30 हजार रुपये किलो बिकती है हिमाचल में उगने वाली गुच्छी

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विवेक अविनाशी।। गुच्छी सिर्फ प्राकृतिक तौर पर उगती है। इसकी खेती करने में अभी वैज्ञानिकों को सफलता नहीं मिली है। इसके न तो आज तक बीज तैयार हो पाए और न ही उगाने की कोई और विधि का पता चल पाया। यही कारण है कि इसकी कीमत 20 से 30 हजार रुपए प्रति किलो तक है।

 

वैज्ञानिकों के अनुसार गुच्छी में कार्बोहाईड्रेट की मात्रा शून्य होती है। यह हृदय रोग, नियूरेपिक, मोटापा और सर्दी-जुखाम जैसी बीमारियों से लड़ने में रामबाण साबित होती है। इसका इस्तेमाल कई घातक बीमारियों को ठीक करने वाली दवाइयों के निर्माण में भी होता है। इसीलिए डॉक्टर भी इसे संजीवनी मानते हैं।

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हिमाचल में कुल्‍लू, शिमला के उपरी इलाकों, सोलन, सिरमौर में कई लोग इसे बेचकर लाखों रुपया तक कमा लेते हैं। बादलों से गहरा रिश्ता है हिमाचल की गुच्छियों का हिमाचल के उपरी पहाड़ी इलाकों में पैदा होने वाली गुच्छियों का बादलों और आसमानी बिजली से गहरा रिश्ता है। कहते हैं जितने अधिक बादल गरजते हैं और बिजली चमकती है उतने ही अधिक मात्र में यह गुच्छियाँ धरती से फूटती हैं।

 

पैदा होने के तीन-चार दिन में यह गुछियाँ तीन से चार इंच तक लम्बी हो जाती हैं। इनका रंग गहरा भूरा या फिर हल्का भूरा होता है। प्रायः यह गुच्छियाँ देवदार और कैल के जंगलों के इलावा सेब, नाशपाती के पुराने बागीचों और कैंथ के पेड़ों के पास मिलती हैं। हिमाचल के पहाड़ी इलाकों में 5000 फीट से दस हजार फीट की उंचाई वाले क्षेत्रों में यह गुच्छियाँ उंचाई वाले क्षेत्रों में मिल जाती हैं।

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बुजर्गों का कहना है गुच्छियाँ अमूमन पाक़-साफ़ दिलवालों को ही मिलती हैं। कुछ का तो यह भी कहना है कि सांवले चेहरे वालों को ही गुच्छियां जंगलों में नज़र आती हैं। जंगलों में इन गुच्छियों को तलाश करने के लिए काफ़ी मशक्कत करनी पडती है। कुल्लू जनपद के एक महाशय के अनुसार डेढ़ किलो गुछियां बटोरने के लिए 100 से अधिक गांवों की ख़ाक छाननी पडती है। ये गुच्छियां जंगलों में दरख्तों के नीचे या पुराने ठूंठों के के साथ भी पैदा होती है। जंगलों में आग के बाद बचे अवशेषों पर भी यह गुच्छियाँ पैदा होती हैं।

 

पहाड़ों में ताज़ी गुच्छियों को इकट्ठा कर सुखाया जाता है ताकि विशेष अवसरों पर इस का व्यंजन के रूप में इस्तेमाल किया जा सके। पहाड़ की शाही दावतों में “गुच्छी वाली मदरे” और “गुच्छी पुलाव” का विशेष स्थान है। काबुली चना युक्त गुच्छी वाला मदरा पहाड़ का अति स्वादिष्ट व्यंजन है। गुछियों में आयरन, कैल्शियम और विटामिन”बी” तथा “डी” की भारी मात्र होती है। सुखी गुच्छियों का बाज़ार भाव 15,000 रूपये से लेकर 25,000 रूपये प्रति किलो तक है। हिमाचल प्रदेश में गुच्छियों का व्यापार 30 करोड़ रुपये से भी अधिक का होता है।

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प्रायः प्रदेश के प्रसिद मेलों- कुल्लू का दशहरा, रामपुर के लवी, मंडी की शिवरात्री और चंबा के मिंजर मेले में लोग इन सुखी गुच्छियों को बेचने आते हैं।

 

(लेखक हिमाचल प्रदेश के हितों के पैरोकार हैं और जनहित के मुद्दों पर लंबे समय से लिख रहे हैं। इन दिनों ‘इन हिमाचल’ के नियमित स्तंभकार हैं। उनसे vivekavinashi15@gmail.com पर संपर्क किया जा सकता है)