आरडीएक्स था। उन्होंने तत्कालीन डीजीपी (संजय कुंडू) पर आरोप लगाया कि उन्होंने तब सरकार को मेरे खिलाफ चिट्ठी लिखी थी कि ये एसपी शिमला की लापरवाही है। हालांकि जांच में साफ हुआ कि धमाका आरडीएक्स से नहीं, गैस से हुआ था। गांधी ने कहा कि इससे सवाल उठता है कैसे बड़े पुलिस अधिकारी एनएसजी का इस्तेमाल कर रहे हैं।

जब उनसे एक पत्रकार ने पूछा कि कहीं आप डीजीपी कहीं वह जनता में बन रहे माहौल को देखते हुए ये सब आरोप तो नहीं लगा रहे हैं। तो उन्होंने कहा कि उनके पास हर बात के सबूत हैं। उन्होंने ये भी कहा कि इन सभी बातों पर उन्होंने सरकार को चिट्ठियां लिखी हैं और सब रिकॉर्ड में है। गांधी ने कहा कि उन्होंने पुलिस भर्ती में अनियमितता पर आपत्ति जताई थी और बाद में इस मामले में धांधली भी निकली थी। इस बात से हेडक्वॉर्टर के अधिकारी उनसे चिढ़े हुए हैं।

एसएसपी संजीव गांधी ने धर्मशाला से भाजपा विधायक सुधीर शर्मा के खिलाफ मानहानि का मुकदमा भी दर्ज किया है। एसपी ने यह केस 21 मई को हाईकोर्ट की कार्यवाही के वीडियो क्लिप को वायरल करने पर दायर किया है। गांधी का कहना है कि इसे उनके छवि खराब करने के इरादे से वायरल किया गया।

CBSE Results 2025: कहां चेक कर सकते हैं Class 10 and Class 12 results

शिमला।। सेंट्रल बोर्ड ऑफ सेकंडरी एजुकेशन (CBSE) आज दसवीं और बारहवीं के रिजल्ट जारी करने वाला है। कुछ ही देर में अकैडमिक इयर 2025 के रिजल्ट जारी हो सकते हैं। रिजल्ट चेक करने के लिए स्टूडेंट्स और उनके अभिभावक नीचे दिए लिंक्स पर जा सकते हैं।

  1. cbseresults.nic.in
  2. cbse.gov.in
  3. results.cbse.nic.in
  4. results.digilocker.gov.in
  5. UMANG app डाउनलोड करके।

CBSE Results 2025 चेक करने के लिए ऊपर दिए गए लिंक ऑफिशल साइट्स के हैं।

हिमाचल प्रदेश में बसों का किराया बढ़ाने की टाइमिंग पर उठते सवाल

इन हिमाचल डेस्क।। सुख की सरकार ने हिमाचल की जनता पर ऐसे वक्त वक्त महंगे किराये का बम फोड़ा, जब पाकिस्तान से संघर्ष चल रहा था और सबकी निगाह सीमा पर थी। क्या यह कोशिश थी सवालों से बचने की? मगर सवाल खत्म नहीं हुए।

हमने तब इसलिए सवाल नहीं उठाया क्योंकि हमें लगा वक्त सही नहीं हैं। लेकिन क्या सरकार के पास जवाब है कि जब चंद रोज़ पहले बसों का न्यूनतम किराया बढ़ाया था, तभी सामान्य किराया क्यों नहीं बढ़ाया गया? तब क्यों प्रचारित किया गया कि न्यूनतम किराया ही बढ़ाया जाएगा।

और फिर किराया बढ़ाना ही था तो ऐसी कौन सी आफत आन पड़ी थी जो चंद दिनों का इंतजार नहीं हुआ? ऐसी बेकरारी क्या थी कि जब सीमाओं पर तनाव था और हो सकता था कि छुट्टी पर आए फौजी भाइयों को आनन-फानन में ड्यूटी जॉइन करनी पड़ती या उन्हें कैंट इलाकों से अपने परिजनों को सुरक्षा के लिए घर भेजना पड़ता, तभी यह कदम उठाया गया।

फिर कुछ कहते हैं कि “हमारी छवि खराब की जा रही है” और कुछ लिखते हैं “साज़िशों का दौर” चला हुआ है। हकीकत ये है कि वाकई “झूठ के पैर नहीं होते” और जनता जानती है कि कोई एक नहीं, बल्कि एक पूरा ग्रुप है जो सच छिपाने और झूठ बोलने की आदत से मजबूर है। आपकी छवि कोई और नहीं, आप खुद खराब कर रहे हैं।

कौन थे खाकीशाह, बिलासपुर में जिनके नाम पर बनी ‘मज़ार’ पर हो रहा है हंगामा

बिलासपुर।। हाल के दिनों में बिलासपुर में एक मज़ार को नुक़सान पहुंचाने का मामला सामने आया। प्रशासन ने इसकी मरम्मत करवा दी है, लेकिन सवाल बरक़रार है कि आखिर ये मज़ार कहां से आई। बिलासपुर के कुलदीप चंदेल ने इस मामले में फेसबुक पर एक पोस्ट लिखकर यह बताने की कोशिश की है जहां ये मज़ार बनी है, उसके नीचे पहले एक दरगाह हुआ करती थी।

उनका यह भी कहना है कि मूल दरगाह भाखड़ा बांध बनने पर पानी और गाद के नीचे दब गई थी। इसके बाद एक परिवार अपने घर पर उनके नाम का दिया जलाया करता था। और जब इतने ऊंचे मंदिर ही गोबिंद सागर झील में जमा गाद में डूब गए हैं तो मूल मजार तो कुछ ही फुट ऊंची थी। उन्होंने सवाल उठाया है कि गाद की मिट्टी पर किसने मजार बना दी है।

बहरहाल, बिलासपुर में यहां किसकी दरगाह थी, जानने के लिए पढ़ें उनका आलेख-

गोबिंद सागर झील में डूबे पुराने बिलासपुर शहर की जिस खाकीशाह मजार को लेकर इन दिनों हंगामा खड़ा हुआ है। उस बारे कुछ पंक्तियां पाठकों के ध्यानार्थ ……

कौन था खाकीशाह?

क्यों बनी उसकी मजार?
कौन थे उसके पुजारी?
कैसा था वह स्थान?
वर्तमान में कहां होती खाकीशाह की पूजा ?

इतिहास के आइने में, सामाजिक परिपेक्ष्य में

गोबिंद सागर झील में डूबे ऐतिहासिक नगर बिलासपुर के गोहर बाजार में खाकीशाह की मजार थी। यह चारदीवारी से घिरा एक खूबसूरत स्थान था। मजार के पास बेरी का बहुत बड़ा पेड़ था। जब उसमें बेर लगते तो बच्चों समेत बड़े लोग भी उन मीठे बेरों का आनंद लेते थे। उस मुस्लिम फकीर की पूजा मुसलमानों से अधिक हिंदू किया करते थे। हर वीरवार को खाकीशाह की मजार पर जाकर चूरमा चढ़ाते और अपने परिवार की खुशहाली सुख शांति की फरियाद करते थे।

आखिर कौन था खाकीशाह ?वास्तव में खाकीशाह दक्षिण एशिया के एक छोटे से देश बलख बुखारा का बादशाह था। वह एक बहुत ही गुस्से बाज शासक था। उसके पलंग की मखमली चादर को उसकी एक दासी रोजाना झाड़ती थी। एक दिन उस दासी के मन में आया कि वह बादशाह की इस पलंग पर सो कर देखे, कितना मजा आएगा! बहुत अच्छी मखमली चादर है।

दासी जैसे ही बिस्तर पर लेटी वैसे ही बादशाह दरवाजे से भीतर प्रविष्ट हुआ। अपने पलंग पर दासी को सोए देख उसकी भृकुटी तन गई। उसका गुस्सा सातवें आसमान पर था। उसने तुरंत उस दासी को फांसी का हुक्म सुना दिया।

फांसी का हुक्म सुन कर दासी बहुत अधिक रोने लगी लेकिन फिर उसे हंसी आ गई, जैसे उस पर कोई उन्माद छा गया हो। राजा ने उसे चुप करवाया और उसके रोने और हंसने का कारण पूछा। दासी बोली …….बादशाह सलामत, मैं तो इस बिस्तर पर पल भर को सोई तभी मुझे फांसी का हुक्म सुनाया गया लेकिन जो व्यक्ति इस पर प्रतिदिन सोता है उसकी क्या हालत होगी, यह जानकर ही मुझे पहले रोना आया और फिर हंसी आई।

बादशाह का माथा ठनका। उसका विवेक जागृत हो गया था। उसने उसी समय राजपाट त्याग कर दिया और घूमता घूमता निकल पड़ा। वह फकीर बन गया था। इस बारे इतिहास में एक दोहा आता है-

भला होया जे दास्सी मारी,  होया हुकम प्यारे दा।
खाकीशाह फकीर होया,  बादशाह बलख बुखारे दा।।

फकीर बनने के बाद खाकी शाह घूमता घामता सतलुज नदी के किनारे एक घने जंगल में पहुंच गया। यहां समीप रंगनाथ का मंदिर और नदी किनारे मुरली मनोहर का मंदिर था। घने जंगल में हिंसक जानवर विचरते थे लेकिन खाकीशाह को वह स्थान पसंद आया। उसने जंगल में धूना लगा दिया।

एक दिन धूने से धुआं निकल रहा था तो समीप के भरतपुर व्यासपुर गांव के लोगों को आश्चर्य हुआ। वे वहां पर पहुंचे जहां धुआं निकल रहा था। उन्होंने देखा कि यहां एक फकीर धूना लगाए बैठा है। लोगों ने कहा ….महाराज यहां बियाबान घना जंगल है। यहां तो दिन में ही हिंसक पशु विचरते दहाड़ते रहते हैं। आप चलकर समीप के गांव में अपना डेरा लगाएं।

फकीर ने इनकार कर दिया। उसने कहा कि आने वाले समय में यह स्थान चहल-पहल वाला होगा।

फकीर के बात उस समय सच्च साबित हुई जब वहां पर कहलूर रियासत के एक महा प्रतापी राजा दीपचंद (1653-1657 ई. ) ने सुन्हानी से अपनी राजधानी बदल कर इस स्थान को बदली। राजधानी का नाम बिलासपुर रखा और धौलरा नाम के स्थान पर अपने महल बनाए।नीचे की तरफ बाजार व शहर बसाया।

दीपचंद के साथ चार साधु संत हर समय रहते थे। वे उसके मार्गदर्शक भी थे। सलाहकार भी थे। इनमें से एक खाकीशाह भी था। यह वही फकीर था जिसने ग्रामीणों को कहा था कि आने वाले समय में यहां पर रौनक होगी।

जब खाकीशाह दुनिया को छोड़ गया तो उस स्थान पर एक मजार बनाई गई। यह बहुत रमणीक स्थान था। जहां पर कवि सम्मेलन और महफिलें होती थीं। लोग बैठ कर आराम से गपशप लगाया करते थे। शबीर कुरेशी का परिवार इसका पुजारी था। हर वीरवार को वहां पर मीठा चूरमा चढ़ता और मीठी खिल्लों इलायचीदाने का प्रसाद बांटा जाता। यह हिंदू मुस्लिम एकता का मुंह बोलता स्थान था।

जब पुराना शहर झील में डूब गया तो शबीर कुरेशी के पिताजी वजीर दीन अपने घर के आंगन में खाकीशाह की याद में चिराग जलाया करते थे। बाद में शबीर कुरेशी हर वीरवार को पूजा स्थल पर चिराग जलाते। वीरवार का व्रत रखते।

May be an image of temple and text that says "दरगाह बाबा ख्ाकिशाह"

कुरेशी वास्तव में हमारे मित्र और वरिष्ठ पत्रकार थे। उन्होंने इंडियन एक्सप्रेस,  टाइम्स ऑफ इंडिया, नवभारत टाइम्स आदि अखबारों में बतौर संवाददाता काम किया। आकाशवाणी व दूरदर्शन के लिए जीवन भर काम करते रहे। हिमदिशा नाम से अपनी अखबार निकालते रहे।

पिछले कुछ सालों से झील में डूबे शहर की गाद के ऊपर कुछ लोगों ने एक मजार बनाकर वहां पर अपनी गतिविधियां शुरू कर रखी हैं। मजार को हरे रंग में रंग दिया। चादर चढ़ा दी। झंडे लगा दिए। असली मजार तो लुप्त हो गई है। उसके ऊपर 30, 40 फूट गाद चढ़ गई है।

बड़े-बड़े मंदिर झील की गाद में लुप्त हो गए तो वह तो एक छोटी सी मजार थी। जिसकी ऊंचाई एक डेढ़ फुट थी। जमीन से लगभग अढ़ाई तीन फुट ऊंचा स्थान बनाया गया था। समझ नहीं आता कि जब खाकीशाह की पूजा पिछले लगभग साठ सालों से शबीर कुरेशी जी के घर के आंगन में हो रही है तो फिर यह नया विवाद खड़ा करने का क्या औचित्य है?

इस प्रश्न के साथ यहीं विराम।

(कुलदीप चंदेल के फेसबुक पोस्ट से साभार)

विधायकों के वेतन-भत्ते बढ़ने पर मचे हो-हल्ले का मतलब क्या है?

आशीष कुमार।। हिमाचल प्रदेश के ‘माननीयों’ की सैलरी बढ़ा दी गई है। ये कोई नई बात नहीं है, लेकिन इस बात को लेकर लोगों को ‘हल्ला’ भी नया नहीं है। जब-जब किसी की सैलरी बढ़ेगी तब-तब किसी के पेट में दर्द होगा। दरअसल मुझे विधायकों और मंत्रियों की सैलरी बढ़ाने पर किए जाने वाले गैरवाजिब हल्ले से दिक्कत है। मुझे दिक्कत है उन लोगों से जो अपनी पुरानी पेंशन के लिए तो पुरजोर लड़ते हैं, समय-समय पर अपने DA बढ़वाने के लिए तो तत्पर खड़े होते हैं, लेकिन जब दूसरे के हित की बात आए तो नाक-भौंह सिकोड़ने लगते हैं। ये सरकारी कर्मचारी उन्हीं कॉरपोरेट घरानों की तरह हैं कि अपनी जेब में तो माल आता रहे, लेकिन दूसरों का भला नहीं होना चाहिए।

यहां मैं उस तर्क से भी सहमत नहीं जो लोग कहते हैं कि कर्मचारी तो टेस्ट लड़कर लगा है। तो भाई जो विधायक बना है वो क्या खुद से बन गया? विधायकों और मुख्यमंत्री बनने के लिए तो कर्मचारी-अधिकारी बनने से भी कहीं अधिक प्रतिस्पर्धा है। कर्मचारी लाखों में हैं, हिमाचल का IAS कैडर करीब 153 है, इनकी संख्या ज्यादा भी हो सकती है, लेकिन सुक्खू जी को 153 में सुख मिल रहा है (वो नहीं चाहते कि उनकी सरकार में और ज्यादा अफसर हावी हों)। इसीलिए उन्होंने आगे और IAS के अफसर लेने से मना कर दिया।

एक और मूर्खों वाला तर्क दिया जाता है कि ये विधायक और मंत्री तो भ्रष्ट हैं। पहले ही इतना लूट रहे हैं, इनकी तनख्वाह क्यों बढ़ा रहे? इस तर्क के हिसाब से तो क्या सरकारी कर्मचारी, अधिकारी भ्रष्ट नहीं हैं? तो उनकी सैलरी और DA भी क्यों बढ़ाए जाएं? ग्राम पंचायत से लेकर शीर्ष प्रदेश की ‘पंचायत’ तक में भ्रष्टाचार है। हां, ये बात सही है कि न सभी अधिकारी और न ही सभी विधायक-मंत्री भ्रष्ट होते हैं।

वैसे ही संदर्भ के लिए याद करवा दूं कि एक पूर्व विधायक की हालात ये हो गई थी वो गुजर-बसर करने के लिए मेले में चूड़ियां बेच रहे थे। उस समय विधानसभा क्षेत्र का नाम मेवा होता था जिसे आज भोरंज के नाम से जाना जाता है। वहां से विधायक अमर सिंह को जब तत्कालीन मुख्यमंत्री डा. यशवंत सिंह परमार ने चूड़ियां बेचते देखा तो ये दृश्य देखकर उनका दिल पसीजा और उन्होंने पेंशन शुरू की। मकसद भी यही था कि नेता भ्रष्ट ना हो इसीलिए उसको भी काम के अच्छे पैसे और भत्ते दो। हां ये बात दीगर है कि नेता वेतन-भत्ते लेते तो हैं लेकिन अपने काम का जनसेवा का रूप देते हैं पत्रकारों और अधिकारियों की तरह।

यदि फिर भी ये कहा जाए कि विधायक-मंत्री भ्रष्ट हैं तो उन्हें भ्रष्ट बनाया किसने? उनकी जवाबदेही तय क्यों नहीं हुई? क्योंकि लोग बिकते हैं 300 यूनिट बिजली के लिए, OPS के लिए, फ्री बस सर्विस के लिए। पूर्व में भी बिके हैं अपने नाजायज, अतिक्रमण की हुई जमीनों को रेगुलर करवाने के लिए। नो वर्क नो पे जैसे शानदार फैसले को पलटने के लिए।

माननीयों की संपत्ति बढ़ती देखी होगी आपने, लेकिन सोचा है कि उनकी संपत्ति बढ़ गई और ये आपको कैसे पता चला? क्योंकि कानून में प्रावधान है कि चुनाव लड़ने के लिए संपत्ति का ब्योरा देना पड़ता है। बेमन और गलत ही सही पर वो कम से कम बता तो रहा है कि उसने कितने कमा लिए 5, 10 और 15 वर्षों में, लेकिन उन अधिकारियों-कर्मचारियों का हिसाब कहां है जो रिश्वतखोरी से अथाह संपत्ति जमा कर चुके हैं? उच्च अधिकारी ऐनुअल प्रॉपर्टी रिटर्न भरते हैं लेकिन उसका ब्योरा तो सार्वजनिक नहीं होता। फिर नीचे के अधिकारियों और कर्मचारियों का क्या?

मगर अक्सर विधायकों औऱ मंत्रियों के नाम पर बिल फाड़ा जाता है ताकि अपना हिसाब ना देना पड़े। पत्रकार तबका भी अच्छे से जानता है कि बद्दी, बरोटीवाला, नालागढ़, ऊना, कालाअंब जैसे औद्योगिक क्षेत्रों में डटे अफसर कर्मचारी कितना अथाह पैसा कूट रहे हैं। खबरें ये भी आती रही हैं कि यहां तो ट्रांसफर के लिए भी चंदा लगता है तो फिर ये धंधा क्यों अच्छा नहीं लगता?

खनन का तो कुछ पता नहीं है कि कहां कितना हो गया, ‘सरकारें आएंगीं जाएंगी, सत्ता बिगड़ेगी बनेगी पर खनन चलता रहेगा, रिश्वत चलती रहेगी‘। इस लाइलाज बीमारी का हल है ही नहीं। यदि है तो वो है नैतिकता और सिस्टम में पारदर्शिता। विधायक और मंत्री अस्थायी सरकार होते हैं, कर्चमारी-अधिकारी तो स्थायी सरकार है। इसीलिए अगर नेता की ईमानदारी चाहिए तो इस वर्ग को भी वही सहयोग देना पड़ेगा।

ये लेखक के निजी विचार हैं।

(आप भी अपने लेख हमें inhimachal.in@gmail.com पर भेज सकते हैं)

IITian Baba की खुली पोल, चैंपियन्स ट्रॉफ़ी में विराट कोहली बने किंग, शतक के साथ 14000 रन पार, भारत ने पाकिस्तान को हराया

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दुबई।। आईआईटीयिन बाबा (IITIAN BABA) के नाम से चर्चित एक मनोरोगी ने घोषणा की थी भारत चैंपियन्स ट्रोफी में पाकिस्तान के हार जाएगा। उसका कहना था कि भगवान बड़ा है या तुम, ये पता चल जाएगा। लेकिन इस मूर्ख बाबा की पोल खुल गई है। भारत ने पाकिस्तान को दुबई में खेले गए चैंपियन्स ट्रोफी के मैच में 45 गेंदें बाकी रहते हुए छह विकेट से जीत हासिल की है। पाकिस्तान ने भारत के आगे 241 रनों का लक्ष्य रखा था।

विराट कोहली ने सिर्फ़ वनडे में 14000 रनों का आंकड़ा पार किया बल्कि बेहद रोमांचक ढंग से अपने करियर का 51वां वनडे शतक भी पूरा किया।

वह पाकिस्तान के खिलाफ एशिया कप, वर्ल्ड कप और चैंपियन्स ट्रोफी में शतक लगाने वाले पहले बल्लेबाज बन गए हैं। वह मैन ऑफ़ द मैच भी बन गए हैं।

सीएम सुक्खू अब समोसे पर एफ़आईआर कर हिमाचल प्रदेश मीडिया को डराना चाह रहे हैं: जयराम ठाकुर

शिमला।। हिमाचल प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और वर्तमान नेता प्रतिपक्ष जयराम ठाकुर ने कहा है कि प्रदेश की कांग्रेस सरकार मीडिया की आवाज को दबाने की कोशिश कर रही है। उन्होंने कहा कि कांग्रेस सरकार ने समोसे की जांच रिपोर्ट लीक होने के मामले में मीडिया को निशाने पर लेने की योजना बनाई है जो कि सीधे तौर पर मीडिया की आजादी पर प्रहार है।

जयराम ठाकुर ने शनिवार को जारी बयान में कहा कि सरकार दिशाहीन हो गई है और तानाशाही रवैया अपनाते हुए पुलिस विभाग ने सिर्फ इसलिए बखेड़ा खड़ा कर दिया कि मुख्यमंत्री को समोसा नहीं मिल पाया।

दरअसल, शिमला पुलिस ने अज्ञात लोगों के खिलाफ़ चोरी, धोखाधड़ी, शरारत और सीआईडी डिपार्टमेंट से सूचनाएं और दस्तावेज चुराने की आपराधिक साजिश के मामले में एफआईआर की है। यह एफआईआर एसपी क्राइम (सीआईडी) की शिकायत पर दर्ज हुई है।

जयराम ठाकुर ने कहा कि कांग्रेस सरकार समोसे पर जांच करके समय और संसाधन बर्बाद कर रही है। उन्होंने कहा कि सेक्शन 353(2) के तहत और झूठी सूचना या अफवाह फैलाने संबंधित जो मामला बनाया है, वह वास्तव में मीडिया पर पाबंदियां लगाने की कोशिश है।

उन्होंने कहा, ‘यह सीधे मीडिया की आजादी पर हमला है। एफ़आईआऱ करके सरकार मीडिया को संदेश देना चाहती है कि उसकी नाकामी पर जो कोई लिखेगा, उसे बख़्शा नहीं जाएगा।’

जयराम ठाकुर ने कहा कि एफआईआर में लिखा है कि संवेदनशील मामले बार-बार मीडिया को लीक होते हैं। ऐसे में मुख्यमंत्री को बताना चाहिए कि ऐसे कौन से मामले मीडिया को लीक हो गए हैं और उससे देश की संप्रभुत्ता और आंतरिक सुरक्षा को कितना खतरा पैदा हुआ है।

जयराम ठाकुर ने पूछा कि समोसों के मामले में कौन सी गोपनीयता थी जो भंग हो गई और इसमें ऐसा कौन सा जनहित है। बेहतर होगा कि मुख्यमंत्री तानाशाही रवैया छोड़ें और आम लोगों की समस्याएं सुलझाएं। उन्होंने कहा कि प्रदेश में अपराध बढ़ रहा है। पचास दिन में सोलह हत्याएं हुईं। चिट्टा और खनन माफिया बेखौफ है। लेकिन पुलिस अभी भी समोसे की जांच में उलझी हुई है।

समोसे में था ‘बैंडवैगन इफ़ेक्ट’ और साथ थी ‘रीसेंसी बायस’ की चटनी

चंबा के लड़के ने CBI अफसर बनकर ठगे लाखों रुपये, कैसे किया ब्लैकमेल, जानें

चंबा।। पुलिस ने हिमाचल प्रदेश के चंबा से एक ऐसे जालसाज को गिरफ्तार किया है जिसने ‘डिजिटल अरेस्ट’ जैसे स्कैम से ब्लैकमेल करके करीब पांच लाख रुपये की अवैध उगाही कर ली।

आपको यह जानकर हैरानी होगी कि उसकी उम्र सिर्फ 19 साल है और वह आठवीं तक ही पढ़ा है। मजदूरी का काम करने वाले इस शख्स ने यह काम खुद को सीबीआई का अधिकारी बताते हुए किया।

दिल्ली पुलिस ने मंगलवार को जानकारी दी कि इस शख्स को लोगों से ठगी करने और उनके अश्लील वीडियो बनाकर वैसों की वसूली करने के आरोप में गिरफ्तार किया गया है। दिल्ली के द्वारका के डीसीपी अंकित सिंह ने बताया कि एक शिकायतकर्ता ने बताया था कि उसे वॉट्सऐप पर वीडियो कॉल आया। उसे उठाने पर सामने एक लड़की दिखाई दी। पांच से छह सेकंड बाद कॉल कट गई।

अगले दिन उसे एक और वॉट्सऐप ऑडियो कॉल आई जिसमें सामने से बात कर रहे शख्स ने खुद को सीबीआई का स्पेशल ऑफिसर गौरव मल्होत्रा बताया। उसने बताया कि लड़की ने खुदकुशी कर ली है और उसने एक अश्लील वीडियो के साथ ऐंबुलेंस के कुछ फोटो भेजे।

ठग ने दावा किया कि लड़की के रिश्तेदार समझौता करने के लिए तैयार हैं। फिर उसने चार लाख 84 हजार 500 रुपये अलग-अलग खातों में ट्रांसफर करवाए। शिकायत के आधार पर कई टीमें बनाई गईं। कॉल डीटेल और बैंक के खातों की जांच करने के बाद उसे चंबा में पकड़ा गया। यह शख्स एकदम अंदरूनी इलाके में मौजूद था, जहां जाने के लिए एक घंटा पैदल चलना पड़ा।

डीसीपी ने बताया कि ठग का नाम अमित है और वह मजदूरी करता है। उसने जल्दी पैसे कमाने के लिए लोगों को ठगना शुरू कर दिया था।

सज़ा मिलने के बाद ज़हूर ज़ैदी ने कहा- क्लोज़अप चाहिए आपको

शिमला।। कोटखाई के गुड़िया मामले में संदिग्ध के दौर पर हिरासत में लिए गए नेपाल के युवक सूरज की पुलिस हिरासत में हत्या मामले में सीबीआई अदालत ने आईजी रहे जहूर जैदी के नेतृत्व मे बनी एसआईटी के सदस्यों को उम्रकैद की सजा सुनाई है।

अमर उजाला ने रिपोर्ट किया है कि पूर्व आईजी जहूर जैदी के चेहरे पर शिकन तक नहीं दिखी और कहा कि मेरा अच्छा सा क्लोज अप लेना। हालांकि, एक वीडियो वायरल हो रहा है, जिसमें जैदी कह रहे हैं- क्लोज़अप चाहिए आपको?

अमर उजाला लिखता है-  “सीबीआई अदालत ने कोटखाई धाने के लॉकअप में बेगुनाह युवक सूरज की पीट-पीटकर हत्या करने के दोषी पूर्व आईजी जहूर हैदर जैदी को उम्रकैद की सजा सुनाई लेकिन उसके चेहरे पर कोई शिकन नहीं दिखी। वह अदालत परिसर में मुस्कुराते हुए नजर आया, जबकि परिजन सजा सुनकर रो पड़े।”

आगे लिखा है- “जैदी से मिलने पहुंची महिला परिजन अदालत के कमरे के बाहर रोती दिखी।”

आईजी ज़हूर ज़ैदी की थ्योरी पर इस पत्रकार ने शुरू में ही उठाए दिए थे सवाल

‘स्टेटहुड, मारो ठुड’ नारे लगते रहे, परमार हिमाचल को पूर्ण राज्य बनवा लाए

  • आज हिमाचल प्रदेश के पूर्ण राज्यत्व दिवस पर पढ़िए वरिष्ठ बीजेपी नेता मोहिंदर नाथ सोफत द्वारा हिमाचल निर्माता डॉक्टर यशवंत सिंह परमार की जयंती पर लिखा गया आलेख उनके फेसबुक पेज से साभार।

हिमाचल निर्माता और प्रदेश के पहले मुख्यमंत्री स्वर्गीय डाँक्टर वाई एस परमार उन दिनों राजनीति मे थे जब राजनीति एक समाज सेवा का माध्यम था न की कोई पेशा। वह एक दूरदर्शी नेता थे। आज जो हिमाचल का स्वरूप है वास्तव मे उन्ही की देन है। इसी लिए उन्हे हिमाचल निर्माता के तौर पर जाना जाता है।

मुझे स्मरण है कि जब वह पूर्ण राज्य की लड़ाई लड़ रहे थे उस समय कर्मचारी अन्दोलन चल रहा था। कर्मचारियों को लगता था कि यदि हिमाचल को पूर्ण राज्य का दर्जा मिल गया तो हिमाचल का अपना वेतन आयोग होगा इसलिए सारे हिमाचल मे यह नारा गूंज रहा था “स्टेट हूड मारो ठूड”। कर्मचारी अपने से आगे नहीं सोच पा रहे थे।

डॉक्टर परमार की नजर प्रदेश के भविष्य की ओर थी। डा साहिब अति स्वाभिमानी व्यक्ति थे। जब कांग्रेस मे संजय गांधी जी का दौर था और बडे बडे प्रदेशों के मुख्यमंत्री उनके आगे नतमस्तक हो रहे थे। यहां तक खबरें छपी कि एक बडे प्रदेश के मुख्यमंत्री ने तत्कालीन प्रधानमंत्री के सपुत्र और उस समय के यूथ कांग्रेस के बेताज बादशाह की चप्पल उठाने मे भी गुरेज नहीं किया था। परन्तु इस देव भूमि के मुख्यमंत्री और नेता ने अपने पद की गरिमा से कभी समझौता नहीं किया।

उन दिनों यह चर्चा आम थी कि संजय गांधी जी जिनके सत्ता का नशा सिर चढ़ कर बोल रहा था वह अपने कसौली दौरे के दौरान किसी बात को लेकर डा परमार से नाराज हो गए थे। उनकी नाराजगी की परिणीति हिमाचल मे नेतृत्व परिवर्तन के साथ हुई । परमार जी को दिल्ली बुला का त्याग पत्र मांग लिया गया और श्री रामलाल ठाकुर जी को हिमाचल का मुख्यमंत्री बना दिया गया।

उस समय डा साहिब के पास शिमला मे अपना घर नही था और वह त्यागपत्र दे कर अपने पुशतैनी घर बागथन चले गए। संजय दौर मे मुख्यमंत्री के पद की गरिमा बचाते हुए भले ही उन्होंने अपना मुख्यमंत्री का पद खो दिया हो परन्तु मुख्यमंत्री के पद की गरिमा और हिमाचल का सम्मान बचाने मे सफलता हासिल की थी। वह ऐसे नेता थे कि न उनके पास शिमला मे अपना घर था और न ही अपनी गाड़ी थी हालांकि वह 18 वर्ष तक हिमाचल के मुख्यमंत्री रहे थे।

मुझे याद है कि डा साहिब बागथन– सोलन बस मे पहली सीट पर बैठ कर आया जाया करते थे।उन दिनों फ्रंट सीट विधायक के लिए सुरक्षित होती थी। आज इस बात पर कोई नौजवान विश्वास करने को तैयार नहीं होगा। आज जब राजनीति सेवा का माध्यम न हो कर व्यपार का माध्यम बन चुका है।

ऐसे मे डा परमार की जीवनी पर आने वाले समय मे विश्वास करना कठिन होगा। उनका स्वभाव, व्यवहार, कार्यशैली और निर्णय सब हिमाचल की संस्कृति से पुरी तरह मेल खाते थे। मेरा ऐसी पुन्य आत्मा को शत-शत नमन।

(2020 को प्रकाशित लेख फिर से शेयर किया गया है)

डॉक्टर परमार न होते आप हिमाचल में नहीं, पंजाब में होते