बीसीसीआई की सत्ता बदलने पर उम्मीद की जाने लगी है कि इसके नए अध्यक्ष अनुराग ठाकुर इस संस्थान को बदनामी से बाहर निकालेंगे। उम्मीद जताई जा रही है कि पारदर्शी और करप्शन फ्री शासन देंगे। एक युवा प्रशासक के आने पर ऐसी उम्मीद होना लाजिमी है। मगर इन हिमाचल ने पिछले आर्टिकल में बताया था कि कैसे अनुराग ठाकुर ने अपने लिए रास्ता बनाया। इस हिस्से में आउटलुक की रिपोर्ट के हवाले से पढ़िए, हिमाचल प्रदेश विजिलेंस डिपार्टमेंट ने अपनी चार्जशीट में क्या पाया है। इंग्लिश में रिपोर्ट को पढ़ने के लिए यहां पर क्लिक करें।
हिमाचल में 1960 से ही क्रिकेट असोसिएशन थी, मगर नाम भर की थी। इसीलिए अनुराग ने पंजाब की तरफ से खेलना पसंद किया। कुछ दिनों बाद उन्होंने क्रिकेट के बिज़नस में शिफ्ट होने का फैसला लिया। पंजाब के एक स्पोर्ट्स राइटर का कहना है कि अनुराग ने पंजाब की क्रिकेटिंग बॉडी में शामिल होने की कोशिश भी की थी 90 के दशक में, मगर बाहरी होने की वजह सफलता नहीं मिली। अनुराग का लक्ष्य बीसीसीआई था। पंजाब का रास्ता उनके लिए लंबा पड़ता क्योंकि जिस लॉबी का पंजाब क्रिकेटिंग बॉडी पर कब्जा था, उसके रहते यह काम मुश्किल था।
इसी दौरान, अनुराग के पिता प्रेम कुमार धूमल हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री बन गए 1998 से 2003 तक। अनुराग ने वक्त नहीं गंवाया और 2000 में असोसिएशन के प्रेजिडेंट चुने गए। उनके पिता पैट्रन इन चीफ बन गए। उनका पहला प्रॉजेक्ट था- धर्मशाला में क्रिकेट स्टेडियम बनाना। विजिलेंस की चार्जशीट के मुताबिक इस प्रस्ताव को राज्य के यूथ सर्विसेज़ और स्पोर्ट्स डिपार्टमेंट के सामने रखा गया। फाइनैंस डिपार्टमेंट ने इसे ओके कह दिया, मगर सुझाव दिया कि लीज रेंट देने के लिए मार्केट रेट अप्लाई किया जाए, क्योंकि टिकट की बिक्री और स्पॉन्सरशिप वगैरह से स्टेडियम को इनकम होगी।
मगर जब मामला कैबिनेट के पास पहुंचा- HPCA प्रेजिडेंट के पिता होने के बावजूद- प्रेम कुमार धूमल ने उस मीटिंग की अध्यक्षता की, जिसने 16 एकड़ जमीन को 99 साल तक 1 रुपये प्रति माह की दर से लीज़ पर देने को मंजूरी दी।
HPCA ने और भी चालाकी दिखाई और लीज़ पर मिली ज़मीन को दो निजी कंपनियों सब-लीज़ पर दे दिया, ताकि स्टेडियम के सामने पहाड़ियों के नजारे दिखाते दो होटेल पविलियन और अवेडा (अब दोनों बंद हैं) बनाए जा सकें। अवेदा को क्लबहाउस के ऊपर बनाया गया था और उससे ग्राउंड का बड़ा हिस्सा नजर आता था। स्टेडियम के अलावा, कैबिनेट ने खिलाड़ियों के लिए रेजिडेंशल क्वार्टर बनाने की लीज़ भी दे दी।
विजिलेंस ब्यूरो की रिपोर्ट के मुताबिक दोनों होटलों को 2012-2013 में 2 करोड़ रुपये का टर्नओवर हुआ, मगर हिमाचल सरकार को उस जमीन क बदले सिर्फ साल के 12 रुपये ही मिले। हालांकि अनुराग ठाकुर इसका खंडन करते हैं। ब्यूरो की रिपोर्ट कहती है कि HPCA ने कानून लीज़ पर मिली 50 हजार स्क्वेयर फुट जमीन के अलावा 3000 स्क्वेयर फुट एक्स्ट्रा जमीन पर एनक्रोचमेंट कर ली।
.यह जानकारी बाहर नहीं आती, अगर यूजीसी से फंडेड सरकारी कॉलेज इस स्टेडियम से न सटा होता। 2002 में धूमल सरकार अतिरिक्त जमीन अधिग्रहित करने में नाकाम रही, क्योंकि गवर्नमेंट पीजी कॉलेज के पास वह जमीन थी। मगर अपनी सेकंड टर्म (2008-12) में मुख्यमंत्री रहते हुए अपने बेटे के लिए इस समस्या का समाधान भी प्रेम कुमार धूमल ने कर दिया।
जब स्टेडियम बन रहा था, कॉलेज ने निर्माण के लिए NOC दे दिया था, मगर तीन शर्तें रखी थीं। पहली यह कि भविष्य में कॉलेज के विस्तार के लिए पर्याप्त जगह रखी जाए। दूसरी यह कि कॉलेज के स्टूडेंट्स को स्डेडियम इस्तेमाल करने की इजाजत हो और तीसरी यह कि कॉलेज के लिए अलग से एंट्री रखी जाए ताकि इसकी पनी ऐक्टिविटीज़ में कोई दिक्कत न हो।
विजिलेंस के मुताबिक 2008 में धूमल ने अपने दूसरे कार्यकाल में कांगड़ा के डीसी के.के. पंत के साथ स्पेशल मीटिंग की, जिसका मकसद पीजी कॉलेज को खंडित और इस्तेमाल के लिए असुरक्षित घोषित करवाना था कि यह खिलाड़ियों के लिए भी खतरनाक है।
पंत और जिले के अन्य अधिकारियों ने मार्च 2008 में मीटिंग की और कॉलेज प्रिंसिपल को बिल्डिंग को अन्य जगह पर शिफ्ट करने का आदेवन करने को कहा। सरकारी कॉलेज में अब तक किसी ने शिकायत नहीं की थी कि बिल्डिंग जीर्ण हो चुकी है। मगर HPCA के अधिकारियों, जो उस मीटिंग में थे, ने कहा कि हम लोग बिल्डिंग की वजह से क्रिकेटर्स की सुरक्षा को लेकर चिंतित हैं।
इसके तुरंत बाद जिले के अधिकारियों ने बिल्डिंग को असुरक्षित घोषित कर दिया, जबकि यह 25 साल ही पुरानी थी और 2 साल पहले ही इसकी मरम्मत हुई थी। एजुकेशन डिपार्टमेंट ने कोई दखल नहीं दिया (इन्हें भी चार्जशीट में नामजद किया गया है।
जुलाई 2008 में अनुराग ठाकुर ने स्टेडियम के साथ 720 स्क्वेयर मीटर और जमीन मांगी, मगर इस जमीन पर कॉलेज की इमारत खड़ी थी। इस जमीन के लिए फॉरेस्ट डिपार्टमेंट द्वारा दी गई मंजूरी पर भी सवाल उठे हैं। चार्जशीट में कहा गया है कि वन विभाग ने 1980 में यहां 2000 पेड़ लगाए थे। मगर क्लियरेंस देते वक्त वन विभाग ने कहा कि जमीन बंजर है। (एचपीसीए पर 500 पेड़ काटने का आरोप है)।
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नोट: उपरोक्त बातें आउटलुक के आर्टिकल का हिंदी अनुवाद है, इसमें अपनी तरफ से कोई बात नहीं जोड़ी गई। इस आर्टिकल में सारी बातें विजिलेंस डिपार्टमेंट द्वारा दाखिल चार्जशीट पर आधारित हैं, मामला कोर्ट में लंबित है।