हिमाचल में ट्रेन के विस्तार के विरोध में हिमाचली?

हिमाचल और अन्य पहाड़ी राज्यों में रेल के विस्तार की मोदी सरकार की योजना से प्रदेश कीजनता में उत्साह है। लेकिन क्या कोई इस कदम का विरोध भी कर सकता है? सुनने में भले ही अजीब लगे, लेकिन ‘इन हिमाचल’ को मिली एक ई-मेल में ऐसी ही बात कही गई है। हिमाचल फैण्टम नाम के किसी अनसुने से संगठन की तरफ से विक्रांत डोगरा नाम के शख्स ने हमें एक ई-मेल भेजी है। इसका कॉन्टेंट हम यथावत आपके सामने रख रहे हैं:

आदरणीय संपादक जी,
हमारा एक सोशल मीडिया संगठन है जिसने एक विषय पर प्रस्ताव पारित किया है। उम्मीद है कि आप इसे प्रकाशित करेंगे।


हम हिमाचल में रेलवे के विस्तार का हम विरोध करते हैं। ऐसा नहीं है कि हम हिमाचल का विकास नहीं चाहते। यह हमारा सपना है कि हम भी रेल के जरिए देश के अन्य हिस्सों से जुड़ें ताकि समय और पैसे की बचत हो सके। इससे हमारे प्रदेश में ढुलाई वगैरह भी आसान हो जाएगी। मगर एक सबसे बड़ी समस्या है जिसे नजरअंदाज किया जा रहा है।


1. रेल के आने से प्रवासी मजदूर सीधे हिमाचल में घुस आएंगे। वे औने-पौने दामों में काम करके यहां की जनता का रोजगार छीन सकते हैं। इससे हिमाचल की अर्थव्यवस्था भी प्रभावित होगी। साथ ही अपने पूरे परिवार को साथ लेकर चलने वाले ये मजदूर स्वास्थ्य सुरक्षा चक्र के लिए भी खतरा हैं। ये समय पर टीकाकरण नहीं करवाते, जिससे बच्चे कई संक्रामक बीमारियों के संवाहक बन जाते हैं। अपराध दर बढ़ने की आशंका भी है।


हमारी मांग है कि जब तक देश के अन्य हिस्सों और खासकर जिन प्रदेशों में पलायन की समस्या है
 वहां पर लोगों को रोजगार दिया जाए। उन प्रदेशों के लोग जब तक काम की तलाश में बाहर निकलना बंद नहीं करेंगे तब तक हिमाचल में रेल की पटरी न बनाई जाए। अभी सस्ता साधन होने की वजह से ये मजदूर वहां-वहां पहुंच जाते हैं जहां ट्रेन है। हिमाचल रेल न होने की वजह से बचा हुआ है। यहां अभी इन प्रदेशों से सिर्फ दक्ष लेबर पहुंच रही है, जिससे हिमाचल को लाभ हो रहा है।

हम समाज और मजदूर विरोधी नहीं हैं और न ही क्षेत्रवादी। मगर यह कदम ठीक उसी प्रकार जरूरी है, जैसा गोवा में उठाया गया था। गोवा में एक पलायनग्रस्त प्रदेश से सीधी ट्रेन शुरू करने का विरोध किया गया था।

2. दूसरी समस्या है कि हिमाचल प्रदेश में अभी ट्रांसपोर्ट का काम ट्रकों से होता है। सेब से लेकर सीमेंट तक की ढुलाई ट्रकों से होती है। बरमाणा में एशिया की ट्रकों सी सबसे बड़ी यूनियन है। 23000 से ज्यादा ट्रक वालों का रोजगार भी ट्रेन से छिन जाएगा।

हमारी मांग है कि पहले योजना बनाई जाए कि इतने सारे लोगों की रोजी-रोटी के लिए क्या वैकल्पिक व्यवस्था है। विकास जरूरी है, लेकिन विनाश की शर्त पर नहीं। सरकार पहले अपना खासा सामने रखे, वरना ट्रेन आना हिमाचल के लिए सुविधा के बजाय अभिशाप साबित सकता है।

साभार,
Vikrant Dogra
Himachal Phantom.

(Disclaimer: In Himachal इस ई-मेल की सामग्री का किसी भी तरह से समर्थन नहीं करता नहीं करता है। हमारे संपादकीय बोर्ड ने इस ई-मेल को छापने का फैसला इसलिए किया, ताकि यह देखा जा सके कि इस मुद्दे पर हिमाचल प्रदेश की जनता क्या राय रखती है।)

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