- आई.एस. ठाकुर
हिमाचल प्रदेश में अव्यवस्था का मौहाल है। प्रदेश की जीवनधारा कही जाने वाली एचआरटीसी के कर्मचारी हड़ताल पर हैं। हाई कोर्ट के निर्देश के बावजूद कर्मचारियों ने संघर्ष का रास्ता अपनाया और 14 और 15 जून को हड़ताल कर दी। कर्मचारियों की मांगों पर नजर डालें तो ये मांगें जायज नजर आती हैं। इनमें से अधिकतर मांगों को तुरंत मान लिया जाना चाहिए, क्योंकि हर किसी को अधिकार है कि उसे वक्त पर अच्छा वेतन मिले और समय पर पेशन मिले। अन्य सरकारी कर्मचारियों जैसे अधिकार पाना HRTC के कर्मचारियों का अधिकार है।
क्या है मामला?
गौरतलब है कि परिवहन कर्मचारी चाह रहे हैं कि HRTC, जो कि एक निगम (Corporation) है, उसे रोडवेज में बदल दिया जाए। यानी अभी वे अन्य सरकारी विभागों के कर्मचारियों के तहत नहीं हैं और उनसे सर्विस रूल्स वगैरह कॉर्पोरेशन के हैं। कर्मचारियों की यह मांग जायज है, मगर इसपर फैसला सिर्फ और सिर्फ प्रदेश कैबिनेट ले सकती है और मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह को इसकी मंजूरी देनी है। मगर वीरभद्र सिंह कह चुके हैं कि निगम को रोडवेज में बदलना मुश्किल है।
मगर इस हड़ताल को लेकर बहुत सी बातें चौंकाने वाली हैं। इस हड़ताल की टाइमिंग, इसका आह्वान करने वाला संगटन, नेताओं की बयानबाजी कई सवाल खड़े करती है। इन हिमाचल को गुप्त सूत्रों से जानकारी मिली है कि एचआरटीसी के कर्मचारियों की भावनाओं से खेलते हुए उनका राजनीतिक इस्तेमाल किया जा रहा है। कैसे, आइए नजर डालते हैं।
– हड़ताल करने वाला संगठन इंटक है, जो कि कांग्रेस का मजदूर संगठन है। इस वक्त हिमाचल प्रदेश में इंटक की सरकार है, बावजूद इसके इस संगठन का हड़ताल पर जाना बहुत से लोगों को पच नहीं रहा।
– इंटक के एचआरटीसी नेता अक्सर मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह के करीब देखे जाते हैं। ये नेता वक्त-वक्त पर अपनी प्रतिबद्धता मुख्यमंत्री के प्रति जाहिर करते रहे हैं और उनके कार्यक्रमों में शिरकत करते भी दिखते हैं।
– कोर्ट जाने की नौबत नहीं आती, अगर मुख्यमंत्री वीरभद्र (जो कि राज्य के मुखिया हैं और परिवहन मंत्री से भी ऊपर हैं) इस मामले में सुलझाने वाला रवैया अपनाते। उन्होंने कोई अपील नहीं की और न ही कर्मचारियों को समझाने की कोशिश की कि वे हड़ताल पर न जाएं।
– जब मुख्यमंत्री ने निगम को रोडवेज में बदलने की मांग को खारिज कर दिया तो नाराजगी उनके प्रति क्यों नहीं है?
– मुख्यमंत्री चाहते तो हिमाचल प्रदेश एसेंशल सर्विसेज़ मेनटेनेंस ऐक्ट 1973 के प्रावधान के तहत इस हड़ताल को गैर-कानूनी घोषित कर देते, ताकि लोगों को परेशानी न हो और बातचीत से मसला सुलझाया जा सके। मगर उन्होंने ऐसा नहीं किया।
चर्चा है कि एचआरटीसी कर्मचारियों की नाराजगी और उनके गुस्से को राजनीतिक हथियार की तरह इस्तेमाल किया जा रहा है। वीरभद्र सिंह और परिवहन मंत्री बाली के बीच का 36 का आंकड़ा किसी से छिपा नहीं है। आए दिन वीरभद्र सिंह बाली की बातें काटते नजर आ जाते हैं तो बाली खुद भी मुख्यमंत्री के रुख से उलट बातें करते नजर आ जाते हैं।
बाली पिछले दिनों से काफी ऐक्टिव दिख रहे हैं और सोशल मीडिया आदि पर उनकी मौजूदगी से लोगों के बीच में उनकी पहुंच बढ़ी है। खाद्य एवं आपूर्ति विभाग को कसने से लेकर नई बसों को चलाने और लोगों की समस्या पर तुरंत ऐक्शन लेने की वजह मीडिया में सुर्खियां बटोर रहे बाली को वीरभद्र के बाद मुख्यमंत्री पद का दावेदार भी देखा जाने लगा है।
इस वक्त हड़ताल होने से लोगों को असुविधा हो रही है और वे नाराज हैं। इसका सीधा ठीकरा यह सरकार बाली से सिर पर फोड़ती दिख रही है। हड़ताल में जाने के बाद कर्मचारी नेताओं का बाली हो हटाने की मांग करना और उन्हें तानाशाह दिखाना राजनीतिक पंडितों को हजम नहीं हो रहा। माना जा रहा है कि इस हड़ताल के जरिए जनता में ऐसा इंप्रेशन डालने की कोशिश है कि बाली की वजह से ही यह हड़ताल हुई और इसी वजह से लोगों को असुविधा हो रही है।
यह साफ है कि प्रदेश सरकार के भीतर कुछ भी ठीक नहीं है। मुख्यमंत्री और उनके प्रमुख मंत्रियों के बीच अगर इसी तरह से खींचतान होती रहेगी तो नुकसान प्रदेश और प्रदेश की जनता का होगा। इस मामले में भी सीधा नुकसान जनता का हो रहा है। प्रदेश के नेताओं को चाहिए कि आपकी मतभेदों को भुलाकर जनता के हितों के बारे में सोचे।
(लेखक इन हिमाचल के नियमित स्तंभकार हैं)