अनोखा प्रचार भी न आया काम, दादा का सपना पूरा नहीं कर पाए आश्रय

इन हिमाचल डेस्क।। मंडी लोकसभा सीट से कांग्रेस उम्मीदवार आश्रय शर्मा की हार हिमाचल प्रदेश में चर्चा का विषय बनी हुई है। वैसे तो इस बार पूरे प्रदेश में ही चारों सीटों पर बीजेपी उम्मीदवारों ने बहुत बड़े अंतर से कांग्रेस प्रत्याशियों को हराया है, लेकिन मंडी सीट को लेकर चर्चा ज्यादा इसलिए हो रही है क्योंकि यहां अजीब स्थिति पैदा हो गई थी। आश्रय शर्मा, उनके पिता अनिल शर्मा और दादा सुखराम 2017 विधानसभा चुनाव से पहले बीजेपी में शामिल हुए थे और फिर अनिल शर्मा मंडी से बीजेपी के विधायक बनकर जयराम सरकार में मंत्री भी बने थे।

मगर पहले आश्रय बीजेपी से टिकट मांगते रहे और जब नहीं मिला तो कांग्रेस में चले गए। ऐसी स्थिति में अनिल शर्मा को मंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा और घर पर बैठना पड़ा क्योंकि वह आश्रय के लिए प्रचार भी नहीं कर सकते। ऐसा करते तो उनकी विधायकी भी जाती। नए हालात में दादा और पोता दोनों ही प्रचार करते घूमे। इस दौरान सुखराम और आश्रय मंच से भावुक होते भी दिखे। सुखराम ने भावुक अपील की कि मैं अपना पोता आपको सौंप रहा हूं, यह मेरी कमी महसूस नहीं होने देगा। अनिल के शपथ ग्रहण समारोह में शामिल न हो पाने पर दादा-पोता दोनों भावुक होकर रोते हुए नज़र आए थे।

आंसू भी न आए काम
एक मंच से तो सुखराम लगभग रोने ही लगे और रुंधे हुए गले से बात करने लगे। दादा की यह स्थिति देख आश्रय भी मंच पर भावुक हो गए और आंसुओं पर काबू पाते नजर आए। प्रचार के दौरान जहां भी आश्रय गए, उन्होंने रामस्वरूप शर्मा के पांच के साल बतौर सांसद कार्यकाल को नाकामयाब तो बताया ही, भावनात्मक रूप से यह अपील की कि वह अपने दादा की इच्छा पूरी करने के लिए चुनाव लड़ रहे हैं। यह कहते हुए वह भावुक भी हो जाते। चूंकि सुखराम इसी सीट का प्रतिनिधित्व कर चुके थे, इसलिए आश्रय की कोशिश रही होगी कि दादा के नाम पर लोगों से कनेक्ट करने में उन्हें आसानी होगी।

वायरल वीडियो
इसी बीच 21 मई को एक वीडियो सोशल मीडिया पर सर्कुलेट होने लगा, जिसमें आश्रय कार में बैठकर रो रहे हैं। फिर पास खड़े लोग शीशा खोलकर आश्रय की हिम्मत बढ़ाते हैं और कहते हैं कि ठंड रखो। इसके बाद वे आश्रय का मनोबल बढ़ाने के लिए कहते हैं- पूरा इलाका आपके साथ है और फिर नारेबाजी करते हैं। यह वीडियो कहां का है, पता नहीं मगर इससे संकेत मिलते हैं कि आश्रय की प्रचार शैली कैसी थी। इस वीडियो को लोग नतीजों के बाद का वीडियो बता रहे हैं मगर है यह पहले का। वीडियो देखें-

जिस समय नेता को हिम्मत रखनी चाहिए, मजबूती से सामने वाले प्रतिद्वंद्वी को चुनौती देनी चाहिए, उस समय आंसू बहाना शायद लोगों को जमा नहीं और उनकी इस भावनात्मक अपील का भी कोई असर नहीं हुआ। नतीजा यह है कि रामस्वरूप शर्मा को जहां 6,47,189 वोट मिले, वहीं आश्रय 2,41, 730 पर सिमटकर रह गए। यह बहुत बड़ा अंतर है और साफ है कि वह मुकाबले में आसपास भी नहीं थे।

सुखराम परिवार का प्रभाव कितना
इस हार से दो-तीन बातें साफ हुई हैं। एक तो यह कि इस बार वोट मोदी के नाम पर पड़ा है, दूसरा यह कि पंडित सुखराम और उनके परिवार का यह भ्रम भी टूट गया कि उनका मंडी में बहुत प्रभाव है। वे प्रचार कर रहे थे कि मंडी से विधानसभा के लिए बीजेपी की 10 सीटें इसलिए आई हैं क्योंकि पंडित सुखराम बीजेपी में आए थे। जबकि हकीकत यह है कि इन सीटों को तो वैसे ही आना था क्योंकि पूरे प्रदेश में ही बीजेपी के पक्ष में उस समय माहौल था। अब शायद वे पत्रकार साथी भी सुखराम के लिए ‘चाणक्य’ शब्द इस्तेमाल करना बंद कर देंगे, जो जमीनी हालात से वाकिफ नहीं थे या शायद जनता को वाकिफ नहीं करवाना चाहते थे।

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