क्या था बिल्ली, पत्थरों, बच्चों और ढोल-नगाड़ों के पीछे का रहस्य?

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DISCLAIMER: हम न तो भूत-प्रेत पर यकीन रखते हैं न जादू-टोने पर। ‘इन हिमाचल’ का मकसद अंधविश्वास को बढ़ावा देना नहीं है। हम लोगों की आपबीती को प्रकाशित कर रहे हैं, ताकि अन्य लोग उसे कम से कम मनोरंजन के तौर पर ही ले सकें और कॉमेंट करके इन अनुभवों के पीछे की वैज्ञानिक वजहों पर चर्चा कर सकें।

  • अक्षय वर्मा

‘मेरा नाम अक्षय है और मैं शिमला से हूं और चंडीगढ़ यूनिवर्सिटी से बी.कॉम कर रहा हूं। ये घटना मेरे पापा के साथ गांव में हुई थी, जिनका नाम राजेंद्र सिंह वर्मा है। वह सरकारी स्कूल में फिजिकल एजुकेशन के लेक्चरर हैं। यह बात 2011 की है। उन दिनों पापा गांव में थे,  ठियोग में है। नाहोल नाम के गांव में हम अपना नया मकान बनवा रहे थे। मिस्त्री लगे हुए थे और रेता खत्म हो गया। अगर हम शिमला से बाहर से मंगवाते तो 2-3 दिन लग जाते। पापा ने स्कूल से कैजुअल लीव ली हुई थी तो बाद में और छुट्टियां भी नहीं होती। तो तय किया गया कि पास में बहने वाली नदी ‘गिरी गंगा’ का रेता ले आते हैं सिर्फ चिनाई के लिए औऱ प्लास्टर करवाने के लिए बाहर से मंगवा लेंगे।

तो पापा दोपहर में नदी किनारे उश आदमी के पास गए, जिसने रेत-बजरी निकालने का ठेका लिया हुआ था। उससे बातचीत में शाम हो गई और वह वापस आने लगे। बीच में एक गांव आता है- Aloti. जब पापा वहां पहुंचे तो करीब 10 बज गए थे। अंधेरा बहुत था। उन्होंने पेड़ की टहनी तोड़कर एक डंडा बना लिया और साथ में भेड़ की ऊन की बनी लोइ (लोइय़ा) को ओढ़ रखा था। गांव के आदमी ने उन्हें पहचाना और आवाज लगाई कि वर्मा जी रात को कहां जा रहे हो, रुक जाओ आज यहीं। पापा ने कहा कि नहीं, आराम से पहुंच जाऊंगा। मगर आदमी पापा के बचपन का दोस्त था, साथ स्कूल में पढ़े थे। जबरदस्ती ले जाने लगा कि यार इतने दिनों बाद यहां आ रहा है, यहीं रुक जा। मगर पापा नहीं माने और चल दिए वहां से।

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सांकेतिक तस्वीर।

रास्ते में ही रात से करीब सवा 11 हो गए थे। गांव से बाहर निकल गए थे सुनसान इलाके में। चारों तरफ सन्ना, हल्की सी चांदनी के सहारे बढ़ रहे थे। कुछ देर आए गए कि उन्हें लगा कि कोई बिल्ली गुजरी उनके पैरों के पास से। उन्होंने सोचा कि ठीक है, गुजरी होगी। थोड़ा आगे गए तो वही बिल्ली कभी उनके आगे दौड़े, कभी दाएं से बाएं रास्ता काटे तो कभी बाएं से दाएं। कभी वह पीछे हो तो कभी टांगों के बीच से दौड़ लगाए। वह परेशान कि हो क्या रहा है। खैर, थोड़ा आगे बढ़े तो उन्हें लगा कि कोई झाड़ी से पत्थर फेंक रहा है उनकी तरफ। पत्थर शियूंsss की आवाज करके कान के आसपास से गुजरें, मगर नजर न आए कुछ भी। वह परेशान कि कहीं कोई पत्थर न लग जाए। मगर उन्हें ये भी लगा कि हो सकता है चमगादड़ वगैरह उड रहे हों अंधेरे में तेजी से।

वह और आगे बढ़े तो उन्हें एक खंडहर दिखाई दिया, जो पिछले कई सालों से वहीं पर है। कभी कोई घर रहा होगा, जो ऐसे ही ढह चुका है और वहां कोई नहीं रहता। मगर वहां से बच्चों के रोने की आवाज आ रही थी। इस मौके पर पापा को अहसास हुआ कि कुछ तो गलत हो रहा है। मगर पापा शुरू से थोड़ा हिम्मती और रौनकी इंसान रहे हैं। घबराहट तो हुई होगी, मगर उसे खुद पर हावी नहीं होने दिया। उन्होंने जोर से कहा- जब बच्चे पालने नहीं आते तो पैद क्यों करते हो, चुप करवाओ इसे। ये बोलते हुए वह आगे बढ़ते रहे। जैसे ही वह उस घर के करीब पहुंचे, अंदर से ढोल-नगाड़ों की आवाज आने लग गई। पापा फिर से बोले, ‘शाबाश, और जोर से बजाओ, सुर ताल के साथ में।’ ऐसा कहते हुए वहां से बढ़ गए, मानो इन सब बातों से उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ा।

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सांकेतिक तस्वीर।

वह आगे बढ़ते गए तो आवाज मानो उन्हें फॉलो कर रही हो। मगर जैसे ही वह गांव के पास पहुंचे, जहां से गांव की सीमा शुरू होती है। वहं पर एक टैंक है पानी का बड़ा सा। वहां से वे आवाजें सुनाई देना बंद हो गईं। अब तक बीच-बीच में जो पत्थर फेंकने की आवाजें, बीच में बिल्ली का दिखना चालू था, मगर वह भी बंद हो गया।

रेत रात वो घर पहुंचे, जहां हमारी डोगरी है। वहां ताऊ रहते है। काफी रात हो गई थी, तो उन्होंने अपने बड़े भाई के पास जाना ठीक समझा। उन्होंने रात को दरवाजा खटखटाया तो ताऊ औऱ ताई जी बाहर आए कि कौन आया है। पापा को देखकर वह हैरान कि इतनी रात को कहां से आ रहा है। तब पापा ने उन्हें बताया कि अब तक क्या-क्या हुआ। यह सुनकर ताऊ जी ने कहा कि तेरे साथ छल हुआ है। तुझे डराया जा रहा था। औऱ तू बेवकूफ है जो तू उनसे ही बातें करने लग गया। यह तो कुलदेवी “JAI ISHWARI MAA TIYALI” की कृपा रही कि तेरी रक्षा की उन्होंने। अगर तू डर जाता तो तेरे अंदर कोई साया बैठ सकता था। फिर तू या तो पागल हो जाता या फिर अपनी जान से जाता।

हमारे यहं देवी-देवताओं का बहुत मान है। तब ताई जी ने अंदर से आटा लाया औऱ पापा के सिर के ऊफर से घुमाते हुे देवी का नाम लिया और उन्हें फूंक मारने को कहा, ताकि जो हुआ उसे भूल जाए, किसी तरह का डर वगैरह मन में न बैठे। साथ में देवी के लिए पैसे भी अलग रखवा लिए। यह कामना की गई कि दोबारा ऐसा न हो।’

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(अक्षय वर्मा, जो कि ठियोग से हैं, ने हमें फेसबुक पेज पर यह आपबीती भेजी है।)